प्रेम जीवन की देह हैं
और देह प्रेम हैं जीवन का
ये कहना –
की मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
या नहीं करता
दोनों अब एक-सा अर्थ रखते हैं
दक्षिणी गोलार्ध पर जाकर
समाप्त हो जाती है दक्षिण दिशा
अब मैं जिस ओर जाऊं
निसंदेह वह \”उत्तर\” होगा.
भविष्य लौटता हैं मेरी तरफ
रण भूमि से लंगड़ाते हुए उस घोड़े की तरह
जिसकी पीठ पर सेनापति की लाश हैं
वर्तमान के कौनसे वार नें घोड़े को घायल किया ?
अतीत की कौनसी गलती से सेनापति मारा गया ?
मैं नहीं जानता
कायर राजा की तरह
बार-बार शराब गटकता हूँ
और झरोखे से झांकता हूँ
सोचता हूँ
भविष्य चाहे एक हो लेकिन
मेरे पास घायल होने के लिये असंख्य घोड़े हो
मारे जाने के लिए असंख्य सेनापति.
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धैर्य
तो सवाल धैर्य कितना ?
सुखी घास में शिकार कि ताक में दबे हुए
तेंदुए जितना धैर्य
अर्थात छलांग के साहस जितना धैर्य
मृत्यु कि सरहद पर देर-सबेर एक फूल खिलेगा
उसके खिलने के इन्तजार जितना धैर्य
और खिलते ही छलांग जितना अधैर्य .
समर्पण
वृक्ष कि तरह अरण्य को अंगीकार कर लेना
हरीतिमा के केंद्र से पत्ते कि तरह किनारों को
पीला होते देखना
और पतझड़ के प्रथम प्रहर में ही झड़ जाना
चाहे जीवन भरा हो
सुख से लबालब
प्यासा गला मिले तो सहसा उलीच देना.
आज्ञा
जीवन कभी रंगरूट कि तरह
एड़िया पटक कर सलामी नहीं देता
जीवन अराजक होता हैं
सिर्फ़ कारतूस के समानांतर चलती
मृत्यु अनुशासित हो सकती हैं
आज्ञा देने से पहले
मुझ पर गोली दाग दो.
चित्रकार स्याह करता जा रहा हैं अपने रंगों को
लगता हैं दुनियां तेज़ रौशनी से भर चुकी हैं
विदा की यात्रा अब शुरू होती हैं
विदा !
जैसे बच्चे सेंध लगाते हैं संतरों के बगीचे में
मैंने सेंध लगाई वर्जित शब्दों के लिए
सभ्यता के पवित्र मंदिर में
संतरे के पेड़ों की जड़ें पृथ्वी के गर्भ तक जाती थी
और पृथ्वी की जड़ें जाती हैं सूरज के गर्भ तक
और अगर सूरज दीखता रहा संतरे जैसा
तो मैं निश्चिंत हूँ, बच्चे उसे सेंध लगा के बचा लेंगे
चींटियों के हवाले करता हूँ
पृथ्वी को, मेरे बच्चों को, समूचे जीवन को
चींटियाँ काफी वजन उठा लेती हैं
अपने वजन से भी ज्यादा
तो मैं निश्चिंत हूँ,
प्रलय से ठीक पहले
चींटियाँ सुरक्षित खींच ले जायेगी पृथ्वी को
बेहद कमजोर पर भरोसा करके
कहता हूँ \”विदा\”
समंदर तट पर रहने वाली लड़की !
समंदर कितना अकेला होता हैं अपने भीतर
उतना ही अकेला, जितना बसंत उदास होता हैं
बसंत के मौसम में
समंदर तट पर बैठी हो तुम
तट की रेत राख हो चुकी हैं
घुटनों तक राख में डूबे
हवस के दैत्याकार हाथी तुम्हारी तरफ बढ़ते हैं
महावत की उम्र कितनी छोटी होती हैं हाथी से
अनंत में डूबा तुम्हरा महावत
राख के भीतर से हँसता हैं
इस शोक पूर्ण हंसी के साथ
तुम अपनी प्रतीक्षा का फंदा क्षितिज के गले में फंसा दो
समंदर तट पर रहने वाली लड़की !
समंदर के अकेलेपन में तुमने अपना विछोह घोला
और समंदर ने तुझे
नमक की तरह ख़ूबसूरत बना दिया
सौंदर्य के इस शीर्ष पर
अब मैं सिर्फ \”लड़की\” संबोधित करता हूँ तुझे
वही अनाम लड़की जिसकी कहानी
तमाम कहानिओं की शुरुआत से पहले समाप्त हो चुकी थी
दोस्तोयेव्स्की जिसका जिक्र
अपने उपन्यासों के अंत तक नहीं कर पाया
एक अनाम लड़की के नाम ख़त लिखकर
कथाओं के पात्र आत्महत्या करते हैं
एक दुखांत अंत के बाद शुरू होती हैं तुम्हारी जिन्दगी
कितना मुश्किल हैं
सिर्फ एक \”लड़की\” होना
नमक की तरह ख़ूबसूरत होना
अँधा होने की पहली शर्त थी
हमारे पास आँखे होती
ईसाइयत जीसस से नहीं
सलीब से पैदा हुई थी
जीवन के गाये तमाम गीत साबित करते हैं
मनुष्य सिर्फ मृत्यु से प्रेम करता हैं
सभ्यताओं के विकास के सही आंकड़े
युद्धों के बाद विध्वंस में मिलेंगे
एक खुबसूरत दुनिया बनाने के लिए
जरूरी थे खुबसूरत जोड़े
और वे प्रेम करते रहें एक दुसरे की खूबसूरती से
उसके लिए होनी चाहिए एक खुबसूरत दुनिया
जो की हमारे पास नहीं थी
ईश्वर वो चिड़ीमार हैं
जो अक्सर जाल फेंककर भूल जाता हैं
और कलाकार वो पक्षी
जो करतब दिखाते फंसेगा उसमें
क्रांति के अगुवे
चीख कर कहते हैं
हमारी \”क्रांति\” सम्पूर्ण \”शांति\” के लिए होगी
हुजूम के पीछे खडी \”मौत\”
अपना नाम \”शांति\” लिखवाकर
जुलूस में शामिल हो जाती हैं
मैं हर अपराह्न
तालाब के तट पर बैठ
आटे की गोलियां खिलाता हूँ
मछलियों को
फेंकी गयी हर गोली पर
सैकड़ों मछलियां
झपट्टा मारती हैं एक साथ
और ये नियमित कर्म है हमारा
एक अपराह्न
मैं नहीं आ पाउँगा तट पर
कोई शिकारी काँटा फेंकेगा
अपराह्न के उसी वक्त
सैकड़ों मछलियां एक साथ
झपट पड़ेगी उस पर.
देखो
यही से मेरे पिता की
अर्थी उठी थी
इसी आँगन में
मेरी बेटियों ने
अपने बदन पर उबटन मला था
इस कोलतार के नीचे
महज ज़मीन नही
मेरे बच्चों के खेलने के मैदान हैं
मेरे पुरखों की देह गंध हैं
इस मिट्टी में
हमें यहा से मत हटाओ
यह सड़क बनने से पहले
हम फुटपाथ पर नही थे.
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२००९ में मोहन लाल सुखाडिया यूनिवर्सिटी से BA