साहित्य,कला और विचार की प्रशिक्षणशाला |
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के प्रख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की उदारता से निर्मित और साहित्य, कला एवं विचारों के लिए प्रतिबद्ध संस्था रज़ा फाउंडेशन, दिल्ली अनेक प्रकार के आयोजन करती है. स्वयं तथा कृष्णा सोबती-शिवनाथ निधि के सहयोग से आयोजित इस का एक आयोजन ‘युवा’ कहलाता है. यह आयोजन मुक्तिबोध की जन्म शताब्दी वर्ष 2016 ई. से शुरू हुआ है. इस आयोजन में भारतवर्ष के तीस से अधिक शहरों से लगभग पचास से ऊपर युवा लेखक-लेखिका निमंत्रित किए जाते हैं. ये युवा लेखक-लेखिका पहले से तय एक विषय पर आपस में विचार-विमर्श करते हैं. उदाहरण के लिए 2021 ई. में आयोजित युवा इस मायने में अनूठा था कि उस में चित्रकार ( सैयद हैदर रज़ा, जगदीश स्वामीनाथन), संगीतज्ञ (कुमार गंधर्व), बौद्धिक (मुकुंद लाठ), नर्तक (बिरजू महाराज), रंगकर्मी (हबीब तनवीर) और फिल्म निर्देशक (मणि कौल) पर केन्द्रित सत्र थे. ऐसा संभवतः पहली बार हुआ था कि हिन्दी के युवा लेखक-लेखिका इतनी संख्या में एक साथ इन मूर्धन्यों पर विचार कर रहे थे.
इसी प्रकार 2022 ई. का ‘युवा’ भारतीय भाषाओं के कुछ विशिष्ट कवियों पर केन्द्रित था. इस में बँगला के शंख घोष, पंजाबी के हरभजन सिंह, उर्दू के कवि अख़्तर-उल-ईमान, मलयालम के अयप्प पणिक्कर, उड़िया के रमाकांत रथ और मराठी के अरुण कोलटकर पर सत्ताईस शहरों से आए अट्ठाईस हिंदी के युवा लेखकों-लेखिकाओं को विचार करने के लिए कहा गया था. इस आयोजन की एक विशिष्टता यह रही कि यह आयोजन पहले के ‘युवा’ आयोजनों की तरह दिल्ली में नहीं बल्कि रज़ा साहब के शहर मण्डला (मध्यप्रदेश) में 11-12 नवंबर 2022 ई. को आयोजित हुआ. इन सब के पीछे रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी और कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी की परिकल्पना और उदारता रहती है. वे इस समय 83 वर्ष की आयु में चल रहे हैं. इस उम्र में भी उन की सक्रियता आयोजन में आए किसी भी युवा लेखक-लेखिका से कम नहीं थी. यह अतिशयोक्ति नहीं बल्कि प्रेरक सच्चाई है. सुबह दस बजे से रात आठ-नौ बजे तक वे बिना ऊबे, बिना कोई शिकायत किए और हमेशा स्वागत को उन्मुख एवं स्नेह-खयाल रखने वाली दृष्टि से सारा कुछ करते हैं. इस उम्र में उन की यह सक्रियता युवा लेखकों को लज्जित भी करती है और प्रेरित भी.
रज़ा फाउंडेशन ने साहित्य से संबंधित जितने आयोजन एवं प्रकाशन (रज़ा पुस्तकमाला) किए हैं उन से हिंदी की दुनिया का विस्तार भी हुआ है और इस की कमी भी बहुत हद तक पूरी हुई है. जैसा कि कहा गया कि ‘युवा 2022’ भारतीय भाषाओं के कुछ विशिष्ट कवियों पर केन्द्रित था. यह महज एक आयोजन मात्र तक किया जाने वाला अभ्यास नहीं था बल्कि इस आयोजन से हिंदी के युवा लेखक-लेखिकाओं को यह प्रशिक्षण मिला कि वे सिर्फ़ हिंदी की दुनिया तक ही सीमित न रहें बल्कि भारतीय भाषाओं को भी अपनी सृजनात्मकता तथा विचार के दायरे में लाएँ. इसी अर्थ में हिंदी की अखिल भारतीय भूमिका पूरी हो सकती है. आए हुए अधिकांश युवा लेखक-लेखिका ने यह खुले मन से स्वीकार किया कि यदि यह आयोजन नहीं होता तो वे इन कवियों की कविताओं की ओर ध्यान नहीं दे पाते. यह भी लक्षित हुआ कि भारतीय भाषाओं के इन कवियों पर एक साथ हिंदी के लेखक-लेखिकाओं ने विचार कभी नहीं किया है. यह एकत्र भाव विचारों की भिन्नता के साथ समृद्ध करता है. इन एक-एक कवियों पर विचार के कारण सम्मिलित हर युवा लेखक-लेखिका इन सभी भाषाओं के साहित्य की ओर स्वतः उन्मुख हो जाते हैं. इस से यह भी स्पष्ट है कि इस से युवा रचनाकारों की रुचि, प्रतिबद्धता और लेखकीय दायित्व के दायरे में विस्तार तथा वैचारिकता में गहराई आती है.
‘युवा’ आयोजन की विशेष बात यह भी है कि इस में ‘सत्र पर्यवेक्षक’ भी होते हैं जो वरिष्ठ लेखक होते हैं. इस बार इस भूमिका में वरिष्ठ कवि अरुण कमल एवं असंग घोष, कहानीकार आनंद हर्षुल कथाकार-पत्रकार प्रियदर्शन और संपादक नरेंद्र पुंडरीक थे. ये ‘पर्यवेक्षक’ हर सत्र के बाद या दिन के अंत में युवा लेखक-लेखिकाओं के द्वारा निर्धारित विषय पर किए गए प्रस्तुतीकरण तथा उन से जुड़े साहित्य-कला के बृहत्तर सवालों पर अपनी राय प्रकट करते हैं. ऐसा होने से दो बातें कम से कम पूरी होती हैं. पहली यह कि पुरानी पीढ़ी तथा नई पीढ़ी के रचनाकारों के बीच परिचय एवं संवाद बढ़ता है. इस के साथ-साथ वे मिलकर एक साझापन निर्मित करते हैं जिस से हिंदी की साहित्यिक दुनिया का विस्तार तथा उस एक सामूहिक रचनात्मकता विकसित होती है. ‘युवा’ नाम भले यह संकेतित करता हो कि यह नौजवानों के लिए है परंतु यह दो पीढ़ियों के बीच सेतु भी है.
अंत में समापन सत्र होता है. इस सत्र में अशोक जी दो दिनों के अपने अनुभव साझा करते हैं. वे अत्यंत आत्मीयता से बताते हैं कि युवा लेखक-लेखिकाओं को क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए? लेखकीय भूमिका के साथ-साथ उन की एक नागरिक भूमिका भी है जिसे उन को निभाना ही चाहिए. साहित्य में नवाचार, भाषा के प्रति संवेदनशीलता और व्यापक मनुष्यता में अनुराग बचाए रखना आवश्यक है. यह स्पष्ट है कि ‘युवा’ आयोजन साहित्य-कला-विचार की एक प्रशिक्षणशाला के रूप में स्मरणीय है.
योगेश प्रताप शेखर सहायक प्राध्यापक (हिन्दी), दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय |