समीक्षा

बीहड़ता, कोमलता और संघर्ष:  रवीन्द्र त्रिपाठी

बीहड़ता, कोमलता और संघर्ष: रवीन्द्र त्रिपाठी

आनंद स्वरूप वर्मा अनुवाद के क्षेत्र में पिछले कई दशकों से सक्रिय हैं, अफ़्रीकी साहित्य के उनके अनुवादों ने हिंदी में अपनी ख़ास जगह आज भी बना रखी है. चीन...

मध्यकालीन साहित्य की ओझल परतों की खोज: योगेश प्रताप शेखर

मध्यकालीन साहित्य की ओझल परतों की खोज: योगेश प्रताप शेखर

भक्तिकाल के कवि सुन्दरदास पर केंद्रित ‘सुन्दर के स्वप्न’ अमेरिका के ‘टेक्सास यूनिवर्सिटी’ में हिंदी साहित्य के अध्येता दलपत सिंह राजपुरोहित का शोध कार्य है. इसका प्रकाशन राजकमल ने लिया...

स्मृतियों के विलोपन के विरुद्ध: कमलानंद झा

स्मृतियों के विलोपन के विरुद्ध: कमलानंद झा

कथाकार और ‘तद्भव’ पत्रिका के यशस्वी संपादक अखिलेश की ‘अक्स’ संस्मरण विधा की अनूठी और महत्वपूर्ण किताब है, रचनात्मक और पठनीय है तथा स्मृतियों द्वारा समकालीन परिदृश्य में हस्तक्षेप करती...

प्रेम और न्याय के कवि: कँवल भारती

प्रेम और न्याय के कवि: कँवल भारती

पिछले पांच दशकों से अनथक सक्रिय कँवल भारती हमारे समय के महत्वपूर्ण लेखक-विचारक हैं. पंकज चौधरी के इसी वर्ष प्रकाशित कविता-संग्रह, ‘किस-किस से लड़ोगे’ पर कँवल भारती ने इस आलेख...

वर्किंग विमेंस हॉस्टल और अन्य  कविताएँ: ऋत्विक भारतीय

वर्किंग विमेंस हॉस्टल और अन्य कविताएँ: ऋत्विक भारतीय

वरिष्ठ कवयित्री अनामिका का नया कविता संग्रह ‘वर्किंग विमेंस हॉस्टल और अन्य कविताएँ’ इसी वर्ष वाणी से प्रकाशित हुआ है. अनामिका की कविताओं की स्त्री-दृष्टि अपने समकालीन लेखकों से अलग...

वैकल्पिक विन्यासः प्रवीण कुमार झा

वैकल्पिक विन्यासः प्रवीण कुमार झा

हिंदी में पुस्तक-समीक्षा ठहरी हुई विधा है. इसमें बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है. अपने आरम्भ से ही यह लगभग एक ढर्रे पर चल रही है. इसे गम्भीर साहित्यिक उद्यम की...

नाट्यान्वेषण: आनंद पांडेय

नाट्यान्वेषण: आनंद पांडेय

भारत में नाटकों के मंचन की समृद्ध उपस्थिति का प्रमाण ‘नाट्यशास्त्र’ है. आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रारम्भ में भी नाटकों की बड़ी भूमिका रही थी. नाट्य-आलोचना के क्षेत्र में ‘मधुमती’...

जिधर कुछ नहीं: ओम निश्‍चल

जिधर कुछ नहीं: ओम निश्‍चल

देवी प्रसाद मिश्र का पहला कविता संग्रह ‘प्रार्थना के शिल्प में नहीं’ 1989 में आया था. लगभग तीन दशकों बाद उनकी दूसरी कविता-पुस्तक ‘जिधर कुछ नहीं’ 2022 में राजकमल से...

भारतीय राजनीति, लोकतंत्र और शाहीन बाग़: मुकुल सरल

भारतीय राजनीति, लोकतंत्र और शाहीन बाग़: मुकुल सरल

पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी और इधर ‘न्यूज़क्लिक’ पर अपने स्तम्भ से चर्चित भाषा सिंह की पुस्तक ‘शाहीन बाग़: लोकतंत्र की नई करवट’ की चर्चा कर रहें हैं पत्रकार कवि मुकुल सरल.

‘पूर्णावतार’, ‘शिलावहा’ और अवतारवाद: विनोद शाही

‘पूर्णावतार’, ‘शिलावहा’ और अवतारवाद: विनोद शाही

अवतारवाद की अवधारणा भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, इसकी व्याप्ति इतनी है कि इसके विरोधी भी कालान्तर में अवतारी घोषित कर दिए गये. हेतु भारद्वाज की काव्य नाटिका-'पूर्णावतार',...

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