पिको अय्यर के नाम से ख्यात सिद्धार्थ पिको राघवन अय्यर खुद को विश्व नागरिक मानते हैं, हाँलाकि वे भारतीय मूल के ब्रिटेन में जा बसे अध्यापक माता पिता की संतान हैं.निबंध और यात्रा वृत्तांत लिखने के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास भी लिखे हैं. उनके लेखन और कृतियों को टाइम, न्यूयॉर्क टाइम्स, हार्पर्स, नेशनल जियोग्राफिक,फाइनेंशियल टाइम्स सरीखे प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं ने प्रमुखता के साथ छापा। अनेक भाषाओँ में उनकी अंग्रेज़ी में लिखी कृतियों के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं. वीडियो नाइट इन काठमाण्डू, द लेडी एंड द मौंक, द ग्लोबल सोल, द मैं विदिन माई हेड उनकी प्रमुख किताबें हैं.
2013 में दिये उनके प्रतिष्ठित \”टेड (TED)लेक्चर\” के एक अंश का अनुवाद यादवेन्द्र ने ख़ास आपके लिए किया है.
मेरा घर कहॉं है ?
पिको अय्यर
मुझसे लोग अक्सर पूछते हैं, “आप किस देश के वासी हैं” और उन्हें उम्मीद रहती है कि मैं भारत का नाम लूँ. अपनी जगह पर वे बिल्कुल सही हैं क्योंकि मेरा रक्त और विरासत दोनों भारत से शत-प्रतिशत जुड़े हुए हैं. बावज़ूद इसके कि मैं किसी एक दिन के लिए भी भारत में नहीं रहा. मैं इसकी बाइस हजार भाषाओं और बोलियों में से किसी का भी एक शब्द बोल नहीं सकता, इसलिए मुझे लगता है कि मुझे खुद को भारतीय कहने का कोई अधिकार नहीं है. जहॉं तक “किस देश के वासी हैं ” जैसे प्रश्न का अर्थ यदि “आप कहॉं पैदा हुए हैं, पले-बढ़े और शिक्षित हुए हैं” है तो मेरा जवाब होगा – \”इंग्लैण्ड जैसा छोटा सा और मज़ेदार देश\”.
हालॉंकि इंग्लैण्ड के साथ मेरा रिश्ता महज़ इतना है कि मैंने अपनी अण्डर ग्रेजुएट शिक्षा वहॉं प्राप्त की और चलता बना. वहॉं की अपनी पढ़ाई के दौरान भी पूरी क्लास में मैं अकेला विद्यार्थी होता था जो किताबों में वर्णित पारम्परिक अंग्रेज नायकों से बिल्कुल भिन्न दिखता था. यदि “आप किस देश के वासी हैं ” का अर्थ “आप अपने टैक्स किस देश में जमा करते हैं, बीमार होने पर किस देश के डॉक्टर या डेंटिस्ट के पास जाते हैं ” हुआ तो बिना एक पल लगाए मैं बोलूँगा – \”अमेरिका\”. जहॉं मैं अपने बचपन के बाद से पिछले अड़तालीस वर्षों से रह रहा हूँ – बावज़ूद उन वर्षों के जिनमें मैं हरी लाइनों वाले गुलाबी कार्ड (पिंक कार्ड) को अपने माथे पर चिपकाए हुए भागता –फिरता रहा हूँ, गोया मैं कोई इन्सान ना होकर किसी दूसरे ग्रह से आया एलियन हूँ. मैं जितने समय वहॉं रहा हर दिन बीतने के बाद मुझे लगता है मैं ज्यादा एलियन बनता जा रहा हूँ.
यदि “आप किस देश के वासी हैं ” का अर्थ “आपके मन के अंदर कौन सा देश सबसे अंदर तक बसा हुआ है और कहॉं आप जीवन का सबसे ज्यादा समय बिताना चाहेंगे ” हुआ तो मैं बड़ी बेबाकी से खु़द को जापानी कहूँगा क्योंकि पिछले पच्चीस वर्षों में मुझे जब-जब भी मौका मिला मैं सबसे ज्यादा समय जापान में रहा, हालॉंकि इनमें से ज्यादा समय टूरिस्ट वीज़ा पर रहा और मेरे मन में यह एकदम साफ है कि ज्यादातर जापानी मुझे अपना भाई-बंधु मानने को तैयार नहीं होंगे.
मैं यें सब बातें यह स्पष्ट करने के लिए बता रहा हूँ कि मेरी पृष्ठभूमि कितनी पुरातनपंथी और बेलागलपेट (स्ट्रेटफॉरवर्ड) है. मैं जब हॉंगकॉंग या सिडनी या वैन्कुवर जाता हूँ तो देखता हूँ कि ज्यादातर बच्चे मेरे मुकाबले ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय और बहुसांस्कृतिक हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चों का एक घर उनके माता-पिता से जुड़ा होता है, दूसरा उनके पार्टनर से जुड़ा होता है, तीसरा घर जहॉं वें रहते हैं वह होता है और चौथा उनका सपनों का घर होता है जहॉं दरअसल वे रहना चाहते हैं. इनके अलावा और भी जाने कितने घर होते हैं. उनका पूरा जीवन भिन्न-भिन्न जगहों में बिताए कालखण्डों को एक साथ जोड़कर निर्मित होता है. उनके लिए घर कोई ठहरी हुई जड़ चीज़ नहीं होती बल्कि निरंतर निर्मित होती हुई एक कलाकृति है. एक ऐसे प्रोजेक्ट की तरह जिसमें वे निरंतर चीजें जोड़ते-घटाते रहते हैं, सुधार करते हैं और निखारते जाते हैं.
हममें से अधिकांश लोगों के लिए घर की अवधारणा मिट्टी की तुलना में रूह (soul) से ज्यादा जुड़ी होती है. मुझसे कोई अचानक यह पूछ ले कि “आपका घर कहॉं है ” तो मेरा मन फौरन मेरी प्रियतमा या अंतरंग मित्रों या उन गीतों की तरफ ताकने लगेगा जिन्हें साथ लिए-लिए मैं दुनिया भर में घूमता रहता हूँ .
मैं शुरू से ऐसा ही सोचता रहा हूँ पर कुछ साल पहले बड़ी शिद्दत के साथ मुझे इसका एहसास हुआ, जब मैं कैलिफोर्निया के उस घर की सीढि़यॉं चढ़ रहा था जिसमें मेरे माता-पिता रहते हैं …….. घर मे घुसते ही खिड़कियों से बाहर देखा तो आग की सत्तर फीट तक ऊँची लपटें घर को घेरती जा रहीं थीं. कैलिफोर्निया के पहाड़ी इलाकों के लिए ऐसी आग खा़सी चिरपरिचित है. तीन घण्टे बाद मेरा घर पूरी तरह से ख़ाक हो चुका था … ….. वहॉं साबुत बची रहने वाली चीज़ सिर्फ मैं था. अगली सुबह जब उठा तो मेरे पास सिवाय उस टूथब्रश के कुछ भी नहीं था जो मैंने रातभर खुले रहने वाले सुपर मार्केट से खरीदा था- वैसे मैं सोया भी अपने मित्र के घर था. ऐसी हालत में यदि कोई मुझसे पूछता कि“ आपका घर कहॉं है ” तो निश्चय ही मेरा जवाब किसी भौतिक निर्मिति के बारे में बिल्कुल नहीं होता. मेरा घर सिर्फ़ वही होता, जो भाव रूप में मेरे अंदर बसा हुआ है.
एक नहीं अनेक स्तरों पर देखने पर मुझे लगता है कि यह मुक्ति की चरम सीमा है …….. जब मेरे दादा-दादी जन्में होंगे तो उनमें निश्चय ही घर का भाव प्रबल रहा होगा, समुदाय का भाव भी. यहॉं तक कि जन्म के साथ विरासत की तरह उन्हें शत्रुता का भाव भी ज़रूर मिला होगा …. और उनसे बाहर निकल पाने की कोई सूरत शायद ही उन्हें सूझी होगी. और आजकल की बात करें तो मेरी तरह कुछ ऐसे लोग तो होंगे ही जो अपनी मर्ज़ी से अपना घर चुन सकें, समुदाय संजो सकें और ऐसा करते हुए दादा-दादी के श्वेत-श्याम विभाजन से थोड़ा परे जाकर नज़रें दौड़ा सकें.
यह महज संयोग नहीं है कि इस धरती के सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति आधा कीनियाई है, जिसकी शुरूआती परवरिश इण्डोनेशिया में हुई है और जिसका बहनोई चीनी-कनेडियन मूल का है.
दुनिया भर में 22 करोड़ लोग ऐसे हैं अपने-अपने जन्म के देशों में नहीं बल्कि दूसरी धरती पर रहते हैं …… भले ही हमें यह संख्या अविश्वसनीय लगे पर यह वास्तविकता है कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की आबादी को मिला दिया जाए, और इस मिली-जुली आबादी को दो गुना कर दिया जाए- एक नहीं दो बार- तब भी इंसानों की यह संख्या यहॉं –वहॉं आवारा बादलों की तरह विचरती आबादी से कम ही रहेगी.
राष्ट्र राज्य की पारम्परिक परिभाषा से बाहर जीवन –बसर कर रहे मुझ जैसे इंसानों की संख्या पिछले बारह वर्षों में छ: करोड़ चालीस लाख बढ़ी है- यह संख्या पूरे अमेरिका की आबादी से ज्यादा है. यह हाल उस देश का है जो धरती पर पॉंचवा सबसे बड़ा राष्ट्र है. उदाहरण के लिए कनाडा के सबसे बड़े शहर टोरंटो को देखें तो मालूम होगा कि वहॉं का एक औसत वासी कनाडा में नहीं बल्कि किसी दूसरे देश में जन्मा हुआ है – जिसे बोलचाल में हम विदेशी कहेंगे.
मुझे हमेशा लगता रहा है कि विदेशियों से घिरे रहने की खू़बसूरती यह है कि आप निरंतर जागृत /सजग बने रहते हैं – आप किसी बात को अपने अनुकूल मानकर निश्चिंत नहीं हो सकते. यात्राऍं मेरे लिए प्रेम करने जैसी होती हैं क्योंकि अचानक किसी पल एक झटके के साथ आपकी सभी अनुभूतियोँ को चालू (ऑन ) हो जाना पड़ता है.
यादवेन्द्र
yapandey@gmail.com