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Home » मणि मोहन की कविताएँ

मणि मोहन की कविताएँ

पेंटिग : Persian painter Parviz Kalantari कविताएँ अपने मन्तव्य तक की यात्रा में कम से कम जगह घेरती हैं. वे कुछ भी अन्यथा लेकर नहीं चलती और कुछ भी अतिरिक्त नहीं करती हैं. वे भाषा की मितव्ययिता की चरम हैं. सबसे सुंदर कविताएँ कब्रों पर लिखी जाती हैं. मणि मोहन की कविताओं को पढ़ते हुए […]

by arun dev
July 14, 2017
in कविता
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पेंटिग : Persian painter Parviz Kalantari
कविताएँ अपने मन्तव्य तक की यात्रा में कम से कम जगह घेरती हैं. वे कुछ भी अन्यथा लेकर नहीं चलती और कुछ भी अतिरिक्त नहीं करती हैं. वे भाषा की मितव्ययिता की चरम हैं. सबसे सुंदर कविताएँ कब्रों पर लिखी जाती हैं.

मणि मोहन की कविताओं को पढ़ते हुए यह अहसास बराबर बना रहता है. आकार में ये छोटी कविताएँ अर्थ में बड़ी हैं. इनकी अनुगूँज देर तक बनी रहती है.


मणि मोहन की कविताएँ                          





याद

 

बहुत दिनों बाद
किसी की याद आयी …
जैसे कोई जरूरी किताब ढूंढते हुए
बेतरतीब किताबों से निकलकर
फड़फड़ाते हुए
फर्श पर गिर जाए
कोई अधूरी पढ़ी किताब !


रात की बारिश

कुछ और बढ़ गई उदासी
रात की बारिश ने
धो ड़ाली
स्मृतियों पर जमीं
बरसों पुरानी गर्द .


 बीमार


अपनी दवा की पर्ची के साथ
एक बूढ़ी स्त्री ने
जब अपने बेटे को
एक मुड़ा – तुड़ा नोट भी थमाया
तो अहसास हुआ
कि ये दुनियाँ
वाकई बीमार है.

कथा

किसी पार्क की बेंच पर बैठे
दो बुजुर्ग
अपने समय की
कथा सुना रहे हैं एक दूसरे को . . .
पेड़, पौधे, परिंदे
साक्षी हैं
कि पार्क की बेंच पर बैठे
अपने समय की
कथा सुना रहे हैं.

भी


सब शामिल हैं
इस अंतिम यात्रा में
मैं भी
तुम भी
भाषा भी
विचार भी
कविता भी
और भी
जैसे हत्यारे
और यह कविता भी .

डर


क्या डर
वाकई इस क़दर पैठ गया है
हमारे भीतर
कि हम
अब हत्यारों के लिए
भीड़ में जगह बनाने लगे हैं ….
कि चाकू चलाने में
उन्हें कोई तकलीफ़ न हो .

यह वक्त


कितना ख़ौफ़नाक है
यह मंज़र
कि हत्यारों से बचने के लिए
कोई भागता है भीड़ की तरफ
और मनुष्यों की यह भीड़
देखते ही देखते
किसी हॉरर फिल्म के
दर्शकों में बदल जाती है …..
(
और कभी कभी तो हत्यारों में भी!!)

 

इस पतझर से

                कितना कुछ

सीखना बाकी है
अभी
इस पतझर से !
ज़र्द पत्तों की तरह
चुके हुए
मरे हुए
शब्दों को छोड़ना है ….
एक लय के साथ
हवा में बिखरते हुए
नृत्य करना सीखना है ….
धैर्य सीखना है
इंतज़ार सीखना है
नए पत्तों की तरह
ताजगी से भरी भाषा का ….
अभी तो
बहुत कुछ
सीखना है
इस पतझर से !

ख़ामोशी


ठीक नहीं
यह ख़ामोशी
जो पसरी है
इस छोटे से घर में
हमारे बीच
ठीक नहीं
यह ख़ामोशी
जो पसरी है
इस विशाल मुल्क में
हमारे बीच.

 __________


मणि मोहन
जन्म  : 02 मई 1967, सिरोंज (विदिशा) म. प्र.
शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर और शोध उपाधि
प्रकाशन : देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र – पत्रिकाओं  में कवितायेँ तथा अनुवाद प्रकाशित. वर्ष 2003 में म. प्र. साहित्य अकादमी के सहयोग से कविता संग्रह \’कस्बे का कवि एवं अन्य कवितायेँ \’ प्रकाशित. वर्ष 2012 में रोमेनियन कवि मारिन सोरेसक्यू की कविताओं की अनुवाद पुस्तक  \’एक सीढ़ी आकाश के लिए\’ प्रकाशित. वर्ष 2013 में  कविता संग्रह  \”शायद\” प्रकाशित. इसी संग्रह पर म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार.
कुछ कवितायेँ उर्दू, मराठी और पंजाबी में अनूदित.  वर्ष 2016 में  बोधि प्रकाशन जयपुर से \”दुर्दिनों की बारिश में रंग \” कविता संकलन तथा तुर्की कवयित्री मुइसेर येनिया की कविताओं की अनुवाद पुस्तक प्रकाशित.
इसके अतिरिक्त  \”भूमंडलीकरण और हिंदी उपन्यास\” , \”आधुनिकता बनाम उत्तर आधुनिकता\” तथा  \”सुर्ख़ सवेरा\” आलोचना पुस्तकों सह- संपादन .
सम्प्रति : शा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गंज बासौदा ( म.प्र ) में अध्यापन.
संपर्क : विजयनगर , सेक्टर – बी , गंज बासौदा म.प्र. 464221
मो. 9425150346

ई-मेल : profmanimohanmehta@gmail.com
Tags: कवितामणि मोहन
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