शतरंज के खिलाड़ी और कफ़न : प्रेमकुमार मणि
प्रेमचंद की कहानियों में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘कफ़न’ का अपना ख़ास स्थान है. एक को जहाँ देशी रियासतों के विघटन से जोड़ कर देखा जाता है वहीं ‘कफ़न’ कहानी...
प्रेमचंद की कहानियों में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘कफ़न’ का अपना ख़ास स्थान है. एक को जहाँ देशी रियासतों के विघटन से जोड़ कर देखा जाता है वहीं ‘कफ़न’ कहानी...
विशिष्ट, विस्तृत और विचारोत्तेजक. थेरीगाथा को स्त्री-दृष्टि से विवेचित करते हुए रोहिणी अग्रवाल स्त्री-भाषा समेत उसके अनेक आयामों को गहराई से देखती हैं. भारतीय स्त्रियों की इस चेतना की परम्परा...
प्रेमचन्द शिक्षक भी थे, इसकी चर्चा कम होती है. उनका लेखन औपनिवेशिक शिक्षा-जगत की दुश्वारियों के प्रति संवेदनशील है. यह भी दिलचस्प है कि पेशे से ‘मुंशी’ न होते हुए...
आज़ाद भारत की दशा-दिशा को बारीकी से समझने वाले हरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924-10 अगस्त,1995) के जन्मशती वर्ष की शुरुआत आज से हो रही है. साहित्य की व्यंग्य विधा को...
मध्यकाल के कवि विद्यापति की ‘कीर्तिलता’ का साहित्यिक महत्व तो है ही इतिहास-अध्ययन में भी उसका ऊँचा स्थान है. एक हिन्दू राजा अपने राज्य को एक मुस्लिम शासक से मुक्त...
1935 में मूल रूप में उर्दू में लिखी गयी प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ हिंदी में ‘चाँद’ पत्रिका के अप्रैल, १९३६ अंक में प्रकाशित हुई थी. यह हिंदी ही नहीं संभवत:...
कवि, कथाकार और नाटककार जयशंकर प्रसाद (1890-1937) आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी लेखक हैं, वह गहरे चिंतक भी हैं, इसकी अभी यथोचित व्याख्या नहीं हुई है. संस्कृत साहित्य से उनकी...
युवा आलोचक संतोष अर्श समकालीन हिंदी कविता पर तैयारी के साथ लगातार लिख रहें हैं. महत्वपूर्ण कवि मंगलेश डबराल पर यह आलेख मंगलेश के सम्पूर्ण कवि-कर्म पर मेहनत के साथ...
औपनिवेशिक भारत में स्वाधीनता और सुधार के हिंदी-क्षेत्र की गतिविधियों में स्त्रियों के लिए किसी पत्रिका का प्रकाशन क्रांतिकारी घटना है. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1874 में ‘बालाबोधिनी’ पत्रिका का प्रकाशन...
यह आलेख आनंद हर्षुल की विशिष्ट औपन्यासिक कल्पना पर है, पर यहाँ तक पहुंचने में उदयन वाजपेयी की सूक्ष्म आलोचनात्मक दृष्टि कविता और उपन्यास की उभयनिष्ठ निर्मिति तलाशते हुए कहती...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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