बीहड़ता, कोमलता और संघर्षरवीन्द्र त्रिपाठी |
चीन और भारत पड़ोसी देश हैं लेकिन कई अर्थों में ये अनजान पड़ोसी की तरह हैं. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों के राजनीतिक रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई है कि मिठास की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती है. लेकिन अगर हम, या दोनों देश के लोग, सांस्कृतिक स्तर पर एक दूसरे को समझना और जानना चाहें तो बहुत कुछ ऐसा है, कुछ ऐसे एहसास की तरफ ले जा सकता है जो नया और सांद्र भी होगा और अप्रत्याशित भी.
हाल में प्रकाशन संस्थान से हिंदी अनुवाद में आया चीनी लेखक श्वेमो की कहानियों का संग्रह इसी कारण अपनी खास अहमियत रखता है.
कई समकालीन चीनी लेखकों की तरह श्वेमो भारत में अनजाने से हैं. इसका सर्वविदित राजनीतिक कारण भी है, लेकिन उससे बड़ा कारण भाषा और लिपि है. हालांकि आज के वैश्विक समय में सभी देश एक दूसरे के करीब आ रहे हैं लेकिन चीनी लिपि की वजह से भी इस समीपता की गति धीमी है. चीनी भाषा सीखना एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है इसलिए आजकल लिखे जा रहे चीनी साहित्य से भारतीय या हिंदी वालों का ही नहीं, बाकी दुनिया का भी कदमताल नहीं हो पा रहा है.
फिर भी मूल चीनी से हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया तेज हुई है और साथ ही साथ अंग्रेजी के माध्यम से भी आज का लिखा चीनी साहित्य हिंदी में आ रहा है. ये कहानियां भी अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी में अनुदित हुई हैं. कहा जाता है कि अनुवाद में बहुत कुछ नष्ट हो जाता है लेकिन इसका विलोम भी सच है कि अनुवाद के माध्यम से बहुत कुछ प्राप्त भी होता है. हिंदी में आई श्वेमो की ये कहानियां भी इसका प्रमाण है.
आनंद स्वरूप वर्मा हिंदी के वरिष्ठ और चर्चित अनुवादकों में हैं और हाल के बरसों में उन्होंने अंग्रेजी में अनूदित चीनी कथा साहित्य को प्रचुर मात्रा में हिंदी में प्रस्तुत किया है.
उनके अनुवादक पक्ष पर अलग से चर्चा की जरूरत है पर फिलहाल यहां अनुदित कहानियों की ही बात की जा रही है.
प्रारंभ में ही यह उल्लेख कर दिया जाना चाहिए कि प्रवाह के दृष्टिकोण से सभी कहानियां सहज हिंदी की लगती हैं. वैसे साहित्य चाहे जिस भाषा में लिखा जाए, वह मानवीय अनुभव और कल्पनाशीलता की ही अभिव्यक्ति है और इसी कारण वह तथाकथित `दूसरे’ को ‘दूसरा’ नहीं होने देता है. अनुवाद इस `दूसरापन’ को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाता है.
वैसे तो इस संग्रह में चार कहानियां हैं और चारों अपने में ऐसी हैं कि अलग से चर्चा की मांग करती हैं. तीन कहानियों की मैं संक्षिप्त चर्चा करूंगा और एक का थोड़ा विस्तार से. पर उसके पहले ये कहानी भी जरूरी है कि ओ हेनरी और मोपासां के माध्यम से कहानी की विधा ने जो स्वरूप पाया और जो चेखव के माध्यम से नई दिशा में मुड़ी उसे लातीनी अमेरिकी कहानीकारों ने जादुई यथार्थवाद से जोड़ा. हालांकि जोर्जे लुईस बोर्हेस एक अपवाद थे जिन्होंने कहानी के आकार को संक्षिप्त करते हुए उसमें विस्तार भर दिया. यानी कहानी भले आकार में बड़ी या छोटी होती गई लेकिन कई देशों के कहानीकारों के हाथों उसकी अर्थमयता और भी विस्तृत होती गई.
जो चीनी कहानियां यहां हैं वे पश्चिमी या लातीनी अमेरिकी कहानियों से अलग हैं क्योंकि इनमें चीनी अनुभव समाहित है. जिसे सामाजिक यथार्थ कहा जाता है वह यहां है पर साथ में वह सृजनशीलता भी है जिससे कहानी अपनी स्थानीयता को समेटने के साथ-साथ उस वैश्विक बोध से भी जुड़ जाती है जिसके कारण किसी देश या समाज का पाठक उससे तादात्म्य स्थापित कर लेता है.
इस संग्रह की पहली कहानी है `बूढ़ा शिनच्यांङ’. इसमें शिनच्यांङ. नाम बूढ़ा है जिसको शादी के बाद सुहागरात के दिन ही गिरफ्तार कर लिया जाता है और जब बीस साल बाद वह घर लौटकर आता है तो उसे मालूम होता है कि उसकी पत्नी की दूसरी शादी किसी और से करा दी गई है. अब वह क्या करे? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं लेकिन प्रासंगिक सवाल ये होगा कि शिनच्यांङ क्या करता है? वह फिर शादी नहीं करता और अपनी पूर्व पत्नी को, जो दूसरे की हो चुकी है, भूला नहीं पाता. यही नहीं वह उससे लगातार मिलता जुलता रहता है. उसके दूसरे पति के सामने. वह जो भी थोड़ा बहुत कमाता है उसे अपनी पूर्व पत्नी के हाथों में ले जाकर रख देता है, हालांकि उससे कोई औपचारिक रिश्ता नहीं रह गया है. यह भी एक प्रेम कहानी है, पर अलग तरह की.
एक और अलग तरह की प्रेम कहानी इस संग्रह में है जिसका नाम है `खूबसूरत’. इसमें मङत्सी नाम के एक युवक की शादी य्वे नाम की एक लड़की से हो जाती है और बाद में उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी को सिफलिस है. अब मङत्सी क्या करे? शुरू में उसे लगता है कि उसे अपनी पत्नी से संबंध विच्छेद कर लेना चाहिए. उसकी मां भी यही चाहती है. वह तो य्वे के घर जाकर उसकी मां को बहुत कुछ सुना भी देती है. पर वक्त के साथ धीरे धीरे मङत्सी और य्वे के बीच एक आत्मीय लगाव उभरने लगता है. यह जानते हुए कि य्वे अब ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहने वाली, दोनों भावनात्मक स्तर पर एक दूसरे को बहुत चाहने लगते हैं और उनका प्रेम प्रगाढ़ होने लगता है. जब य्वे मौत के करीब पहुंच जाती है तो यह महसूस करती है –
‘सौंदर्य से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुछ भी नहीं है. खास तौर पर वह सौंदर्य जो किसी को अपने प्रेमी में दिखाई देता है. अब वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी और पीले आकाश और रेत के साथ घुलमिल जाएगी. अब मौत को ही उसके सौंदर्य का निर्धारण करने दिया जाए.’
तीसरी कहानी है- `आधी रात में बाकला की फलियों को चबाना’. एक ऐसी कहानी जो दिल को दहला देती है. इसमें स्नो नाम की लड़की है जो चीन में पड़े अकाल और उससे जनित भुखमरी के समय में अपने मामा से मिलने और उसे कुछ भोजन सामग्री देने उनके गांव जाती है. वहां उससे रात भर रुकने का अनुरोध किया जाता है और वह मान भी जाती है. किंतु यह क्या? स्नो रात में पाती है उसकी मामी द्वारा बच्चों के सहयोग से उसकी हत्या का प्रयास किया जा रहा है ताकि उसके मांस को खाया जा सके. स्नो अपनी सावधानी से बच जाती है लेकिन यह पाती है कि मामा के परिवार में इसे लेकर कोई अपराध बोध नहीं हैं. उसकी मामी उससे कहती है- ‘हम भी जिंदा रहना चाहते हैं’. भूख के कारण मानवीयता और रिश्ते- नाते किस तरह समाप्त हो जाते हैं उसे यह कहानी मार्मिकता से कहती है.
मैं यहां जिस कहानी की चर्चा विस्तार से करना चाहूंगा वह एक लघु उपन्यास की तरह है और जिंदगी के बड़े रूपक को सामने लाती है. कहानी है- ‘औरतों, ऊंटों और ढोलों की दास्तान’.
समकालीन वैश्विक कथा साहित्य के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन हाल के वर्षों में आई जितनी भारतीय कहानियां, या लघु उपन्यास मैंने पढ़े हैं उनसे शिल्प, संवदेना और स्वाद के धरातल पर इसमें काफी कुछ रोमांचक, अलग और नया है. हालांकि वह इस कारण भी है कि चीनी समाज के कई पारंपरिक विश्वासों, रूढ़ियों, आधुनिक और पुरानी दमनकारी व्यवस्थाओं की प्रतीति इसमें होती है और साथ ही जो नई आकांक्षाएं वहां जन्म और आकार ले रही हैं उसका भी पता चलता है.
यह कहानी दो औरतों की है- यिङ और लान लान की. दोनों ननद भौजाई हैं. यिङ भौजाई है और लान लान ननद. वैसे औपचारिक तौर पर ये रिश्ता समाप्त हो चुका है क्योंकि लान लान अपने पति यानी यिङ के भाई से अलग हो चुकी है. वजह थी कि लान लान का पति, यानी यिङ. का भाई, उसे बहुत पीटता था. लान लान इसे सह नहीं पाती और अपने पति से अलग हो जाती है. फिर भी ननद भौजाई में दोस्ती बरकरार है और दोनों नमक की खोज में निकलती हैं. यह शायद पश्चिमी चीने के उस दूरस्थ इलाके की कहानी है जहां नमक मुश्किल से मिलता है. इस इलाके में नमक के कुंड पाए जाते हैं पर वहां से नमक लाना भी जोखिम का रहा है क्योंकि यह इलाका रेगिस्तानी है और यहां ऊंटों के सहारे ही पहुंचा जा सकता है. मगर ऊंटों के लिए भी जोखिम कम नहीं है क्योंकि इस रास्ते पर ढोल बहुत मिलते हैं. ढोल इस इलाके में पाए जानेवाले वे जंगली कुत्ते हैं जो आकार में तो छोटे होते हैं लेकिन बहुत खतरनाक. वे ऊंटों का भी पेट फाड़ देते हैं, साधारण इंसान तो क्या चीज है. ये दोनों महिलाएं जब नमक की खोज में बंदूक, गोली और खाने पीने के सामान के साथ इस रेगिस्तानी इलाके से गुजरती हैं तो ढोल उनके पीछे पड़ जाते हैं. वे भी डरी हैं और ऊंट भी. इस बेहद डरावनी यात्रा में कई ऐसे मौके आते हैं जब दोनों को लगता है बस, अब जीवन का अंत निकट ही आ गया. पानी खत्म हो जाता है, खाने को कुछ नहीं बचा और ऊपर से सूरज का प्रचंड ताप. फिर भी तमाम विघ्न बाधाओं को पार करते हुए वे आखिरकार नमककुंड तक पहुंच ही जाती हैं.
इस यात्रा के दौरान यह भी उजागर होता है कि पारंपरिक चीनी समाज में धार्मिक आस्थाएं मौजूद हैं. बार-बार लान लान बुद्ध का नाम लेती है. और वज्र वराहि का भी.
वज्र वराहि क्या हैं इसके बारे में इंटरनेट पर खोज करने पर यह मिला कि वह वज्र योगिनी का ही रूप है. लगता है कि तिब्बत के बौद्ध धर्म, का एक रूप चीन में भी गया हालांकि चीन में बौद्ध धर्म दूसरे रास्ते से भी गया. धार्मिक आस्थाएं अन्य रास्तों से पहुंचती रहीं हैं इसलिए उनमें कुछ और आस्थाएं भी मिश्रित होती जाती हैं.
वज्र योगिनी तिब्बती बौद्ध धर्म से जुड़ी देवी है और इस कहानी में जिस तरह बार-बार वज्र वराहि का जिक्र आता है उससे लगता है कि चीन के पश्चिमी इलाके में तिब्बती बौद्ध धर्म का काफी असर है. यहां भी भारतीय समाज में निहित विश्वासों और लोक आस्थाओं के चीनी समाज की आस्थाओं का साम्य दिखता है. जैसे भारतीय समाज में अक्सर लोग ये कहते पाए जाते हैं कि अगर फला मनोकामना पूरी होती है तो फलां देवता को लड्डू चढाऊंगा.
इस कहानी में भी लान लान अपनी भाभी या दोस्त यिङ से कहती है-
`वज्र वराहि ने हमें बचा लिया. यकीन मानो, तुम्हारे पास से चलने के बाद घाटी में जाकर मैं घुटनों के बल बैठ गई और प्रार्थना करने लगी. मैंने कहा- हे वज्र वराहि, अगर मैं इस मरुस्थल से जिंदा बाहर निकल गई तो तुम्हारा मंदिर फिर से बनवाऊंगी और फिर से तुम्हारी मूर्ति पर सोने का पानी चढ़ाऊंगी’.
संकेत यह है कि सांस्कृतिक क्रांति के दौरान वज्र वराहि के मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. यहां लेखक यह भी इशारा किया है कि भले ही एक दौर में धार्मिक विश्वासों को नेस्तनाबूद करने की कोशिश की जाए, लेकिन वे समाज में, लोगों के मन में कहीं-न-कहीं बसी रहती हैं और असुरक्षा के दौर में वे अभिव्यक्त होने लगती हैं.
यिङ की भी अपनी कहानी है. उसका पति हीन थाओ मर चुका है मगर यिङ को उससे बहुत लगाव नहीं रहा. उसके जीवित रहते भी उनके संबंधों में कोई ऊष्मा नहीं थी. अपने पति के जीवित रहते भी उससे लीङ क्वान नाम के युवक से प्यार था और रेगिस्तान में जब वह मरने के करीब होती है तो उसे लीङ की ही याद आती है.
शायद यह मनुष्य मन की अंतश्चेतना में है कि जब भी वह किसी ऐसे क्षण में होता है जो उसके लिए झंझावाती होते हैं तो वह अपने सबसे प्रिय को याद करता है. हिंदी में सूर्यकांत त्रिपाठी `निराला’ की कविता `राम की शक्ति पूजा’ में राम जब लक्ष्मण के जीवन के लिए शक्ति की आराधना कर रहे हैं तो उनको सीता यानी जानकी के कमनीय नयन याद आते हैं, लताओं के अंतराल में उनसे पहली बार का मिलन याद आता है. विश्व साहित्य और सिनेमा में ऐसे कई मिसालें हैं जब गहरे संकट में मनुष्य को अपने सबसे प्रिय का स्मरण होता है. यिङ के साथ भी ऐसा ही होता है.
‘औरतों, ऊंटों और ढोलों की दास्तान’ मनुष्य और जानवरों की दोस्ती की भी गाथा है. सभी जानवर मनुष्य के दोस्त नहीं हो सकते. कई तो ढोलों की तरह जानी दुश्मन होते हैं. लेकिन कुछ दोस्त और वफादार भी होते हैं जैसे कुत्ते. इस कहानी में मनुष्य के दोस्तों के रूप में ऊंट को दिखाया गया है. यिङ और लान लान दो ऊंटों के सहारे यात्रा करते हैं. इनमें एक तो रास्ते में मर जाता है लेकिन दूसरा पूरी यात्रा में साथ निभाता है. हालांकि वो बीच में इन दोनों ननद और भौजाई को छोड़कर चला भी जाती है; दोनों को लगता है कि वह भाग गया. लेकिन नहीं, वह भागता नहीं, लौटकर आ जाता है. यह भी जीवन का एक रूपक ही है जिसमें कुछ जीव जंतु मनुष्य के दोस्त और वफादार भी बन जाते हैं.
समकालीन चीनी समाज के बारे में भी हमें बहुत कम पता है. इसलिए ठीक-ठीक यह कहना कठिन है कि वहां कौन सा राजनीतिक यथार्थ है. पर जो खबरें इधर आईं हैं उनसे लगता है कि सांस्कृतिक क्रांति के दौर में माओ त्से तुंग की नीतियों के कारण वहां भयानक दुर्भिक्ष आया था और करोड़ों लोग भूख से मर गए. सरकार भी अपनी जिम्मेदारी लेने से बच गई. `आधी रात में बाकला की फलियों को चबाना’ कहानी में जिस अकाल और भुखमरी का उल्लेख है वह शायद सरकारी नीतियों से भी जनित थी.
अंत में यह कि जरूरत इस बात की है कि अन्य चीनी लेखकों के साथ-साथ श्वेमो का साहित्य भी हिंदी में आए. उनका लिखा अंग्रेजी में तो उपलब्ध है लेकिन हिंदी में पहली बार आया है. हमारी आस्वादपरकता का विस्तार तभी होगा जब हम दूसरी भाषाओं के साहित्य से भी लगातार परिचित होते रहें.
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श्वेमों की चुनी हुई कहानियां, अनुवाद: आनंद स्वरूप वर्मा, प्रकाशन संस्थान, मूल्य- 200 रुपए)
रवीन्द्र त्रिपाठी, टीवी और प्रिट मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म-,साहित्य-रंगमंच और कला के आलोचक, व्यंग्यकार हैं. व्यंग्य की पुस्तक `मन मोबाइलिया गया है’ प्रकाशित. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका `रंग प्रसंग‘ और और केंद्रीय हिंदी संस्थान की पत्रिका `मीडिया ‘ का संपादन किया है. कई नाट्यालेख लिखे हैं. जनसत्ता के फिल्म समीक्षक और राष्ट्रीय सहारा के कला समीक्षक. वृतचित्र- निर्देशक. साहित्य अकादेमी और साहित्य कला परिषद के लिए वृतचित्रों का निर्माण. आदि tripathi.ravindra@gmail.com |
आनंद स्वरूप वर्मा के सभी अनुवाद , चाहे वह चीनी लेखकों के उपन्यासों के हों अथवा अफ्रीकी महान रचनाकारों की कहानियों के, अविस्मरणीय हैं। अफ्रीकी साहित्य को तो सबसे पहले हिंदी पाठकों को परिचित कराने का श्रेय उन्हें ही जाता है।
अफ्रीकी साहित्य को हिंदी पाठकों तक पहुंचाने में आनंद जी का अत्यंत महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय योगदान रहा है