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Home » पाई: एक रहस्यमय दुनिया: सुमीता ओझा

पाई: एक रहस्यमय दुनिया: सुमीता ओझा

साहित्य की दैनंदिनी में दीगर मसले भी शामिल हैं. केवल साहित्य से तो साहित्य भी संभव नहीं. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी अपनी ‘सरस्वती’ में साहित्य के साथ इतिहास, विज्ञान, वाणिज्य आदि भी प्रकाशित किया करते थे. यह जो आगे चलकर हिंदी पत्रिकाओं का विशेषीकरण हुआ उससे सबसे ज्यादा हिंदी समाज को नुकसान पहुंचा. आज कोई ऐसी पत्रिका नहीं है जिसे हिंदी का कोई परिवार पढ़ सके. समालोचन की यह कोशिश रहती है कि साहित्य के साथ-साथ समाज और विज्ञान से भी जुड़ा रहा जाए. सुमीता ओझा कविता लिखती हैं और गणित तथा संगीत पर उनका शोध कार्य है. प्रस्तुत आलेख पाई के रहस्यों को इस तरह खोलता है जैसे हमारे समाने सृष्टि का कोई रहस्य खुल रहा हो. जो कहते हैं कि विज्ञान की गूढ़ता को हिंदी ठीक से व्यक्त नहीं करती उन्हें यह आलेख पढ़ना चाहिए. जुलाई पाई का महीना भी है. प्रस्तुत है.

by arun dev
July 25, 2024
in विज्ञान
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पाई: एक रहस्यमय दुनिया: सुमीता ओझा
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पाई
एक रहस्यमय दुनिया
सुमीता ओझा 

 

मनुष्य के इतिहास में आग के अविष्कार के बाद दूसरा सबसे क्रांतिकारी अविष्कार था पहिया. इसने मनुष्य के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन किया. पहिए की संकल्पना ने वृत्त और गोले जैसे आकारों को समझने में तो मदद की ही, तमाम चीजों के साथ ही चक्र का अन्वेषण और समय की हदबन्दी की अवधारणा को सच्चाई में बदल डाला. जैसे-जैसे वृत्त के आकार की समझ खुलती गई, गणितीय विधा का एक अपूर्व संसार खिलता गया. वृत्त की परिधि की लम्बाई और इसके व्यास की लम्बाई का अनुपात एक ऐसी रहस्यमय अचर राशि के रूप में प्रकट हुआ जिसका सटीक मान निकाल पाना असम्भव रहा. इस राशि के लिए वेल्श गणितज्ञ विलियम जोन्स ने सन् 1706 में ग्रीक अक्षर ‘पाई’ (π) का उपयोग किया और धीरे-धीरे दुनियाभर में यह सर्वस्वीकृत हो गया.

प्राचीन काल से ही अपने रहस्यमय सौन्दर्य से गणितज्ञों को रोमांचित करता चला आ रहा ‘पाई’ अद्भुत और विशिष्ट है. यह एक स्थिरांक है जिसका मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है. किन्हीं दो राशियों (अंकों) के अनुपात (भिन्न) का मान इनमें से एक राशि का दूसरी राशि से विभाजन कर प्राप्त होता है. इस तरह जब किसी वृत्त की परिधि की लम्बाई को इसके व्यास की लम्बाई से विभाजित किया गया तो पाया गया कि प्राप्त मान हरेक वृत्त के लिए एकसमान (अचर/स्थिरांक) है और साथ ही यह विभाजन कभी ख़त्म नहीं होने वाली और दोहरावरहित अनन्त काल चलती ही रहने वाली प्रक्रिया है. वृत्त कि परिधि और इसके व्यास के अन्तर्सम्बन्ध के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि किसी भी वृत्त की परिधि की लम्बाई उसके व्यास की लम्बाई के तीन गुणा से ज़रा सा अधिक होता है.

एक ऐसी राशि जिसका सटीक मान ज्ञात नहीं किया जा सकता और न ही जिसे पूर्णांकों के निश्चित अनुपात (भिन्न) के रूप में दर्शाया जा सकता है, अपरिमेय राशि कही जाती है. इस तरह पाई एक अपरिमेय राशि साबित है जिसे किन्हीं दो पूर्णांकों के अनुपात के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता. अबतक इसका मान दशमलव के बाद दस खरब से भी अधिक स्थानों तक निकाला जा चुका है. जबसे इसका पता चला है, तभी से दुनियाभर के गणितज्ञ इसका मान प्राप्त करने और इस मान का सबसे नजदीकी भिन्न तलाशने में जुटे रहे हैं. परिणामस्वरूप 22/7 वह भिन्न है जिसका मान पाई के सबसे निकट पाया गया. गणना करने में इसी भिन्न का बहुतायत में उपयोग किया जाता है. हम सबने भी हाई स्कूल में ज्यामिति की कक्षा में पाई के बारे में पढ़ा है और पाई की जगह 22/7 का उपयोग करते हुए सवालों को हल किया है. लेकिन पाई का मान प्राप्त करना और इसके सन्निकट भिन्न का पता लगाना गणित के इतिहास की जटिलतम और बेहद लम्बी प्रक्रियाओं में से एक रही है.

पाई का सबसे पहला प्रयोग 4,000 वर्ष पहले बेबीलोन में दर्ज किया गया था और संभवतः इसका उपयोग निर्माण कार्यों में किया जाता था. मिस्र, बेबीलोन, चीन, भारत सहित प्राचीन सभ्यताओं को व्यावहारिक गणनाओं के लिए π के काफी सटीक अनुमानों की आवश्यकता थी. चीनी गणितज्ञों ने π को सात अंकों तक अनुमानित किया, जबकि भारतीय गणितज्ञों ने पाँच अंकों का अनुमान लगाया, दोनों ने ज्यामितीय तकनीकों का उपयोग किया. भारतीय शुल्बसूत्रों (सबसे प्राचीन बौधायन का शुल्बसूत्र माना जाता है जो लगभग 1200 से 800 ईसा पूर्व के बीच में रचा गया है. इनके बाद आपस्तम्भ और कात्यायन भी महत्वपूर्ण शुल्बसूत्रकार हैं.) के अनुसार π का मान 18(3-√2 ) या 25/8 अनुमानित किया गया है जो क्रमशः 3.088 और 3.152 के बराबर है. इनमें दूसरा मान π के मान के अधिक निकट है.

प्राचीन जैन गणित में π का मान √10  वर्णित है जो लगभग 3.162 के बराबर है. ग्रीक गणितज्ञ आर्किमिडीज़ (लगभग 250 ईसा पूर्व) ने π का ​​अनुमान लगाने के लिए एक एल्गोरिदम बनाकर पाई के मान की पहले कुछ दशमलव स्थानों तक की गणना की. उन्होंने एक वृत्त के अंदर और बाहर षड्भुज बनाए. फिर उन्होंने भुजाओं की संख्या को क्रमशः दोगुना करते हुए 96-भुज तक का बहुभुज बनाया. इस एल्गोरिदम की मदद से, आर्किमिडीज पाई के पहले दशमलव बिंदु के रूप में 3.14 निर्धारित करने में सक्षम हुए. इस सफलता ने कभी न ख़त्म होने वाली संख्या की कभी न ख़त्म होने वाली गणनाओं की शुरुआत की. जैसे-जैसे गणनाएँ बढ़ीं, पाई को और अधिक सटीक रूप से लिखने की आवश्यकता हुई क्योंकि पाई का संख्यात्मक रूप इसकी सटीकता को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करता है. 5वीं शताब्दी के अन्त तक आर्यभट ने π का सन्निकट मान 3.1416 बताया था जो उस समय तक दुनियाभर में खोजे गए मानों की तुलना में दशमलव के चार अंकों तक सबसे अधिक सटीक था.

पाई एक हैरान करने वाली राशि है- दशमलव के अनंत अंकों वाला एक सार्वभौमिक स्थिरांक और कोई पैटर्न नहीं! दिलचस्प है कि अपरिमेय होने के साथ ही यह एक बीजातीत संख्या (ट्रांसेंडेंटल नम्बर) भी है. बीजातीत यानी बीजगणित से परे. इसका अर्थ है कि यह संख्या किसी पूर्णांक गुणांक वाले गैर-शून्य बहुपद

 

का मूल नहीं होती. π की बीजातीतता के दो महत्वपूर्ण परिणाम हैं: पहला, पाई को पूर्णांक संख्याओं और वर्गमूलों या n-वें मूलों 
के किसी भी परिमित संयोजन का उपयोग करके व्यक्त नहीं किया जा सकता है. दूसरा, चूँकि कम्पास और स्केल के साथ कोई बीजातीत संख्या नहीं बनाई जा सकती है, इसलिए ‘वृत्त का वर्ग करना’ संभव नहीं है. दूसरे शब्दों में, केवल कम्पास और स्केल का उपयोग करके, एक वर्ग का निर्माण करना असंभव है जिसका क्षेत्रफल किसी दिए गए वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर हो. वृत्त का वर्ग करना शास्त्रीय युग की महत्वपूर्ण ज्यामितिक समस्याओं में से एक था.

पाई का इस्तेमाल आमतौर पर वृत्तों से सम्बन्धित कुछ गणनाओं में किया जाता है. पाई न केवल परिधि और व्यास से सम्बन्धित है, आश्चर्यजनक रूप से, यह एक वृत्त के व्यास या त्रिज्या को उस वृत्त के क्षेत्रफल से निम्नलिखित सूत्र द्वारा जोड़ता है: क्षेत्रफल पाई गुणा त्रिज्या के वर्ग के बराबर होता है. इसके अतिरिक्त, पाई अक्सर कई गणितीय स्थितियों में अप्रत्याशित रूप से सामने आता है. अनन्त शृंखला पर आधारित पाई के लिए पहला कम्प्यूटेशनल सूत्र एक सहस्त्राब्दी बाद खोजा गया. इसके बाद अबतक उत्तरोत्तर अधिक परिष्कृत ऐसे अनेक सूत्र खोजे जा चुके हैं. उदाहरण के लिए, निम्नलिखित अनन्त श्रृंखला का योग देखा जा सकता है:

दुनिया भर के गणितज्ञ पाई के ‘और सटीक मान’ या ‘ज़्यादा सटीक अनन्त शृंखला योग’ के नए-नए उदाहरण पेश करते रहे हैं. कई अनन्त श्रृंखलाएँ बेहद जटिल हैं. इस सन्दर्भ में भारतीय गणितज्ञों में शुल्बसूत्रकारों, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, माधवाचार्य आदि से होते हुए श्रीनिवास रामानुजन और उनके बाद भी तक यह परम्परा कायम है. रामानुजन ने 1914 में ही तेज़ पुनरावृत्त एल्गोरिदम का अनुमान लगाते हुए पाई के लिए दर्जनों नए सूत्रों का प्रतिपादन किया जो अपनी सुन्दरता, गणितीय प्रखरता और तेज़ अभिसरण के लिए उल्लेखनीय थे.

चूँकि पाई वृत्त और गोलाकार निर्देशांक प्रणालियों से सम्बन्धित है इसलिए यह नियमित रूप से ब्रह्माण्ड के मौलिक सिद्धांतों का वर्णन करने वाले समीकरणों में दिखाई देता है. शास्त्रीय यांत्रिकी के क्षेत्र से एक सरल सूत्र देख सकते हैं. एक छोटे आयाम के साथ झूलते हुए L लंबाई के एक सरल पेंडुलम की अनुमानित अवधि T का मान निम्नलिखित सूत्र से प्राप्त किया जा सकता है:

(यहाँ g पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण त्वरण है)

सामान्यतः ऐसा लगता है कि पाई की ज्यामिति की दुनिया के बाहर कोई व्यावहारिक उपयोगिता नहीं है. पाई अन्य सभी संख्याओं से अलग एक विशिष्ट संख्या है जो ब्रह्माण्ड में होने वाली अधिकांश प्रक्रियाओं में एन्कोडेड एक सार्वभौमिक स्थिरांक है, जिसमें जीवन विज्ञान में होने वाली प्रक्रियाएँ भी शामिल हैं. चूँकि इसकी परिभाषा वृत्त से संबंधित है, इसलिए यह त्रिकोणमिति और ज्यामिति के कई सूत्रों में पाया जाता है, खास तौर पर वृत्त (सर्किल), दीर्घवृत्त (एलिप्स) और गोला (स्फीयर) से संबंधित सूत्रों में. यह विज्ञान के अन्य विषयों जैसे ब्रह्माण्ड विज्ञान, खण्डित ज्यामिति, ऊष्मागतिकी, यांत्रिकी और विद्युत चुंबकत्व के सूत्रों में भी पाया जाता है. यह ज्यामिति से बहुत कम सम्बन्ध रखने वाले क्षेत्रों जैसे संख्या सिद्धांत और सांख्यिकी में भी दिखाई देता है और आधुनिक गणितीय विश्लेषण में इसे ज्यामिति के किसी संदर्भ के बिना भी परिभाषित किया जा सकता है. पाई की सर्वव्यापकता इसे विज्ञान के भीतर और बाहर सबसे व्यापक रूप से ज्ञात गणितीय स्थिरांकों में से एक बनाती है.

ऊपर कहा गया है कि पाई जैविकविज्ञान में होने वाली प्रक्रियाओं में भी शामिल है. जहाँ भौतिक विज्ञानी प्रकृति और ब्रह्मांड के गणितीय नियमों की खोज करते हैं, वहीं जैवभौतिकी वैज्ञानिक (बायोफिज़िसिस्ट) जीवन में पैटर्न की तलाश करते हैं और जीवों के काम करने के तरीके के बारे में नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए गणित के साथ उनका विश्लेषण करते हैं. आइए अब जीवन विज्ञान में देखे गए पैटर्न में से एक पर विचार करें. किसी जीव की शारीरिक योजना की उपस्थिति- एक प्रक्रिया जिसे मॉर्फोजेनेसिस कहा जाता है- जीवित प्राणियों की सबसे खास विशेषताओं में से एक है. जानवरों में, भ्रूण कोशिकाओं के लगभग एक समान समूह से एक मस्तिष्क, रीढ़ और अंगों के साथ एक पैटर्न वाली संरचना विकसित होती है. 1952 में, गणितज्ञ और कंप्यूटर विज्ञान के जनक, एलन ट्यूरिंग ने मॉर्फोजेनेसिस के दौरान पैटर्न गठन के सरल जैवभौतिक सिद्धांतों का वर्णन करते हुए एक गणितीय मॉडल प्रस्तावित किया. उन्होंने प्रस्तावित किया कि एक भ्रूण रसायनों (जिन्हें ट्यूरिंग द्वारा मॉर्फोजेन्स कहा जाता है) द्वारा विभिन्न शारीरिक विशेषताओं में प्रतिरूपित हो जाता है, जो ऊतकों के माध्यम से फैलते हैं. सरलतम मामले में, पैटर्न का निर्माण दो मॉर्फोजेन्स, एक उत्प्रेरक और अवरोधक की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होता है. उत्प्रेरक स्वयं प्रवर्धित होता है और केवल स्थानीय रूप से ही फैल सकता है. यह अवरोधक की वृद्धि को भी उत्तेजित करता है, जो बदले में उत्प्रेरक को दबा देता है, और लंबी दूरी तक फैल जाता है. इस सरल प्रणाली के गणितीय विश्लेषण और कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चलता है कि ट्यूरिंग का मॉडल धब्बे और धारियों सहित पैटर्न की एक भ्रामक सरणी का उत्पादन करता है. उत्प्रेरक मॉर्फोजेन धब्बों या धारियों के स्थानीय पैच बनाता है. वास्तव में, यह पशुओं के फर के आवरणों में धारियों और धब्बों के निर्माण, ऊतकों में वर्णक चिह्नों, अंग संरचना और पशुओं की आंत में छोटी उंगली जैसे उभारों के विकास की व्याख्या कर सकता है, जो भोजन को अवशोषित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले आंत्र सतह क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा देते हैं.

पाई, बिना पैटर्न वाली संख्या, पैटर्न के निर्माण में किस तरह की भूमिका निभाती है? अपनी आँखें बंद करें और ज़ेबरा की धारियों की कल्पना करें. उन धारियों का आकार और अंतर एक स्थिरांक द्वारा एनकोड किया जाता है. यह स्थिरांक है पाई. तेंदुए के धब्बों के लिए भी यही बात लागू होती है. ऐसा लगता है कि पाई कई पैटर्न के आकार और अंतर को एनकोड करता है, जो सिर्फ़ जीव विज्ञान के क्षेत्र तक सीमित नहीं है. ट्यूरिंग के मॉडल के कंप्यूटर सिमुलेशन में कई पैटर्न बनते हैं, जिनमें धब्बे और धारियाँ शामिल हैं. पाई आवधिक प्रक्रियाओं में भी गहराई से जुड़ा हुआ है. यह कोशिका विभाजन का समय, हृदय की धड़कन, श्वास चक्र और सोने-जागने के चक्रों को नियंत्रित करने वाले नियमित लय के जैवभौतिकीय नियमों में दिखाई देता है. हालाँकि, यह भौतिकी और जीव विज्ञान के बीच के अंतरफलक पर एक दिलचस्प और रोमांचक विषय है जिसपर शोध जारी हैं.

पाई की एक विशेषता इसका बीजातीत (ट्रांसेंडेंटल) संख्या होना भी है. ट्रांसेंडेंटल शब्द का एक अर्थ अनुभवातीतता या अतिन्द्रियता भी है. यह दर्शन की एक प्रणाली है जो अनुभूति और भौतिकता से परे होकर सहज आध्यात्मिकता पर जोर देती है. क्या ब्रह्माण्ड के साथ (खगोलीय अथवा जैविक दोनों तरह के) पिण्ड का अन्तर्सम्बन्ध भी किसी वृत्त की परिधि की लम्बाई और इसके व्यास की लम्बाई के अनुपात जैसा ही तो नहीं होता? एक ऐसा अनुपात जो हरेक मामले में पाई की तरह ही एक स्थिरांक हो? सम्भव है, ऐसा हो भी.

जो भी हो, पाई के रहस्यमय अनूठेपन पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है. इसे समर्पित कितनी ही पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, और π के अंकों की रिकॉर्ड-सेटिंग गणनाएँ अक्सर समाचारों की सुर्खियों में होती हैं. इसकी सार्वभौमिक महत्ता ऐसी है कि इसके मान; 3.14 या 22/7; को प्रदर्शित करने वाली तारीखों को भी विशेष महत्व दिया जाता है. मार्च माह की 14 तारीख को ‘पाई डे’ और जुलाई माह की 22 तारीख को ‘पाई एप्रोक्सीमेशन डे’ के रूप में चिन्हित किया गया है. इन तारीखों को स्कूलों में बच्चे पाई से सम्बन्धित मज़ेदार क्रियाकलापों का आनन्द उठाते हुए इसके बारे में जानकारियाँ बढ़ाते हैं. 

सुमीता
‘गणित और हिन्दुस्तानी संगीत के अन्तर्सम्बन्ध’ पर शोध.  पत्रकारिता और जन-सम्पर्क में परास्नातक. मशहूर फिल्म पत्रिका “स्टारडस्ट’ में कुछ समय तक एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत. बिहार (डुमरांव, बक्सर) के गवई इलाके में जमीनी स्तर पर जुड़ने के लिए कुछ समय तक ‘समाधान’ नामक दीवार-पत्रिका का सम्पादन.

सम्प्रति अपने शोध से सम्बन्धित अनेकानेक विषयों पर विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ कार्यशालाओं में भागीदारी और स्वतन्त्र लेखन.

पता:  बड़का सिंहनपुरा,  सिमरी (बक्सर). बिहार, पिन: 802120
sumeetauo1@gmail.com

Tags: 2024पाई का रहस्यपाई क्या हैसुमीता ओझा
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Comments 10

  1. सन्तोष कुमार द्विवेदी says:
    11 months ago

    बिल्कुल ठीक कहा आपने । जीवन को समग्रता में देखना और उसके सभी आयामों को अभिव्यक्त करना आवश्यक होना चाहिए, लेकिन लोगों ने खांचे बना लिए । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति …..

    Reply
  2. सुशील मानव says:
    11 months ago

    इस मायने में समालोचन अद्वितीय है।

    Reply
  3. KAIFI HASHMI says:
    11 months ago

    बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक लेख। पढ़ कर दिल ख़ुश हुआ। मेरे लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि ज़ेबरा की धारियों और तेंदुओं के धब्बों के अंतर और आकार के बीच पाई कैसे खुद को व्याख्यायित करती है! इस दिशा में और पढ़ने की ललक जगाने के लिए शुक्रिया।

    Reply
  4. सुशील सुमन says:
    11 months ago

    पढ़ा। बहुत रोचक लेख है। पाई से जुड़ी तमाम महत्त्वपूर्ण जानकारियों से लैस।

    मैट्रिक-इंटरमीडिएट के बाद जिस पाई से रिश्ता ही ख़त्म हो चुका था, ऐसा कि पाई को लगभग भूल ही चुका था, उस पाई की एकदम से सघन याद आ गयी।

    डॉ. सुमीता जी,
    बहुत शुक्रिया इसे लिखने के लिए।

    Reply
  5. Vagish K Jha says:
    11 months ago

    यह लेख pi के विभिन्न आयामों को खोलती हुई इस अद्भुत संख्या के बारे में जो चित्र खींचती है उससे इसके बहुआयामी महत्व का अद्भुत चित्रण है। लेखिका का आभार…

    Reply
  6. प्रवीण झा says:
    11 months ago

    कमाल का लेख। मुझे सुमीता जी का एक और लेख याद आता है, जिसमें उन्होंने अंकों और गणितीय आकारों को आध्यात्म से जोड़ा था। समालोचन पर ही एक-आध साल पहले

    Reply
  7. निशांत कौशिक says:
    11 months ago

    गणित पर इतना सुपाठ्य लेख हिंदी में बहुत सुलभ नहीं है। उन्हें बहुत आभार।

    गणित के सैद्धांतिक विवरण पर मुझे किताब “व्हाट इज मैथेमेटिक्स” याद आती है जो बहुत ही सहज भाषा में लिखी गई है। इसके सिवा ब्रिटिश गणितज्ञ टिमोथी गोवर्स की ऑक्सफोर्ड की “VSI” सीरीज की लघु पुस्तक जो बहुत रुचि जगाती है मैथमेटिकल टेम्परामेंट को लेकर। और अंत में मंजुल भार्गव जो कि सुमीता जी की तरह हिंदुस्तानी संगीत और गणित के विद्वान हैं।

    समालोचन और सुमीता जी का बहुत आभार।

    Reply
  8. Kumar Bijay Gupt says:
    11 months ago

    π के बारे में विस्तृत एवम ज्ञानवर्धक आलेख । π जैसी अद्भुत राशि को कई कोणों से देखने की कोशिश की गई तथा इसकी महत्ता को बताया गया है । इसपर हुए शोध पर भी व्यापक चर्चा ने इस आलेख को संग्रहनीय बना दिया है । इसके लिए सुमिता जी बधाई की पात्र हैं

    Reply
  9. राजेश प्रसाद says:
    11 months ago

    मजा आ गया पाई पर आलेख पढ़ कर।लगा कि जीवन की रचनात्मकता से इसका सीधा संबंध है। कोई भी जीव या जीवन अपने आप में अनूठा होता है।न भूतो न भविष्य । यहां तक कि दो वायरस और जुड़वां बच्चे भी एक जैसे नहीं होते। नेचर हमेशा नई चीजें ही गढ़ता है। मशीनी उत्पाद जैसे दोहराव की यहां गुंजाइश नहीं है।
    फिर मानव की भाषा और रचनाओं में भी यही अनूठापन रहता है।खुद प्रेमचंद फिर से गोदान लिखना चाहते तो वह अन्य रचना हो सकती है गोदान नहीं। हमारी भाषा, शब्दों का चुनाव और अभिव्यक्ति के तहत भी यह रचनात्मकता झलकती है।हम अपने आप में विशिष्ट होते हैं।…. शायद इन सभी में कहीं न कहीं पाई मौजूद है।
    लेखक और संपादक को बहुत -बहुत धन्यवाद।

    Reply
  10. CHANDRA BHUSHAN says:
    11 months ago

    बहुत अच्छा लगा। पाई पर कोई भी चर्चा इंसान को सीमाओं से परे ले जाती है। सुमीता जी के इस लेख में खासकर जैविक दायरे में पाई की भूमिका मेरे लिए चकित करने वाली बात रही। इतनी लंबी विज्ञान पत्रकारिता में एलन ट्यूरिंग का इस मिजाज का कोई भी काम मेरी नजर से नहीं गुजरा था। कार्ल सैगन के साइंस फिक्शन कॉसमॉस में पाई को 11 बेस वाले एक गणित में व्यक्त करने की एक कल्पना की गई है। वहां इसमें कुछ पैटर्न मिलने की बात कही गई है, हालांकि इसकी अपरिमेयता वहां भी सुनिश्चित है। अभी पाई की अभिव्यक्ति हम दशमलव, या फिर बाइनरी सिस्टम में ही देखने के आदी हैं। अन्य नंबर सिस्टम्स में इसकी लिखाई कैसे होती है, मुझे नहीं पता। बहरहाल, आनंद आया और यह विश्वास दृढ़ हुआ कि हिंदी में बिलकुल अलग थलग विषय पर भी रुचिकर लिखा जा सकता है।

    Reply

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