हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताएँ
हरे प्रकाश उपाध्याय ने इधर अपना शिल्प बदला है. इन कविताओं को बड़े श्रोता वर्ग के बीच भी सुना और सुनाया जा सकता है. इसकी सम्बोधनपरकता इसे ख़ास बनाती है....
हरे प्रकाश उपाध्याय ने इधर अपना शिल्प बदला है. इन कविताओं को बड़े श्रोता वर्ग के बीच भी सुना और सुनाया जा सकता है. इसकी सम्बोधनपरकता इसे ख़ास बनाती है....
सदी के आखिरी दशक से नई सदी के तीसरे दशक के बीच फैले कवि शिरीष कुमार मौर्य का कविता संसार विस्तृत और विविध है और वे अभी लिख ही रहे...
कविता की आंतरिकता में अभी भी लय की स्मृतियाँ सुरक्षित हैं. कभी-कभी कहीं मुखर हो जाती हैं. देवी प्रसाद मिश्र जैसा कवि अगर इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में लय...
सत्यव्रत रजक अभी अठारह के हैं. स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र हैं. कुछ कविताएँ यत्र-तत्र प्रकाशित हुई हैं. ‘दो समलैंगिक लड़कियों के सत्रह स्वप्न’ शीर्षक से उनकी सत्रह कविताओं की...
विशाल श्रीवास्तव के कविता संग्रह का शीर्षक है, ‘पीली रोशनी से भरा कागज़’. साहित्य अकादेमी ने इसे २०१६ में प्रकाशित किया था. इस बीच विशाल की कविताओं ने संवेदना और...
कविताएँ अच्छी हों तो पढ़ने का सुख देती हैं. प्रकाशित करने का भी श्रम सार्थक होता है. कविता और प्रकारांतर से शब्दों पर विश्वास दृढ़ होता है. विजय राही राजस्थान...
बत्तीस वर्षीय आशीष बिहानी मॉन्ट्रियल चिकित्सकीय अनुसंधान संस्थान (कनाडा) में शोधार्थी हैं. वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य की उनकी दो लम्बी कविताएँ ‘भीष्म’ और ‘मिटना’ आप पहले भी पढ़ चुके हैं. ‘बीज’ कविता...
संदीप नाईक की ये कविताएँ संघर्षशील और जीवट से भरी साधारण पर गर्वीला जीवन व्यतीत करतीं स्त्रियों की कविताएँ हैं. इनमें दयामनी बारेला, सोनी सोरी, मेधा पाटकर आदि के चेहरे...
‘तुम्हारे साथ इतनी सुखी हूँ मैं /कि अब मेरे इस सुख से भी /ग्लानि का तीर झाँकने लगा है…’ वह रिक्त में आती है पर जब आप भरे हों. आकंठ....
वरिष्ठ कवयित्री,कथाकार और अनुवादक तेजी ग्रोवर की ‘नी मेरिए माँएँ’ शीर्षक से प्रकाशित माँ के लिए ग्यारह कविताएँ पढ़ते हुए पहली प्रतिक्रिया आँखें देती हैं. फफकती हुई रुलाई कोरों पर...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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