• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » मंगलाचार : जाई : अनिता सिंह

मंगलाचार : जाई : अनिता सिंह

अकेली रह गयी माँ के शुरू हो रहे प्रेम सम्बन्ध को उसकी विवाहिता बेटी किस तरह देखेगी ?  अब यह न वर्जित क्षेत्र है न विषय. अनिता सिंह ने संयत रहकर यह कहानी बुनी है.    जाई                                      […]

by arun dev
July 23, 2018
in Uncategorized
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें




अकेली रह गयी माँ के शुरू हो रहे प्रेम सम्बन्ध को उसकी विवाहिता बेटी किस तरह देखेगी ? 
अब यह न वर्जित क्षेत्र है न विषय. अनिता सिंह ने संयत रहकर यह कहानी बुनी है.
  
जाई                                                 
अनिता सिंह




उड़ती फिर रही है मालती. मानों पँख लग गये हों. शादी के बाद पहली बार पूरे दिन रहेगी नीलिमा उसके साथ.


एक ही शहर में होने से बेटी-दामाद, हर दूसरे और चौथे शनिवार बैंक में छुट्टी होने से आते हैं  और घण्टे दो घण्टे में मिलकर लौट जाते हैं.


राजीव को एक सेमिनार अटेंड करने बाहर जाना पड़ा, ऐसे में नीलिमा को एक दिन के लिये माँ के पास छोड़ दिया है.


शाम से ही बेटी की पसंद का खाना बनाने में जुटी है मालती.
माँ, क्या बना रही हो, कहते हुए नीलिमा माँ की पीठ पर झूल गई.
अरे,  मेरा बच्चा !
सबकुछ तुम्हारी पसंद का बनाया है.
तुम फ्रेश हो जाओ मैं खाना लगाती हूँ .
तभी राजीव का कॉल आ गया और नीलिमा उसमें व्यस्त हो गई. 
मालती ने कुछ देर इंतज़ार किया, फिर यूँ ही व्हाटसप पर मैसेज चेक करने लगी.
माँ …खाना लगाइये, कहते हुये नीलिमा माँ के पास आई तो देखा वह किसी से चैट करते हुए मुस्कुरा रही थी.
पल भर को सुखद एहसास से भरकर वह एकबार फिर बालकनी में चली गई.
ज़ेहन में माँ का मुस्कुराता चेहरा सामने आ जाता. किससे बात करके खुश हो रही है माँ !
सोचते हुये नीलिमा दबे पाँव आकर माँ को निहारने लगी.
उसे लगा, जैसे पहली बार देख रही हो माँ को.
बालों में सफेदी, बेतरतीब भौहें और आँखों के नीचे डार्क सर्कल्स वाला सूखा और बेजान चेहरा इस समय किसी से बात करते हुए खिल गया था.
एक वक्त में माँ बहुत सुंदर हुआ करती थी. उन्होंने अपना ध्यान नहीं रखा, पर मुझे ख़याल रखना चाहिये था.
थोड़ी सी आत्मग्लानि का भाव आया नीलिमा के अंदर.
उसने खुद को सामान्य करने के ख़याल से माँ को आवाज़ लगाई.
किससे बातें की जा रही हैं, कहते हुए उसने माँ के हाथों से मोबाइल लेकर अलग रखा और गोद में लेट गई.
कोई नहीं …बस यूँ ही. तुम बात कर रही थी तो टाइमपास के लिये नेट ऑन किया था. उसके बालों को सहलाते हुये मालती ने कहा .
माँ का सुखद स्पर्श पाकर नीलिमा की आँखे लग गई और इधर बेटी को निहारते-निहारते मालती अतीत में पहुँच गई.




तीन साल की थी नीलिमा जब उसके पापा घर छोड़कर चुपचाप जाने कहाँ निकल गए.
उसकी गलती बस इतनी सी थी कि उसने ड्यूटी के बाद अस्पताल में रुकने से इनकार कर दिया था.
उस दिन हॉर्निया के मरीज का ऑपरेशन हुआ था.
ड्यूटी खत्म होने से पहले जब वह सुई लगाने गई थी तब मरीज एकदम ठीक था.
उसने सुनीता को पेशेंट के बारे में समझाया और घर जाने के लिये निकलने लगी,  तभी डॉ. किशोर ने अपने चेम्बर से निकलते हुये कहा–
नर्स !  आज पेशेंट की देखभाल के लिये तुम्हें रुकना होगा.
डॉ. की आवाज़ बता रही थी कि वह नशे में है.
सर ! सिस्टर  सुनीता आ चुकी है ड्यूटी पर, उसने  बताया.
मैंने क्या कहा, सुना नहीं तुमने ?
तुम्हें रुकना होगा डॉ. की आवाज़ गुस्से से लड़खड़ा रही थी.
सर ! मेरी बच्ची मेरे बिना सो नहीं पाएगी कहकर उसने अपना बैग उठाया और निकल गई.
तुमको इसकी सज़ा भुगतनी होगी, गुस्से से भरी आवाज़ थी डॉ. की.
अगले दिन वह जैसे अस्पताल पहुँची वहाँ का नजारा बदला हुआ था.
हर तरफ सामान बिखरा पड़ा था. वह जब तक कुछ समझ पाती डॉ. किशोर सीढ़ियों से पुलिसवाले के साथ आते दिखे.
यही हैं सिस्टर मालती! जिन्होंने रात में मरीज को दवा दी थी.
उसकी चेतना गायब होने लगी थी.
बिखरे सामान पेशेंट के परिजनों का आक्रोश दर्शा रहे थे.
वह कल की कड़ियों को जोड़ने की अनथक कोशिश में थी कि कानों के पास डॉ. का फुसफुसाता स्वर गूंजा …
शुक्र करो, पुलिस समय पर आ गई वर्ना….
डॉ. की नज़र में हिक़ारत और होठों पर कुटिल मुस्कुराहट चस्पा थी.
पुलिस ने उसे अरेस्ट करते हुये कहा \’ये तो ख़ैरियत है कि तुम देर से आई,  वर्ना मरीज के परिजन तुम्हें नुकसान पहुँचा सकते थे.’
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी दवा के साइड इफेक्ट को सत्यापित नहीं किया जा सका. फलतः वह जेल से जल्दी छूटकर घर आ गई.
तबतक उसका घर बिखर चुका था. लोकलाज और क्षोभ से भरा चरसी पति अपनी तीन साल की बच्ची को उसकी नानी के पास छोड़कर कहीं चला गया.
उसने सोच लिया था कि अब वहाँ काम नहीं करेगी लेकिन मालती की नज़रों का सामना करने के डर से डॉ .किशोर ने तबादला करवा लिया था.
आसान कहाँ था जीवन जीना. जेल प्रकरण के बाद सहकर्मियों के बीच दबंग छवि जरूर बन गई थी जो एक लिहाज से सही भी थी.
लेकिन कितना कमजोर कलेजा है उसका यह तो उसकी आत्मा जानती है.
हर बार सड़क पार करना नया जीवन लगता है उसके लिये.
एकाकी रातों में पीड़ा उसकी कनपटियों पर उतर आती है. उसके नस-नस में धुंआ भरने लगता है. ऐसा लगता है जैसे उसका पूरा बदन धुँए में तब्दील हो गया है.
ऐसे सपने के बाद जब नींद नहीं आती है तब वह जोर से चीखना चाहती है. इतनी जोर से आकाश का कलेजा फट जाए.
आधी उमर तो बच्ची को सम्भालने और उसका भविष्य सँवारने में निकाल दिया.
ऊपर से माँ और अपाहिज़ भाई की ज़िम्मेदारी.
बेटे के गुजरने का सदमा माँ न झेल सकी.
बाक़ी बाद अकेलेपन ने भी खूब सताया. लेकिन समाज मे बने सम्मान को किसी कीमत में गंवाना उसे गवारा नहीं था.
नए युग ने मोबाइल पर मनोरंजन के साधन उपलब्ध करा दिए सहकर्मियों ने फोर्टी प्लस व्हाटसप समूह से जोड़ दिया, समय कट ही जा रहा था.
इसी समूह से कुछ लोग अलग-अलग भी कुछ शेयर करते रहते थे.
वह समूह के सारे सदस्यों को नहीं जानती इसलिये अलग से सबके मैसेज़ का रिप्लाई नहीं दे पाती लेकिन उसका अंदाज़ इतना निराला था कि बातों बातों में जुड़ाव सा हो चला है.
काम से फुरसत मिलते ही वह उसके मैसेज़ की प्रतीक्षा करती है.
उसकी परिस्थितियां सड़क के पार जाकर सवारी पकड़ने जैसी है जिससे उसे डर लगता है. लेकिन घर लौटते समय सड़क का सिरा इंतज़ार करता मिलता है.
अपने उस ख़ास दोस्त के मैसेज़ को याद करके उसके होठों पर एक शरारती मुस्कान उभर आई.



घड़ी ने रात के दस बजाए तो मालती की तन्द्रा टूटी.
उसने बड़े प्यार से नीलिमा को जगाया.
चलिये आज खाना मैं लगाती हूँ. नीलिमा ने चहकते हुए कहा.
टेबल पर सबकुछ  नीलिमा की पसंद का था .
बेसन की सब्जी, कढ़ी,  रायता,  भरवा करेले.
वाह मज़ा आ गया देखकर ही. खुश होते हुये नीलिमा ने फ़टाफ़ट मोबाइल से तस्वीर ली और \’ अब बताओ किसकी माँ ज्यादा प्यार करती है\’ कहते हुये राजीव को सेंड कर दिया.
ये फोटो मुझे भी सेंड कर दो.
क्यों ?
क्यों क्या. रोज तो इतना बनेगा नहीं, फोटो देखकर पेट भरूँगी .
कहकर जोर से हँस पडी मालती.
खाने के बीच नीलिमा चहकती रही. एक रोटी और लीजिये, आप अपना ख़याल नहीं रखतीं. देखिये कितनी दुबली हो गईं हैं. खाना खत्म होने तक प्रवचन चलता रहा .
आज मैं आपके लिये फ़ूड चार्ट बनाती हूँ. इस उम्र में आपको क्या-क्या लेना चाहिये जिससे आपकी हड्डी, बाल और स्किन स्वस्थ रहें. मालती उसकी बातों से लगातार मुस्कुरा रही थी.
सोते समय माँ को  घुटने पर दवा मलते देखकर नीलिमा ने कहा–क्या माँ, दीजिये मैं लगा दूँ .
इस उम्र में औरतें जिंस पहनकर दौड़ती हैं और आप अभी से बूढ़ी होने लगीं.
आज आपको सोने नहीं दूँगी, कहकर वह अपना मेकअप बैग उठा लाई. लाख मना करने पर भी उसने मालती का आई ब्रो प्लक किया और फेसपैक लगाकर चुपचाप आँखें बंद रखने का आदेश दे दिया.
मालती बार-बार हँस पड़ती और बेटी से मीठी डाँट खा जाती.
बोलने की मनाही के बावजूद मालती ने कहा, सो जाओ. सुबह-सुबह राजीव तुम्हें लेने आएंगे.
मैं कल नहीं जा रही. सपाट लहजे में कहा नीलिमा ने. उसके अंदर कोई प्लान चल रहा था.
अरे मेरी बिट्टो ! लेकिन मेरी छुट्टी आज भर की ही थी.
तो क्या हुआ,  आप जाइयेगा ड्यूटी. मैं कल,  घर अरेंज करूँगी.
सोते समय चुटकुले सुना-सुना कर खूब हँसाती रही नीलिमा. उसने लोरी गाकर माँ को सुलाया. बहुत दिनों बाद सुखद एहसास से भरकर मालती ने पलकों को बन्द किया.
नीलिमा की आँखों से नींद उड़ चुकी थी.
कौन है वह आदमी जिससे बात करके माँ इतनी खुश लगी.
विचारों की आँधी किसी करवट चैन नहीं लेने दे रही थी.
माँ ने कभी किसी चीज की कमी न होने दी. हर मांग पूरी की.
हर माँ करती है और करना भी चाहिये,  नया क्या है इसमें.
उसने भी तो कोई कोर-कसर नहीं रखा.
माँ की अपेक्षाओं पर हरदम खरी उतरी.
माँ ने अपनी पूरी ज़िंदगी हमारे नाम कर दी .
…उन्हें भी अपनी मर्जी से जीने का हक़ है .
…उफ़्फ़ ये क्या सोचने लगी वह.
माँ के किसी कदम से ससुराल में मेरी बदनामी न हो जाए.
हे भगवान ! अगर राजीव या सासु माँ को,  माँ के बारे में पता चला तो …?
सासु माँ ऐसे हीं ताने देती रहती हैं.
तुम्हारे पापा का कुछ अता पता है नहीं, फिर तुम्हारी मम्मी मंगलसूत्र क्यों लटकाए रहती है !
जो भी हो,  वह माँ के साथ खड़ी रहेगी.
सोचते-सोचते नीलिमा की भी आँख लग गई.
सुबह आरती की आवाज सुनकर उसकी नींद खुल गई.
क्या माँ, यहाँ तो सोने दो कम से कम.
फिर जैसे कुछ अचानक याद आया. वह उठकर मालती के गले में झूल गई.
आज आपको मैं तैयार करती हूँ कहकर उसने आलमारी खोली.
पुराने और बेरंग साड़ियों को देखकर नीलिमा ने माँ से कहा– \’कौन पहनता है अब ऐसे कपड़े\’ ?
फिर उसने सारे कपड़े बाहर निकाल दिए.
छोड़ो ये सब. दिन में कर लेना. साथ में नाश्ता कर लो फिर मैं ड्यूटी चली जाऊँगी.
माँ के जाने के बाद  नीलिमा आलमारी से  बचे सामान निकालने लगी.
पुरानी डायरी, अलबम, फोटो फ्रेम.
\’पापा की गोद में बैठी नन्ही नीलू\’ को देखकर आँखों के कोर में छलक आए. आँसू को दुपट्टे से पोछकर फ्रेम में जड़ी उस तस्वीर के शीशे को साफ करने लगी.
यह तस्वीर जब तक दीवाल पर रही नानी के लिये कुढ़न बनी रही.
\’नामुराद ने मेरी बेटी की ज़िंदगी ख़राब कर दी\’. नानी जैसे शुरू होती माँ आँख बन्द करके कुछ बुदबुदाने लगती .
वर्षो बाद उसने माँ को अपनी कसम दी तब उसने बताया कि वह उनकी सलामती के लिये भगवान से प्रार्थना करती है.
जैसे, नीलिमा ने पूछा.
जब तुम्हारी नानी, तुम्हारे पापा को कोसती है,  तब मैं कहती हूँ \’हे भगवान जी!  वो जहां भी हों उनकी रक्षा करना\’.
आलमीरा के एक रैक में उसके खिलौने सजा कर रखे हुए थे. अपनी प्यारी बार्बी को देखकर उसे अपनी ज़िद याद आ गई.
 माँ ने गुल्लक फोड़कर  बार्बी दिलवाई थी.
एक बड़े से पॉलीथिन में पुरानी डायरी, वैशाली कॉपी, जिसपर नीलिमा ने पहली बार पेंसिल से कुछ लिखा था. उसके पंजों की छाप वाला पेपर और उसके बनाए ग्रीटिंग्स थे.
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था \’सुधीर कुमार घायल\’  बी.ए द्वितीय वर्ष.
 पापा की हैंडराइटिंग को छूकर एक सुखद एहसास से भर गई नीलिमा.
अंदर के पन्नों पर सी ग्रेड की शायरी भरी पड़ी थी.
उसने इरादा किया था कि सबकुछ हटा देना है लेकिन सबकुछ करीने से रख दिया .
पापा की सारी तस्वीरों को फिर से देखा और जाने क्या सोचकर अपने पर्स में रख आई.
टेबल पर रखे मोबाइल पर कोई कॉल आ रहा था.
हे भगवान! माँ का मोबाइल ….
उसने कॉल रिसीव किया.
कितनी बार कॉल कर चुका हूँ. उठातीं क्यूँ नहीं?
जी आप कौन ?
माँ का मोबाइल घर पर छूट गया है.
अरे, नीलिमा बिटिया, कैसी हो?
जी, नमस्ते !
मैंने पहचाना नहीं ?
कोई बात नहीं .
मालती आए तो बोल देना खडूस का फोन था.
खडूस !
कौन है ये खडूस ?
उसने व्हाट्सएप ऑन किया.
सारे नाम जान -पहचान वालों के थे. सामान्य बातचीत, गुड मार्निंग, गुड नाइट…
स्क्रोल करते हुये दिखा \’फोर्टी प्लस ग्रुप\’ जिसमें योगा, गीत, वीडियो और स्वास्थ्य तथा मनोरंजन भर था.
खडूस नाम से सेव कॉन्टेक्ट पर इधर से भेजा गया स्माइली दिख गया.
रात खाने की मेज पर ली गई तस्वीर पर कमेंट था.
ओहो, हमसे बेईमानी.
सब बनाना होगा, जब मैं आऊँगा.
बिल्कुल. माँ ने जवाब में लिखा था.
पीछे जाने पर लिखा दिखा–
हाय ब्यूटीफुल ! कहाँ हो इन दिनों …मैसेज़ तो सीन करो…बहुत दिन हुये चुटकुले सुनाए…
जवाब में लिखा था…
फुल एंटरटेनमेंट है घर में.
फ़र्जी का नहीं चलेगा अभी.
बच्ची घर आई है …
और स्माइली.
तुम्हारा शुगर क्या करामात कर रहा इन दिनों…
ईसीजी का रिपोर्ट तो सही नहीं दिखा रहा.
बहुत लापरवाह हो.
तुमसे बात नहीं करनी.
दवा तो ले रही हूँ.
हरदम डाँटते हो.
अच्छा सुनो ! इस वीडियो को देखकर योगा किया करो.
जी सरकार ! जैसी आज्ञा.
आप भी अपने सर्वाइकल का ख़्याल रखें.
ज्यादा देर कम्प्यूटर पर मत रहें.
उसकी आँखों के सामने  \’ हाय ब्यूटीफुल\’  वाला मैसेज़ लगातार घूम रहा था.
उसकी माँ है ही दुनियाँ की सबसे सुंदर माँ.
उसने माँ का व्हाटसप डीपी  खोला.
आँखों पर मोटा चश्मा, आधारकार्ड वाली सूरत.
माँ भी न. आज आती है तो अच्छे से तैयार करके फोटो खिचूंगी और चेंज कर दूँगी डीपी.
 एक शरारती मुस्कान के साथ खडूस का डीपी  देखा. वहाँ रेगिस्तान की तस्वीर लगी हुई थी.
वह उसके मनःस्थिति का अंदाज़ा लगाने लगी. लेकिन इस बात से बेहद परेशान भी हो रही थी कि माँ बीमार है तो मुझे क्यों नहीं बताया.
उसने भी शायद पूछा नहीं  कभी.
जो भी हो,  यह आदमी केयर करता है माँ की. माँ भी जिस तरह सबकुछ शेयर करती है मतलब दोनों अच्छे दोस्त होंगे.
मैसेज पढ़कर माँ के मुस्कुराने की वजह समझ में आ गई थी.
मुस्कुराते हुये उसने गाना लगाया \’काँटो से खींच के ये आँचल…….
और काम में जुट गई.
ड्यूटी से लौटकर मालती ने सहजता से मोबाइल गुम हो जाने की बात बताई, जैसे ही नीलिमा ने मोबाइल लाकर दिया वह असंयत हो उठी.
अचानक उसके चेहरे की
रंगत उड़ गई.
नीलिमा को सामान्य देखकर भी मालती नजरें बचा रही थी.
चाय पीते हुये दोनों ने एकदूसरे के भावों को पढ़ने की कोशिश की,  फिर शापिंग का प्लान बना लिया.
शाम में जम कर खरीदारी की गई.
जिस रंग के लिये मालती मना करती उसी रंग की साड़ी नीलिमा पैक करवा लेती.
सैंडल, मेकअप का सामान ,पर्स ,परफ्यूम  सब कुछ खरीदा गया.
होटल में खाना ऑडर करने के लिये नीलिमा ने मालती के आगे मेनू सरका दिया .
माँ का बच्चों की तरह रास्ते में आइसक्रीम खाना और खिलखिलाना देख नीलिमा ने बड़ा सुकून महसूस किया.
रात में मालती के बालों को डाई करते हुये नीलिमा ने बड़ी हिम्मत करके माँ से पूछा-
माँ, आपने दूसरी शादी क्यों नहीं की ?
चारपाई के पाए की किस्मत में बिस्तर सम्भालना लिखा होता है, बिस्तर होना नहीं.
मालती के सुर में सुर मिलाकर नीलिमा ने कहा और दोनों ठहाका मार कर हँस पड़े.
ज्यादा चौधरी मत बनिये.
हम बच्चे नहीं हैं अब.
ये डायलॉग नहीं चलेगा. झूठे आक्रोश से नीलिमा बोल पड़ी.
सुनिये, जो हम कह रहे हैं.
वह जो बात कहना चाह रही थी उसका रिहर्सल कितनी बार कर चुकी है लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.
कोई वो शख़्स, जो देर तक और दूर तक,  साथ निभाने को तैयार हो, उसे अपना लीजिए. एक साँस में कह गई नीलिमा.
मालती का कलेजा एक बार जोर से उछला. वह बेटी का इशारा समझ रही थी. एक लम्बी साँस और चुप्पी ने मालती के दिल से उतरते बोझ को महसूस किया.
पल भर में कितनी तस्वीरें बनी और मिटी. मालती के जहन में खडूस का चेहरा आया और वो लाज से सिमट गई.
लगा जैसे नीलिमा बेटी नहीं उसकी माँ बन गई है. उसकी आँखों में आँसू छलछला आए.
नीलिमा ने मालती का सिर अपनी गोद में रख लिया और आहिस्ता बालों को सहलाने लगी.
गोद में लेटी मालती निश्छल बच्ची लग रही थी.
दोनों के चेहरे पर सुकून और निश्चिन्तता के भाव दमक रहे थे.
_________________________________________

अनिता सिंह
मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)
गीत-ग़ज़ल संग्रह \”कसक बाक़ी है अभी\” 2017 में हिंदुस्तानी भाषा अकादमी से प्रकाशित
Dranitasingh.1971@gmail.com/7764918881

ShareTweetSend
Previous Post

बूढ़ा शजर : प्रीता व्यास की कविताएँ

Next Post

महमूद दरवेश की डायरी : यादवेन्द्र

Related Posts

सहजता की संकल्पगाथा : त्रिभुवन
समीक्षा

सहजता की संकल्पगाथा : त्रिभुवन

केसव सुनहु प्रबीन : अनुरंजनी
समीक्षा

केसव सुनहु प्रबीन : अनुरंजनी

वी.एस. नायपॉल के साथ मुलाक़ात : सुरेश ऋतुपर्ण
संस्मरण

वी.एस. नायपॉल के साथ मुलाक़ात : सुरेश ऋतुपर्ण

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक