शिनागावा बन्दर हारुकी मुराकामी अनुवाद: श्रीविलास सिंह |
उसे कभी-कभार अपना स्वयं का नाम स्मरण करने में कठिनाई होती थी. सामान्यतः ऐसा तब होता था जब कोई अनपेक्षित रूप से इस सम्बन्ध में पूछता था. वह किसी बुटीक में अपने ड्रेस की बाहें ठीक करवा रही होती, और बिक्री सहायिका पूछती, “मैम आपका नाम क्या है?” और उसका मस्तिष्क शून्य हो जाता. इसको स्मरण कर पाने का एक ही तरीका था कि वह अपना ड्राइविंग लाइसेंस निकालती, जो कि उस व्यक्ति को, जिस से वह बात कर रही होती, बड़ा अजीब लगता. तब भी जब वह किसी से फोन पर बात कर रही होती और ऐसा होता, उस समय की विचित्र ख़ामोशी, जब वह अपना पर्स टटोल रही होती, फोन पर दूसरी ओर स्थित व्यक्ति को आश्चर्य में डालने हेतु पर्याप्त होती कि आखिर हो क्या रहा था.
वह अन्य हर चीज स्मरण रख सकती थी. वह अपने आसपास के लोगों के नाम कभी नहीं भूली थी. अपना पता, फोन नंबर, जन्मदिन और पासपोर्ट नंबर इत्यादि कोई समस्या नहीं थे. वह अपने मित्रों के फोन नंबर दुहरा सकती थी, और महत्वपूर्ण क्लाइंट्स के नंबर भी. और जब वह स्वयं अपने नाम का जिक्र करती उसे इसको स्मरण करने में कभी भी दिक्कत नहीं होती थी. जब तक वह अग्रिम रूप से जान रही होती थी कि क्या अपेक्षित था, उसकी स्मृति एकदम ठीक रहती थी. किन्तु जब वह शीघ्रता में होती अथवा किसी बात के लिए पहले से तैयार न होती, तब ऐसा हो जाता मानों कोई सर्किट टूट गया हो. जितना ही उसने प्रयत्न किया, उतना ही यह स्पष्ट होता गया कि, अपने इस जीवन में, अब वह अचानक यह स्मरण नहीं कर सकती कि उसे क्या कह कर पुकारा जाता था.
उसका विवाहोपरांत का नाम मिज़ुकी एंडो था; विवाहपूर्व का नाम ओजावा था. कोई भी नाम विशिष्ट अथवा ऐसा नहीं था जिसमें कुछ विशेष नाटकीय हो, किन्तु इस बात से भी यह स्पष्ट नहीं होता था कि किस प्रकार वह, उसकी व्यस्त दिनचर्या में, उसकी स्मृति से लुप्त हो गया. वह पिछले तीन वर्षों से मिज़ुकी एंडो थी, जबसे उसने ताकाशी एंडो नाम के व्यक्ति से विवाह किया था. पहले पहल उसे अपने नए नाम के साथ सामान्य होने में कठिनाई हुई. जिस तरह यह दिखता था अथवा बोलने पर लगता था उसे अपने लिए ठीक नहीं महसूस होता था. किन्तु, कई बार दोहराने और हस्ताक्षर करने के पश्चात्, वह इस नाम के साथ बेहतर महसूस करने लगी थी. अन्य संभावनाओं की तुलना में- उदाहरण के लिए मिज़ुकी मिज़ुकी या फिर मिज़ुकी मिकी (उसका थोड़े समय के लिए मिकी नाम के एक व्यक्ति से प्रेम सम्बन्ध रहा था.) – मिज़ुकी एंडो बुरा नहीं था.
उसे विवाह किये हुए दो वर्ष के आसपास हुए थे जब उसे उसका नाम विस्मृत होना शुरू हुआ. प्रारम्भ में यह महीने में एक या दो बार हुआ, किन्तु समय के साथ यह अक्सर होने लगा. अब वह अपना नाम हफ़्ते में कम से कम एक बार भूलने लगी थी. यदि उसका पर्स उस के साथ होता तो सब ठीक रहता. परन्तु यदि वह अपना पर्स खो देती तो वह भी खो जाती. निश्चय ही वह पूरी तरह अदृश्य न हो जाती क्योंकि अब भी उसे अपना पता और फोन नंबर स्मरण रहते. यह फिल्मों की भांति पूर्ण स्मृति लोप का मामला नहीं था. फिर भी यह तथ्य था कि अपना नाम भूल जाना बहुत बेचैन करने वाली बात थी. बिना नाम का एक जीवन, उसने सोचा, उस सपने के समान था जिससे आप कभी नहीं जागते.
मिज़ुकी एक आभूषण भंडार में गयी, उसने एक साधारण, पतला-सा ब्रासलेट ख़रीदा और उस पर अपना नाम खुदवाया: ‘मिज़ुकी (ओजावा) एंडो’. उसे ऐसा करते किसी बिल्ली अथवा कुत्ते जैसा महसूस होता फिर भी वह इस बात के लिए सावधान रहती कि वह जब भी घर से बाहर जाये, उस ब्रासलेट को पहनना न भूले. यदि वह अपना नाम भूलती, उसे बस अपनी कलाई की ओर देखना होता. लाइसेंस ढूँढ़ने का कोई झंझट नहीं, दूसरे लोगों की विचित्र निगाहों का भी कोई डर नहीं.
उसने अपने पति को अपनी समस्या के सम्बन्ध में नहीं बताया था. वह जानती थी कि वह बस इस निर्णय पर पहुंचेगा कि वह उनके विवाह से अप्रसन्न थी. वह हर चीज के प्रति अत्यधिक तार्किक था. वह इस बात से कोई हानि नहीं पहुँचाना चाहता था, वह बस ऐसा था ही- हर समय सिद्धांत गढ़ता-सा. वह काफी बातूनी भी था और किसी विषय पर शुरू हो जाने के पश्चात जल्दी पीछे नहीं हटता था. इसलिए उस ने पूरी बात बस अपने तक ही रखी. फिर भी उसने उस बात के प्रति सोचा जो उसका पति इस सम्बंध में कहता- या समस्या के बारे में जानने के पश्चात जो कहता- वह मूल बिंदु से बहुत दूर होता. वह अपने विवाह से असंतुष्ट नहीं थी. अपने पति की कभी-कभार की अतिशय तार्किकता के अतिरिक्त, उसे उससे बिलकुल भी कोई शिकायत नहीं थी.
मिज़ुकी और उसके पति ने हाल ही में बंध-पत्र के आधार पर ऋण ले कर शिनागावा में एक फ़्लैट ख़रीदा था. उसका पति, जो अब तीस वर्ष का था, एक दवा कंपनी की प्रयोगशाला में काम करता था. मिज़ुकी छब्बीस साल की थी और हौंडा की डीलरशिप में काम करती थी, फोन का जवाब देती, ग्राहकों के लिए कॉफी लाती, फोटो कॉपी करती, फ़ाइल बनाती और ग्राहकों का विवरण अद्यतन करती. मिजुकी के चाचा, जो हौंडा में एक कार्यकारी अधिकारी थे, ने उसे टोक्यो में महिलाओं के जूनियर कालेज से स्नातक होने के पश्चात् यह काम दिलवाया था. यह कोई उसकी कल्पना का सबसे उत्साहपूर्ण काम नहीं था, किन्तु उसकी कुछ जिम्मेदारियां थी, और कुल मिला कर वह काम ख़राब नहीं था. जब भी सेल्समैन बाहर होते वह उनका काम संभाल लेती. उसने सदैव ही ग्राहकों के प्रश्नों का जवाब देने का कार्य अत्यंत कुशलता से किया था. उसने सेल्समैनों को काम करते हुए देखा था, और तेजी से आवश्यक तकनीकी जानकारियाँ समझ लीं थी. उसने गाड़ियों के शोरूम में मौजूद सभी मॉडलों की माइलेज रेटिंग्स याद कर ली थी और किसी को भी समझा कर संतुष्ट कर सकती थी, उदाहरण के लिए एक सामान्य सेडान की तुलना में ओडेसी एक मिनी वैन की तरह की गाड़ी थी.
मिज़ुकी बातचीत में कुशल थी और उसकी मुस्कराहट दिल जीतने वाली थी जो सदैव ग्राहकों को बेहतर महसूस करने में मदद करती थी. वह यह भी जानती थी कि प्रत्येक ग्राहक के व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर कैसे दृढ़ता से बात का ढ़र्रा बदल दिया जाये. दुर्भाग्य से उसे डिस्काउंट देने का, ग्राहक से सौदेबाजी का, मुफ्त विकल्पों का अधिकार नहीं था इसलिए यदि वह ग्राहक को बिक्री के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर के लिए तैयार कर लेती तो भी अंततः उसे सारा मामला किसी सेल्समैन को सौंपना पड़ता, जिसे बिक्री पर कमीशन मिलता. एक मात्र पारितोषिक, जिसकी वह अपेक्षा कर सकती थी, लाभ पाने वाले सेल्समैन से यदाकदा का मुफ्त का डिनर था.
कई बार यह बात उसके दिमाग में आयी कि डीलरशिप यदि उसे बिक्री का काम करने दे तो अधिक कारें बिकेंगी. किन्तु यह विचार किसी और को नहीं आया. इसी तरीके से कम्पनियाँ काम करती हैं: विक्रय विभाग एक चीज है और लिपिकीय स्टाफ दूसरी, और, कुछ अपवादों को छोड़ कर, ये सीमारेखाएँ पार नहीं की जा सकतीं. किन्तु यह बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं थी, वह महत्वाकांक्षी नहीं थी और वह कैरियर बनाने के चक्कर में भी नहीं थी. उसकी प्राथमिकता नियत आठ घंटे काम करने की, नौ से पाँच, और छुट्टी का समय बिताने तथा उसका आनंद लेने की थी.
कार्यस्थल पर मिज़ुकी ने अपना विवाहपूर्व का नाम प्रयोग करना जारी रखा था. वह जानती थी कि इसे बदलने के लिए उसे कंप्यूटर में अपने से सम्बंधित सारे आंकड़े परिवर्तित करने पड़ेंगे. यह काफी झंझट का काम था और उसने इसे टाल रखा था. वह टैक्स मामलों के लिए विवाहित के रूप में पंजीकृत थी किन्तु उसका नाम अपरिवर्तित था. वह जानती थी कि यह सही तरीका नहीं था किन्तु डीलरशिप में किसी ने इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा. इसलिए उसके बिजनेस कार्ड पर अभी भी मिज़ुकी ओजावा नाम ही था. उसके पति को पता था कि उसके कार्यालय में अभी भी वह विवाहपूर्व नाम से ही काम कर रही थी (वह वहाँ कभी-कभी उससे मिलने आया करता था), किन्तु उसे इससे कोई समस्या हो ऐसा नहीं लगता था. वह समझ गया था कि यह मात्र सुविधा का मामला था. जब तक उसे मिज़ुकी जो कर रही थी उसमें कोई तर्क दिखाई देता, वह शिकायत नहीं करता था. इस अर्थ में वह काफी समझदार था.
मिज़ुकी को चिंता होने लगी थी कि अपना नाम भूल जाना किसी बड़ी बीमारी का लक्षण हो सकता था, संभवतः अल्ज़ाइमर के शुरुआती लक्षण. दुनिया ढेरों अनपेक्षित, मारक बीमारियों से भरी पड़ी थी. उसे अभी हाल में ही पता चला था कि मायस्थेनिया और हंटिंगटन रोग जैसी बीमारियाँ भी मौजूद थी. ऐसी अनगिनत अन्य बीमारियाँ होनी चाहिए जिनके सम्बन्ध में उसने कभी नहीं सुना. और इन अधिकांश बीमारियों के सम्बन्ध में प्रारंभिक लक्षण बहुत छोटे होते थे. छोटे किन्तु असामान्य लक्षण जैसे- अपना स्वयं का नाम भूल जाना.
वह एक बड़े अस्पताल में गयी और उसने अपने लक्षण बताये. किन्तु मौके पर मौजूद युवा चिकित्सक ने– जो इतना बेरंग और थका हुआ था कि चिकित्सक की बजाय रोगी अधिक लग रहा था– उसे गंभीरता से नहीं लिया. “क्या आप अपने नाम के अतिरिक्त भी कुछ भूलती हैं?” उसने पूछा. “नहीं,” उसने कहा. “अभी तो बस अपना नाम ही भूलती हूँ.” “हूँ… यह मनोवैज्ञानिक मामला अधिक लगता है,” चिकित्सक ने कहा. उसकी आवाज़ में कोई रुचि अथवा हमदर्दी नहीं थी. “यदि आप कुछ अन्य चीजें भूलना शुरू कर दें तो हमसे संपर्क करियेगा. फिर हम कुछ परीक्षण कर सकते हैं.” ‘हमारे पास अभी ऐसे लोगों की भीड़ है जो आपके मुकाबले बहुत अधिक गंभीर रूप से बीमार हैं,’ उसकी बात का अर्थ कुछ-कुछ ऐसा प्रतीत हुआ.
दो)
एक दिन मिज़ुकी ने स्थानीय वार्ड से सम्बंधित न्यूज लेटर में पढ़ा कि वार्ड कार्यालय में एक सलाह केंद्र खोला जाने वाला था. यह एक बहुत छोटा-सा समाचार था, जिसे वह सामान्यता अनदेखा कर देती. केंद्र महीने में दो बार काम करेगा और उसमें एक प्रशिक्षित सलाहकार होगा जो बहुत घटी हुई दर पर व्यक्तिगत सलाह देगा. समाचार में कहा गया था कि शिनागावा वार्ड का कोई भी निवासी, जो अठारह वर्ष से अधिक का था उसका इस सेवा के प्रयोग के लिए स्वागत था और हर बात पूर्णतः गोपनीय रखी जाती. मिज़ुकी को संदेह था कि वार्ड द्वारा प्रायोजित कोई सेवा उसका कुछ भला कर सकती थी, किन्तु उसने इसे एक बार आजमाने का निर्णय लिया. डीलरशिप सप्ताहांत पर अत्यधिक व्यस्त रहती थी किन्तु हफ्ते के दिनों में अवकाश लेना कोई कठिन नहीं था और वह सलाह केंद्र के समय से अपने समय को समायोजित करने में सक्षम थी जबकि यह एक सामान्य कार्यकारी व्यक्ति के लिए असुविधाजनक-सी बात थी. तीस मिनट के एक सेशन की फ़ीस दो सौ येन थी जो उसके लिए भुगतान करने को कोई बहुत अधिक राशि नहीं थी.
जब वह सलाह केंद्र पर पहुंची. मिज़ुकी ने पाया कि वह एकमात्र ग्राहक थी. “यह कार्यक्रम कुछ एकाएक ही शुरू कर दिया गया,” थिरेपिस्ट ने स्पष्ट किया. “अभी अधिकांश लोगों को इसके सम्बन्ध में पता नहीं है. एक बार जब लोगों को पता चल जायेगा, मुझे विश्वास है कि यहाँ अधिक व्यस्तता होगी.”
सलाहकार, जिसका नाम श्रीमती तेत्सुको साकाकी था, एक सज्जन और भारी भरकम-सी महिला थी जो चालीस के दशक के उत्तरार्ध में थी. उसके छोटे कटे बाल हलके भूरे रंग में रंगे हुए थे और उसके चौड़े चेहरे पर मैत्रीपूर्ण मुस्कराहट थी. वह एक धूसर रंग का गर्मियों का सूट, एक शरीर से चिपका हुआ-सा ब्लाउज, नकली मोतियों का एक नेकलेस और कम ऊँची एड़ियों वाला सैंडल पहने हुए थी. वह एक सलाहकार काम और पड़ोस की मैत्रीपूर्ण गृहिणी अधिक लग रही थी.
“मेरे पति यहाँ वार्ड ऑफिस में काम करते हैं,” उसने अपने परिचय में बताया. “वे सार्वजनिक कार्य विभाग में सेक्शन प्रमुख हैं. इसी कारण हमें वार्ड से यह केंद्र खोलने हेतु समर्थन मिल सका. वास्तव में तुम हमारी पहली ग्राहक हो और तुम्हें यहाँ पा कर हमें बहुत प्रसन्नता है. मेरे साथ आज और कोई अपॉइंटमेंट नहीं है इसलिए आओ पूरा समय ले कर हम अपने दिल की बात करें.” महिला ने एक सधी हुई गति से कहा; उससे सम्बंधित हर चीज धीमी और सायास की हुई सी थी.
“आप से मिल कर बहुत ख़ुशी हुई,” मिज़ुकी ने कहा. यद्यपि अपने मन में उसे आश्चर्य हो रहा था कि क्या इस तरह का कोई व्यक्ति उसकी कोई मदद कर पायेगा.
“तुम्हें आश्वस्त रहना चाहिए कि मेरे पास सलाह देने के सम्बन्ध में उचित डिग्री और ढेरों अनुभव है,” महिला ने कहा, मानों उसने मिज़ुकी का मस्तिष्क पढ़ लिया हो.
श्रीमती साकाकी धातु की एक मेज के पीछे बैठी हुई थी. मिज़ुकी एक छोटे से प्राचीन सोफे पर बैठ गयी जो अभी-अभी स्टोर से खींच कर लाया गया सा लग रहा था. उसके स्प्रिंग्स जवाब दे चुके थे और उसकी पुरानी गंध से उसकी नाक में कुलबुलाहट-सी होने लगी थी.
वह पीछे की ओर झुक गयी और जो कुछ हो रहा था उसे व्याख्यायित करने लगी. श्रीमती साकाकी साथ-साथ सिर हिलाती रहीं. उन्होंने कोई सवाल नहीं पूछा और न ही कोई आश्चर्य प्रदर्शित किया. उन्होंने बस सावधानी पूर्वक मिज़ुकी की कहानी सुनी, बस यदाकदा भौंहें चढ़ाने को छोड़ कर, जब मानों वह किसी बात पर विचार कर रही हों, उनका चेहरा अपरिवर्तित रहा और उनकी वसंत के चन्द्रमा-सी हलकी मुस्कराहट कभी भी चेहरे से दूर नहीं गयी.
“अपना नाम ब्रासलेट पर लिखवाने का विचार बहुत शानदार था,” मिज़ुकी के पूरा कर लेने के पश्चात उन्होंने टिप्पणी की. “तुम ने जिस तरह इसका सामना किया वह मुझे पसंद आया. पहला लक्ष्य असुविधा को कम से कम करने हेतु एक संभव हल खोजना ही है. समस्या से एक संभव तरीके से निपटना अधिक बेहतर है बजाय उस पर चिंता करते रहने से. मैं देख सकती हूँ कि तुम काफी समझदार हो. और यह बहुत प्यारा ब्रासलेट है. यह तुम पर फब रहा है.”
“क्या आपके विचार से अपना नाम भूल जाना किसी अधिक गंभीर बीमारी से सम्बंधित हो सकता है?” मिज़ुकी ने पूछा. “क्या इस तरह के मामले मौजूद हैं?”
“मुझे विश्वास नहीं है कि कोई ऐसी बीमारी है जिसके इस तरह के प्रारंभिक लक्षण परिभाषित हों,” श्रीमती साकाकी ने कहा. “हाँ यद्यपि मुझे इसकी थोड़ी चिंता है कि लक्षण पिछले साल के मुकाबले बढ़ें हैं. मैं समझती हूँ कि ऐसा संभव है कि इससे अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं अथवा तुम्हारा स्मृति लोप अन्य क्षेत्रों की ओर फ़ैल सकता है. तो आओ हम एक बार में एक कदम उठाएँ और निर्धारित करें कि कहाँ से यह सब शुरू हुआ.”
श्रीमती साकाकी ने मिज़ुकी के जीवन के सम्बन्ध में कई सामान्य प्रश्नों से शुरुआत की. “तुम्हें विवाहित हुए कितना समय हो गया?” “तुम किस तरह का काम करती हो?” “तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा रहता है?” वे उसके बचपन, उसके परिवार और उसके स्कूल के समय के बारे में पूछती रहीं. चीजें जिनसे उसे आनंद आया, चीजें जो उसे नहीं पसंद रहीं. किन कामों में वह अच्छी थी, किन कामों में नहीं. मिज़ुकी ने हर प्रश्न का जवाब जितना सम्भव था उतनी ईमानदारी और शीघ्रता से देने का प्रयत्न किया.
मिज़ुकी एक बहुत साधारण परिवार में बड़ी हुई थी. उसके पिता एक बड़ी बीमा कंपनी के लिए काम करते थे, और यद्यपि उसके माता-पिता किसी भी तरह बहुत समृद्ध नहीं थे, किन्तु उन्होंने कभी पैसों के लिए उसे चोट पहुँचाई हो उसे स्मरण नहीं था. उसके पिता एक गंभीर व्यक्ति थे; और उसकी माँ नाजुक और थोड़ी सी लापरवाह. उसकी बड़ी बहन सदैव अपनी कक्षा में प्रथम आती थी, यद्यपि मिज़ुकी समझती थी कि वह थोड़ी छिछली और इधर की बात उधर करने वाली थी. फिर भी मिज़ुकी को अपने परिवार से कोई विशेष समस्या नहीं थी. उसकी उन सब से कभी कोई बड़ी लड़ाई नहीं हुई थी. मिज़ुकी स्वयं एक ऐसी बच्ची थी जो औरों से कुछ खास अलग नहीं थी. वह कभी बीमार नहीं पड़ी. उसे कभी अपनी शक्ल सूरत को ले कर कोई समस्या नहीं रही यद्यपि उसे कभी किसी ने यह भी नहीं कहा कि वह सुन्दर थी. वह स्वयं को पर्याप्त बुद्धिमान मानती थी, और वह सदैव कक्षा में नीचे की बजाय ऊपर की ओर ही रही थी किन्तु उसने किसी खास क्षेत्र में उत्कृष्टता नहीं प्राप्त की थी. स्कूल में उसके कुछ अच्छे मित्र थे, किन्तु अधिकांश ने शादी कर ली और दूसरे शहरों को चले गए और अब उनका कभी- कभार का ही कोई संपर्क था.
उसके पास अपने विवाह को ले कर कहने को कोई बुरी बात नहीं थी. शुरुआत में उसने और उसके पति ने सामान्य तरह की गलतियाँ की थी जो युवा नवविवाहिता करते हैं किन्तु समय के साथ वे एक बेहतर जीवनसूत्र में आबद्ध हो गए थे. उसका पति पूर्णतः आदर्श नहीं था, किन्तु उसमें बहुत से अच्छे गुण थे: वह दयालु था, जिम्मेदार था, साफ सुथरा था, वह कुछ भी खा लेता था और कभी शिकायत नहीं करता था. उसका अपने साथ काम करने वालों और ऊपर वालों से भी सम्बन्ध ठीक प्रतीत होता था.
जब वह विभिन्न सवालों के जवाब दे रही थी, मिज़ुकी को विचार आया कि वह किस प्रकार का अनुत्साही जीवन जी रही थी. कुछ नाटकीय उसे कभी दूर से भी छू कर नहीं गुजरा था. यदि उसका जीवन कोई फिल्म होता, तो वह प्रकृति सम्बन्धी उन डॉक्यूमेंट्री की भांति होता जो आपको गारंटी के साथ सुला देती हैं. क्षितिज तक पसरे हुए अंतहीन उजाड़ परिदृश्य. न कोई दृश्य परिवर्तन, न कोई विशिष्ट दृश्य, न ही कुछ अशुभ, न कुछ कहीं संकेत करता सा. मिज़ुकी जानती थी कि ग्राहक की बात सुनना सलाहकार का काम था किन्तु उसे उस महिला के लिए दुःख होने लगा जिसको ऐसी एकरस जीवन कथा सुननी पड़ रही थी. यदि यह मैं होती और मुझे मेरे जैसे जीवन के अंतहीन बासी प्रकरण सुनने पड़ते, मिज़ुकी ने सोचा, तो किसी बिंदु पर मैं तीव्र बोरियत से घुटने टेक देती.
लेकिन तेत्सुको साकाकी ने मिज़ुकी की बात को गहन एकाग्रता से कुछ जरूरी बातें नोट करते हुए सुना. जब वह बोली तो उसकी आवाज़ में बोरियत के कोई चिन्ह नहीं थे बल्कि गर्मजोशी और उचित चिंता थी. मिजुकी ने अपने को विचित्र रूप से शांत पाया. उसे इस वास्तविकता का भान हुआ कि कभी किसी ने उसकी बात इतने धैर्य के साथ नहीं सुनी थी. जब उनकी मीटिंग, एक घंटे से थोड़ा अधिक समय के पश्चात् समाप्त हुई, मिजुकी ने महसूस किया मानो उस पर से कोई बोझ उठा लिया गया था.
“श्रीमती एंडो क्या आप अगले वृहस्पतिवार को इसी समय आ सकती हैं?” श्रीमती साकाकी ने एक चौड़ी मुस्कराहट के साथ पूछा.
“हाँ, मैं आ सकती हूँ,” मिज़ुकी ने उत्तर दिया. “आप को तो कोई समस्या नहीं होगी, यदि मैं आऊं ?”
“निश्चित रूप से नहीं. जब तक आप आना चाहें. कई सेशन लग सकते हैं जब आपको कोई प्रगति नजर आएगी. यह उन रेडियो शो जैसा नहीं हैं जहाँ उद्घोषक आपको तात्कालिक उपाय बताता है. हम अपना समय लेंगे और अच्छा काम करेंगे.”
“क्या तुम ऐसी कोई घटना स्मरण कर सकती हो जिसका नामों से कुछ लेना देना हो ?” श्रीमती साकाकी ने दूसरे सेशन के दौरान पूछा. “तुम्हारा नाम, किसी और का नाम, किसी पालतू जानवर का नाम, किसी जगह का नाम जहाँ तुम गयी हो, संभवतः कोई उपनाम? यदि तुम्हारी नाम से जुड़ी हुई कोई स्मृति हो तो मैं चाहूँगी कि तुम उसे मुझे बताओ. यह कुछ बहुत महत्वहीन सा हो सकता है, लेकिन उसे नाम से सम्बंधित होना चाहिए. स्मरण करने का प्रयत्न करो.”
मिज़ुकी कुछ क्षण सोचती रही.
“मैं नहीं समझती कि मेरी नाम से जुड़ी कोई विशेष स्मृति है,” उसने अंततः कहा. कम-से-कम इस समय कुछ भी मेरे दिमाग में नहीं आ रहा है. ओह ठहरिये…… मुझे एक नामपट्टिका के सम्बन्ध में याद है.”
“एक नामपट्टिका ! बहुत बढ़िया.”
“किन्तु यह मेरी नामपट्टिका नहीं थी,” मिज़ुकी ने कहा. “यह किसी और की थी.”
“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता,” श्रीमती साकाकी ने कहा. “मुझे उसके सम्बन्ध में बताओ.”
“जैसा कि मैंने पिछले हफ़्ते बताया था कि मैं जूनियर और सीनियर हाईस्कूल के लिए लड़कियों के एक प्राइवेट स्कूल में जाती थी,” मिज़ुकी ने बताना शुरू किया. “मैं नागोया से थी और स्कूल याकोहामा में था, इसलिए मैं स्कूल के छात्रावास में रहती थी और सप्ताहांत में घर जाती थी. मैं प्रत्येक शुक्रवार रात को घर से शिंकान्सेन के लिए ट्रेन पकड़ती थी और हर रविवार की रात्रि वापस लौट आती. वहाँ से नागोया मात्र दो घंटे दूर था, इसलिए मैं विशेष अकेलापन नहीं महसूस करती थी.”
“श्रीमती साकाकी ने सिर हिलाया. “लेकिन क्या नायोगा में अच्छे प्राइवेट स्कूल नहीं थे?
“मेरी माँ उसी स्कूल में पढ़ी थीं और वह चाहती थी उनकी बेटियों में से भी कोई एक उस विद्यालय में पढ़े. और मैंने सोचा कि अपने माँ-बाप से दूर रहना अच्छा रहेगा. यह विद्यालय एक मिशनरी स्कूल था किन्तु काफी प्रगतिशील था. मैंने वहाँ कुछ बहुत अच्छे दोस्त बनाये. वे सभी मेरे जैसी ही थीं- दूसरी जगहों की लड़कियां जिनकी माओं ने उस स्कूल में पढ़ाई की थी. मैं वहाँ छह साल रही और सामान्यतः मुझे आनंद ही आया. यद्यपि वहाँ का खाना काफी ख़राब था.”
श्रीमती साकाकी ने कहा, “तुमने कहा कि तुम्हारी एक बड़ी बहन भी है?”
“ठीक बात है, वह मुझसे दो साल बड़ी है.”
“वह उस स्कूल में क्यों नहीं गयी ?”
“वह कुछ घरेलू टाइप की है और उसे कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या भी थी. इसलिए वह एक स्थानीय विद्यालय में जाती थी और घर में रहती थी. मैं सदैव से ही उसके मुकाबले काफी स्वतन्त्र थी. जब मैंने प्रारंभिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी कर ली तो मेरे माता-पिता ने मुझसे पूछा कि क्या मैं याकोहामा के स्कूल में जाऊंगी. मैंने हाँ कर दी. हर हफ़्ते शिनकानसेन की यात्रा का विचार भी कुछ उत्साहवर्धक था.”
“वहाँ रहते हुए अधिकांश समय मेरी एक रूममेट थी, किन्तु जब मैं सीनियर हो गयी तो मुझे अपना अलग कमरा दे दिया गया. मैं अपने हॉस्टल की छात्र प्रतिनिधि भी नियुक्त की गयी थी. हॉस्टल में हर छात्रा की एक नाम पट्टिका थी जो भवन के प्रवेशद्वार पर एक बोर्ड पर लटकी रहती थी. नामपट्टिका के सामने के हिस्से पर आपका नाम काले अक्षरों में लिखा होता था और पिछले हिस्से पर लाल अक्षरों में. जब भी आप बाहर जाते आपको नाम पट्टिका को पलट देना होता था और जब आप वापस आते तब भी. इसलिए यदि किसी लड़की का नाम काले अक्षरों में होता तो इसका अर्थ था कि वह हॉस्टल में थी’ यदि यह लाल अक्षर में होता तो आप जान जाते कि वह बाहर गयी हुई थी. यदि आप पूरी रात कहीं बाहर रहती अथवा लम्बे अवकाश पर जा रही होती तो आप अपनी नाम पट्टिका बोर्ड पर से हटा देतीं. यह एक सुविधाजनक व्यवस्था थी. छात्राएँ क्रम से रिसेप्शन का काम देखती थीं और जब कोई कॉल आती तो मात्र बोर्ड पर देख कर किसी छात्रा के वहाँ होने अथवा न होने के सम्बन्ध में बता पाना बहुत आसान होता था.”
“जो भी हो यह घटना अक्टूबर में घटित हुई. एक रात्रि डिनर के पहले, मैं अपने कमरे में अपना गृहकार्य कर रही थी जब यूको मात्सुनाका नाम की एक जूनियर मेरे पास आयी. वह हॉस्टल में हर तरह से सबसे सुन्दर लड़की थी- उसकी त्वचा का रंग गोरा था, बाल लम्बे और सुन्दर थे, और उसके नयन नक्श गुड़ियों जैसे थे. उसके माता-पिता कानाजावा इलाके में एक सराय चलाते थे और काफी समृद्ध थे. वह मेरी कक्षा में नहीं थी, इसलिए मैं निश्चित नहीं थी, किन्तु मैंने सुना था कि उस की ग्रेड बहुत अच्छी थी. दूसरे शब्दों में वह औरों से अलग थी. उससे छोटी ढेरों छात्राएँ उसकी पूजा करती थीं. किन्तु यूको मित्रवत थी और वह हवा में बिलकुल भी नहीं उड़ती थी. वह एक शांत लड़की थी जो अपनी भावनाएँ बहुत अधिक नहीं प्रदर्शित करती थी. मैं हमेशा नहीं बता सकती थी कि वह क्या सोच रही थी. उससे छोटी लड़कियाँ उसको आदर से देखती थीं किन्तु मैं नहीं समझती कि उसकी कोई करीबी मित्र थी.
जब मिज़ुकी ने अपने कमरे का दरवाजा खोला, यूको मात्सुनाका वहाँ पूरे गले का स्वेटर और जींस पहने खड़ी थी. “क्या तुम्हारे पास मुझ से बात करने के लिए एक मिनट का समय है ?” यूको ने पूछा. “निश्चित रूप से,” मिज़ुकी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा. “मैं अभी कुछ विशेष नहीं कर रही हूँ.” यद्यपि वह यूको को जानती थी किन्तु मिज़ुकी की उससे कभी कोई निजी बातचीत नहीं हुई थी और उसे कभी यह विचार नहीं आया कि यूको उस से किसी व्यक्तिगत बात के सम्बन्ध में सलाह मांग सकती थी. मिज़ुकी ने उसे बैठने का संकेत किया और स्वयं थर्मस के गर्म पानी से चाय बनाने लगी.
“मिज़ुकी क्या तुमने कभी ईर्ष्यालु महसूस किया है?” यूको ने एकाएक पूछा.
मिज़ुकी इस प्रश्न से आश्चर्यचकित रह गयी, किन्तु उसने इस पर गंभीरता से विचार किया.
“नहीं, मैंने कभी ऐसा नहीं महसूस किया,” उसने उत्तर दिया.
“क्या एक बार भी नहीं?”
मिज़ुकी ने अपना सिर हिलाया. “कम से कम, जब तुम एकाएक मुझ से इस तरह पूछोगी तो मैं कुछ स्मरण नहीं कर सकती. तुम्हारा मतलब किस तरह की ईर्ष्या से है?”
“जैसे तुम किसी से प्रेम करती हो किन्तु वह किसी और से प्रेम करता है. जैसे तुम किसी चीज को बहुत अधिक चाहती हो किन्तु कोई और उसे ले लेता है. अथवा कोई ऐसा काम है जिसे तुम नहीं कर सकती लेकिन कोई दूसरा उसे बिना विशेष प्रयत्न के कर पाने में सक्षम है……. इस तरह की चीज.”
“मैं नहीं समझती कि मैंने कभी ऐसा महसूस किया है,” मिज़ुकी ने कहा. “क्या तुम्हें अनुभव हुआ?”
“बहुत बार.”
मिज़ुकी की समझ में नहीं आया कि उसे क्या कहना चाहिए. इस तरह की लड़की कैसे जीवन में और अधिक की कामना कर सकती थी. वह सुन्दर थी, समृद्ध थी, पढ़ाई में अच्छी थी और लोकप्रिय थी. उसके माता-पिता उसे प्यार करते थे. मिज़ुकी ने सुना था कि वह कालेज के एक सुदर्शन छात्र के साथ डेटिंग कर रही थी. तो फिर इस धरती पर वह किसके प्रति ईर्ष्यालु हो सकती थी?
“जैसे कब, उदाहरण के लिए?” मिज़ुकी ने पूछा.
“मुझे संभवतः नहीं कहना चाहिए,” उसने सावधानी से अपने शब्द चुनते हुए कहा. “सारे विवरण में जाने का कोई अर्थ नहीं है. किन्तु मैं काफी समय से तुमसे यह पूछना चाह रही थी- कि क्या तुमने कभी अपने को ईर्ष्यालु महसूस किया है.”
मिज़ुकी को कुछ आभास नहीं था कि यूको उससे क्या चाहती थी किन्तु उसने हर संभव ईमानदारी से उसको उत्तर देने का निर्णय लिया. “मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी उस तरह की अनुभूति की है,” उसने दोहराया. “मैं नहीं जानती कि क्यों, और हो सकता है कि जब तुम इस सम्बन्ध में सोचो तो यह तुम्हें विचित्र लगे. मेरा मतलब है कि ऐसा नहीं है कि मुझमें ढेरों आत्मविश्वास है अथवा मैं हर वह चीज पा जाती हूँ जिसे मैं चाहती हूँ. वास्तव में ढेरों चीजें हैं जिनके लिए मैं अभाव महसूस कराती हूँ परन्तु चाहे कारण जो भी हों, इस बात ने मुझे कभी अन्य लोगों के प्रति ईर्ष्यालु नहीं किया. मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसा क्यों है.”
यूको मात्सुनाका हलके से मुस्करायी. “मुझे नहीं लगता कि ईर्ष्या का वस्तुगत दशाओं से बहुत कुछ लेना देना है- जैसे कि यदि तुम सौभाग्यशाली हो तो तुम ईर्ष्यालु नहीं होगी किन्तु यदि जीवन ने तुम्हें नहीं अशीषा है तब तुम ईर्ष्यालु होओगी. ईर्ष्या इस प्रकार नहीं काम करती. यह तुम्हारे भीतर बढ़ते एक ट्यूमर की भांति अधिक है जो बिना किसी कारण के निरंतर बढ़ता ही रहता है. यदि तुम जानती भी हो कि वह तुम्हारे भीतर है, तुम्हारे बस में कुछ नहीं होता जो तुम उसे रोक सकने के लिए कर सको.”
मिज़ुकी ने बिना बीच में टोके उसकी बात सुनी. यूको के पास किसी एक समय में मुश्किल से ही इतना कुछ कहने के लिए होता था.
“उस व्यक्ति यह समझा पाना बहुत कठिन है कि ईर्ष्या क्या होती है, जिसने कभी इसे महसूस ही न किया हो,” यूको ने बात जारी रखी. “एक बात मैं जानती हूँ कि इसके साथ जीना आसान नहीं होता है. यह दिन प्रतिदिन अपना नर्क अपने साथ लिए चलने जैसा है. तुम्हें निश्चय ही शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुम्हारे साथ कभी एक बार भी ऐसा नहीं हुआ.”
यूको ने बोलना बंद कर दिया और मिज़ुकी की ओर इस तरह देखा जिसे मुस्कराहट कहा जा सकता था. वह निश्चित रूप से बहुत प्यारी है, मिज़ुकी ने सोचा. उसकी तरह होने की अनुभूति कैसी होगी- इतनी खूबसूरत कि तुम जिधर जाओ उधर ही लोग मुड़-मुड़ कर देखें? क्या यह कुछ ऐसी चीज हैं जिसके लिए तुम्हें गर्व हो? अथवा यह किसी बोझ जैसा है? इन विचारों के बावजूद मिज़ुकी ने एक बार भी यूको के प्रति अपने भीतर ईर्ष्या नहीं महसूस की.
“मैं अब घर जा रही हूँ,” यूको ने अपनी गोद में पड़े अपने हाथों की ओर ताकते हुए कहा. “मेरे एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी है और मुझे अंत्येष्टि में भाग लेना है. मैंने हॉस्टल की वार्डेन से पहले ही अनुमति ले ली है. मैं सोमवार सुबह तक वापस आ जाऊंगी किन्तु जिस दौरान मैं बाहर रहूंगी, क्या उस समय के दौरान तुम मेरी नाम पट्टिका का ध्यान रखोगी.”
उसने अपनी नाम पट्टिका अपनी जेब से निकाली और मिज़ुकी को सौंप दी.
“मुझे तुम्हारे लिए इसे रखने में कोई परेशानी नहीं होगी,” मिज़ुकी ने कहा. “किन्तु तुम इसे मुझे देने की जहमत क्यों कर रही हो? क्या तुम इसे सीधे किसी मेज की दराज़ में नहीं डाल सकती?”
यूको ने मिज़ुकी की आँखों में झाँका. मैं बस इस बार के लिए यह चाहती हूँ कि तुम इसे रखो,” उसने कहा. “कोई बात मुझे परेशान कर रही है और मैं इसे अपने कमरे में नहीं रखना चाहती.”
“फिर ठीक है,” मिज़ुकी ने कहा.
“मैं नहीं चाहती कि जब मैं चली जाऊं तो इसे ले कर कोई बन्दर भाग जाये,” यूको ने कहा.
“इधर कोई बन्दर है भी, मुझे इस बात में संदेह है,” मिज़ुकी ने खुश होते हुए कहा. उसे यूको से मजाक की अपेक्षा नहीं थी. और फिर यूको अपनी नाम पट्टिका, चाय का अनछुआ प्याला और जहाँ वह बैठी थी वहाँ एक विचित्र सी रिक्ति अपने पीछे छोड़ कर कमरे से चली गयी.
‘सोमवार को यूको हॉस्टल में वापस नहीं आयी,’ मिज़ुकी ने श्रीमती साकाकी को बताया. “उसकी कक्षा की इंचार्ज अध्यापिका चिंतित थी इसलिए उसने उसके माँ-बाप को फोन किया. यह पता चला कि वह कभी भी घर नहीं गयी थी. उसके परिवार में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी और उसे किसी अंत्येष्टि में भाग नहीं लेना था. उसने सारी बातों के सम्बन्ध में झूठ बोला था. उन्हें उसकी देह लगभग एक सप्ताह बाद मिली. मैंने इसके बारे में तब सुना जब मैं अगले रविवार को नागोया से वापस लौटी. उसने जंगल में किसी जगह अपनी कलाइयां काट ली थी. कोई नहीं जानता था कि उसने ऐसा क्यों किया. उसने कोई नोट नहीं छोड़ा था. उसकी रूममेट ने बताया कि वह वैसी ही लग रही थी जैसे वह हमेशा रहती थी, और किसी विशेष बात से परेशान नहीं लग रही थी. यूको ने किसी से भी बिना एक शब्द कहे बस स्वयं को मार डाला था.”
“लेकिन क्या यह मिस मात्सुनाका तुम से कुछ कहने का प्रयत्न नहीं कर रहीं थी?” श्रीमती साकाकी ने पूछा. “जब वह तुम्हारे कमरे में आयी थी और उसने अपनी नाम पट्टिका तुम्हारे पास छोड़ी और ईर्ष्या के सम्बन्ध में बात की थी.”
“यह सही है कि उसने मुझसे ईर्ष्या के सम्बन्ध में बात की थी. किन्तु उस समय मुझे इस बात का कोई सिर पैर नहीं समझ में आया था, यद्यपि बाद में मुझे भान हुआ कि वह मृत्यु के पूर्व निश्चय ही इस सम्बन्ध में किसी से कुछ कहना चाह रही थी.”
“क्या तुमने किसी को बताया था कि वह तुम से मिलाने आयी थी ?”
“नहीं, कभी नहीं कहा.”
“क्यों ?”
मिज़ुकी ने अपना सिर झुका लिया और इस सम्बन्ध में कुछ विचार किया. “यदि मैंने इस सम्बन्ध में लोगों को कुछ कहा होता तो इस बात से और कन्फ्यूजन ही पैदा होता. मैं नहीं सोचती कि कोई कुछ समझ पाया होता.”
“तुम्हारा मतलब है ईर्ष्या उसकी आत्महत्या का कारण हो सकती थी?”
“बिलकुल ठीक. जैसा कि मैंने कहा, यूको जैसी लड़की भला दुनिया में किसके प्रति ईर्ष्यालु हो सकती थी? उस समय हर कोई बहुत दु:खी था. मैंने निर्णय लिया कि सबसे बेहतर था कि इस बात को मैं अपने तक ही रखती. आप लड़कियों के हॉस्टल के माहौल की कल्पना कर सकती हैं- इस सम्बन्ध में बात करना किसी गैस से भरे कक्ष में माचिस जलाने जैसा था.”
“नाम पट्टिका का क्या हुआ?”
“वह अभी भी मेरे पास है. वह मेरी आलमारी के पीछे की ओर एक डिब्बे में पड़ी है. मेरी अपनी नाम पट्टिका के साथ.”
“तुम ने उसे क्यों रखे रखा ?”
“उस समय विद्यालय में इतना शोर था कि मुझ से इसे वापस करने में चूक हो गयी. और जितने अधिक समय तक मैंने प्रतीक्षा की इसे आकस्मिक रूप से वापस करना उतना ही कठिन होता गया. मैं इसे फेंक देने के लिए भी स्वयं को तैयार नहीं कर सकी. इसके अतिरिक्त मैं यह भी सोचने लगी कि हो सकता है यूको चाहती हो कि मैं यह नाम पट्टिका रखूं. उसने मुझे क्यों चुना, मुझे कुछ पता नहीं.”
“संभवतः यूको किसी कारणवश तुम में रुचि रखती हो. हो सकता है तुम में कुछ ऐसा रहा हो जिसके प्रति वह आकृष्ट रही हो.”
“मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता,” मिज़ुकी ने कहा.
श्रीमती साकाकी कुछ क्षणों के लिए मिज़ुकी को देखती हुई मौन रहीं, मानों किसी बात के सम्बन्ध में निश्चय करने का प्रयत्न कर रही हों.
“वे सारी बातें एक तरफ, क्या तुमने ईमानदारी से कभी स्वयं को ईर्ष्यालु अनुभव नहीं किया? अपने जीवन में एक बार भी नहीं?”
मिज़ुकी ने तत्काल उत्तर नहीं दिया. अंततः उसने कहा, “मैं नहीं समझती कि मैंने कभी ऐसा महसूस किया हो. निश्चय ही लोग हैं जो मुझसे अधिक भाग्यशाली हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मैंने उनके प्रति कभी भी स्वयं को ईर्ष्यालु महसूस किया हो. मैं मानती हूँ कि हर व्यक्ति का जीवन भिन्न है.”
“और चूँकि हर व्यक्ति भिन्न है, तुलना करने का कोई तरीका नहीं है?”
“मैं समझती हूँ ऐसा ही है.”
“एक रुचिकर दृष्टिकोण,” श्रीमती साकाकी ने कहा उनके हाथ उनकी मेज के ऊपर मुड़े हुए थे और उनकी आवाज़ उनकी ख़ुशी को छिपा नहीं पा रही थी. “तो इसका अर्थ है तुम नहीं समझ सकती कि ईर्ष्या क्या है ?”
“मैं सोचती हूँ कि मैं यह समझती हूँ कि यह किस कारण होती है. किन्तु यह सच है कि मैं नहीं जानती कि इसकी अनुभूति कैसी होती है. यह कितनी अवश करने लायक होती है, कितनी देर तक इसका असर रहता है, इसके कारण आपको कितना कष्ट उठाना पड़ता है.”
जब मिज़ुकी घर पहुंची, वह अपनी आलमारी के पास गयी और उसने गत्ते का पुराना डिब्बा निकाला जिसमें उसने यूको की नाम पट्टिका अपनी नाम पट्टिका के साथ रखी हुई थी. मिज़ुकी के जीवन से जुड़े तमाम स्मृतिचिन्ह उस डिब्बे में ठुसे हुए थे- चिट्ठियाँ, डायरी, तस्वीरों के एल्बम, रिपोर्ट कार्ड. वह इन सब चीजों से छुटकारा पाना चाहती थी, किन्तु उसके पास कभी इन्हें छाँटने का समय नहीं रहा जिस कारण इस डिब्बे को जहाँ-जहाँ भी वह गयी वहाँ-वहाँ घसीटती रही. उसने कितना भी प्रयत्न किया लेकिन वह उस लिफाफे को नहीं पा सकी जिसमें उसने नाम पट्टिकाएँ रखी हुई थी. वह घबड़ा गयी. वह जब इस फ़्लैट में आयी थी तब उसने डिब्बे को देखा था और लिफाफे को देखना उसे स्पष्ट रूप से स्मरण था. उसने उस समय के बाद से डिब्बे को नहीं खोला था. इसलिए लिफाफे को वहीं होना चाहिए था. वह और कहाँ जा सकता था?
मिज़ुकी ने अपने काउंसलिंग सेशन को अपने पति से गुप्त रखा था. उसकी ऐसा कुछ करने की ऐसी कोई ख़ास मंशा नहीं थी किन्तु सारी बात को स्पष्ट करने में होने वाली परेशानी उसके महत्त्व के मुकाबले अधिक थी. इसके साथ ही, यह तथ्य कि मिज़ुकी अपना नाम भूल जा रही थी और इस सम्बन्ध में सप्ताह में एक बार वार्ड द्वारा प्रायोजित सलाहकार के पास जाती थी, किसी प्रकार उसकी चिंता का विषय नहीं था.
मिज़ुकी ने उन दोनों नाम पट्टिकाओं के खोने की बात को भी गुप्त रखा. उसने निर्णय लिया कि इस बात को यदि श्रीमती साकाकी नहीं जानती तो इससे उसकी काउंसलिंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
तीन)
दो महीने बीत गए. प्रत्येक बृहस्पतिवार, मिज़ुकी अपनी काउंसलिंग के लिए वार्ड कार्यालय की ओर जाती थी. सलाह लेने वालों की संख्या बढ़ गयी थी अतः श्रीमती साकाकी को अपने एक घंटे के सेशन को कम करके आधे घंटे का करना पड़ा था. इसका कोई महत्त्व नहीं था क्योंकि अब वे सीख गयीं थी कि अपने साथ के समय का बेहतरीन उपयोग किस तरह किया जाये. कभी-कभी मिज़ुकी इच्छा करती कि काश वे अधिक समय तक बात कर पातीं किन्तु फ़ीस की मात्रा को देखते हुए वह शिकायत नहीं कर सकती थी.
“यह हमारा एक साथ नवां सेशन है,” श्रीमती साकाकी ने एक सेशन के ख़त्म होने के पाँच मिनट पूर्व कहा. तुम्हारे अपना नाम भूलने की अवस्था में सुधार नहीं आया है लेकिन स्थिति ख़राब भी नहीं हुई है, क्या ऐसा ही है?”
“नहीं, स्थिति ख़राब नहीं हुई है.”
“यह बहुत अच्छी बात है,” श्रीमती साकाकी ने कहा. उन्होंने अपनी काले रंग वाली बॉलपॉइंट पेन अपनी जेब में रखी और अपने हाथ हलके से मेज पर बजाये. वे एक क्षण को रुकीं. “संभवतः बस संभवतः जब तुम अगली बार अगले हफ़्ते आओगी हम जिस मुद्दे के सम्बन्ध में विचार विमर्श करते रहे हैं उस सम्बन्ध में बहुत महत्वपूर्ण प्रगति करेंगे.”
“आपका मतलब है, मेरा अपना नाम भूल जाने का मुद्दा ?”
“बिलकुल, यदि सब कुछ वैसे ही हुआ जैसी कि योजना है, मैं एक निश्चित कारण निर्धारित कर पाने में सफल हो जाऊंगी और तुम्हें दिखा पाने में भी.”
“वह कारण जिससे मैं अपना नाम भूल जाती हूँ?”
“बिलकुल.”
मिज़ुकी बिलकुल भी नहीं समझ पायी कि श्रीमती साकाकी क्या करने वाली थीं. “आप कह रही हैं कि एक निश्चित कारण…… अर्थात कुछ ऐसा जो दिखाई पड़ेगा?”
“निश्चित रूप से यह दिखाई पड़ने वाला है,” श्रीमती साकाकी ने संतुष्टि से अपने हाथ रगड़ते हुए कहा. “मैं अगले हफ़्ते से पहले विवरण नहीं बता सकती. इस बिंदु पर मैं अभी निश्चित नहीं हूँ कि यह काम करेगा अथवा नहीं. मैं बस आशा कर रहीं हूँ कि यह काम करेगा.”
मिज़ुकी ने सर हिलाया.
“किसी भी गति से, मैं यह कहना चाहती हूँ कि इन चीजों के साथ हमारी यात्रा में कई उतार चढ़ाव आये किन्तु अब स्थिति वास्तव में एक हल की तरफ जा रही हैं. क्या तुम जानती हो कि जीवन के बारे में कहा जाता है कि यह तीन कदम आगे फिर दो कदम पीछे चलना होता है ? इसलिए चिंता मत करो. बस मुझ में विश्वास करो, मैं तुमसे अगले हफ़्ते मिलूंगी. और बाहर जाते हुए अपॉइनमेंट लेना मत भूलना.”
श्रीमती साकाकी ने यह सब आँख मारते हुए कहा.
अगले हफ़्ते, जब मिज़ुकी ने काउंसलिंग कार्यालय में प्रवेश किया श्रीमती साकाकी ने उसका स्वागत ऐसी जोरदार मुस्कराहट के साथ किया जैसी उसने उनके चेहरे पर पहले कभी नहीं देखी थी.
“मैंने वह कारण खोज निकाला है जिस की वजह से तुम अपना नाम भूलती रही हो,” उन्होंने गर्व से घोषणा की. “और मैंने उसका एक हल भी पा लिया है.”
“तो अब मैं आगे अपना नाम नहीं भूलूंगी?” मिज़ुकी ने पूछा.
“बिलकुल ठीक. अब आगे तुम अपना नाम नहीं भूलोगी. समस्या हल कर ली गयी है.”
श्रीमती साकाकी ने अपने पास रखे एक काले हैण्ड बैग में से कोई चीज बाहर निकाली और उसे मेज पर रख दिया. “मुझे विश्वास है कि यह तुम्हारी है.”
मिज़ुकी सोफे पर से उठ गयी और मेज के पास आ गयी. मेज पर दो नाम पट्टिकाएँ पड़ी थी. उनमें से एक पर ‘मिज़ुकी ओजावा’ लिखा हुआ था. दूसरी पर ‘यूको मात्सुनाका’. मिज़ुकी का रंग उड़ गया. वह वापस मुड कर सोफे पर गिर गयी, कुछ समय के लिए मानों बे-आवाज़ हो गयी हो. उसने अपनी दोनों हथेलियाँ अपने मुंह पर रख ली मानों शब्दों को बाहर बिखरने से रोकना चाहती हो.
“इसमें कोई खास बात नहीं कि तुम्हें आश्चर्य हुआ,” श्रीमती साकाकी ने कहा. “लेकिन कुछ भी डरने जैसी बात नहीं है.”
“ये आपको कैसे….. “ मिज़ुकी ने कहा.
“तुम्हारी हाईस्कूल की नाम पट्टिकाएँ मुझे कैसे मिली, यही न ?”
मिज़ुकी ने सिर हिलाया.
“मैंने इन्हें तुम्हारे लिए तलाशा,” श्रीमती साकाकी ने कहा. “ये नाम पट्टिकाएं तुम से चोरी हो गयीं थी और इसी कारण तुम्हें अपना नाम स्मरण करने में परेशानी हो रही थी.”
“लेकिन कौन…..”
“तुम्हारे घर में कौन घुसेगा और ये नाम पट्टिकाएँ चुरायेगा, और वह भी किस संभव उद्देश्य से ?” श्रीमती साकाकी ने कहा. “बजाय इसके कि मैं इस प्रश्न का उत्तर दूँ, मैं समझती हूँ कि बेहतर यह होगा कि तुम इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति से सीधे यह प्रश्न करो.”
“क्या जिस व्यक्ति ने यह किया था वह यहाँ है ?” मिज़ुकी ने अचम्भे से पूछा.
“निश्चित रूप से. हमने उसे पकड़ा है और उससे ये नाम पट्टिकाएँ प्राप्त की हैं. मेरा मतलब है, मैंने उसे स्वयं नहीं पकड़ा. मेरे पति और उनके एक साथी ने ऐसा किया. क्या तुम्हें याद है, मैंने तुम्हें बताया था कि मेरे पति सार्वजनिक कार्य विभाग के प्रमुख हैं?”
मिज़ुकी ने बिना सोचे समझे सिर हिलाया.
“तो तुम क्या कहती हो, हम चल कर दोषी से मिलें ? फिर तुम उसे आमने सामने समझ लेना.”
मिज़ुकी श्रीमती साकाकी के पीछे पीछे काउंसलिंग कार्यालय से बाहर, नीचे हाल में आयी और लिफ्ट में सवार हो गयी. वे बेसमेंट में गयी और लम्बे बरामदे में चलते हुए बिलकुल आखिरी सिरे पर स्थित एक दरवाज़े तक गयीं.
कमरे के भीतर पचास के पेटे का एक लम्बा दुबला-पतला व्यक्ति और एक पच्चीस साल के आसपास का विशालकाय व्यक्ति थे. दोनों हलके खाकी रंग के कामगारों वाले कपड़े पहने हुए थे. अधिक उम्र के व्यक्ति के सीने पर एक नाम पट्टिका लगी थी जिस पर लिखा था ‘साकाकी’; युवा व्यक्ति की नाम पट्टिका पर ‘साकुरादा’ लिखा था. साकुरादा एक काले रंग की छड़ी लिए था.
“आप संभवतः श्रीमती एंडो हैं ?” मिस्टर साकाकी ने पूछा. “मैं योशिओ साकाकी हूँ. तेत्सुको का पति. और ये मिस्टर साकुरादो हैं जो मेरे साथ काम करते हैं.”
“आप से मिल कर ख़ुशी हुई,” मिज़ुकी ने कहा.
“क्या उसने तुम्हें परेशान किया?” श्रीमती साकाकी ने अपने पति से पूछा.
“नहीं, मैं समझता हूँ वह परिस्थितियों वश निराश हो गया है,” मिस्टर साकाकी ने कहा. “साकुरादा यहाँ उस पर पूरे पूर्वाह्न नज़र रखे हुए था और स्पष्टतः वह ठीक से व्यवहार कर रहा है. तो आओ चलें.”
कमरे के पीछे की ओर एक और दरवाजा था. साकुरादा ने उस दरवाजे को खोला और बत्ती जला दी. उसने तेजी से कमरे के चारो और देखा, फिर औरों की तरफ मुड़ा. “सब ठीक लग रहा है,” उसने कहा. “भीतर आइये.”
वे एक छोटे से भण्डारण कक्ष जैसे कमरे में घुसे; उसमें मात्र एक कुर्सी थी जिस पर एक बन्दर बैठा हुआ था. अन्य बन्दरों के सापेक्ष वह आकार में काफी बड़ा था बस एक वयस्क मनुष्य से कुछ ही छोटा लेकिन एक प्राथमिक विद्यालय के छात्र से बड़ा. उसके बाल एक बन्दर की तुलना में बड़े थे और धूसर रंग के थे. उस की उम्र बता पाना कठिन था किन्तु वह निश्चित रूप से युवा नहीं था. बन्दर की टाँगें और हाथ मजबूती से लकड़ी की कुर्सी से बंधे हुए थे और उसकी लम्बी पूंछ फर्श पर फैली हुई थी. जैसे ही मिज़ुकी ने कमरे में प्रवेश किया, बन्दर ने उस पर एक दृष्टि डाली फिर नीचे जमीन की ओर ताकने लगा.
“एक बन्दर?” मिज़ुकी ने आश्चर्य से पूछा.
“एकदम ठीक,” श्रीमती साकाकी ने जवाब दिया. “एक बन्दर ने नाम पट्टिकाएं तुम्हारे अपार्टमेंट से चुरायीं थी, लगभग उसी समय के आसपास जब तुमने अपना नाम भूलना शुरू किया था.”
मैं नहीं चाहती कि जब मैं चली जाऊं तो इसे ले कर कोई बन्दर भाग जाये, यूको ने कहा था. तो वह एक मज़ाक नहीं था, मिज़ुकी को वास्तविकता का भान हुआ. उसकी रीढ़ में एक ठंडी लहर सी दौड़ गयी.
“मैं बहुत शर्मिंदा हूँ,” बन्दर ने कहा. उसकी आवाज़ धीमी किन्तु जीवन से परिपूर्ण थी, लगभग संगीतात्मकता लिए हुए.
“यह बात कर सकता है!” हक्का बक्का मिज़ुकी ने विस्मय से कहा.
“हाँ, मैं कर सकता हूँ,” बन्दर ने जवाब दिया, उसके चेहरे के भाव अपरिवर्तित थे. “एक और बात है जिसके लिए मुझे तुम से क्षमा मांगनी है. जब मैं तुम्हारे घर में घुसा, मेरी योजना नाम पट्टिकाओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं लेने की थी लेकिन मैं इतना भूखा था कि मैंने दो केले जो वहाँ मेज पर रखे थे, गड़प कर लिए थे. वे उस समय छोड़ देने लायक नहीं लगे थे.”
“इसकी ढिठाई देखिये,” साकुरादा ने छड़ी को दो तीन बार अपनी हथेली पर मारते हुए कहा. “कौन जाने इसने क्या-क्या साफ कर दिया था ? क्या मैं पता लगाने के लिए उसे थोड़ा और टाइट करूँ?”
“आराम से,” मिस्टर साकाकी ने उससे कहा. “उसने केलों के बारे में स्वयं स्वीकार किया है और इसके अतिरिक्त उसने मुझ पर कोई मारक वार नहीं किया है. हमें तब तक अनावश्यक सख्ती नहीं करनी चाहिए जब तक तथ्य नहीं जान लेते. यदि उन्हें पता चलेगा कि हमने एक जानवर के साथ वार्ड कार्यालय में बुरा बर्ताव किया है, तो हम गंभीर समस्या से घिर सकते हैं.”
“तुमने नाम पट्टिकाएं क्यों चुराई थी ?” मिज़ुकी ने पूछा.
“मैं यही करता हूँ,” बन्दर ने जवाब दिया. मैं ऐसा बन्दर हूँ जो लोगों के नाम ले लेता है, यह एक बीमारी है जो मुझे है. एक बार जब मैं किसी नाम को चुन लेता हूँ, मैं अपने आप को रोक नहीं पाता. ध्यान रहे, यह कोई भी नाम नहीं होता. मैं कोई ऐसा नाम देखता हूँ जो मुझे आकृष्ट करता है और फिर मुझे उसे लेना ही होता है. मैं जानता हूँ यह ग़लत है, किन्तु मैं स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाता.”
“क्या तुम हमारे हॉस्टल में घुसने और यूको का नाम चुराने की कोशिश कर रहे थे ?”
हाँ, मैं कर रहा था. मैं आपादमस्तक मिस मात्सुनाका के प्रेम में था. मैं अपने जीवन में किसी और के प्रति इतना अधिक आकर्षित नहीं हुआ था. किन्तु जब मैं उसे अपना बना पाने में सफल नहीं हो सका, मैंने निर्णय लिया कि चाहे जो हो, मुझे कम से कम उसका नाम ले लेना चाहिए. यदि मेरे पास उसका नाम होता, मैं संतुष्ट रहता. लेकिन इसके पूर्व कि मैं अपनी योजना क्रियान्वित कर पाता, उसका देहावसान हो गया.”
“क्या उसकी आत्महत्या से तुम्हारा कोई सम्बन्ध था?”
नहीं,” बन्दर ने जोर से अपना सर हिलाते हुए कहा. “मेरा उससे कुछ लेना देना नहीं था. वह बस अपने आंतरिक अंधेरों के समक्ष अवश हो गयी थी.”
“लेकिन इतने वर्षों के गुजर जाने के बाद तुम कैसे जानते थे कि उसकी नाम पट्टिका मेरे घर में थी?”
“मुझे उसे खोजने में लम्बा समय लगा. जब मिस मात्सुनाका की मृत्यु हुई, मैंने उसकी नाम पट्टिका हॉस्टल के बुलेटिन बोर्ड से लेनी चाही, लेकिन वह वहाँ नहीं थी. किसी को पता नहीं था कि वह कहाँ थी. मैंने अपनी तरफ से उसे ढूंढ़ने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु कुछ भी कर के मैं उस का पता नहीं लगा सका. उस समय यह बात मेरे मन में नहीं आयी कि मिस मात्सुनाका अपनी नाम पट्टिका तुम्हारे पास छोड़ गयी हो सकती थी, क्योंकि तुम उसके कुछ खास करीब नहीं थी.”
“सच है,” मिज़ुकी ने कहा.
“किन्तु एक दिन मुझे अचानक ध्यान आया कि हो सकता है- बस हो सकता है- कि उसने इसे तुम्हें दिया हो. यह पिछले वर्ष वसंत की बात है. तुम्हें ढूंढ़ निकालने में मुझे लम्बा समय लगा- यह पता करने में कि तुमने विवाह कर लिया था, कि तुम्हारा नाम अब मिज़ुकी एंडो था, कि तुम अब शिनागावा में एक फ़्लैट में रहती थी. बन्दर होना जाँच प्रक्रिया को धीमा कर देता है, तुम कल्पना कर सकती हो. जो भी हो, इसी तरह मैं उसे चुरा सका.”
“लेकिन तुम ने मेरी भी नाम पट्टिका क्यों चुरा ली ? केवल यूको की क्यों नहीं? तुम ने जो किया उसके कारण मुझे बहुत परेशानी उठानी पड़ी !”
“मैं बहुत बहुत शर्मिंदा हूँ,” बन्दर ने लज्जा से सिर झुकाये हुए कहा. “जब मैं कोई ऐसा नाम देखता हूँ, जो मुझे पसंद हो, मैं बस उसे झपट लेता हूँ. यह थोड़ा असुविधाजनक लगेगा लेकिन तुम्हारे नाम ने मेरे बेचारे हृदय को निश्चय ही उद्वेलित कर दिया था. जैसा कि मैंने पहले ही कहा, यह एक बीमारी है. ऐसी अदम्य इच्छा मुझे अपने वश में कर लेती है कि मैं नियंत्रण नहीं रख पाता. मैं जानता हूँ कि यह गलत है किन्तु मैं फिर भी ऐसा करता हूँ. मैं गंभीरता से उन सभी समस्याओं के लिए, जो मेरे कारण हुई, क्षमा चाहता हूँ.”
“यह बन्दर शिनागावा के सीवर में छिपा हुआ था,” श्रीमती साकाकी ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा. “इसलिए मैंने अपने पति को इसे पकड़ने के लिए अपने साथ कुछ युवा साथियों को ले जाने को कहा था.”
“ज्यादातर काम युवा साकुरादा ने ही किया था,” मिस्टर साकाकी ने कहा.
“सार्वजनिक कार्य विभाग को उठ कर देखना ही पड़ता है जब इस तरह का कोई किरदार हमारे सीवर में छिपा हुआ हो,” साकुरादा ने गर्व से कहा. “बन्दर का छिपने का स्थान मूलतः ताकानावा में है जिसे यह पूरे टोकियो में अपने क्रियाकलापों के लिए अपने अड्डे के रूप में प्रयोग करता था.”
“हमारे रहने के लिए शहर में कोई जगह नहीं है,” बन्दर ने कहा. “कितने कम वृक्ष बचे हैं, दिन के समय के लिए कितनी कम छायादार जगहें बची हैं. बच्चे हम पर चीजें फेंकते है अथवा बीबी बंदूकों (एक तरह की एयर गन) से हम पर निशाना लगाते हैं. टीवी के लोग प्रगट होते ही हम पर तीव्र रोशनी फेंक देते हैं. इसलिए हमें जमीन के नीचे की जगहों में छिपना पड़ता है.”
“लेकिन आप को कैसे पता चला कि बन्दर सीवर में छिपा हुआ था?” मिज़ुकी ने मिस्टर साकाकी से पूछा.
“जब हम पिछले दो महीनों से बात कर रहे थे तो बहुत सी चीजें धीरे-धीरे मुझे स्पष्ट होने लगी थी,” श्रीमती साकाकी ने कहा. “यह कुहासे के छटने जैसा था. मुझे भान हुआ कि कोई चीज होनी चाहिए जो नाम चुरा रही थी और यह जो भी चीज हो वह जमीन के नीचे छिपी हुई थी. इस से संभावनाएं सीमित हो गयीं- यह चीज या तो सबवे में थी अथवा सीवर में. इसलिए मैंने अपने पति से कहा कि कोई ऐसा प्राणी था, न कि मनुष्य, जो सीवर में रह रहा था और मैंने उन्हें इसे तलाशने के लिए कहा. और वैसा ही हुआ, वे बन्दर को पकड़ लाये.”
मिज़ुकी को कुछ क्षण के लिए शब्द ही नहीं मिले. “लेकिन…. आप केवल मेरी बातें सुन कर यह समझ गयीं?” अंततः उसने पूछा.
“हो सकता है उसका पति होने के कारण मुझे इस जगह यह नहीं कहना चाहिए लेकिन,” मिस्टर साकाकी ने गंभीरता से कहा, “मेरी पत्नी एक विशिष्ट व्यक्ति है, जिसमें असामान्य शक्तियाँ हैं. अपने बीस वर्ष के वैवाहिक जीवन में कई बार मैंने विचित्र घटनाएँ देखी हैं. इसीलिए मैंने यहाँ वार्ड कार्यालय में उसका सलाह केंद्र खुलवाने के लिए इतना कठिन प्रयत्न किया. मैं जानता था कि यदि उसके पास कोई ऐसा स्थान हुआ जहाँ वह अपनी शक्तियों का प्रयोग भले के लिए कर सकी तो शिनागावा के निवासियों को लाभ मिलेगा.”
“आप बन्दर के साथ क्या करेंगे?” मिज़ुकी ने पूछा.
“इसे जीवित नहीं छोड़ सकते,” साकुरादा ने लापरवाही से कहा. “यह चाहे जो भी कहे, एक बार जब इनकी आदतें इस तरह ख़राब हो जाती हैं, वे फिर-फिर अपनी पुरानी हरकतें दोहराते हैं- तुम इस बात को पक्का समझो.”
“अभी रुको,” मिस्टर साकाकी ने कहा. “चाहे हमारे पास जो भी कारण हों, यदि किसी प्राणी-अधिकार समूह को हमारे एक बन्दर के मारने की बात पता चल गयी तो वह शिकायत कर देगा और तुम शर्त लगा लो हम पर नर्क टूट पड़ेगा. तुम्हें तब का याद होगा जब हमने वे सारे कौवे मारे थे, कितनी गंध फैली थी. मैं वह सब दोहराये जाने से बचना चाहूंगा.”
“मैं तुम से याचना करता हूँ, कृपा करके मुझे मत मारो,” बन्दर ने अपना सिर झुकाते हुए कहा. “जो कुछ मैंने किया वह ग़लत था, यह मैं समझता हूँ. मैंने ढेरों परेशानियाँ पैदा की. मैं तुम्हारे साथ बहस नहीं कर रहा हूँ लेकिन मेरे कामों से कुछ अच्छाई भी होती हैं.”
“लोगों के नाम चुराने से कौन सी अच्छाई संभव हो सकती थी?” मिस्टर साकाकी ने तीव्रता से पूछा.
“मैं लोगों के नाम चुराता हूँ, इस बारे में कोई संदेह नहीं. लेकिन ऐसा करने के दौरान मैं उन नामों से जुड़े कुछ नकारात्मक प्रभाव भी दूर कर देने में सफल रहता हूँ. मैं डींग नहीं हाँक रहा, किन्तु यदि मैं तब यूको मात्सुनाका की नाम पट्टिका चुरा पाने में सक्षम हो जाता, तो हो सकता था वह अपनी जान न लेती.”
“तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?” मिज़ुकी ने कहा.
“उसके नाम के साथ, हो सकता है मैं उसके अंदर के कुछ अंधेरों को भी दूर हटाने में सक्षम हो जाता,” बन्दर ने कहा.
“यह कहना बड़ा आसान है,” साकुरादा ने कहा. “मैं इसे नहीं मानता. बन्दर की जान संकट में है- इसीलिए वह अपने कामों को उचित ठहराने की कोशिश कर रहा है.”
“हो सकता है ऐसा न हो,” श्रीमती साकाकी ने अपने हाथ मोड़े हुए कहा. “उसकी बात में दम हो सकता है.” वे बन्दर की ओर मुड़ीं. “जब तुम नाम चुराते हो तो उसके साथ अच्छे और बुरे सब प्रभाव ले जाते हो ?”
“हाँ, ठीक बात है,’ बन्दर ने कहा. मेरे पास कोई विकल्प नहीं होता. मैं पूरा पैकेज ही लेता हूँ, वह जैसा भी हो.”
“अच्छा- मेरे नाम के साथ कौन सी बुरी चीजें गयी थी ?” मिज़ुकी ने बन्दर से पूछा.
“मैं उसे नहीं बताना चाहूंगा,” बन्दर ने कहा.
“कृपया मुझे बताओ,” मिज़ुकी ने जिद की. वह रुकी. “यदि तुम मेरे प्रश्न का उत्तर देते हो, तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगी. और मैं यहाँ उपस्थित सभी से तुम्हें माफ़ करने के लिए कहूँगी.”
“क्या सच में ?”
“यदि यह बन्दर मुझे सच्ची बात बताता है तो क्या आप इसे माफ़ कर देंगे ?” मिज़ुकी ने मिस्टर साकाकी से पूछा. “वह स्वभाव से बुरा नहीं है. उसे पहले ही काफी तकलीफ मिल चुकी है इसलिए आइये वह जो कहता है उसे सुनें फिर आप उसे ताकाओ पर्वत पर ले जा सकते हैं अथवा ऐसी ही किसी और जगह और उसे मुक्त कर सकते हैं. मैं नहीं समझती कि वह किसी और को पुनः परेशान करेगा. आप क्या सोचते हैं?”
“मुझे कोई आपत्ति नहीं है, जब तक कि तुम इसे ठीक समझती हो,” मिस्टर साकाकी ने कहा. वे बन्दर की ओर मुड़े. “यह कैसा रहेगा? तुम कसम खाओ कि यदि हम तुम्हें पहाड़ों में मुक्त कर देते हैं तो तुम टोक्यो शहर की सीमा में पुनः प्रवेश नहीं करोगे.”
“ठीक है, श्रीमान. मैं कसम खाता हूँ कि मैं वापस नहीं आऊंगा,” बन्दर ने भीरुता से वादा किया. “मैं आप के लिए फिर कभी कोई परेशानी नहीं पैदा करूँगा. अब मैं युवा नहीं रहा हूँ, और यह मेरे लिए एक नया जीवन शुरू करने का अवसर होगा.”
“फिर ठीक है, तुम मुझे बताते क्यों नहीं कि किस तरह की बुरी चीजें मेरे नाम के साथ संलग्न थी?” मिज़ुकी ने सीधे बन्दर की छोटी और लाल आँखों में देखते हुए कहा.
“यदि मैं बताऊंगा तो उससे तुम्हें चोट पहुँच सकती है.”
“मुझे परवाह नहीं, तुम आगे बढ़ो.”
कुछ समय के लिए बन्दर ने इस सम्बन्ध में विचार किया, उसकी भौंहें सिकुड़ गयीं. “मैं सोचता हूँ तुम्हारे लिए यह बेहतर होगा कि तुम इसे न सुनो,” उसने कहा.
“मैंने कहा न कि सब ठीक है. मैं वास्तव में जानना चाहती हूँ.”
“ठीक है,” बन्दर ने कहा. “फिर मैं तुम्हें बताऊंगा. तुम्हारी माँ तुम्हें प्यार नहीं करती. उसने तुम्हें कभी प्यार नहीं किया, जबसे तुम पैदा हुई तब से एक क्षण के लिए भी नहीं. मुझे नहीं पता कि क्यों, लेकिन यह सच है. तुम्हारी बड़ी बहन तुम्हें नहीं पसंद करती. तुम्हारी माँ ने तुम्हें याकोहामा भेजा क्योंकि वह तुम से मुक्ति पाना चाहती थी. वह किसी भी तरीके से जितना भी संभव हो तुम्हें दूर रखना चाहती थी. तुम्हारे पिता बुरे आदमी नहीं हैं लेकिन वे वैसे नहीं हैं जिसे तुम मजबूत व्यक्तित्व कह सको और वे तुम्हारे लिए खड़े नहीं हो सके. इन कारणों से जब तुम छोटी थी तुम्हें कभी पर्याप्त प्यार नहीं मिला. मैं सोचता हूँ तुम्हें इसका आभास था किन्तु तुमने अपनी आँखें जानबूझकर इस बात से दूर हटा ली थी. तुमने इस पीड़ादायक वास्तविकता को अपने ह्रदय की गहराई में एक छोटे अँधेरे कोने में रख दिया था और ढक्कन बंद कर दिया था. तुम ने किसी भी नकारात्मक अनुभूति को दबाये रखने का प्रयत्न किया. यह रक्षात्मक भाव तुम जो हो उसका हिस्सा बन गया. इस सब के कारण तुम स्वयं कभी किसी अन्य को बिना शर्तों के, गहनता से प्रेम कर पाने में सक्षम न हो सकी.”
मिज़ुकी मौन थी.
“तुम्हारा वैवाहिक जीवन खुश और समस्याओं से मुक्त लगता है. और संभवतः वह ऐसा है भी. लेकिन तुम अपने पति को सच में प्रेम नहीं करती. क्या मैं ठीक कह रहा हूँ? यदि तुम्हारा बच्चा भी हुआ तब भी ऐसा ही रहेगा.”
मिज़ुकी ने कुछ भी नहीं कहा. वह फर्श पर बैठ गयी और उसने अपनी आँखें बंद कर लीं. उसने महसूस किया मानों उसकी समूची देह बिखर जाने को है. उसकी त्वचा, उसके अंग-प्रत्यंग, उसकी अस्थियाँ सब ध्वस्त हो रहे थे. वह बस अपनी सांसों की आवाज़ सुन पा रही थी.
“एक बन्दर का यह सब कहना बहुत भयानक है,” साकुरादा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा. “चीफ, मैं इसे और अधिक नहीं बर्दाश्त कर सकता. आइये पीट-पीट कर इसका भुरता बना दें !”
“रुको,” मिज़ुकी ने कहा. “बन्दर जो कह रहा है वह सही है. मैं इसे लम्बे समय से जानती रही हूँ, किन्तु मैंने सदैव इसके प्रति अपनी आँखें बंद रखी, अपने कान बंद रखे. वह सच कह रहा है, इसलिए उसे माफ़ कर दो. बस उसे पहाड़ तक ले जाओ और मुक्त कर दो.”
श्रीमती साकाकी ने कोमलता से अपना हाथ मिज़ुकी के कंधे पर रख दिया. “क्या तुम निश्चित रूप से इस बात से ठीक हो?”
“मैं परवाह नहीं करती, बस मेरा नाम मुझे वापस मिल गया यह बहुत है. अब से मैं उन सब चीजों के साथ जीने जा रहीं हूँ जो कुछ भी मेरे सामने हैं. वह मेरा नाम है और वह मेरा जीवन है.”
जब मिज़ुकी बन्दर से विदा ले रही थी, उसने उसे यूको मात्सुनाका की नाम पट्टिका दे दी.
“इसे तुम्हें रखना चाहिए, मुझे नहीं,” उसने कहा. “उसके नाम की अच्छे से हिफाजत करना. और किसी और का नाम मत चुराना.”
“मैं इसकी बहुत मन से हिफाजत करूँगा. और मैं फिर कभी चोरी नहीं करूँगा, मैं वादा करता हूँ,” बन्दर ने कहा. उसके चहरे पर गंभीरता थी.
“क्या तुम जानते हो कि अपनी मृत्यु के पूर्व यूको ने अपनी नाम पट्टिका मुझे क्यों दी थी? उसने मुझे क्यों चुना था ?”
“मैं नहीं जानता कि क्यों,” बन्दर ने कहा. “लेकिन क्योंकि उसने ऐसा किया इसलिए मैं और तुम मिल सके. भाग्य का चक्र, मैं सोचता हूँ.”
“तुम ठीक कहते हो,” मिज़ुकी ने कहा.
“क्या जो कुछ मैंने कहा उससे तुम्हें चोट पहुँची?”
“हाँ,” मिज़ुकी ने कहा. बहुत तकलीफ हुई.”
“मुझे खेद है. मैं तुम्हें नहीं बताना चाहता था.”
“कोई बात नहीं. मन की गहराई में मैं इसे पहले से ही जानती थी. यह कुछ ऐसा था जिसका मुझे किसी दिन सामना करना ही था.”
“मुझे यह सुन कर राहत मिली,” बन्दर ने कहा.
“अलविदा,” मिज़ुकी ने कहा. मैं नहीं सोचती कि हम फिर कभी मिलेंगे.”
“अपना ध्यान रखना,” बन्दर ने कहा. “और मुझ गरीब का जीवन बचाने के लिए धन्यवाद.”
“तुम्हारे लिए अच्छा होगा कि तुम अपना चेहरा फिर कभी शिनागावा के आसपास न दिखाओ,” साकुरादा ने अपनी छड़ी अपने हाथ पर मारते हुए चेतावनी दी. “हम तुम्हें इस बार छोड़ रहे हैं क्योंकि हमारे प्रमुख ऐसा कह रहे हैं लेकिन यदि मैंने तुम्हें दुबारा कहीं पकड़ा तो तुम जीवित नहीं जा पाओगे.”
“अच्छा तो हमें अगले हफ़्ते के लिए क्या करना चाहिए ?” श्रीमती साकाकी ने, मिज़ुकी के साथ अपने सलाह कक्ष में वापस लौटने के बाद पूछा. “क्या तुम्हारे पास अब भी ऐसे मुद्दे हैं जिन के सम्बन्ध में तुम मेरे साथ बात करना चाहोगी ?”
मिज़ुकी ने सर हिलाया. “नहीं, आपका धन्यवाद. मैं समझती हूँ मेरी समस्या हल हो गयी है. मैं उन सब बातों के लिए आभारी हूँ जो आपने मेरे लिए की.”
“क्या तुम्हें जो बातें बन्दर ने कहीं उनके सम्बन्ध में बात करने की आवश्यकता नहीं है ?”
“नहीं, मैं उन्हें स्वयं ही सँभाल लूंगी. मैं उस सम्बन्ध में कुछ समय स्वयं सोच विचार करना चाहूँगी.”
श्रीमती साकाकी ने सिर हिलाया. “यदि तुम इस पर अपना दिमाग लगाओगी,” उन्होंने कहा, “तो मैं जानती हूँ कि तुम और मज़बूत बनोगी.”
दोनों महिलाओं ने हाथ मिलाया और एक दूसरे को अलविदा कहा.
जब वह घर पहुँची, मिज़ुकी ने अपनी नाम पट्टिका और अपना ब्रासलेट लिया और उन्हें एक भूरे लिफाफे में रख दिया. उसने लिफाफे को अपनी आलमारी में गत्ते के डिब्बे में रख दिया. उसने अंततः अपना नाम वापस पा लिया था और फिर से सामान्य जीवन जी सकती थी. चीजें ठीक की जा सकती थी. या फिर नहीं भी. लेकिन कम से कम अब उसका नाम उसके पास था, एक नाम जो उसका था, मात्र उसका.
श्रीविलास सिंह दो कविता संग्रह “कविता के बहाने” और ” रोशनी के मुहाने तक” प्रकाशित.कहानी संग्रह “सन्नाटे का शोर” और अनूदित कहानियों का संग्रह ” आवाज़ों के आर-पार प्रकाशित. नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद “शब्द शब्द आकाश ” शीघ्र प्रकाश्य |
ज़बरदस्त कहानी और उतना ही ख़ूबसूरत तर्जुमा
एक साँस में पढ़ जाने वाली कहानी है। एक वाक्य को पढ़ लेने के बाद अगले वाक्य का रहस्य जान लेने की जल्दबाजी हो जाती है। मानव मन के अवचेतन को खोलने वाली मनोविश्लेषण शैली का अच्छा प्रयोग हुआ है। कहानी में बंदर का चरित्र कौतूहल पैदा करता है, वह कथारस और पठनीयता को गाढ़ा करता है, लेकिन अंत में उसमें थोड़ी कृत्रिम बोझिलता दिखाई देने लगती है। यह शायद दो भाषाओं के बाद पहुंचे अनुवाद की सीमा हो। शायद कहानी की मूल भाषा में बंदर के सहारे जो जादुई यथार्थवाद खड़ा किया गया हो वह ज्यादा जस्टीफाई करने वाला हो। बहरहाल संपूर्ण प्रभाव में कहानी अच्छी लगी।
यह कहानी मुझे याद पड़ता है कि संभवतः कुछ चार पांच महीने पहले ही किसी अन्य पत्रिका में पढ़ी थी, और रोचक लगी थी। किन्तु कहानी की परतों को खोलने के लिए क्योंकि लेखक ने असंभव किरदार को गढ़ा है, इसलिए कहानी कुछ अबूझ हो गयी थी।
श्रीविलास जी द्वारा किया गया यह अनुवाद पढ़ने के साथ ही इस कहानी के पिछले पाठ के दौरान पैदा हुई असहजताओं का अन्त हुआ। इसके लिए पूरा श्रेय श्रीविलास जी के अनुवाद को जाता है।
कहानी का पुनर्पाठ अब मिजूकी की स्थितियों और उसके सोचने के तरीके को समझने में मदद करता है। और बतौर पाठक मुराकामी के इस प्रयोग को देखकर एक दिशा खुलती है कि कहानी कहने के लिए लीक से हटकर नये किरदारों को गढ़ा जा सकता है और इस तरह प्रतीक तौर पर जो कहना चाह रहे हैं उसे और प्रभावशाली तरीके से कहा जा सकता है।
दूसरी कहानी की प्रतीक्षा रहेगी। श्रीविलास जी और समालोचन का आभार।
जापानी समाज के मनोविज्ञान को समझने के लिए एक अच्छी और जरूरी कहानी। लक्ष्मीधर मालवीय का कहना था कि जापानी मानस को पूरी जिंदगी रहने के बावजूद वह कभी अच्छी तरह नहीं समझ सके। प्रत्येक जापानी का मनोविज्ञान बेहद उलझा हुआ है। उनका कहना था कि उन्हें अपनी पूरी जिंदगी में डेढ़ जापानी सामान्य मिले। एक उनके सहयोगी अध्यापक जो सेवा निवृत होने के बाद संन्यास लेकर अज्ञातवास को चले गए और आधी उनकी पत्नी अकिको, जिसके बारे में वह खुद नहीं कह सकते कि अगले दिन वह क्या कुछ कर गुज़रेगी। इसी कारण जापानी कहानी या उपन्यास का अनुवाद करना सबसे जटिल कार्य मानते थे।
एक दो वर्षों से मैंने पढ़ना कम कर दिया है किन्तु जब ये जाना कि लेखक नोबेल पुरस्कार की दौड़ में हैं ..अभी पढ़ने का मन बनाया और पूरी कहानी पढ़ ली। वैसे भी मैंने जापानी साहित्य नहीं पढ़ा सिर्फ़ हाइकु लिखना अच्छा लगता है ।
कहानी पढ़नी शुरू की और पूरी पढ़ी । कहानी बहुत अच्छी लगी । कहानी का कथानक ऐसा भी हो सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की थी। नाम भूलना , दो नेमप्लेटों का चोरी हो जाना, चोर एक बन्दर था .. बहुत सुन्दर रोमांचक कहानी है.. मैं भी कुछ -कुछ भूल जाती हूं इसलिए भी उत्सुकता हुई।
आदरणीय श्री विलास सिंह जी का अनुवाद उत्कृष्ट है।
बहुत धन्यवाद कहानी साझा करने के लिए।
हारुकी मुराकामी की कहानी ‘शिनागावा का बंदर’ मानवीय मनोविज्ञान की गहरी पड़ताल करती है।यह जहाँ मनुष्य के अचेतन का खुलासा करती है वहीं उसकी आधी-अधूरी रही मनोकामनाओं और उनसे उस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का भी जायज़ा लेती है।यह जापानी समाज की मानसिकता का भी जिंदा दस्तावेज़ है।ईर्ष्या जैसी कथित मानसिकता से अछूती मिजूकी एंडो के व्यक्तित्व पर उनके परिजनों के जीवन व्यवहार के चलते जो खरोंचे पड़ी उनका
साक्षात और नाम भूलने की नामुराद बीमारी को लेकर बुना रचा कथानक बेहद दिलचस्प है।श्री विलास सिंह ने इसका जिंदा और सशक्त अनुवाद किया है,उन्हें बधाई।
गजब कहानी और कथा रस अद्भुतl एक सांस में इतनी लंबी कहानी फिर पढ़ी गई l पहले वनमाली मे पढ़ी थी।
यह हर मानव मन के अंधेरे को बताने वाली कहानी है|
अच्छे अनुवाद के लिए कहानी को साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद।
कहानी का सबसे प्रमुख तत्व है उत्सुकता और इस कहानी को पढ़ते समय आरंभ ही उत्सुकता बनी रही थी अब क्या होगा ? मानव मन की जटिलताओं को परत- दर – परत खोलती कहानी। नए तरह की कहानी पढ़वाने के लिए समालोचन का आभार🙏
ग़ज़ब कहानी है भाई। जादुई यथार्थ के ऐसे उदाहरण बहुत कम सामने आते हैं। इस कड़ी की अगली कहानी का इंतज़ार है।
आप बेहतरीन काम कर रहे हैं।
वैसे तो कहानी पढ़ने का मन बनाना ही मुश्किल लगता है,पर कहानी अच्छी हो तो उसे कई हिस्सों में रुक रुककर पढ़ पाता हूं।एक बार में ही कोई कहानी पहली बार पढ़ी। कहानी अच्छी लगी, उत्सुकता अंत तक ले पहुंची।