कविता

शैलजा पाठक की नई कविताएँ

शैलजा पाठक की नई कविताएँ

माँ इतनी जगह घेरे रहती है कि पिता का होना दिखाई नहीं देता. रौब-दाब की दहाड़ ही सुनाई पड़ती है. शैलजा पाठक ने इधर घर-परिवार की ‘कमाल की औरतों’ पर...

बलराम कांवट की कविताएँ

बलराम कांवट की कविताएँ

कविता में सौन्दर्य कहाँ से झरता है और अर्थ कहाँ से फूटता है, यह कहा नहीं जा सकता. कभी वह कुछ पंक्तियों में ही उभर आती है, तो कभी उसका...

लाल्टू की कुछ नई कविताएँ

लाल्टू की कुछ नई कविताएँ

वरिष्ठ कवि लाल्टू की कविताएँ सामाजिक जटिलताओं, अन्याय और प्रतिरोध से गुजरते हुए अस्तित्व की निरुपायता तक पहुँचती हैं. मनुष्य के लिए अब उसकी अपनी ही सभ्यता बोझ बन चुकी...

ग़ालिब: तशरीह-2 : नरगिस फ़ातिमा

ग़ालिब: तशरीह-2 : नरगिस फ़ातिमा

फ़िराक़ गोरखपुरी का मानना था कि ग़ालिब की शायरी में खुदा से उलझते सवाल हैं, जवाब नहीं और यही उन्हें महान बनाता है. एक सभ्यता के विघटन और दूसरी के...

कंचन सिंह: कविताएँ

कंचन सिंह: कविताएँ

आज स्त्री की चुनौतियाँ और बढ़ी हैं. दहलीज़ तो अपनी जगह है ही उसके बाहर की दुनिया के कील कांटे भी नुकीले हुए हैं. कंचन सिंह की प्रस्तुत इन कविताओं...

बाबुषा की ग्यारह नयी कविताएँ

बाबुषा की ग्यारह नयी कविताएँ

बाबुषा कोहली अपने उपन्यास ‘लौ’ से इधर चर्चा में हैं. वह ऐसे कुछ लेखकों में हैं जिन्होंने अपना पाठक वर्ग गढ़ा है. साहित्य को विस्तार और नवीनता दी है. उनके...

पंकज प्रखर की कविताएँ

पंकज प्रखर की कविताएँ

विदुषी ‘विद्योत्तमा’ को कवि कालिदास की पत्नी के रूप में जाना जाता है. उन्हें ‘गुणमंजरी’ भी कहा गया है. कालिदास को ‘प्रियंगु’ पुष्प बहुत प्रिय थे. शायद इसीलिए मोहन राकेश...

आमिर हमज़ा की कुछ नयी कविताएँ

आमिर हमज़ा की कुछ नयी कविताएँ

आमिर हमज़ा द्वारा संपादित पुस्तक ‘क्या फ़र्ज़ है कि सबको मिले एक सा जवाब’ अभी हाल ही में हिंदी युग्म से प्रकाशित हुई है. उनके कविता संग्रह की भी प्रतीक्षा...

दीप्ति कुशवाह की कविताएँ

दीप्ति कुशवाह की कविताएँ

नासामुक्ता, कर्णफूल, मेखला, कंठहार, चूड़ामणि, वलय, बाहुबंद, नूपुर, ग्रीवासूत्र, मुद्रिका जैसे आभूषणों पर लिखी दीप्ति कुशवाह की ये कविताएँ देश और काल की यात्रा करती हैं. अलंकृत के तन को...

शंकरानंद की कविताएँ

शंकरानंद की कविताएँ

लोक गीतों में लोक अपने को गाता है. एक ऐसा गान जिसके कोरस में सबके कंठ शामिल रहते हैं. कवि शंकरानंद ने अपने गाँव में पाँच दशकों से लोक गीत...

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