मैनेजर पाण्डेय की इतिहास-दृष्टि: हितेन्द्र पटेल
समाज-विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र पर मूल रूप से हिंदी में लिखने वाले स्तरीय लेखक कम हैं. हिंदी के विषयों पर लिखने वाले समाज-विज्ञानी तो और भी कम हैं, हितेंद्र पटेल इतिहास...
समाज-विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र पर मूल रूप से हिंदी में लिखने वाले स्तरीय लेखक कम हैं. हिंदी के विषयों पर लिखने वाले समाज-विज्ञानी तो और भी कम हैं, हितेंद्र पटेल इतिहास...
लगभग तीन दशकों से कथा-आलोचना और स्त्री-चेतना के क्षेत्र में सक्रिय रोहिणी अग्रवाल की दस से अधिक आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं हैं. उनकी आलोचना-दृष्टि पर यह आलेख आशीष कुमार ने...
कथाकार प्रवीण कुमार की कहानी ‘रामलाल फ़रार है’ पर आधारित पंकज कुमार बोस का यह आलेख दिलचस्प और विचारोत्तेजक है. लेखक और उसके कल्पित पात्रों के बीच के सृजनात्मक तनाव...
हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पाण्डेय आगामी २३ सितम्बर को अस्सी वर्ष के हो रहें हैं. इसे ध्यान में रखते हए पिछले कई महीनों से समालोचन उनपर केन्द्रित आलेख प्रकाशित...
बुद्धिजीवी की एक विशेषता यह भी होती है कि वह समकालीन समस्याओं को अतीत से जोड़ कर समझने का प्रयास करता है और भविष्य के लिए रास्ता निकालता है. जब...
किसी कवि की इससे बड़ी सफलता क्या होगी कि उसका काव्य इतना लोकप्रिय हो जाए कि घर में किसी मांगलिक आयोजन से पहले उसका सामूहिक पाठ किया जाए, और विडंबना...
हिंदी कविता में धूमिल भारतीय जनतंत्र के निर्मम आलोचकों में अन्यतम हैं, ख़ासकर अपनी भाषा को लेकर जो तीर की तरह चुभती है. कबीर की भाषा की ‘सुनो भाई साधो’...
कथाकार, पत्रकार और स्त्रीवादी लेखिका गीताश्री ने यह आलेख हिंदी की महत्वपूर्ण कवयित्री अनामिका की कविताओं में शहर- ख़ासकर मुज़फ़्फ़रपुर की उपस्थिति के विविध आयामों को ध्यान में रख कर...
आज के युवा ही कल के वरिष्ठ हैं. सभी क्षेत्रों की तरह साहित्य और कलाओं में भी नव पल्लव, नव रक्त चाहिए ही. कविता, कहानी की तुलना में आलोचना में...
कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी की इस सदी की कहानियों की विवेचना की श्रृंखला ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ समालोचन पर छपी और यह क़िताब के रूप में आधार प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. इधर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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