चंदन किवाड़ : प्रभात रंजन
प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अवधी, ब्रज, भोजपुरी, काशिका और बुन्देलखड़ी बोलियों के गीतों को देश-प्रदेश में अपने मोहक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. इस प्रक्रिया में अर्जित उनके...
प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अवधी, ब्रज, भोजपुरी, काशिका और बुन्देलखड़ी बोलियों के गीतों को देश-प्रदेश में अपने मोहक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. इस प्रक्रिया में अर्जित उनके...
इमरे बंघा और दानूता स्तासिक से हिंदी समाज सुपरिचित है. उनके संपादन में ओयूपी ऑक्सफोर्ड से 2024 में प्रकाशित ‘लिटररी कल्चर्स इन अर्ली मॉडर्न नॉर्थ इंडिया करेंट रिसर्च’ शोध पत्रों...
समकालीन भारतीय कविता के महत्वपूर्ण कवि अरुण कमल के सात कविता संग्रह, दो आलोचना पुस्तकें, साक्षात्कारों की एक किताब और दो अनुवाद पुस्तकें आदि प्रकाशित हैं. उनकी कविताएँ अनेक भाषाओं...
संस्कृत भाषा की समकालीन कविताओं से हम लगभग अपरिचित हैं. समालोचन ने वर्षों पहले बलराम शुक्ल की संस्कृत कविताएँ और साथ में उनके अनुवाद प्रकाशित किये थे. समकालीन संवेदना की...
पवन करण के कविता संग्रह ‘स्त्री मुग़ल’ की कविताओं में इतिहास, आख्यान और संवेदना का सहमेल है. जिन्हें इतिहास भुला देता है, साहित्य उन्हें भी सहेज लेता है. इस संग्रह...
‘मतलब हिन्दू’ के कुछ हिस्से समालोचन पर प्रकाशित होकर पहले ही चर्चित प्रशंसित हो चुके हैं. अब यह ‘हिन्दू त्रयी’ के पहले भाग के रूप में मुद्रित होकर उपलब्ध है....
यतीन्द्र मिश्र ने अपने रचनात्मक जीवन की शुरुआत कविता से की थी फिर वह कला-लेखन की ओर मुड़ गये. एक दशक बाद उनका नया कविता संग्रह ‘बिना कलिंग विजय के’...
संकीर्ण विचारों से देश तो क्या परिवार नहीं चल सकते. गणतंत्र उदात्त विचारों की नींव पर खड़े होते हैं. करुणा उन्हें महान बनाती है. हम भविष्य बना तो सकते हैं,...
हिमालय और उसके समाज पर शेखर पाठक दशकों से लिख रहे हैं. उनकी पुस्तक ‘हिमांक और क्वथनांक के बीच’ केवल यात्रा वृत्त नहीं है. यह उसका सम्पूर्ण पर्यावरण है. इसकी...
‘वक़्त-ज़रूरत’, कथा, आलोचना और संपादन में भी सक्रिय अविनाश मिश्र (5 जनवरी, 1986) का तीसरा कविता संग्रह है जो अभी-अभी ही राजकमल से प्रकाशित हुआ है. इस संग्रह की अनुशंसा...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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