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Home » शिनागावा बन्दर की स्वीकारोक्तियाँ : हारुकी मुराकामी : अनुवाद : श्रीविलास सिंह

शिनागावा बन्दर की स्वीकारोक्तियाँ : हारुकी मुराकामी : अनुवाद : श्रीविलास सिंह

हारुकी मुराकामी की कहानी ‘शिनागावा बंदर’ 2006 में प्रकाशित हुई थी, यह बन्दर मनुष्यों की तरह बोलता था और जिससे प्रेम करता था, उसका नाम चुरा लेता था. कुछ स्त्रियों में नाम भूलने की विचित्र घटनाएँ सामने आने लगीं. वह बन्दर ऐसा क्यों करता था? 14 वर्ष बाद मुराकामी ने 2020 में प्रकाशित अपनी कहानी ‘शिनागावा बंदर की स्वीकारोक्तियाँ’ में इसका उत्तर दिया है. फ़िलिप गैब्रिएल के अंग्रेजी अनुवाद पर हिंदी का यह अनुवाद आधारित है. अनुवादक हैं वरिष्ठ लेखक श्रीविलास सिंह. विश्व के कुछ बेहतरीन कथाकारों में एक मुराकामी इस कहानी के माध्यम से कहना क्या चाहते हैं? यह तो आपको यह कहानी पढ़ कर ही पता चलेगा. प्रस्तुत है.

by arun dev
November 22, 2024
in अनुवाद
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शिनागावा बन्दर की स्वीकारोक्तियाँ : हारुकी मुराकामी : अनुवाद : श्रीविलास सिंह
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शिनागावा बन्दर की स्वीकारोक्तियाँ
हारुकी मुराकामी


अनुवाद : श्रीविलास सिंह

मैं उस बुजुर्ग बन्दर से लगभग पाँच वर्ष पूर्व गुनमा प्रान्त के गर्म जलस्रोतों वाले कस्बे की छोटी-सी जापानी शैली की सराय में मिला था. यह एक पुरानी, यदि ठीक-ठीक कहूँ तो, जर्जर, मुश्किल से खंडहर होने से बची हुई, सराय थी जहाँ संयोगवश मुझे एक रात्रि बितानी पड़ी थी.

मैं इधर उधर जहाँ भी मेरी आत्मा लेकर गयी, यात्रा कर रहा था और अभी अपराह्न के सात बजे से अधिक का समय था जब मैं गर्म जलस्रोतों वाले उस कस्बे में पहुँचा और रेलगाड़ी से उतरा था. पतझड़ का मौसम लगभग समाप्ति पर था, सूरज काफी पहले ही अस्त हो चुका था और वह स्थान उस विशिष्ट गहरे नीले अंधकार से आच्छादित था जो पहाड़ी इलाकों की विशेषता थी. चोटियों से नीचे ठंडी, काटती हुई हवा, मुट्ठियों के आकार की पत्तियों को गलियों में उड़ाती हुई बह रही थी.

मैं रुकने के लिए किसी स्थान की तलाश में कस्बे के केंद्र से गुजरा, किन्तु कोई भी बेहतर सराय, रात्रि के भोजन का समय समाप्त हो जाने के पश्चात अतिथि स्वीकार न करती. मैं पाँच या छह जगह रुका, किन्तु उन सभी ने मुझे सीधे-सीधे मना कर दिया. अंततः कस्बे के बाहर एक उजाड़ इलाके में मुझे एक ऐसी सराय मिली जहाँ मुझे ठहरने की जगह मिल गई. यह उजाड़-सा दिखता एक जीर्ण स्थान था, लगभग खंडहर. इसने ढेरों वर्ष गुजरते हुए देखे थे किन्तु इसमें वह अनोखा आकर्षण नहीं था जिसकी आपको किसी पुरानी सराय से अपेक्षा होती है. तमाम फिटिंग भी यहाँ वहाँ हलके टेढ़ेपन के साथ लगी थी, और जल्दबाजी में की गयी मरम्मत का शेष स्थान से कोई समन्वय नहीं था. मुझे सन्देह हुआ कि वह अगले भूकंप में  बच पायेगी और मैं बस आशा ही कर सकता था कि मेरे वहाँ रुकने के दौरान कोई भूकंप न आएगा.

सराय में रात्रि का भोजन नहीं मिलता था किन्तु सुबह का नाश्ता सम्मिलित था और एक रात्रि के लिए किराया अविश्वसनीय रूप से सस्ता था. प्रवेशद्वार से भीतर घुसते ही एक सादा-सी स्वागत डेस्क थी, जिसके पीछे एक पूर्णतः केशविहीन वृद्ध बैठा था जिसकी भौंहें तक नहीं थी, उसने मुझसे एक रात्रि के लिए अग्रिम भुगतान लिया.  भौंहों की अनुपस्थिति में वृद्ध व्यक्ति की आँखें विचित्र रूप से चमकदार और घूरती हुई सी लग रही थी. फर्श पर उसकी बगल में एक तकिये पर उसी की तरह की, उतनी ही प्राचीन एक बड़ी सी भूरी बिल्ली, गहरी निद्रा में पड़ी हुई थी. उसकी नाक के साथ कुछ गड़बड़ होनी चाहिए क्योंकि मेरी देखी हुई सभी बिल्लियों के मुकाबले उसके खर्राटे अधिक जोर से सुनाई पड़ रहे थे. कभी-कभी उसके खर्राटों की धुन अनियमित ढंग से कुछ क्षणों के लिए रुक जाती थी. इस सराय में हर चीज पुरानी और ध्वस्त होती हुई सी दिख रही थी.

मुझे जो कमरा दिखाया गया वह काफी संकरा सा, किसी भंडार कक्ष जैसा जहाँ कामचलाऊ चारपाई डाल दी जाती है, छत पर लगी लाइट भी काफी मद्धिम थी और टाटामी (जापानी चटाई) के नीचे का फर्श हर कदम के साथ बुरी तरह चरमरा रहा था. किन्तु अब इस तरह की चीजों के प्रति आपत्ति जताने के लिए बहुत देर हो चुकी थी. मैंने स्वयं से कहा, मुझे अपने सिर के ऊपर एक छत और सोने के लिये बिस्तर के लिए प्रसन्न होना चाहिए.

मैंने अपना एक मात्र सामान, कंधे पर लटकाने वाला बड़ा सा बैग, नीचे फर्श पर रख दिया और वापस कस्बे की ओर चल दिया (यह उस तरह का कमरा नहीं था जिसमें पड़े रह कर कोई आराम करना चाहता). मैं पास की एक सोबा-नूडल्स की दुकान में गया और सामान्य सा डिनर लिया. यह ‘कुछ या कुछ भी नहीं’ जैसी स्थिति थी, क्योंकि उस समय तक और कोई रेस्त्रां नहीं खुला था. मैंने एक बियर, थोड़े स्नैक्स और थोड़ा गर्म सोबा लिया. सोबा साधारण सा था, सूप गुनगुना सा. लेकिन फिर, मैं शिकायत करने की स्थिति में नहीं था. इससे खाली पेट सोने से मुक्ति मिल गयी. जब मैं सोबा-नूडल्स की दुकान से बाहर आया, मैंने सोचा कि मैं थोड़े से स्नैक्स और ह्विस्की की एक छोटी बोतल खरीद लूँ लेकिन मुझे कोई ऐसा स्टोर नहीं मिला. आठ बजे के बाद का समय था, और इस समय गर्म-फव्वारों वाले कस्बों में आमतौर पर पाए जाने वाले शूटिंग-गैलरी गेम सेंटर ही एकमात्र स्थान थे जो खुले होते थे. इसलिए मैं वापस सराय की ओर चल पड़ा, कपड़े बदल कर याकूता (स्नान का एक ढीला ढाला जापानी परिधान) पहना और नीचे स्नान करने के लिए चला गया.

बुरी स्थिति को प्राप्त भवन और अन्य सुविधाओं की तुलना में, सराय में गर्म-जल स्नान की सुविधा आश्चर्यजनक रूप से बेहतरीन थी. भाप छोड़ता जल गहरे नीले रंग का था, सांद्र गंधक की महक मेरे द्वारा पहले कभी अनुभव की गयी ऐसी किसी चीज से अधिक तीखी थी और मैं वहाँ देर तक अपने को अस्थियों तक गरमाहट देता, भिगोता रहा. वहाँ अन्य कोई स्नान करने वाला नहीं था (मुझे पता नहीं था कि मेरे अतिरिक्त क्या कोई और अतिथि सराय में था भी) और मैं देर तक आरामदायक स्नान कर पाया. कुछ समय पश्चात, मैं स्वयं को हल्का महसूस करने लगा और ठंडा होने के लिए बाहर निकल आया. फिर कुछ देर बाद पुनः बाथ टब में चला गया. संभवतः यह खंडहर-सी दिखती सराय सब के बाद एक अच्छा चुनाव थी, मैंने सोचा. किसी शोरगुल मचा रहे समूह  के साथ स्नान करने की अपेक्षा, जैसा कि आप बड़ी सरायों में करते हैं,  यह अधिक शांतिपूर्ण था.

मैं स्नानागार में स्वयं को तीसरी बार भिगो रहा था जब बन्दर ने खड़खड़ाहट के साथ शीशे का दरवाज़ा खोला और भीतर आया. “माफ़ कीजिये,” उसने धीमी आवाज़ में कहा. मुझे इस वास्तविकता का भान कुछ समय पश्चात हुआ कि वह एक बन्दर था. सघन गर्म जल ने उनींदा-सा कर दिया था और मैंने कभी भी एक बन्दर से मनुष्य की तरह बोलने की अपेक्षा नहीं की थी, इसलिए मैं तत्काल जो देख रहा था और यह तथ्य कि वह एक वास्तविक बन्दर था, दोनों बातों में कोई सम्बन्ध न स्थापित कर सका. बन्दर ने अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया. उसने इधर उधर पड़ी बाल्टियों को व्यवस्थित किया और तापमान जानने के लिए बाथ टब में एक थर्मामीटर डाल दिया. उसने बहुत ध्यान से अपनी आँखें संकुचित करते हुए थर्मामीटर पर रीडिंग पढ़ी, मानो कोई विषाणुशास्त्री किसी विषाणु के नए स्ट्रेन को अलग कर रहा हो.

“स्नान कैसा लगा?” बन्दर ने मुझसे पूछा.

“यह बहुत बढ़िया है. धन्यवाद,”  मैंने कहा. मेरी आवाज़ सघनता से, धीमे-से वाष्प में प्रतिध्वनित हुई. वह लगभग मिथकीय-सी ध्वनित हुई, मेरी स्वयं की आवाज़ की भांति नहीं बल्कि जंगल की गहराइयों में से वापस आती अतीत की किसी प्रतिध्वनि की सी. और वह प्रतिध्वनि…… एक क्षण रुकिए. एक बन्दर यहाँ क्या कर रहा था? और वह मेरी भाषा क्यों बोल रहा था?

“क्या मैं आपकी पीठ रगड़ दूँ?” बन्दर ने पूछा, उसकी आवाज़ अभी भी मद्धिम थी. उसकी आवाज़ स्पष्ट थी, किसी डू-वोप ग्रुप की मध्यम सुर में आकर्षित करने वाली आवाज़. बिलकुल वैसी नहीं जैसी आप अपेक्षा करते. किन्तु आवाज़ के सम्बन्ध में कुछ असामान्य नहीं था; यदि आप अपनी आँखें बंद करते और सुनते, तो आप सोचते यह एक सामान्य आदमी बोल रहा है.

“जरूर, धन्यवाद,” मैंने जवाब दिया. ऐसा नहीं था कि मैं वहाँ बैठा इस प्रतीक्षा में था कि कोई आएगा और मेरी पीठ रगड़ेगा, किन्तु मैं यदि उसका प्रस्ताव ठुकराता, मुझे डर था कि वह सोचता कि मुझे एक बन्दर से ऐसा करवाने में आपत्ति थी. मैंने अनुमान लगाया कि यह उसकी ओर से एक विनम्र प्रस्ताव था और मैं निश्चित रूप से उसकी भावनाएं आहत नहीं करना चाहता था. इसलिए मैं धीरे से बाथ टब से बाहर आया और लकड़ी के एक छोटे-से प्लेटफॉर्म पर अपनी पीठ बन्दर की ओर करके लेट गया.

बन्दर कोई कपड़े नहीं पहने हुए था. जो कि निश्चित रूप से बंदरों के लिए सामान्य है, इसलिए मुझे यह बात खटकी नहीं. वह पर्याप्त वृद्ध लग रहा था; उसके बालों में काफी सफेदी थी. वह एक छोटी तौलिया ले आया, उस पर साबुन रगड़ा और अनुभवी हाथों से मेरी पीठ रगड़ने लगा.

“आजकल बहुत ठंड हो गयी है, क्या नहीं?” बन्दर ने टिप्पणी की.

“हाँ, ऐसा ही है.”

“थोड़े दिनों में यह स्थान बर्फ से ढँक जायेगा. और तब लोगों को छतों पर से बर्फ हटानी पड़ेगी, जो आसान काम नहीं है, मेरा विश्वास करो.”

वह बीच में कुछ क्षणों के लिए रुका, और मैं कूद पड़ा. “तो तुम आदमियों की भाषा बोल सकते हो?”

“निश्चय ही,” बन्दर ने तत्परता से कहा. उससे यह प्रश्न संभवतः बहुत बार पूछा जाता रहा था. “मेरा पालन पोषण पहले के आदमियों द्वारा किया गया था और जब तक मैं जान पाता, मैं बोलने में सक्षम हो गया था. मैं लम्बे समय तक टोक्यो के शिनागावा इलाके में रहा था.”

“शिनागावा के किस हिस्से में?”

“गोटेनेमा के आसपास.”

“वह बहुत अच्छा इलाका है.”

“हाँ, आप तो जानते ही हैं, वह रहने के लिए बहुत सुन्दर जगह है. पास में ही गोटेनेमा पार्क है और मुझे वहाँ के प्राकृतिक दृश्य बहुत आनंददायक लगते थे.”

इस बिंदु पर हमारा वार्तालाप रुक गया. बन्दर ने मेरी पीठ अच्छे से रगड़ना (जो बहुत अच्छा लग रहा था) जारी रखा और उस पूरे समय मैं उलझी हुई चीजों को तार्किक ढंग से सुलझाने का प्रयत्न करता रहा. शिनागावा में पला बढ़ा एक बन्दर? गोटेनेमा पार्क? और इतना अच्छी तरह बोलने वाला? यह कैसे संभव था? जो भी हो, यह एक बन्दर था. एक बन्दर, और कुछ नहीं.

“मैं मिनातो-कू में रहता हूँ,” मैंने कहा, आधारभूत रूप से एक अर्थहीन कथन.

“तब तो हम लगभग पड़ोसी हैं,” बन्दर ने मैत्रीपूर्ण स्वर में कहा.

“तुम्हारा शिनागावा में किस तरह के लोगों ने पालन-पोषण किया था?” मैंने पूछा.

“मेरे मालिक कालेज में प्रोफ़ेसर थे. वे भौतिक शास्त्र के विशेषज्ञ थे और टोक्यो- गाकुजी विश्वविद्यालय में थे.

“तब तो काफी बुद्धिजीवी थे.”

“वे निश्चित रूप से ऐसे थे. वे किसी अन्य चीज की बनिस्बत संगीत से अधिक प्यार करते थे, विशेषतः ब्रुकनर और रिचर्ड स्ट्रास के संगीत से. उन्हीं का आभार है कि मुझमें भी उस संगीत के प्रति रुचि विकसित हो गयी. मैं उसे हर समय सुनता था. आप कह सकते हैं, अनजाने ही मुझे भी उसका अच्छा ज्ञान हो गया.

“तुम्हें ब्रुकनर पसंद हैं?”

“हाँ, उनकी सातवीं सिम्फनी. मुझे तीसरा चलन विशेष रूप से प्रेरणादायक लगता है.”

“मैं अक्सर उनकी नवीं सिंफनी सुनता हूँ,” मैं नीचे उतर आया. एक और अर्थहीन कथन.

“हाँ, वह वास्तव में बहुत प्यारा संगीत है,” बन्दर ने कहा.

“तो उन प्रोफ़ेसर ने तुम्हें भाषा सिखाई ?”

“हाँ, उन्होंने सिखाई. उनके कोई बच्चे नहीं थे और संभवतः उस कमी को पूरा करने के लिए, जब उनके पास समय होता था, उन्होंने मुझे काफी कड़ाई से प्रशिक्षित किया. वे बहुत धैर्यवान थे, एक व्यक्ति जिसे व्यवस्था और नियमितता  हर चीज से अधिक मूल्यवान थी. वे एक गंभीर व्यक्ति थे जिनकी प्रिय कहावत थी कि बुद्धिमत्ता का सच्चा रास्ता ठीक-ठीक तथ्यों को दुहराना है. उनकी पत्नी एक शांत और मृदु स्वभाव की महिला थीं, मेरे प्रति सदैव दयालु. उनका आपस में बहुत बेहतरीन सम्बन्ध था और यह तथ्य एक बाहरी व्यक्ति से कहने में मुझे हिचकिचाहट हो रही है, लेकिन मेरा विश्वास करो उनकी रात्रिकालीन क्रियाएँ अत्यंत गहन होती थीं.”

“सच में,” मैंने कहा.

अंततः बन्दर ने मेरी पीठ रगड़ने का काम समाप्त कर दिया. “आपको धैर्य रखने के लिए धन्यवाद,” उसने कहा और अपना सर झुकाया.

“धन्यवाद,” मैंने कहा. “मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगा.  तो क्या तुम इस सराय में काम करते हो?”

“हाँ, उन लोगों ने मुझे यहाँ काम करने दे कर बहुत कृपा की है. बड़ी, बड़े स्तर पर संचालित सराय एक बन्दर को काम पर नहीं रखेंगी. मगर यहाँ हमेशा काम करने वालों की कमी रहती है और यदि आप अपने को उपयोगी सिद्ध कर दें तो उन्हें कोई परवाह नहीं कि आप बन्दर हैं अथवा और कुछ हैं. एक बन्दर के लिए वेतन न्यूनतम है और वे मुझे वहीं काम करने देते हैं जहाँ मैं लोगों की नज़रों से दूर रहूँ. स्नानागारों को व्यवस्थित करना, उनकी सफाई, इस तरह की चीजें. अधिकांश अतिथि एक बन्दर के चाय पेश करने पर हक्का बक्का रह जायेंगे इत्यादि. किचन में काम करने का भी कोई प्रश्न नहीं क्योंकि मेरे कारण भोजन की शुद्धता सम्बन्धी कानूनों के मुद्दे खड़े हो जायेंगे.”

“क्या तुम यहाँ काफी समय से काम कर रहे हो?” मैंने पूछा.

“लगभग तीन वर्ष हो गए.

“लेकिन यहाँ स्थायी रूप से रहने से पूर्व तुम्हारे साथ बहुत कुछ घटित हुआ होना चाहिए?”

बन्दर ने तेजी से सिर हिलाया. “ठीक बात है.”

मैं हिचकिचाया फिर हिचकिचाहट से निकलते हुए मैंने उससे पूछा, “यदि तुम्हें अन्यथा न लगे तो क्या तुम मुझे अपनी पृष्ठभूमि के सम्बन्ध में और बता सकते हो ?”

बन्दर ने इस पर विचार किया, फिर कहा, “यह ठीक रहेगा. मेरे बारे में जानना उतना रुचिकर नहीं हो सकता जितना तुमने अपेक्षा की है लेकिन मैं दस बजे काम से मुक्त हो जाता हूँ और उसके बाद तुम्हारे कमरे में आ सकता हूँ. क्या यह सुविधाजनक रहेगा?”

“निश्चित रूप से,” मैंने कहा. “मैं आभारी रहूँगा यदि तुम तब थोड़ी बियर लेते आओ.”

“समझ गया. ठंडी बियर न. सपोरो चलेगी?”

“वह ठीक रहेगी. तो तुम बियर पीते हो?”

“हाँ, बस थोड़ी-सी.”

“फिर दो बड़ी बोतलें लाना, प्लीज.”

“निश्चय ही, यदि मैं ठीक समझता हूँ, तुम दूसरे तल पर अराइशो सुइट में ठहरे हो.”

“बिलकुल ठीक,” मैंने कहा.

“यह थोड़ा विचित्र है, क्या तुम ऐसा नहीं सोचते? ”बन्दर ने कहा. पहाड़ों में स्थित एक सराय के कमरे का नाम अराइशो- तूफानी समुद्रतट- है.”  वह हलके से हँसा. मैंने किसी बन्दर को जीवन में हँसते नहीं देखा था. लेकिन मेरा अनुमान था कि बन्दर हँस सकते हैं और समय-समय पर विलाप भी कर सकते हैं. इसलिए उसके हँसने पर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, इस तथ्य को देखते हुए कि वह बात कर सकता था.

“वैसे क्या तुम्हारा कोई नाम भी है?” मैंने पूछा.

“नहीं, वैसे तो कोई नाम नहीं है. लेकिन हर कोई मुझे शिनागावा बन्दर पुकारता है.”

बन्दर ने सरकाकर शीशे का दरवाज़ा खोला, मुड़ा और विनम्रता से झुका फिर धीरे से दरवाजा बंद कर दिया.

 

हारुकी मुराकामी

 

दो)

दस बज कर थोड़ा ही समय हुआ था जब बन्दर एक ट्रे में बियर की दो बड़ी बोतलें लिए हुए अराईसो सुइट में आया. बियर की बोतलों के अतिरिक्त ट्रे में एक बोतल ओपनर, दो गिलास और कुछ स्नैक्स, सुखाई गई मसालेदार स्क्विड और काकीपी- मूंगफली के साथ राइस क्रैकर्स भी थे. बन्दर ने ओपनर की सहायता से बियर की एक बोतल खोली और दो गिलासों में बियर उड़ेली. चुपचाप हमने गिलास टकरा कर चियर्स किया.

“ड्रिंक्स के लिए धन्यवाद,” बन्दर ने अपना मुँह पोंछते हुए कहा और प्रसन्नता से बियर का घूँट भरा. मैंने भी थोड़ी पी. ईमानदारी से कहूँ तो एक बन्दर के सामने बैठ कर बियर पीते थोड़ा अजीब लगा. लेकिन मेरा अनुमान था कि धीरे-धीरे आपको सामान्य लगने लगता है.

“क्या तुम यहीं सराय में रहते हो?”

“हाँ, यहाँ एक दुछत्ती जैसा कमरा है, जहाँ वे मुझे सोने देते हैं. वहाँ समय-समय पर चूहे भी होते हैं इसलिए वहाँ आराम करना मुश्किल होता है. लेकिन मैं एक बन्दर हूँ, इसलिए मैं सोने के लिए एक बिस्तर और तीन बार भोजन के लिए आभारी हूँ. ऐसा नहीं कि यह कोई स्वर्ग जैसी चीज है.”

बन्दर ने अपना गिलास खाली कर लिया था इसलिए मैंने उसमें और बियर डाली.

“बहुत आभार,” उसने विनम्रता से कहा.

“क्या तुम आदमियों के अतिरिक्त अपने जैसो के साथ भी रहे हो ? मेरा मतलब है, अन्य बंदरों के साथ ?” मैंने पूछा. बहुत सी बातें थी जो मैं उससे पूछना चाहता था.

“हाँ, अनेक बार,” बन्दर ने उत्तर दिया, उसके चेहरे पर एक छाया-सी आयी. उसकी आँखों के पास की झुर्रियों की गहरी परतें बन गयी थी. “कुछ कारणों से मुझे जबरदस्ती शिनागावा से निकाल कर ताकासाकियामा में छोड़ दिया गया, धुर दक्षिण का इलाका जो अपने बन्दर पार्क के लिए प्रसिद्ध है. पहले मैंने सोचा था मैं वहाँ शांति से रह सकूँगा लेकिन चीजें उस तरह से नहीं हुईं. अन्य बन्दर मेरे प्रिय साथी थे, मुझे ग़लत न समझें, मनुष्य के घर में, एक प्रोफ़ेसर और उनकी पत्नी द्वारा पालपोस कर बड़ा किये जाने के कारण मैं अपनी भावनाएँ उनको ठीक से व्यक्त नहीं कर सका. हममें बहुत कम समानता थी और संवाद आसान नहीं था. उन्होंने मुझ से कहा, ‘तुम विचित्र बाते करते हो’, उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाया और धमकाया. बंदरियाँ जब मेरी ओर देखतीं थी तो वे मुँह छुपा कर हँसती  थीं. बन्दर बहुत नगण्य भिन्नताओं के प्रति भी बहुत संवेदनशील होते हैं. उन्हें मेरे काम करने का ढंग हास्यास्पद लगता था और वे उससे नाराज़ और कभी-कभी झुंझला भी जाते थे. मेरे लिए वहाँ रहना कठिन से कठिनतर होता गया, इसलिए अंततः मैं अकेले रहने के लिए अलग हो गया.  अन्य शब्दों में एक बहुरूपिया बन्दर बन गया.

“यह तुम्हारे लिए बहुत अकेलापन लिए रहा होगा?”

“निश्चित रूप से ऐसा ही था. किसी ने मेरी रक्षा नहीं की, और मैं भोजन के लिए अपने दम पर अकेले भटकता रहा और किसी तरह जीवित रहा. लेकिन सबसे ख़राब बात किसी का संवाद करने के लिए न होना था. मैं बंदरों से बात नहीं कर सकता था और मनुष्यों से भी नहीं.  इस तरह का एकाकीपन दिल तोड़ने वाला होता है.  ताकासाकियामा दर्शकों से भरा रहता है, लेकिन जो भी सामने आता मैं उसी से तो वार्तालाप शुरू नहीं कर सकता था. वैसा करो और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहो. सबसे बड़ी बात थी कि मैं न इधर का था न उधर का, न तो मानव समाज का हिस्सा था न ही बंदरों की दुनिया का. यह भयानक अनुभव था.”

“और तुम ब्रुकनर को भी नहीं सुन पाते रहे होगे ?”

“सही बात. अब वह मेरे जीवन का हिस्सा नहीं है,” शिनागावा बन्दर ने कहा और थोड़ी और बियर पी. मैंने उसके चेहरे का अध्ययन किया, लेकिन चूंकि वह पहले से ही लाल रंग का था, मैंने उसके और लाल होने का कोई चिन्ह नहीं पाया. मैंने अंदाज़ लगाया कि यह बन्दर मदिरा बर्दाश्त कर सकता था. अथवा हो सकता है कि बंदरों के बारे में आप उनके चेहरे देख कर नहीं बता सकते कि वे नशे में हैं.

“अन्य बात जिसने मुझे सचमुच कष्ट दिया वह थी स्त्रियों के साथ सम्बन्ध.”

“समझा,” मैंने कहा. और स्त्रियों से ‘सम्बन्ध से तुम्हारा मतलब है…. ?”

“संक्षेप में मुझे बन्दरियों के प्रति कोई यौन आकर्षण नहीं महसूस होता था. मुझे उनके साथ होने के ढेरों अवसर थे, लेकिन मैंने कभी उस तरह महसूस ही नहीं किया.”

“तो बंदरिया तुम्हें कभी उत्तेजित नहीं करती थी जब कि तुम स्वयं बन्दर हो ?”

“हाँ, यह बिलकुल ठीक बात है. यह शर्मिंदगी की बात है, लेकिन यदि ईमानदारी से कहूँ तो मैं केवल मानव स्त्रियों से प्यार महसूस कर सकता था.”

मैं मौन रहा और अपना बियर का गिलास खाली कर दिया. मैंने कुरकुरे स्नैक्स का पैकेट खोला और मुट्ठी भर निकाल लिया. “यह तो वास्तविक समस्या में डाल सकने वाली बात थी, मैं और पियूँगा.”

“हाँ, निश्चय ही वास्तविक समस्या थी. मैं सब बातों के बाद भी एक बन्दर था, कोई तरीका नहीं था कि मानव स्त्रियाँ मेरी कामना का प्रत्युत्तर देतीं. साथ ही यह जेनेटिक्स के सिद्धांतों के विरुद्ध भी था.”

मैंने उसके आगे कहने की प्रतीक्षा की. बन्दर ने अपने कानों के पीछे कस कर रगड़ा और अंततः फिर कहने लगा.

“इसलिए मुझे एक और तरीका अपनी अतृप्त कामनाओं से मुक्ति के लिए ढूँढना था.”

“‘एक और तरीका’ से क्या तात्पर्य है तुम्हारा ?”

“हो सकता है तुम मेरा विश्वास न करो,” बन्दर ने कहा.  मैं कहता हूँ कि  तुम संभवतः मेरी बात का विश्वास नहीं करोगे. लेकिन एक निश्चित बिंदु पर, मैंने, जिन स्त्रियों को मैं पसंद करता था, उनके नाम चुराना शुरू कर दिया.”

“उनका नाम चुराना ?”

“ठीक सुना. मैं आश्वस्त नहीं हूँ कि क्यों, लेकिन ऐसा लगता है कि मैं इस सम्बन्ध में विशेष प्रतिभा के साथ पैदा हुआ हूँ. मैं ऐसा महसूस करता हूँ, मैं किसी का भी नाम चुरा सकता हूँ और उस नाम को अपना स्वयं का बना सकता हूँ.”

विभ्रांति के एक मकड़जाल ने मुझे घेर लिया.

“मैं आश्वस्त नहीं हूँ कि मैं तुम्हारी बात समझ पाया हूँ,” मैंने कहा. “जब तुम कह रहे हो कि तुम लोगों के नाम चुराते हो तो क्या इसका अर्थ यह है कि वे अपना नाम पूर्णतः खो देते हैं?”

“नहीं, वे अपना नाम पूरी तरह नहीं खोते हैं. मैं उनके नाम का एक अंश चुराता हूँ, एक छोटा टुकड़ा भर. लेकिन जब मैं वह अंश ले लेता हूँ, वह नाम कम सारवान रह जाता है, पहले से हल्का. जैसे जब सूर्य बादलों में छिप जाता है तो जमीन पर पड़ने वाली तुम्हारी छाया काफी बदरंग हो जाती है. और व्यक्ति के हिसाब से कहूँ तो वे  क्षरण के प्रति जागरूक नहीं भी हो सकते. वे बस यह अनुभूति कर सकते हों कि कोई चीज बुझी-बुझी सी है.”

“लेकिन कुछ स्पष्ट रूप से इस बात को पहचान जाते होंगे, है न ? कि उनके नाम का एक हिस्सा कहीं गुम हो गया था?”

हाँ, निश्चय ही. कई बार वे पाते हैं कि वे अपना नाम नहीं स्मरण कर पा रहे. स्पष्ट रूप से असुविधाजनक. वास्तव में समस्या खड़ी करने वाला, जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं. और हो सकता है वे यह भी न पहचान पाएँ कि उनका नाम क्या है. कुछ मामलों में वे एक तरह के  ‘परिचय के संकट’ से कष्ट उठाते हैं. और यह सब मेरी ग़लती है क्योंकि मैंने उस व्यक्ति का नाम चुरा लिया था. और यह सब मेरी ग़लती थी. मैं इस सम्बन्ध में बहुत खेद महसूस करता था. मैं अक्सर  दोषी अंतरात्मा का बोझ अपने कन्धों पर महसूस करता था. मैं जानता था कि ग़लत है, लेकिन मैं स्वयं को ऐसा करने से रोक नहीं पाता था. मैं अपनी हरकतों की माफ़ी नहीं चाह रहा,  मेरे भीतर का डोपामाइन मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर देता है. मानो मेरे भीतर से एक आवाज़ कह रही हो, ‘आगे बढ़ो, नाम चुराओ. ऐसा नहीं है कि यह गैर क़ानूनी अथवा ऐसा ही कुछ है.’”

मैंने अपनी बाहें मोड़ ली और उस बन्दर का अध्ययन किया.  डोपामाइन? अंततः मैंने कहा, “और नाम केवल उन्हीं औरतों के होते थे जिन्हें तुम प्यार करते थे अथवा यौनेच्छावश जिन्हें चाहते थे.  क्या मैंने ठीक समझा ?”

“बिलकुल ठीक. मैं यूँ ही किसी का भी नाम नहीं चुराता.”

“कितने नाम तुमने अब तक चुराए हैं?”

अपने चेहरे पर गंभीर भाव लिए बन्दर ने अपनी उँगलियों पर गिना. जब वह गिन रहा था, वह कुछ बड़बड़ा रहा था.  उसने ऊपर देखा, “कुल सात. मैंने सात महिलाओं के नाम चुराए हैं.”

यह बहुत अधिक था अथवा नहीं? कौन कह सकता था ?

“तुम ऐसा कैसे करते हो ? मैंने पूछा. यदि तुम्हें बताने में कोई आपत्ति न हो ?”

“यह मुख्यतः इच्छा शक्ति पर निर्भर है. एकाग्रता की शक्ति, मानसिक ऊर्जा. लेकिन यही पर्याप्त नहीं है. मुझे किसी ऐसी चीज की आवश्यकता होती है जिस पर महिला का नाम वास्तव में लिखा हो. कोई परिचय पत्र आदर्श है. ड्राइविंग लाइसेंस, छात्र का परिचय पत्र, बीमा कार्ड, या पासपोर्ट. इसी तरह की चीजें. एक नाम पट्टिका भी चलेगी. जो भी हो, मुझे इस तरह की किसी चीज की आवश्यकता होती है. सामान्यतः चुराना एकमात्र विकल्प होता है. मुझे लोगों के कमरों में, जब वे बाहर गए हों, घुसने में पर्याप्त दक्षता प्राप्त है. मैं वहाँ किसी ऐसी चीज की तलाश करता हूँ जिस पर उनका नाम लिखा हो और उसे ले लेता हूँ.”

“तो तुम इच्छा शक्ति के साथ उस चीज, जिस पर महिला का नाम लिखा हो, का प्रयोग नाम चुराने के लिए करते हो ?”

“बिलकुल ठीक. मैं लम्बे समय तक उस चीज पर लिखे नाम को ताकता रहता हूँ, अपनी भावनाएं फोकस करते हुए, जिस को मैं प्यार करता हूँ उसका नाम अवशोषित करते हुए. इसमें बहुत समय लगता है और यह मानसिक तथा शारीरिक दोनों तरह से बहुत थकाऊँ कार्य है. मैं पूरी तरह इसमें डूब जाता हूँ और किसी प्रकार उस महिला का एक अंश मेरा हिस्सा बन जाता है. और मेरा प्रेम और मेरी कामना, जिसके लिए अभी तक कोई बहिर्गामन की राह नहीं थी, सुरक्षित रूप से संतुष्ट हो जाती है.”

“तो इसमें कुछ भी शारीरिक नहीं है ?”

“बन्दर ने तेजी से सिर हिलाया. “मैं जानता हूँ मैं एक निकृष्ट बन्दर हूँ लेकिन मैं कभी कुछ अवांछित नहीं करता. मैं जिस स्त्री से प्यार करता हूँ उसके नाम को अपना एक अंश बना लेता हूँ- यही मेरे लिए बहुत है. मैं स्वीकार करता हूँ कि यह थोड़ा निकृष्ट है लेकिन यह पूर्णतः शुद्ध स्वर्गिक प्रेम का कृत्य भी है. मैं बस उस नाम के प्रति अपने भीतर गुप्त रूप से अत्यधिक प्रेम रखता हूँ. किसी घास के मैदान के ऊपर बहते हवा के मंद झोंके की भांति.”

“हूँ,” मैंने प्रभावित होते हुए कहा. “मैं सोचता हूँ तुम उसे रोमांटिक प्यार का श्रेष्ठतम रूप भी कह सकते हो.”

“सहमत. लेकिन यह एकाकीपन का भी श्रेष्ठतम रूप है. एक सिक्के के दो पहलुओं की भांति. दोनों अतियाँ एक दूसरे से युग्मित होती हैं और कभी भी अलग नहीं की जा सकतीं.”

हमारा वार्तालाप यहाँ रुक गया और बन्दर और मैं चुपचाप काकीपी और सूखी स्क्विड खाते हुए अपनी-अपनी बियर पीते रहे.

“क्या तुम ने हाल में किसी का नाम चुराया है ?” मैंने पूछा.

बन्दर ने अपना सिर हिलाया. उसने अपनी बाँह के कुछ कड़े बालों को पकड़ा, मानो सुनिश्चित करना चाहता हो कि वह एक वास्तविक बन्दर था. “नहीं हाल में मैंने किसी का नाम नहीं चुराया है. इस कस्बे में आने के पश्चात, मैंने मन बना लिया कि इस तरह के दुर्व्यवहार को पीछे छोड़ देना चाहिए. इस बात का आभार कि इसके कारण इस तुच्छ बन्दर की आत्मा को कुछ हद तक शांति मिल गयी है. मैं उन सात स्त्रियों के नाम अपने हृदय में छिपाये एक हलचलविहीन शांत जीवन जीता हूँ.”

“मुझे यह सुन कर ख़ुशी हुई,” मैंने कहा.

“मैं समझता हूँ मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात होगी, लेकिन मैं सोचता हूँ कि क्या तुम कृपा कर के मुझे प्रेम के विषय में अपने विचार प्रगट करने की अनुमति दोगे ?”

“निश्चित रूप से,” मैंने कहा.

बन्दर ने कई बार जोर-जोर से पलकें झपकायीं. उसकी घनी बरौनियाँ हवा में हिलते ताड़ के पत्तों की भांति ऊपर नीचे हिलीं. उसने एक गहरी धीमी साँस भरी, उस तरह की साँस जैसी एक लम्बी कूद का खिलाड़ी दौड़ने से पहले भरता है.

“मेरा विश्वास है कि प्रेम जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक ईंधन है. किसी दिन यह प्रेम समाप्त हो सकता है. थवा हो सकता है कभी भी समाप्त नहीं हो. लेकिन यदि प्रेम मंद भी पड़ जाये, यदि यह बराबर न भी हो सके, आप तब भी किसी के प्रेम में पड़ने की स्मृति को संजो कर रख सकते हैं. यह तब भी हृदय में ऊष्मा का एक मूल्यवान स्रोत रहेगा. बिना इस ऊष्मा के स्रोत के किसी का हृदय- एक बन्दर का ह्रदय भी – एक बुरी तरह ठंडे बियाबान में बदल जायेगा. एक ऐसी जगह जहाँ सूर्य की एक भी किरण नहीं पहुंचती, जहाँ शांति के जंगली फूलों, आशा के वृक्षों के उगने की कोई संभावना नहीं रहेगी. यहाँ मेरा हृदय है, जिसमें मैं उन सात सुन्दर स्त्रियों के नाम जिन्हें मैंने प्रेम किया, छिपाये हुए हूँ.” बन्दर ने अपनी बालों से भरी छाती पर अपनी हथेली रखी. “मेरी योजना इन स्मृतियों को ठंडी रातों में ईंधन के स्रोत के रूप में प्रयोग करने की है, अपने उस निजी जीवन को उष्मित रखने के लिए जो जीने के लिए शेष है.”

बन्दर फिर हँसा और अपना सिर धीमे-धीमे कई बार हिलाया.

“यह इस बात को रखने का विचित्र तरीका है, क्या नहीं?” उसने कहा. “निजी जीवन. यह देखते हुए कि मैं एक बन्दर हूँ, मनुष्य नहीं. ही ही!”

उस समय रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे थे जब हमने बियर की दो बड़ी बोतलें समाप्त की. “मुझे जाना चाहिए,” बन्दर ने कहा. “मुझे इतना अच्छा अनुभव हो रहा है कि मुझे डर है कि यह मेरे मुँह से छलक-सा रहा है. क्षमा कीजियेगा.”

“नहीं मुझे यह एक रुचिकर कहानी लगी,”  मैंने कहा. यद्यपि हो सकता है ‘रुचिकर’ सही शब्द न हो. मेरा मतलब है, साथ-साथ बियर पीना और एक बन्दर से बात करना अपने आप में एक प्यारा अनुभव है. इसी से जुड़ा यह तथ्य भी कि यह विशिष्ट बन्दर ब्रुकनर का संगीत पसंद करता था और स्त्रियों के नाम चुराता था क्योंकि वह उनके प्रति सेक्स की कामना (अथवा संभवतः प्रेम ) के कारण आकृष्ट था और ‘रुचिकर’ इसे पूरी तरह वर्णित नहीं करता. यह सबसे अविश्वसनीय बात थी जो मैंने कभी सुनी थी. किन्तु मैं बन्दर की भावनाओं को जितनी आवश्यकता थी उससे अधिक और ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था, इसलिए मैंने यह अधिक शांत और निष्क्रिय शब्द चुना.

जब हमने विदा ली,  मैंने बंदर को एक हजार येन टिप में दी. “यह बहुत नहीं है,” मैंने कहा, लेकिन अपने खाने के लिए कोई अच्छी चीज खरीद लेना.”

पहले तो बन्दर ने लेने से इनकार कर दिया किन्तु मेरे इसरार करने पर अंततः उसने स्वीकार कर लिया. उसने नोट सावधानी से मोड़ा और उसे अपनी हाफ पेंट की जेब में रख लिया.

“आपकी बड़ी कृपा है,” उसने कहा. आपने मेरी बकवास जीवन कथा सुनी, मुझे बियर पिलाई और अब यह उदारता.  मैं कह नहीं सकता मैं इसकी कितनी प्रशंसा करूँ.”

बन्दर ने खाली बोतलें और गिलास ट्रे में रखे और उसे कमरे से बाहर ले गया.

 

तीन)

अगली सुबह मैंने सराय से विदा ली और टोक्यो वापस चला आया. रिसेप्शन पर खूसट बुड्ढा, जिसके बाल और भौंहें नहीं थी दिखाई नहीं पड़ा, न ही नाक की समस्या वाली बिल्ली. उनकी जगह एक मोटी अधेड़ महिला थी और जब मैंने कहा कि मैं पिछली रात की बियर की बोतलों के लिए जो भी अतिरिक्त भुगतान करना हो, करना चाहूँगा, उसने गर्मजोशी से कहा कि मेरे बिल में और कोई अतिरिक्त चार्जेज नहीं थे. “हमारे पास यहाँ बस कैन्ड बियर होती है,” उसने जोर दे कर कहा. “हम कभी भी बियर की बोतलें नहीं उपलब्ध कराते.”

एक बार फिर मैं संभ्रम में पड़ गया. मैंने महसूस किया जैसे थोड़ी-थोड़ी वास्तविकताएँ और अवास्तविकताएँ रह- रह कर स्थान परिवर्तित कर रही थी. लेकिन मैंने निश्चित रूप से बन्दर के साथ सपोरो बियर की दो बोतलें पी थी और उसकी जीवन कथा सुनी थी.

मैंने बन्दर के मुद्दे पर प्रौढ़ महिला से बात करनी चाही लेकिन फिर ऐसा न करने का निर्णय लिया. हो सकता है बन्दर का वास्तव में कोई अस्तित्व ही न हो और यह सब बस एक भ्रम रहा हो, गर्म फव्वारे में देर तक नहाने से अचार बन चुके दिमाग की उपज मात्र. अथवा जो कुछ मैंने देखा वह एक विचित्र, वास्तविक सा लगाने वाला स्वप्न रहा हो. यदि मैं ऐसा कुछ कहता, “आपके यहाँ जो एक वृद्ध बन्दर कर्मचारी है जो बोल सकता है ?” चीजें अलग दिशा में जा सकती थीं और सबसे बुरी स्थिति में, वह सोचती कि मैं पागल था. बहुत संभव था कि बन्दर अभिलेखों से बाहर  एक कर्मचारी हो और सराय यह बात सार्वजनिक रूप से, टैक्स कार्यालय अथवा स्वास्थ्य विभाग के सतर्क हो जाने के डर से, स्वीकार न करें.

ट्रेन में घर आते समय जो कुछ बन्दर ने मुझे कहा था उसे मानसिक रूप से मैंने पुनः दोहराया. मैंने हर विवरण को एक नोटबुक में, जिसमें मैं काम किया करता था, जितने बेहतर तरीके से उसे स्मरण कर सकता था, लिख डाला, यह सोचते हुए कि जब मैं टोक्यो पहुँच जाऊंगा मैं सारी घटना आरम्भ से अंत तक विस्तार से लिखूंगा.

यदि बन्दर का सच में अस्तित्व था- और  यही एक मात्र तरीका था जिस ढंग से मैं इस बात को देख सकता था- तो मैं पूरी तरह निश्चित नहीं था कि जो कुछ उसने बियर पीते हुए कहा था उस में से मुझे कितना स्वीकार करना चाहिए. उसकी कहानी के साथ निष्पक्षता से न्याय करना बहुत कठिन था. क्या महिलाओं के नाम चुराना और उसे अपने लिए रख लेना संभव था? क्या यह कोई विशिष्ट क्षमता थी जो मात्र शिनागावा बन्दर को प्राप्त थी? हो सकता है बन्दर कोई मानसिक बीमार झूठा रहा हो. कौन कह सकता था? स्वाभाविक रूप से, मैंने कभी ऐसे बन्दर के बारे में नहीं सुना था जिसे माइथोमेनिया (झूठ बोलने की बीमारी) हो लेकिन यदि एक बन्दर मनुष्यों की भाषा उतनी अच्छी तरह बोल सकता था, तो यह बात उसके सम्बन्ध में संभावना से परे नहीं थी कि वह आदतन झूठा हो.

मैंने अपने काम के सिलसिले में ढेरों लोगों के साक्षात्कार लिए थे और यह सूंघ लेने के सम्बन्ध में बहुत बेहतर हो गया था कि किस की बात पर विश्वास किया जा सकता था किसकी नहीं. जब कोई थोड़ी देर बात करता है, तो आप कुछ ऐसे संकेत और चिन्ह पकड़ सकते हैं और स्वभावतः यह महसूस कर लेते हैं कि वह व्यक्ति विश्वसनीय है अथवा नहीं. और मुझे ऐसा महसूस नहीं हुआ था कि जो कुछ शिनागावा बन्दर ने कहा था वह एक बनाई हुई कहानी थी. उसकी आँखों के भाव और चेहरे की भंगिमा, जिस तरह वह चीजों के बारे में थोड़ी- थोड़ी देर में  विचार कर रहा था,  उसका बात करते समय रुकना, उसकी हरकतें, उसके शब्दों का चयन- उसके बारे में कुछ भी बनावटी नहीं लग रहा था. और सबसे परे, उसकी स्वीकारोक्ति में पूरी, कुछ हद तक पीड़ादायक ईमानदारी थी.

मेरी आरामदायक अकेली यात्रा समाप्त हो गयी थी और मैं शहर की रोजमर्रा की भागमभाग में वापस आ चुका था. तब भी जब मेरे पास कोई काम से सम्बंधित व्यस्तता नहीं होती थी, चूंकि मेरी उम्र बढ़ रही थी, मैं स्वयं को किसी कारण पहले की तुलना में अधिक व्यस्त पाता था. और समय दुखद रूप से तेजी से भागता प्रतीत होता था. अंततः मैंने शिनागावा बन्दर के बारे में किसी से चर्चा नहीं की, न ही उसके बारे में कुछ लिखा. कोशिश क्यों करना जब कोई विश्वास ही नहीं करता? जब तक कि मैं कोई साक्ष्य न पेश कर देता- साक्ष्य कि बन्दर का सचमुच अस्तित्व था- लोग कहते कि मैं पुनः कहानी गढ़ रहा था. और यदि मैं उसके बारे में कहानी लिखता तो कहानी में स्पष्टतः फोकस या मुद्दे की कमी होती. मैं अपने संपादक को उलझन से देखते और यह कहते अच्छी तरह कल्पना कर सकता था कि “मुझे यह पूछने में हिचकिचाहट हो रही है क्योंकि तुम लेखक हो, लेकिन आखिर इस कहानी का कथानक क्या है ?”

कथानक?  कह नहीं सकता था कि कोई था. यह मात्र एक बूढ़े बन्दर के बारे में था जो मनुष्यों की भाषा बोलता है, जो गुनमा जनपद के एक छोटे से कस्बे में गर्म फव्वारे में अतिथियों की पीठ रगड़ता है, जो ठंडी बियर पसन्द करता है, महिलाओं के प्रेम में पड़ जाता है, और उनके नाम चुराता है. इसमें कथानक कहाँ था ? अथवा कोई नैतिक सन्देश ?

और जैसे-जैसे समय बीता, गर्म फव्वारे की स्मृतियाँ धुंधली पड़ने लगीं. चाहे जितनी भी जीवंत स्मृतियाँ हों, समय को नहीं जीत सकतीं.

लेकिन अब, पाँच साल बाद, मैंने उन नोट्स के आधार पर, जो मैंने वापस लौटते समय तब बनाये थे, इसके बारे में लिखने का निर्णय लिया. यह इसलिए कि हाल फिलहाल में कुछ ऐसा घटित हुआ था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था. यदि वह घटना न हुई होती, तो हो सकता है मैं यह न लिख रहा होता.

मेरी काम से सम्बंधित एक पूर्वनिर्धारित बैठक अकासाका होटल के कॉफी लाउंज में थी. जिस व्यक्ति मैं मिल रहा था वह यात्रा सम्बन्धी एक पत्रिका की संपादक थी. एक बहुत आकर्षक महिला, तीस के आसपास की, छोटे कद की छरहरी स्त्री, जिसके बाल लम्बे थे, रंग आकर्षक था और आंखें बड़ी और आकर्षित करने वाली थीं. वह एक योग्य संपादक थी. और अभी भी अविवाहित थी. हमने कई बार एक साथ काम किया था और हमारी आपसी समझ बेहतर थी. हमारे काम की बातें निपटा लेने के पश्चात, हम आराम से बैठ कर कॉफी पीते हुए बातें करने लगे थे.

उसका सेलफोन बजने लगा और उसने मेरी ओर क्षमा प्रार्थना के भाव से देखा. मैंने उसे कॉल लेने का इशारा किया. उसने कॉल करने वाले का नंबर देखा और उत्तर दिया. किसी आरक्षण के सम्बन्ध में, जो उसने किया था, बात होती महसूस हुई. किसी रेस्त्रां में शायद अथवा किसी होटल में या फिर किसी उड़ान के लिए. इसी तरह का कुछ. उसने कुछ देर बात की, अपना पॉकेट प्लानर ढूँढा फिर उसने मुझ पर एक परेशान-सी नजर डाली.

“मुझे माफ़ करना,” उसने मुझ से धीमी आवाज़ में कहा, वह हाथ से फोन ढके हुए थी. “यह एक विचित्र प्रश्न है मैं जानती हूँ,  लेकिन मेरा नाम क्या है ?”

“मैंने आश्चर्य से गहरी साँस ली, इतने सामान्य तरीके से जितना मैं कर सका. मैंने उसे उसका पूरा नाम बताया.  उसने सिर हिलाया और फोन के दूसरी तरफ वाले व्यक्ति को सूचना प्रदान कर दी. फिर उसने फोन बंद कर दिया और पुनः मुझ से माफ़ी मांगी.

“मैं उस सब के लिए क्षमाप्रर्थी हूँ. एकाएक मैं अपना नाम नहीं स्मरण कर सकी. मैं बहुत शर्मिंदा हूँ.”

“क्या ऐसा अक्सर होता है ?” मैंने पूछा.

मुझे लगा उसे हिचकिचाहट-सी हुई लेकिन अंततः उसने सिर हिलाया. “हाँ, आजकल यह अक्सर हो रहा है. मैं बस अपना नाम नहीं स्मरण कर पाती. ऐसा लगता है जैसे मेरे सामने से कुछ गायब हो जाता है या फिर ऐसा ही कुछ.”

“क्या तुम और चीजें भी भूल जाती हो? जैसे कि तुम अपना जन्मदिन नहीं याद कर पाती अथवा अपना टेलीफोन नंबर या फिर पिन नंबर?”

“उसने अपना सिर निर्णयात्मक रूप से हिलाया. नहीं, बिलकुल नहीं. मेरी याददाश्त सदैव से अच्छी रही है.  मुझे अपने सभी मित्रों के जन्मदिन भी स्मरण हैं. मैंने और किसी का नाम भी कभी विस्मृत नहीं किया, एक बार भी नहीं. लेकिन फिर भी, कभी-कभी मैं अपना स्वयं का नाम नहीं स्मरण कर पाती. मैं इसे नहीं सोच पाती. एक दो मिनट पश्चात मेरी स्मृति लौट आती है लेकिन वे एक दो मिनट बहुत असुविधाजनक होते हैं, और मैं परेशान हो जाती हूँ. यह ऐसे हैं मानो मैं अब स्वयं मैं नहीं रही हूँ. क्या तुम्हारे विचार से यह अल्ज़ाइमर की शुरू होने के प्रारंभिक लक्षण हैं?”

मैंने गहरी साँस ली. “चिकित्सकीय रूप से तो मैं नहीं जानता, लेकिन इसकी शुरुआत कब हुई, तुम्हारा यूँ एकाएक अपना नाम भूल जाने की ?”

उसने ऑंखें सिकोड़ी और इस सम्बन्ध में सोचा. “मेरे विचार से लगभग छह माह पूर्व. मुझे याद है यह तब हुआ जब मैं वसंत में फूलों की नयी फसल का आनंद लेने सिमेज़ू गयी थी. तब पहली बार ऐसा हुआ था.”

“यह पूछना विचित्र लगेगा लेकिन क्या तब तुम्हारी कोई चीज खो गयी थी ? किसी तरह का परिचय पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, कोई बीमा कार्ड ?”

उसने अपने होंठ गीले किये, कुछ देर सोचा फिर जवाब दिया. “जानते हो, अब जब तुम ने जिक्र किया है तो याद आया, मेरा ड्राइविंग लाइसेंस वहाँ खो गया था. वह लंच का समय था और मैं पार्क की एक बेंच पर बैठी हुई थी, थोड़ा सुस्ताती हुई, और मैंने अपना हैण्ड बैग ठीक सामने वाली बेंच पर रख दिया था. मैं कॉम्पैक्ट से अपनी लिपस्टिक ठीक कर रही थी और जब मैंने वापस देखा तो मेरा हैण्ड बैग जा चुका था. मैं कुछ समझ नहीं सकी. मैंने बस एक क्षण के लिए दृष्टि हटाई थी और मैंने किसी को आसपास महसूस भी नहीं किया था और न ही कोई पदचाप सुनी थी. मैंने आसपास देखा लेकिन मैं वहाँ अकेली थी.  वह एक शांत  पार्क था, और मैं आश्वस्त हूँ कि यदि कोई मेरा बैग चोरी करने के लिए आया होता तो मैंने उसे जरूर देखा होता.”

मैंने उसके आगे बताने की प्रतीक्षा की.

“लेकिन केवल वही विचित्र नहीं था. उसी शाम को मुझे पुलिस की एक कॉल मिली कि उन्हें मेरा हैण्ड बैग मिला था. यह पार्क के पास एक छोटे से पुलिस स्टेशन के बाहर रखा था. नगदी उसमें ज्यों की त्यों थी और क्रेडिट कार्ड, एटीएम कार्ड और सेलफोन भी. सब कुछ उसमें एकदम अनछुआ रखा था. केवल मेरा ड्राइविंग लाइसेंस गायब था. पुलिस वाला भी बहुत आश्चर्यचकित था. कौन है जो नगदी भी नहीं लेता बस ड्राइविंग लाइसेंस लेता है और बैग पुलिस स्टेशन के ठीक बाहर रख जाता है.”

मैंने फिर गहरी साँस ली लेकिन कुछ कहा नहीं.

“यह मार्च के अंतिम दिन थे. मैं सीधे परिवहन विभाग के कार्यालय में गयी और उन से नया ड्राइविंग लाइसेंस जारी करवा लिया. पूरी घटना काफी विचित्र थी लेकिन सौभाग्य से कोई नुकसान नहीं हुआ था.”

“सिमेज़ू शिनागावा में है न ?”

“बिलकुल ठीक. यह हिगाशिवोई में है. मेरी कंपनी ताकानावा में है इसलिए वहाँ टैक्सी से जल्दी पहुंचा जा सकता है.” उसने कहा. उसने मुझे संदेहास्पद नज़रों से देखा. “क्या तुम सोचते हो कि इन बातों में कोई सम्बन्ध है? मेरे अपना नाम न स्मरण कर पाने और मेरे ड्राइविंग लाइसेंस के खो जाने में ?”

मैंने तेजी से सिर हिलाया. मैं एकदम से शिनागावा बन्दर की कहानी भी बीच में नहीं ला सकता था.

“नहीं, मैं नहीं समझता कि इनमें कोई सम्बन्ध है,” मैंने कहा. “यह बात बस यूँ ही मेरे दिमाग में आ गयी. क्यों कि इससे तुम्हारे नाम का सम्बन्ध है.”

वह संतुष्ट हुई सी नहीं लगी. मैं जानता था की यह खतरनाक था लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रश्न अभी रहता था जो मुझे पूछना था.

“तुमने इस दौरान अपने आसपास कोई बन्दर देखा है?”

“बन्दर? उसने पूछा. “तुम्हारा मतलब जानवर से है?”

‘हाँ, वास्तविक, जिन्दा बन्दर,” मैंने कहा.

उसने अपना सिर हिलाया. “मैं नहीं समझती कि मैंने वर्षों से कोई बन्दर देखा है. न किसी चिड़ियाघर में, न कहीं और.”

क्या शिनागावा बन्दर फिर से अपने काम में लग गया था? अथवा कोई और बन्दर था जो अपराध करने के लिए उसी का तरीका अपना रहा था ? (कोई प्रतिलिपि बन्दर?) अथवा कुछ और था, किसी बन्दर के अलावा, जो यह कर रहा था ?”

मैं वास्तव में यह नहीं सोचना चाहता था कि शिनागावा बन्दर नाम चुराने के लिए वापस आ गया था. उसने मुझे काफी गंभीरता से कहा था कि उसके भीतर छिपाये गए सात महिलाओं के नाम बहुत थे और यह कि वह यहाँ से बाहर उस छोटे से फव्वारों वाले कस्बे में अपने शेष वर्ष शांति से बिताता बहुत प्रसन्न था. और वह गंभीर लग रहा था. लेकिन हो सकता है बन्दर को कोई पुरानी मनोवैज्ञानिक बीमारी हो, एक मात्र कारण जिससे वह स्वयं पर नियंत्रण न रख सकता हो. और हो सकता है उसकी बीमारी और उसका डोपामाइन उसे ऐसा करने हेतु प्रेरित कर रहे हों. और संभवतः यह सब चीजें उसे उसके पुराने इलाके शिनागावा में ले आयी हों, उसके भूतपूर्व घातक निवास में.

हो सकता है, मैं स्वयं  भी कभी ऐसी कोशिश करूँ. जिन रातों में नींद नहीं आती उनमें यह विचित्र विचार मेरे मस्तिष्क में कभी-कभी आता है. मैं किसी महिला का, जिसे मैं प्रेम करता हूँ, परिचय पत्र अथवा नाम पट्टिका झटक लूंगा, उस पर लेसर की तरह फोकस करूँगा, उसका नाम अपने भीतर खींच लूंगा और उसका एक अंश स्वयं में रखूँगा, बस अपने लिए. यह कैसा महसूस होगा?

नहीं, यह कभी घटित नहीं होगा. मुझे हाथ की सफाई में कभी महारत नहीं हासिल थी और मैं कभी ऐसी कोई चीज जो दूसरे की हो चुरा पाने में सफल नहीं होऊंगा. तब भी नहीं जब उस चीज का कोई भौतिक रूप न हो और उसे चुराना कानून के विरुद्ध न हो.

चरम प्यार, चरम एकाकीपन. तब से हमेशा, जब भी मैं ब्रुकनर की कोई सिम्फनी सुनाता हूँ,  मैं शिनागावा बन्दर के निजी जीवन के बारे में विचार करता हूँ.  गर्म जलस्रोतों वाले उस छोटे से कस्बे में, एक खंडहर होती सराय की दुछत्ती में, एक पतले से बिस्तर पर पड़े एक बूढ़े बन्दर का चित्र मेरी आँखों में उभरता है. और मैं स्नैक्स के बारे में सोचता हूँ- काकीपी और सूखी स्क्विड- जिसका हमने आनंद लिया था जब हम दीवार से लगे साथ-साथ बियर पी रहे थे.

उसके बाद से मैं यात्रा सम्बन्धी पत्रिका की उस खूबसूरत सम्पादक से नहीं मिला था इसलिए मुझे पता नहीं है कि उसके नाम के साथ उसके बाद क्या हुआ. मैं आशा करता हूँ कि इससे उसे कोई वास्तविक कठिनाई नहीं हुई होगी. आख़िरकार, वह बिलकुल निर्दोष थी. उसकी कोई ग़लती नहीं थी. मैं इस सम्बंध में बुरा महसूस करता हूँ लेकिन फिर भी मैं स्वयं आगे आकर उसे शिनागावा बंदर के बारे में नहीं बता सकता.

___________________

श्रीविलास सिंह
०५ फरवरी १९६२
(उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के गाँव गंगापुर में)

दो कविता संग्रह “कविता के बहाने” और ” रोशनी के मुहाने तक” प्रकाशित.कहानी संग्रह “सन्नाटे का शोर” और अनूदित कहानियों का संग्रह ” आवाज़ों के आर-पार प्रकाशित.

नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद “शब्द शब्द आकाश ” शीघ्र प्रकाश्य
sbsinghirs@gmail.com

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Comments 10

  1. Swapnil Srivastava says:
    6 months ago

    बहुत अच्छी कहानी और अनुवाद स्वाभाविक है

    Reply
  2. राजकुमार राकेश says:
    6 months ago

    प्रिय अरुण देव और श्रीविलास सिंह जी,
    आप दोनों को साधुवाद इन दो कहानियों को पढ़वाने के लिए।
    इस कहानी ने पिछली कहानी के तमाम संदर्भ खोलकर रख दिये हैं।
    पहले पाठ में पिछली कथा तनिक जटिल महसूस हो रही थी, किंतु जैसे ही इस दूसरी कथा को पढ़ा सारी जटिलताएं एकाएक झर गईं।
    इनके संयुक्त पाठ से लग रहा था जैसे मैं अपने बचपन में लौटकर घर के चूल्हे में जलती आग तापता हुआ और अपने हाथों में मक्का की रोटियाँ पकाती अपनी दादी से उस युग की लोककथाऐं सुन रहा हूँ।
    उस अबोध वय में ऐसे कितने ही क़िस्से मैंने दादी के मुख से सुने थे।
    कहानी की इस शैली ने अभिभूत किया।
    राजकुमार राकेश 22. 11. 2924

    Reply
  3. अशोक अग्रवाल says:
    6 months ago

    दूसरी कहानी पहली कहानी के रहस्यों को बखूबी अनावृत्त करती है। अपने कथ्य और शिल्प में बेजोड़ कहानी।
    इन कहानियों के अनुवादक श्रीविलास सिंह और आपको बहुत-बहुत बधाई।

    Reply
  4. Sawai Singh Shekhawat says:
    6 months ago

    हारुकी मुराकामी की यह कहानी उनकी पिछली कहानी’शिनागावा बन्दर’ का विस्तार जैसी है।इसे उन्होंने ‘शिनागावा बन्दर की स्वीकारोक्तियां’ कहा है।यहाँ फिर वे प्राणी मनोविज्ञान की अंतरंग पर्तों के भीतर पैंठ कर उनकी गहरी पड़ताल करते हैं।प्रेम का जादुई सम्मोहन और उसके आगे टूटती समस्त नैतिक विवशताएँ।एक बन्दर जो केवल सात सुंदर स्त्रियों तक महदूद रहने की रात प्रतिज्ञा करता है,उसे लेखक वर्षो बाद फिर से एक सुंदर स्त्री का नाम चुराने की कोशिश में मुब्तला पाता है।लेकिन वह इस बारे में कुछ भी न कर पाने की असमर्थता जताकर नियति की तरह स्वीकारता हुआ पाता है।मुराकामी यहाँ जैसे जीवन को किसी तिलस्मी खोह से खोजते और पाते हैं।श्रीविलास सिंह जी का अनुवाद वाक़ई मूल सा है।

    Reply
  5. शीला रोहेकर says:
    6 months ago

    श्रीविलास सिंह जी की अनूदित यह कहानी अद्भुत है। कहानी मानव जीवन के भीतरी छिपे मनोभाव तो खोलती ही है लेकिन साथ साथ कितने ही अनकहे पहलुओं को उजागर करती है। सबसे मुखर भाव प्रेम और एकाकीपन का जो अटूट किंतु असहाय व अनकहा रिश्ता है वह बेहद दबे पाँव सामने आता है ।
    निश्चय ही ‘शिनागावा का बंदर’ एक यादगार कहानी है ।
    अरुण जी ,आपको ऐसी बेहतरीन कहानी उपलब्ध करवाने के लिए धन्यवाद ।

    Reply
    • SHRI BILAS SINGH says:
      6 months ago

      हार्दिक आभार।

      Reply
  6. धनंजय सिंह says:
    6 months ago

    शिनागावा का बंदर एक बहुत ही रोचक कहानी लगी। एक बंदर के माध्यम से एकाकी इंसान के अंदर अजस्र रूप से बहती प्रेम की भावना एवं उसके मनोविज्ञान को बहुत ही अद्भुत तरीके से लेखक ने अभिव्यक्ति प्रदान किया है।पाठक आखिर तक बंधा रहता है कहानी से।यह लेखक के साथ अनुवादक की भी सफलता है।प्राय:अनूदित साहित्य में ऐसी प्रवाहमयता का अभाव सा रहता है,जिसके कारण पाठक ऊबकर कहानी/उपन्यास को बीच में ही छोड़ने को बाध्य हो जाता है। ‘ समालोचन ‘ के माध्यम से हिंदी पाठक को वैश्विक साहित्य से समृद्ध करने के लिए आपके प्रति आभार।

    Reply
  7. Kamini Chaturvedi says:
    6 months ago

    प्रेम और एकाकीपन के मनोभावों को व्यक्त करती कहानी के लिए साधुवाद ।

    Reply
  8. पवन करण says:
    6 months ago

    जितनी बढ़िया कहानी उतना ही बढ़िया अनुवाद। वाह।
    शिनागावा का बंदर।

    Reply
  9. Agjl says:
    6 months ago

    अविश्वसनीय फिर भी अति विश्वसनीय
    दिलचस्प

    Reply

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समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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