• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » फ़रीद ख़ाँ की कविताएँ

फ़रीद ख़ाँ की कविताएँ

फरीद खान : 29 जनवरी 1975.पटना.  पटना विश्वविद्यालय से उर्दू में एम. ए., इप्टा से वर्षों तक जुडाव. भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ से नाट्य कला में दो वर्षीय प्रशिक्षण. फिलहाल मुम्बई में व्यवसायिक लेखन मे सक्रिय.  ई-पता : kfaridbaba@gmail.com युवा फरीद की कविताओं ने इधर ध्यान खींचा है. संस्कृतिओं के रण की क्षत-विक्षत पुकार इन […]

by arun dev
December 23, 2010
in कविता
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें






फरीद खान : 29 जनवरी 1975.पटना. 
पटना विश्वविद्यालय से उर्दू में एम. ए., इप्टा से वर्षों तक जुडाव.
भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ से नाट्य कला में दो वर्षीय प्रशिक्षण.
फिलहाल मुम्बई में व्यवसायिक लेखन मे सक्रिय. 
ई-पता : kfaridbaba@gmail.com
युवा फरीद की कविताओं ने इधर ध्यान खींचा है. संस्कृतिओं के रण की क्षत-विक्षत पुकार इन कविताओं को असुविधाजनक समझ लिए गए क्षेत्रों में ले जाती है. पार्श्व में कहीं बहुत गहरे पार्थक्य की उदासी है. धूप में दमकने – चमकने का साहस भी भरपूर.
बापू   
बापू !
मूर्ख मुझे मुसलमान समझते हैं
उससे भी ज़्यादा मूर्ख ख़ुश होते हैं कि एक मुसलमान राम भजता है
सच बताता हूँ तो मेरा मुँह ताकते हैं
सीधी बात से वे चकरा जाते हैं
टेढ़ी बात पर तरस खाने लगते हैं मुझ पर
बापू !
मैं क्या करूँ अपने निर्दोष मित्रों का ?
1975 का लोकगीत
बिदेसी की चिट्ठी नहीं आई बरस बीत गए
कुछ भेजा नहीं उसने, बरस बीत गए
स्वाद गया रंग गया जब वह गया,
खाना गले से उतरे बरस बीत गए
सुनते हैं ईनाम है,
ज़िन्दा या मुर्दा,
सिर पे उसके
बाग़ी हुआ, बीहड़ गया, बरस बीत गये
पोस्टर लगा, पुलिस आई,
चौखट उखाड़ के ले गई,
कुर्की हुई, बेटा हुआ, बरस बीत गये 
भेज कोई सन्देस कि अब तो बरस बीत गए
छाती मेरी सूख गई, बरस बीत गये.
महादेव 

जैसे जैसे सूरज निकलता है, 
नीला होता जाता है आसमान 
जैसे ध्यान से जग रहे हों महादेव 
धीरे–धीरे राख झाड़, उठ खड़ा होता है एक नील पुरुष 
और नीली देह धूप में चमकने-तपने लगती है भरपूर
शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं महादेव 
नीला और गहरा …. और गहरा हो जाता है
हो जाती है रात .
डरे हुए लोग
सामुदायिक चीत्कार
दहशत और वहशत भरती हैं मन में
डरी और चौकन्ना आँखें लिये सहमे लोग,
बैठे होते हैं बारूद के ढेर पर
और हर जगह होता है उस समय अँधेरा, आशंका से भरा
यही वह पल होता है जब वहाँ ख़ुदा नहीं होता. 
शत्रु-सुख 
विश्व-विजय की कहानियाँ सुनते हुए कभी महसूस नहीं होता
कि हम कभी मरने भी वाले हैं
धमनियों के रक्त का तेज़ प्रवाह जो आनन्द देता है वह अन्यत्र दुर्लभ है
उससे भी ज़्यादा सुखदायी होती हैं नफ़रत की कहानियाँ,
शत्रु को सामने खड़ा देखना,
और देखना अपने प्रतीकों का कुचला जाना
नथुनों में सांस का तेज़ आवेग मज़ा देता है, नशा देता है
फिर अतीत के नायकों की तलवार दीखती है खच्च–खच्च गर्दन उड़ाती दुश्मनों की
फिर इस छोर से उस छोर तक एक झंडे के तले
जीत हासिल करने का सपना
बड़ा सुखदायी होता है
फिर प्रेरित हो कर चल पड़ना शत्रुओं का विनाश करने, 
अपनी बेरोज़गार ज़िन्दगी को मक़सद दे देने का सुख ही कुछ और होता है
ईश्वर के नाम पर लड़ने वालों को ईश्वर नहीं दीखता कहीं भी
उन्हें शत्रु ही दीखते हैं जगह–जगह .






फरीद की कुछ नई कविताएँ यहाँ हैं . 
और यहाँ भी.


Tags: कविताएँ
ShareTweetSend
Previous Post

मति का धीर : उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’

Next Post

राइनेर मारिया रिल्के: अनुवाद अपर्णा मनोज

Related Posts

पूनम वासम की कविताएँ
कविता

पूनम वासम की कविताएँ

सुमित त्रिपाठी की कविताएँ
कविता

सुमित त्रिपाठी की कविताएँ

बीहू आनंद की कविताएँ
कविता

बीहू आनंद की कविताएँ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक