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Home » परख : मेरी विज्ञान डायरी

परख : मेरी विज्ञान डायरी

पुस्‍तक – मेरी विज्ञान डायरी लेखक- देवेंद्र मेवाड़ी मूल्‍य- 350 रुपये प्रकाशक- आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड एस.सी.एफ. 267, सेक्‍टर-16 पंचकूला-134113 देवेंद्र मेवाड़ी : मेरी विज्ञान डायरी                   डायरी में विज्ञान की बातें मनीष मोहन गोरे डायरी आमतौर पर व्यक्तिगत विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति देने वाली एक […]

by arun dev
January 10, 2013
in Uncategorized
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पुस्‍तक – मेरी विज्ञान डायरी
लेखक- देवेंद्र मेवाड़ी
मूल्‍य- 350 रुपये
प्रकाशक- आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
एस.सी.एफ. 267, सेक्‍टर-16
पंचकूला-134113

देवेंद्र मेवाड़ी : मेरी विज्ञान डायरी                  
डायरी में विज्ञान की बातें
मनीष मोहन गोरे

डायरी आमतौर पर व्यक्तिगत विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति देने वाली एक सशक्त विधा है. अनेक लेखकों ने इस विधा को अपनाया और इसे नए आयाम दिए. विज्ञान की रोचक जानकारियों से आम जन को रूबरू कराने में हर देशकाल में लेखकों की पीढियां काम करती हैं. यह विधा लोकप्रिय विज्ञान या लोकविज्ञान लेखन (popular science writing) कहलाती है. इसके लेखक अधिकार लेख, निबंध, फीचर, कविता और कथा विधाओं का सहारा लेते हैं.


डायरी विधा के द्वारा विज्ञान की घटनाओं-जानकारियों का संचार संभवतः हिन्दी भाषा में अभी तक नहीं हुआ था. लोकप्रिय विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने ‘मेरी विज्ञान डायरी’ (आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा) लिखकर डायरी विधा के प्रयोग द्वारा विज्ञान लेखन में एक नया प्रयोग किया है.

देवेंद्र मेवाड़ी एक संजीदा विज्ञान लेखक हैं. उन्होंने अपनी इस पुस्तक में तीन सालों (2008 से 2010) के दौरान देश-दुनिया में घटी कुल 69 चयनित वैज्ञानिक घटनाओं को लेकर अपने विचार रखे हैं. मेवाड़ी जी विज्ञान को सीधा-सपाट नहीं बताते क्योंकि वह जानते हैं कि आम पाठक को विज्ञान उबाऊ लगता है और इसलिए वे विज्ञान को पढ़ने-सुनने में दिलचस्पी नहीं लेते. मेवाड़ी जी जो कुछ लिखते हैं, पहले उसमें डूब जाते हैं और कभी-कभी वे बेजान पत्थर, हवाओं, फूलों के मानवीकरण द्वारा उन्हें जीवंत कर देते हैं और फिर उन्हीं की जबानी उनकी दास्तान (वैज्ञानिक जानकारी) सुनाते चलते हैं. इस तरह की शैली हर किसी को बाँध लेती है. ‘फसलें कहें कहानी” नामक पुस्तक उनकी इसी लेखन शैली का एक सशक्त उदाहरण है.

इस विज्ञान डायरी के कुछ पड़ाव हैं – चार्ल्स डार्विन के दो सौ वर्ष, क्यों तप रही है धरती, रोटी लुटी, कौन थे मेरे पूर्वज (कड़ी 1 से 6 तक), विज्ञान कथाकार एच जी वेल्स, इतिहास रचेगा चंद्रयान, कौन सा वृक्ष है क्रिसमस ट्री, धूमकेतु आ गया है, आस्था, अंधविश्वास और सूर्यग्रहण, हरित क्रांति का कर्मठ सिपाही, प्लेटलेट की पहेली, इन दिनों बहुत करीब है मंगल, फिर आया बड़ा बसंता, ब्रह्मांड सुंदरी, न्यूमोनिया पर एक नजर, अलवर में बच्चे, बाघ और हिरन.

मेवाड़ी जी के लिए विज्ञान लेखन एक मिशन है. विज्ञान लोकप्रियकरण का एक अहम उद्देश्य समाज से अंधविश्वास और रुढियों का उन्मूलन करना है और मेवाड़ी जी के लेखों में इस उद्देश्य की झलक गाहे-बगाहे देखने को मिलती है. अपने लेखन के दौरान मुख्य विषय की चर्चा करते हुए वह बीच-बीच में छोटी-बड़ी जरुरी वैज्ञानिक जानकारियां भी देते चलते हैं. इसका एक उदाहरण इसी किताब से देखें –

“शरीर की भी तो रोगाणुओं से लड़ने की चाक-चौबंद व्यवस्था है. अगर आंख में से रोगाणु शरीर में जाना चाहें तो आंसू के रसायन उसे नष्ट कर देते हैं. नाक से जाना चाहें तो म्यूकस यानी श्लेष्मा की परत उन्हें रोक देती है. मुख से रोगाणु भीतर जाना चाहें तो थूक के रसायन उन्हें नष्ट कर देते हैं. फिर भी अड़ियल रोगाणु भीतर पहुँच गए तो आमाशय की थैली में पाचक रस उन्हें पचा देते हैं. इस कारण बहुत काम रोगाणु आँतों तक पहुंच पाते हैं. लेकिन अगर कट-फट से रोगाणु सीधे खून में पहुंच गए तो? तो, बढते-बढते उनकी तादाद हजारों-लाखों तक पहुंच सकती है. इसलिए हमारे शरीर का सुरक्षा तंत्र सतर्क हो जाता है. दुश्मन रोगाणुओं पर एंटीबाडी के लेबल लगा दिए जाते हैं और तब हमारे खून में मौजूद ‘ल्यूकोसाइट’ यानी श्वेत रक्त कोशिकाएं और उनसे भी बड़ी ‘मैक्रोफेज’ कोशिकाएं लेबल लगे दुश्मन रोगाणुओं को आसानी से पहचानकर, उन पर हमला बोल देती हैं. उन्हें हड़पने लगती हैं और दुश्मन की संख्या बहुत अधिक होने या ठीक-ठाक पहचान न होने पर उस पर विजय पाना मुश्किल हो जाता है. तब डाक्टर आवश्यक जांच करके दवाईयां देते हैं या सुई लगा कर फ़ौरन खून में दवा पहुंचाते हैं. दवा के रसायन दुश्मन का खत्म करने में जुट जाते हैं.” (1 दिसंबर 2010,पत्नी बीमार है, पृष्ठ संख्या 212-213, इसी पुस्तक से).

देवेंद्र मेवाड़ी की विज्ञान डायरी के इन पन्नों में विषयों और उनकी अभिव्यक्तियों की विविधता देखने को मिलती है. इनमें यात्रा वृत्तांत, जीवनियां, संस्मरण, शब्दचित्र, और समाचारों के साथ ही किस्से-कहानियां भी हैं. इस डायरी की एक दिलचस्प विशेषता यह है कि इसे कहीं भी किसी भी पृष्ठ से खोलकर पढ़ा जा सकता है.

मेवाड़ी जी ने डायरी विधा को अपने विज्ञान लेखन का औजार बनाकर एक  अनोखा प्रयास किया है. समालोचन पर पोस्ट रचनाओं को वह निरंतर पढते हैं और इसका उल्लेख उनसे होने वाली बातचीत के दौरान होता है. हमारा आग्रह है कि इस कृति को पाठक पढ़ें और उम्मीद है कि यह विज्ञान डायरी पाठकों को जरुर पसंद आएगी.

_____________________________

मनीष मोहन गोरे : वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक
  कई पुस्तकें प्रकाशित
सम्प्रति : वैज्ञानिक, विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार.
ई-पता:mmgore@vigyanprasar.gov.in

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