कविता शब्दों के बोझ से भारी नहीं होनी चाहिए, यह एक तरह से कवि-कर्म की प्राथमिक सीख है. देवयानी चाहती...
समालोचन पर ही प्रकाशित सदाशिव श्रोत्रिय के मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘लकड़ी का रावण’ के भाष्य को लेकर शोधार्थी अनूप...
सुभाष गाताडे राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं. माँ पर लिखा यह स्मृति-आलेख मार्मिक है और भाषा भी तदनुसार...
कवि पंकज सिंह की कविताओं पर लिखते हुए आलोचक राजाराम भादू उन प्रसंगों को भी याद करते हैं जिनमें ये...
स्पेनिश भाषा में लिखने वाले फ़र्नांडो सोर्रेंटीनो की कैफ़ी हाशमी द्वारा हिंदी में अनूदित कहानी ‘जीवनशैली’ समालोचन पर आप पढ़...
आलोचक रविभूषण का मानना है कि रणेन्द्र का उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ गहन अध्ययन, श्रम-अध्यवसाय से लिखा गया एक...
फरवरी का प्रेम गुलाब की तरह सुर्ख होता आया है, पर अम्बर की इन कविताओं में वह स्त्री का निकला...
‘सुंदर सपने जितना छोटा होता है कम रुकता है कैलेंडर इसकी मुँडेर पर जैसे सामराऊ स्टेशन पर दिल्ली-जैसलमेर इंटर्सिटी’ ...
‘वही जो अदाकारा थी, जो नर्तकी थी, और कवि भी /वही तुम्हारी मृत्यु थी.’ अंचित की ये कविताएँ उनकी पूर्व की कविताओं...
आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय की भक्तिकाल की आलोचना दृष्टि पर यह आलेख प्रसिद्ध आलोचक विनोद शाही का है. उन्होंने गम्भीर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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