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समालोचन

Home » गांधी जी और उनकी सांपदानी: बोधिसत्व

गांधी जी और उनकी सांपदानी: बोधिसत्व

कवि बोधिसत्व की इस कविता में गांधी जी से जो सवाल पूछे गये हैं, अगर आज वह होते तो जैसी उनकी आदत थी कुछ समय लेते और हो सकता है शब्दों से नहीं अपने कर्म से उत्तर देते. मनुष्य की सभ्यता का इतिहास साथ-ही-साथ बर्बरता का भी इतिहास है. जैसे-जैसे वह विकसित हुआ उसकी हिंसा का दायरा बढ़ता गया. आज जिसे सबसे अधिक विकसित समझा जाता है, उसके पास सबसे अधिक विनाशकारी हथियार हैं. जिसे हम न्यूनतम हिंसा समझते हैं वह भी पीड़ित की तरफ से देखा जाए तो बहुत-बहुत है. बोधिसत्व अपनी कविताओं में आख्यान जिस तरह से रखते हैं उससे उनकी कविताओं की पहुँच बढ़ जाती है वह ख़ालिस कविता न रहकर चेतना के अन्य दरवाज़ों पर भी दस्तक देने लगती है. प्रस्तुत है यह कविता

by arun dev
October 4, 2023
in कविता
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गांधी जी और उनकी सांपदानी: बोधिसत्व
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गांधी जी और उनकी सांपदानी
बोधिसत्व

गांधी जी सांप को मारते नहीं थे
वे सांप को पकड़ कर दूसरी जगह पहुंचा देते थे.

गांधी जी सांप को पकड़ने के लिए
बनवाए थे एक सांपदानी
सांपों की सुविधा को देखते हुए बनाया गया था उसे
वह सांपदानी बड़ी थी
और सांस लेने और फैल कर रहने और फन उठाकर फुफकारने योग्य जगह थी उसमें!

सांप पकड़ कर रखा जाता उस सांप दानी में!

गांधी जी के पास सांप पकड़ने के अस्त्र थे
जिसमें सांप को फंसा कर गांधी जी
सांपदानी तक लाते थे!

कोई भी कह सकता है यह भी तो हिंसा है
सांप को पकड़ना फिर बंद करना
किसी लकड़ी के डिब्बे में!

एक स्वायत्त को सीमित करना भी तो हिंसा हुई?

गांधी सांपों को मारने के खिलाफ थे
वे अंग्रेजों की हत्या के भी ख़िलाफ़ थे
वे खुद की हत्या तक जाने के लिए राजी थे
किसी और को मारने की जगह!

गांधी जान लेते कि गोडसे उनको गोली मारने वाला है तो भी वे अपने बचाव में उसे गोली नहीं मारते!

गांधी जानते थे सांप में विष होता है
उसके काटने से मर सकता है कोई भी
तो भी वे सांप के दांत तोड़ने के भी विरुद्ध थे!

वे सांप के विरुद्ध विष उगलने के भी विरुद्ध थे!
उन्होंने ऐसे प्रश्न नहीं किए सांप से कि
उसने विष कहाँ से पाया
और डसना किससे सीखा?

गांधी जानते थे सांप के पास कोई भाषा नहीं
इसलिए सांप से किसी उत्तर की आशा नहीं!

वह सांपदानी मैंने देखी गांधी जी के
सेवा ग्राम आश्रम में.

गांधी जी विष वाले सांप को रखते थे
अपने कमरे में
दूसरी जगह छोड़ने के पहले!

गांधी जी होते तो उनसे पूछता!
सांप कहाँ जाएँ
कहाँ जाए चूहे
सूअर और कुत्ते और खुरापाती बिल्लियाँ
और चमगादड़ और शेर
बारहसिंघे और चीतल और नील गायें!
वह छिपकली वह गौरैया वह कजरारी आँखों वाला हिरण और वैसी ही उसकी हिरणी
जिसको पता भी नहीं कि आदमी उनकी आँखों की तुलना स्त्री की आँखों से करता है
और अक्सर खाल उतार लेता है!

खूंटे से बंधी गाय
जिसे इंजेक्शन देकर दुहते हैं
साँकला से बंधा हाथी
जिसे रातिब देकर सूंड हिलाना सिखाते हैं
जिसे अंकुश से दाएँ बाएँ मुड़ना और नाचने में निपुण बनाते हैं
पिंजर में बंधक
वह सुग्गा जिसे बोलना सिखाते हैं
और उसके बोलने पर खुश होते हैं
और इस सब को सभ्यता की
नई उपलब्धियाँ मानते हैं!

कहाँ जाएँ तोते कि मानव भाषा बोलने पर विवश न किए जाएँ?

कहाँ जाएं ये सब और
वे सब जिनके नाम नहीं लिख पाऊंगा यहाँ
ये करें क्या बंधन से बच जाएँ?

सोचता हूं
वे सांप क्यों निकलते रहे होंगे
गांधी जी के आश्रम में
छिपकली क्यों आती है घरों की दुनिया में
चूहे क्यों आते हैं खेतों और गृहस्थों की दुनिया में?

क्या वे चूहे बीमारी फैलाने के इरादे से आते हैं खेतों से आबादी की ओर?

क्या वे भी मानते हैं मनुष्य को अपना शत्रु!

क्या गांधी के पहले से रहते थे सांप वहाँ जहाँ गांधी जी ने जमनालाल बजाज के सान्निध्य में बनाया अपना आश्रम!

कोई पेड़ इसलिए नहीं उगा कि
उसे काट कर नाव बनाई जाए
या जलाया जाए उसे चिता में या
चौखट बना लिया जाए!
फर्श में सजा दिया जाए!

कोई फूल इसलिए नहीं खिला कि उसे तोड़ लिया जाए
चाहे वह जंगल में उगा हो या क्यारी में
तुम्हारी खाद पानी से!

कोई सांप इसलिए नहीं जन्मा कि वह घर में आए
और काटने के लिए उपजाए विष और दांत!

गांधी की सांपदानी हिंसा थी या प्रति हिंसा या आत्म रक्षा लेकिन उसमें बंद किए जाते थे सांप
बेदखल होते थे सांप ही!

वह जिसे गांधी आश्रम की भूमि मानते थे
क्या वह भूमि के बनने के समय ही थी
आश्रम की भूमि?

उत्तर न भी मिले तो भी प्रश्न किए जाने चाहिए!

क्योंकि सांप ने नहीं बनाए ऐसे यंत्र जिससे वे किसी को बंधक बना पाएँ और कहीं और छोड़ आएँ!
क्या इसीलिए सांप बनाए गए बंधक?

जानने को उत्सुक हूं
जहाँ छोड़े जाते रहे होंगे सांप क्या वहाँ से भी पकड़ कर कहीं और नहीं ले जाए गए होंगे?

सांप को बिल में रहने से मना नहीं किया कभी पृथ्वी ने
जैसे आकाश ने किसी को उड़ने से नहीं रोका!
न पृथ्वी न आकाश किसी ने कभी मना नहीं किया जोतने बोने उड़ने या परमाणु परीक्षण करने या बम गिराने से!
पृथ्वी ने तो अपनी मिट्टी को ईंट बनाने से भी नहीं रोका
वह हिस्सा जिसे आग में तपा कर बनाते हैं
वह फिर मिट्टी न बन पाने का अभिशाप है ईंट!

गांधी जी होते तो पूछता
गन्ने में लगा कीड़ा
गेहूं के दाने में निवास करता घुन
आम कुतरती कोयल
और अन्न खोजता चूहा
या ऐसे और सब कहाँ जाएं!

क्या उन चूहों के लिए शुक्रिया कहना अपराध माना जायेगा जिनको दवा बनाने के लिए
उपयोग किया गए
जो मनुष्यता के लिए नष्ट हुए!

सांपदानी चूहेदानी में जो बंद हैं
उनके हिस्से में पृथ्वी और आकाश है कि नहीं!
कहीं दूर ही सही
बताएँ यदि
हो तो कहीं!

 

बोधिसत्व
11 दिसम्बर 1968 को उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावाँ थाने के एक गाँव भिखारी रामपुर में जन्म.  प्रकाशन- सिर्फ कवि नहीं (1991), हम जो नदियों का संगम हैं (2000), दुख तंत्र ( 2004), खत्म नहीं होती बात(2010) ये चार कविता संग्रह प्रकाशित हैं. लंबी कहानी वृषोत्सर्ग (2005) तारसप्तक कवियों के काव्य सिद्धांत ( शोध प्रबंध) ( 2016) महाभारत यथार्थ कथा नाम से महाभारत के आख्यानों का अध्ययन (2023)संपादन- गुरवै नम: (2002), भारत में अपहरण का इतिहास (2005) रचना समय के शमशेर जन्म शती विशेषांक का संपादन(2010).सम्मान- कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल सम्मान(1999), गिरिजा कुमार माथुर सम्मान (2001), संस्कृति सम्मान (2001), हेमंत स्मृति सम्मान (2002), फिराक गोरखपुरी सम्मान (2013) और शमशेर सम्मान (2014) प्राप्त है जिसे वापस कर दिया.ईमेल पता- abodham@gmail.com 
Tags: 20232023 कवितागांधीगांधी और सांपदानीबोधिसत्वबोधिसत्व की कविताएँ
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Comments 4

  1. Anonymous says:
    2 years ago

    अत्यंत ही मारक कविता बोधिसत्व जी की है। कुछ आवश्यक प्रश्न जो जायज और समय की मांग लगे।

    Reply
  2. Khalid Khan says:
    2 years ago

    साझा करने के लिए शुक्रिया। विचारों को विस्तार देती हुई कविता। बोधि जी के सरल शब्द जो भीतर तक पैवस्त हो जाते हैं।

    Reply
    • प्रदीप सैनी says:
      2 years ago

      कविता में बोधिसत्व जी गाँधी की साँपदानी के बहाने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाते हैं या कहे कि ऐसी कोशिश करते हुए दीखते हैं.
      मनुष्य ने समय के साथ अपने को जीव जगत से जिस तरह अलग किया वह एक लम्बी बहस का विषय है. इस बहस में हम मानव की पूरी विकास यात्रा की नैतिकता पर सवाल उठा सकते हैं लेकिन यह एक तरफ़ी बहस नहीं है. इसका एक पक्ष और एक सबल विपक्ष भी है.
      गाँधी से सवाल उनके विचारों के दायरे में पूछे जा सकते हैं. जब कवि गाँधी से उनकी साँपदानी के बहाने वे सवाल पूछता है जो सम्पूर्ण मानव जाति से पूछे जाने चाहिए या पूछे जा सकते हैं तो यह कविता गांधी के प्रति अन्याय करती हुई लगती है.
      गाँधी के अहिंसा के जिस विचार को यह कविता अपने प्रश्नों से घेरती है वह भी एक बचकानी कोशिश लगता है.
      बोधिसत्व एक समर्थ और साहसी कवि हैं लेकिन बड़ी कविता लिखने की तलब से भरे हुए हैं जिसके चलते वह ऐसे प्रयोग करते हैं. मुझे यह कविता एक असफल प्रयोग लगा.

      Reply
  3. Anupam Ojha says:
    2 years ago

    ओहो। कई बार पढ़ने और चिंतन करने लायक उत्कृष्ट कविता के लिए बधाई बोधिसत्व!

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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