नॉस्टैल्जिया: अतीत की याद या अनभिज्ञता फ्रेंच से हिंदी अनुवाद: रीनू तलवाड़ |
मिलान कुंदेरा का जन्म चेकोस्लोवाकिया में हुआ था मगर उन्होंने 1975 में फ्रांस में निर्वासन की मांग की, क्योंकि मध्य यूरोप में कम्युनिस्ट शासन की वजह से राजनीतिक माहौल ठीक नहीं था. वहाँ, पहली बार, वे सेंसर होने के डर के बिना, स्वतंत्र रूप से लिख सके. उन्होंने 1981 में फ्रांसीसी राष्ट्रीयता प्राप्त की (1979 में उनकी चेक नागरिकता छीन लिए जाने के बाद). पेरिस में रहते हुए उन्होंने अपना सबसे प्रसिद्ध उपन्यास द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग (1984) लिखा जो बहुत सफल रहा.
1993 के बाद, उन्होंने विशेष रूप से फ्रेंच में लिखना शुरू किया और उसे वे अपनी “दूसरी मातृभाषा” कहने लगे. ऐसा करते हुए वे कई यूरोपीय लेखकों के नक़्शेक़दम पर चल रहे थे जिन्होंने फ्रेंच को अपनी भाषा के रूप में अपनाया था जैसे कि ‘वेटिंग फॉर गोदो’ के सिद्ध लेखक, आयरलैंड के सैम्युएल बेकेट, रोमन नाटककार यूजेन योनेस्को, स्विस लेखिका आगोटा क्रिश्टॉफ और स्पेनिश लेखक होर्खे सेमप्रुन. आज भी, फ़्रांस में कई प्रसिद्ध लेखक हैं जिनकी मातृभाषा कोई और थी और जिन्होनें फ़्रेंच भाषा बाद में अपनाई, जैसे कि लेबनॉन में जन्मे अमीन मालूफ़, मोरक्को के तहर बिन जलून, रूसी लेखक आंद्रेई माकीन और अमेरिकी लेखक जॉनाथन लिटल.
जब एक लेखक ऐसी भाषा में लिखता है जो उसकी अपनी नहीं है तो इस बात का क्या प्रभाव पड़ता है? कुछ आलोचक मानते हैं कि इस तरह वह भाषा शुष्क हो जाती है, जबकि अन्य आलोचक यह तर्क देते है कि एक भाषा की समझ से दूसरी भाषा में रचना, उस भाषा को समृद्ध करता है. फ़्रेंच को अपनी विशिष्ट भाषा के रूप में अपनाने से पहले भी कुंदेरा अपनी कृतियों के फ्रेंच में अनुवाद नहीं, एक तरह से पुनः लेखन ही करते थे ताकि वे मूल कृति के जितना संभव हो सके उतना करीब हों. उन्होंने फ्रेंच भाषा में लिखना क्यों चुना इसका कारण कभी भी स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया, मगर यह आभास होता है कि वे फ्रांसीसी संस्कृति को पूरी तरह से अपनाना चाहते थे. कुल मिलाकर, कुंदेरा ने फ्रेंच में चार उपन्यास और कई निबंध प्रकाशित किए. और कम्युनिस्ट शासन के पतन के बाद भी, उन्होंने फ्रांस में ही रहने का फैसला किया.
वर्ष 2000 में उनका एक उपन्यास प्रकाशित हुआ– लीन्योरॉन्स (L’Ignorance) यानी अनभिज्ञता. यह उपन्यास 1968 के प्राग वसंत के दो दशक बाद, अलग-थलग पड़े दो चेक प्रवासियों, इरेना और योसेफ, के रोमांस पर केंद्रित है. यह उस मातृभूमि में वापसी से उत्पन्न भावनाओं की भी जांच करता है जो अब घर नहीं रह गई है. इसमें, कुंदेरा नॉस्टैल्जिया यानी अतीत की याद और प्रवासी की वापसी की लालसा से जुड़े मिथकों को अलग दृष्टि से देखते हैं. वे इस बात की भी पड़ताल करते हैं कि कैसे चयनात्मक स्मृतियाँ लोगों को अनभिज्ञता की हद तक ले जाती हैं. अनभिज्ञता की अवधारणा को यहाँ दो-तरफा घटना के रूप में प्रस्तुत किया गया है; अनभिज्ञता स्वैच्छिक हो सकती है, जैसे वार्तालाप के अप्रिय विषयों से बचना. और उसके अनैच्छिक पहलू भी हो सकते हैं, जैसे अतीत के प्रति अनभिज्ञता का दिखावा करना या सच्चाई से बचना. अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि
“शब्द -व्युत्पत्ति की नज़र से देखें तो नॉस्टैल्जिया कुछ-कुछ अनभिज्ञता या न जानने की पीड़ा जैसा प्रतीत होता है.”
इरेना और योसेफ को पता चलता है कि कैसे प्रवासन और विस्मृति ने अंततः उन्हें उनकी पीड़ा से मुक्त कर दिया है. यहाँ कुंदेरा ओडीसियस या यूलिसिस के मिथक का खूब इस्तेमाल करते हैं, विशेष रूप से ‘देस’ के मिथक और ‘अपनी जड़ों’ के भ्रम का.
कथा साहित्य की शैली को नई विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए उसमें अतीत, स्मृति और विस्मरण, नॉस्टैल्जिया और आत्म-उपहास जैसे सशक्त दार्शनिक विषयों को शामिल करना ही शायद कुंदेरा का लक्ष्य था.
रीनू तलवाड़
लीन्योरॉन्स
उपन्यास-अंश
ग्रीक भाषा में, लौटने या वापसी को नॉस्तोस कहा जाता है. अल्गोस का अर्थ है पीड़ा. इसलिए, नॉस्टैल्जिया अतीत में लौटने की ललक के कारण होने वाली पीड़ा है. इस मौलिक धारणा के लिए, अधिकांश यूरोपीय लोग इस ग्रीक मूल के शब्द (नॉस्ताल्जी, नॉस्टैल्जिया) का उपयोग कर सकते हैं और फिर अन्य शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनकी जड़ें राष्ट्रीय भाषाओं में हैं, जैसे कि स्पेन के लोग आन्योरांसा कहते हैं; पुर्तगाली कहते हैं सउदाद. प्रत्येक भाषा में, इन शब्दों की अलग-अलग अर्थ संबंधी बारीकियाँ होती हैं. अक्सर इनका मतलब केवल अपने घर या देस लौटने की असंभवता के कारण होने वाली उदासी से होता है.
देस की याद. घर लौटने की आतुरता. जिसे अंग्रेजी में होमसिकनेस कहा जाता है. या जर्मन में: हाइमवे. डच में: हेइमवे. मगर यह इस वृहत् धारणा का एक स्थानिक समानयन है. आइसलैंडिक, जो सबसे पुरानी यूरोपीय भाषाओं में से एक है, स्पष्ट रूप से दो शब्दों में फर्क करती है: सहक्नुदर : अतीत की यादें; और हेमफ़्रा : देस की याद. चेक लोगों के पास, ग्रीक से लिए गए नॉस्टेल्जिया शब्द के अलावा, इस धारणा के लिए उनकी अपनी संज्ञा, स्तीसका और अपनी ही क्रिया है; सबसे मार्मिक चेक प्रेम वाक्यांश है: स्तीसका स मी पो तोब्ये: मैं तुम्हारे लिए तरसता हूँ; मैं तुम्हारी अनुपस्थिति का दुःख सहन नहीं कर सकता. स्पैनिश में, आन्योरांसा , आन्योरार क्रिया (नॉस्टैल्जिया होना) से आता है, जो कैटलन एन्योरा से आता है, जो लैटिन शब्द इन्योरारे (अनदेखा करना) से लिया गया है. इस व्युत्पत्ति पर प्रकाश डालने से, नॉस्टैल्जिया (अतीत की ललक) अनभिज्ञता की पीड़ा के रूप में प्रकट होता है. तुम बहुत दूर हो, और मैं नहीं जानता कि तुम्हारे जीवन में क्या घटित हो रहा है. मेरा देश बहुत दूर है और मुझे नहीं पता कि वहाँ क्या हो रहा है. किन्हीं भाषाओं में नॉस्टैल्जिया यानी अतीत की यादों को लेकर कुछ कठिनाइयाँ हैं:
फ्रांसीसी इसे केवल ग्रीक मूल की संज्ञा द्वारा व्यक्त कर सकते हैं और उनके पास इसके लिए कोई क्रिया नहीं है; वे कह सकते हैं: मैं तुम्हारे लिए व्याकुल हूँ, परेशान हूँ, लेकिन व्याकुल शब्द कमज़ोर है, ठंडा है, और किसी भी ओर से देखें, इतनी गहन भावना के लिए बहुत हल्का है.
जर्मन लोग ग्रीक शब्द नॉस्टैल्जिया का उपयोग बहुत कम करते हैं और ज़ेनज़ोख्त कहना पसंद करते हैं: जो अनुपस्थित है उसकी लालसा; मगर ज़ेनज़ोख्त का दो तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है : जो पहले रहा है और जो कभी भी नहीं रहा है (एक नया साहसिक कार्य), इसलिए यह आवश्यक रूप से नॉस्तोस के विचार को नहीं दर्शाता है; ज़ेनज़ोख्त में अतीत की ओर लौटने की धुन को शामिल करने के लिए, हमें एक पूरक जोड़ना होगा:
ज़ेनज़ोख्त नाख डेर फगैंगेनहाइट, नाख डेर फर्लोरेनेन किंडहाइट, नाख डेर अर्स्टाइन लीब (अतीत की इच्छा, खोया हुआ बचपन की याद, पहले प्यार की चाह).
प्राचीन यूनानी संस्कृति के उषाकाल में ‘द ओडिसी’ का जन्म हुआ, जो नॉस्टैल्जिया का संस्थापक महाकाव्य था. आइए इस बात पर ध्यान दें: यूलिसिस, सर्वाधिक महान साहसी योद्धा, सबसे महान नॉस्टैल्जिक भी है. वह ट्रोजन युद्ध के लिए (बिना अधिक खुश हुए) चला गया जहाँ वह दस साल रहा. फिर उसने अपने मूल स्थान इथाका लौटने की जल्दी की, मगर देवताओं के षड्यंत्रों ने उसकी यात्रा को लम्बा खींच दिया, पहले, अति काल्पनिक घटनाओं से भरे तीन साल, फिर सात साल और, जो उसने देवी कैलिप्सो के बंधक और प्रेमी के रूप में बिताए, जो उस से प्रेम करती थी और जिसने उसे अपना द्वीप छोड़ने नहीं दिया.
द ओडिसी के पांचवें सर्ग में, यूलिसिस उससे कहता है: ” बुद्धिमती होते हुए भी, मुझे पता है कि तुम्हारी तुलना में, पॅनेलपी न तो महान होगी और न ही सुंदर… मगर फिर भी मैं हर दिन एक ही प्रार्थना करता हूँ कि मैं वहाँ वापस जाऊँ, अपने लौटने का दिन अपने घर में देखूँ!” और होमर आगे कहते हैं: “जैसे ही ओडीसियस बोला, सूरज डूब गया; शाम ढल गई: तहखाने के नीचे, गुफा की गहराई में, वे एक-दूसरे को प्यार करने के लिए, एक-दूसरे की बाहों में रहने के लिए लौट आए. “
इसकी तुलना इरेना के जीवन से नहीं की जा सकती जो लंबे समय तक गरीब अप्रवासी की तरह जीती रही. यूलिसिस ने कैलीप्सो के यहाँ एक वास्तविक डोल्चे वीता, आराम और आनंद का जीवन जीया. हालाँकि, विदेश में डोल्चे वीता और जोखिम भरी घर वापसी के बीच, उसने घर वापसी को चुना.
अज्ञात (साहसिक कारनामों/ यात्राओं) की जोश-भरी खोज के बजाय, उसने ज्ञात (लौटना) का गुणगान किया. अज्ञात की अनंतता के बजाय (क्योंकि रोमांच कभी न ख़त्म होने का दावा करता है), उसने अंत को प्राथमिकता दी (क्योंकि लौटना जीवन की सीमा के साथ सामंजस्य बिठाना है).
उसे जगाए बिना, फाएकिया के नाविक यूलिसिस को इथाका के तट पर एक जैतून के पेड़ के नीचे चादरों पर लिटा कर चले गए. यह यात्रा का अंत था. वह थक कर सो गया. जब वह जागा तो उसे नहीं पता था कि वह कहाँ है. तब देवी आथीना ने उसकी आँखों पर छाई धुंध हटा दी और उस पर एक नशा-सा छा गया; महान वापसी का नशा; जाने-पहचाने का असीम सुख; वह संगीत जिसने धरती और आकाश के बीच की हवा को झंकृत कर दिया: उसने उस बंदरगाह को देखा जिसे वह बचपन से जानता था और उस पर्वत को जो बंदरगाह के ऊपर था, और उसने पुराने जैतून के पेड़ को सहलाया यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह वैसा ही था जैसा बीस साल पहले हुआ करता था.
1950 में, जब आर्नोल्ड शुनबर्ग को संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हुए सत्रह वर्ष हो चुके थे, एक पत्रकार ने उनसे कुछ कुटिल मगर सुनने में सीधे लगने वाले प्रश्न पूछे: क्या यह सच है कि प्रवासन के कारण कलाकार अपनी रचनात्मक शक्ति खो देते हैं? उनकी जन्मभूमि की जड़ें जैसे ही उनका पोषण करना बंद कर देती हैं, क्या उनकी प्रेरणा सूख जाती है?
ज़रा सोचिए! होलोकॉस्ट के पाँच वर्ष बाद! और एक अमेरिकी पत्रकार ज़मीन के उस टुकड़े के प्रति लगाव की कमी के लिए शुनबर्ग को माफ नहीं करता है, जहाँ, उसकी आँखों के सामने, क्रूरता और भयावहता का नंगा नाच हुआ था! मगर कुछ किया नहीं जा सकता. होमर ने नॉस्टैल्जिया को लॉरेल की पत्तियों का ताज पहना कर प्रतिष्ठित कर दिया और इस प्रकार भावनाओं का एक नैतिक सोपान निर्धारित कर दिया. पॅनेलपी शीर्ष पर है, कैलिप्सो से बहुत ऊपर.
कैलिप्सो, आह कैलिप्सो! मैं अक्सर उसके बारे में सोचता हूँ. वह यूलिसिस से प्रेम करती थी. वे सात वर्ष तक एक साथ रहे थे. हम नहीं जानते कि यूलिसिस पॅनेलपी के साथ कितने समय के लिए हमबिस्तर रहा होगा, लेकिन निश्चित रूप से बहुत लंबे समय तक नहीं. फिर भी हम पॅनेलपी के दर्द का गुणगान करते हैं और कैलिप्सो के आँसुओं का मज़ाक़ उड़ाते हैं.
दो)
फ्रांसीसी क्रांति के भड़कने के ठीक दो सौ साल बाद यूरोप में साम्यवाद का अंत हो गया. इरेना की पेरिस की दोस्त सिल्वी के लिए यह एक अर्थपूर्ण संयोग था. मगर, वास्तव में इसका क्या अर्थ था? इन दो महत्वपूर्ण तिथियों को जोड़ते इस विजय-तोरण को क्या नाम दिया जाना चाहिए? यूरोप की दो महान क्रांतियों का तोरण? या महानतम क्रांति को अंतिम पुनर्स्थापना से जोड़ने वाली मेहराब? वैचारिक विवादों से बचने हेतु, मैं अपने उद्देश्यों के लिए एक अधिक विनम्र व्याख्या का प्रस्ताव करना चाहता हूँ: पहली तारीख ने एक महान यूरोपीय शख़्सियत, यानी उत्प्रवासी (महान गद्दार या महान पीड़ित, जो भी आप कहना चाहें) को जन्म दिया; दूसरी ने उत्प्रवासी को यूरोपीय इतिहास के मंच से ही हटा दिया; उसी समय, सामूहिक अवचेतन के महान फिल्म निर्माता ने, उत्प्रवास के सपनों वाली, अपनी सबसे मौलिक प्रस्तुतियों में से एक को ख़त्म ही कर दिया. तभी, कुछ दिनों के लिए, इरेना की प्राग में पहली बार वापसी हुई. जब वह चली थी तो बहुत बहुत ठंड थी और फिर, तीन दिनों के बाद, अचानक, अप्रत्याशित रूप से, समय से पहले ही गर्मियाँ आ गईं.
उसका सूट, जो बहुत मोटा था, अब बेकार हो गया. चूँकि वह अपने साथ कोई हल्के कपड़े नहीं लाई थी, इसलिए वह एक दुकान में ड्रेस खरीदने के लिए गई. देश में अभी तक पश्चिम के सामानों की भरमार नहीं हुई थी और उसे वही कपड़े, वही रंग, वही डिज़ाइन मिले जिन्हें वह कम्युनिस्ट युग के दौरान जानती थी. उसने दो या तीन ड्रेस पहन कर देखीं और उसे उलझन होने लगी. यह कहना मुश्किल है कि क्यों: वे देखने में बुरी नहीं थीं, उनका डिज़ाइन भी बुरा नहीं था, लेकिन वे उसे उसके सुदूर अतीत की याद दिलाती थीं, उसकी युवावस्था की सादी-संयमित पोशाकों की. उसे वे साधारण, देहाती, अपरिष्कृत लग रही थीं जो केवल किसी गाँव की मास्टरनी के लायक थीं. मगर वह जल्दी में थी. तो आखिर कुछ दिनों के लिए किसी देहाती स्कूल अध्यापिका की तरह क्यों न दिख लिया जाए? उसने पोशाक को एकदम बेतुके दाम पर खरीदा, उसे पहन लिया और, अपने शीतकालीन सूट को बैग में रखकर बाहर, बेहद गर्म सड़क पर, निकल आई.
फिर, एक डिपार्टमेंटल स्टोर में से गुज़रते हुए, उसने अचानक स्वयं को एक विशाल दर्पण से ढकी दीवार के सामने पाया और स्तब्ध रह गई: जो उसे दिखाई दी वह स्वयं वह नहीं थी, कोई और ही थी या, जब उसने अपनी नई पोशाक में देर तक स्वयं को निहारा, तो वह स्वयं तो थी मगर जैसे कोई और जीवन जी रही थी, वह जीवन जो यदि वह उसे देश में रहती तो उसका होता. वह महिला देखने में अप्रिय नहीं थी, वह आकर्षक थी, शायद कुछ ज्यादा ही आकर्षक, आँखों में आँसू ले आने जितनी आकर्षक, दयनीय, दीन, लाचार और दब्बू.
उसने स्वयं को उसी घबराहट से घिरा हुआ पाया जिसने बहुत पहले उसके उत्प्रवास के सपनों को जकड़ा था: एक पोशाक की जादुई शक्ति से, उसने स्वयं को एक ऐसे जीवन में कैद देखा जिसे वह हरगिज़ नहीं चाहती थी और जिससे वह बच कर निकल नहीं पाती. मानो, बहुत पहले, अपने वयस्क जीवन की शुरुआत में, उसके समक्ष कई संभावित जीवन थे, जिनमें से उसने अंततः वह जीवन चुन लिया था जो उसे फ्रांस ले आया था. और मानो वे अन्य जीवन, अस्वीकृत और परित्यक्त, सदा उसके लिए तैयार रहते थे, और ईर्ष्या से भर उसे अपने आश्रय-स्थलों से देखा करते थे. उनमें से एक ने अब इरेना को झपट लिया था और उसे उसकी नई पोशाक में ऐसे लपेट लिया था मानो किसी जकड़जामे में.
भयभीत हो, वह भाग कर गुस्ताफ़ के यहाँ पहुंची ( जिसका ठिकाना शहर के बीचोबीच था) और उसने कपड़े बदल लिए. अपना सर्दियों वाला सूट दोबारा पहन कर उसने खिड़की से बाहर देखा. आसमान में बादल छाए हुए थे और हवा से पेड़ झुके जा रहे थे. मौसम केवल कुछ ही घंटों के लिए गर्म हुआ था. गर्मी के कुछ घंटे उस पर दुःस्वप्न-सी चाल चल गए थे, उसे लौटने की भयावहता का पूरा बोध करवा गए थे.
(क्या यह एक स्वप्न था? प्रवासन का उसका अंतिम स्वप्न? नहीं, यह सब वास्तविक था. हालांकि, उसे आभास हो रहा था कि जिस जाल, जिस फंदे के बारे में उन बीते समय के सपनों ने बताया था, वे गायब नहीं हुए थे, कि वे हमेशा से वहीं थे, हमेशा तैयार थे, उसके मार्ग में घात लगाए बैठे थे).
तीन)
उसकी अनुपस्थिति के बीस वर्षों के दौरान, इथाका के लोगों ने यूलिसिस की कई यादें संजोकर रखी थीं, मगर उसके लिए कोई नॉस्टैल्जिया महसूस नहीं करते थे. जबकि यूलिसिस अतीत के लिए तड़प महसूस करता था और उसे अतीत का लगभग कुछ भी याद न था.
हम इस विचित्र विरोधाभास को समझ सकते हैं यदि हमें यह एहसास हो कि स्मृति को ठीक से काम करने के लिए, निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है: यदि दोस्तों के बीच बातचीत में यादें बार-बार दोहराई नहीं जातीं, तो वे धुंधली हो जाती हैं. एक ही देश के प्रवासी जब विदेश में साथ-साथ रहते हैं, उन्हीं कहानियाँ को, अपच होने की हद तक, सुनाते-दोहराते हैं और इस प्रकार उन्हें अविस्मरणीय बना देते हैं. मगर इरेना या यूलिसिस की तरह जो लोग अपने हमवतन लोगों से मेल-जोल नहीं रखते, वे निश्चय ही भूलने की बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं. जितनी उनकी अतीत की ललक प्रबल होती है, उतनी ही उनकी यादें मिटती जाती हैं. यूलिसिस जितना अधिक नॉस्टैल्जिया में घिरा रहा, वह उतना ही अधिक भूलता गया. क्योंकि नॉस्टैल्जिया स्मृति की गतिविधि को तीव्र नहीं करता है, वह स्मृतियों को जागृत नहीं करता है, अपनी भावनाओं के सन्दर्भ में वह आत्मनिर्भर है चूंकि वह अपने ही दु:ख में लीन है.
उन मूर्ख लोगों को मारने के बाद, जो पॅनेलपी से शादी करना चाहते थे और इथाका पर शासन करना चाहते थे, यूलिसिस को उन लोगों के बीच रहना पड़ा जिनके बारे में वह कुछ भी नहीं जानता था. उसकी चापलूसी करने के लिए, उन्होंने युद्ध के लिए रवाना होने से पहले का जो कुछ भी उन्हें उसके बारे में याद था, वह सुनाया व दोहराया. और, आश्वस्त हो, कि उसे इथाका के अलावा किसी और चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी (वे ऐसा कैसे न सोचते क्योंकि उसने यहाँ लौटने के लिए समुद्र के महान विस्तार को लाँघा था?), उन्होंने उसे बताया कि उसकी अनुपस्थिति में क्या-क्या हुआ था और वे उसके सभी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उत्सुक थे. इससे अधिक उसे किसी बात से ऊब नहीं हुई थी. वह केवल एक ही चीज़ की प्रतीक्षा कर रहा था: कि अंततः वे उससे कहें: अब तुम बताओ! और यही वे शब्द थे जो उन्होंने उससे कभी नहीं कहे.
बीस वर्षों तक उसने केवल अपनी वापसी के बारे में ही सोचा था. मगर लौटने पर, वह भौंचक्का रह गया जब उसे यह ज्ञात हुआ कि उसका जीवन, उसके जीवन का सार, उसका केंद्र, उसका खज़ाना, सब इथाका के बाहर था, उसके बीस वर्षों की भटकन में था. और यह ख़ज़ाना वह खो चुका था और केवल उसके बारे में बात करने से ही उसे पुनः पाया जा सकता था.
कैलीप्सो को छोड़ने के बाद, अपनी वापसी यात्रा पर, फेकिया में उसका जहाज़ क्षतिग्रस्त हो गया था, जहाँ राजा ने उसका अपने दरबार में स्वागत किया. वहाँ वह एक अजनबी, एक रहस्यमय परदेसी था. किसी अपरिचित व्यक्ति से हम पूछते हैं: “आप कौन हैं ? कहाँ से आए हैं? बताइए !” और उसने बताया था. द ओडिसी के चार लंबे सर्गों में, उसने फेकिया के आश्चर्यचकित लोगों के लिए अपने कारनामों का विस्तार से वर्णन किया था. मगर इथाका में वह कोई अजनबी नहीं था, वह उनमें से एक था और इसीलिए कभी किसी के मन में ऐसा नहीं आया कि वह उससे कहे: “तुम बताओ!”
रीनू तलवाड़
फ्रेंच पढ़ातीं हैं
कवयित्री, समीक्षक,अनुवादक
विश्व भर की कविताओं का हिंदी में अनुवाद तथा मूल फ्रेंच से विपुल अनुवाद
नियमित रूप से अखबारों में साहित्य, रंगमंच व सिनेमा पर लेखन
ई पता : reenu.talwarshukla@gmail.com
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कितना अच्छा अनुवाद है। इन दिनों कुंदेरा (उनकी मृत्यु के बाद से ही) को ही पढ़ता जा रहा हूँ। पढ़े हुए में यह अनूदित टुकड़ा किसी तरह की पूर्णता का बोध कराता है। कुंदेरा अतीत को बुरी तरह समझने और प्रस्तुत करने वाले लेखक हैं। एक स्थान पर वे कहते हैं कि ‘बिना अतीत का आदमी बिना भूमिका का अभिनेता होता है।’ सीधे फ़्रेंच से हिन्दी में आने वाली यह सामग्री उनके लिए बहुत क़ीमती है जो कुंदेरा और उनके लेखन को समझने की कोशिश कर रहे हैं। रीनू तलवाड़ जी का आभार।
एक लम्बे समय बाद कुछ पढ़कर अच्छा लगा। पढ़ना शुरू किया तो रुक नहीं पाया, पढ़ता गया। और फिर अपनी ही एक कविता की याद आ गयी, हालाँकि उसका इस लेखन से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं बनता:
“हम वहीं पर आ पहुँचे हैं जहाँ से हम चले थे, हालाँकि यह जगह काफ़ी बदल गयी है। तुम्हें लगता है कि वह हमें पहचानती है? हमारे घोड़े थके हुए हैं, गालें धँसी हुई हैं। हम धूल से सने हैं। जो लोग हमें जानते थे वे कहाँ हैं? यह कैसा लौटना है? देखो कैसे हम अजनबियों की तरह खड़े हैं।
लेकिन दूर
वह जो बूढ़ा बरगद है
उसकी स्मृति में हम अब भी शायद बचे हुए हैं।
और निश्चित ही
उस सूखी नदी के
तल पर
पड़े हुए पत्थर
हमें भूले नहीं होंगे।”
— रुस्तम
बहरहाल, लगता है कि nostalgia के लिए हिन्दी में भी कोई सही शब्द नहीं है।
अनुवाद बहुत अच्छा है।
सुंदर अनुवाद। विद्वतापूर्ण लेखन का सरस अनुवाद बेहद मुश्किल होता है जिसे रीनू तलवाड़ ने कर दिखाया है। कुंदेरा का लेखन मुझे ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पाया। अनबीयरेबल लाइटनेस से तो मैं बहुत निराश हुई। मुझे लगता रहा कि उनके पात्र ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से कुछ कटे, कुछ उसकी चुनौतियों से अनभिज्ञ ही रहते हैं। फिर भी वे उल्लेखनीय लेखक तो हैं ही। और अनुवाद की इस पुनर्रचना का अपना सुख भी है।
पढ़ लिया है । अनुवाद का मूल्यांकन वे कर सकते हैं जिन्हें फ़्रेंच भाषा आती है । मुझे अतीत की याद nostalgia में लौटना अच्छा लगता है । अनेकों दफ़ा सपने में पुराना घर और पुराने बाज़ार दिख जाते हैं । वह सुंदर समय था । अतिक्रमण की विद्रूपता नहीं थी । साइनबोर्डों से बाज़ार अटे पड़े हैं । ऊँची दुकानों पर फीके पकवान मिलते हैं ।
मिलान कुंदेरा मेरे प्रिय लेखक हैं । इन्होंने निर्वासन का दर्द झेला । अपने मूल देश चेकोस्लोवाकिया ने मिलान को नागरिकता से वंचित कर दिया गया था ।
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ रही हूं, रीनू। अच्छा लगा। बढ़िया अनुवाद है।