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समालोचन

Home » अविनाश मिश्र की कविताएँ

अविनाश मिश्र की कविताएँ

अविनाश मिश्र अपने पद्य और गद्य दोनों से लगातार ध्यान खींच रहे हैं. उनके लिखे की प्रतीक्षा रहती है. उनकी भाषा में बिलकुल समकालीन ताजगी है. भारतीय काव्य-परम्परा में नायक – नायिकाओं के अनेक भेद निर्धारित हैं. नायिकाओं के वर्गीकरण में वय और रूप पर अधिक बल है. हिंदी का यह युवा कवि अपनी परम्परा में समावेश करता हुआ एक ऐसे वर्गीकरण पर पहुंचता है जो सोच और बर्ताव पर आधारित है. जहाँ ‘देह पर नाखूनों और दांतों के दाग’ के अनेक निशान हैं. पर ये कवितायेँ एकतरफा बचाव नहीं करतीं. इनमें हमारे जीवन की ही तरह तमाम विवादी स्वर हैं. अगर ये कविताएँ राजनीतिक रूप से सही नहीं लगीं तो यह सहज संभाव्य है.   

by arun dev
March 28, 2015
in कविता
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अविनाश मिश्र की कविताएँ

फोटो : Sushil Krishnet

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दस उच्छ् वास                       

अविनाश मिश्र


 
 
।। असूर्यम्पश्या ।।
जन्म : 1960
प्रतिस्पर्द्धा को तुमने पराजित किया
लेकिन प्रतिभा से नहीं
तुम्हारी कविता से ज्यादा प्रासंगिक था स्वर तुम्हारा
तुम्हारी देह में पौरुष था और तुम्हारे विचारों में भी
तुम स्त्री नहीं लगती थीं
तुम कवयित्री नहीं लगती थीं
 
 
 
।। प्रगल्भा ।।
जन्म : 1970
तुममें बसना प्रचलित में बसना था
प्रचलित था पाखंड  
प्रचलित था अहंकार
प्रचलित था द्वेष
प्रचलित था छल
तुमसे बचना प्रचलित से बचना था
 
 
 
 
।। क्षमाशीला ।।
जन्म : 1980
तुम्हारे व्यक्तित्व के आगे निष्प्रभ थी तुम्हारी कविता
तुम कवयित्री नहीं देवी थीं
प्रेम को नहीं पूजन  को उत्तेजित करती हुईं
जिन्होंने तुम्हें मैला किया
डाल दिया अपना सारा कलुष तुम पर
अपनी कल्पनाओं में नाखूनों और दांतों के दाग छोड़े तुम्हारी देह पर
तुमने उन्हें क्षमा किया यथार्थ में
तुम पृथ्वी थीं
 
 
 
 
।। लज्जाप्रिया ।।
जन्म : 1985
जब–जब तुमसे मांगी गई कविता
तुम्हें लाज आई
जैसे तुम्हारी देह तुमसे मांगी जा रही हो
तुम्हारा मानना था एक स्त्री के लिए उसकी कविता
उसकी देह जैसी होती है
एक बार अगर दे दी तो अपनी नहीं रहती
 
 
 
 
 
।। आक्रामिका ।।
जन्म : 1990
तुम्हारी कविता पढ़कर लगता था
तुम चाहती हो काटना किसी पुरुष के होंठ
और प्रतिकार में चाहती हो अपने स्तनों पर दंतक्षत
 
 
 
 
।। रूपगर्विता ।।
जन्म : 1992
सब तुम्हारी कविता से प्रेम करते थे
एक भी आस्वादक न था यूं
जिसने तुम्हें महान न माना हो
एक भाषा की समग्र समालोचना नतमस्तक थी
तुम्हारी कविताओं के आगे
लेकिन तुम्हें आलोचक नहीं आईने पसंद थे
 
 
 
 
।। अभिसारिका ।।
जन्म : 1994
तुम्हारी कविता पढ़कर तुम्हारी कामना उठती थी
हृदय स्पर्श को व्याकुल होता था
लेकिन तुम्हारा संसार इन कामनाओं के बाहर था
उतना ही अंतर्मुख जितना सम्मुख
तुम जिससे वादा करती थीं
उससे नहीं मिलती थीं
 
 
 
 
।। मानवती ।।
जन्म : 1996
तुम्हारी कविता को मनाना पड़ता था
तब वह सुंदर लगती थी
वह शिल्प नहीं था उसका
कि रूठती तो सुंदर लगती
 
 
 
 
।। समर्पिता ।।
जन्म : 1998
अनुभव की असमृद्धता ने तुम्हें समर्पण में दक्ष किया
रुक जातीं कुछ वर्ष और तो कविता में दक्ष होतीं
 


।। निर्लज्जप्रिया ।।
जन्म : 2000
तुमसे मिलकर भीतर कुछ खिलता था
बाहर फैलता था अपवाद…
 
युवा कवि-आलोचक. प्रतिष्ठित प्रकाशन माध्यमों पर रचनाएं प्रकाशित और चर्चित.
न कोई किताब, न कोई पुरस्कार.
darasaldelhi@gmail.com
Tags: अविनाश मिश्रनयी सदी की हिंदी कविता
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