कीड़ाजड़ी : प्रवीण कुमार झा
वह भी कोई देस है महराज’ के लेखक अनिल यादव की पुस्तक ‘कीड़ाजड़ी’ भी चर्चा में हैं. कीड़ाजड़ी शक्तिवर्धक औषधि है जो दुर्लभ है और इसलिए मूल्यवान भी. इस यात्रा-वृत्तांत...
वह भी कोई देस है महराज’ के लेखक अनिल यादव की पुस्तक ‘कीड़ाजड़ी’ भी चर्चा में हैं. कीड़ाजड़ी शक्तिवर्धक औषधि है जो दुर्लभ है और इसलिए मूल्यवान भी. इस यात्रा-वृत्तांत...
प्रदीप गर्ग की अकबर के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘A Forgotten Legacy’ प्रकाशित हो चुकी है, बुद्ध और उनके समय पर आधारित उनका हिंदी में ‘तथागत फिर नहीं आते’ उपन्यास...
महादेवी वर्मा की गद्य कृतियाँ ख़ासकर आस-पास के चरित्रों पर आधारित उनके रेखाचित्र और संस्मरण जो ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’ आदि में संकलित...
शास्त्र के निर्मित हो जाने पर प्रयोग की परम्परा को उससे जोड़ कर अक्सर देखा जाता है. भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से प्रचलित या लुप्त सभी नाट्य विधाओं के जुड़ाव को...
अरुण कमल, नंदकिशोर आचार्य एवं गगन गिल के निर्णायक मंडल ने कृष्ण कल्पित को उनके कविता-संग्रह 'हिंदनामा’ के लिए प्रथम ‘डॉ. सावित्री मदन डागा स्मृति साहित्य सम्मान’ देने की घोषणा...
‘उत्सव का पुष्प नहीं हूँ’ अनुराधा सिंह का दूसरा कविता संग्रह है जिसे वाणी ने प्रकाशित किया है. वरिष्ठ लेखिका अनामिका के अनुसार अनुराधा लम्बी गहरी साँसों की तरह पूरे...
वरिष्ठ कथाकार अशोक अग्रवाल की पुस्तक ‘संग साथ’ के कुछ संस्मरण पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चा के विषय रहें हैं. स्मृति, लगाव और जीवन की धूप-छाँव के निराले वृत्तकार के...
चंद्रभूषण का लिखा ‘पच्छूँ का घर’ उस कार्यकर्ता की कहानी है जिसने जनसंघर्षों का वह दौर देखा है जिसमें वैचारिकता, प्रतिबद्धता और भावावेश का उत्कट समावेश था, यह कार्यकर्ता उसका...
इधर हिंदी में विषय केन्द्रित कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं जिनमें विनय कुमार की ‘यक्षिणी’ चर्चित रही है. उनका नया संग्रह पानी पर केन्द्रित है. इस संग्रह की विवेचना...
रंगकर्मी, अभिनेता, गीतकार आदि पीयूष मिश्रा की आत्मकथा ‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’ शीर्षक से राजकमल से अभी-अभी प्रकाशित हुई है. वैसे हिंदी फ़िल्मों की चर्चित हस्तियों की आत्मकथाएं...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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