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Home » अल्बेयर कामू: मौन लोग: अनुवाद: सुशांत सुप्रिय » Page 3

अल्बेयर कामू: मौन लोग: अनुवाद: सुशांत सुप्रिय

अल्बेयर कामू (7 नवम्बर,1913 - 4 जनवरी,1960) की कहानी ‘The Silent Men’ (French: Les muets) उनके कहानी-संग्रह- ‘Exile and the Kingdom’ (French: L'exil et le royaume) जिसका प्रकाशन 1957 में हुआ था, में संकलित है. उन्हें 1957 में ही साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सुशांत सुप्रिय का यह अनुवाद इसके अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है. कामू दार्शनिक रचनाकार हैं. अस्तित्ववाद (Existentialism) और असंगतता (Absurdism) के सिद्धांतों के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं. यह कहानी कामगारों के असफल हड़ताल के बाद, उनके अंदर अवसाद और विरक्ति और फिर घटित बदलावों को दिखाती है. सुशांत सुप्रिय चूंकि ख़ुद कहानीकार हैं इसलिए अनुवाद में भी रवानी बचाए रखते हैं. कहानी प्रस्तुत है.

by arun dev
August 11, 2021
in अनुवाद
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वह मामला अब निपटाया जा चुका है, और हम सब इस नतीजे पर पहुँच गए हैं कि काम दोबारा शुरू किया जाना है. मैं देख सकता हूँ कि तुम सब मुझसे नाराज़ हो, और मुझे इस बात का दुख है. मैं जैसा महसूस करता हूँ, वैसा ही तुम्हें बता रहा हूँ. लेकिन मैं केवल एक बात और कहना चाहता हूँ : जो मैं तुम सब के लिए आज नहीं कर सकता , वह मैं शायद तब कर पाऊँ जब यह व्यवसाय मुझे मुनाफ़ा देने लगेगा. यदि मैं कुछ कर सका तो तुम्हारे माँगने से पहले कर दूँगा. तब तक हम सब को मिल-जुल कर काम करने की कोशिश करनी चाहिए. “श्री लस्साले ने बोलना बंद किया और वह अपनी ही कही बात पर विचार करते प्रतीत हुए. फिर उन्होंने उन दोनों कारीगरों की ओर देखते हुए पूछा, “ क्या कहते हो ? “ मार्को खिड़की से बाहर देख रहा था. अपने दाँत भींचते हुए यवेर्स कुछ बोलना चाहता था, पर वह कुछ भी नहीं बोल पाया.

“सुनो, “ श्री लस्साले ने कहा, “ मुझे लग रहा है , तुम लोगों ने अपने दिमाग़ के दरवाज़े बंद कर लिए हैं. तुम सब इससे उबर जाओगे. लेकिन जब तुम लोग दोबारा मेरी बात सुनने को तैयार हो जाओ तो मेरी वह बात याद रखना जो मैंने अभी कुछ देर पहले तुम दोनों से कही थी. “वे उठे और मार्को की ओर बढ़ते हुए उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया. अचानक मार्को का रंग पीला पड़ गया और एक पल के लिए उसके चेहरे पर कमीनेपन का भाव आ गया. फिर अचानक वह मुड़ा और कमरे से बाहर चला गया. यवेर्स का चेहरा भी पीला पड़ चुका था. उसने मालिक का आगे बढ़ा हुआ हाथ देखा, पर अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया.

“भाड़ में जाओ !“ वह चिल्लाया.

जब वे दोनों वापस दुकान में लौटे तो बाक़ी के कारीगर दोपहर का भोजन कर रहे थे. बैलेस्टर बाहर जा चुका था. मार्को ने केवल यह कहा , “ लगे रहो, “ और वह अपनी बैठने की जगह पर चला गया. एस्पोज़ीतो ने खाना खाना बंद कर दिया और उनसे पूछा कि उन्होंने मालिक से क्या बातचीत की थी. यवेर्स ने उत्तर दिया कि उन्होंने मालिक की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया था. फिर वह अपना थैला लेने के लिए गया और वापस अपने काम करने वाली जगह पर लौट आया. वह अपना खाना खाना शुरू कर ही रहा था जब उसने अपने से कुछ ही दूरी पर सैय्यद को छीलन की ढेर के बीच पीठ के बल लेटा हुआ पाया. उसकी आँखें अनिश्चितता से खिड़कियों की ओर देख रही थीं, जिनकी काँच में आकाश का फीका नीलापन प्रतिबिम्बित हो रहा था. यवेर्स ने उससे पूछा कि क्या उसने अपना भोजन कर लिया है. सैय्यद ने कहा कि उसने अपने अंजीर खा लिए हैं. यवेर्स खाते-खाते रुक गया. श्री लस्साले से होने वाली मुलाक़ात के समय से ही जो बेचैनी उसमें व्याप्त थी , वह अचानक ही जाती रही और उसने उसके बदले एक सुखद उत्साह महसूस किया. उसने अपनी सैंडविच के दो टुकड़े किए और अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ. पर सैय्यद ने सैंडविच लेने से इंकार कर दिया. इस पर यवेर्स ने उससे कहा कि अगले हफ़्ते तक सब बेहतर हो जाएगा. “तब हम सब को खिलाने-पिलाने की बारी तुम्हारी होगी, “उसने कहा. सैय्यद मुस्कुराया. अब उसने यवेर्स से सैंडविच का टुकड़ा ले कर खाया, किंतु संकोच से, जैसे उसे अभी भूख नहीं लगी हो.

एस्पोज़ीतो ने एक पुराना बर्तन लिया और छीलन और लकड़ी के टुकड़ों की मदद से आग जला ली. उसने बोतल में लाई हुई कॉफ़ी आग पर गरम की. उसने बताया कि उसके पंसारी ने उनकी दुकान के लिए खुद बना कर यह तोहफ़ा भेजा , जब उसे हड़ताल के विफल होने का पता चला. वह बोतल एक हाथ से दूसरे हाथ में दी जाती रही. हर बार उसमें से चीनी मिली कॉफ़ी उड़ेली जाती. सैय्यद को खाना खाते समय उतना आनंद नहीं आया था , जितना कॉफ़ी पीते समय आ रहा था. एस्पोज़ीतो ने बाकी बची कॉफ़ी सीधे उस गरम बर्तन में से ही पी ली. वह कॉफ़ी सुड़कने की आवाज़ निकालता रहा और गालियाँ बकता रहा. तभी बैलेस्टर वहाँ आ पहुँचा ताकि वह सभी कारीगरों को वापस काम पर जाने का इशारा कर सके.

जब वे उठ कर अपने बर्तन आदि इकट्ठा करके अपने थैलों में डाल रहे थे, बैलेस्टर आ कर उनके बीच में खड़ा हो गया. उसने अचानक कहा कि यह सब के लिए मुश्किल की घड़ी थी, और उसका भी यही हाल था. किंतु केवल इसीलिए वे सब बच्चों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते थे, और नाराज़ हो कर खीझने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था. हाथ में बर्तन पकड़े हुए एस्पोज़ीतो उसकी ओर मुड़ा. उसका लम्बा , खुरदरा चेहरा अचानक उत्तेजना से लाल हो गया था. यवेर्स समझ गया कि वह क्या कहने वाला था और सभी कारीगर एक ही समय में क्या सोच रहे थे. वे सब नाराज़ हो कर खीझ नहीं रहे थे. उनके मुँह बंद थे. उनके पास और कोई विकल्प नहीं था. कई बार ग़ुस्से और असहायता का भाव इतनी पीड़ा देता है कि आप रो भी नहीं पाते हैं. आख़िरकार वे सभी मर्द थे और ऐसी हालत में वे सभी मुस्कुराने और खीसें निपोरने वाले नहीं थे. लेकिन एस्पोज़ीतो ने इनमें से कुछ भी नहीं कहा. अंतत: उसका चेहरा नरम पड़ गया और उसने बैलेस्टर के कंधे पर धीरे से थपकी दी, जबकि बाक़ी कारीगर अपना काम करने के लिए अपनी-अपनी जगहों पर चले गए.

हथौड़ों के चलने की आवाज़ दोबारा आने लगी. दुकान का बड़ा अहाता चिर-परिचित शोर से भर गया. वहाँ छीलन और पसीने से गीले हो गए कपड़ों की मिली-जुली गंध मौजूद थी. जब एस्पोजीतो ने बिजली से चलने वाले आरे के चीख़ने की आवाज़ सुनाई दी समझ गया कि वह क्या कहने वाला था, और सभी कारीगर एक ही समय में क्या सोच रहे थे. वे सब नाराज़ हो कर खीझ नहीं रहे थे. उनके मुँह बंद थे. उनके पास कोई विकल्प नहीं था. कई बार ग़ुस्से और असहायता का भाव इतनी पीड़ा देता है कि आप रो भी नहीं पाते हैं. अंतत: उसका चेहरा नरम पड़ गया और उसने बैलेस्टर के कंधे पर धीरे से थपकी दी, जबकि बाक़ी कारीगर अपना काम करने के लिए अपनी-अपनी जगह पर चले गए. दोबारा हथौड़ों के चलने की आवाज़ आने लगी. दुकान का बड़ा अहाता चिर-परिचित शोर से भर गया. वहाँ छीलन और पसीने से गीले हो गए पुराने कपड़ों की मिली-जुली गंध मौजूद थी. बिजली से चलने वाले आरे की आवाज़ तब सुनाई दी जब एस्पोज़ीतो ने लकड़ी के तख़्ते को धीरे-धीरे आरे के मुँह में धकेला. जहाँ आरे ने उस तख़्ते को काटा , वहाँ से गीला बुरादा बाहर आया. ऐसा लगा जैसे एस्पोज़ीतो के बालों भरे बड़े हाथ ब्रेड के बारीक टुकड़ों से भर गए हों. उन हाथों ने लकड़ी को कराहते आरे की धारदार फलक के दोनों ओर मज़बूती से पकड़ रखा था. जब तख़्ता कट गया तो केवल आरे के मोटर के चलने की आवाज आती रही.

जब यवेर्स रंदा फेरने के लिए झुका तो उसने अपनी पीठ में तनाव महसूस किया. आम तौर पर थकान बहुत बाद में होती थी. यह स्पष्ट था कि निष्क्रियता वाले इन हफ़्तों की वजह से उससे काम करने का अभ्यास छूट गया था. लेकिन उसे अपनी उम्र का भी ख़्याल आया, जो शारीरिक श्रम को तब मुश्किल बना देती है जब वह कोई सूक्ष्म काम नहीं होता. यह खिंचाव वृद्धावस्था का पूर्वाभास होता है. जहाँ कहीं भी मांसपेशियाँ काम में आती हैं, अंतत: कार्य घृणित हो जाता है. यह मृत्यु से पूर्व की स्थिति होती है, और जिस शाम अत्यधिक शारीरिक श्रम करना पड़ता है, नींद भी मृत्यु की तरह लगती है. लड़का तो विद्यालय में पढ़ाने वाला शिक्षक बनना चाहता था. वह सही था. जो शारीरिक श्रम के बारे में ग़ैर-ज़रूरी घिसे-पिटे विचार व्यक्त करते हैं , उन्हें खुद पता नहीं होता कि वे क्या कह रहे हैं.

जब यवेर्स राहत पाने और इन विचारों से मुक्ति पाने के लिए सीधा हुआ , तो घंटी फिर से बज उठी. वह अजीब ढंग से लगातार बजती रही. कभी वह रुक जाती, कभी उद्धत ढंग से फिर बज उठती. घंटी के इस तरह बजने की आवाज़ सुन कर कारीगरों ने अपना काम रोक दिया. बैलेस्टर पहले हैरान हो कर घंटी के बजने की आवाज़ सुनता रहा. फिर उसने अपना मन बनाया और दरवाज़े की ओर बढ़ा. उसे गए हुए कई पल हो गए थे , तब जा कर अंतत: घंटी के बजने की आवाज़ बंद हुई. कारीगरों ने अपना काम दोबारा शुरू कर दिया. किंतु दरवाज़ा एक बार फिर फटाक्-से खुला और बैलेस्टर सामान रखने वाले कमरे की ओर भागा. वह बाहर पहने जाने वाले जूते पहन कर कमरे से निकला और अपना जैकेट पहनते हुए उसने यवेर्स से कहा,  “बच्ची को दौरा पड़ा है. मैं डॉ. जर्मेन को लेने जा रहा हूँ.“ यह कह कर वह दौड़ कर मुख्य दरवाज़े की ओर चला गया.

डॉ. जर्मेन दुकान के कारीगरों की सेहत का ध्यान रखते थे. वे बाहर की ओर स्थित मकान में रहते थे. यवेर्स ने यह ख़बर बिना किसी टीका-टिप्पणी के सबको सुनाई. वे सब उलझन में एक-दूसरे की ओर देखते हुए उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए. बिजली से चलने वाले आरे के मोटर के चलने की आवाज़ के अलावा और कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था. “शायद यह कोई बड़ी बात नहीं,” कारीगरों में से एक ने कहा. वे सब वापस अपनी-अपनी जगह पर चले गए. दुकान में दोबारा उनके आपस में बातचीत करने की आवाज़ आने लगी. लेकिन अब वे धीमी गति से काम कर रहे थे, जैसे वे किसी चीज़ की प्रतीक्षा कर रहे हों.

पंद्रह मिनट के बाद बैलेस्टर दोबारा दुकान में आया. उसने अपना जैकेट दीवार पर लगी खूँटी पर टाँग दिया और बिना एक भी शब्द कहे वह छोटे दरवाज़े से हो कर बाहर चला गया. खिड़कियों से आने वाली रोशनी कम होती जा रही थी. कुछ देर बाद जब बीच के समय में बिजली से चलने वाला आरा लकड़ी को नहीं काट रहा था , किसी एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ सुनाई देने लगी. यह आवाज़ पहले दूर से आ रही थी, फिर पास आती गई और अंत में दुकान के ठीक बाहर से सुनाई देने लगी. फिर चारों ओर चुप्पी छा गई. एक पल के बाद बैलेस्टर वापस आ गया और सभी कारीगर उसके पास चले आए. एस्पोज़ीतो ने बिजली से चलने वाले आरे का मोटर बंद कर दिया था. बैलेस्टर ने कहा कि अपने कमरे में कपड़े बदलते समय बच्ची अचानक पलट कर गिर गई थी जैसे उसे रौंद दिया गया हो. “क्या तुमने कभी ऐसी कोई बात सुनी है ? “मार्को ने कहा. बैलेस्टर ने ‘ना‘ में अपना सिर हिलाया और अनिश्चित रूप से दुकान की ओर इशारा किया. पर उसे देखकर ऐसा लगा जैसे इस सारे घटना-क्रम की वजह से वह ‘हिल’ गया था. एम्बुलेंस के सायरन की आवाज़ दोबारा सुनाई दी. वे सब वहीं थे. दुकान में सन्नाटा था. खिड़कियों के शीशों में से होकर पीली रोशनी दुकान के भीतर आ रही थी. कारीगरों के खुरदरे , बेकार हाथ बुरादे लगी उनकी पुरानी पतलूनों के बग़ल में लटके हुए थे.

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Tags: Albert CamusThe Silent Menअल्बेयर कामूसुशांत सुप्रिय
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Comments 1

  1. Daya Shanker Sharan says:
    4 years ago

    अल्बेयर कामू के साहित्य का मूल सरोकार मनुष्य की मुक्ति और उसके अस्तित्व की गरिमा है। मौत पर सार्त्र ने कहा था – ‘वह आदमी था।आदमी का दर्द पहचानता था । आदमी की भाषा में सोचता था। वह खामोश चला गया क्योंकि उसे अपने आसपास आदमी का मुखौटा पहने शैतान नजर आ गये थे।’ इस कहानी को पढ़ते हुए उसी त्रासद अनुभव से गजरना पड़ता है। सुशांत जी का अनुवाद उम्दा है।

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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