उदयन वाजपेयी की कविताएँ: मदन सोनी
मदन सोनी हिंदी के प्रमुख आलोचक और अनुवादक हैं. उनकी छह आलोचना पुस्तकें और विश्व प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं के हिंदी अनुवाद जिनमें उम्बर्तो एको के ‘द नेम ऑफ द...
मदन सोनी हिंदी के प्रमुख आलोचक और अनुवादक हैं. उनकी छह आलोचना पुस्तकें और विश्व प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं के हिंदी अनुवाद जिनमें उम्बर्तो एको के ‘द नेम ऑफ द...
उत्तराखण्ड में नवलेखन की यह पाँचवीं क़िस्त नवीन कुमार नैथानी और अशोक पाण्डे के कथा-लेखन पर केन्द्रित है. कवि-कथाकार अशोक पाण्डे ने विश्व साहित्य से हिंदी में विपुल अनुवाद भी...
भूपेंद्र बिष्ट ने नामवर सिंह पर कथाकार धीरेंद्र अस्थाना के लेख के संदर्भ में रचना और आलोचना के अंतर-सम्बन्धों पर यह टिप्पणी लिखी है. प्रस्तुत है.
मुख्यधारा के समानांतर अनेक धाराएँ चलती हैं, मुख्यधारा इन्हीं से जीवन पाती है. हिंदी का साहित्य ही इन्हीं उपधाराओं से बना है. इन उपधाराओं की अलग से भी पहचान होनी...
‘इतने भले नहीं बन जाना साथी/जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी’ वीरेन डंगवाल के पहले कविता संग्रह, ‘इसी दुनिया में’ यह कविता शामिल है. इसका असर कुछ ऐसा...
साहित्य और संस्कृति में परम्परा और उत्तराधिकार के सवाल अक्सर सरलीकरण के आखेट हो जाते हैं. भाषा और साहित्य की दुनिया उसके लिखने-बोलने वालों से आबाद है जो कि अपने...
उत्तराखण्ड में नवलेखन की तीसरी कड़ी में वरिष्ठ लेखक बटरोही अरुण कुकसाल और शम्भू राणा की चर्चा कर रहें हैं. उत्तराखण्ड के युवा लेखन में विविधता है. जड़ों से जुड़े...
‘जय हो’ गीत के लिये ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त और दादा साहब फाल्के आदि सम्मानों से सम्मानित हिंदी, उर्दू और पंजाबी में लिखने वाले कवि सम्पूरण सिंह कालरा ‘गुलज़ार’ (१८ अगस्त...
वरिष्ठ लेखक बटरोही के लेखन में उत्तराखण्ड की संस्कृति और उसकी सामाजिक बुनावट की गहरी समझ मिलती है. नवलेखन की दूसरी कड़ी में अनिल कार्की और सुभाष तराण की चर्चा...
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (7 जुलाई 1883 - 12 सितम्बर 1922) का आज स्मरण दिवस है. हिंदी साहित्य को आधुनिक और विवेक-सम्मत बनाने के जो नवजागरणकालीन सांस्कृतिक उद्यम हुए उनमें गुलेरी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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