पद्मिनी प्रसंग: विजय बहादुर सिंह और माधव हाड़ा
साहित्य इतिहास में संवेदना का निवेश करता है. उसे समकालीन बनाने की उसकी कोशिश रहती है. इतिहास में रत्नसेन और पद्मावत के अस्तित्व को लेकर भले ही संशय हो. साहित्य...
साहित्य इतिहास में संवेदना का निवेश करता है. उसे समकालीन बनाने की उसकी कोशिश रहती है. इतिहास में रत्नसेन और पद्मावत के अस्तित्व को लेकर भले ही संशय हो. साहित्य...
मध्यकालीन साहित्य और उसके इतिहास पर आधारित आलोचक माधव हाड़ा की इधर कई पुस्तकें और महत्वपूर्ण आलेख प्रकाशित हुए हैं. ‘पद्मिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ उनका शोध कार्य...
29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है. नृत्य की स्वीकार्यता हिंदी क्षेत्रों में लगभग नहीं है. सजीव प्रस्तुतियों के अवसर भी शून्य हैं. कथा को देह की भंगिमाओं...
‘मज़ाक़’ कवि कुमार अम्बुज का दूसरा कहानी संग्रह है जिसे इसी साल ‘राजपाल एन्ड सन्ज़’ ने प्रकाशित किया है. 2008 में प्रकाशित पहले कहानी संग्रह पर टिप्पणी करते हुए विनोद...
हिंदी-उर्दू कथा-साहित्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने को रेखांकित करने का यह सही समय है. जहाँ गीतांजलि श्री को बुकर सम्मान तथा विनोद कुमार शुक्ल को पेन-नाबाकोव पुरस्कार मिला...
पचास हज़ार डॉलर के अन्तर्राष्ट्रीय पेन/नाबाकोव पुरस्कार के कारण विश्व स्तर पर विनोद कुमार शुक्ल चर्चा के विषय बने हुए हैं वहीं बच्चों के लिए उनके लेखन पर भी इधर...
2023 के ‘PEN-Nabokov Award for Achievement in International Literature’ से विनोद कुमार शुक्ल के सम्मानित होने की सूचना से साहित्य जगत आह्लादित है. वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक...
वरिष्ठ लेखिका गगन गिल के पांच कविता संग्रह और चार गद्य कृतियाँ आदि प्रकाशित हैं, उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इण्डिया समूह व सण्डे ऑब्जर्वर में एक दशक से कुछ अधिक समय...
‘आउशवित्ज़: एक प्रेम कथा’, स्त्रीवादी लेखिका और आलोचक गरिमा श्रीवास्तव का पहला उपन्यास है. 2018 में प्रकाशित क्रोएशिया प्रवास की डायरी ‘देह ही देश’ में युद्धों में स्त्री यातना का...
भारत जैसे देश में विडम्बनाओं का अंत नहीं, जिस संस्कृति ने प्रेम और दाम्पत्य का अद्भुत ग्रन्थ ‘कामसूत्र’ दिया हो, जिसके मन्दिरों में प्रेमरत युगल अंकित हों जिसके देवता प्रेम...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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