मालिक ने मज़दूर संघ को विवश कर दिया था और दुकान के दरवाज़े बंद हो गए थे. “यहाँ धरना देने की कोशिश बेकार होगी. दुकान के बंद रहने से मेरे ही पैसे बचेंगे.“ मालिक ने कहा था. यह बात सच तो नहीं थी पर इससे कोई बात नहीं बनी क्योंकि मालिक ने कारीगरों को उनके सामने कह दिया कि दरअसल उसने कारीगरों को नौकरी दे कर उन पर अहसान किया था. एस्पोज़ीतो ग़ुस्से से आग-बबूला हो गया और उसने मालिक से कहा कि उसमें इंसानियत नहीं बची थी. मालिक को भी जल्दी ग़ुस्सा आ जाता था और विस्फोटक स्थिति की वजह से उन दोनों को अलग करना पड़ा. किंतु इस घटना ने कारीगरों पर प्रभाव डाला था. हड़ताल करते हुए उन्हें बीस दिन हो गए थे. उनकी पत्नियाँ घरों में उदास बैठी थीं. दो-तीन कारीगर तो हतोत्साहित हो चुके थे. अंत में मज़दूर संघ ने कारीगरों को सलाह दी थी कि यदि वे हड़ताल ख़त्म कर दें तो संघ मध्यस्थता करके मज़दूरों को नष्ट हो गए समय के पैसे अधिसमय के रूप में दिलवा देगा. इसलिए कारीगरों ने हड़ताल ख़त्म करके वापस काम पर जाने का फ़ैसला किया था. हालाँकि वे सब शेखी बघारते रहे और आपस में यह कहते रहे कि मामला अभी ख़त्म नहीं हुआ था, और मालिक को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना होगा. पर इस सुबह जब वे हार से मिलती-जुलती थकान लिए हुए काम पर लौटे तो भ्रम को बनाए रखना संभव नहीं था. यह ऐसा था जैसे उन्हें मांस देने का आश्वासन देने के बाद अंत में पनीर दे दिया गया हो.
सूर्य चाहे किसी भी तरह चमक रहा हो, समुद्र अब उतना आश्वस्त करने वाला नहीं लग रहा था. यवेर्स अपनी साइकिल चलाते हुए सोच रहा था कि अब उसकी उम्र पहले से कुछ ज़्यादा ढल गई थी. दुकान, अपने सहकर्मियों और मालिक के बारे में सोचने पर उसे ऐसा लगा जैसे उसकी छाती भारी हो गई हो. फ़रनांदे चिंतित हो गयी थी, “ अब तुम लोग मालिक से क्या कहोगे ?” “ कुछ नहीं. “ यवेर्स ने अपना सिर हिलाया था और अपनी टाँगें फैला कर वह साइकिल पर बैठ गया था. उसने अपने दाँत भींच लिए थे और उसका छोटा-सा, काला, कोमल-सुकुमार नाक-नक़्श वाला चेहरा कठोर हो गया था. “हम सब वापस काम पर जा रहे हैं. यह काफ़ी है.“ अब वह साइकिल चला रहा था, किंतु उसके दाँत अभी भी भिंचे हुए थे और उसके चेहरे पर एक ऐसा उदास, सूखा ग़ुस्सा था जो मानो आकाश को भी काला बना रहा था.
उसने मुख्य पथ और समुद्र-तट वाले मार्ग को छोड़ दिया ताकि वह स्पेनी मूल के बसे लोगों वाली बस्ती की गीली गलियों में से होकर गुज़र सके. वह रास्ता उसे ऐसी जगह ले गया जहाँ केवल छप्पर, कूड़े-करकट के ढेर और गराज थे. वहीं नीचे की ओर झुके छप्पर जैसी दुकान थी जिसमें आधी दूरी तक पत्थर लगे हुए थे और उसके ऊपर काँच लगा था. उसकी छत धातु की लहरदार चादर से बनी थी. इस दुकान का अगला हिस्सा पीपे बनाने वाली जगह की ओर था. यहाँ एक आँगन था जो चारों ओर से ढँके हुए छप्पर से घिरा हुआ था. व्यवसाय के बढ़ जाने पर इस इलाक़े को त्याग दिया गया था और अब यह घिसी-पिटी मशीनों और पुराने पीपों को रखने की जगह मात्र बन कर रह गया था. आँगन के आगे मालिक का बग़ीचा शुरू होता था, लेकिन खपरैल से बना एक रास्ता दोनों को अलग करता था. बग़ीचे के आगे मालिक का मकान था. वह एक बड़ा और भद्दा मकान था, किंतु फिर भी वह प्रभावित करने वाला लगता था क्योंकि उसकी बाहरी सीढ़ियाँ छितराई हुई बेलों और फूलों की लताओं से घिरी हुई थीं.
तभी यवेर्स ने देखा कि सामने दुकान के दरवाज़े बंद थे. दुकान के बाहर कारीगरों का एक झुंड चुपचाप खड़ा था. जब से वह यहाँ काम कर रहा था, तब से यह पहली बार था कि उसने दुकान के दरवाज़ों को बंद पाया. मालिक यह बात बल देकर बताना चाहता था कि इस खींचा-तानी में उसका पलड़ा भारी था. यवेर्स बाईं ओर मुड़ा और उसने अपनी साइकिल छज्जे के अंतिम किनारे के नीचे खड़ी कर दी , और वह दरवाज़े की ओर चल पड़ा. कुछ दूरी से उसने एस्पोज़ीतो को पहचान लिया जो उसके साथ काम करता था. वह एक लम्बा, साँवला कारीगर था जिसकी त्वचा पर बहुत सारे बाल थे. दुकान के कारीगरों में एकमात्र अरब सैय्यद चलता हुआ वहाँ आ रहा था. बाक़ी लोग चुपचाप उसे अपनी ओर आते हुए देखते रहे. लेकिन इससे पहले कि वह उनके पास पहुँचता, अचानक वे सभी दुकान के दरवाज़ों की ओर देखने लगे, जोकि ठीक उसी समय खुल रहे थे. वहाँ फ़ोरमैन बैलेस्टर नज़र आया. उसने दुकान के एक भारी दरवाज़े को खोला और वहाँ मौजूद कारीगरों की ओर अपनी पीठ करते हुए उसने उस दरवाज़े को उसके लोहे की पटरी पर धकेला.
बैलेस्टर उन सब में सबसे पुराना कारीगर था और वह कामगारों के हड़ताल पर जाने का विरोधी था. एस्पोज़ीतो ने उससे कहा था कि वह मालिक के हितों का संरक्षण कर रहा था. अब वह गहरे नीले रंग की जर्सी पहन कर नंगे पाँव दरवाज़े के पास खड़ा था (सैय्यद के अलावा केवल वही एकमात्र कारीगर था जो नंगे पाँव काम करता था ). उसने उन सभी कारीगरों को एक-एक करके दुकान के अंदर जाते हुए देखा. उसकी आँखें इतनी फीकी थीं कि वे अत्यधिक धूप-सेवन की वजह से भूरे हो गए उसके बूढ़े चेहरे पर निस्तेज लग रही थीं. मोटी और नीचे झुकी मूँछों वाला उसका पूरा चेहरा बेहद उदास लग रहा था. वे सभी चुप थे. वे हार कर लौटने की वजह से अपमानित महसूस कर रहे थे. अपनी चुप्पी की वजह से वे कुपित थे, किंतु उनकी चुप्पी जितनी ज़्यादा देर तक बरक़रार थी, वे उसे तोड़ पाने में उतना ही अधिक असमर्थ थे. वे सभी बैलेस्टर की ओर देखे बिना दुकान के अंदर चले गए क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें इस तरह भीतर लाने के पीछे मालिक का आदेश था जिस का वह पालन कर रहा था. उसका दुखद और उदास चेहरा उन्हें यह बता रहा था कि वह इस समय क्या सोच रहा था. लेकिन यवेर्स ने बैलेस्टर की ओर देखा. बैलेस्टर उसे चाहता था और उसने उसे देखकर बिना कुछ कहे केवल अपना सिर हिलाया.
अब वे सब प्रवेश-द्वार के दाईं ओर मौजूद संदूकों वाले कमरे में थे. बिना रंगे हुए लकड़ी के तख़्ते खुले आसनों को अलग कर रहे थे. उन तख़्तों के दोनों ओर अलमारियाँ थीं जिनमें ताले लगे हुए थे. जो आसन प्रवेश-द्वार से सबसे दूर था, उससे ज़रा हट कर छज्जे की दीवार पर ऊपर एक फुहारा लगा हुआ था. वहीं नीचे मिट्टी के फ़र्श पर एक नाली बना दी गई थी. दुकान के बीचोबीच कई चरणों में पड़ा अधूरा काम दिख रहा था. वहाँ लगभग पूरे बन चुके पीपे पड़े हुए थे जिनके बड़े छल्लों को आग में पकाया जाना बाक़ी था. वहाँ एक ओर बैठकर काम करने वाले कुछ तख़्ते भी पड़े हुए थे, और दूसरी ओर बुझी हुई राख के अवशेष और राख पड़ी हुई थी. प्रवेश-द्वार की बाईं ओर की दीवार के साथ भी बैठ कर काम करने वाले ऐसे कई तख़्ते क़तार में पड़े हुए थे. उनके सामने लकड़ी के पटरों के ढेर पड़े थे , जिन्हें रन्दा फेरकर चिकना बनाया जाना था. दाईं ओर की दीवार के पास बिजली से चलने वाली दो दमदार आरा मशीनें पड़ी थीं जो तेल से सनी होने की वजह से खामोश चमक रही थीं.
कुछ समय पहले यह कारख़ाने जैसी दुकान वहाँ काम कर रहे थोड़े-से कारीगरों के लिए बहुत बड़ी लगने लगी थी. गर्मी के मौसम में इससे फ़ायदा था, लेकिन सर्दियों में इससे नुक़सान था. लेकिन आज इस बहुत बड़ी जगह में हर ओर अधूरा काम पड़ा हुआ दिख रहा था. पीपों को कोनों में छोड़ दिया गया था और एकमात्र चक्करदार पट्टी तख़्तों के बुनियाद को पकड़े हुई थी. ऊपर से वे लकड़ी के खुरदरे फूलों जैसे लग रहे थे. बैठने वाली जगहों पर बुरादा पड़ा हुआ था. औज़ारों के बक्से और मशीनें— सभी दुकान में उपेक्षित-सी पड़ी थीं. कारीगरों ने उन सब चीज़ों की ओर देखा. उन्होंने काम करते समय पहनने वाले अपने घिसे-पुराने वस्त्र पहन रखे थे, और वे हिचक रहे थे. बैलेस्टर उन सबको देख रहा था. “तो, अब हम काम शुरू करें ?” उसने पूछा. एक-एक करके सभी कारीगर बिना एक भी शब्द बोले अपनी-अपनी काम करने वाली जगहों पर चले गए. बैलेस्टर एक-एक करके सब के पास जा कर उन्हें काम शुरू करने या ख़त्म करने के बारे में बताता रहा. किसी ने कोई जवाब नहीं दिया.
जल्दी ही पहले हथौड़े की आवाज़ सुनाई दी. लोहे की फ़ानी पर पड़ा हथौड़ा पीपे के उत्तल भाग पर छल्ले को घुसा रहा था. रन्दा एक गाँठ से टकरा कर कराहने लगा और एस्पोज़ीतो द्वारा चलाए गए आरे का धारदार फलक ज़ोरदार खरखराहट के साथ शुरू हो गया. सैय्यद अनुरोध करने पर तख़्ते ला-ला कर कारीगरों को दे रहा था या जहाँ ज़रूरत थी, वहाँ छीलन की आग जला दे रहा था. आग पर लोहे के छल्लों से जकड़े पीपे रखे गए थे ताकि वे फूल जाएँ और छल्ले उन्हें अच्छी तरह से जकड़ लें. जब सैय्यद को मदद के लिए कोई कारीगर आवाज़ नहीं दे रहा होता, तो वह काम करने वाले तख़्ते पर खड़ा हो कर ज़ंग लगे बड़े-बड़े छल्लों को हथौड़े के भारी प्रहार से जकड़ने का काम करने लगता. जलते हुए छीलन की गंध दुकान में भरने लगी थी. यवेर्स रंदा चला रहा था और एस्पोज़ीतो द्वारा काटे गए तख़्तों को सही जगह पर लगा रहा था. उसने वह परिचित, पुरानी गंध पहचान ली और उसका हृदय थोड़ा नरम पड़ गया. सभी कारीगर चुपचाप अपना-अपना काम कर रहे थे, लेकिन दुकान में सरगर्मी और स्फूर्ति का माहौल लौटने लगा था. चौड़ी खिड़कियों में से होकर साफ़-सुथरी, ताज़ा रोशनी दुकान में भरने लगी थी. सुनहली धूप में नीले रंग का धुआँ उठ रहा था. यवेर्स ने अपने आस-पास किसी कीड़े के भिनभिनाने की आवाज़ भी सुनी.
उसी समय दीवार के अंत में स्थित दुकान का दरवाज़ा खुला और मालिक श्री लस्साले दहलीज़ पर रुके हुए नज़र आए. वे पतले-दुबले और साँवले रंग के थे. उनकी उम्र तीस वर्ष से अधिक नहीं थी. मालिक ने बढ़िया भूरा सूट पहन रखा था और उनके चेहरे का भाव बेहद सहज था. हालाँकि देखने पर ऐसा लगता था जैसे उनके चेहरे की हड्डी कुल्हाड़ी से तराशी गई हो, लेकिन उन्हें देख कर अक्सर लोगों में सकारात्मक भाव उत्पन्न होता था. जिनके चेहरे से ओजस्विता झरती है, उनके साथ अक्सर ऐसा ही होता है. किंतु दरवाज़े से भीतर आते हुए श्री लस्साले थोड़ा लज्जित लग रहे थे.. उनके अभिवादन का स्वर पहले की अपेक्षा कम प्रभावशाली लगा. कुछ भी हो, सब मौन रहे. किसी कारीगर ने उस अभिवादन का जवाब नहीं दिया. हथौड़ों की आवाज़ें थोड़ा रुकीं, फिर और ज़ोर से दोबारा शुरू हो गईं. श्री लस्साले ने कुछ अनिश्चित क़दम आगे बढ़ाए, फिर वे वैलेरी की ओर मुड़ गए जो बाक़ी कारीगरों के साथ यहाँ पिछले केवल एक वर्ष से ही काम कर रहा था. वैलेरी यवेर्स से कुछ फ़ीट दूर बिजली से चलने वाले आरे के पास अपने काम में व्यस्त था. वह बिना कुछ कहे अपना काम करता रहा. “और भाई,” क्या हाल हैँ ?” युवक अचानक अपनी गतिविधि में बेढंगा हो गया. उसने अपने पास खड़े एस्पोज़ीतो की ओर देखा. एस्पोज़ीतो यवेर्स के पास ले जाने के लिए अपने लम्बे हाथों में तख़्तों का ढेर उठाए हुए था. एस्पोज़ीतो ने भी अपना काम करते हुए बैलेरी की ओर देखा. वैलेरी मालिक के प्रश्न का जवाब दिए बिना पीपे में झाँकता रहा.
उलझन में पड़े श्री लस्साले एक पल के लिए युवक के सामने ही रुके रहे. फिर उन्होंने अपने कंधे उचकाए और मार्को की ओर मुड़े. मार्को अपने तख़्ते पर टाँगें फैला कर बैठा था वह एक पेंदे को धीरे-धीरे, ध्यान से अंतिम रूप दे रहा था. “हल , मार्को , “ श्री लस्साले ने लगभग ख़ुशामद करने वाले स्वर में कहा. मार्को अपनी लकड़ी की बेहद पतली खुरचन निकालने के काम में व्यस्त था, और उसने मालिक के अभिवादन का कोई उत्तर नहीं दिया. “तुम सब लोगों को क्या हो गया है ?” श्री लस्साले ने सभी कारीगरों की ओर मुड़कर ऊँची आवाज़ में पूछा. “ठीक है, हम सहमत नहीं हुए थे. लेकिन यह हमें साथ काम करने से रोक तो नहीं रहा. फिर तुम लोगों के ऐसे व्यवहार का क्या फ़ायदा ?” मार्को ने उठकर पेंदे वाले टुकड़े को खड़ा किया. अपनी हथेली से उसने उस गोल टुकड़े के तीखे किनारे को जाँचा. फिर अपनी झपकती , थकी हुई आँखों में संतोष की झलक दिखलाते हुए वह चुपचाप एक और कारीगर की ओर बढ़ गया , जो टुकड़ों को जोड़ कर पीपा बना रहा था. पूरी दुकान में केवल हथौड़ों और बिजली से चलने वाले आरे के काम करने की आवाज़ गूँज रही थी. “ ठीक है, “ श्री लस्साले ने कहा. “जब तुम सब इस मिज़ाज से बाहर आ जाओ तब बैलेस्टर के माध्यम से मुझे बता देना. “ यह कहकर वे शांतिपूर्वक दुकान से बाहर निकल गए.
इसके लगभग ठीक बाद दुकान के शोर को बेधती हुई एक घंटी दो बार बजी. बैलेस्टर अपनी सिगरेट सुलगाने के लिए अभी बैठा ही था. घंटी की आवाज़ सुनकर वह धीरे से उठा और दुकान के अंत में स्थित दरवाज़े की ओर गया. उसके जाने के बाद हथौड़ों के मार की गूँजने की आवाज़ धीमी हो गई. एक कारीगर ने तो काम करना बंद ही कर दिया था. तभी बैलेस्टर लौट आया. दरवाज़े के पास खड़े हो कर उसने केवल इतना कहा, “ मार्को और यवेर्स , मालिक तुम दोनों को बुला रहे हैं. “यवेर्स की पहली इच्छा तो इससे पीछा छुड़ाने की हुई, लेकिन मार्को ने जाते-जाते उसे बाज़ू से पकड़ लिया और यवेर्स लंगड़ाते हुए उसके पीछे चल पड़ा.
बाहर आँगन में रोशनी इतनी साफ़ थी, इतनी स्वच्छ थी कि यवेर्स ने उसे अपनी अनावृत्त बाँह और चेहरे पर महसूस किया. फूलों के बड़े पौधे के नीचे से होते हुए वे बाहरी सीढ़ियों तक गए. फिर उन्होंने एक गलियारे में प्रवेश किया जिसकी दीवारों पर उपाधि-पत्र टँगे हुए थे. एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई. साथ ही श्री लस्साले की आवाज़ सुनाई दी , “ दोपहर के भोजन के बाद इसे सुला दो. यदि इसकी तबीयत फिर भी ठीक नहीं हुई तो हम डॉक्टर को बुला लेंगे.“ फिर मालिक अचानक गलियारे में नज़र आए और वे उन दोनों कारीगरों को मेज़-कुर्सियों वाले उस कमरे में ले गए जिससे वे पूर्व-परिचित थे. उस कमरे की दीवारें खेल-कूद की ट्रॉफ़ियों से सजी हुई थीं. उन्हें ‘ बैठो ‘ कहते हुए श्री लस्साले अपनी कुर्सी पर बैठ गए. पर दोनों कारीगर खड़े रहे.
“मैंने तुम दोनों को यहाँ इसलिए बुलाया है क्योंकि तुम प्रतिनिधि हो, मार्को. और यवेर्स, तुम बैलेस्टर के बाद मेरे सबसे पुराने कर्मचारी हो. मैं पहले हो चुकी चर्चा और वाद-विवाद की बात दोबारा नहीं करना चाहता हूँ. वह बात अब ख़त्म हो चुकी है. जो तुम लोग चाहते हो, वह मैं तुम्हें क़तई नहीं दे सकता.
अल्बेयर कामू के साहित्य का मूल सरोकार मनुष्य की मुक्ति और उसके अस्तित्व की गरिमा है। मौत पर सार्त्र ने कहा था – ‘वह आदमी था।आदमी का दर्द पहचानता था । आदमी की भाषा में सोचता था। वह खामोश चला गया क्योंकि उसे अपने आसपास आदमी का मुखौटा पहने शैतान नजर आ गये थे।’ इस कहानी को पढ़ते हुए उसी त्रासद अनुभव से गजरना पड़ता है। सुशांत जी का अनुवाद उम्दा है।