विजय राही की कविताएँ |
१.
याद
सौंफ कट रही है
मगर उसकी ख़ुशबू नहीं
डंठलों में भी उतनी ही ख़ुशबू है
जो अभी कुछ दिन और रहेगी हवाओं में
तुम्हारे चले जाने पर भी
तुम्हारी याद की ही तरह
यह तपेगी
जलेगी
ढह पड़ेगी
२.
तुम्हारे बारे में
सहजन की फलियाँ लेते आना
अगर तुम आओ
फूलों की सब्जी से मेरा जी भर गया है
कस्बे की हाट में मिलती हैं
गंदे नाले की भाजी
तुम मोरेल से लाना बिल्कुल ताज़ी
कानों में छेद न करना पड़े जिनके लिए
नाक में भी चुभे नहीं
ऐसी बालियाँ लेकर आना तुम
अगर गणगौर के मेले जाओ
कितने कम रहते हो तुम मेरे पास
नहीं तो मंगाती ही रहूँ
कुछ न कुछ रोज़ मैं तुमसे
पीली लूगड़ी ज़रूर ले आना इस बार
जिसमें अच्छे कसीदे हो
आखातीज पर भाई का ब्याव है
मेरी सहेलियाँ तुमको उलाहना देगी
क्यों नहीं तुम लूगड़ी के फूल हो जाते
मैं तुमको ही माथे पर ओढ़ लेती
इन दिनों रोज़ दिन-रात
मैं इसी चिन्ता में रहती हूँ
जब तुम परदेश चले जाओगे
तब मेरे लिए अमरूद कौन लाएगा
३.
तुम्हारा प्यार
मेरे लिए चैत्र का महीना है यह
नीम के फूलों का महीना
जिसमें उम्र गुज़ार सकता हूँ मैं
सिर्फ़ नीम फूलों की नीम-ख़ुशबू को
अपने नथूनों में भर-भरकर
यह मादकता ऐसी है
भूख-प्यास का ज़रा भी एहसास नहीं होता
जग को बिसरित कर देता है मन
एक खेलता हुआ बच्चा रोटी-पानी भूल जाता है
4.
तुम्हारा प्यार (२)
दिल बुझ चुका है
जख़्म सूख चुके हैं सीने के
ख़ामोश है ज़बान
लेकिन आत्मा में घाव है अभी भी
इस घर के नष्ट होने से पहले
एक-बारगी इसमें जीवन भर देगा
तुम्हारा प्यार
5.
आँधी
आँधी आती है
जंगल के पेड़ चिपक जाते हैं एक-दूसरे से
अपने आपको टूटने से बचते-बचाते हुए
वे अपनी डालियों के हाथ हिलाते हैं
हिम्मत बँधाते हैं एक-दूसरे को
पौधों को अपनी बाँहों में छुपा लेते हैं
कुछ ऐसे पेड़ भी होते हैं
जिनका दूर तक कोई करीबी नहीं होता
कवियों की तरह
अलग-थलग पड़े अपने कुनबे से
वे अकेले ही आँधी के थपेड़े खाते हैं
सहते हैं सहने की सब सीमाओं तक
लेकिन आख़िर टूट जाते हैं
जीवन की ऐसी ही किसी आँधी में
तुमसे बिछुड़ जाने के बाद
जैसे मेरी छाती टूटती है
6.
बारिश
जैसे हमको गाड़ी दूर से दिख जाती है
वैसे माँ को दूर से दिख जाती है बारिश
7.
ग्वालिन
वह पढ़ती नहीं गाय चराती है
कौन जानता है वह गाय चराती है
इसलिए पढ़ नहीं पाती हो
शायद इसलिए भी कि
घर में कोई और गाय चराने वाला नहीं
बाप पिछले साल चेचक से मर गया उसका
माँ को फुर्सत नहीं घर-बार के कामों से
छोटी बहन पढ़ने जाती है सरकारी स्कूल में
छोटा भाई बहुत छोटा है अभी
गाय के बछड़े की ही तरह
वह अल-सुबह निकलती है
गायों को लेकर चारागाह की तरफ
अपनी चुन्नी में बांधकर प्याज-रोटी
हाथों में लाठी और पानी का देउडा लेकर
अपनी गायों के साथ-साथ में
बस्ती की दो-एक गायें चरा लाती है
उसके बदले में मिल जाता उसे
कुछ नाज-पानी और पैसे भी
गायें चरती रहती है मैदानों में हरी घास
लड़कियाँ शादी का खेल रचाती है
गायें सुस्ताती है जब दोपहर में पेड़ों तले
वह भी सखियों संग नाचती-गाती है
गायों का शीतल स्पर्श पाकर
दूर हो जाती है उसकी सारी थकान
उसका स्पर्श पाकर गायें भी सुख पाती हैं
पड़ौस में चढ़ती है जब कोई खिरोण्डी
उसे ग्वालों के साथ सम्मान प्राप्त होता है
वह ख़ुशी से गदगद हो उठती है
बस्ती के बच्चे उससे पूछते हैं-
“कमली! तू क्यूं नी पढ़बे जावे”
वह चुप हो जाती कुछ नहीं बोलती
ज़्यादा छेड़े जाने पर कहती-
“पढ़र कांई करूंगी
पेला ही कौनी पढ़ी, अब कांई पढूँगी
तम ही पढ़ो भाई-बहणों
म्हारी जिंदगी म तो
गाय चराबो ही लिख्यो छ!”
कभी-कभी लड़कियों का बस्ता टांगकर
शरमाती हुई वह चुन्नी में मुँह छुपा लेती है
गाय चराने वाली लड़की
एक दिन सचमुच गाय बन जाती है
८.
नई जगह
नई जगह नई होती है
मगर कुछ-कुछ पुरानी से मिलती जुलती-सी
लोग भी नए मिलते हैं जीवन में
लेकिन कुछ-कुछ पुरानों से हिलते-मिलते से
नई चीज़ें नई ही होती हैं
पर कुछ-कुछ पुरानी के आकार सी भी
नई जगह नए लोगों से नई होती है
पुरानी जगह पुराने लोगों से पुरानी
मगर नई जगहों के बीच
पुरानी जगहें दखल-अंदाज़ी करती रहती हैं
अपनी याद दिलाती रहती हैं
विजय राही विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं और डिजिटल माध्यम में कविताएँ प्रकाशित. संप्रति |
सभी कविताएँ जी जुड़ाने वाली हैं। ख़ासतौर पर शुरुआती। अंतिम भी एक सुखद टीस से भरी है।
बधाई और शुभकामनाएँ।
बहुत अच्छी कविताएं
कविताओं की एकरस भीड़ में अपनी ज़मीन हवा पानी से बनी ताजी टटकी कविताएं जिनका आकाश पहचाना जा सकता है और धीमी मंदरी आंच भी।
विजय और अमर हमारी आशाएं हैं जो हमारे देस को वाणी देते हैं
विजय रही गांव से जुड़ा साहित्यकार है इसकी काव्य रचनाओं में गांव की सौंधी मिट्टी की महक आती है बेहतरीन काव्य रचनाओं के लिए बधाई
बहुत सहज, स्वाभाविक और अपनी स्थानीय प्रकृति एवं परिवेश को चित्रित करने वाली कविताएं हैं, जो मुग्ध करती हैं।
क्यों नहीं तुम लूगड़ी के फूल हो जाते
मैं तुमको ही माथे पर ओढ़ लेती
वाह अद्भुत जमीन से जुड़ी कविता
अच्छी कविताएं. ताज़गी, मितकथन, सादगी : इनमें मेरी पसंद का बहुत कुछ है. कवि को शुभकामनाएं.
बहुत अच्छी कविताएं। मेरे मन की कविताएं। विनोद पदरज जी की कविताओं से मानों गुफ्तगू करती हैं। विजय जी को हार्दिक बधाई
कविताओं में से झांक रहे हैं ठेठ ग्रामीण सुख दुख के भाव जो जा जुड़ते हैं सार्वभौमिक सुख दुख से !
प्यारी कविताएं, विजय भाई कि कविताओं में सेहजता कब चुभ जाए पता hi नहीं चलता,, बेहतरीन और कुछ हट के .
मेरी शुभकामनायें हैँ, वो लेखन क्षेत्र में बहुत कुछ करने वाले हैँ
सौंफ की खुशबू की तरह ही देर तक घेरे रहती है इन सहज-सुन्दर कविताओं की संवेदना। कवि को बधाई।
बहुत ही सुंदर कविताएँ। विनोद पदरज, प्रभात से मिलकर ये कुनबा बढ़ रहा है।
पदरज जी की टिप्पणी ही मेरी भी बात है।
इन कविताओं में जीवन की सादगी और कहन की सरलता है। कविताओं पढ़ते हुए जुड़ जाते है। लोक की आशा – उम्मीदों से कविताओं को रचा हैं। कवि को बहुत बधाई।
सुंदर, सरस और यादगार कविताएं । बहुत बधाई राही जी।
बहुत बेहतरीन कविताएं लिखी। बधाई विजय जी को।
मन को गहरे छूती हैं ये कविताएँ। जीवन का सार और रस भी है इनमें तो दर्शन भी। दो पंक्ति की कविता- ‘बारिश’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
कवि के रूप में विजय प्रभावी है और इससे बहुत उम्मीद है।
शुभकामनाएँ
बहुत अच्छी कवितायें हैं। इन कविताओं में लोक ध्वनि की मध्दम-सी अनुगूंज सुनाई देती है। विजय को बहुत बहुत बधाई और आपको ये कवितायें प्रकाशित करने हेतु साधुवाद।
बहुत सुंदर कविताएं मिट्टी अपनी की गंध लिए
बहुत अच्छी कविताएं हैं।
टटके भाव-बिंब की कविताएँ…जो एकदम ख़ालिश देशजता लिए ‘धँस’ जाती हैं…
दूसरी बात यह कि इन कविताओं में रेतिले विस्तार का जो अनंत है…जो रागदारी है…वह एक अलग ‘थाट’ लिए हुए है…
ठीक कहा आपने, विजय राही की कविताएं पढ़ने का सुख देती हैं. इस सुख के तुरंत बाद कविताओं में रुपायित स्मृतियां और अधूरी कामनाएं पाठक के मन को दुखी भी नहीं करती.
कारण, इफेमिनेट हो रहने के स्वभाव की ताकत. ….. जैसे छठी कविता ‘बारिश’ में मां की हस्ती.
जरूरी कविताएँ। गाँव के कुएँ की तरह। करेजा जुड़ाती हुईं। विजय भैया को बधाई ♥️
एक से बढ़कर एक कविताएं
दिल को छूती…
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
“गाय चराने वाली लड़की
एक दिन सचमुच गाय बन जाती है।”वाहहह
अद्भुत कविताएं हैं विजय राही जी की , इसलिए इनका असर बहुत दिनों तक बना रहेगा। सरल शब्दों में बिना किसी लाग लपेट के लिखी इन कविताओं में माटी की खुशबू भी है और जीवन की खूबसूरती भी।
कवि को बधाई
जी, लगा कि कविताएं ही पढ़ रहा हूं -बहुत आत्मीय, अनछुई फूल-पत्ती की तरह।
कविता पढ़कर उमंग -सी हुई, कुछ भी हो, कैसी भी हो कविता लिखते रहना चाहिए, नहीं तो सूख जाएगा मन।
हीरालाल नागर
विजय राही जी आपकी सभी कविताएँ शानदार है जमीनी स्तर से जुड़ी हुई अंतर्मन को छुने वाली, कविताएँ पढ़ने पर आभास होता है मेरे आस पास के परिघटनायों को उकेरा गया हो l
आशा है कि आगे भी आपकी ऐसी कविताएँ पढ़ने का लाभ प्राप्त होता रहे l
राही जी माशाल्लाह बहुत ही खूबसूरत कविताएं हैं आपकी मानो ऐसा प्रतीत होता है जैसे की कोई पास में बैठा हो और मीठी-मीठी बातें कर रहा हो बहुत ही खूबसूरत है
विजय राही, आधुनिक युग में बहुत सुंदर कविताओं के माध्यम से युवा पीढ़ी को एक नई सोच जाग्रत करने का काम कर रहे हैं। धन्यवाद प्रिय भतीजे
वाह अति सुंदर…आपकी कविताएं पढ़ते वक्त यूं नही लगता कि कुछ पढ़ रहे है, ऐसा लगता मैं इन तमाम चीजों को जी रहा हूं
। वाकई में बहुत सादगी और गांव के सच्चे जीवन को चरितार्थ करते है आपके शब्द।
हिंदी संसार मे जरूरी हस्तक्षेप की तरह दाखिल कविताएं। बहोत मुबारक विजय भाई।
विजय राही की उम्दा कविताएं छुपे हुए कई सवालों का जवाब है। शुभकामनाएं
विजय रही की कविताओं में कई सामाजिक आर्थिक संदेश छुपे हुए शुभकामनाएं
समालोचन इस समय की बेहतरीन साहित्यिक ई-पत्रिका है। इस बार विजय राही की लोक व उसके जीवन की गन्ध से लिपटी प्रेम कविताएँ प्रकाशित हुई हैं।
ऐसी सहज व सरल कहन के साथ ये कविताएं देर तक आसपास गूँजती रहती हैं।
कम से कम मेरा निज मानना है कि अब कविता की तरफ विजय का प्रस्थान बिन्दु यहाँ से शुरु हो रहा है। अब इससे आगे की यात्रा इस रेंज की कविता से प्रारम्भ होगी।
इस उम्मीद के साथ बहुत बहुत बधाई हो विजय भाई।💐💐💐
शानदार कविताओं का संग्रह, बहुत बहुत बधाई सर 💐💐
Amazing poetry by Vijay Rahi my younger brother.
Every word of his poetry define the calibre of the poet. I am speechless for his poetry.
शानदार कविताओं का संग्रह, बहुत बहुत बधाई सर 💐💐
शानदार कविताओं का संग्रह विजय इसी प्रकार अपनी कविताओं से अपनी पहचान बनाते रहो देश समाज और प्रकृति का नाम रोशन करते हैं
कविताएँ बहुत अच्छी लगी.
मन को छू लेने वाली कविताएं | देर तक जेहन में रहती हैं | बहुत बधाई विजय भाई
कविताओं को ख़ूबसूरत तरीके से प्रकाशित करने के लिए अरुण देव जी का शुक्रिया । कविताओं पर विश्वास जताने और उत्साहवर्धक टिप्पणियों से नवाज़ने के लिए आप सबका भी बेहद शुक्रिया। आप सबका स्नेह बनाए रहें 🌻
– विजय राही
दौसा, राजस्थान
बहुत सुंदर और मार्मिक कविताएं। कम शब्दों में कमाल किया है आपने। शब्द बहुत सीमित हैं परंतु अर्थ में सागर की सी गहराई और विस्तार है। बारिश , सौंफ, गाय चराने वाली लड़की ,नीम इनके माध्यम से हमारी संस्कृति और संवेदना दोनो के दर्शन होते हैं। आपकी कविताओं में मोनालिसा की सी मुस्कान छुपी हुई है। बहुत बहुत बधाई।
very good and impresive poem written by vijay
राही साहब ,आपकी कविताओं में घर – आंगन की खुशबू हैं तो दूसरी तरफ वियोग की मार्मिकता हैं । जहाँ आपकी संवेदना समाज की संस्कृति व सभ्यता को अमर शब्द प्रदान करती है ।
आप ऐसे ही साहित्य सेवा करते हुए समाज राह दिखाते रहे ।
सन्तोष मीना
दौसा
शोधार्थी
राज.विश्वविद्यालय
विजय राही की कविताओं को पढ़कर महसूस होता है कि अब भी हिंदी साहित्य में ग्रामीण जीवन की कविताएं लिखी जा रही हैं।अब भी हिंदी साहित्य अच्छे कवियों से समृद्ध है।मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं स्वीकार करें कविवर औऱ ऐसे ही लिखते रहे।खेत खलिहान, लूगड़ी, बारिश की कविताएं।
बेहद खूब रोचक कविताओं का संकलन है । इन सभी में गांव की मिट्टी की स्पष्ट ख़ुशबू और ग्रामीण परिवेश की स्पष्ट झलक महसूस हो
रही है।
बेहद खूब रोचक कविताओं का संकलन है । इन सभी में गांव की मिट्टी की स्पष्ट ख़ुशबू और ग्रामीण परिवेश की स्पष्ट झलक महसूस हो
रही है।
बहुत सुंदर कविताएं डियर सर