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Home » परख : वसंत के हत्यारे

परख : वसंत के हत्यारे

वसंत के हत्यारे (कहानी संग्रह) लेखक : ऋषिकेश सुलभ प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली मूल्य : १६० वसंत के हत्यारे : विलक्षण कथारस सुशीला पुरी अपनी जीवन यात्रा में सत्य-सौन्दर्य-द्रष्टा मनुष्य ने समय-समय पर अनेक कलारूपों की सृष्टि की ताकि वह विकासशील यथार्थ को अधिक से अधिक समझ सके और अपने लिए सहेज सके. हमारी इसी ऐतिहासिक […]

by arun dev
June 17, 2012
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वसंत के हत्यारे (कहानी संग्रह)
लेखक : ऋषिकेश सुलभ
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : १६०





वसंत के हत्यारे : विलक्षण कथारस


सुशीला पुरी

अपनी जीवन यात्रा में सत्य-सौन्दर्य-द्रष्टा मनुष्य ने समय-समय पर अनेक कलारूपों की सृष्टि की ताकि वह विकासशील यथार्थ को अधिक से अधिक समझ सके और अपने लिए सहेज सके. हमारी इसी ऐतिहासिक जरूरत से एक समय कहानी भी उत्पन्न हुई और अपने रूप-सौदर्य के साथ इसने हमारे यथार्थ के साथ हमारे सौन्दर्यबोध को विकसित किया.

वरिष्ठ कहानीकार और नाटककार हृषीकेश सुलभ का ताजा कहानी संग्रह वसंत के हत्यारेकुल नौ कहानियों का संग्रह है. इस संग्रह की कहानियाँ संग्रह की चरम सीमा से चैंककर खुश होने वाली कहानियाँ नहीं हैं और न ही अपनी स्थूल भावुकता से पाठकों को बहलाती हैं. इन कहानियों में जीवन का सच है. इन कहानियों को पढ़ते समय सम्पूर्ण कथानक एक सारगर्भी विचार के रूप में ध्वनित होने लगता है. हृषीकेश सुलभ की कहानियों में कथ्य की नवीनता के साथ शिल्प की ताजगी भी है. इन कहानियों को पढ़ना शुरू करने के बाद खत्म करके ही संतुष्टि मिलती है. पठनीयता से भरपूर इन कहानियों में जीवन के तमाम रंग हैं, जहाँ संवेदना महक की तरह फैली हुई है.

हृषीकेश सुलभ की भाषा सचमुच कहानी की भाषा है. कहीं वे पारम्परिक लोकगीतों से सनी भाषा लिखते हैं और कहीं आज के तीखें आतंकी समय की नब्ज पकड़कर ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जहाँ आँखे विस्मय से फैल-फैल जाती हैं. प्रकृति-वर्णन में कहानीकार की दृष्टि कहानी के समयनुसार चलती है और पात्रों के जीवन में हर मौसम की आवाजाही प्रतीत होती है. पात्रों के पोर-पोर में..; साँसों में..; आँखें में..; उनके रुधिर में..; उनके बोलने-बतियाने में..; उनकी चाल में कभी वसंत आता है तो कभी पतझड़. यहाँ गर्म हवाओं के झोंके हैं, तो ठंड की ठिठुरन भी है. वसंत के हत्यारे संग्रह में इसी शीर्षक से एक कहानी है, जो अपने नाटकीय कथानक और काव्यात्मक भाषा के साथ इस समाज में प्रेम के यथार्थ को उजागर करती है. बिंबों की दृश्यात्मकता कहानी की पठनीयता को गति देती हे और कहानी पढ़ते हुए कथारस मन के भीतर प्रवाहमान हो उठता है.
भुजाएँ इस संग्रह की पहली कहानी है. भुजाएँ का कथानायक अपनी पत्नी के मायके जाने के दौरान उसकी आलमारी से उसके विवाह-पूर्व प्रेमी के पत्रों को निकाल लेता है. पत्नी के वापस आती है. जब पत्नी रात में उसके संग सोने के लिए बिस्तर पर आती है, उसके भीतर छिपा हिंसक मर्द फुँफकार उठता है और वह पत्नी के चरित्र पर दोषारोपण करता है और उस पर लात-घूसे बरसाने लगता है. 

ठीक उसी क्षण पत्नी कथानायक की माँ की डायरी का जिक्र करती है जिसमें नायक के जन्म का रहस्य छिपा हुआ है. जब कथानायक को उस रहस्य की जानकारी होती है उसका दम्भ चूर-चूर हो जाता है. वह पलंग पर लोथ की तरह गिरता है और उसकी भुजाएँ, जो आक्टोपस की तरह फैली थीं न जाने कहाँ विलीन हो जाती हैं! इस संग्रह की एक बेहद खूबसूरत कहानी है- खुला. इस कहानी का काल सन् 1905 के परतंत्र भारत की जमींदारी व्यवस्था से अब तक फैला हुआ है.

कहानी की नायिका ‘लुबना’ एक बेहद ख़ूबसूरत और ज़हीन लड़की है. मुस्लिम समाज के पारिवारिक माहौल में स्त्री की बेहद दयनीय स्थिति के बीच भी लुबना अपनी बुद्धि के बल पर समाज के सामने सिर उठाकर अपनी अस्मिता के साथ जीने की तमन्ना रखती है. अनूठे शिल्प में लिखी गयी यह कहानी प्रेम की अनोखी सिरहन के साथ मन की गहराइयों में उतरती है. संग्रह की अन्य महत्त्वपूर्ण कहानी है – फ़जर की नमाज़. गाँव की गर्विली ग़रीबी में किसान किस तरह खुश रहता है और सीमित संसाधनों के बावजूद वह संतुष्टि की जिस सीमा तक जाता है, उसकी कथा है यह. पर आज भूमण्डलीकरण की आँधी ने गाँवों को भी बेतरह जकड़ना शुरू कर दिया है और ज़्यादा कमाने के लालच में अच्छे-भले घरों को दुःख के ऐसे अथाह सागर में गिरा रहा है, जहाँ से उबरना मुश्किल ही नहीं असंभव होता जा रहा है. गाँव की निर्मल प्रकृति का सजीव चित्रण इस कहानी को अनोखी आभा प्रदान करता है. इस कहानी को पढ़ते हुए मुंशी प्रेमचंद का अमर नायक होरी बरबस याद आता है.

वरिष्ठ कथाकार सुलभ की कहानियाँ जीवन के ऐसे अनदेखे पहलुओं को साकार करती हैं जो कतई चाक्षुष  नहीं. गहन ऐन्द्रिकता में रची ये कहानियाँ संवेदना को बेहद क़रीब से छूती हैं और जीवन को विहंगम भाव से परखते हुए अपने समकालीन समय और समाज को देखती हैं.  आज जब कहानी पठनीयता के भीषण संकट से गुजर रही है, ऐसे वक्त में यह कथा संग्रह कहानी के उस काल की याद दिलाता है, जब कहानियाँ सिर्फ श्रव्य विधा के अंतर्गत ही आती थीं. वाचिक विधि से कहानी को लोग चाव से सुनते थे और सुनाने वाला अपनी पूरी किस्सागोई और स्वर के उतार-चढ़ाव के साथ कहानी को श्रोता तक सम्प्रेरित करता था और कहानी में निहित संवेदनाएँ श्रोताओं के मन-प्राण को आन्दोलित कर देती थीं. सुलभ के ये कहानियाँ आज के दुरूह समय में सचमुख सरल और सुलभ अंदाज में जीवन के बारीक से बारीक रेशे को भी बड़े जतन से उधेड़ते हुए उसकी बेहद संजीदा तस्वीर बनाती है. ये कहानियाँ मन के कैनवास पर छप जाती हैं, अनायास और अबूझ तरीके से. इस कथा सग्रह में एक कहानी है- स्वप्न जैसे पाँव. अनिश्चित और आतंकी समय में मनुष्य की कल्पनाएँ भी उसी दिशा में मुड़ जाती हैं और वह बिना कारण भी अनहोनी सोचने लगता है.
सूक्ष्म अवचचेतन मन की परतों में बड़े बेढंगे से प्रश्न उमड़ने लगते हैं और कथानायक उन्हीं आशंकाओं से भयभीत रहते हुए स्वप्न में जो देखता है, वह एक दिन यथार्थ में घट जाता है और फिर शुरू होती है लड़ाई नैतिकता और भ्रष्टाचार में. तमाम तरह की पीड़दायी स्थितियों से गुजरते हुए अंततः वह अपनी मानवीयता से लबरेज निर्णय की ओर मजबूती से बढ़ जाता है. इस कहानी को पढ़ते हुए संवेदना के धरातल पर जीवन को बिल्कुल ताजे व अनोखे बिंबों में ग्रहण किया जा सकता है. इस कहानी के भीतर कई विधाएँएक साथ चलती हैं. प्रकृति के अनछुए बिंबों के साथ कदम-कदम पर कविता का आभास होता है और बिना अतिरिक्त भावुक हुए किस्सागोई के सरल सूत्रों से गुथी यह कहानी बिल्कुल अलग दुनिया में पहुँचा देती है, जहाँ पाठक अमूर्त रागात्मक लोक में अपने भीतर के लय के साथ सघन अनुभूति को ग्रहण करता है. मुझे लगता है कि कहानी की ये पहली शर्त है कि वह जो कुछ कहना चाह रही है उसे पाठक एक नहीं कई-कई दिशाओं से ग्रहण कर ले उसे पढ़ते वक्त. एक और कहानी है- हाँ, मेरी बिट्टी. इस कहानी में कथाकार ने बेहद सतर्कता से संवेदना के धागे को बुना है और स्त्री सौन्दर्य का निष्कपट चित्रण करते हुए भी उसे वात्सल्य के पवित्र प्रेम में निरूपित किया है. कहानी को पढ़ते हुए बड़ी साधारण सी घटनाओं के पीछे भी अर्थ के बड़े मोहक बिंब हैं. कहानी पढ़ने के दौरान लगातार यह लगता रहता है कि अब देखें आगे कुछ गड़बड़ जरूर होगा, पर कथाकार ने निराले शिल्प में प्रेम को रचा है.

कहानी एक अंतहीन प्रतीक्षा की तरह ख़त्म हो जाती है. सुलभ के ये कहानियाँ यथार्थ के धरातल पर प्रतिरोध को अत्यंत नए तरीके से प्रकृति के रूपकों में अनूदित करती हैं. इन कहानियों को पढ़ते समय संगीत की लय और धुन साथ-साथ चलती है. सघन ऐन्द्रिकता लिये ये कहानियाँ समाज की विसंगतियों से निरंतर संवाद करती हैं. कहानियों की भाषा नदी की लहरों की तरह बहती है और शिल्प कौशल कई बार ठिठककर दोबारा पढ़ने को विवश करता है. विभिन्न आस्वाद के इस कथा संग्रह की लगभग सभी कहानियाँ अपने शिल्प और सरोकार के कारण ख़ास हैं और पढ़ने योग्य हैं. अपनी कहानियों में प्रेम की गझिन अनुभूति अनुभूति का सृजन करने वाले कथाकार हृषीकेश सुलभ का यह कथा संग्रह अपने कथारस के कारण महत्त्वपूर्ण है.

________________________
२०११ में इंदु शर्मा कथा सम्मान इस कृति को मिला है.




सम्पर्क: सी-479/सी, इन्दिरा नगर, लखनऊ – 226016
ई पता : puri.sushila@yahoo.in
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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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