औपनिवेशक ज्ञान मीमांसा और आरंभिक भारतीय विद्वता : माधव हाड़ा
पराधीन भारत में निर्मित और सृजित ज्ञान पर औपनिवेशिक प्रभाव का होना स्वाभाविक था. यह प्रभाव उपनिवेश को स्थायी बनाए रखने की औपनिवेशिक रणनीति के साथ कितनी दूर तक चला,...
पराधीन भारत में निर्मित और सृजित ज्ञान पर औपनिवेशिक प्रभाव का होना स्वाभाविक था. यह प्रभाव उपनिवेश को स्थायी बनाए रखने की औपनिवेशिक रणनीति के साथ कितनी दूर तक चला,...
2018 में प्रकाशित गीतांजलि श्री के पाँचवें उपन्यास ‘रेत-समाधि’ के डेज़ी रॉकवेल द्वारा किए गए अंग्रेज़ी अनुवाद ‘Tomb of Sand’ ने 2022 में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त करके इतिहास रच...
1912 से शिकागो से प्रकाशित हो रही ‘पोएट्री’ नामक पत्रिका का निरंतर प्रकाशन किसी चमत्कार से कम नहीं है. यह इस बात का जीवंत प्रमाण है कि एक प्रबुद्ध समाज...
साहित्य के लिए भाषा का सौंदर्य जितना महत्त्वपूर्ण है, उतनी ही उसकी वह कारीगरी भी, जिससे वह जीवन के सुख-दुख, पीड़ा-निराशा में सहयात्री बनता है. जब न्याय के पक्ष में...
तेजी ग्रोवर (1955) के छह कविता संग्रह प्रकाशित हैं. उनकी कृतियाँ देश-विदेश की तेरह भाषाओं में अनूदित हुई हैं. ‘संभावना’ से प्रकाशित ‘तूजी शेरजी और आत्मगल्प’ इधर चर्चा में है....
हिंदी साहित्य के अग्रणी उन्नायक जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘चंद्रगुप्त’ के प्रारंभिक संस्करण में आजीवक प्रसंग तीन दृश्यों में आया है, जो उसके अगले संस्करण से हटा दिए गए. ये...
एक निर्वासित देश छह दशकों से किसी दूसरे देश में अपनी स्मृति, वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं के साथ रह रहा हो, ऐसा उदाहरण विश्व में दुर्लभ है. तिब्बत के...
बहस जब व्यक्ति से प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर होती है, तो वह विमर्श की दिशा में मुड़ जाती है. उसमें एक स्थायित्व आ जाता है. उसका देश-काल विस्तार पाने लगता...
यह मोहन राकेश (8 जनवरी, 1925 - 3 दिसंबर, 1972) का जन्म शताब्दी वर्ष है. उनके नाटकों के प्रदर्शन और उनके साहित्य को समझने का यह वर्ष होना चाहिए. आधुनिक...
अफ्रीकी संस्कृति, भाषा और पहचान को केंद्र में रखकर रची गई न्गुगी वा थ्योंगो की रचनाएँ उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ सशक्त प्रतिरोध हैं. न्गुगी वैश्विक दृष्टिकोण के...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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