लाल्टू की कविताएँ |
1.
और मैं उसे रंगीन छतरी बन
जब तक कि आसमां बादलों से भर न जाता, हम एक दूसरे को भर लेते. फिर बूँदें आतीं, और मैं उसे रंगीन छतरी बन कर ढँक लेता. वक्त हमारे लिए चलता, हमारे लिए थम जाता. कहीं कोई गीत गूँज उठता, कोई वायलिन बजता, और अचानक सूरज परदा उठाकर हमें देखता. बादल दहाड़ते और हमारे बदन परस्पर फिसलते, सिमटते, गीले होते और सूखते.
जब तक कि धरती दरख्तों से भर जाती, बाँहें और टाँगें खुदमुख्तार होकर नाचती थीं. फिर साँसें उठतीं-गिरतीं, और मैं उसे रंगीन छतरी बन कर ढँक लेता. ज़मीं हमें गोद में लिए हौले-हौले डोलती. चाहत के लिहाफ हमें समेट लेते, चींटियाँ उन पर चोटियाँ और कंदराएँ पार करतीं. तपिश के बीज छितरते रहते, अचानक हम मोर-पंखों से हल्के हो दूर कहीं तैर जाते.
जब तक कि चर-अचर प्राणी हमें देख हाथ हिलाते, हमारे रोएँ हमें गीत गाने को कहते. फिर सपने खिलते, और मैं उसे रंगीन छतरी बन कर ढँक लेता था. कहीं कोई झंझा झूम उठती, कोई चक्रवात सुर मिलाता, कोई पाखी नीड़ में अंडों में सँजोए आने वाले प्राण को तपिश देता. उस वक्त हर कहीं तिश्नगी के मारों पर सुक़ूं के फव्वारे बरसते. हमारे जिस्मों पर अनगिनत धरतियाँ अपनी पसंद के नक्शे उभारतीं.
जब तक कि हर कहीं अरमानों के झुंड गुत्थमगुत्था हो खिलखिलाते, हम रंगों में डूब जाने के खेल खेलते. फिर लहरें उमड़तीं, और मैं उसे रंगीन छतरी बन कर ढँक लेता था. कहीं कोई साँप या घड़ियाल बल खाता और वह मेरे साथ ताल मिलाती अँगड़ाई लेती. समंदरों में उफान आते, किश्तियाँ बादलों को सलाम कह आतीं. हम एकबारगी अपनी पसलियाँ ढूँढते हुए परस्पर पंजे गाड़ देते.
2.
एक और है कि
हिन्दी अदब में घुसपैठ करते हुए देखता हूँ कि एक विक्षिप्त शख्स रो रहा है कि आज तक वह नवजागरण क्यों नहीं आया, जिसकी तवक़्क़ो थी. तमाम लोग उस शख्स की पूजा करते हैं, पर कोई उसके सवाल पर गौर नहीं करता. उन सुरंगों में गंदे पानी में गोते मारते चूहों को देखता हूँ, जिनमें से गुजरने के सपने उस शख्स को आते रहे. गैर कुदरती समझ के जमाने में उसकी पूजा करने वाले आयाराम गयाराम के ज़हनों में चलती प्रक्रियाओं पर सोचता हूँ. चूहे दौड़ते चले हैं, एक दूसरे पर झपटते, एक दूसरे को काट खाते हैं और मुल्क उनके रक्त-मज्जा का इस्तेमाल कर पुनरुत्थान की पांडुलिपि तैयार करता है.
एक और है कि पार्टनर से पॉलिटिक्स का हिसाब ले रहा है.
3.
अब जो हो
कोई तो रंग है अँधेरे सा, जो अपने अंदर प्राण समेटे बिखरा हुआ है.
वो मुझे, मैं उनको देखता हूँ (नज़रें बचाकर भी बचती नहीं हैं). ख़ून जमने लगता है.
आखिरकार किस्मत पर और किस्मत के बगैर कुछ होता होगा
पर बात छोड़ देते हैं. मैं बायाँ हाथ पतलून की जेब में डाल लेता हूँ. अब हर कोई जानता है कि
मैं वहाँ हूँ. हर कोई जानता है कि मैं जादूगर नहीं हूँ. मेरे अपने घाव हैं
और मेरी अंतड़ियों में जरासीम तैरते हैं. अँधेरे रंग के छींटे मुझपर हैं.
दौड़ता आता एक बच्चा मुझे चौंकाता कहीं और चला जाता है. कुछ तो कह जाता है- एक अनसुलझी आवाज़
मेरे पास रह जाती है. हवा पूछती है- बंदे, क्या चाहते हो? हवा की छुअन जैसे अचानक किसी की त्वचा की याद. तभी कोई पटरी या खोखे से चाय की महक आ पुकारती है. दो मजदूर औरतों की कुछ पलों की गपशप. मेरी शक्ल पर उनकी छवि रह जाती है. मैं उनसे दूर होने की कोशिश करते हुए बेवजह उनके पास आ बैठता हूँ.
ऐ लोगों, मैं आया हूँ. तुम्हारे बीच अपनी जगह ढूँढने आया हूँ. तुम्हारा पसीना मुझे खींच लाया है. तुम कायनात की शुरूआत हो. पुराणों कथाओं में तुम हो. मुझे सीने से लगा लो कि मैं आया हूँ. मेरा न तिरस्कार करो, न मुझे पुरस्कार दो. मेरे ज़हन में बहुत सारी कथाएँ भर दो. खनकती कथाएँ. डँसती कथाएँ. मेरा सिर इतना झुका दो कि वह पहाड़ सा ऊँचा दिखे. मुझे रेंगने मत दो.
मुहल्ले में कैसी-कैसी कहानियाँ हैं. तुम्हारे ख़ून में अपना ख़ून मिलाते हुए तालीम और शोध के मज़मून गढ़ता हूँ. तुम्हारी थकन में मेरी थकन. वही बिखरता रंग एक-सा. अंजाने ही मैं तुम्हारा. अरबों-खरबों अणुओं ने आपस में हाथ मिलाए, गलबँहियों में एक-दूजे को समेटा. एक पहचान का क़त्ल करते हुए मैं एक दूसरी पहचान में उबर आया.
अब जो हो सो हो.
4.
तभी तो
बैठ जाऊँ?
बैठ कर क्या होगा?
दौड़ूँ?
दौड़ कर क्या होगा?
देखता रहूँ, सुनता रहूँ, गीत गाता रहूँ,
क्या होगा इन सब से?
सपने देखूँ
हाँ, सपने देखूँ,
मोहब्बत के सपने देखूँ
तभी तो बैठूँगा, दौड़ूँगा, देखूँगा, सुनूँगा
गीत गाऊँगा.
5.
इक दम रह जाएगा
उफ़क देखता है
देख रोकता है
सपने कब तक देखोगे
कहता टोकता है
अब जो बचा सो बचा
आस्मां समंदर जो कुछ
अब तक रचा
वही सच है वही रह जाएगा
आएंगे और भी
हमसुख़न हमसपन
मोहब्बत का इक दम रह जाएगा.
6.
उम्मीद
एक बूढ़ा आदमी
एक और बूढ़े आदमी को
याद कर रहा है
वह एक उम्मीद भरा आदमी है
कह रहा है
कार्ल मार्क्स वापस आ रहा है.
लाल्टू ( हरजिंदर सिंह) हरजिंदर सिंह हैदराबाद में सैद्धांतिक प्रकृति विज्ञान (computational natural sciences) के प्रोफेसर हैं. उन्होंने उच्च शिक्षा आई आई टी (कानपुर) तथा प्रिंसटन (अमरीका) विश्वविद्यालय से प्राप्त की है. एक झील थी बर्फ़ की, डायरी में २३ अक्तूबर, लोग ही चुनेंगे रंग, सुंदर लोग और अन्य कविताएँ, नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध, कोई लकीर सच नहीं होती, चुपचाप अट्टहास कविता संग्रहों के साथ कहानी संग्रह, नाटक और बाल साहित्य आदि प्रकाशित. हावर्ड ज़िन की पुस्तक ’A People’s History of the United States’ के बारह अध्यायों का हिंदी में अनुवाद. जोसेफ कोनरॉड के उपन्यास ’Heart of Darkness’ का ’अंधकूप’ नाम से अनुवाद, अगड़म-बगड़म (आबोल-ताबोल), ह य व र ल, गोपी गवैया बाघा बजैया (बांग्ला से अनूदित), लोग उड़ेंगे, नकलू नडलु बुरे फँसे, अँग्रेजी से अनूदित आदि. बांग्ला, पंजाबी, अंग्रेज़ी से हिंदी कहानियाँ, कविताएँ भी अनूदित. सैद्धांतिक रसायन (आणविक भौतिकी) में 60 शोधपत्र अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित. |
अच्छी कविताएँ हैं। आरंभ की तीन विशेष तौर पर।
लाल्टू की कविताओं का आस्वाद अलहदा है।
लालटू की कविताएँ मैंने पहले भी पढ़ी हैं । उनका संग्रह मेरे पास है। वह अच्छे कवि हैं लेकिन आसान कवि नही है। एक साथ उनकी कविताएँ पढना आपको उलझा देगा। आराम से कविता प्रेमी की तरह ही उन्हें पढना उचित होगा। दोस्तों में काफी लोकप्रिय कवि हैं । हालांकि समीक्षक इनकी कविताओं पर लिखने का अभी तक साहस नही कर सके। लालटू को बार बार पढना ही उनकी कविताओं में उतरने का वैज्ञानिक तरीका होगा शायद।
अच्छी कविता है लाल्टू की कविताएँ अच्छी ही होती है
ग़ज़ब, ग़ज़ब ग़ज़ब कविताएं। अद्भुत बिम्ब। गहरे तक प्रभावित किया इन कविताओं ने। शुक्रिया Arun जी। लाल्टू जी को बधाई।
तीसरी कविता तो अद्भुत है। सभी कविताएँ नया स्वाद देती हैं। कवि को प्रणाम पहुँचे,
सारी कविताएं अद्भुत हैं लेकिन चौथी कविता वाहहह!
कवि को बधाई 🌹