अविनाश मिश्र की कविताएँ
कविता लघुतम दूरी तय करके भाषा के संभव उच्चतम स्तर तक पहुचने की कोशिश करती है. कवि जोसेफ ब्रादस्की कविता को कब्र पर लिखे कुतबे की संतान इसीलिए कहते हैं....
कविता लघुतम दूरी तय करके भाषा के संभव उच्चतम स्तर तक पहुचने की कोशिश करती है. कवि जोसेफ ब्रादस्की कविता को कब्र पर लिखे कुतबे की संतान इसीलिए कहते हैं....
पेंटिग : Paresh Maity : MOONLIGHTज्योत्स्ना अर्से से कविताएँ लिख रही हैं. तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. वैविध्य पूर्ण काव्य- संसार तो है ही शिल्प पर भी मेहनत दिखती है. ज्योत्स्ना...
पेंटिग : Paresh Maity: SUNLIGHTअपर्णा मनोज कविताएँ लिख रही हैं, कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं और उनके अनुवादों ने भी ध्यान खींचा है. प्रस्तुत कविताओं का वितान वैश्विक है. दुनिया में जहाँ-...
टर्की के पास डूबे सीरियाई बच्चे ‘आलैन’ की तस्वीर ने पूरी दुनिया को विचलित किया है. इस दुर्घटना में उसका भाई ग़ालिब और माँ रेहाना की भी मृत्यु हो गयी...
सिद्धांत मोहन की कविताएँ यत्र-तत्र प्रकाशित हुई हैं. हर कवि अपनी संवेदना और शैली लेकर आता है, यही नव्यता उसकी पहचान बनती है. सिद्धांत की इन कविताओं को देखते हुए...
युवा कथाकार चन्दन पाण्डेय ने महेश वर्मा की कविताओं पर समालोचन में ही एक जगह लिखा है – “एक घटना याद पड़ती है. मान्देल्स्ताम को पढ़ते हुए अन्ना अख्मातोवा ने...
“महाभारत मात्र एक ऐतिहासिक महाकाव्य नहीं है. उसमे वर्तमान भी है. हम सबका वर्तमान. वर्तमान के गर्भ से भविष्य निकलता है और इस अर्थ में हम सबके इस महाभारत में...
अविनाश मिश्र अपने पद्य और गद्य दोनों से लगातार ध्यान खींच रहे हैं. उनके लिखे की प्रतीक्षा रहती है. उनकी भाषा में बिलकुल समकालीन ताजगी है. भारतीय काव्य-परम्परा में नायक...
युवा कवयित्री बाबुषा कोहली की कविताओं की निर्मिति में सघन संवेदनात्मक बिम्बों और मिथकों की आदमकद आकृतियाँ का रचाव है. अपनी अपेक्षाकृत आकार में लम्बी कविताओं में वह इसका सार्थक...
महेश वर्मा समकालीन हिंदी कविता के (कब तक युवा कहा जाता रहेगा – चालीस को कब का पार कर गए.) महत्वपूर्ण कवि हैं. आज हिंदी कविता अपने कथन और कहन...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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