राकेश मिश्र के तीन कविता संग्रह इसी वर्ष प्रकाशित हुए हैं. उनकी कवितायेँ सहज, सरल, सुबोध हैं. वे जीवन से कुछ पल और प्रसंग उठाते हैं और उन्हें शब्दों से रंग देते हैं, उनकी अपनी ही आभा दिखने लगती है. आकार में छोटी पर मंतव्य में गहरी उनकी कुछ कविताएँ आपके लिए.
राकेश मिश्र की कविताएँ
अभी
अभी
छलका है
मुस्कान का सुगन्धित कटोरा
उसके चेहरे से
अभी समय है
हवा के शुष्क होने में.
अभी
देखी है
दर्द की एक बसावट
उसके चेहरे पर
अभी
कुछ दिनों तक
और नहीं पढ़ना
अभी
रोया है
फूट-फूटकर
वह आदमी
अभी
समय है
दुनिया को सभ्य होने में.
मेरी धरती
मेरी
धरती
मोरपंख जैसी
मेरे
सपने
हिरन जैसे.
मेरे दोस्त
जैसे रंगीन कंचे
पारदर्शी
जीवन
जो
मेरे अन्दर था
वही
मेरे बाहर था
लड़ता रहा मैं
जो
नहीं था
कहीं भी
मेरी कल्पनाओं में
मुखरित होता रहा
जन्म जन्मान्तर
मैने जिया
जिसे
वह जीवन
बंटा हुआ था.
बातें
बातें
अपना पता जानती हैं
चौराहे पहचानती हैं
बातें
यदि नजरबंद हों
तो भी
इतिहास बदलना जानती हैं.
आँसू
मन
हमेशा भर लेता है
कटोरा
आंसुओं से
आँखें
तो केवल
अतिरिक्त ही बहाती हैं.
मरा हुआ आदमी
अभी
कितना जियोगे !
पूछता है
हर जीवित आदमी से
मरा हुआ आदमी.
अलार्म घड़ियाँ
हर सुबह
भाडे पर हत्या करती हैं
अलार्म घडियॉं
सपनों की.
पहला तिनका
अभी
चिडिया ने चुना है
पहला तिनका
घोसले के लिए
यह समय नहीं है
निराश होने का.
यादों का घर
बहुत
मुश्किल है
ढहाना
यादों का घर
फिर यादों के
खण्डहर
नया घर
बनाने नहीं देते.
प्यार में
मुझे प्यार था
उससे
उसके पैरों को देखा
धूल से नहाये
हवाई चप्पलों की सफेद धारी थी,
पावों में काला धागा बंधा था
यह सच है
प्यार में पहली नजर
पावों को ही लगती है.
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राकेश मिश्र
राकेश मिश्र
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