| तेज़ गेंदबाज की कविताएँ जावेद आलम ख़ान |
अभ्यास
1.
फेफड़ों को ऑक्सीजन की प्यास लगेगी
हलक़ को पानी की
साँस की सीढ़ियां जैसे जैसे चढ़ेंगी
उत्साह उतरता जाएगा
बैठने लगेगा दिल
झरता जाएगा साहस
बिखरने लगेगी उम्मीद
पर एक ख़्वाब उसे समेट लेगा
वह फिर उठेगा
दौड़ेगा
गेंद फेंकेगा
2.
इसी नेट में उलझकर रह गया हूँ
धूप मुझे सुखा देना चाहती है
मेरे दौड़ने से बेरूखी हो गई है मैदान की दूब
धरती की सहनशीलता घटती जाती है
यह तीखा प्रकाश मुझे निगल जाना चाहता है
कोई तो आए और जोर से चिल्ला दे
मैं गेंदें फेंकने से नहीं थका
अकेले दौड़ने से ऊब गया हूँ
मैदान के सन्नाटे में डूब गया हूँ
3.
प्रदर्शन के अनुपात में उभर आई हैं चेहरे की हड्डियाँ
गालों के गड्ढों में गुम हो गई है सुंदरता
आंखों के ठीक नीचे रतजगों के दस्तख़त है
उत्तेजना को साध लिया है कदम साधते साधते
उसकी आंखों के हरे हरे मैदान में
रोज एक लड़की तितली पकड़ने आती है
हाँ फते कानों में चुपके से कह जाती है
दौड़ते रहो
तुम्हारी दौड़ बहुत सुंदर है
4.
मेरी कायरता निचोड़ दो पसीने के साथ
कंधों में संचित कर दो समस्त ऊर्जा
यॉर्कर को बना दो अपनी किरणों-सा पैना
ओ सूरज! मेरे सर पर नहीं
मेरी आँखों में चमको
मेरे सीने में तपो
मेरी रफ़्तार में चलो

गेंद
1.
विकेट चूमने की ख़्वाहिश से भरी
गेंद जानती है
क्रीज के दरवाज़े पर
बल्ला उसे पीटने के लिए खड़ा है
मगर गेंद का संकल्प उससे भी बड़ा है
2.
जो सीधी राह पर चलीं
बड़ी आसानी से ट्रैक हो गईं
जो बल्ले से डरकर दूर भागीं
वे किसी गिनती में नहीं आईं
और दे गईं मुफ़्त के रन
कामयाब वही हुईं
जो विचलन से नहीं डरी
और चूमते हुए निकल गईं
बल्ले का गाल
3.
गेंदबाज झूम रहा है
गेंद उदास पड़ी है
जिसने बल्लेबाज को बीट करने की
अतिरिक्त तेजी में
स्टंप को ही तोड़ दिया है
4.
प्रेम विद्रोह कर रहा है
या विद्रोह ढूंढ रहा है प्रेम
विकेट की तरफ दौड़ती गेंद
हर बार बल्ले से पीटी जाती है
न बल्ला अपनी हेकड़ी छोड़ता है
न गेंद अपनी ज़िद
आत्मालाप
1.
प्रतिक्रियाएं विलंबित है
गति सुस्त
पलस्तर उखड़ने लगा है
हर शॉट के साथ
टूट जाती है उत्साह की एक हड्डी
नियंत्रण में रहने से इनकार कर रही है गेंद
स्मृतियों के सहारे बटोरता हूँ आत्मविश्वास
कि सामने पड़ा छक्का
स्वाभिमान के गाल पर थप्पड़ की तरह गूंजता है
यह बढ़ती उम्र
मुझसे मेरी स्मृतियाँ भी छीन लेगी
2.
कैच मुझे संतुष्ट नहीं करेगा
हवा में उठी गेंद पिछले छक्के की याद दिलाएगी
पगबाधा केवल दिलासा भर होगा
काट बिहाइंड चालबाजी का अहसास कराएगा
इस सीधी लड़ाई में
बोल्ड करके ही होगा
मेरे आहत मन का शमन
3.
तेज़ी थम चुकी है
गुम चुकी है उष्णता
चमक उड़ गई है
गेंदें उधड़ गईं बारी बारी
खिलाड़ी चले गए एक एक करके
यहाँ जो खेल रही हैं – परछाइयां हैं
4.
गेंद की आक्रामकता के सामने
बल्ले का प्रतिरोध
बल्ले की हिंसा के बीच
गेंद की बचकर निकल जाने की प्रतिबद्धता
जिन्होंने खेल में भी सीखा प्रतिकार
वे कैसे हो सकते हैं सत्ता के हमवार
5.
बहादुरी का अर्थ
उन खिलाड़ियों से पूछो
जो खुद को हराने वालों को
बधाई देने का कलेजा रखते हैं

मैदान पर
1.
उसे लगता है
पृथ्वी उसकी मुट्ठी में है
वह एक गेंद को लेकर दौड़ रहा है
2.
गेंदबाज जानता है
इस रंगमंच पर भी
भय का उद्दीपन
चेहरे की भंगिमाओं से होता है
स्पीड तो महज आंकड़ों का खेल है
3.
जबकि समस्त शंकाओं के लाभ
बल्लेबाजों के हिस्से आए
गेंदबाज के हिस्से आई फिक्र
कि गेंद की चमक फीकी न पड़ जाए
4.
किसी किताब में नहीं मिलता
गेंद को लेंग्थ पर डालने का
कोई निश्चित पूर्वानुमान
वह बल्लेबाज की आँखें हैं
जिनमें झांककर ढूंढ लेता है गेंदबाज
गेंद का स्पॉट
5.
दिल न मिलना
हाथ मिलाना
भीतर तकरार
बाहर प्यार
जलन – हसद- प्रतिस्पर्धा – समर्थन
दुनिया क्रिकेट का मैदान ही तो है
6.
किरदार अपनी उम्र जी चुके हैं
सभी भूमिकाएं अब समाप्त हुईं
नेपथ्य में गूंजेगी आवाज़
मैं उठूंगा
और अपनी गेंद लेकर
मैदान से चला जाऊंगा
थर्डमैन
सीमर का सबसे बड़ा शुभचिंतक कौन है
वह जो स्टंप के पीछे गेंद पकड़ता है
या वह जो उसके भी पीछे चौके बचाता है
फील्ड पर थर्डमैन उसका प्रचार है
पर वह धूमिल का तीसरा आदमी नहीं
डबराल का संगतकार है.
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javedalamkhan1980@gmail.com |

जावेद आलम ख़ान का जन्म 15 मार्च, 1980 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँ पुर ज़िले के जलालाबाद में हुआ. उनका कविता संग्रह स्याह वक़्त की इबारतें प्रकाशित हो चुका है तथा उनकी कविताएँ बारहवां युवा द्वादश में भी शामिल हैं.


जिन्होंने खेल में भी सीखा प्रतिकार
वे कैसे हो सकते हैं सत्ता के हमवार
वाह! अछूते विषय और सुन्दर बिम्बों से सजी लाजवाब कविताएं। कवि को बधाई और शुभकामनाएं।
Kya behtreen line h..sir. har ak lafz juda huaa lagta h..
,,gaal me gadde pade..chamk bhi chali gyi.. bilkul aesa hii hota tha…bht badiyaa mza a gya
क्रिकेट के खेल में जो आंतरिक लय, ऊर्जा, उत्साह, जिजीविषा व्याप्त होती है उसे कविताओं में गूंथ कर कवि ने एक अलग तरह का तिलिस्म खड़ा कर दिया है। इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि पाठक ख़ुद किसी मैदान में पहुंचकर चल रहे मैच का हिस्सा बन गया है। इसमें भी विशेषकर एक गेंदबाज के मन की उथल पुथल को कवि ने बड़ी शिद्दत से दर्ज किया है। मैं जानता हूं कि जावेद एक क्रिकेटर भी हैं और उनके कवि मन ने इन कविताओं में खूब ऊंचाई हासिल की है।
बढ़िया लिखा है। चूंकि जावेद भाई क्रिकेट भी खेलते हैं और कविता भी लिखते हैं। तो इस विषय पर जावेद भाई से बेहतर कविता कौन लिख सकता है! उम्मीद है आगे कुछ और भी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी।
आज का हासिल रहा यह। सभी कविताएँ सुंदर। कुछ बहुत ही कैची, जैसे-
‘उसे लगता है
पृथ्वी उसकी मुट्ठी में है
वह एक गेंद को लेकर दौड़ रहा है’
तेज गेंदबाज और उसकी कविता, अचंभित करने वाली ।
वाह, बहुत सुन्दर, बच के बचा के,
सीधी या लहरा के, ढेर मार खा के,
बस चूमना है, उसे विकेट.
सृजनात्मक और चित्ताकर्षक कविताएँ। खेल और गति जैसे आधुनिक विषय को अपनी कविता में कवि ने संवेदनशील और कल्पनाशील ढंग से उतारा है । अनोखे विषय पर कविताएँ रचना दर्शाता है कि कवि साधारण और स्थापित विषयों से हटकर नई दिशाओं में सोच सकते हैं । कवि को नए-नए विषयों से जुड़ने की खुली प्रवृत्ति बनाए रखनी चाहिए। केवल एक ही शैली या एक ही प्रकार की सोच में ठहरना कविता की संभावनाओं को सीमित कर देता है।
“उसे लगता है
पृथ्वी उसकी मुट्ठी में है
वह एक गेंद को लेकर दौड़ रहा है”
“विकेट चूमने की ख़्वाहिश से भरी
गेंद जानती है
क्रीज के दरवाज़े पर
बल्ला उसे पीटने के लिए खड़ा है
मगर गेंद का संकल्प उससे भी बड़ा है”
—जावेद आलम खान
इसमें कोई संशय नहीं कि जावेद एक अद्वितीय कवि हैं।
कविता की दुनिया में जब लगता है कि लगभग सबकुछ कहा और लिखा जा चुका है, सारे बिंब, प्रतीक और विषय अनेक बार उकेरे जा चुके हैं, तब–तब जावेद अपनी ताज़गी भरी दृष्टि और अप्रत्याशित रचनात्मकता से चकित कर देते हैं।
तेज़ गेंदबाज़ के मनोविश्व को, उसकी आंतरिक हलचलों और संवेदनाओं को इतनी सूक्ष्मता और सौंदर्य के साथ शब्दों में ढालना एक असामान्य उपलब्धि है। क्रिकेट के मैदान की धड़कनें जब कविता की लय से मिलती हैं, तब यह एहसास होता है कि जावेद न केवल कविता को जीते हैं, बल्कि क्रिकेट को भी उतनी ही गहराई से आत्मसात करते हैं।
शायद यही कारण है कि यह विलक्षण कविताएँ संभव हो पाई हैं—जहाँ खेल महज़ खेल न रहकर जीवन, संघर्ष और संकल्प का प्रतीक बन जाता है।
कवि जावेद को इन अप्रतिम कविताओं के लिए ढेरों बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ।
जावेद आलम खान की क्रिकेट पर कविताएं, बेहद खूबसूरत हैं। खेल प्रत्येक भाव को दर्शाती, व्यक्ति के दबे मनोभाव को खूबसूरती से उकेरा है।
उनके खेल के साथ उनकी कविताओं में जो तीक्ष्णता है, उसे दर्पण की तरह सामने रख दिया है। मैंने कभी इस तरह की कविताएं नहीं पढ़ी हैं। यह अलग प्रयोग है। क्रिकेट की समग्रता को बहुत पैनेपन के साथ शब्दों में पिरोया है।
सारी कविताएँ क्रिकेट ग्राउंड को कागज़ के पन्ने पर उतारने का एक सफ़ल प्रयास हैं ! ऐसा लगता कवि अपनी कलम से नहीं गेंद से कविताएँ लिख रहा है और मैदान के हर कोने में एक तेज गेंदबाज़ कविता के शब्दों और उसकी धार से बल्लेबाज़ की हार चालाकी काट रहा है! क्रिकेट को केंद्र में रखकर जीवन संघर्ष का एक ऐसा आदर्श कविताओं में गढ़ा गाय है जो ना केवल कविता में नवीन प्रयोग को रेखांकित करता है अपितु आम जन के लिए भी प्रेरणास्रोत बनता है !
शानदार कविताओं के लिए जावेद जी को बधाई 🎉
कविता के माध्यम से क्रिकेटर ने क्रिकेट का और मुख्य रूप से एक गेंदबाज़ की गेंदबाज़ी करते समय मन में आने वाले विचारों को रखा है
मैने पहली बार कोई कविता क्रिकेट विषय पर देखी और पढ़ी है। लाजवाब रचना है। बिल्कुल नया विषय। जावेद एक जुझारू क्रिकेटर रह चुके हैं और एक अच्छे कवि भी हैं। इसी कारण वो इतनी अच्छी कविता लिख पाए हैं। एक “कवि क्रिकेटर” से यही उम्मीद कर सकते हैं कि वो इस बिल्कुल नए विषय पर और कविताओं की रचना का सकेंगे और हिंदी साहित्य को समृद्ध करेंगे। बहुत बहुत बधाई हो मित्र जावेद को…!
मैं विस्मय विमुग्ध हूं। क्रिकेट पर इतनी प्रभावशाली कविताओं के लिए जावेद भाई को बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
क्रिकेट की थीम पर कविताएं लिखी गई होंगी जरूर पर समय गुजर गया और क्रिकेट का नया दौर शुरू हुआ। जावेद आलम की ये कविताएं इस दौर की क्रिकेट का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मैं क्रिकेट नहीं देखता। क्रिकेट की चर्चा में रुचि भी नहीं है। पर समालोचन पर जावेद आलम खान की ये कविताएँ पढ़कर वैसा ही आल्हादित और उत्तेजित हुआ जैसा किकेट के दर्शक होते हैं। कभी ख्याल नहीं आया कि क्रिकेट पर भी कविता हो सकती है। यही तो है कवियों का करिश्मा! तभी तो कहा जाता है “जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि” …..! इन कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद होना चाहिए।
कवि ने पकड़ी है उसकी दौड़, उसका जुनून,
कविताएँ भी कभी-कभी, कमेंट्री बन जाती हैं खूबसूरत मज़ा।
सलाम उस कवि को, जो शब्दों से खींच लाया,
एक तेज़ गेंदबाज़ का जीता-जागता साया।”**
बहुत खूबसूरत पंक्तिय लिखी है भाईसहाब
ये कविताएं क्रिकेट की भाषा में जीवन को देखने की उम्दा कोशिश हैं। मुझे इन्हें पढ़ते हुए विष्णु खरे की स्मृति हो आई।