महात्मा और मशीन : अभय कुमार
मशीनों के बिना मनुष्य की कल्पना करना आज असंभव है. कहीं ऐसा तो नहीं कि वे हमें संचालित करने लगी हैं. इसको ऐसे समझिए कि आप मोबाइल इस्तेमाल कर रहे...
मशीनों के बिना मनुष्य की कल्पना करना आज असंभव है. कहीं ऐसा तो नहीं कि वे हमें संचालित करने लगी हैं. इसको ऐसे समझिए कि आप मोबाइल इस्तेमाल कर रहे...
जब दो अक्टूबर आता है, मन आशंकाओं से भर जाता है. न जाने इस बार गांधी को किस तरह से और कितने लोग निंदित करेंगे. कौन सीधे उनके हत्यारों के...
हिंदी में कलाकार-लेखक कम हैं. सीरज सक्सेना चित्रकार, सिरेमिक और ग्राफिक कलाकार हैं. ‘आकाश एक ताल है’, ‘सिमट सिमट जल’ और ‘कला की जगहें’ उनकी पुस्तकें हैं. कुँवर नारायण की...
सामाजिक तानेबाने, प्रेरणा, भावनाएँ एवं कार्य-व्यापार की ज़मीन से उपन्यासकार कहने को काल्पनिक पर जटिल यथार्थ निर्मित करता है, जो आंकड़ों से भी अधिक विश्वसनीय होते हैं. इसमें सामाजिक अंत:...
बजरंग बिहारी तिवारी वर्षों से भारतीय भाषाओं के दलित साहित्य पर कार्य कर रहे हैं. यह आलेख पंजाबी की दलित कहानियों पर आधारित है. प्रस्तुत है.
हमारे समय के महत्वपूर्ण रचनाकार प्रियंवद देखते-देखते सत्तर पार करके बहत्तरवें वर्ष में पहुँच गए हैं. यह समय रचनाकार के अवदान को देखने, समझने, परखने का होता है. कहानियों और...
बांग्ला देश में अभी जो कुछ हुआ है उससे बरबस ही गरिमा श्रीवास्तव के उपन्यास ‘आउशवित्ज़: एक प्रेम कथा’ की याद आ गई. इसमें बांग्ला देश के मुक्ति संग्राम के...
रोहिणी अग्रवाल इधर जिस तरह का लेखन कर रही हैं उसे सभ्यता-समीक्षा कहना ज्यादा उचित होगा. ऐसी आलोचना कृति से होती हुई समाज तक जाती है. एक विश्व दृष्टि सक्रिय...
‘नवारुण’ ने ‘कविता वीरेन’ शीर्षक से वीरेन डंगवाल की सम्पूर्ण कविताओं को 2018 में प्रकाशित किया था. इसकी भूमिका में मंगलेश डबराल ने प्रेम को वीरेन की मूल काव्य-संवदेना स्वीकार...
भिन्न भाषाओं के उपन्यासों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए दोनों की संस्कृति, समाज और राजनीति से अद्यतन होना आवश्यक होता है. जब दो भारतीय भाषाओं के बीच यह अध्ययन हो...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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