इतिहासकार हरि वासुदेवन (1952-2020) को याद करते हुएशुभनीत कौशिक
|
इतिहासकार हरि वासुदेवन का 10 मई, 2020 को कोरोना वाइरस से संक्रमण की वजह से कोलकाता में निधन हो गया. 1952 में एक मलयाली परिवार में पैदा हुए हरि वासुदेवन ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के क्राइस्ट कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की. बाद में, उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से ही पीएचडी भी की. इतिहासकार नॉर्मन स्टोन (1941-2019) उनके शोध-निर्देशक थे, जिन्हें यूरोपीय इतिहास संबंधी अपनी प्रसिद्ध किताबों मसलन, ‘ईस्टर्न फ्रंट, 1914-1917’ और ‘फॉन्टाना हिस्ट्री ऑफ यूरोप, 1878-1919’ के लिए जाना जाता है. अभी पिछले ही वर्ष जब नॉर्मन स्टोन का निधन हुआ, तब हरि वासुदेवन ने अपने शिक्षक की स्मृति में ‘द टेलीग्राफ़’ में एक लेख भी लिखा था. जिसमें उन्होंने नॉर्मन स्टोन के अकादमिक योगदान और उनके जीवन के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा था. वर्ष 1978 में अपनी पीएचडी पूरी करने के बाद हरि वासुदेवन कलकत्ता विश्वविद्यालय में यूरोपीय इतिहास के प्राध्यापक नियुक्त हुए और दशकों तक उन्होंने वहाँ अध्यापन कार्य किया. रूस समेत समूचे मध्य एशिया के इतिहास में उनकी गहरी दिलचस्पी और विशेषज्ञता ने उन्हें भारतीय इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान दिलाया.
विज़नरी अकादमिक और संस्था-निर्माता
वर्ष 2005 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के अनुरूप एनसीईआरटी की सामाजिक-विज्ञान की पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में हरि वासुदेवन के योगदान के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा. सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक सलाहकार समिति के अध्यक्ष के रूप में हरि वासुदेवन ने नीलाद्रि भट्टाचार्य, योगेन्द्र यादव, सुहास पलशीकर, तापस मजूमदार सरीखे विद्वानों के साथ काम करते हुए इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि की बेहतरीन पाठ्य-पुस्तकें तैयार कराने में अग्रणी योगदान दिया. एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में आए बदलावों की बानगी उनकी विषय-वस्तु, प्रस्तुति, कलेवर में तो मिलती ही है. साथ ही, यह बदलाव बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने और उन्हें जानकारियों के बोझ से दबाने की बजाय जिज्ञासु बनाने पर दिए गए ज़ोर में भी दिखता है. इन पाठ्य पुस्तकों में बच्चों को अपने सामाजिक परिवेश, शहर-गाँव, परिवार, समाज और स्कूल को भी एक नई दृष्टि से देखने, सवाल पूछने के लिए आमंत्रित किया गया. मसलन, इतिहास की एक पाठ्य पुस्तक की भूमिका में नीलाद्रि भट्टाचार्य लिखते हैं :
बाद में, जब भाजपा सरकार द्वारा इन पाठ्यपुस्तकों में मनमाने ढंग से बदलाव किया जाने लगा तो हरि वासुदेवन ने इसका मुखर विरोध किया. उन्होंने चेताया कि ये बदलाव इन पाठ्यपुस्तकों की उस मूलभावना के विरुद्ध हैं, जिसके अनुरूप इन किताबों को तैयार किया गया है.
इतिहासकार होने के साथ-साथ हरि वासुदेवन एक विज़नरी अकादमिक भी थे. उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया में सेंट्रल एशियन प्रोग्राम को शुरू करने में उल्लेखनीय भूमिका तो निभाई ही. साथ ही, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ के निदेशक के रूप में उन्होंने कोलकाता स्थित इस संस्थान की अकादमिक गतिविधियों और सक्रियता को बढ़ाने में अप्रतिम योगदान दिया. वर्ष 1993 में स्थापित हुए इस संस्थान का उद्देश्य आधुनिक काल में पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के समाजों के इतिहास, राजनीति, अर्थतन्त्र, संस्कृति आदि के गहन अध्ययन को बढ़ावा देना था.
इतिहासकार बरुन दे इस संस्थान के पहले निदेशक थे. हरि वासुदेवन चार वर्षों तक (2007-11) इस संस्थान के निदेशक रहे और ये वर्ष इस संस्थान की उन्नति के लिए अहम साबित हुए. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फ़ेलो और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का सदस्य होने के साथ-साथ वे कोलकाता स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज़ के अध्यक्ष भी रहे. हरि वासुदेवन कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक द्वारा शुरू किए गए ‘रेडिएटिंग ग्लोबलिटीज़’ प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे. वे प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार के निवास-स्थान को एक संग्रहालय एवं शोध केंद्र के रूप में परिवर्तित करने की परियोजना पर भी काम कर रहे थे. कहना न होगा कि ये सारी गतिविधियाँ हरि वासुदेवन की सक्रियता की बानगी देती हैं.
भारत-रूस संबंध और मध्य एशिया का इतिहास
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही सोवियत रूस के इतिहास में हरि वासुदेवन को गहरी दिलचस्पी हुई. अपनी पीएचडी में उन्होंने उन्नीसवीं सदी के आख़िरी वर्षों में रूस की प्रांतीय राजनीति, ‘जेम्स्त्वो’ नामक स्थानीय स्वशासन की प्रणाली का ऐतिहासिक अध्ययन किया. उनके शोध-ग्रंथ का शीर्षक था : ‘रशियन प्रोविंसियल पॉलिटिक्स, सेंट्रल गवर्नमेंट एंड द त्वेर प्रोविंसियल जेम्स्त्वो, 1897-1900’. भारत-रूस सम्बन्धों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने के उनके अकादमिक प्रयासों ने उन्हें एशियाटिक सोसाइटी द्वारा शुरू किए गए ‘रशियन आर्काइव प्रोजेक्ट’ से भी जोड़ा. इस परियोजना के अंतर्गत उन्होंने पूरबी रॉय और सोभनलाल दत्ता गुप्ता के साथ रूसी फ़ेडरेशन के आर्काइव में उपलब्ध आधुनिक भारत से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का सम्पादन ‘इंडो-रशियन रिलेशंस, 1917-1947’ शीर्षक से दो खंडों में प्रकाशित हुई किताब में किया.
उल्लेखनीय है कि इस संकलन में रूसी क्रांति के ठीक बाद 1917 से लेकर 1947 तक तीस वर्षों के दौरान सोवियत रूस से भारतीय शख़्सियतों और संगठनों से हुए पत्राचार और दस्तावेज़ शामिल किए गए. ये दस्तावेज़ जहाँ एक ओर रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, मानवेंद्रनाथ रॉय, राजा महेंद्र प्रताप, मीनू मसानी, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय जैसे व्यक्तियों से जुड़े थे. वहीं दूसरी ओर ये साम्यवादी पार्टी, सरवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी जैसे संगठनों और सर्वे ऑफ इंडिया जैसे सरकारी विभागों से भी जुड़े थे. इस संकलन में राहुल सांकृत्यायनसे जुड़े पत्र और दस्तावेज़ भी शामिल हैं. यहाँ यह उल्लेख कर देना प्रासंगिक होगा कि राहुल सांकृत्यायन ने बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक में तीन सोवियत-यात्राएं की थीं. बाद में, राहुल जी ने वर्ष 1956 में दो खंडों में ‘मध्य एशिया का इतिहास’ नामक प्रसिद्ध किताब भी लिखी थी, जो बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित की गई थी.
हरि वासुदेवन की प्रमुख पुस्तकें हैं : ‘शैडोज़ ऑफ सब्सटेन्स : इंडो-रशियन ट्रेड एंड मिलिट्री टेक्निकल को-ऑपरेशन सिंस 1991’; ‘इन द फुटस्टेप्स ऑफ अफनासी निकितीन : ट्रैवेल्स थ्रू यूरेशिया एंड इंडिया इन द ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी’. ‘शैडोज़ ऑफ सब्सटेन्स’ में जहाँ हरि वासुदेवन ने सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और भारत के व्यापारिक, सैन्य एवं तकनीकी सम्बन्धों के बारे में लिखा. जिसमें उन्होंने 1991 के बाद भारत-रूस के व्यापारिक सम्बन्धों में निजी उद्यमों के बढ़ते महत्त्व को भी रेखांकित किया. वहीं ‘इन द फुटस्टेप्स ऑफ अफनासी निकितीन’ में उन्होंने वर्ष 2006-7 में सम्पन्न हुए ‘निकितीन अभियान’ का दिलचस्प विवरण दिया है. यह अभियान पंद्रहवीं सदी के रूसी यात्री अफनासी निकितीन की स्मृति में आयोजित किया गया, जो भारत की यात्रा करने वाले और यात्रा-वृतांत लिखने वाले पहले यूरोपीय यात्रियों में से एक था. उल्लेखनीय है कि अफनासी निकितीन ने वर्ष 1466-72 के दौरान भारत समेत एशिया के अनेक देशों की यात्रा की थी और अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वॉयेज बियाण्ड थ्री सीज़’ में इस साहसिक यात्रा का विवरण दिया था.
‘निकितीन अभियान’ में निकितीन के पदचिह्नों पर चलते हुए मॉस्को, अस्त्र्खान, तुर्की, ईरान और भारत में कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र की यात्राएं भी की गईं, जिसका विवरण हरि वासुदेवन ने उक्त पुस्तक में दिया है. इसके अलावा उन्होंने ‘कमर्शियलाइज़ेशन एंड एग्रीकल्चर इन लेट इंपीरियल रशिया’ और ‘डिसेंट एंड कन्सेन्सस : प्रोटेस्ट इन प्री-इंडस्ट्रियल सोसाइटीज़’ सरीखी पुस्तकों का सम्पादन भी किया था.
प्रतिरोध का इतिहास और समकालीन विश्व राजनीति
1989 में प्रकाशित हुई ‘डिसेंट एंड कन्सेन्सस’ में भारत, बर्मा और रूस में हुए प्रतिरोधों और आंदोलनों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन किया गया था. हरि वासुदेवन के अलावा इस पुस्तक के सह-संपादक थे, इतिहासकार बासुदेव चट्टोपाध्याय और रजतकान्त राय. इस किताब की भूमिका लिखते हुए हरि वासुदेवन ने प्रतिरोध का इतिहास लिखते हुए उसमें शामिल विभिन्न सामाजिक समूहों के दृष्टिकोण और उनकी संवेदनाओं और प्रत्यक्षीकरण को समझने के साथ ही प्रतिरोध के बहुवर्गीय चरित्र को जानने पर भी ज़ोर दिया था. ‘हिस्ट्री फ्राम बिलो’ की अवधारणा के अनुरूप इतिहासलेखन पर बल देते हुए हरि वासुदेवन ने इतिहासकारों से विभिन्न ऐतिहासिक कारकों के प्रति सजग रहने और इतिहास को आकार देने में उनकी भूमिका को समझने का आह्वान किया.
इस पुस्तक में शेखर बंद्योपाध्याय, परिमल घोष, अरुण बंद्योपाध्याय, सुरंजन दास, भास्कर चक्रवर्ती के लेख भी शामिल थे. हरि वासुदेवन ने इस किताब में 1905 की रूसी क्रांति की उत्पत्ति, स्थानीय स्वशासन के संगठन ‘जेम्स्त्वो’ के ऐतिहासिक महत्त्व और भारत-रूस में हुए प्रतिरोधों के तुलनात्मक पक्ष पर लिखा था. उल्लेखनीय है कि ‘जेम्स्त्वो’ ने रूस के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और बैंकिंग जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में अहम योगदान दिया था और त्वेर के ‘जेम्स्त्वो’ का ऐतिहासिक अध्ययन हरि वासुदेवन ने अपने शोध-ग्रंथ में भी किया था. भारत और रूस के संदर्भ में लिखते हुए उन्होंने व्यापक गरीबी और देरी से औद्योगीकरण जैसे ऐतिहासिक कारकों की एकसमान मौजूदगी के बारे में भी विस्तारपूर्वक लिखा था.
हरि वासुदेवन समकालीन घटनाक्रम और विश्व-राजनीति के प्रति भी लगातार सजग रहे. अभी पिछले महीने ही कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों और चीन की आर्थिक स्थिति के बारे में उन्होंने एक लेख लिखा था. जिसमें उन्होंने लिखा है कि लॉकडाउन के बाद वित्तीय और आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए रणनीति बनाते समय भारत को विश्व परिदृश्य पर नजर बनाए रखने के साथ ही दक्षिण एशिया के घटनाक्रमों पर भी लगातार दृष्टि रखनी होगी. विशेषकर, चीन की आर्थिक और व्यापारिक नीतियों पर. इस लेख में हरि वासुदेवन ने चीन व रूस के व्यापारिक सम्बन्धों के रणनीतिक महत्त्व के साथ-साथ वुहान के अलावा चीन के अन्य प्रमुख प्रान्तों और महानगरों मसलन, बीजिंग, तियानजिन, शंघाई आदि में कोरोना के रोकथाम हेतु अपनाई गई नीतियों, उनके भावी परिणामों पर भी विस्तृत चर्चा की थी.(देखें : https://www.orfonline.org/expert-speak/economic-recovery-and-recurring-lockdown-in-china-after-covid19-crisis-64729/ )
परिवार
हरि वासुदेवन के पिता मेथिल वासुदेवन एक एयरोनॉटिकल इंजीनियर थे और वे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से जुड़े हुए थे. हाल ही में, हरि वासुदेवन ने अपनी माँ श्रीकुमारी मेनन के संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘मेमायर्स ऑफ ए मालाबार लेडी’ भी पूरी की थी. प्रख्यात कला इतिहासकार ताप्ती गुहा-ठाकुरता उनकी पत्नी हैं और फ़िल्म अध्येता और इतिहासकार रवि वासुदेवन उनके भाई हैं.
इतिहासकार हरि वासुदेवन को भारत और मध्य एशिया के ऐतिहासिक अंतरसंबंधों के सूत्र तलाशने, एशियाई अध्ययन से जुड़ी भारतीय संस्थाओं को दिशा देने और स्कूली बच्चों को समाज-विज्ञान से परिचित कराने वाली एनसीईआरटी की बेहतरीन पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में सूत्रधार की भूमिका निभाने के लिए याद किया जाएगा.
___________
शुभनीत कौशिक इतिहास और साहित्य में गहरी दिलचस्पी रखते हैं और बलिया के सतीश चंद्र कॉलेज में इतिहास पढ़ाते हैं. |