आलवार संत परकाल : रचनाओं का भाव रूपांतर : माधव हाड़ा
जिसे हम साहित्य का भक्ति काल कहते हैं, अखिल भारतीय आंदोलन था. देखते-देखते भारत के सभी हिस्सों से जनभाषा में कविता लिखने वालों की श्रृंखला उभरनी आरम्भ हो गई. वर्ण...
जिसे हम साहित्य का भक्ति काल कहते हैं, अखिल भारतीय आंदोलन था. देखते-देखते भारत के सभी हिस्सों से जनभाषा में कविता लिखने वालों की श्रृंखला उभरनी आरम्भ हो गई. वर्ण...
सोमेश शुक्ल की कविताएँ दृश्यों में खुलती हैं. ख़ुद को देखने की पूर्णिमा है तो अमावस भी. होने न होने की एक विकल दुनिया है. ये भावक के एकांत में...
ग़ालिब मुश्किल शायर हैं. और यह कि ज़बान पर भी वही हैं. ढहती हुई मुग़लिया सल्तनत की सीढ़ियों से उतरते हुए इस शायर में सभ्यताओं की जहाँ टकराहट है वहीं...
हमारे बचपन में एक क़ुतुबनुमा (compass) रहता था. अचरज से देखते थे कि देखो उत्तर (दिशा) तलाश ही लेता है. अरसे बाद वह वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र चौहान की कविता में...
सदानंद शाही की सक्रियता की परिधि विस्तृत है. हिंदी ऐसे ही बढ़ती पसरती रही है. इसकी परम्परा ही घर फूँक देने वाले भारतेंदु से शुरू होती है. इस समय हिंदी...
हरे प्रकाश उपाध्याय ने इधर अपना शिल्प बदला है. इन कविताओं को बड़े श्रोता वर्ग के बीच भी सुना और सुनाया जा सकता है. इसकी सम्बोधनपरकता इसे ख़ास बनाती है....
सदी के आखिरी दशक से नई सदी के तीसरे दशक के बीच फैले कवि शिरीष कुमार मौर्य का कविता संसार विस्तृत और विविध है और वे अभी लिख ही रहे...
कविता की आंतरिकता में अभी भी लय की स्मृतियाँ सुरक्षित हैं. कभी-कभी कहीं मुखर हो जाती हैं. देवी प्रसाद मिश्र जैसा कवि अगर इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में लय...
सत्यव्रत रजक अभी अठारह के हैं. स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र हैं. कुछ कविताएँ यत्र-तत्र प्रकाशित हुई हैं. ‘दो समलैंगिक लड़कियों के सत्रह स्वप्न’ शीर्षक से उनकी सत्रह कविताओं की...
विशाल श्रीवास्तव के कविता संग्रह का शीर्षक है, ‘पीली रोशनी से भरा कागज़’. साहित्य अकादेमी ने इसे २०१६ में प्रकाशित किया था. इस बीच विशाल की कविताओं ने संवेदना और...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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