ब्लॉग आज सशक्त वैकल्पिक मिडिया है. सहज उपलब्धता और तीव्र संप्रेषण के कारण इसने कम समय में ही हिंदी में अपनी जगह बनाई है. इस पर विस्तार से चर्चा युवा अध्येता परितोष मणि ने अपने लेख में किया है. यह आलेख महाराष्ट्र में ‘वेब मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में पढ़ा जाना है. कुछ ई पत्रिकाओं का भी ज़िक्र है. ज़ाहिर है इस माध्यम की संभावनाओं पर विचार और मूल्यांकन की जरूरत अभी भी बनी हुई है.
हिन्दी ब्लॉगिंग : स्थिति और संभावनाएं
परितोष मणि
बींसवी सदी ज्ञान और तकनीक की सदी के रूप में जानी जाती है, अगर यह कहें कि इस सदी में तकनीक से सम्बंधित अनेक क्रांतियां घटित हुई, जिसने न सिर्फ सारे विश्व को एक सूत्र में बांधा बल्कि सूचना और संचार की व्यवस्था को अधिक से अधिक लोकतान्त्रिक और समावेशी भी बनाया तो शायद गलत नहीं होगा. निश्चय ही यह तस्वीर का एक पहलू है, दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है की इस सदी ने लोगो को तकनीक के मामले में जितना नजदीक किया हो या आत्मनिर्भर बनाया हों, उदारवादी बाज़ार व्यवस्था ने अपने छद्म और भ्रमित कर देने वाले तौर तरीकों से गरीब और निम्नवर्गीय जनता को आर्थिक रूप से लगभग हाशिए पर पहुँचाने का काम भी किया है. लेकिन पूरी दुनिया में अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए जिस तरह सामान्य जनता ने एकजुट होकर संघर्ष किया और वर्षों से सत्ता को गुलाम बना कर अपनी जेब में डाले तानाशाहों को एक झटके में अर्श से फर्श पर ला पटका, वह इस बात का सूचक है कि लोकतंत्र की भावना और उसके अधिकारों की प्राप्ति के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते है और बिना भय के किसी से भी टकराने का माद्दा रखते हैं, इसलिए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि बेशर्म आर्थिक बाजारवाद के बावजूद भी यह उदारतम विश्वव्यवस्था है, जिसने अनजाने ही सही, तकनीकी रूप से लोगो को आपस में जोड़ कर वैश्विक लोकतंत्र की व्यापक अवधारणा को आश्चर्यजनक रूप से संभव बनाया है.
|
प्रतिलिपि |
ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, दर्शन आदि के साथ–साथ बाज़ार का सर्वव्यापी और संपूर्ण नियंत्रणकर्ता होना इस युग की बड़ी परिघटना है. वस्तुतः बाजारवादी व्यवस्था का प्रसार तकनीक के कंधो पर ही हुआ है. इस वैश्विक समय में बाज़ार और तकनीक एक दूसरे के पूरक के तौर पर उभर कर आये हैं. तकनीक का जो बाज़ार वैश्विक रूप से तैयार हुआ उसने न सिर्फ दुनिया में उदारीकरण की जबरदस्त आंधी ला दी है, जिस से कोई भी राष्ट्र बच नहीं पाया और जाने अनजाने इसके प्रवाह में बहने लगा, बल्कि जनता के सामूहिक जुड़ाव के अनेक मंच तैयार कर दिए. इस उदारीकरण की सबसे अच्छी बात यह रही कि इसने सूचना और अभिव्यक्ति के बरास्ते आम आदमी की सशक्त आवाज़ के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करायी. नई सदी तक पहुँचने के इस क्रम में वैश्विक धरातल पर इस अवधारणा को न सिर्फ पंख मिले बल्कि वह बहुत अल्प समय में पूरी ताकत के साथ उड़ने भी लगी. बोलने की आज़ादी, जानने का अधिकार, सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार, मनुष्य के मौलिक अधिकारों की श्रेणी में मजबूती से अपना स्थान बना चुके हैं और इसमें उसका सबसे बड़ा साथ निभाया है इन्टरनेट ने. अगर यह कहें कि इन्टरनेट आज आम आदमी की आवाज़ के रूप में सामने आया है तो शायद गलत नहीं होगा.
|
सबद |
इन्टरनेट के प्रचार–प्रसार और इस क्षेत्र में निरंतर हो रहे तकनीकी विकास ने एक ऐसे वेब मीडिया का रूप सामने उपस्थित किया जहाँ अभिव्यक्ति के अनेक रूपों जैसे पाठ्य, दृश्य-श्रव्य का एक क्षण में प्रसारण संभव हों सकता था. वेब मीडिया धीरे–धीरे एक कंपोजिट मीडिया में बदल गया जिसने वैयक्तिक अभिव्यक्ति को एक साथ न सिर्फ हजारों लोगो तक पहुंचाने का काम किया बल्कि उस अभिव्यक्ति के पक्ष या फिर विपक्ष में ही प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करना संभव भी बनाया. वेब मीडिया में ब्लॉग एक ऐसी अभिव्यक्ति के प्रखरतम रूप में सामने आया जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपनी सूचनात्मक, रचनात्मक और अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के पाठ्य, दृश्य-श्रव्य सूचनाओं को अपने ब्लॉग पर प्रदर्शित कर लोगो तक इस पहुंचा सकता था. सबसे खास बात यह है कि कोई भी व्यक्ति इंटरनेट पर अपना एक निश्चित स्थान आरक्षित कर अपनी रुचि और अपनी अभिव्यक्ति के बरक्स अपनी सूचना को, अपनी सर्जनात्मकता को बिलकुल नए आयाम और नए साज-सज्जा के साथ पूरी दुनिया में उसे एक साथ हजारो लोगों तक पहुंचा सकता है.
ब्लॉग अपने प्रारंभिक अवस्था में ‘’वेबलॉग’’ के नाम से जाना गया. अपनी अभिव्यक्ति के अनुसार ही ब्लॉग अनेक श्रेणियों में विभक्त किया गया यथा– पाठ्य ब्लॉग, फोटो ब्लॉग, वीडियो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग, कार्टून ब्लॉग इत्यादि. ब्लॉग निजी के साथ–साथ सामूहिक अभिव्यक्ति को भी ध्वनित करते हैं, यहाँ अपनी मौलिक अभिव्यक्ति और क्रिया–कलाप के साथ दूसरों की अभिव्यक्ति और उनके विचारों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया.
विश्व में वेब मीडिया का प्रथम प्रयोग अमेरिका में 29 अक्टूबर 1989 में “अर्पानेट” के नाम से हुआ. भारत में इसका आरम्भ 1994 से हुआ जिसे 15 अगस्त 1995 को व्यावसायिक रूप में तब्दील कर दिया गया. वेबसाइटों पर निशुल्क रूप में निजी अभिव्यक्ति का प्रारंभ 1994 में TRIPODI.COM के नाम से हुआ. भारत में पहला अंग्रेजी ब्लॉग 1997 में अस्तित्व में आया. कुल मिलकर ब्लॉगिंग की शुरुआत भारत में हो चुकी थी, लेकिन मातृभाषा में अभी इसका प्रणयन शेष था. यह नितांत जरुरी भी था, विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ की बहुसंख्यक आबादी अपनी भाषा में अपनी सर्जनात्मक अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने के लिए व्यग्र थी. अंग्रेजी की जडता को तोड़कर और अपनी भाषा में अपने विचारों और सूचनाओं को दूसरों तक पहुँचाने के रास्ते का आगाज़ किया श्री आलोक कुमार ने जिन्होंने पहली बार हिन्दी में ‘’नौ-दो ग्यारह ‘’नामक ब्लॉग आरम्भ किया. उन्होंने पहली बार चिट्ठी के बरक्स हिन्दी में ब्लॉग के लिए ‘’चिट्ठा’’का प्रयोग किया. बाद में यह ब्लॉग के मानक हिन्दी अर्थ के लिए प्रयुक्त होने लगा. सन् 97 से लेकर 2000 तक हिन्दी टाइप की जटिलताओं और कठिनाईयों के कारण बहुत अल्प लोग ही इस तरह के ब्लॉग लेखन में रूचि लेते थे, लेकिन समय के साथ–साथ अनेक नए हिन्दी फोंट्स और हिन्दी की तकनीकी समृध्दता के कारण हजारो ब्लॉगर ने अपने ब्लॉग के साथ हिन्दी दुनिया में कदम रखा.
सन् 2007 का वर्ष हिन्दी टाइपिंग और हिन्दी ब्लॉग की दुनिया क्रांतिकारी परिवर्तन ले कर आया, जब यूनीकोड नाम का फॉण्ट सॉफ्टवेयर चलन में आया, इस फॉण्ट को अनेक तरह की ब्लॉग सेवाओं में अत्यंत सरलता से उपयोग में लाया जा सकता था. एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन तब आया जब गूगल द्वारा google hindi transliteration प्रस्तुत किया गया, इसने हिन्दी ब्लॉगिंग को मुख्यधारा के माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया. तब से ऐसे अनेक ब्लॉग आये जिन्होंने गंभीरतापूर्वक अनेक राष्ट्रीय –सामाजिक मुद्दों पर पहल कर अपनी छाप छोड़ी. चाहे बाढ़ हो, सूखा हो, आतंकवादी घटनाये हो,नक्सलवाद के नाम पर चिपकाये गए घटनाओं के पीछे का छुपा हुआ सच हों, सार्वजनिक व्यवस्थाओं में जोंक की तरह घुस चुके भ्रष्टाचार का खुलासा हो, चुनाव हो, संगीत हो, साहित्यिक परिघटनाएं-सूचनाएं हों, राजनीतिक संदर्भों की हकीकत या अन्य कोई विमर्श, हिन्दी के ब्लॉग्स ने पूरी जिम्मेदारी से इनके पीछे छुपे सच्चाईयों को उजागर कर बेहतर और तीव्र प्रस्तुति दी है.
|
जानकीपुल |
आजकल कई पहुँचे हुए संतो-आध्यात्मिक गुरुओं के भी ब्लॉग हैं जिन पर अध्यात्मिक प्रश्नों पर सार्थक और सारगर्भित बहस चलायी जाती है, महिलाओ के ब्लॉग हैं जिस पर महिला केंद्रित मुद्दों पर बात होती है. दलितों, वंचितों और आदिवासियों की समस्याओं और प्रश्नों को भी पुरजोर तरीके से उठाने वाले ब्लॉग भी हैं. हिन्दी ब्लॉगिंग सामाजिक सरोकारों से पूरी तरह लैस है अनेक ऐसे ब्लॉगर है जो सामाजिक जन चेतना को हिन्दी ब्लॉगिंग से जोडने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं. आज का संसार विचारों का है लेकिन विचार वही महत्वपूर्ण होते हैं जो समाज को सूत्रबद्ध कर सके, संगठित कर सकें, उसकी रचनात्मकता को सार्वजनिक रूप में प्रस्तुत कर सकें, हिन्दी ब्लॉग अपनी इस सामाजिक भूमिका में खरे उतर रहे हैं ,इसमें अब कोई शको –शुबहा नहीं है.
हिन्दी ब्लॉगिंग ने बेहतर माध्यम के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. कम्पोजिट मीडिया के इस स्वरुप ने हिन्दी में आम आदमी की संवेदनाओं को जागृत किया है, उन्हें अपनी अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए शब्द मुहैया कराये हैं. भारत में आज भी बाज़ार और बाजारवादी ताकतों के छद्म यथार्थ के कारण समाचार पत्र या खबरिया चैंनल अपने रास्तो से भटक कर मालिकों के एजेंटों के रूप में काम करने लगे लेकिन ब्लॉग पर ऐसा कोई दबाब नहीं है जिसके कारण ये अभी भी मूल्य आधारित पत्रकारिता को बचाए हुए हैं. ब्लॉगिंग ने सामाजिक मुद्दों और अन्य वैचारिक विषयों पर विमर्श के लिए अनेक लेखों का निर्माण किया है, और इनके माध्यम से वैचारिक विमर्शो और वाद –प्रतिवाद का व्यापक मंच तैयार किया है. ब्लॉग समानान्तर मीडिया के रूप में स्थापित होकर एक नवीन सामाजिक क्रांति के जागरूक पहरुए के रूप में हिन्दी जगत में खड़ा हुआ है. ब्लॉग लेखक पाठक से सीधे संवाद के प्रभावशाली माध्यम के रूप में सामने आया है, इसने न सिर्फ वैचारिक विमर्शो को प्रभावशाली रूप में सामने रखा है बल्कि सामान्य या हलकी फुलकी सूचनाओं को पूरी व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है. ब्लॉग लेखन ने निजी विचारों पर भी चर्चा हो पाए इसके लिए विस्तृत वातायन तैयार किया है और वह निजी विचार परिष्कृत और परिमार्जित हो सके,यह अवसर भी पाठक को उपलब्ध कराता है, इससे भी थोडा आगे जा कर कह सकते हैं कि यह स्थापित विचारों को परिवर्तित कर सकने का माद्दा भी रखता है. अगर थोडा पीछे लौट कर जायें तो लोगो को पहले किसी भी विषय पर न तो तार्किक–सारगर्भित दृष्टिकोण सहजता से उपलब्ध थे, न ही उसके प्रति अपने विचार व्यक्त कर सकने की स्वतंत्रता. समाचार –पत्र,पत्रिकाएं, और न्यूज़ चैनल भी किसी हद तक वैचारिक और सूचनात्मक जिज्ञासा के शमन के लिए अपर्याप्त थे. ब्लॉग लेखन ने ऐसी ही अनेक जिज्ञासाओं को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अधिकांश हिन्दी ब्लॉग निजी अभिव्यक्तियाँ हैं, कुछेक सामूहिक भी– इन ब्लॉग के माध्यम से सूचना समाचार, साहित्य कला की अनेक अभिव्यक्तियां घटनाएं और विमर्श वेब पाठकों तक पहुंचाई जा रही हैं. साहित्य की हर विधा, कला के सभी रूप, समाचार विचार के सभी आयाम और सूचनाओं का एक विपुल भण्डार हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से हमारे पास आ रहा है. पूरे विश्व में इस समय करीब 15 करोड ब्लॉग है, जबकि हिन्दी में तकरीबन 25 से 30 हज़ार ब्लॉग अस्तित्व में हैं. कुछ ब्लॉग जहाँ अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए सामाजिक,वैचारिक मुद्दों पर केंद्रित हैं जैसे यशवंत का ‘’भड़ास’’, रवीश कुमार का क़स्बा ,अविनाश दास का का मोहल्ला लाइव , चंद्र भूषण का पहलू, अभिनेता मनोज वाजपेयी का ब्लॉग, नसीरुद्दीन का ढाई आखर, कनाडा में बसे समीर लाल का उड़न तश्तरी, अनिल यादव का हारमोनियम, प्रमोद सिंह का अजदक, जनतंत्र, भूपेंन का काफ़ीहाउस तो राजनीतिक प्रश्नों को उठाता हुआ पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग, पत्रकार प्रियदर्शन का बात पते की और आनंद प्रधान की तीसरा रास्ता.
सिनेमा की सूचनाओ और नई फिल्मो की बेबाक समीक्षा के लिए प्रमोद सिंह का सिलेमा –सिलेमा ,दिनेश श्रीनेत का इंडियन बायस्कोप और महेन का चित्रपट जैसे ब्लॉग है. मीडिया के अनुतरित प्रश्नों के जबाब मीडिया खबर और हुंकार, वहीँ संगीत पर सुरपेटी, ठुमरी और पारुल का खूबसूरत ब्लॉग– चांद पुखराज का है. साहित्य की बात करें तो बहुत सारे ब्लॉग है जो साहित्यिक पाठकों की जिज्ञासाओ और भूख को शांत करने में निरंतर अपना योगदान दे रहे हैं जैसे उदय प्रकाश का वारेन हेस्टिंग्ज का सांड, अरुण देव की कविताओं का ब्लॉग संवादी, कृष्णमोहन झा का कविता ब्लाग आवाहन, शब्दों के उत्पति – विकास और उनके अनुप्रयोगों पर अजीत वर्नेद्कर की शब्दों का सफर, रवि कुमार का सृजन और संसार, यात्राओं पर नीरज जाट का मुसाफिर हूँ मैं यारों, विज्ञान के सवालो का जबाब देती अरविन्द मिश्र की साईं ब्लॉग, जाकिर अली ‘रजनीश’ का तसलीम, खान- पान पर मंजुला की रसोई इत्यादि अनेक ऐसे ब्लॉग है जो एक ही जगह पर अनेक रूचि और समझ के पाठकों को सूचनाएं मुहैया कराते है और उनकी बौद्धिक भूख को शांत करते हैं.
|
पढ़ते -पढ़ते |
हिन्दी के विमर्श को और भी वैचारिक और धारदार बनाने के लिए कई ई-पत्रिकाओं का संयोजन भी ब्लॉगस्पॉट पर हो रहा है जैसे अनुराग वत्स का सबद. सबद ने अपने आरम्भ से ही अपनी साहित्यिक रचनाओ की वैविध्यता से, विशेषकर कविताओं और सार्थक अनुवादों से पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है. प्रभात रंजन का जानकी पुल भी लोकप्रिय ई पत्रिकाओं में से एक है. जानकी पुल न सिर्फ सार्थक और गंभीर रचनाओं को पाठकों तक ले जाता है बल्कि साहित्य जगत से जुडी हर घटना –परिघटना कहें तो विवादों पर भी नज़र रखता है. यह थोड़ी कमी इसकी हो सकती है इसकी अधिकतर सामग्री पहले कहीं ना कही प्रकाशित हो चुकी होती है,.इसे थोड़ा और प्रजेंटेबल बनाया जाता तो और इसका रंग और दमकता. वैचारिक रूप से जनवादी अशोक कुमार पाण्डेय का ब्लॉग असुविधा यूँ तो नियमित नहीं है लेकिन इसने अपनी रचनाओ के द्वारा साहित्य में गंभीर विमर्श और जनवादी वैचारिकता के स्वर को मुखर बनाया है. इसके पाठकों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है. गिरिराज किराडू की प्रतिलिपि का ब्लाग, मनोज पटेल की पढ़ते-पढ़ते और शिरीष मौर्य की अनुनाद जैसे ब्लॉग हिंदी की रचनात्मक संवेदना को अपने अपने तरीके से पाठकों तक पहुंचा रहे हैं. रामजी तिवारी की सिताब–दियारा और पहले साहित्यिक ब्लॉग अशोक पाण्डेय की कबाड़खाना महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचनाओ और हलचलों को अनियत ही सही लेकिन पाठकों तक ले जा रही है. हालाँकि यह कहना गलत नहीं होगा की एक दो ब्लॉग को छोड़ कर अधिकांश ब्लोग्स को अपने रचना संचयन में थोड़ी सावधानी और वैशिष्ट्यता जरूर रखनी चाहिए, रचनाओं के प्रकाशनों का कोई मानक जरुर निर्धारित करना चाहिए. ब्लागस्पाट पर बहुत से कविता केंद्रित ब्लॉग भी अपनी प्रखर अभिव्यक्ति के साथ उपस्थित हुए हैं, इसमें अपर्णा मनोज का आपका साथ साथ फूलों का जैसा ब्लॉग जो अपने नाम से बेहद रोमांटिक लगता है लेकिन इसमें हर आस्वाद और अभिव्यक्ति के रचनायें प्रस्तुत की जाती है,चूँकि अपर्णा खुद एक संवेदनशील कवियत्री हैं, इसलिए उनका चुनाव बेहतर होता है. शोभा मिश्रा की फर्गुदिया भी इस तरह का काव्य ब्लॉग है, जहाँ अनेक नवोदित और चर्चित कवियों की कविताओं से पाठक रूबरू होते हैं .इसके अतिरिक्त बहुत से ऐसे साहित्यिक ब्लॉग हैं जो अनेक साहित्यविदों की रचनाओं को पाठकों तक सीधे- सीधे पहुँचाने का कार्य कर रही हैं, और इस तरह विमर्श के नए अवसर मुहैया कर रही हैं.
|
असुविधा |
लेकिन इन पत्रिकाओ में बहुत तेजी से अपनी जगह बनायी है अरुण देव द्वारा सम्पादित समालोचन ने, जो न सिर्फ अपने धारदार वैचारिक विमर्शो के लिए जाना जाता है, बल्कि नए साहित्य का जैसा वैविध्य यहाँ है उसी ने इस पत्रिका की लोकप्रियता को और पंख दिए हैं. सबसे बड़ी और बेहतर बात यह है कि रचना के प्रकाशन का जो मानक समालोचन ने निर्धारित किया है उसने इसकी ताज़गी हमेशा अक्षुण्ण रखने में मदद की है, ना सिर्फ यही बल्कि विवादों और वैचारिक दुराग्रहो से बचते हुए समालोचन का सारा ध्यान रचनात्मक संवेदना और और उसकी अभिव्यक्ति पर ही केंद्रित रहा है, किसी भी पत्रिका के लिए अपने सर्वग्राही स्वरुप को बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है और समालोचन इसमें सफल रहा है. पत्रिका के बेहतर संपादन, सुरुचिपूर्ण कलेवर और सजग संपादकीय दृष्टि ने अभी तक करीब दो लाख पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित किया जो इस पत्रिका की सफलता की कहानी का पुख्ता सबूत है. हिन्दी की छपने वाली साहित्यिक पत्रिकाओ के पाठक भी इतने नहीं होंगे जितने समालोचन के या इन साहित्यिक ‘इ’ पत्रिकाओं के हैं, ब्लॉग की लोकप्रियता का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा ? साहित्य–संस्कृति का पक्ष जो अब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से हाशिए पर पहुँच गया था, उसे ब्लोगर पूरी शिद्दत और सम्मान के साथ अपने ब्लॉग में जगह दे रहे हैं.
|
अनुनाद |
कविता कोष जैसे साहित्य के कोष भी साहित्य प्रेमियों को उनके पसंद के रचनाकार और रचनाओ से जोड़ रहे हैं. यहाँ तक कि बच्चे भी अपने सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए इस माध्यम का उपयोग करने लगे हैं, अक्षिता (पाखी)का ब्लॉग पाखी की दुनिया हिन्दी के मशहूर ब्लॉग में से एक है. 2009 में शुरू हुए इस ब्लॉग में चित्रकारी, कविता, कहानी, बालगीत सब शामिल है. अभी तक 36500 लोगो द्वारा यह ब्लॉग देखा–पढ़ा गया है. स्पष्ट है कि हिन्दी ब्लॉग हर तरह के वैचारिक और सर्जनात्मक स्वरुप में हर उस पाठक के लिए उपलब्ध है ,पढ़े जाने लिए, देखे –सुने जाने के लिए और हाँ …प्रत्युत्तर के लिए भी.
हिन्दी चिट्ठो और चिट्ठाकारों ने अपने नए उपयोग के लिए बिलकुल नई हिन्दी का निर्माण कर लिया है, जो साहित्यिक हिन्दी से कहीं अलग और अधिक व्यापक है और अधिक लोगो को आसानी से समझ में आती है, हालाँकि भाषा की शुद्धता पर जो लोग चिन्ता जाहिर करते हैं उनके अपने तर्क और निष्कर्ष… हो सकते हैं अधिक प्रभावी और बेहतर हों ..लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि अगर हिन्दी को वैश्विक और अधिक लोगों तक समझ में आने वाली भाषा बननी है तो वह अधिक देर तक इस साईबर दुनिया में अपने को अलग –थलग नहीं रख पायेगी. नए चिट्ठाकारो ने भाषा के इस व्यापकता को ध्यान में रखते हुए अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए नई भाषा का निर्माण कर लिया. मीडिया और वेब मीडिया के चर्चित चेहरे और हुंकार जैसा ब्लॉग चलने वाले विनीत कुमार चिट्ठाकारो के इस भाषाई सोच और परिवर्तन को जायज मानते हुए कहते हैं.
|
आपका साथ साथ फूलों का |
‘’ब्लॉग के बहाने वर्चुअल स्पेस और अब प्रिंट माध्यमों में एक ऐसी हिन्दी तेजी से पैर पसर रही है जो किताबी हिन्दी से बहुत अलहदा है. पैदायशी तौर पर इस हिन्दी में पाठकों के बीच में आने से पहले न तो नामवर आलोचकों से वैरिफिकेशन की परवाह है और न ही शब्दों कि कीमियागिरी करनेवालों से अपनी तारीफ में कुछ लिखवाना चाहती है, पूरी कि पूरी पीढ़ी ऐसे तैयार हों रही है जो निर्देशों और नसीहतों से मुक्त होकर हिन्दी में लिख रही है. इतनी बड़ी दुनिया के कबाड़ख़ाने से जिसके हाथ अनुभव का जो भी टुकड़ा जिस हाल में लग गया, वह उसी को लेकर लिखना शुरू कर देता है. इस हिन्दी में लिखने के पीछे सीधा सा फार्मूला है कि जो बात जिस तरह दिलोदिमाग के रास्ते की-बोर्ड पर उतर आये उसे टाइप कर लो, भाषा तो पीछे से टहलती हुई अपने आप आ जायेगी. हजारों ऐसे ब्लोगर हैं जो सूचना प्रौद्योगिकी ,इंजीनियरिंग,अकाउंटिंग,मेडिकल और वकालत जैसे पेशे से जुडकर वर्चुअल स्पेस पर कविता –कहानियाँ लिख रहें हैं”
हिन्दी ब्लॉग के त्वरित विकास के बावजूद अभी अंग्रेजी की तरह इसका विकास संतोषजनक नहीं है उसका प्रमुख कारण अभी भी हिन्दी क्षेत्र में इंटरनेट का बेहद कम उपयोग है, लेकिन इसका भविष्य निरंतर पूर्वाभिमुख है. संतोषजनक बात यह है कि हिन्दी चिट्ठाकारी उर्जावान और वैचारिक परिपक्वता से अभिप्रेत युवा चिट्ठाकारो का एक ऐसा बड़ा समूह बनता जा रहा है जो हर तरह कि चुनौतियों और बाधाओं का सामना करने में सक्षम है . यह हिन्दी क्षेत्र का सौभाग्य है कि चिट्ठो के माध्यम से बड़े चिट्ठाकार अपनी अभिव्यक्ति पाठकों तक पहुंचाते ही रहते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में नए और उर्जावान ब्लागरों ने अपने परिपक्व सोच के स्तर से अपनी नवीन अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते रहते हैं.
|
सिताब दियारा |
वास्तव में में हिन्दी ब्लॉगर अपर्याप्त साधन और सूचनाओ के बाद भी समाज और देश हित में जनचेतना के प्रसार में तत्पर है. हिन्दी को वैश्विक स्वरुप देने में भी हिन्दी ब्लोगर की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता,यही कारण ही कि हिन्दी ब्लॉगिंग आज साहित्यिक सर्जनात्मकता, नियोजित प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन और विवेचन के साथ, समसामयिक विषयों पर पैनी और गंभीर दृष्टि रखते हुए ,सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने का कोई भी अवसर जाने नहीं दे रही है. ब्लॉग एक सार्वजनिक मंच का स्वरुप ग्रहण कर चूका है, इस मंच से जो भी विचार प्रस्तुत किये जाते हैं, पूरी दुनिया द्वारा आत्मसात करने की उसमे अपार संभावनाएं हैं, ऐसे में ब्लॉगर की यह जिम्मेदारी है कि उसका ध्यान अधिक से अधिक सामाजिक सरोकारों के पक्ष में रहे. क्योंकि ब्लॉग निजी से अधिक अब सामूहिक अभिव्यक्ति हैं और इसी कारण सामाजिक रूपों में इसकी जिम्मेदारी अधिक दायित्वपूर्ण है. सामाजिक और धार्मिक एकता को विखंडित और छिन्न-भिन्न करने का कोई भी प्रयास इसकी गति अवरुद्ध ही करेगा. असल में वेब मीडिया या ब्लॉग की सबसे बड़ी ताकत ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है…….यहाँ प्रस्तुत सामग्रियों पर किसी तरह का कोई भी सरकारी,गैर सरकारी या साईबर निगरानी या नियंत्रण नहीं है..यहाँ कोई भी,कभी भी ,कैसी भी अभिव्यक्ति के प्रस्तुतीकरण के लिए स्वतंत्र है. जो सकारात्मक भी हो सकती है और नकारात्मक भी.
चूँकि संपादन, प्रकाशन, प्रसार और अभिव्यक्ति पर अंकुश से घायल प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की अपेक्षा इस नवीन माध्यम में अभिव्यक्ति के निरंकुश प्रसार के असीमीत संभावनाओं की विस्फोटक स्थिति को भी जन्म दिया है,बेवजह नहीं है कि इसका आरंभिक तेवर अगर आक्रामक है तो अराजक भी. इसे संयमित ,संतुलित किये जाने के साथ ही इसका समयानुकूल नियमन भी आवश्यक है. मौलिक अभिव्यक्ति के स्वत्वधिकार की रक्षा के साथ साथ मर्यादित भाषा और कंटेंट के प्रयोग और पाठ की शुद्धता की प्रस्तुति के प्रयत्न ब्लॉग जैसी विधा को और भी अधिक बेहतर और सामाजिक स्वरुप देंगे. ब्लॉगर के लिए यह आवश्यक है कि जब तक ऐसी कोई व्यवस्था निर्मित नहीं होती, अपनी मर्यादा का नियमन ब्लॉग के प्रयोक्ताओं को स्वयं ही करना होगा क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संतुलित और सकारात्मक प्रयोग ही ब्लॉगिंग का सर्वाधिक उज्जवलतम पक्ष है.
|
फर्गुदिया |
हिन्दी ब्लॉगिंग बौद्धिकों के बीच नए वर्तमान परिवेश में अभिव्यक्ति के एक मंच के रूप में देखा जा रहा है. हिन्दी ब्लॉगिंग पर दिल्ली में हाल में ही संपन्न एक सेमीनार में चर्चित ब्लॉग ‘’नुक्कड़ “के लेखक अविनाश विद्यावाचस्पति का मानना था ….
”कि अगले एक दशक में आप देखेंगे कि हिन्दी ब्लागिंग सबसे शक्तिशाली विधा बन गयी है. आने वाले समय में हिन्दी ब्लागिंग सभी तरह के समाचारों,सूचनाओ, और अभिव्यक्तियों कि वाहक बन जायेगी. मीडियाकर्मियों और हिन्दी ब्लागर का समन्वय अवश्य ही इस दिशा में सकारात्मक क्रांति लाएगा’’.
इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दी ब्लागिंग सृजन और जनसंचार के क्षेत्र में नई संभावनाएं लेकर आई है. इसने एक उत्तेजक वातावरण का निर्माण किया है तथा परस्पर संवाद और विचार –विमर्श के अनछुए रास्तो को तलाश कर हमारे सामने उपस्थित किया है. यह अपनी शैशवावस्था से आगे बढकर किशोरावस्था तक पहुँच गयी है. सिर्फ ब्लागर्स को अपने सामाजिक,राजनैतिक और साहित्यिक सरोकारों का ध्यान रखना होगा और सामान्य जनता की आवाज़ बन कर उनके लिए संघर्ष की जमीन तैयार करनी होगी, इस वैकल्पिक मीडिया का सही और सार्थक अवदान तभी सिद्ध होगा. ____________________________________________
परितोष मणि-
उच्च क्षिक्षा जे.एन.यू से.
अज्ञेय की काव्य- दृष्टि प्रकाशित.