अग्निदाह
|
मैं उससे अपने एक मित्र के विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित भोज के दौरान यहीं टोक्यो में मिला था और फिर हम दोनों का एक दूसरे से परिचय हो गया. हमारे बीच लगभग एक दर्जन वर्षों का उम्र का अंतर था, वह बीस की थी और मैं इकत्तीस का. ऐसा नहीं था कि इस बात का मेरे लिए बहुत महत्व था. उस समय मेरे मस्तिष्क में इतनी सारी दूसरी बातें थी कि उम्र जैसी चीजों के बारे में चिंतित होने का मेरे पास समय नहीं था. और उसे इस अंतर की बिलकुल ही परवाह नहीं थी. मैं विवाहित भी था, किन्तु इससे भी उसे कोई परेशानी नहीं थी. उसके लिए, आपकी उम्र अथवा वैवाहिक स्थिति या फिर आपका सामाजिक रुतबा और आय इत्यादि उसी तरह की चीजें थी जैसे आपके जूते की नाप, आपकी आवाज कितनी ऊँची या नीची है, अथवा आपके नाखूनों का आकार- दूसरे शब्दों में ऐसी चीजें जिनके बारे में आप कुछ नहीं कर सकते.
वह उस व्यक्ति के साथ अध्ययन कर रही थी- मैं उस व्यक्ति का नाम नहीं स्मरण कर पा रहा हूँ- वह प्रसिद्ध मूक अभिनेता था, और अपने खर्चे चलाने के लिए एक विज्ञापन मॉडल के रूप में काम भी करती थी. किन्तु उसका एजेंट उसके लिए जिस तरह के काम जुटाता था, उन पर जाने में उसे सामान्यतः बहुत परेशानी होती थी, इसलिए उसकी आय बहुत अधिक नहीं थी. जो खर्चे उसकी आय से पूरे नहीं होते थे उन्हें उसका बॉयफ्रेंड पूरा करता था. निश्चय ही मैं बिलकुल निश्चित रूप से नहीं जानता था लेकिन जो बातें उसने बतायीं थी वे इसी व्यवस्था की ओर संकेत कर रही थी.
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि वह पैसों के लिए लोगों के साथ सोती थी. हो सकता है कभी ऐसा कोई समय रहा हो जब इससे मिलता जुलता कुछ घटित हुआ हो. पुरुषों के साथ उसके संबंधों में कोई अन्य चीज क्रियाशील थी. उसमें कुछ इस तरह की सादगी थी जो विशेष प्रकार के पुरुषों को आकृष्ट करती थी. वह उसकी उस निःसंकोच सादगी को देखता और उसे अपनी जटिल और दमित अनुभूतियों के साथ रखता. मैं इसे ठीक से स्पष्ट नहीं कर सकता किन्तु मैं सोचता हूँ कि जो कुछ चल रहा था, यही था. आप कह सकते थे कि वह अपनी सादगी के सहारे जीवन बिता रही थी.
स्वाभाविक है कि आप चीजों के सदैव इस तरह से घटित होने की अपेक्षा नहीं कर सकते. यह सृष्टि की सम्पूर्ण संरचना को सिर के बल खड़ा कर देगा. यह केवल कुछ दशाओं में, किसी विशेष समय और स्थान में ही घटित हो सकता था. जिस तरह वहां ‘संतरे छीलने’ के दौरान हुआ था. मुझे आपको संतरे छीलने के सम्बन्ध में बताने दीजिये. जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि जब मैं उससे पहली बार मिला, उसने मुझे बताया था कि वह मूक अभिनय सीख रही थी. “अच्छा ऐसा?” मैंने कहा था. इस से मुझे बहुत अधिक आश्चर्य नहीं हुआ था. आजकल सभी युवा महिलाएं यह या वह कोई न कोई चीज सीख ही रही हैं. किन्तु वह उस प्रकार की नहीं लगती थी जो किसी कौशल में परिपूर्णता प्राप्त करने हेतु गंभीर रहे.
फिर उसने मुझे ‘संतरे छीलना’ दिखाया. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें संतरों को छीला जाता है. उसके बायीं ओर संतरों से ऊपर तक भरा एक कटोरा था और दाहिनी ओर छिलकों के लिए एक और कटोरा. बस यह एक विचार मात्र था, वास्तव में वहां बिलकुल कुछ भी नहीं था. वह एक काल्पनिक संतरा लेती, उसका छिलका उतारती, एक टुकड़ा अपने मुंह में डालती और बीज बाहर थूक देती. जब उसने एक संतरा पूरा ख़त्म कर लिया, उसने सारे बीज छिलकों में लपेटे और उन्हें अपने दायीं तरफ के कटोरे में डाल दिया. उसने यही क्रिया कई बार, बारम्बार दुहरायी. जब आप इसे शब्दों में व्यक्त करना चाहेंगे तब यह कुछ विशेष बात जैसा नहीं सुनाई पड़ेगा. किन्तु यदि आप इसे अपनी स्वयं की आँखों से दस या बीस मिनट के लिए देखें (हम बस बैठे हुए बार में बातें कर रहे थे और लगभग बिना सोचे, वह इसका प्रदर्शन किये जा रही थी), शनैः शनैः वास्तविकता का ज्ञान आपके आसपास की हर चीज से अवशोषित हो जायेगा. यह एक बहुत विचित्र अनुभूति थी. बहुत समय पहले जब इज़राइल की एक अदालत में एडोल्फ आईकमैन पर मुक़दमा चल रहा था तो किसी ने कहा था कि उसके लिए उपयुक्त सजा यही होगी कि उसे एक एयर टाइट कक्ष में बंद कर दिया जाये और धीरे धीरे उस कमरे की सारी हवा पम्प कर के निकाल दी जाये. मैं नहीं जानता कि वह वास्तव में कैसे मरा, कहानी बस यूँ ही मेरे मस्तिष्क में उभर आयी.
“तुम बहुत प्रतिभावान हो,” मैंने उससे कहा.
“यह? यह तो आसान है. इससे प्रतिभा का कुछ लेना देना नहीं है. जो तुम करोगे उससे तुम्हें यह विश्वास नहीं होगा कि वहां पर संतरे हैं. बल्कि तुम भूल जाओगे कि वहां पर संतरे नहीं हैं. बस, इतना ही.”
“ज़ेन (बौद्ध ध्यान मुद्रा) जैसा कुछ लग रहा है.”
मैं देख रहा था कि हम में अच्छी निभेगी.
हम अक्सर बाहर नहीं जाते थे. महीने में लगभग एक बार, अधिक से अधिक दो बार. मैं उसे फोन करता और पूछता वह कहाँ जाना पसंद करेगी. हम कुछ खाने के लिए मंगाते, किसी बार में एक दो ड्रिंक लेते. और बातों की झड़ी लगा देते. मैं उसकी बातें सुनता और वह मेरी बातें. हम में बात करने को मुश्किल से ही कोई चीज एक जैसी थी किन्तु उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था. मेरा अनुमान है आप कहेंगे कि हम मित्र थे. स्वाभाविक तौर पर हर चीज के लिए मैं भुगतान करता था, खाने और ड्रिंक के लिए. यदा कदा वह भी मुझे फोन कर के बुलाती थी, सामान्यतः तब जब उसके पैसे समाप्त हो गए होते थे और वह भूखी होती थी. ऐसे अवसरों पर वह इस तरह खाया करती कि आपको विश्वास न होता.
मैं जब उसके साथ होता पूर्णतः निश्चित रहता. तब मैं अपने मस्तिष्क से हर बात मिटा सकता था- वह सारा काम जो मैं नहीं करना चाहता था, उन तमाम अर्थहीन विचारों का उलझाव जो लोग अपने सिरों में लिए फिरते हैं. उसका मुझ पर ऐसा प्रभाव था. वह किसी खास चीज के बारे में बात नहीं करती थी. अक्सर मैं उसके एक भी शब्द का अर्थ ग्रहण किये बिना बस अपना सिर हिलाता रहता था. किन्तु उसे बात करते सुनने से ही मैं निश्चित महसूस करने लगता था मानो मैं बहुत दूर इधर उधर उड़ते बादलों पर अपनी दृष्टि गड़ाए हुए था.
मैं भी तमाम तरह की चीजों के बारे में बात करता था. मैं उससे हर चीज के सम्बन्ध में अपने विचार, जितना संभव था उतनी ईमानदारी से व्यक्त करता, व्यक्तिगत दुविधाओं से लेकर दुनिया की स्थिति के सम्बन्ध में विचार तक. आप इसे कुछ नाम दें. हो सकता है वह भी वही कुछ कर रही हो जो मैंने किया था- मेरी बातें सुन कर बस सिर हिला रही हो, बिना कोई बात ग्रहण किये. किन्तु मुझे परवाह नहीं थी. मैं जिस बात को खोज रहा था वह थी एक विशिष्ट प्रकार की अनुभूति. एक ऐसी अनुभूति जिसका सहानुभूति से कुछ लेना देना नहीं था- न ही आपसी समझ से.
जिस वर्ष हम मिले थे उसके अगले वसंत में, उसके पिता की हृदय रोग से मृत्यु हो गयी और उसे उनसे उत्तराधिकार में थोड़ा सा पैसा मिला था. कम से कम जैसा उसने मुझे बताया. उसने कहा, वह उस पैसे का उपयोग उत्तरी अफ्रीका जाने के लिए करना चाहती थी. मुझे नहीं पता उसने उत्तरी अफ्रीका का चयन क्यों किया किन्तु मैंने आगे बढ़ कर उसकी मदद की और टोक्यो में अल्जीरिया के दूतावास में काम करने वाली एक लड़की, जिसे मैं जानता था, से उसका परिचय करा दिया. चीजें कुछ यूँ घटित हुई कि मैं उसे विदा करने हवाई अड्डे पर गया. उसके पास एक पुराना सा घिसा हुआ बैग था जिसमें कुछ थोड़े से कपड़े भरे थे. सामान की जाँच से ऐसे लग रहा था जैसे वह एक यात्री की भांति नहीं बल्कि उत्तरी अफ्रीका में अपने घर वापस जा रही हो.
“क्या तुम जापान वापस लौटोगी?” मैंने मज़ाकिया लहजे में पूछा.
“निश्चय ही, मैं आऊंगी,” उसने जवाब दिया.
तीन महीने बाद वह वापस आ गयी थी, साढ़े तीन किलो हलकी हो कर, गहरी भूरी रंगत लिए और एक नए बॉयफ्रेंड के साथ. ऐसा लगता था वे दोनों अल्जीयर्स के किसी रेस्त्रां में मिले थे. चूकि वहां बहुत अधिक जापानी नहीं थे इसलिए पहले वे मन बहलाने के लिए मिले होंगे फिर जल्दी ही प्रेमी बन गए. जहाँ तक मैं जानता था, वह उसके किसी भी बॉयफ्रेंड में पहला था जो टिकने वाला था.
वह अपने बीस के दशक के आखिरी वर्षों में था, लम्बा, शानदार तरीके से कपड़े पहने वाला, और सलीके से बातचीत करने वाला. उसका चेहरा कुछ-कुछ भावशून्य सा था किन्तु वह पर्याप्त सुदर्शन था और एक प्यारा सा व्यक्ति लगता था. उसके हाथ बड़े थे और उंगलियां लम्बी.
मैं उसके बारे में इतना सब कुछ इसलिए जानता हूँ क्योंकि मैं उसे लेने एयरपोर्ट गया था. बेरुत से एक टेलीग्राम एकाएक आया जिस में बस तारीख और उड़ान संख्या लिखी हुई थी. जब हवाई जहाज आया (ख़राब मौसम के कारण चार घंटे विलम्ब से – इस दौरान मैं एयरपोर्ट के कॉफी शॉप में बैठा रहा और तीन पत्रिकाएं शुरू से अंत तक पढ़ गया) वे दोनों बाँहों में बाहें डाले निकास द्वार पर प्रगट हुए, किसी सुन्दर विवाहित जोड़े की भांति दिखते हुए. उसने मेरा परिचय उससे कराया और फिर हम दोनों ने हाथ मिलाये. उसके हाथ मिलाने में दृढ़ता थी, किसी ऐसे व्यक्ति की भांति जो लम्बे समय से विदेश में रहता रहा हो. उसने (लड़की ने) कहा कि वह टेम्पुरा (एक जापानी खाद्य) और चावल के लिए मरी जा रही थी, इसलिए हम एक रेस्टोरेंट में गए. उसने खाना खाया जब कि हम दोनों ने दो-दो बीयर पी.
“मैं आयात-निर्यात के व्यवसाय में हूँ,” उसने मुझसे कहा. लेकिन उसने इस सम्बन्ध में और कुछ नहीं बताया. हो सकता है कि वह अपने काम के सम्बन्ध में बात नहीं करना चाहता रहा हो अथवा यह भी हो सकता है कि उसने सोचा हो कि यह सब मेरे लिए बोरियत भरा होगा. मैंने कोई प्रश्न नहीं किया. और बहुत कुछ बात करने के लिए न होने के कारण हम इस विषय में बात करने लगे कि अब बेरूत कितना खतरनाक हो गया है और फिर ट्यूनिस की जल आपूर्ति प्रणाली के बारे में. लग रहा था कि उसे हर चीज के बारे में पता था उत्तरी अफ्रीका से ले कर मध्य पूर्व तक.
जब उसने अपना टेम्पुरा और चावल खा लिया तो एक लम्बी जम्हाई ली और कहा कि उसे नींद सी आ रही थी. वह ऐसे दिख रही थी मानो उसी जगह सो जाएगी; उसमें किसी को भी सबसे अनपेक्षित अवसर पर विदा कह देने की आदत थी. आदमी ने कहा कि वह उसे टैक्सी से घर ले जायेगा. मैंने कहा कि ट्रेन मेरे लिए अधिक तेज रहेगी. मुझे कुछ समझ में नहीं आया था कि एयरपोर्ट आ कर मुझे परेशान होने की क्या जरूरत थी.
“मैं तुम्हें जान पाया मुझे इसकी ख़ुशी है,” आदमी ने कुछ-कुछ माफ़ी सी माँगते हुए कहा.
“मुझे भी,” मैंने जवाब दिया.
उसके पश्चात मैंने उसे कई बार देखा. जब भी मैं उससे (लड़की से) टकराता, वह वहां उपस्थित होता, ठीक उसकी बगल में. और अगर मुझे उससे मिलना होता तो वह उसे उस जगह तक ड्राइव कर के ले आता जिस जगह हमें मिलना होता. वह सिल्वर रंग की स्पोर्ट्स कार चलाता था, जर्मन. मुझे कारों के संबंध में लगभग कुछ नहीं पता इसलिए मैं उसका ठीक से विवरण नहीं दे सकता लेकिन वह ऐसी दिखती थी मानो फेलिनी की किसी श्वेत-श्याम फ़िल्म से सम्बन्धित हो.
“उसे बहुत समृद्ध होना चाहिए, क्या तुम ऐसा नहीं सोचती,” एक बार मैंने उससे (लड़की से) पूछा था.
“हाँ,” उसने बिना किसी रुचि के जवाब दिया, “निश्चित रूप से.”
“मुझे आश्चर्य है कि कोई विदेश व्यापार से इतनी कमाई कर सकता है.”
“विदेश व्यापार?”
“उसने यही बताया था. उसने कहा था वह विदेश व्यापार में है.”
“मेरा अनुमान है ऐसा ही होगा. लेकिन मुझे नहीं मालूम है. वह कहीं कुछ करता हुआ नहीं लगता. वह बहुत से लोगों से मिलता है और ढेर सारी फोन कॉल करता है, लेकिन वह इन सब में बहुत लिप्त नहीं महसूस होता.”
बिलकुल गेट्सबी की तरह, मैंने सोचा. एक युवा व्यक्ति जो एक पहेली है. मैंने सोचा, तुम्हें पता नहीं कि वह वास्तव में क्या करता है लेकिन वह कभी भी पैसे के लिए परेशान नहीं महसूस होता है.
उसने (लड़की ने) मुझे अक्टूबर के एक रविवार अपराह्न में फोन किया. मेरी पत्नी किसी रिश्तेदार से मिलने शहर से बाहर गयी हुई थी और मैं बिलकुल अकेला था. यह एक खूबसूरत रविवार था, एकदम चमकदार, और मैं सेव खाता हुआ बगीचे के पेड़ों की ओर देख रहा था. उस दिन मैंने सात सेव खाये होंगे. ऐसा कभी-कभी होता रहता था- जब मुझे शारीरिक रूप से सेव खाने की तीव्र इच्छा सी होती थी.
“हम तुम्हारे पड़ोस में ही थे, क्या हम तुम्हारे यहाँ आ सकते हैं ,” उसने कहा.
“हम?” मैंने पूछा.
“वह और मैं,” उसने कहा.
“बिलकुल, आ जाओ,” मैंने कहा.
“ठीक है, हम आधे घंटे में पहुँच जायेंगे,” उसने कहा.
कुछ देर मैं बिना कुछ सोचे सोफे पर पड़ा रहा, फिर उठा, दाढ़ी बनायी और नहाया. मैं यह नहीं निर्णय कर पाया कि मैं घर को व्यवस्थित करूँ अथवा नहीं और अंत में मैंने ऐसा न करने का निर्णय लिया. ठीक से ऐसा कर पाने का समय नहीं था और, मैंने सोचा कि, यदि ठीक से ऐसा नहीं किया जा सकता तो बेहतर है कि बिलकुल ही न किया जाये. कमरे में किताबें, पत्रिकाएं, पत्र, रेकॉर्ड्स, पेंसिल्स और स्वेटर्स बिखरे पड़े थे, लेकिन वह उतना अस्तव्यस्त भी नहीं लग रहा था. मैंने अभी एक काम पूरा किया था और आलस्य सा महसूस कर रहा था. मैं सोफे पर बैठ गया और कैम्फर के वृक्ष को देखता हुआ एक और सेव खाने लगा.
दो बजने के कुछ देर पश्चात मैंने एक कार के भीतर आने की आवाज़ सुनी. जब मैंने दरवाजा खोला, मैंने सिल्वर रंग की स्पोर्ट्स कार को मोड़ पर आते देखा. उसने खिड़की से अपना चेहरा बाहर निकाला और हाथ हिलाया. मैंने उन्हें दिखाया कि कार को घर के पीछे कहाँ पार्क करना था.
“तो हम आ गए!” उसने मुस्कराहट के साथ कहा. उसने हलके रंग की एक कसी हुई कमीज, जिसमें से उसके शरीर की रेखाएं झलक रहीं थी और एक गहरे हरे रंग का मिनी स्कर्ट पहन रखी थी.
“मुझे इस तरह तुम्हारे छुट्टी के दिन टपक पड़ने का हार्दिक खेद है,” उसने (आदमी ने) कहा.
“कोई बात नहीं,” मैंने कहा. “आज मेरा छुट्टी का दिन है और मैं किसी के साथ के लिए बिलकुल तैयार हूँ.”
“हम खाना ले आये हैं,” लड़की ने कहा और उसने कार की पिछली सीट से सफ़ेद कागज का एक बड़ा सा बैग निकाला.
“खाना?”
“कुछ विशेष नहीं. हम ने सोचा कि हम चूकि तुम्हारे यहाँ रविवार को आ रहे हैं तो बेहतर होगा कि कुछ खाने के लिए लेते चलें,” आदमी ने कहा.
“शानदार, आज मैंने अभी तक बस सेव ही खाये हैं.”
हम घर के भीतर आ गए और खाना मेज पर लगा दिया गया. ढेर सारा खाना: रोस्ट बीफ सैंडविचेज़, सलाद, स्मोक्ड सामन, ब्लू बेरी आइसक्रीम- और हर चीज काफी मात्रा में. जब वह खाना प्लेट में लगा रही थी, मैं फ्रिज में से ह्वाइट वाइन की बोतल निकाल लाया. ऐसा लगा मानो हम लोग आपस में एक छोटी मोटी पार्टी कर रहे थे.
“आओ खाएं, मैं भूख से मरी जा रही हूँ,” उसने कहा.
हम अपने सैंडविचेज़ चबाते हुए सलाद और स्मोक्ड सामन खाते रहे. जब हमने वाइन ख़त्म कर ली, हम फ्रिज से निकाल कर बीयर पीने लगे. एक चीज आपको मेरे घर में हमेशा मिलेगी, फ्रिज में भरी हुई बीयर.
उसका (आदमी का) रंग बिलकुल भी नहीं बदला, चाहे उसने जितनी भी पी. मैं स्वयं भी अच्छा बीयर पीने वाला था. उसने (लड़की ने) हमारे साथ बस दो तीन कैन बियर पी. एक घंटे से कम में ही मेज खाली बर्तनों से भरी हुई थी. उसने सेल्फ में से एक दो रेकार्ड चुने और उन्हें प्लेयर पर लगा दिया. पहली धुन माइल्स डेविस की थी- ‘Airegin’.1
“आजकल इस तरह के स्वचालित रेकॉर्ड चेंजर बहुत अधिक नहीं दिखते.” उसने कहा.
मैंने उसे बताया कि मुझे स्वचालित चेंजर कितने पसंद हैं और किस मुश्किल से मैंने गेरार्ड के एक चेंजर को ठीक कराया था. समय-समय पर सिर हिलाते हुए वह विनम्रता से सुनता रहा.
हम कुछ देर ध्वनि उपकरणों के सम्बन्ध में बात करते रहे, फिर वह चुप हो गया. कुछ देर बाद उसने कहा, “मेरे पास थोड़ा गाँजा है क्या तुम पीना चाहोगे.”
मैं क्या प्रतिक्रिया दूँ इस बारे में निश्चित नहीं था. मुझे सिगरेट छोड़े हुए एक महीना ही हुआ था और यह एक परीक्षा की बात थी कि मैं यह आदत छोड़ सकता था या नहीं, साथ ही मुझे यह भी नहीं पता था कि गाँजा पीने का मुझ पर क्या प्रभाव होगा. लेकिन मैंने उसे एक बार आजमाने का निर्णय लिया. उसने पेपर बैग के नीचे से पन्नी में लिपटी गहरे रंग की पत्तियां निकाली और उसे सिगरेट के कागज में लपेट दिया तथा गोद लगे किनारे को चाट कर चिपकाया ‘उसने अपना लाइटर निकाला और यह सुनिश्चित करने के लिए कि सिगरेट ठीक से जल रही है, उसके दो तीन कश लिए फिर उसे मेरी ओर बढ़ा दिया. गांजा जोरदार था. हम वहां कुछ देर मौन बैठे रहे, बिना बोले धूम्रपान करते हुए. माइल्स डेविस समाप्त हो गया था और स्ट्रास वाल्ट्ज बजना शुरू हो गया था. कोई पूर्व योजना नहीं, मैंने सोचा, लेकिन बुरा भी नहीं.
हमारे पहली सिगरेट ख़त्म कर लेने के पश्चात, लड़की ने कहा कि उसे नींद आ रही थी. उसे पिछली रात पर्याप्त आराम नहीं मिला था और तीन बीयर और गांजे ने उसे शिथिल कर दिया था. मैंने उसे ऊपर कमरे का रास्ता दिखाया और बिस्तर पर पहुंचा दिया. उसने एक टी शर्ट उधार मांगी. मैंने उसे दे दी. उसने अंडरवियर को छोड़ कर सब कपड़े उतारे, शर्ट पहनी और बिस्तर पर लेट गयी. “क्या तुम्हें ठण्ड लग रही है?” मैंने पूछा लेकिन तब तक वह खर्राटें लेने लगी थी. अपना सिर हिलाता हुआ मैं वापस नीचे आ गया.
बैठक में उसका बॉयफ्रेंड गांजे की एक और सिगरेट तैयार कर रहा था. वह भी कोई अलग ही चीज था. यदि मुझे चयन करना होता तो मैं ऊपर उसकी बगल में बिस्तर में सरक जाता और एक अच्छी नींद लेता, किन्तु ऐसी कोई संभावना नहीं थी. मैंने उसके साथ दूसरी सिगरेट पी. स्ट्रास वाल्ट्ज अभी भी बज रहा था. किसी कारणवश मुझे एक नाटक की याद आ गयी जो हमने कभी स्कूल में किया था. मैं दस्ताने बेचने की दुकान का मालिक बना था. एक लोमड़ी का बच्चा दस्ताने तलाशता हुआ आता है किन्तु उसके पास उन्हें खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं.
“तुम इन पैसों से दस्ताने नहीं खरीद सकते,” मैंने कहा. मैं जो खलनायक था.
“लेकिन मम्मा को बहुत ठण्ड लगती है. उसके पंजे फट गए हैं. प्लीज!” लोमड़ी के बच्चे ने कहा.
“मुझे खेद है, पर ये पैसे पर्याप्त नहीं हैं. पैसे बचाओ और फिर बाद में आना. यदि तुम ऐसा कर सको…..”
“—कभी-कभी मैं खलिहान जला देता हूँ,” उसने कहा.
“क्या मतलब?” मैंने कहा. मुझे नींद आ रही थी और मैंने उसकी बात निश्चय ही ठीक से नहीं सुनी होगी.
“ कभी-कभी मैं खलिहानों को जला देता हूँ,” उसने फिर कहा.
मैंने उसकी ओर देखा. वह अपने नाख़ून की नोक से अपने लाइटर पर डिजाइन बना रहा था. उसने गांजे का धुआं अपने फेफड़ों में गहराई तक खींचा, दस सेकेण्ड तक रोके रहा, फिर धीरे-धीरे बाहर निकाल दिया. धुआं उसके मुंह से समाधि की अवस्था में निकलने वाले द्रव की भांति निकल रहा था. उसने सिगरेट मेरी ओर बढ़ा दी.
“बहुत सही चीज है,” मैंने कहा.
उसने सिर हिलाया. “मैं यह चीज भारत से ले आया था,” उसने कहा, “उनके पास का सबसे बढ़िया माल. तुम इसे पियो और सभी तरह की स्मृतियां तुम्हारे भीतर से छू मंतर हो जाएंगी. प्रकाश, गंध, इसी तरह की चीजें. तुम्हारी स्मृतियों की गुणवत्ता”- वह आराम से रुका मानो सही शब्दों की तलाश कर रहा हो, और उसने हलके से दो तीन बार अपनी उंगलियां झटकी – “कुछ ऐसी होगी जैसा तुमने पहले कभी अनुभव नहीं किया होगा. क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता ?”
“लगता है,” मैंने उससे कहा. मैं स्कूल के दिनों की स्मृतियों की भीड़ में खोया हुआ था, कार्डबोर्ड पर चित्रित प्राकृतिक दृश्यावली के रंगों की गंध में.
“मैं खलिहानों के बारे में सुनना चाहूंगा,” मैंने कहा.
उसने मेरी और देखा. उसका चेहरा, हमेशा की तरह, भावहीन था.
“तुम मेरे इस बारे में बताने को अन्यथा तो नहीं लोगे?” उसने पूछा.
“तुम सुनाओ,” मैंने उत्तर दिया.
“यह वास्तव में बहुत आसान है. तुम उसके चारों ओर पेट्रोल छिड़को और उस पर माचिस की एक जलती हुई तीली फेंको और बस भक्क! सब ख़त्म. सब कुछ स्वाहा होने में पंद्रह मिनट से भी कम समय लगता है. निश्चय ही मैं बड़े खलिहानों की बात नहीं कर रहा हूँ. अधिकांशतः बस अस्थायी झोंपड़ी जैसे.”
“फिर…… “मैंने कहा और रुक गया. मैं आगे क्या कहूँ इसका अंदाजा नहीं लगा पा रहा था. “लेकिन तुम खलिहान क्यों जलाते हो ?”
“क्या यह कुछ विचित्र है?”
“मुझे नहीं पता. तुम खलिहान जलाते हो और मैं नहीं जलाता. निश्चित रूप से दोनों में अंतर है.”
वह कुछ देर तक खाली-खाली सा बैठा रहा. उसका मस्तिष्क पूरी तरह गुथा हुआ लग रहा था, पट्टी की तरह. अथवा हो सकता है मेरा ही मस्तिष्क चारों ओर से गूँथ दिया गया था.
“मैं अंदाजन हर दो महीने में एक खलिहान जला देता हूँ,” उसने कहा और फिर अपनी उंगलियाँ झटकी. “यह गति ठीक लगती है. बस मेरे लिए.”
मैंने अनिश्चय से सिर हिलाया. ठीक गति?
“तो क्या वे सब तुम्हारे खलिहान होते हैं जिन्हें तुम जलाते हो?” मैंने पूछा.
उसने मेरी ओर देखा मानो उसे समझ में न आया हो कि मैं किस चीज के सम्बन्ध में बात कर रहा हूँ. “मैं अपने खलिहान क्यों जलाऊंगा? किस बात से तुमने सोच लिया कि मेरे पास इतने खलिहान होंगे ?”
“तो जो कुछ तुम कह रहे हो उसका अर्थ है कि तुम दूसरे लोगों के खलिहान जलाते हो, ठीक?”
“बिलकुल ठीक,” उसने कहा. “निश्चित रूप से यह ठीक है. तो यह गैर क़ानूनी है, बिलकुल उसी तरह जैसे मैं और तुम यहाँ बैठ कर गांजा पी रहे हैं – निश्चित रूप से कानून के विरुद्ध.”
मैं अपनी कुर्सी के हत्थों पर अपनी कुहनियां टिकाये मौन था.
“मैं दूसरे लोगों के खलिहान बिना उनकी अनुमति के जलाता हूँ. निश्चय ही, मैं हमेशा ऐसा खलिहान चुनता हूँ जिससे बहुत बड़ी लपटें न निकलें. मैं अग्निकांड नहीं शुरू करना चाहता- बस खलिहान जलाना चाहता हूँ.”
मैंने सिर हिलाया और सिगरेट का आखिरी कश लिया. “लेकिन यदि तुम पकड़े गए तो तुम परेशानी में पड़ सकते हो. आखिर यह आगजनी है. यदि भेद खुला तो तुम जेल चले जाओगे.”
“मैं नहीं पकड़ा जाऊँगा,” उसने लापरवाही से कहा. मैं पेट्रोल उड़ेलता हूँ, माचिस लगाता हूँ और भाग खड़ा होता हूँ. फिर मैं दूर से दूरबीन से इसे देखने का आनंद लेता हूँ. मैं नहीं पकड़ा जाऊँगा. पुलिस एक घटिया खलिहान के जलने पर गली-गली भटकने नहीं जा रही.”
वह संभवतः ठीक कह रहा था, मैंने सोचा. और कोई कभी सोचेगा भी नहीं कि एक अच्छे कपड़े पहने, महँगी विदेशी कार चलने वाला युवक खलिहानों में आग लगाता घूम रहा होगा.
“क्या उसे इस बारे में पता है?” मैंने ऊपर सीढ़ियों की ओर इशारा करते हुए पूछा.
“उसे कुछ नहीं पता है. वास्तव में मैंने इस बारे में कभी किसी प्राणी को कुछ नहीं बताया. यह उस तरह का विषय नहीं है जो तुम हर किसी को बताते फिरो.”
“फिर मुझे क्यों बताया?”
उसने अपने बाएं हाथ की उंगलियां फैलायीं और अपना गाल रगड़ा. दाढ़ी से ऐसी सूखी आवाज आई मानो किसी नए कड़े कागज पर कोई कीड़ा रेंग रहा हो. “तुम एक लेखक हो, इसलिए मैंने सोचा तुम्हें मानव स्वभाव की पैटर्न्स के बारे में निश्चय ही रुचि होगी. लेखकों से अपेक्षा की जाती है कि वे किसी चीज का पहले जैसी वह है वैसे ही मूल्यांकन करें, उस पर कोई फैसला सुनाने से पूर्व. यदि मूल्यांकन सही शब्द नहीं है तो तुम कह सकते हो कि वे चीजों को उसी रूप में स्वीकार कर सकते हैं जो वे हैं. इसके अतिरिक्त मैं इस सम्बन्ध में किसी से बात भी करना चाहता था.”
मैंने सिर हिलाया. मगर मुझे इसे किस तरह से स्वीकार कर लेने की अपेक्षा थी. स्पष्टतः मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
वह हँसा. “मैं जिस तरह से इसे व्याख्यायित कर रहा हूँ, मेरा अनुमान है कि वह कुछ अजीब लग सकता है.” उसने अपने दोनों हाथ अपने सामने फैलाये और ताली बजायी. “दुनिया खलिहानों से भरी पड़ी है, मानो वे सभी उन्हें जला डालने के लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं. एक खलिहान बिलकुल महासागर के किनारे, एक खलिहान बिलकुल धान के खेतों के मध्य…..जो भी हो हर तरह के खलिहान. मुझे बस पंद्रह मिनट का समय दो और मैं उन सब को जला कर खाक कर दूंगा. तो ऐसा लगता है कि शुरुआत में वहां कभी कोई खलिहान नहीं था. इस बात से किसी का दम नहीं घुटता. वह बस…….. अदृश्य हो जाता है. भक्क !”
“लेकिन वह तुम हो जो यह निर्णय लेते हो कि उन्हें नष्ट किया जा सकता है, ठीक?”
“मैं किसी चीज का निर्णय नहीं लेता. खलिहान जलाये जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. मैं बस उन्हें उपकृत करता हूँ. मैं बस उस बात को जो वहां है, स्वीकार करता हूँ. यह बारिश की भांति है. बारिश होती है. नदियां उफान पर आती हैं. कोई बहाव में बह जाता है. क्या वर्षा कोई निर्णय ले रही है ? यह ऐसा नहीं है कि मैं कोई अनैतिक काम करने निकला हूँ. मेरी नैतिकता की अपनी संहिता है. नैतिकता का बोध महत्वपूर्ण है; लोग इसके बिना नहीं जी सकते. मैं इसके बारे में इस तरह सोचता हूँ : नैतिकता वह सूक्ष्म संतुलन हैं जो समानांतर अस्तित्व में सन्निहित है.”
“समानांतर अस्तित्व? क्या मतलब है तुम्हारा ?”
“दूसरे शब्दों में कहूँ तो मैं अभी यहाँ हूँ लेकिन मैं वहां भी हूँ. मैं टोक्यो में हूँ, और ठीक उसी समय मैं ट्यूनिस में भी हूँ. मैं लोगों पर दोषारोपण भी कर सकता हूँ और उन्हें क्षमा भी कर सकता हूँ, सब कुछ एक ही साथ. इसमें एक संतुलन सन्निहित है, और बिना इसके मैं नहीं समझता कि हमारे लिए जीना संभव होगा. यह एक बंधन की तरह है- यदि यह खुला हुआ होता है तो हम इसे ठीक करते हैं. किन्तु चूंकि यह वहां है इसलिए हम इस प्रकार के समानांतर अस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं.
“और खलिहानों को जलाना तुम्हारी नैतिकता की संहिता के साथ सुसंगत है?”
“पूरी तरह नहीं. यह ऐसा कार्य अधिक है जो उस नैतिकता को सहारा देता है. लेकिन नैतिकता के सम्बन्ध में यह वार्ता अब बहुत हुई. यह वह बिंदु नहीं है जहां मैं जा रहा हूँ. मैं यह कहने का प्रयत्न कर रहा हूँ कि यह दुनिया इन खलिहानों से भरी पड़ी है. तुम्हारे अपने खलिहान हैं. मेरे अपने. मैं जानता हूँ मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ. मैं लगभग दुनिया भर में हर जगह रह चुका हूँ और हर वह काम कर चुका हूँ जिसकी तुम कल्पना कर सकते हो. दो तीन बार तो मृत्यु की आँखों में भी झांक चुका हूँ. मुझे गलत मत समझो. मैं डींग हाँकने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ. लेकिन हम विषय क्यों नहीं बदल रहे? मैं सामान्यतः इतना बातूनी नहीं हूँ – गांजा मुझे वाचाल बना देता है.
हम वहां, कुछ देर तक स्थिर और मौन बैठे रहे, संभवतः कौंध के धूमिल पड़ जाने की प्रतीक्षा करते हुए. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मुझे आगे क्या कहना चाहिए. मुझे महसूस हुआ मानो मैं एक ट्रेन में बैठा खिड़की से दृष्टि पथ में आते और गायब हो जाते किसी विचित्र परिदृश्य को देख रहा था. मेरी देह विश्राम की अवस्था में थी फिर भी मैं गुजर रहे दृश्यों का विवरण नहीं समझ पा रहा था. किंतु मैं अपनी देह की उपस्थिति को बिलकुल स्पष्ट रूप से अनुभव कर सकता थ. और उसके साथ ही समानांतर अस्तित्व का एक चिन्ह भी ; यहां मैं हूँ सोचता हुआ. और वहां एक और मैं, पहले मैं को सोचते हुए देखता हुआ. समय बहुस्वरीय परिशुद्धता के साथ गुजर रहा था.
“क्या एक-एक और बीयर हो जाये?” मैंने थोड़ी देर बाद पूछा.
“तुम्हें यदि कोई परेशानी न हो.”
मैं किचन से बीयर की चार कैन निकाल लाया, साथ में थोड़ी कैमेम्बर्ट चीज़ भी. हम दोनों ने दो दो बीयर और पी और चीज़ खाते रहे.
“आखिरी बार कब तुमने कोई खलिहान जलाया था?” मैंने उससे पूछा.
“मुझे याद करने दो,” उसने कुछ क्षण सोचा, “इसी गर्मी में, अगस्त के आखिर में.”
“और तुम अगला कब जलाने वाले हो?”
“मुझे नहीं पता. मैं किसी समय सारणी के हिसाब से ऐसा नहीं करता, कैलेण्डर की तारीखें गोल घेर कर. मैं तब खलिहान जलाता हूँ जब मेरे भीतर से इसके लिए तीव्र इच्छा उठती है.”
“लेकिन जब तुम जलाना चाहते हो तो जरूरी तो नहीं कि उस तरह का कोई खलिहान तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हो?”
“निश्चय ही, नहीं,” उसने शांति से कहा, “इसलिए मैं सुनिश्चित करता हूँ कि मैं अग्रिम रूप से एक अच्छे खलिहान की पहचान किये रहूं.”
‘क्या तुम ने अपने अगले खलिहान की पहचान कर ली है?”
उसकी आँखों के मध्य व्यंगात्मक मुस्कराहट की रेखाएं सी खिंच गयीं और उसने अपने नथुनों से जोर से साँस छोड़ी. “हाँ, मैं पहले से ही उसे ढूंढ चुका हूँ.”
मैंने कुछ नहीं कहा बस बची हुई बीयर के घूँट भरता रहा.
“यह एक शानदार खलिहान है. लम्बा समय हुआ जब मैंने जलाने लायक ऐसा खलिहान देखा है. वास्तव में आज मैं इधर उसी का परीक्षण करने आया था.”
“तुम्हारा मतलब है वह कहीं इधर ही आसपास है?”
“बहुत पास में,” उसने कहा.
इस तरह हमारी खलिहानों की चर्चा समाप्त हुई.
उसने अपनी गर्लफ्रेंड को पांच बजे जगाया और पुनः मुझ से इस तरह अचानक आ जाने के लिए क्षमा मांगी. यद्यपि उसने काफी मात्रा में बीयर पी थी, पर वह बिलकुल सामान्य था. वह घर के पीछे से कार बाहर ले आया. उस पर हेडलाइट के पास हलकी सी खरोंच थी.
“मैं उन खलिहानों पर नज़र रखूँगा,” मैंने उन्हें विदा करते हुए कहा.
“ठीक,” उसने कहा, “कुछ भी हो, ध्यान रखना वह बिलकुल पास ही है.”
“खलिहान से क्या मतलब है तुम्हारा?” उसने (लड़की ने) पूछा.
“बस हम आदमियों के बीच की बातें हैं,” उसने जवाब दिया.
“अच्छा,” उसने कहा.
और वे अदृश्य हो गए.
मैं बैठक में लौट आया और सोफे पर गिर पड़ा. मेज तमाम तरह के कचरे से भरी हुई थी. मैंने अपना ओवरकोट फर्श पर से, जहां वह पड़ा था, उठाया, उसमें स्वयं को लपेटा और गहरी नींद में सो गया.
जब मैं जागा, कमरे में सूचीभेद्य अंधकार था . सात बजे थे.
नीलापन लिए हुए धुएं का बादल और गांजे की गंध कमरे में भरी हुई थी. अंधेरा विचित्र रूप से असमतल था. अभी भी सोफे पर पड़े पड़े ही मैंने स्कूल के नाटक की कुछ और स्मृतियों को जीवित करने का प्रयत्न किया लेकिन मेरे मस्तिष्क में कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं उभर सकी. क्या लोमड़ी के बच्चे को दस्ताने कभी मिल सके?
मैं सोफे पर से उठ गया और ताजा हवा के लिए खिड़कियां खोल दी. किचन में जा कर कॉफी बनाई और पी गया.
अगले दिन मैं किताबों की दुकान तक गया और मैं जिस इलाके में रहता था उस हिस्से का एक नक्शा ख़रीदा. नक्शा हाथ में लिए, मैं आस-पड़ोस में तमाम खलिहानों की स्थिति के सम्बन्ध में नक्शे पर निशान लगाते हुए घूमता रहा. अगले तीन दिनों में मैंने हर दिशा में ढाई मील के क्षेत्र का परीक्षण कर लिया. मेरा घर शहर के बाहरी इलाके में स्थित था जहाँ अभी बहुत से खेत बचे हुए थे, इसलिए वहां ढेरों खलिहान थे. मैंने गिने – कुल सोलह.
जो खलिहान जलाने का उसने निर्णय लिया है वह उन्हीं में से एक होना चाहिए. जिस तरह उसने कहा था कि वह बिलकुल यहीं पास में था, मुझे निश्चय था कि वह उस इलाके के बाहर नहीं होगा, जिसका मैंने चक्कर लगाया था.
अगले कदम के रूप में, मैंने उन सोलहों खलिहानों का सावधानी से परीक्षण किया. पहले मैंने उनको अलग कर दिया जो लोगों के घरों के बहुत करीब थे. फिर मैंने उन्हें अलग किया जिनमें खेती के उपकरण और कीटनाशक दवाएं रखी हुई थीं- इसका अर्थ था उन्हें कोई प्रतिदिन प्रयोग कर रहा था. मुझे निश्चय था कि वह उनमें से किसी को नहीं जलाना चाहेगा.
अब पांच खलिहान बचे थे. पांच खलिहान जो जलाये जा सकते थे. उस तरह के जो पंद्रह मिनट में जल जायेंगे, पूरी तरह नष्ट हो जायेंगे- और कोई नुकसान नहीं होगा. लेकिन मैं इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया कि उन पांचों में से उसने किसे चुना है. यह व्यक्तिगत प्राथमिकता का प्रश्न था. मैं यह जानने के लिए मरा जा रहा था कि वह कौन सा होगा.
मैंने नक्शा फैलाया और उन पांचों को छोड़ कर X के शेष निशान जो मैंने बनाये थे, मिटा डाले. फिर मैंने अपने टी-स्क्वायर, फ्रेंच कर्व और डिवाइडर निकाले और उस सबसे छोटे रास्ते की गणना की जो हर खलिहान से होता हुआ मेरे घर तक आएगा. रास्ता नदी के किनारे से हो कर जाता था और कुछ पहाड़ियों पर से गुजरता था और उसकी दूरी मेरे घर से पौने पांच मील थी.
अगली सुबह छह बजे मैंने अपनी जॉगिंग की ड्रेस और दौड़ने वाले जूते पहने और कल जिस रास्ते की नाप की थी उस पर दौड़ने लगा. क्योंकि मैं सामान्यतः प्रतिदिन ही साढ़े तीन मील दूरी तय करता था, इसलिए एक अतिरिक्त मील और जोड़ लेने से मुझे कोई खास परेशानी नहीं थी. परिदृश्य बुरा नहीं था, यद्यपि रास्ते में दो रेलवे क्रॉसिंग्स थी, लेकिन उन्होंने मेरी गति में बाधा नहीं पहुंचाई.
रास्ता मेरे घर के पास के कॉलेज के खेलकूद के मैदान को घेरता था फिर नदी के किनारे चलता था, लगभग दो मील की निर्जन कच्ची सड़क. पहला खलिहान सड़क से आधी दूरी पर स्थित था. फिर रास्ता एक जंगल में चला जाता था और हलके ढाल की ओर बढ़ जाता था. एक और खलिहान, सड़क से थोड़ा हट कर, वहां घुड़दौड़ के लिए एक अस्तबल बना हुआ था. घोड़े यदि आग लगी देखते तो थोड़ा उपद्रव कर सकते थे, लेकिन बस इतना ही. वे घायल नहीं होते और न ही उन्हें कोई अन्य नुकसान पहुंचता.
तीसरे और चौथे खलिहान एक जैसे दिखते थे, दो पुराने, गंदे जुड़वा खलिहानों की भांति. वे एक दूसरे से दो सौ फीट के लगभग दूर थे. दोनों ही अत्यंत बदहाल और गंदी स्थिति में थे. यदि आप एक को जलाते तो आप उसके जोड़े को भी जला देते.
अंतिम खलिहान एक रेलवे क्रासिंग की बगल में था. लगभग साढ़े तीन मील की दूरी पर. यह स्पष्ट रूप से त्याग दिया गया था. इसका सामने का भाग सड़क की ओर था और इसके द्वार पर पेप्सी-कोला का टिन का एक बोर्ड लगा था. इमारत स्वयं ही – मैं निश्चित नहीं हूँ कि आप उसे एक इमारत कह भी सकते हैं- लगभग गिर चुकी थी. यह उसके विवरण के बिलकुल अनुरूप था – एक इमारत जो बस लपटों के हवाले किये जाने हेतु किसी की प्रतीक्षा कर रही हो.
मैं आखिरी खलिहान के सामने रुक गया, कुछ एक गहरी सांसें ली, फिर रेलवे लाइन को पार किया और घर की ओर चल पड़ा. इस दौड़ में कुल इक्कतीस मिनट और तीस सेकेंड्स लगे.
मैं उसी रास्ते पर अगले एक महीने तक रोज सुबह दौड़ता रहा. लेकिन कोई भी खलिहान नहीं जलाया गया.
कभी-कभी मेरे मस्तिष्क में यह विचार भी आया कि हो सकता है वह मुझ से ही किसी खलिहान को जलवाने का प्रयत्न कर रहा हो. मानो उसने मेरे मस्तिष्क को खलिहान जलाने की छवियों से भर दिया हो और धीरे-धीरे उन्हें बड़ा और बड़ा करता जा रहा हो जैसे साइकिल के टायर में हवा भरी जा रही हो. ऐसे क्षण भी आये जब मैंने सोचा कि जब तक मैं उसके ऐसा करने की प्रतीक्षा कर रहा था, मैं स्वयं भी आगे जा सकता था और माचिस की एक तीली लेता और एक खलिहान को जला डालता. आखिर वह एक पुराना बदहाल खलिहान ही तो होता.
लेकिन यह तो बहुत आगे बढ़ जाने जैसा था. आखिर वह मैं नहीं था जो खलिहान जलाता था, यह वह था. खलिहान जलाने की छवियां मेरे मस्तिष्क में कितना भी विस्तार लें, मैं खलिहान जलाने वालों जैसा नहीं था.
हो सकता है उसने कहीं और किसी और खलिहान के बारे में निर्णय कर लिया हो. या फिर खलिहान जला पाने हेतु समय निकाल पाने के हिसाब से वह बहुत अधिक व्यस्त रहा हो. मुझे लड़की का भी इस बीच कोई फोन नहीं आया.
दिसंबर आ गया, और उसके साथ ही पतझड़ की समाप्ति भी. सुबह की हवा ठंडी होने लगी. खलिहानों में कोई परिवर्तन नहीं आया, बस सफ़ेद पाला उनकी छतों को ढंकने लगा. दुनिया वैसे ही हमेशा की भांति आगे बढ़ गयी.
अगली बार जब मैंने उसे देखा वह वही दिसंबर था, क्रिसमस से कुछ दिन पूर्व. जहाँ भी आप जाते, क्रिसमस कैरोल बज रहा होता. मैं शहर में यहाँ वहां घूमता, नाना प्रकार के लोगों के लिए उपहार खरीदने में व्यस्त था. नागोज़ाकी के पास, मैंने एक कॉफी की दुकान की पार्किंग में उसकी कार खड़ी देखी. उस सिल्वर रंग की स्पोर्ट्स कार को पहचानने में कोई त्रुटि नहीं थी, बायीं तरफ की हेडलाइट के पास छोटी सी खरोंच के रहते. बिना कुछ सोचे मैं भीतर चला गया.
दुकान के भीतरी भाग में अँधेरा सा था और कॉफी की तेज सुगंध भरी हुई थी. लोगों की आवाजें धीमी थी तथा पृष्ठभूमि में बारबेक्यू संगीत धीमे-धीमे बज रहा था. मैंने उसे सीधे ही खोज निकाला. खिड़की के पास बैठा वह ‘कैफे औ लेत’ (एक खास तरह की कॉफी) पी रहा था. दुकान में इतनी गर्मी थी कि आपके चश्मे पर भाप फैल जाए लेकिन उसने अपना कश्मीरी कोट नहीं उतारा था. न ही अपना मफलर.
मैं थोड़ी हिचकिचाहट महसूस कर रहा था लेकिन मैंने बस हेलो कहा. मैंने उसे यह नहीं बताया कि मैंने बाहर पार्किंग में उसकी कार देखी थी; मैं बस दुकान में आया था और उससे संयोगवश मुलाकात हो गयी.
“यदि कोई दिक्कत न हो तो मैं यहाँ बैठ जाऊँ?” मैंने पूछा.
“बिलकुल, जरूर बैठो,” उसने कहा.
हम थोड़ी देर बात करते रहे. लेकिन हमारी बातचीत की कोई दिशा नहीं थी. हमारे पास एक दूसरे को कहने को कुछ खास नहीं था और उसका ध्यान कहीं और लगा हुआ था. ऐसा होते हुए भी उसने मेरे उसकी मेज पर बैठने को अन्यथा नहीं लिया. उसने मुझे ट्यूनीशिया के बंदरगाह के बारे में बताया. और वहां पकड़ी जाने वाली श्रिम्प्स के बारे में. ऐसा नहीं महसूस हुआ कि जैसे वह बात करने के लिए मजबूर हो; वह बस श्रिम्प्स के बारे में बताना चाहता था. लेकिन कहानी बीच में ही समाप्त हो गयी मानो जैसे पानी की पतली धार रेत द्वारा सोख ली गयी हों.
उसने अपना हाथ उठाया, एक वेटर को बुलाया और ‘कैफे औ लेत’ के एक और कप का ऑर्डर दिया.
“वैसे, उस खलिहान का क्या हुआ?” मैंने उससे पूछ ही लिया.
उसके मुंह के कोरों पर मुस्कराहट के चिन्ह उभरे. “ओह, तुम्हें अब भी याद है,” उसने कहा. उसने अपनी जेब से रुमाल निकाला, अपना मुंह पोंछा और रुमाल को वापस जेब में रखा. “मैंने उसे जला दिया. एकदम जला दिया. वैसे ही जैसे मैंने कहा था.”
“मेरे घर के पास?”
“हाँ, एकदम पास में ही.”
“कब?”
“काफी पहले ही, जब हम तुम्हारे घर आये थे उसके दस दिन बाद ही.”
तब मैंने उसे बताया कि मैंने कैसे खलिहानों का निशान नक़्शे पर लगाया था और कैसे मैं उनके पास से हो कर हर दिन दौड़ा करता था. “इसलिए संभव नहीं था कि वह मुझ से अनदेखा रह जाता,” मैंने कहा.
“तुम काफी गहराई में जाते हो, है न?” उसने खुश होते हुए कहा. “गहराई में जाने वाले और तार्किक. लेकिन तुमने अनदेखा कर दिया होगा. कभी-कभी ऐसा होता है. कोई चीज बहुत पास होती है और हम चूक जाते हैं.”
“अच्छा, लेकिन यह मेरी समझ में नहीं आया.”
उसने अपनी टाई ठीक की और अपनी घड़ी की ओर देखा. “वह बहुत करीबी बात थी,” उसने कहा, “लेकिन अब मुझे जाना है. क्यों न हम इसके बारे में अगली बार विस्तार से बात करें? तुम मुझे माफ़ करोगे क्योंकि कोई मेरी प्रतीक्षा कर रहा है.”
उसे और रोके रखने का कोई कारण नहीं था. वह उठ गया और उसने अपनी सिगरेट्स और लाइटर अपनी जेब में रख लिए.
“खैर, क्या तुमने उस दिन के बाद से उसे (लड़की को) कहीं देखा है?” उसने पूछा.
“नहीं, मैंने तो नहीं देखा, तुमने देखा?”
“नहीं, मैं उससे नहीं मिल सका. वह अपने अपार्टमेंट में नहीं है. फोन से भी मेरा संपर्क नहीं हो सका और वह अपनी मूक-अभिनय सीखने की कक्षाओं में भी बहुत दिनों से नहीं जा रही है.”
“मैं कल्पना करता हूँ कि वह फिर कहीं चली गयी होगी. उसने पहले भी कई बार ऐसा किया है.”
वह अपनी जेबों में हाथ डाले वही खड़ा रहा और मेज के ऊपरी हिस्से को घूरता रहा. “डेढ़ महीने बिना पैसे के. वह उस तरह की नहीं है जो अपने दम पर इतने दिन रह सकती हो, तुम तो जानते ही हो.”
उसने अपनी जेब के भीतर अपनी अंगुलियां दो तीन बार झटकी.
“उसके पास एक दमड़ी भी नहीं थी,” उसने कहना जारी रखा, “न तो कोई सच्चा मित्र ही. उसकी एड्रेस बुक भरी पड़ी है पर वे मात्र नाम हैं. एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिससे वह सहारे की उम्मीद कर सकती. तुम अकेले हो जिस पर उसे विश्वास है. मैं यह विनम्रता वश नहीं कह रहा हूँ. तुम उसके लिए कुछ विशेष हो. मुझे भी इससे कुछ ईर्ष्या हो गयी थी. जब कि मैं उस तरह का व्यक्ति नहीं हूँ जो कभी ईर्ष्या करे. मुझे वास्तव में जाना है. चलो हम फिर कभी मिलते हैं.”
मैंने सिर हिलाया किन्तु मुंह से सही शब्द नहीं निकल सके. हमेशा ऐसे ही होता था. जब मैं उसके साथ होता था, शब्द बस बाहर प्रवाहित नहीं होते थे.
मैंने उसके बाद उसे (लड़की को) कई बार फोन मिलाने का प्रयत्न किया, जब तक कि फोन कंपनी ने उसका फोन ही बंद नहीं कर दिया. मैं थोड़ा चिंतित था इसलिए मैं उसके अपार्टमेंट पर गया. उसके दरवाजे में ताला लगा हुआ था. उसके मेलबॉक्स में ढेरों चिट्ठियां कबाड़ की तरह भरी हुई थी. मैं बिल्डिंग के सुपरवाइजर को नहीं ढूंढ सका, इसलिए मैं यह भी नहीं पता कर सका कि क्या वह अब भी वहां रहती थी. मैंने अपनी डायरी से एक पन्ना फाड़ा और उसके लिए एक नोट लिखा, “मुझ से संपर्क करो,” अपना नाम लिखा और उसके मेल बॉक्स में डाल दिया.
कोई खबर नहीं.
अगली बार जब मैं उसके अपार्टमेंट पर गया, किसी और की नेमप्लेट दरवाजे पर लगी हुई थी. मैंने दस्तक दी लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया. बिलकुल पिछली बार की ही तरह, बिल्डिंग का सुपरवाइजर फिर नहीं मिल सका.
इसलिए मैंने वहां जाना छोड़ दिया. यह लगभग एक वर्ष पूर्व की बात है.
वह बस गायब हो गयी.
मैं अब भी रोज सुबह पांचों खलिहानों के पास से होता हुआ दौड़ता हूँ. मेरे पड़ोस में कोई खलिहान नहीं जलाया गया था. और मैंने किसी खलिहान के जलाये जाने के बारे में भी नहीं सुना था. दिसंबर फिर आता है और जाड़े के पंछी सिर के ऊपर से उड़ा करते हैं. और मैं निरंतर बूढ़ा होता जाता हूँ.
श्रीविलास सिंह 8851054620/sbsinghirs@gmail.com |
Movie: Burning, 2018
Director: Lee Chang-Dong
प्रिय दक्षिण कोरियन निदेशक, जो ख़ुद एक बेहतरीन उपन्यासकार हैं, की यह फ़िल्म अच्छी है। हालाँकि उनकी अन्य आधा दर्जन फ़िल्मों की तुलना में, मेरे दर्शक की निगाह में, कुछ कमतर।
कहानी का अनुवाद अच्छा है।
वाकई दिल दहलाने वाली कथा है। अनुवाद अच्छा है।
रोमांच/ दहशत और मन्थर गति से एक रहस्य में ले चलती कहानी। फ़िल्म भी देखता हूँ। यह थ्रिलर की तरह है। अनुवाद शानदार है।
बहुत अच्छा अनुवाद जिसमें अद्भुत पठनीयता है ।
कहानी अपने साथ पाठक को भी अपनी एक अलग दुनिया में लिए चलती है जो यथार्थ और जादुई यथार्थ से बनी दुनिया है।कथाकार की यह खूबी है कि हम एक मोहपाश में बंधे उस दुनिया में दाखिल होते जाते हैं मानों उसका ही एक अभिन्न हिस्सा हों। हारूकी मुराकामी की यह कहानी प्रतीकात्मक रूप में जीवन और यथार्थ को समझने की दृष्टि देती है। अनुवाद के लिए श्री विलास जी को बधाई !
बड़ी खूबसूरती से पाठक को आखिर तक स्वयं से जोड़े रखने में सक्षम कहानी. कहानी की तरह अनुवाद भी प्रभावशाली है.
बहुत बढ़िया अनुवाद. श्रीविलास जी और समालोचन का आभार.
अद्भुत कहानी। अनुवाद। ऐसी कहानी पढ़ाने के लिए समालोचन का आभार।