हरदेवी की यात्रा: गरिमा श्रीवास्तव
गरिमा श्रीवास्तव का स्त्री-विमर्श से सम्बन्धित शोध और लेखन महत्वपूर्ण है. वह लगातार इस दिशा में अग्रसर हैं, स्त्री इतिहास के उन पन्नों को प्रकाश में ला रहीं हैं जिनपर...
गरिमा श्रीवास्तव का स्त्री-विमर्श से सम्बन्धित शोध और लेखन महत्वपूर्ण है. वह लगातार इस दिशा में अग्रसर हैं, स्त्री इतिहास के उन पन्नों को प्रकाश में ला रहीं हैं जिनपर...
रहीम (17 दिसम्बर, 1556 - 1 अक्तूबर, 1627) मध्यकाल के दुर्लभ सांसारिक कवि हैं, इस अर्थ में आधुनिक भी. उनकी नीति के दोहे आत्मा, परमात्मा, मोक्ष आदि में न उलझकर...
आलोचक माधव हाड़ा प्राचीन पोथियों की वृहत कथाओं के हिंदी रूपांतरण और विवेचना का कार्य इधर वर्षों से कर रहें हैं. समालोचन पर ही आपने- ‘जिनहर्षगणि कृत रत्नशेखर नृप कथा’,...
औपनिवेशिक भारत में आज़ादी की लड़ाई सिर्फ़ राजनीतिक नहीं थी. जड़ों की तलाश में बुद्ध तक अनेक लेखक विचारक गये, उनमें राहुल सांकृत्यायन भी थे. जितनी विविधता, जिज्ञासा, क्रियाशीलता और...
मार्कंडेय लाल चिरजीवी भारतेंदु के समकालीन कवि हैं, उन्हें कायस्थ समझा गया जबकि दलितों की एक जाति ‘दबहर’ से उनका सम्बन्ध था. यह शोध आलेख नवजागरणकालीन साहित्य में गहन रुचि...
रानी पद्मिनी की कथा में कितना इतिहास है और कितनी कल्पना यह विवाद का विषय और शोध का क्षेत्र है, महाकवि जायसी के ‘पदमावत’ के स्रोतों को लेकर भी संभ्रम...
समालोचन पर ही प्रकाशित सदाशिव श्रोत्रिय के मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘लकड़ी का रावण’ के भाष्य को लेकर शोधार्थी अनूप बाली ने असहमति प्रकट करते हुए कुछ सवाल उठाये थे....
उपनिवेश के विरुद्ध भारत का संघर्ष ‘नवजागरण’ की जब शक्ल ले रहा था तब उसकी एक लड़ाई चिकित्सा के क्षेत्र में भी लड़ी जा रही थी. इसे ‘आयुर्वेदिक राष्ट्रवाद’ भी...
अनूप बाली ‘स्कूल ऑफ़ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशन’ अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के शोध छात्र हैं. मुक्तिबोध के फैंटेसी के मनोविश्लेषण पक्ष पर यह उनका संजीदा शोध लेख है. मुक्तिबोधीय फैंटेसी में...
मनीष दिल्ली विश्वविद्यालय में शोध अध्येता हैं, वे वर्तमान में ‘फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य में भूमि, जाति एवं राजनीति का अन्तःसंबंध’ विषय पर शोधकार्य कर रहे हैं. यह दिलचस्प आलेख...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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