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समालोचन

Home » द मैजिक माउंटेन : लम्बे एकांत का उपन्यास : आयशा आरफ़ीन

द मैजिक माउंटेन : लम्बे एकांत का उपन्यास : आयशा आरफ़ीन

1929 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जर्मन लेखक और कथाकार थॉमस मान के उपन्यास ‘द मैजिक माउंटेन’ (1924) के विषय में यह कहा जाता है कि वह कुछ सौभाग्यशाली लोगों को ही अपने अंदर प्रवेश करने देता है. यह धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ एक बौद्धिक उपन्यास है जो यूरोप के आत्म का विश्लेषण दार्शनिक गहराई में उतरकर करता है. इस उपन्यास का यह शताब्दी वर्ष है. इस विशालकाय उपन्यास का सार प्रस्तुत करते हुए लेखिका आयशा आरफ़ीन जगह-जगह इसका सुंदर विश्लेषण भी करती चलती हैं. प्रस्तुत है.

by arun dev
December 25, 2024
in आलेख
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द मैजिक माउंटेन : लम्बे एकांत का उपन्यास : आयशा आरफ़ीन
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द मैजिक माउंटेन
लम्बे एकांत का उपन्यास
आयशा आरफ़ीन

थॉमस मान का उपन्यास, “द मैजिक माउंटेन” 1924 में प्रकाशित हुआ. हेलेन लोव पोर्टर के द्वारा 1927 में जर्मन से अंग्रेज़ी में पहली बार अनुवाद हुआ. उपन्यास 1907 से 1914 के बीच के वक़्त को दर्शाता है. इस उपन्यास का मुख्य किरदार, हेन्स कैस्टॉर्प है जो एक इंजीनियर है. हेन्स, हैमबर्ग के मैदानी इलाक़े से, स्विट्ज़रलैंड में स्थित डावोस के पहाड़ों पर बसे ‘बर्गोफ़’ चिकित्सालय (सेनाटोरियम) में अपने दूर के रिश्ते के ममेरे भाई, जोअकिम ज़ायमसन (Joachim Ziemssen) से मिलने आया था. वो महज़ तीन हफ़्तों के लिए यहाँ आया था मगर देखते ही देखते सात बरस गुज़र जाते हैं. हेन्स जब चिकित्सालय में आया था, तब उसकी उम्र तेईस साल थी. वो अपने डॉक्टर की सलाह पर आब-ओ-हवा बदलने के लिए डावोस के पहाड़ों पर आता है और किस तरह यहाँ रह कर मानसिक तौर पर परिपक्व होता है, उपन्यास इसी कहानी को पेश करता है. यहाँ आकर हेन्स का प्रेम, आस्था, राजनीति, बीमारी, मौत, वक़्त और यहाँ तक कि सिगरेट जैसी मामूली चीज़ के बारे में, नज़रिया बदल जाता है. उपन्यास का प्लॉट अधिकतर लंबी-लंबी बहसों पर आधारित है. इसमें दर्शन, राजनीति, विज्ञान, बीमारियों के इलाज के लिए नई खोज, मनोविज्ञान, वक़्त को समझने के नज़रिये इत्यादि पर बहसें मौजूद हैं. थॉमस मान ने इस चिकित्सालय के बारे में इतनी बारीकी से लिखा है कि कोई भी बता सकता है कि वो यहाँ रहा है. ये बात छुपी नहीं है कि निजी ज़िंदगी में थॉमस मान की बीवी चिकित्सालय में मरीज की हैसियत से थी और वो उससे मिलने गया था और कुछ दिन वहाँ रहा भी था.

उस ज़माने में तपेदिक/टीबी का कोई इलाज नहीं था. ये आलीशान चिकित्सालय तपेदिक के मरीज़ों के लिए एक उम्मीद था या यूँ कहें कि झूठी उम्मीद, एक क़िस्म का धोखा था. जिस तरह जंग में एक तरह की अनिश्चितता बनी रहती है उसी तरह तपेदिक के मरीज़ों में भी इसी तरह की बेयक़ीनी और बेचैनी बनी रहती थी. कौन ठीक हो कर ‘नीचे की दुनिया’ में जाएगा और कौन मर जाएगा, इसके बारे में क़तई तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता था. यहाँ मरीज़ों में भी जैसे होड़ सी लगी रहती थी कि कौन कितना बीमार है. यूँ भी बुख़ार को तो यहाँ बीमारी माना भी नहीं जाता था. ठंड लगने की शिकायत करनेवालों पर यहाँ लोग हँसते थे. फेफड़ों में सूजन से किसकी खाँसी से कितनी ज़ोर से आवाज़ निकलती है और इस सीटी जैसी आवाज़ से किस तरह यहाँ आए नए लोगों को हैरानी में डाला जा सकता है या डराया जा सकता है, ये यहाँ के लोगों का वक़्त गुज़ारने के तरीकों में से एक साधन मात्र था. यहाँ दिन में पाँच बार स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना खाया जाता, रात को ठंड में बाल्कनी में पश्म/रोवें की चादरों में कुछ घंटों तक आराम किया जाता. कोई मरने की कगार पर हो तो किसी दूसरे मरीज़ को इत्तला नहीं की जाती थी. मरे हुए शख़्स का कमरा गैसीय कीटनाशक से साफ़ किया जाता. हेन्स जब यहाँ नया-नया आया था, तो उसे इन सारी बातों पर बड़ी हँसी आती थी. बाद में वो सब में घुलने-मिलने लगा, यहाँ के तौर तरीक़ों को सीखा. यहाँ के कर्ता-धर्ता, डॉक्टर होफ़्राट बेरेन्स (Hofrat Behrens) ने उसे देखकर पहले ही बता दिया था कि वो यहाँ लंबे अरसे तक रहने वाला है. मगर सवाल ये है कि क्या हेन्स वाक़ई में अपने ममेरे भाई की तरह बीमार था या यहाँ की आराम भरी ज़िंदगी को देख कर बीमारी का नाटक करता रहा?

थॉमस मान ने इस पहाड़ी चिकित्सालय को “ऊपर की दुनिया” और मैदानी इलाक़े को “नीचे की दुनिया” या “फ्लैटलैंड” कहा है. यहाँ से ठीक हो कर कोई नीचे नहीं गया. क्या ये ज़िंदगी और मौत के बीच की कोई दुनिया है? या मरे हुए लोगों की दुनिया? डॉक्टरों को मालूम था कोई ठीक नहीं होनेवाला. मरीज़ों के घरों से मोटी रक़म आती थी. भोग-विलास के सारे साधन यहाँ मौजूद थे. फ्लैटलैंड से एक अहम बात जो यहाँ याद आती है वो है, एडविन अबोट के 1884 में आए “फ्लैटलैंड: अ रोमांस ऑफ़ मेनी डाइमेनशंस” नाम के लघु उपन्यास का किरदार, स्कूएर, जो फ्लैटलैंड में वापस जाकर किसी को भी स्पेसलैंड के अस्तित्व के बारे में समझा नहीं पाता. ये वो माहौल था जहाँ वर्ग के आधार पर, कोई भी 3D/तीन आयामों का प्रचार कर रहा हो, उसके लिए क़ैद या मौत की सज़ा थी. स्कूएर को भी सात साल की सज़ा होती है, जैसे मैजिक माउंटेन का हेन्स सात साल पहाड़ी चिकित्सालय में गुज़ारता है. बहुत मुमकिन है कि थॉमस मान ने अबोट का उपन्यास पढ़ा हो.

‘द मैजिक माउंटेन’ का दूसरा अहम किरदार क्लौडिया शॉशा (Clavdia Chauchet) है. ये किरदार होमर के महाकाव्य ओडिसी की सरसी की याद दिलाती है. क्लौडिया बला की ख़ूबसूरत है मगर साथ ही उसे बेवफ़ा भी दर्शाया गया है. वो शादीशुदा है. वो हेन्स के साथ प्यार भरी बातों से अपना मन बहला कर चिकित्सालय से चली जाती है और बाद में एक नए प्रेमी के साथ वापस लौटती है. यहाँ जेम्स जॉयस के उपन्यास, यूलीसिस (1922), की मॉली ब्लूम का किरदार नज़रों के सामने उभरता है. मॉली ब्लूम अपने शौहर, लिओपोल्ड ब्लूम, से बेवफ़ाई करती है और उसके पीछे एक नया आशिक़ बना लेती है. ये दोनों किरदार, क्लौडिया शॉशा और मॉली ब्लूम, ओडिसी की पेनेलोपी के बिलकुल उलट हैं. पेनेलोपी ओडिसियस से वफ़ा निभाती है मगर ओडिसियस उसके साथ बेवफ़ाई करता है. मॉली का किरदार फिर भी कहीं से मुझे नकारत्मक नहीं लगता मगर क्लौडिया? क्यूँ लगता है कि उसे जानबूझ कर बुरा दिखाने की कोशिश की गई है. उपन्यास में उसे अपने शौहर की तरह फ़्रेंच दिखाया जा सकता था मगर उसे रूसी किरदार में ढाला गया. उपन्यास में रूस (या यूरोप के पूरबी इलाक़े) के लोगों को जाहिल दिखाने की कोशिश की गई है. कई किरदारों के ज़रिये थॉमस मान ने इसको साबित करने की कोशिश भी की है. जैसे एक रूसी जोड़ा जो हेन्स के कमरे के बग़लवाले कमरे में रहता है जब ज़ोर-ज़ोर से हँसते-बातें और मोहब्बत करता है तो हेन्स चिढ़ता है, परेशान होता है और उन्हें जाहिल कहता है. क्लौडिया की बाहरी ख़ूबसूरती की काफ़ी तारीफ़ की गई है. उसकी किरगिज़ी आँखों की बातें की गई हैं (p.140, ये ठीक से नहीं कहा जा सकता कि ये तारीफ़ में कहा गया है या नहीं) मगर उसके तौर-तरीक़े जाहिलाना दिखाने की कोशिश की गई है, जो खाने के कमरे में दाख़िल होते वक़्त शोर के साथ दरवाज़ा खोलती है और धड़ाम से दरवाज़ा बंद करती है. क्या थॉमस मान ये दिखाना चाहता है कि दरवाज़े बंद करना उसकी फ़ितरत है? यानी कि किसी को छोड़ देना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं. और ये कि वो पीपरकॉर्न जैसे बूढ़े मगर रईस शख़्स के साथ भी सिर्फ़ मौज-मस्ती के लिए है. इससे पहले भी एक प्रसंग है जहाँ होफ़्राट बेरेन्स ने क्लौडिया की तस्वीर बनाई थी. इस तस्वीर से ये अंदेशा होता है कि क्लौडिया जिस्मानी तौर पर होफ़्राट बेरेन्स के भी नज़दीक आ चुकी थी.

या फिर क्लौडिया पश्चिमी रूढ़िवादिता के बरअक्स मौजूद एक रूपक है, जो सेक्स-संबंध को दबाने के खिलाफ़, या समलैंगिकता के खिलाफ़, बेपरवाह हो कर बेखौफ़ खड़ी है? क्लौडिया के इस पहलू का अंदाज़ा उसके इस बयान से भी होता है जब वो कहती है कि तुम यूरोपीय लोग आज़ादी से ज़्यादा अनुशासन में भरोसा करते हो. तुम लोग आज़ादी के सही मानी को नहीं समझ पाए. वो इशारे में ये भी बताती है कि मैं आज़ादी का जश्न मनाती हूँ, ये अलग बात है कि ये आज़ादी मुझे बीमार होने की वजह से मिली है.

क्लौडिया के नकारात्मक चरित्र के खिलाफ़ एक तर्क ये भी है कि क्लौडिया हेन्स को अपने हाई स्कूल के जमाने की मोहब्बत, प्रिबीस्लाव हिप्पे नाम के एक लड़के की याद दिलाती थी. यहाँ थॉमस मान की मशहूर लंबी कहानी ‘डैथ इन वेनिस’ याद आती है जहाँ अधेड़ उम्र का लेखक, आइशनबैक, ताज़्ज़िओ नाम के एक नौजवान लड़के के पीछे दीवाना था. थॉमस मान के बारे में अब सबको मालूम ही है कि वो समलैंगिक था, मगर कहा जाता है उसके ये रिश्ते प्लेटोनिक ही रहे. ऐसे में थॉमस मान इस औरत को बुरा कैसे दिखा सकता है?

क्लौडिया हेन्स के इतालवी दोस्त, सेटेम्ब्रिनि, को पसंद नहीं करती. उधर सेटेम्ब्रिनि भी हेन्स को क्लौडिया के चक्कर में पड़ने से आगाह करता है. यहाँ इस अहम बात का ज़िक्र भी होता है कि कैसे लिलिथ, आदम की पहली बीवी, ने सेक्स के दौरान उसके नीचे आने से मना कर दिया था. बाद में हव्वा (Eve) से आदम की शादी हुई. सेटेम्ब्रिनि क्लौडिया को लिलिथ के मिथक से जोड़ता है जो मर्दों को खा जाती है जबकि वो उससे कभी मिला भी नहीं था. हेन्स अपने दोस्त की बात नहीं मानता और क्लौडिया के सामने आख़िरकार, सात महीनों के इंतज़ार के बाद, अपनी मोहब्बत का इज़हार करता है. वो लगभग उसके क़दमों में गिर पड़ता है और मोहब्बत की दुहाई देता है. इसी दौरान क्लौडिया उसे बताती है कि वो यहाँ से कल जा रही है. अब इस मोड पर आ कर दोनों की नयी यात्रा शुरू होती है- थॉमस मान के हिसाब से हेन्स ज्ञान मार्ग पर चलता है और क्लौडिया अपने भोग-विलास के अगले क़दम पर.

‘द मैजिक माउंटेन’, होमर के महाकाव्य ओडिसी की बार-बार याद दिलाता है. सेटेम्ब्रिनि जब हेन्स से घर वापस जाने की सलाह देता है, तब कहता है, तुम ओडिसियस नहीं हो कि सुरक्षित रहोगे (p.245). ऊपर की दुनिया का सीधा ताल्लुक मरे हुए लोगों की दुनिया से होने का एक और उदाहरण ये है कि सेटेम्ब्रिनि हेन्स से पूछता है क्या तुम ओडिसियस, जो भूतों की दुनिया में गया था, की तरह यहाँ मेहमान हो? (p.56). सरसी ओडेसियस के साथियों को सूअर में तब्दील कर देती है, और ‘द मैजिक माउंटेन’ में क्लौडिया भी सेटेम्ब्रिनि को नापसंद करती है. कमाल की बात ये है कि क्लौडिया से जिस दिन हेन्स अपनी मोहब्बत का इज़हार करता है उस अध्याय का नाम ‘वलपरजिस नाइट्स’ रखा है. जर्मन लोककथाओं के हिसाब से, इस रात को चुड़ैलें शैतान के साथ मिलकर ब्रोकेन/ब्लॉक्सबर्ग पर्वत पर खुशियाँ मनाती हैं और बहार/वसंत के मौसम का इंतज़ार करती हैं. आम मत के हिसाब से ये वो रात थी, जिसके अगले दिन सेंट वलपरगा (सेंट वलपरगा एक स्त्री हैं) को मरणोपरांत सेंट की उपाधि से नवाज़ा गया था. थॉमस मान के हिसाब से क्लौडिया सेंट तो क़तई नहीं थी. तो क्या वो चुड़ैल थी? मगर वो हेन्स (हेन्स का किरदार खुद लेखक मान से मिलता-जुलता हुआ किरदार है) को हाई स्कूल के ज़माने के उस नौजवान लड़के की याद दिलाती थी जिससे हेन्स मोहब्बत करता था. इस लिहाज़ से वो चुड़ैल भी नहीं है.

जिस तरह हम रात को समझने के लिए दिन का सहारा लेते हैं, ग़म को समझने के लिए ख़ुशी का और आज़ादी को समझने के लिए क़ैद को जानना होता है, उसी तरह थॉमस मान भी ज़िंदगी को समझने के लिए मौत का सहारा लेता है, तपेदिक से धीरे-धीरे खत्म होते लोगों का सहारा. वो कहता है मौत और बीमारी में दिलचस्पी होगी तभी आप ज़िंदगी को समझ पाएँगे. हेन्स यहाँ रहते-रहते चीज़ों को बारीकी से देख रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है. चार लोगों से वो दुनिया और क़ुदरत को समझने की कोशिश कर रहा है. वो चार लोग हैं- डॉक्टर बेरेन्स, डॉक्टर क्राकोवस्की, लूडोविको सेटेम्ब्रिनि और लियो नेफ़्ता. डॉक्टर बेरेन्स से वो पूछता है कि शरीर क्या है, खाल क्या है, इंसान का वजूद क्या है? तो होफ़्राट बेरेन्स का सीधा-सा जवाब होता है, “पानी”. (बाद में क्लौडिया से बात करते वक़्त हेन्स प्रोटीन का ज़िक्र भी करता है.)

डॉक्टर बेरेन्स के हिसाब से इंसान में आत्मिक या बौद्धिक जैसा कुछ नहीं होता, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ पानी है. उधर दूसरी तरफ़, डॉक्टर क्राकोवस्की कई जगह सिगमंड फ़्रायड की याद दिलाता है. क्राकोवस्की का मानना है कि सारी बीमारियाँ मोहब्बत के बदलते स्वरूप का हिस्सा हैं. कहीं न कहीं हर बीमारी, एक तरफ़ मोहब्बत की ताक़त और दूसरी तरफ़ जिस्मानी रिश्तों को दबाने की वजह से उपजी कश्मकश का ज़ाहिरी रूप है या यूँ कहें कि उसकी अभिव्यक्ति है. जब मोहब्बत डर, पवित्रता, नैतिकता और विरोध की ज़ंजीरों में जकड़ ली जाती है, तब वो किसी न किसी बीमारी के रूप में उभरती है. बीमारी के जो लक्षण होते हैं, वो दरअसल मोहब्बत की ताक़त का इज़हार होते हैं. डॉक्टर क्राकोवस्की आगाह करता है कि यौन इच्छाओं को दबाने के नतीजे बड़े ही संगीन साबित हो सकते हैं. क्लौडिया से मोहब्बत का इज़हार करने के बाद और अगले ही दिन क्लौडिया का वहाँ से चले जाने के बाद किस क़दर हेन्स के बुख़ार में तेज़ी आ जाती है. जहाँ वो दोनों उस रात कुछ हद तक क़रीब आए थे, अगले ही दिन हिज्र झेलना था. ऐसी कैफ़ियत न मन बर्दाश्त कर सकता था न ही जिस्म.

इस उपन्यास में हेन्स सीखता है कि वक़्त वही है जो हमें प्रतीत होता है. वक़्त धीमी रफ़्तार से चल रहा है या तेज़ भाग रहा है, ये महज़ हमारा एहसास है, बस हमारी धारणा. वक़्त की धारणा वक़्त से जीत जाती है. कुछ साल पहले मैंने अस्सी के दशक में पैदा हुए लोगों से (जो नब्बे की दशक में बड़े हो रहे थे) पूछा था कि उन्हें कौनसा दशक किस तरह याद आता है. कमाल की बात है 2000 से 2010 तक का वक़्त सब भूल गए थे. जबकि मेरी अपनी ज़िंदगी में इस बीच का वक़्त अहम है, मगर क्या वजह है कि मुझे भी ये दशक याद नहीं था. घटनाएँ याद करने पर सबको याद थीं, मगर 1990 के बाद लोग सीधे 2010 के बाद के वक़्त की बात कर रहे थे. वजह कुछ भी हो, मगर वक़्त की धारणा देखिये. इसी तरह कोरोना काल को याद कीजिये. क्या ऐसा नहीं महसूस हो रहा था कि वक़्त ठहर गया है? किसी तरह ज़्यादातर लोगों की ज़िंदगी से वो दो-तीन साल ग़ायब हो गए हैं. हालिया मलयालम फ़िल्म ‘लेवल क्रॉस (2024) में भी जहाँ जॉर्ज एक सुनसान इलाक़े में बिल्कुल अकेला रह रहा होता है, वहाँ जब एक औरत आती है तो वो उसे बताता है कि मुझे यहाँ वक़्त और सालों के गुज़रने का एहसास नहीं होता. वक़्त तेज़ी से गुज़रती हुई रेलगाड़ी की तरह गुज़र जाता है. मशहूर फ़िल्म ‘कास्ट अवे’ (2000) में नोलेंड के चार साल कैसे गुज़रते हैं ये सभी जानते हैं. उसके लिए वक़्त के क्या मानी थे? ‘द मैजिक माउंटेन’ के शुरूआती तीन साल का मान ने तफ़सील/विस्तार से बयान किया है मगर बाद के चार सालों को जल्दी निपटा दिया. इसके पीछे भी यही वजह मालूम होती है कि पहले लोगों को ठीक होने की उम्मीद थी, बाद में वो उम्मीद ख़त्म हो जाती और ज़िंदगी में एकरसता की वजह से वक़्त तेज़ी से गुज़रता है मगर उसके गुज़रने का एहसास नहीं होता.

हेन्स इस बात पर गौर करता है कि अगर वक़्त बदलाव नहीं लेकर आता है; अगर वक़्त एक चक्र में घूमता है और अपने-आप पर ही बंद होता है, तो फिर ‘बदलाव और गति’ असल में ‘ठहराव और स्थिरता’ के ही समानार्थी हुए. जो पहले हुआ था, वो ‘अब’ में दोहराया गया; ‘वहाँ’ और ‘यहाँ’ दोनों एक समान हुए. ‘दोबारा’ और ‘फिर एक बार’, ‘हमेशा’ और ‘अनंतकाल’ के समान हुए. हर गति वृत्तीय है. अनंतकाल सीधा न चलकर, एक चक्र में घूमता है (p.370). इस बात से ये ख़याल आता है कि क्या इसी वजह से मंदिरों में प्रदक्षिणा की जाती है (ब्रह्म ही वक़्त का निर्माता है. सतरूपा ने ब्रह्म के गिर्द जो परिक्रमा की थी, वो पहली प्रदक्षिणा थी.), काबा में तवाफ़ और स्तूपों के बाहर परिक्रमा की जाती है. पश्चिम में विंटर सोलस्टिस (फ़ीस्ट ऑफ़ सोलस्टिस का ज़िक्र ‘द मैजिक माउंटेन’ में ही कहीं आया है) और हमारे यहाँ संक्रांति, दोनों ही संस्कारों में अग्नि के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने की वजह भी यही जान पड़ती है. विंटर सोलस्टिस को हाइबरनल सोलस्टिस भी कहा जाता है. तपेदिक के मरीज़ों के लिए भी ये चिकित्सालय हाइबरनेशन का काम कर रहा है. यहाँ से आदमी कहीं नहीं जाता. फ्लैटलेंड में चला भी गया तो वापस यहीं आता है और यहीं मरता है.

इस उपन्यास में सेटेम्ब्रिनि और नेफ़्ता के किरदार काफ़ी अहमियत रखते हैं. हेन्स ने सेटेम्ब्रिनि को लगभग अपना उस्ताद मान लिया था. सेटेम्ब्रिनि जब चिकित्सालय छोड़कर पहाड़ी से ज़रा नीचे (फ्लैटलेंड नहीं), एक गाँव में रहने जाता है, वहीं पास में लियो नेफ़्ता भी रह रहा होता है. नेफ़्ता की बातें भी हेन्स को काफ़ी हद तक ठीक लगने लगी थीं. अब ये दोनों, हेन्स की नज़रों में, अपने आप को सही ठहराने के लिए वाद-विवाद करते रहते हैं. दोनों हेन्स की आत्मा पर जीत हासिल करना चाहते हैं. नेफ़्ता का मानना था कि इंसान बुनियादी तौर पर बुरा है और समाज भ्रष्ट. उसके ख़याल से बीमारी इंसान के लिए नेमत है क्यूंकि ये जहाँ जिस्म को ख़त्म करती है, वहीं दिमाग को आला कर देती है. इससे बीमार इंसान को दूसरों से हमदर्दी हासिल होती है. वहीं सेटेम्ब्रिनि का मानना है कि बीमारी कोई नेमत नहीं है, बीमारी मनुष्य को सिर्फ़ एक शरीर में तब्दील कर देती है, जहाँ आत्मा का कोई वजूद नहीं है.

नेफ़्ता एक उग्र जेसूईट था जो पश्चिमी पूंजीवादी समाज से नफ़रत करता था. जेसूईट ईसाई धर्म के अंतर्गत एक पंथ, सोसाइटी ऑफ़ जीज़स, के सदस्य होते हैं. इस पंथ की स्थापना सेंट इग्नासियस लोयोला ने की थी. नेफ़्ता, सेटेम्ब्रिनि के पूंजीवादी लोकतंत्र के यक़ीन के खिलाफ़ अपने तर्क पेश करता है. आख़िर में वो ये एलान करता है कि आगे बढ़ने का एकलौता रास्ता दहशतगर्दी है. पश्चिमी समाज, जो सत्तावादी और तर्कहीन तरीक़े से बनाया गया है, की मुकम्मल तबाही ज़रूरी है.

सेटेम्ब्रिनि विद्वान, पूंजीपति और मानवतावादी था. साथ में एक फ़्री मेसन भी था. ये बात उसने हेन्स को पहले नहीं बताई थी, जबकि नेफ़्ता के जेसूईट होने की ख़बर उसी ने लगभग चुग़ली के लहजे में हेन्स को दी थी. इसी तरह बाद में नेफ़्ता ने भी सेटेम्ब्रिनि के फ़्री मेसन होने की ख़बर हेन्स को दी. फ़्रीमेसनरी भाई-चारे (यहाँ औरतों को जगह नहीं मिलती) का वो पंथ है जो खुफ़िया तरीक़े से सभा  करता है. सभा की जगह को लॉज कहा जाता है. ये लोग ईसाई भी हो सकते हैं, मुसलमान भी. मगर इनके अपने धर्मों को मानने का तरीक़ा अलग है. ये अपने कुछ रीति-रिवाज बाहरवालों को नहीं बताते और जो ऐसा करता है उसके लिए कड़ी से कड़ी सज़ा है. इनके खिलाफ़ जो लोग हैं, उनका मानना है कि ये लोग इस्लामी किताबों में नक़ली मसीहों को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं और अल अक़्सा मस्जिद के प्रांगण में सुलेमान/सोलोमन का तीर्थ स्थान या मंदिर बनाना चाहते हैं. इससे प्रभावित होकर हमास जैसे संगठन ने कहा है कि फ़्रीमेसन यहूदीवाद फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

फ़्रीमेसन के खिलाफ़ खड़े होनेवाले कई केथोलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों ने ये भी कहा है कि ये लोग स्थापित धर्मों के खिलाफ़ हैं और जादू-टोना और रहस्यवाद (mysticism) को बढ़ावा दे रहे हैं. वाम पंथ और दक्षिण पंथ, दोनों ने ही फ़्रीमेसनरी की कड़ी निंदा की है. सेटेम्ब्रिनि ने मरने के बाद दफ़न के बदले दाह-संस्कार पर ज़ोर दिया था (p. 456-57). नेफ़्ता के हिस्साब से मौत को या मौत के संस्कारों को इतना तरजीह देना ठीक नहीं है. जहाँ मौत की सज़ा सुनाई जाती है, सेटेम्ब्रिनि यातना के खिलाफ़ था मगर नेफ़्ता के हिसाब से यातना ज़रूरी है. वो कहता है असल चीज़ आत्मा है और शरीर को तकलीफ़ पहुँचा कर आत्मा को ये एहसास दिलाया जा सकता है कि इसे (आत्मा को) आध्यात्म से ही सुख की प्राप्ति हो सकती है. यहाँ वो इस बात के समर्थन में बताता है कि सेंट एलिज़ाबेथ पर किस तरह कोड़े बरसाए गए थे और बाद में उन्होने ख़ुद एक बूढ़ी औरत पर कैसे कोड़े बरसाए थे (p.454-55).

नेफ़्ता ने सेटेम्ब्रिनि पर अद्वैतवाद (monism) के विधर्म (heresy) का आरोप लगाया. उधर सेटेम्ब्रिनि ने नेफ़्ता पर द्वैतवाद (dualism) और विश्व-विभाजन (world-splitting) का आरोप लगाया. दोनों व्यक्ति के पक्ष में खड़े होने का दिखावा करते हैं. हालाँकि नेफ़्ता व्यक्ति की शाश्वत आत्मा के लिए खड़ा होता है, न कि यहाँ धरती पर व्यक्ति के हक़ या शक्तियों के लिए. दोनों सत्य के लिए खड़े हैं; हालाँकि नेफ़्ता के हिसाब से सत्य तर्क की पहुँच के बाहर है, सत्य का एकमात्र प्रमाण है रहस्योद्घाटन; न ही क़ानून या रीति-रिवाजों का उचित रूप से निर्माण मानव परिषदों का काम है, क्यूंकि सिर्फ़ एक ही क़ानून चिरस्थायी है, वो है ईश्वर का, जिसे सख़्ती से, चुने हुए लोगों द्वारा, लागू किया जाना है. (p.388, Creative Mythology, The Masks of God, Vol.4, 1991 edition)

सेटेम्ब्रिनि के किरदार को मज़ीद समझने के लिए यहाँ फिर से जोसेफ़ कैम्पबेल की मदद लेनी होगी. कैम्पबेल ने “द मास्क्स ऑफ़ गॉड” के चौथे खंड, ‘क्रिएटिव मिथोलोजी’ में लिखा है कि थॉमस मान सेटेम्ब्रिनि का एक शैतान के रूप में हम से परिचय करवाता है. उसने उसे बड़बोले तरक़्क़ी पसंद (rhetorical progressive) का पायड पाइपर (Pied Piper) बताया है. मगर उसका नाम ‘सेप्टेम्ब्राइज़र’ (Septembriser) की तरफ़ इशारा कर रहा है, जिसका अर्थ है, ‘निर्दयता/क्रूरता के साथ हत्या करना’. (यहाँ पेरिस के जेलों में राज-भक्तों के क़त्ल की बात हो रही है जो 2-6, सितम्बर, 1792 में हुए थे.) जो रिश्ता मेफिस्टोफिलीस का फ़ाउस्ट के साथ था, वो ही रिश्ता सेटेम्ब्रिनि का हेन्स के साथ है; वो वक़्त-वक़्त पर हेन्स को मशवरे देता और उसकी मदद करता ताकि उसकी आत्मा पर विजय पा सके, मगर उसकी इच्छाशक्ति को समझने या उस पर जीत पाने में वो असमर्थ ही रहा (ibid, p.383).

हेन्स का कज़न, जोअकिम ज़ायमसन एक सिपाही था और उसका दिल फ़ौज में ही लगा था. पहले वो नीचे की दुनिया से चिकित्सालय में आता है. फिर ठीक न हो पाने और नीरस ज़िंदगी से उकताकर फ्लैटलेंड में वापस चला जाता है. मगर वहाँ तबीयत के और बिगड़ जाने की वजह से कुछ ही महीनों में पुनः चिकित्सालय में आ जाता है और यहाँ उसकी मृत्यु हो जाती है. कई और लोग भी मरते हैं. उपन्यास के आख़िर में अनिश्चितता और नीचे जंग के शुरू होने के कारण, सारे मरीज़ आपस में लड़ने लगते हैं. हेन्स, जो सेटेम्ब्रिनि के बार-बार कहने पर भी नीचे नहीं गया, जो क्लौडिया और अपने ममेरे भाई के नीचे जाने पर भी क्लौडिया के इंतज़ार में यहीं ठहर गया था, जो क़ुदरत का नाज़ुक बच्चा कहलाता था, आख़िरकार जंग में लड़ने के लिए नीचे की दुनिया में जाने को तैयार हो जाता है. उसे कई तरह के इल्हाम होते हैं. हेन्स एक जगह सोचता है कि हम अपने-अपने तरीक़े से सामूहिक रूप से ख़्वाब देखते हैं. हम जिस महान आत्मा का हिस्सा हैं, वो हमारे ज़रिये ख़्वाब देखती है (p. 494).

यहाँ हमें एक तरफ़ तो सिगमंड फ़्रायड का स्वप्न विश्लेषण याद आता है, वहीं दूसरी तरफ़ वेदान्त का दर्शन. इन्सान ईश्वर को तभी जान सकता है जब वो ख़ुद को ठीक से समझ पाये. ‘द मैजिक माउंटेन’ को एक वाक्य में कहा जाए तो ये होगा कि ये हेन्स के ख़ुद के वजूद को जानने-समझने का आख्यान है. हेन्स की ज़िंदजी में तीन अहम मोड़ (जिसे अर्नोल्ड वेन जेनेप ने rites of passage नाम दिया है) आते हैं: विरह (separation), दीक्षा संस्कार (initiation) और वापसी (return). जेम्स जॉयस ने अपने उपन्यास ‘फ़िनेगंस वेक’ में इसे ‘मोनोमिथ’ कहा है. बाद में केम्पबेल ने इसे ‘द हेरो विद अ थाउज़ेन्ड फ़ेसेस’ में ‘nuclear unit of the monomyth’ कहा है.

‘द मैजिक माउंटेन’ के दो अहम किरदार, नेफ़्ता और पीपरकॉर्न ख़ुदकुशी कर लेते हैं. जहाँ नेफ़्ता के मरने की वजह पेचीदा है और उसकी हम अटकलें ही लगा सकते हैं, वहीं पीपरकॉर्न के मरने के पीछे ये वजह है कि वो बूढ़ा हो गया है और अब उसे ये समझ में आ गया है कि उसे किसी नौजवान के लिए जगह खाली कर देनी चाहिए. पुरोहित-शासक जब बूढ़ा हो जाता है और उसकी जादुई ताक़त या उसकी यौन शक्ति क्षीण पड़ जाती है, तब एक जवान और क़ाबिल मर्द उसकी जगह ले लेता है. “द गोल्डेन बाउ” में जेम्स जॉर्ज फ़्रेज़र ने बताया है कि प्रथा के तहत बूढ़े शासक को एक युवक द्वारा द्वंदयुद्द में हराया जाता है और मार दिया जाता है. जबकि ‘द मैजिक माउंटेन’ में बिल्कुल उलट होता है. हेन्स को छोड़कर, क्लौडिया बूढ़े पीपरकॉर्न के साथ होती है. हेन्स में और पीपरकॉर्न में द्वंदयुद्ध तो नहीं, मगर उदारता की लड़ाई थी. ये अलग बात है कि हेन्स के हाथ कुछ नहीं आता. पीपरकॉर्न के मरने के बाद भी क्लौडिया उसे हासिल नहीं होती. वो नीचे की दुनिया में वापस चली जाती है. एक ख़याल यहाँ ये भी आता है कि किसी हद तक नेफ़्ता और सेटेम्ब्रिनि में भी तो उदारता की लड़ाई थी. यहाँ ये देखना मज़ेदार है कि किस तरह एक तरफ़ तो औरत को हासिल करने की लड़ाई है और दूसरी तरफ़ बौद्धिक मतभेद है. औरत को हासिल करने की लड़ाई (क़ुदरत) में तो दोनों प्रतिद्वंद्वी एक दूसरे की इज्ज़त करते हैं मगर बौद्धिक मतभेद या यूँ कहें कि संस्कृति की लड़ाई पिस्तौलबाज़ी में तब्दील हो जाती है. दोनों का मूल भाव वही है जो ‘द गोल्डेन बाउ’ का केंद्रीय मुद्दा है, मरते हुए और पुनर्जीवित होनेवाले ख़ुदा का.

सेटेम्ब्रिनि और नेफ़्ता बंदूक लिए एक-दूसरे के सामने होते हैं, दोनों के साथ एक-एक साथी और होते हैं. हेन्स को आग़ाज़ का बिगुल बजाना था मगर उसने युद्ध के लिए बिगुल बजाने से इन्कार कर दिया. सेटेम्ब्रिनि ऊपर हवा में गोली चलाता है, नेफ़्ता अपनी कनपटी पर. नेफ़्ता का मानना था कि आत्मा शरीर से ऊपर है. वो शायद चाहता था सेटेम्ब्रिनि उसे मार दे और इस तरह वो महान बन जाएगा . मगर सेटेम्ब्रिनि ने हवा में गोली चला दी. अब इससे ज़्यादा और अलग वो क्या कर सकता था? दोनों लड़ाई के मैदान में थे. इसलिए वो अपने आपको गोली मार कर जीत गया. हम बाद में देखते हैं सेटेम्ब्रिनि काफ़ी हद तक नेफ़्ता के मत को मानने लगा था. वो अचानक से हिंसा, जंग और अनुशासन का हिमायती बन जाता है.

अंत में ‘द मैजिक माउंटेन’ शीर्षक पर कहा जा सकता है कि इसके पीछे एक मिथकीय संदर्भ मौजूद है, वो है, वो जादुई गुफ़ा जहाँ मोहब्बत के नग़में गाने वाले, तेनहाउज़र, को सात सालों के लिए क़ैद किया गया था (वो, कुछ हद तक, अपनी मर्ज़ी से यहाँ क़ैद था). तेनहाउज़र, मोहब्बत की देवी, वीनस की जादुई गुफ़ा (जो माउंट होर्ज़ेलबर्ग के नीचे थी) में एक साल गुज़ारने के बाद, इंसानी दुनिया में वापस जाना चाहता था. वो वीनस के प्यार और सम्मान में एक गीत गाता है मगर उस गीत के आख़िर में वो उसे यहाँ से जाने देने के लिए गुहार लगाता है. इस बात से वीनस हैरान होती है और उसे फिर रिझाने की कोशिश करती है. इसमें असफल होने पर वीनस उसे बददुआ देती है कि उसे कभी भी मोक्ष प्राप्त न हो. जब तेनहाउज़र यहाँ से निकल जाता है, एलिज़ाबेथ उसके इंतज़ार में होती है. मगर बाद में वो भी कहती है कि उसे मोक्ष सिर्फ़ पश्चाताप से ही मिल पाएगा. आख़िर में वो वीनस से फिर से गुहार लगाता है कि वो उसे वापस बुला ले. वो उसे बुला लेती है, तब तेनहाउज़र के दिल से एलिज़ाबेथ की आवाज़ आती है (पहले तेनहाउज़र का दोस्त, वोल्फ़्राम उसे एलिज़ाबेथ की याद दिलाता है).

उधर जब अंतिम संस्कार के शोकगीत की आवाज़ आती है, तब वोल्फ़्राम को एहसास होता है कि एलिज़ाबेथ की मौत से ही तेनहाउज़र को मोक्ष प्राप्त होगा. वोल्फ़्राम कहता है, हाइनरिक (तेनहाउज़र का असल नाम हाइनरिक था) तुम बच गए. उधर वीनस कहती है, हम हार गए. आख़िर में एलिज़ाबेथ के मृत शरीर के पास वो दम तोड़ देता है. वैगनर के नाटक, “तेनहाउज़र”, में पवित्र और अपवित्र प्रेम के साथ-साथ प्रेम के पथ से होते हुए, मुक्ति की बात की गई है. इसी तरह हेन्स भी शुरू-शुरू में बेर्गोफ़ से जाना चाहता था मगर क्लौडिया के सम्मोहन में यहीं रह गया था. क्लौडिया ‘eternal feminine principle’ का मिथकीय प्रतीक है, जो सहनशील है, जिसमें ऐसा दिव्य ज्ञान और रचनात्मक शक्ति है जो आदमी के पहुँच के बाहर है. वो धरती माँ का ही एक रूप है. Eternal feminine की अवधारणा सबसे पहले गोएटे ने ‘फ़ाउस्ट’ (1832) में दी थी. हेन्स भी प्रेम के पथ पर चलने के बाद, उसमें धोखा खाने के बाद ही, ज्ञान मार्ग तक पहुँचता है और मोक्ष हासिल करता है.

______

आयशा आरफ़ीन

जे.एन.यू. , नई दिल्ली से समाजशास्त्र में एम्.ए, एम्.फ़िल और पीएच.डी. हिंदी की कई पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित. हिंदी और अंग्रेजी पत्रिकाओं में लेख एवं अनुवाद प्रकाशित.
ayesha.nida.arq@gmail.com

Tags: 20242024 आलेखआयशा आरफ़ीनथॉमस मानद मैजिक माउंटेन
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Comments 5

  1. अशोक अग्रवाल says:
    5 months ago

    उपन्यास की प्रस्तुति शानदार है। इस उपन्यास के महत्व का पता चलता है।

    Reply
  2. विनोद तिवारी says:
    5 months ago

    किसी लेखक को याद करने का यह सबसे अच्छा तरीक़ा है । हेन्स क बारे में जो आख़िरी पंक्ति है, वह हेन्स के साथ-साथ अनगिनत लोगों पर लागू होती है । यह दीगर बात है कि हेन्स को ‘मोक्ष’ भी प्राप्त हो गया । वैसे ‘ज्ञान’ ही प्राप्त हो जाना किसी मोक्ष से कम नहीं है ।

    Reply
    • Ayesha Arfeen says:
      5 months ago

      Vinod Tiwari धन्यवाद। आपने पढ़ा लेकिन ये दीगर बात है कि ज़ेहन “मोक्ष” पर अटक गया। मुझे लगता है द मैजिक माउंटेन आपको पढ़ना चाहिए। फिर शायद आपको मोक्ष को इनवर्टेड कॉमा में न लिखना पड़ता। आपके ज़ेहन में मोक्ष के क्या मतलब हैं मुझे नहीं मालूम। ये दीगर बात है कि इसे अलग अलग तरीक़े से परिभाषित किया जा सकता है।

      Reply
  3. हीरालाल नागर says:
    5 months ago

    थाॅमस मान के उपन्यास ‘दी मैजिक माउंटेन’ की विषय वस्तु पर इतनी गंभीर चर्चा और बातचीत रखने का कुल आशय यही निकलता है यह एक कोई अलौकिक उपन्यास है जो लौकिक दुनिया के पार कोई दूसरी दुनिया भी है इंसान की मुक्ति के लिए।
    उपन्यास की थीम को समझने में भाषा ही एक माध्यम है पर शायद इतना ही काफी नहीं। उपन्यास के प्रयोजन को समझने को इतना ही काफी नहीं। इसके लिए कुछ और करना होगा। बहरहाल, प्रयास सराहनीय है।

    Reply
  4. Tarun Bhatnagar says:
    5 months ago

    पहले कभी पढ़ा था और TB वाले एक तरह से asylam और पहाड़ों पर रहने वाले एक शख्स तक जहाँ यह जाना चाहता है तमाम विवरण हैं. युद्ध की स्थितियाँ और अकेलेपन की तमाम बातें हैं जो कहीं-कहीं अबूझ और जटिल हैं. पठनीयता लगभग नहीं है, हो सकता है यूरोप का उस दौर का कोई स्थानीय परिवेश हो जो इसके सार्वभौमिक होने को रोकता हो.

    Reply

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