विश्व रंगमंच दिवस: के. मंजरी श्रीवास्तव
आज विश्व रंगमंच दिवस है (२७ मार्च). खड़ी बोली हिंदी साहित्य की शुरुआत में नाटकों की बड़ी भूमिका थी, इसके प्रस्तोता भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ख़ुद रंगमंच में अभिनय किया था....
आज विश्व रंगमंच दिवस है (२७ मार्च). खड़ी बोली हिंदी साहित्य की शुरुआत में नाटकों की बड़ी भूमिका थी, इसके प्रस्तोता भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ख़ुद रंगमंच में अभिनय किया था....
कला और साहित्य का असर राजनीति की तरह तत्काल नहीं दिखता पर होता गहरा है. सहृदय, विवेकवान और उदार मनुष्यता की निर्मिति में इसका महत्व असंदिग्ध है. इस तरह की...
नाटककार और वरिष्ठ रंगकर्मी रतन थियाम (जन्म: 20 जनवरी 1948, मणिपुर) से रंगमंच और कलाओं में सौन्दर्यबोध की अवधारणा को लेकर यह बातचीत के. मंजरी श्रीवास्तव ने की है. रतन...
थियेटर के लिए पद्मश्री से सम्मानित वंशी कौल (23 August 1949 – 6 February 2021) की संस्था ‘रंग विदूषक’ (भोपाल) नाटकों में अपने नवाचार के लिए विश्व विख्यात थी. कैंसर...
शब्दों की अपनी स्वायत्त सत्ता है, ये दीगर सत्ता केन्द्रों के समक्ष अक्सर प्रतिपक्ष में रहते हैं. शब्दों ने बद्धमूल नैतिकता पर चोट की है उसे खोला है, धर्म की...
साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में बहुत से प्रतिबद्ध लोग और समूह वर्षो से सतत क्रियाशील हैं. जोड़, जुगत और जुगाड़ से ‘येन केन प्रकारेण’ सबकुछ हासिल कर लेने...
जिस नगर में कुछ अच्छे कवि-शायर, थोड़े से कथाकार कुछ सुनने लायक बौद्धिक जनवादी विचारक, विवेकवान पत्रकार तथा एकाध नाट्य समूह और थोड़े से कलावंत न हों वहाँ नहीं निवास...
पूर्वा नरेश के निर्देशन में मंचित नाटक ‘बंदिश : २० से २०००० हर्ट्ज’ ने कला मर्मज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. इसके रंगमंचीय, सामाजिक और राजनीतिक मन्तव्य पर रवींद्र...
आज विश्व रंगमंच दिवस है, यह प्रतिवर्ष २७ मार्च को मनाया जाता है, इस दिन एक अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संदेश भी दिया जाता है. १९६२ में पहला संदेश फ्रांस के ज्यां...
प्रसिद्ध रंगकर्मी और कवि कावालम नारायण पणिक्कर (28 April 1928 − 26 June 2016) को 1983 में ‘संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड’, 2002 में ‘संगीत नाटक एकडेमी फेलोशिप’ तथा 2007 में...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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