सि क न्द र
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(१)
मुझे थोड़ी-सी शराब चाहिए !
अरस्तू ठीक ही कहता था
विश्व को जीतना भी उतना ही थका देने वाला रोज़गार है
जितना एथेंस में मांस की दूकान चलाना
मुझे एक ज़माने से थोड़ी-सी शराब चाहिए
जो मुझे मिल नहीं रही
जैसे मैं विश्व-विजेता नहीं
उसके लश्कर का कोई अदना-सा भिखारी-कवि हूँ
मुझे थोड़ी-सी शराब चाहिए !
(२)
कहाँ खो गया सिकन्दर !
उसे खोजो उन दूरस्थ देशों में
जहाँ परछाइयों के सिवा कोई साथी नहीं था
जहाँ घोड़ों की पूँछों के सिवा कोई चाबुक नहीं था
जहाँ हमारे मांस के लालच में
हमारा पीछा करने वाले गिद्धों के सिवा कोई ध्वजा नहीं थी
वहाँ सिकन्दर को ढूंढना चाहिए !
(३)
क्या कहा, नगर के ब्राह्मणों ने
हमारी अनाज और मांस से भरी सत्तर नावें डुबो दीं
तुमने उन ब्राह्मणों को मार क्यों नहीं डाला, सेनानी
क्या कहा
वे लड़ते नहीं हैं
अहिंसा में विश्वास करते हैं
ऐसा है तो उन बिरहमनों को हमारे सामने
ज़िन्दा पेश किया जाए !
(४)
(सात बिरहमनों को जब सिकन्दर के सामने पेश किया गया तो सिकन्दर ने उनसे कहा)
बिरहमनो,
हमें तो दुश्मन की बजाय मित्र होना चाहिए
तुम्हारा आदर्श संसार-त्याग है
और मेरा संसार-विजय
अगर अरस्तू यहाँ उपस्थित होता तो साबित कर देता
कि हमारे विचार समान हैं
और हम एक ही देवताओं की सन्तान हैं
जैसे संसार-त्याग के लिए
तुम्हारा अधिक दिनों तक जीना ज़रूरी है
उसी तरह विश्व-विजय के लिए मेरा युवा होना/रहना
क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा रसायन/कीमिया है
जो मेरे यौवन को अक्षय रखे
क्या मुझे तुम अपना देवता स्वीकार नहीं कर सकते ?
(५)
घमंडी ब्राह्मणो !
मैंने तुम्हें युद्ध के मैदान में पराजित कर दिया
मैंने तुम्हारे सारे पत्थरों और धातुओं के देवता तोड़ डाले
मैंने तुम्हारे सारे ग्रन्थों को आग लगा दी
तुम्हारे पवित्र मंदिरों में मेरे सैनिक बंधे हुए हैं
तुम्हारी देवदासियों को हमने कौमार्यविहीन कर दिया
क्या मैं तुम्हारा अकेला देवता नहीं हो सकता ?
(६)
हम देवता नहीं बनाते बल्कि देवता हमें बनाते हैं
एक ब्राह्मण की यह बात सुनकर सिकन्दर ने कहा :
काश, अरस्तू यहाँ होता
वह तुम्हारा मान-मर्दन करता
तुम्हारे विकृत-अभिमान और दार्शनिक-कुटिलता से
तुम्हें मुक्त करता
लेकिन अब मैं ख़ुद तुम लोगों से कुछ सवाल करूँगा
मैं तुम में से किसी एक को तुम्हारा निर्णायक बना दूँगा
वही फ़ैसला करेगा कि तुम में से कोई चतुराई-चालाकी तो नहीं कर रहा – जो चतुराई दिखाएगा उसका सिर सबसे पहले उतारा जाएगा और यदि निर्णायक ने उचित न्याय नहीं किया तो उसे भी देवताओं के पास पहुँचा दिया जाएगा
अहंकारी ब्राह्मणों !
तुम तो सृष्टि के क्रम को अच्छी तरह जानते होंगे
तो बताओ देवताओं ने पहले क्या उत्पन्न किया
विश्राम या संघर्ष
दिन या रात
एक ब्राह्मण ने कहा कि ब्रह्मा ने रात से दिन एक दिन पहले बनाया और वह दिन तीस कोटि योजन लम्बा था
सिकन्दर उत्तर सुनकर चौंका और उससे इसकी व्याख्या करने को कहा तो ब्राह्मण ने कहा कि असाध्य प्रश्नों का उत्तर भी असाध्य होगा
तब सिकन्दर ने दूसरा सवाल पूछा :
सृष्टि में अभी किनकी संख्या अधिक है
जीवितों की या मृतकों की
दूसरे ब्राह्मण ने कहा कि यह प्रश्न तो जनक ने विश्वमित्र से पूछा था सृष्टि के हर देश-काल में जीवित ही अधिक हैं क्योंकि मृतक तो हैं ही नहीं
तब सिकन्दर ने नया प्रश्न पूछा :
जीवधारियों में सबसे बुद्धिमान कौन है
इस सवाल के जवाब में एक शिखाधारी ने सिकन्दर पर व्यंग्य कसते हुए कहा :
निसंदेह वह पशु जिसने मनुष्य होने से इंकार कर दिया
सिकन्दर की तलवार चमकने ही वाली थी कि उसे उसके साथ आये एक यूनानी दार्शनिक ने रोक लिया !
(७)
बदज़ुबान बिरहमनो,
अब हम लाल-बाल सूरज के रँग में रँगी तलवारें लेकर
इस विचित्र देश को ख़ैरबाद कहेंगे
और सुनो
यह देश जो स्वर्ग के सब पदार्थों से ठसाठस भरा हुआ है
जिसे इसके निवासियों ने नरक बना रखा है
मुझे थोड़ी-सी शराब चाहिए !
(८)
मृत्यु के दार्शनिको !
मैं तुम्हारा जीवन नहीं बचा सका
लेकिन इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं है
कोई यूनानी दार्शनिक अपने देश के बारे में सोचते हुए इस तरह की मृत्यु को सौभाग्य समझता
सिकन्दर के साथ आए यूनानी दार्शनिक ने आगे कहा :
सिकन्दर ने तुम्हारे पुराने और गम्भीर वृक्ष को एक बार पकड़कर झकझोर दिया है. सूखी और मृत पत्तियाँ झर गईं. वृक्ष में बसेरा करने वाले सहस्रों पक्षी ऊपर घुमड़ रहे, मंडरा रहे हैं. पुरानी जर्जर पत्तियों की जगह नई और सुन्दर पत्तियाँ आएंगी. तुम्हारे सारे पंछी लौट आएंगे
और इस बार अधिक चौकन्ने और सन्नध
काश, अरस्तू यहाँ होता !
(९)
बिरहमनो !
मैं तुम्हें तुम्हारे प्राणों की भीख दे सकता हूँ
यदि तुम अरस्तू के नाम से माँगो
क्या तुम लोगों में अरस्तू से मिलने का ज़रा-सा भी उत्साह नहीं है
सिकन्दर की बात सुनकर एक ब्राह्मण बोला :
तुम्हारे प्रलोभन बेकार हैं
यह सच है कि अभी हमारा देश और विचार-सभ्यता संकट में है लेकिन हम उसे किसी नए देवता और अजनबी विचारों को ग्रहण करके नहीं बचाना चाहते
यह हमारे देवताओं के साथ विश्वासघात होगा
ब्राह्मणो !
मैंने तुम्हारी सभ्यता का सारा उद्योग-बल कुचल दिया
तुम्हारे मुकुटों के रत्न चूर-चूर कर दिए
तुम्हारे राज-सिंहासन छीन लिए
मैं तुम्हारा शत्रु हूँ या मित्र पता नहीं
काश मैं तुम्हें समझा पाता कि तुम्हें और तुम्हारे भविष्य को मेरी और अरस्तू की आवश्यकता है
ये सब मुर्दे हैं
इन्हें मारने की कोई ज़रूरत नहीं
इन अहंकारी नास्तिकों को मेरे सामने से दूर ले जाओ !
(१०)
हमें नास्तिक कहने से तो अच्छा था कि हमें मार डाला जाता
यह हमारा घोर अपमान है
एक ब्राह्मण के यह उद्गार सुनकर सिकन्दर ने कहा :
इसलिए कि नास्तिक वह नहीं जो देवताओं की महत्ता और उपस्थिति पर विश्वास नहीं करता बल्कि नास्तिक वह होता है जो मनुष्य की महानता में विश्वास नहीं करता
इनको मेरे सामने से ले जाओ
मुझे थोड़ी-सी शराब चाहिए !
(११)
सिकन्दर महान !
तुमने उन बिरहमनों की जान बख़्श दी
और उनके सामने बच्चों का-सा व्यवहार किया
उनसे बच्चों की-सी पहेलियाँ पूछीं
क्या हो गया है तुम्हें
सिकन्दर ने कहा :
इस विचित्र-रहस्यमय देश में
उन बिरहमनों के सान्निध्य में मुझे ऐसा ही लगा
जैसे मेरा बचपन लौट आया है
उन सात बिरहमनों ने मुझे बच्चा बना दिया
कोई सुन नहीं रहा
एक ज़माने से कह रहा हूँ
मुझे थोड़ी-सी शराब चाहिए !
कृष्ण कल्पित भीड़ से गुज़रते हुए (1980), बढ़ई का बेटा (1990), कोई अछूता सबद (2003), एक शराबी की सूक्तियाँ (2006), बाग़-ए-बेदिल (2012), हिन्दनामा (२०१९), रेख्ते़ के बीज और अन्य कविताएँ (2022) आदि कविता संग्रह प्रकाशित एक पेड़ की कहानी : ऋत्विक घटक के जीवन पर वृत्तचित्र का निर्माण K 701, महिमा पैनोरमा,जगतपुरा,जयपुर 302017 |
सिकंदर के आक्रमण के समय मंदिर और पत्थर की मूर्तियाँ?!
कृष्ण कल्पित को पढ़ना हमेशा एक ताज़गी भरा अनुभव हुआ करता है।इनकी अराजक सी दिखने वाली गहन अनुभूति से लबरेज़ कविताएं आज के चिकने-चुपड़े पाठक की संवेदना पर जमी काई हटाकर उसे ताज़ादम करने में समर्थ हैं।
तालाबंदी के समय पैदल और साइकिल पर दिल्ली समेत कई महानगरों से अपने गांव जाते हुए दिहाड़ी मजदूरों की दर्दनाक हालत पर सात्विक क्रोध से भरपूर इनकी एक कविता जब भी पढ़ता या पढ़ाते समय उद्धृत करता हूँ, आंखें नम हो जाती है।खुद को हारा हुआ जुआरी, अघोरी कहने का साहस कितने शब्दकर्मियों के पास है?
कल्पित जी की अनेक कविताओं की तरह यह कविता शृंखला भी दिलचस्प और अपनी अंतिम परिणति में दार्शनिक प्रतीत होती हैं, जब वे ईश्वर के बजाय मनुष्य की बेहतरी में अविश्वास करने वालों को सिकन्दर के बहाने नास्तिक कहते हैं।
साधुवाद।
कृष्ण कल्पित की लेखनी नवीन सोच और दायरों से बाहर जाकर अपनी ज़मीन तलाशती है
हम ही कितने अनजान थे इस दार्शनिक, आध्यात्मिक संवाद से। सिकन्दर का योग्य और समर्पित शिष्य का रूप इस संवाद से सामने आया। नयी पीढ़ी को अपनी आध्यात्मिक विरासत से परिचित कराना भी समाज के उत्थान में सहायक होना है।
1. शराब का प्रचलन ठंडे मुल्कों में हुआ होगा । मांस और यह शराब उनके भोजन का हिस्सा है । इसलिये उनकी रचनाओं में शराब का उल्लेख किया गया होता है । दक्षिण भारत में ताड़ी मद्य का रूप है । भारतीय ग्रंथों में भी । अरस्तू विश्व विजय को थका देने वाला कार्य लिखते हैं । अरस्तू दार्शनिक थे । उदात्त सांस्कृतिक अभियान में विश्व को अपना बना लेने की भावना से प्रेरित होकर लिखा होगा । वे शस्त्रास्त्रों से विश्व को विजयी करने की बाबत नहीं लिख रहे होंगे । Abraham Lincoln had said-Force All Conquering, But It’s Victories Are Short Lived.
सिकंदर और सात ब्राह्मणों का वार्तालाप भारतीय मनीषा की ठेठ दार्शनिकता से ओत-प्रोत एक दिलचस्प आख्यान है।भुवनेश्वर का वह एकांकी सिकंदर के दर्प को चुर-चुर कर देता है।वर्णाश्रम व्यवस्था में ब्राह्मण को शीर्ष स्थान पर रखा गया था जो पृथ्वी के देवता थे और बौद्धिक श्रेष्ठता के उच्च आसन पर विराजमान थे।पहले वे कर्म से होते थे पर बाद में जन्म से होने लगे।भारतीय दर्शन की निर्भयता,वाक्पटुता और आध्यात्मिक गहराई -इन सब की काव्यात्मक अभिव्यक्ति यहाँ बखूबी देखी जा सकती है।साधुवाद !
2. इसलिये व्लादिमीर पुतिन को समझाया जाना चाहिये कि वे ख़ाली हाथ दुनिया से रुख़सत करेंगे । यूक्रेन 🇺🇦 जैसे पिद्दी देश पर आक्रमण करना उनके बिगड़ चुके दिमाग़ का प्रतीक है । यूँ उन्होंने रशिया की संसद (ड्यूमा) में ख़ुद को 83 वर्ष की आयु तक राष्ट्रपति बने रहने का संशोधन करा लिया था । क्या कोई व्यक्ति अगली साँस आने का पक्का भरोसा कर सकता है । कविता के बाक़ी हिस्से को बेबाक़ तरीक़े से लिखा गया है । साधुवाद ।
3. यदि ब्राह्मणों ने अनाज और मांस की 70 नावें डुबो दी है तब यह सुनिश्चित है कि अहिंसक नहीं हैं । वे हिंसक गतिविधियों में मुब्तिला हैं ।
4. बिरहमनों ने सिकंदर को अपना मित्र क्यूँकर मानना चाहिये । सिकंदर आक्रमणकारी था । उसने अपनी सेना लेकर विश्व को विजय करने के लिये निकला था । संसार के कई देशों को जीतकर भारत 🇮🇳 को अपने अधीन करने की लिये आया था । लेकिन अपनी पराजय स्वीकार करके वापस लौटते हुए उसकी मृत्यु हो गयी । मेरी दृष्टि से सिकंदर मृत्यु की मृत्यु सदमे से हुई थी ।
5. युद्ध में किसी भी जाति, समाज या राष्ट्र को पराजित करके वह योद्धा देवता नहीं बन सकता । सिकंदर की माँग बेवक़ूफ़ाना थी । वह भारत में आक्रांता बनकर आया । मंदिर तोड़ डाले । स्वाभाविक रूप से Deities भी । मूर्तिभंजकों को भारत में आदर नहीं मिल सकता । प्रभु में आस्था रखने वाले व्यक्ति समझते हैं कि परमेश्वर निराकार है । परंतु साकार से निराकार ईश्वर को समझा जा सकता है । व्यक्ति की चेतना का विकास उसे निराकार की आराधना करना सिखाता है । मैं कम्युनिस्टों से पूछना चाहता हूँ कि वे मृत्यु के पश्चात शवदाह कराये जाने या दफ़्न किया जाना चुनेंगे । नास्तिक कम्युनिस्ट देशों; जैसे चीन, अब हांगकांग भी, क्यूबा, वियतनाम और उत्तर कोरिया में तथा अघोषित रूप से कम्युनिस्ट देश रशिया में व्यक्तियों को दफ़नाया जाता है । भाई लोगों कोई और रास्ता चुनो । पारसियों की तरह मृत शरीर को जंगल में रख आओ जहाँ गिद्ध और अन्य जानवर और पक्षी शरीर को नोचकर खा जाएँगे । या बौद्ध भिक्षुओं की तरह उसकी मृत देह के 108 टुकड़े करके समुद्र में फेंकने के लिये कह जाओ ।
6. पहली पंक्ति का अर्थ भ्रमित कर रहा है । देवता हमें पैदा नहीं करता । जीवधारियों में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग जीव संभोग करते हैं । तब सभी का जन्म होता है । आप देवता लिखें या उच्च आत्मा वह अपने कर्मों से महान बनता है । श्रम साधना करके अपने अंतर्भावों को विकसित कर सकता है । वह रचना करना हो, गायन या वादन हो, नृत्य हो अथवा अष्टांग योग हो । मनुष्य के अस्तित्व का आदर करना सीखना होगा । वह केवल भौतिक इकाई नहीं है । जीवंत प्राणी है । जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया था कि पौधों में प्राण होते हैं । व्लादिमीर पुतिन की सेना सिर्फ़ इमारतों पर हमला नहीं कर रही । सेना की ज़द में वृक्ष और पशु-पक्षी भी हैं । उनकी कराहटें धरती पर सुनायी दे रही हैं । चलिये अंत में जोड़ दिया जाये तो यूक्रेन के सैनिक, नागरिक, Kindergarten में पढ़ने वाले बच्चे भी ।
अरस्तू या उसका प्रतिरूप देवताओं का मान मर्दन नहीं करता । बल्कि स्वागत करता । अपने सीने से लगाता । सिकंदर तुम सवाल करने वाले कौन होते हो । तुमने भारत पर युद्ध थोपा है । पिछले पाँच हज़ार वर्षों में धरती पर तीन हज़ार युद्ध हुए हैं । After world wars most fierce war was done by Moscow. Moscow’s Military invaded 15 sovereign countries of the world. At the behest of Stalin 20 lakh people were slain in his own country he and 15 countries were umbrella under Moscow.
बहुत उम्दा आख्यान bhuvneshawar की कृति पर कल्पित जी ने लिखा है। Bhuvneshawar के नाटकों को बहुत जल्दी भुला दिया गया। जिस शख्स ने 1935 में absurd play दिये हों उसको यूं भूलना नहीं चाहिए। कल्पित जी ने नई दृष्टि से समझा और लिखा है, सराहनीय कदम।
कृष्ण कल्पित की कविताओं ने मुझे नींद में झिंझोड़ दिया। मेरी इस गलतफ़हमी से दूर कर दिया कि मैं कविताएं पढ़ता हूं। जैसे कबीर को पढ़ने के बाद दूसरी कविताएं पढ़ने का मन नहीं करता, वैस ही कृष्ण कल्पित जी की ये कविताएं पढ़ने के उपरांत दूसरी कविताओं के प्रति अनुराग पैदा नहीं होता।
अभी भी मैं इनके बीच भटका हुआ हूं।