आग और जल से निपजा सौन्दर्य: रंजना मिश्र
नरेश गोस्वामी के अनुसार. “विनोद पदरज की कविताओं को पढ़ना अपनी चेतना और भाव संवेदना से मैल छुड़ाने की तरह है.” विनोद पदरज का महत्वपूर्ण कविता संग्रह ‘अगन जल’ वर्षों...
नरेश गोस्वामी के अनुसार. “विनोद पदरज की कविताओं को पढ़ना अपनी चेतना और भाव संवेदना से मैल छुड़ाने की तरह है.” विनोद पदरज का महत्वपूर्ण कविता संग्रह ‘अगन जल’ वर्षों...
हिंदी की नयी पीढ़ी के कथाकार के रूप में किंशुक गुप्ता इधर उभर कर सामने आयें हैं. पेशे से चिकित्सक हैं और अंग्रेजी में भी लिखते हैं. उनका पहला कहानी...
इसी वर्ष प्रकाशित वरिष्ठ कवि-लेखक विजय कुमार की पुस्तक ‘शहर जो खो गया’ पर आधारित लीलाधर मंडलोई का यह गद्य, पुस्तक के प्रति उत्सुकता पैदा करता है. खुद में सृजनात्मक...
प्राकृत शब्द 'पडिक्कमा' का अर्थ है 'प्रतिक्रमण' या 'लौटना'. इस संग्रह की कुछ कविताएँ परिजनों की मृत्यु की परिक्रमा करती हैं. प्रेम पर कुछ बहुत सुंदर कविताएँ हैं. ग्यारहवीं सदी...
वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग के संस्मरणों की पुस्तक ‘वे नायाब औरतें’ पात्रों की जीवंतता और भाषा की रवानी के कारण पठनीय तो है ही लेखिका के समय का दिलचस्प दस्तावेज़...
औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के सवाल से भारत अपनी आज़ादी के संघर्ष से ही जूझता रहा है. इसका एक सिरा आत्म की खोज की तरफ जाता है तो दूसरा सिरा...
वह भी कोई देस है महराज’ के लेखक अनिल यादव की पुस्तक ‘कीड़ाजड़ी’ भी चर्चा में हैं. कीड़ाजड़ी शक्तिवर्धक औषधि है जो दुर्लभ है और इसलिए मूल्यवान भी. इस यात्रा-वृत्तांत...
प्रदीप गर्ग की अकबर के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘A Forgotten Legacy’ प्रकाशित हो चुकी है, बुद्ध और उनके समय पर आधारित उनका हिंदी में ‘तथागत फिर नहीं आते’ उपन्यास...
महादेवी वर्मा की गद्य कृतियाँ ख़ासकर आस-पास के चरित्रों पर आधारित उनके रेखाचित्र और संस्मरण जो ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’ आदि में संकलित...
शास्त्र के निर्मित हो जाने पर प्रयोग की परम्परा को उससे जोड़ कर अक्सर देखा जाता है. भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से प्रचलित या लुप्त सभी नाट्य विधाओं के जुड़ाव को...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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