अष्टभुजा शुक्ल की कविताओं में दाम्पत्य प्रेम: सदाशिव श्रोत्रिय
कवि अष्टभुजा शुक्ल की दाम्पत्य- प्रेम की कविता- ‘आज की रात’ और ‘बहुत बेचैन हिया’ जिनके प्रकाशन में लगभग एक दशक का अंतराल है, का चयन यहाँ सदाशिव श्रोत्रिय ने...
कवि अष्टभुजा शुक्ल की दाम्पत्य- प्रेम की कविता- ‘आज की रात’ और ‘बहुत बेचैन हिया’ जिनके प्रकाशन में लगभग एक दशक का अंतराल है, का चयन यहाँ सदाशिव श्रोत्रिय ने...
ब्रिटिश काल में बंगाल राष्ट्रवाद के उदय और सामाजिक-धार्मिक सुधारों का महत्वपूर्ण स्रोत था, उसका गहरा असर हिंदी प्रदेशों पर भी पड़ा. ऐसे में उस समय की बांग्ला स्त्रियाँ किस...
शरण कुमार लिंबाले के ‘अक्करमाशी’, और लक्ष्मण गायकवाड के ’उठाईगीर’ से हिंदी के पाठक परिचित हैं, पर इनके अनुवादक ‘सूर्यनारायण रणसुभे’ से अंजान. मराठी और हिंदी का बहुत पुराना नाता...
महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत की प्रसिद्धि इतनी अधिक है कि उसकी तुलना में उनकी अन्य कृतियों की तरफ ध्यान नहीं जाता है. ‘चित्ररेखा’ उनकी ऐसी ही कृति...
अली मदीह हाशमी ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी अंग्रेजी में लिखी है जिसका हिंदी अनुवाद अशोक कुमार द्वारा किया गया है. इसे फ़ैज़ की अधिकृत जीवनी कही जा रही ...
हमारी लोक कथाओं में स्त्रियों की उपस्थिति ख़ासी समस्यामूलक है. लैंगिक समानता और व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के लिहाज़ से भी इनमें दिक्कतें हैं. प्रीति प्रकाश ने लोक कथाओं को...
सदानन्द शाही का इधर रैदास बानी का काव्यान्त्रण ‘मेरे राम का रंग मजीठ है’ प्रकाशित हुआ है. गोरख, कबीर, रैदास उनकी रूचि के विषय हैं. कबीर को सम्बोधित उन्होंने कविताएँ भी...
साहित्य की दुनिया में संस्थाओं का बहुत महत्व होता है. हिंदी भाषा और उसके साहित्य में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की केन्द्रीय भूमिका रही है. इसके निर्माण और देय की गौरव...
प्रसिद्ध दार्शनिक और महात्मा गाँधी के पौत्र रामचंद्र गांधी (9 जून, 1937-13 जून, 2007) ने ऑक्सफ़ोर्ड से पीटर स्ट्रॉसन के निर्देशन में दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी,...
अज्ञेय की लंबी कविता ‘ओ नि:संग ममेतर’ की तरफ ध्यान कम गया है और उसकी चर्चा भी नहीं दिखती है. वरिष्ठ लेखक सदाशिव श्रोत्रिय लम्बे समय से कविताओं के पाठ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum