‘वीरेनियत’ का मतलब: पंकज चतुर्वेदी
‘इतने भले नहीं बन जाना साथी/जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी’ वीरेन डंगवाल के पहले कविता संग्रह, ‘इसी दुनिया में’ यह कविता शामिल है. इसका असर कुछ ऐसा...
‘इतने भले नहीं बन जाना साथी/जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी’ वीरेन डंगवाल के पहले कविता संग्रह, ‘इसी दुनिया में’ यह कविता शामिल है. इसका असर कुछ ऐसा...
साहित्य और संस्कृति में परम्परा और उत्तराधिकार के सवाल अक्सर सरलीकरण के आखेट हो जाते हैं. भाषा और साहित्य की दुनिया उसके लिखने-बोलने वालों से आबाद है जो कि अपने...
उत्तराखण्ड में नवलेखन की तीसरी कड़ी में वरिष्ठ लेखक बटरोही अरुण कुकसाल और शम्भू राणा की चर्चा कर रहें हैं. उत्तराखण्ड के युवा लेखन में विविधता है. जड़ों से जुड़े...
‘जय हो’ गीत के लिये ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त और दादा साहब फाल्के आदि सम्मानों से सम्मानित हिंदी, उर्दू और पंजाबी में लिखने वाले कवि सम्पूरण सिंह कालरा ‘गुलज़ार’ (१८ अगस्त...
वरिष्ठ लेखक बटरोही के लेखन में उत्तराखण्ड की संस्कृति और उसकी सामाजिक बुनावट की गहरी समझ मिलती है. नवलेखन की दूसरी कड़ी में अनिल कार्की और सुभाष तराण की चर्चा...
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (7 जुलाई 1883 - 12 सितम्बर 1922) का आज स्मरण दिवस है. हिंदी साहित्य को आधुनिक और विवेक-सम्मत बनाने के जो नवजागरणकालीन सांस्कृतिक उद्यम हुए उनमें गुलेरी...
वरिष्ठ कथाकार बटरोही उत्तराखण्ड की साहित्यिक-सांस्कृतिक संपदा को अपनी लेखनी का विषय बनाते रहें हैं. उनके लेखन में साहित्य, इतिहास, स्मृति, लोक और व्यक्तिगत संस्मरण घुलमिल कर आते हैं. इस...
राजेन्द्र यादव (28 अगस्त, 1929-28 अक्तूबर, 2013) ने ‘हंस’ मासिक पत्रिका का 1986 से 2013 तक संपादन किया. हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में यह समय ‘हंस’ की केन्द्रीयता और...
नरेन्द्र पुंडरीक (15 जुलाई, 1953, बांदा) का छठा कविता संग्रह- ‘समय का अकेला चेहरा’ पिछले वर्ष लिटिल बर्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ. आलोचना, अनुवाद और संपादन में भी...
गीतांजलि श्री के उपन्यास- ‘रेत-समाधि’, उसके अनुवाद ‘Tomb of Sand’ और उसे मिले अंतर-राष्ट्रीय बुकर सम्मान को लेकर हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में भी गहमागहमी है. यह हिंदी के...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2022 समालोचन | powered by zwantum