लवली गोस्वामी कुछ कविताएँ |
एक पंक्ति और एक शब्द
एक पंक्ति को मैंने गुलेल के
रबड़ की तरह खींचा
एक ख्याल उसपर रखकर
मैंने उसे अनंत की तरफ उछाल दिया.
बारहमासी खेत में जैसे खोह से
खींचकर निकाली जाती है मछलियाँ
एक पंक्ति दबी थी मन में कहीं
अंतिम अक्षर पकड़कर, खींचकर
निकाला मैंने पूरा ब्यौरा
एक दिन एक पंक्ति के अंत में
मैंने एक शब्द फँसाया
उसे चारा बनाकर दिनभर उससे
दूसरी पंक्तियाँ पकड़ती रही
ऐसे ही मैंने कई साल
कई हज़ार दिन बिताए
कभी एक पंक्ति
कभी एक शब्द के साथ.
मेरी भाषा
मेरी भाषा के शब्दों को देखो
तो ऐसा लगता है कि लोगों का बढ़ता
रेला चला जा रहा है
किसी अक्षर ने दूसरे के कंधे पर हाथ रखा हुआ है
तो कोई सर पर साफ़ा बाँधे है
किसी ने दूसरे का हाथ पकड़ रखा है
तो कोई करीने से घूँघट साधे है
कोई अक्षर दूसरे अक्षर की कमर पर
हाथ रखकर चल रहा है
तो कोई निपट अकेला जा रहा है
किसी अक्षर का पेट फूला हुआ है
तो किसी को पतले-दुबले होने का गुमान है
संयुक्त परिवार की तरह
इस भाषा में जहाँ बहुत सारे संयुक्त अक्षर हैं
वहीं अकेले का भी उतना
ही मान है.
असलियत
कुछ फसलें जीवन में
एक बार ही फल देती है
जबकि दशकों तक फलने वाले सघन पेड़
अपने जीवन में
कई दफा फलते हैं
कई लताएँ भी मौसमों तक
फलती-फूलती हैं
लेकिन जीवनभर उन्हें
सहारे की जरूरत पड़ती है
दुनिया में सबके लिए जगह है
लेकिन फिर
अपना सत्य न समझ पाने से
दुःख उत्पन्न होता है
दूसरों की असलियत न समझ पाने से
उत्पन्न होती है ईर्ष्या.
इंतज़ार
एक दिन सभी नक्षत्र टूटकर गिर जाएंगे
सुबह पानी भरने जानेवाली स्त्रियों के पैरों में चुभेंगे
हिमालय टूटकर सागर में घुल जाएगा
पर्वत की सारी धूल मछलियों के फेफड़ों में छनेगी
पानी में तैरती धरती को पानी निगल जाएगा
भोजन के बड़े ग्रास की तरह शहर सागर के गले में अटकेंगे
जिससे ब्रह्माण्ड बना था वह नाद
दसों दिशाओं में गूँजकर अपने कंठ में लौट जाएगा
लेकिन तुम्हारे लिए मेरा इंतज़ार वहीं खड़ा रहेगा
तुम्हारे सपनों के धागे उधेड़ता-बुनता हुआ
फव्वारे के पानी की तरह तुम्हारी स्मृतियाँ
फेंटता-उलटता हुआ.
कब्रिस्तान और किसी जा चुके दोस्त के बारे में
कब्रिस्तानों में घूमते हुए अक्सर मुझे महसूस होता है- क्या यह कोई बागीचा है, जिसे इतनी तरतीब से सजाया गया है!
क्या हरेक ताबूत एक बीज है, जिसे इतने एहतियात से गाड़ा गया है जैसे उससे कोई अंकुर फूटेगा. मौत बेरहम है, लेकिन कितनी सुघड़ है, अपने टहलने के लिए बागीचे लगा रही है.
ऐसे ही किसी कब्रिस्तान में घूमते हुए मुझे तुम याद आये और मुझे यह इल्म हुआ कि :
हम किसी की भी ज़िन्दगी से दो बार तो जाते ही हैं
एक बार सम्बन्ध की तरह, दूसरी बार सूचना की तरह.
वे लोग
कली को ज़िरह-बख़्तर पहनाते हैं
अंडे को कंकाल की अनुपस्थिति के लिए
ज़लील करती हैं
लोग भेद नहीं देखते कि
साज़ पर लगा आवरण
संगीत बचाता है
तलवार पर आवरण लगाते हैं
कि लोग उससे बचे रहें.
वे बहते लावे को दिखाकर कहते हैं कि
पत्थर को सिर्फ बहना आता है
बर्फ़ दिखाकर कहते हैं
कठोर रहना पानी का स्वभाव है
फिर वे मुस्कराकर कहते हैं
हमने सबको मौके दिए, सबके गुण पहचाने,
आखिर हमें सबसे बराबरी का व्यवहार करना था!
कुछ प्रेम
कुछ प्रेम अचानक खत्म हो जाते हैं
आश्चर्य करने की मोहलत दिए बगैर
औचक समाप्त हो जाने वाली
सड़कों की तरह.
कुछ हेयरपिन टर्न्स की तरह होते हैं
लगता है, बस खत्म हुआ सफर ,
लेकिन हर बार सड़क कलाबाज़ियाँ खाती
हँसकर आगे बढ़ जाती है.
पीली तितलियाँ
तुमसे पहले मुझसे सिर्फ
पीली तितलियों ने प्यार किया.
वे ही तुम्हारी एकमात्र प्रतिद्वंद्वी हैं
मैंने कहा और हँसी.
वे मेरे फटे कुरते का हिस्सा हैं
जब मैं तुम्हें पहाड़ों, पठारों और मैदानों में
ढूँढ़ता फिर रहा था, वे चिंदियाँ,
पौधों में फँसी रह गई थीं.
पंखुड़ी की ढाल
ईश्वर के आँसू की दो बूँदें
आसमान से एक साथ ज़मीन पर गिरीं
इस तरह हम दोनों जन्मे.
ईश्वर से हम कभी पूछ नहीं पाए कि
वे उसकी ख़ुशी के आँसू थे
या दुख के?
तुमने दूब की धार से काटा पत्थर
पंखुड़ी को ढाल बनाकर रोक लिए कई नश्तर
तुम्हारी आँखें जैसे मोची की आँखें थीं
मोची हज़ार पैरों के बीच वह चाल पहचान लेता है
जिसकी चप्पल टूटी हो
तुमने मेरा टूटा हुआ मन पहचाना
हममें कभी टकराव हो, तो इतना हो
जितना एक चिड़िया की उड़ान में शामिल
नजदीक उगे दो पंखों में होता है.
एक गहरे चुम्बन के दौरान
दो प्रेमियों की जिह्वाओं में होता है
तुमसे मिलकर मैंने जाना कि
कोई घाव हमेशा घाव नहीं रहना चाहता
वह मरहम लगाने वाले की स्मृति में
बदल जाना चाहता है.
लवली गोस्वामी झारखण्ड के धनबाद जिले में 1987 में जन्म. वाणी प्रकाशन से २०१९ में कविता संग्रह “उदासी मेरी मातृभाषा है” प्रकाशित हुआ है. इस कविता संग्रह को 2022 का केदारनाथ सिंह स्मृति सम्मान मिला है. एक फैंटेसी थ्रिलर उपन्यास ‘वनिका’ 2023 में प्रकाशित हुआ है. इससे पहले 2015 में भारतीय मिथकों पर निबंध की एक किताब प्रकाशित है. |
“ऐसे ही मैंने कई साल
कई हज़ार दिन बिताए
कभी एक पंक्ति
कभी एक शब्द के साथ.”
ऐसी अनुभूतियों से रचनाकार दो-चार होते रहते हैं लेकिन इन्हें एक सुन्दर विम्ब की तरह कविता में प्रयोग कर देना लवली जी का काव्य कौशल है। इन कविताओं के लिए लवली जी को साधुवाद।
लवली जी की सुन्दर कविताओं के साथ सुबह की शुरुआत करवाने के लिए अरुण जी को बहुत धन्यवाद ।
लवली गोस्वामी अपनी कविताओं में अद्भुत फंतासी रचती हैं । उनकी कुछ-कुछ कविताओं में एक कविता के भीतर अनेक कविताएं होती हैं । सूत्र में बात कहने की कला उनके पास है, विचार उसमें अपनी ताकत के साथ उपस्थित रहता है ।
कोमल अनुभूतियों को सरल सहज विम्बों में टाँक कर एक हल्के स्पर्श से एक एक पंक्तियों को चमत्कृत कर देना बड़ी बात है। यही कौशल एक कवि को अति विशिष्ठ बनाती है। लवली गोस्वामी को बधाई
सुंदर कविताएँ।
मेरे लिए कविताएं कठिन होती रहीं हैं। लवली गोस्वामी की कविताएं सरल और सहज हैं। साधारण बुद्धि को समझ आने वाले बिम्ब और शब्द इन कविताओं को सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
लवली गोस्वामी अपनी पहली ही कविता में कविता की रचना-प्रक्रिया को समझा देती हैं। भला,इससे कौन असहमत हो सकता है। दूसरी कविता उनकी विलक्षण दृष्टि की परिचायक है जिनमें शब्दों के निर्माण में अक्षर की प्यारी मैत्री पर प्रकाश डाला गया है। कविता देखने की अद्भुत कला ही तो है। सारी कवितायें एक से बढ़कर एक हैं।
उत्तम 🙏🙏
बहुत अच्छी कविताएं हैं