क्यों इन्सान को इतना समय लगता है
अपनी धूल झाड़ खड़े होने में,
जबकि हाथ झाड़ते उसे तनिक देर नहीं लगती?
किसी का होना हम कई वजहों से नकार सकते हैं.
अपने जीवन में उसकी उपस्थिति स्वीकारने का अर्थ होता है
खुद को हज़ार सफाईयाँ देना, खुद सवाल खड़े करना और फिर जवाबों से मुँह चुराना –
जिस ज़मीर को हाल ही में झाड़–पोंछ, साफ़–पाक़ कर फ़ख्र से घूम रहे थे,
उस बेचारे दागी को एक नए सिरे से होनेवाली शिनाख्त के लिए भेजना.
ऐसे में यही हल नज़र आता है कि बार–बार गोल–गोल घूम चक्कर खाने से बेहतर है
बात को हँसी में उड़ा दें.
पर फिर उसी का न होना
इतने संशयहीन पैनेपन से भेदता है
जितना संपूर्ण हो सकता है
सिर्फ किसी गलती का एकाकीपन.
वो तो शुक्र है आज आपने खुलासा कर दिया
कि आप मेरे आत्मीय हैं
और व्यर्थ की औपचारिकता छोड़ मुझ पर अपने अधिकार ले लिए.
वरना कमबख्त ये मेरी आत्मा तो बड़ी घुन्नी निकली,
आज तक मुँह में दही जमाए बैठी थी, बताईए ज़रा!
इंतज़ार करते हुए वक्त नहीं, हम बीतते हैं
और इंतज़ार करानेवाला सोचता रह जाता है
कि जितना छोड़ गया था
उससे कम कैसे?
क्या करोगे नहीं पढ़ोगे तो?
रिक्शा चलाओगे?
फेल होके स्कूल से नाम कट जाएगा,
फिर बैठे रहना चरवाहा विद्यालय में.\’
हम डर गए, पढ लिए.
अब कोई और चलाता है रिक्शा,
कोई और बैठे रहता है चरवाहा विद्यालय में.
आख़िर इन लड़कियों को चाहिए क्या?
यही कि कोई उन्हें ना बताए,
कि उन्हें चाहिए क्या.
इन रोशनियों से जी ही नहीं भरता,
यूँ चिराग तो हमारे घर भी जलता है.
\’क्या आप जानते हैं?
आपके घर में
फ़र्श के ऊपर,
कालीन के नीचे,
टॉयलेट के पीछे,
नसों को खींचे, मुट्ठियाँ भींचें,
आप पर हमला करने को तैयार हैं
सैकड़ों, लाखों, करोड़ों कीटाणु?\’
जी? जी, नहीं.
अब रेंगते वक्त इन बातों का खयाल ही कहाँ रहता है?
हम बस ज़रा हट के दिखना चाह रहे थे,
आपने तो हटा ही दिया.
\’इस बार संतरे हर जगह महंगे हैं.\’
अच्छा, भैया, आप कहते हैं तो मान लेती हूँ.
नहीं, ऐसी निरी नहीं कि शक ना आया हो मन में,
पर ठगे जाने का डर गौण था
विश्वास करने की क्षमता को खो देने के भय के सामने.
सड़कों की ख़ाक छानना ज़रूरी है,
ताकि घर को चाय के साथ आपका इंतज़ार करने का मौका मिले. _______________________________
अंकिता आनंद आतिश नाट्य समिति और पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की सदस्य हैं. आतिश का लक्ष्य है नाटक के ज़रिये उन मुद्दों को सामने लाना जो अहम् होते हुए भी मुख्य विचारधारा में स्थान नहीं पाते. इससे पहले उनका जुड़ाव सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान, पेंगुइन बुक्स और समन्वय: भारतीय भाषा महोत्सव से था. यत्र –तत्र कविताएँ प्रकाशित.anandankita2@gmail.com