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Home » नये मगध में: पंकज चौधरी

नये मगध में: पंकज चौधरी

कवि-संपादक राकेश रेणु का तीसरा कविता संग्रह- ‘नये मगध में’ इसी वर्ष अनुज्ञा बुक्‍स से प्रकाशित हुआ है. इसकी चर्चा कर रहें हैं कवि पंकज चौधरी.

by arun dev
August 13, 2022
in समीक्षा
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नये मगध में: पंकज चौधरी
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“नये मगध” में आपका स्वागत है

पंकज चौधरी

राकेशरेणु प्रतिरोध के कवि हैं. उनके प्रतिरोध का अर्थ तब और बढ़ जाता है जब सत्‍ता का खौफ और भय चारों ओर व्‍याप्‍त हो और वह उसे “नये मगध” के रूप में व्‍याख्‍यायित कर रहा हो. यह देखते हुए भी कि अगर कोई राज्‍य की जनविरोधी, विभेदकारी नीतियों और तानाशाहीपूर्ण रवैये के खिलाफ लिखने, बोलने और आवाज उठाने की जहमत करता है तो उसे उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. उसकी ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां हो रही हैं. आजीवन कारावास में डाल दिया जा रहा है. तबाह कर दिया जा रहा है. यहां तक कि राज्‍य के निर्णयों का स्‍वागत नहीं करने पर भी उसे संदिग्‍ध और राष्‍ट्रद्रोही घोषित किया जा रहा है. ऐसी स्थिति-परिस्थिति में यदि राकेशरेणु वर्तमान की “नये मगध” के रूप में शिनाख्‍त और पोस्‍टमार्टम करते हैं तो यह उनके सच एवं साहस का ही परिचायक है-

“उन नियमों का पालन जरूरी था जन-जन के लिए
न मानने की सजा कुछ भी हो सकती थी
सार्वजनिक प्रताड़ना, मारपीट, कारावास
या फिर मृत्‍युदंड
खड़े-खड़े गोली मारी जा सकती थी अवज्ञाकारी को
यह नये मगध का जनतंत्र था.’’

राकेशरेणु ने अपने समय और समाज की पड़ताल करनी जब शुरू की तब उन्‍हें भी यह अंदाजा नहीं था कि इतना अप्रत्‍याशित, अप्रतिहत और विकट घटित हो चुका है कि उसे व्‍याख्‍यायित करने और समेटने के लिए एक नहीं बल्कि 15-15 खंडों में कविताएं लिखनी होंगी. विगत को जैसे ही वह लिखना शुरू करते, फिर नया कुछ घटित हो जाता. भयानक, भयावह, अकल्‍पनीय, अश्लील जैसा कुछ. लगभग एक दशक से भारत की जनता को वह सब कुछ देखने और सुनने के लिए मजबूर कर दिया गया है कि जिसकी उन्‍होंने कल्‍पना भी नहीं की होगी. जनता-जनार्दन ने इस आशा और प्रत्‍याशा में तो पुराने निजाम को हटाकर नये निजाम को स्‍थापित नहीं किया था कि उन्‍हें ऐसे भी दिन देखने पड़ेगे-

“जो मूल्‍यों को जीते थे
विचार दे सकते थे जनहितकारी
जो समाज बदल सकते थे
खतरा थे निजाम के लिए.”

भारत के इतिहास में बार-बार झांकने पर भी पता नहीं चलता कि कब राज्‍य ने नापाक मंसूबों और इरादों को अंजाम देने वालों को पुरस्कृत या संपोषित किया. राज्‍य का मंतव्‍य यहां स्‍पष्‍ट है कि अब वह एक विशेष धर्म के जरिए संचालित होगा और अगर उसके रास्‍ते में आने की कोई जुर्रत करेगा तो वह नप जाएगा. भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक स्‍वरूप को ऐसे बिगाड़ दिया जाएगा कि फिर कोई ऐसा संविधान डिजाइन करने की हिम्‍मत नहीं करेगा. संविधान समीक्षा की घोषणा वे वैसे ही बार-बार नहीं करते. वे मुट्ठीभर विशेषाधिकार प्राप्‍त वर्ग के लिए ‘न्‍यू इंडिया’ के निर्माण को आमादा हैं. सदियों से वंचित, प्रताड़ित, अपमानित और बेकस लोगों का अधिकार के लिए संघर्ष करना उन्‍हें कतई मंजूर नहीं. दलितों, स्त्रियों की अस्मिता की लड़ाई बेकार, फिजूल और बेमानी है. गौ-रक्षकों के लिए मानवाधिकार आयोग में जहां आसन विराजमान हो, तो वहां अंधेर नगरी को ही हम साकार होता देखेंगे-

“उसकी अंगुली ऊपर की ओर उठी रहती
वो हमेशा ऊपर देखता
दूर तक देख सकता था इस तरह
नीचे देखना तौहीन था उसके लिए
उसे भाते न थे उदास और पीड़ित चेहरे धरती के
दूर रखना चाहता था उन्‍हें अपने दृष्टिपथ से.”

लगभग एक दशक के हौलनाक दृश्‍यों-परिदृश्‍यों को राकेशरेणु ने “नये मगध” के नाम से सम्‍बोधित किया है. इस बीच घटित दुर्घटनाओं ने जिस अंदाज में शक्‍ल अख्तियार किया, उन्‍हें नए मगध के नाम से रेखांकित करना कतई अनुचित और नाजायज नहीं. अल्‍पसंख्‍यकों की नागरिकता पर करारी चोट, किसानों की जायज मांगों पर कुठाराघात, कोरोना काल के दौरान लाखों-करोड़ों मजदूरों की दैन्‍य अवस्‍था में घर वापसी जैसे मुद्दों ने हरेक संवेदनशील और न्‍यायपसंद लोगों को झकझोरने का काम किया. भारतीय गणराज्‍य में शायद यह पहली बार देखा गया कि आप अपने अधिकारों के लिए सालोंसाल आंदोलन करते रहें, लेकिन सरकार उस पर विचार करने की बजाय उसको निर्ममता से कुचलने का काम करेगी. उसका दमन करेगी. आज किसी भी आंदोलन, विरोध-प्रदर्शन का कोई अर्थ नहीं रह गया है. देश की राजधानी दिल्‍ली के विभिन्‍न बॉर्डरों पर महीनों से आंदोलनरत किसानों की दुर्दशा को राज्‍य ने समझने की कोई कोशिश नहीं की. पंजाब और हरियाणा के किसान हाड़ कंपा देने वाली ठंड और चिलचिलाती घूप में दिल्‍ली की सीमाओं पर अपनी बुनियादी मांगों को लेकर तैनात रहे. लेकिन उसका सरकार या राज्‍य पर कोई असर होता नहीं दिखा. उल्‍टे उन पर तरह-तरह के तोहमत और आरोप मढ़े गए. उन्‍हें सरकार और उनके भक्‍तों ने पाकिस्‍तानी, नखलिस्‍तानी, नक्‍सलवादी क्‍या-क्‍या नहीं करार दिया. व्‍यवस्‍था और राज्‍य ने उनके प्रति उस अवसर पर कृतघनता का परिचय दिया, जो जिंदगी को चलाने के लिए हमारी प्‍लेटों में भोजन सजाता है. और ऐसे में न जाने उनकी कितनी पीढ़ियों और अनगिनत लोगों की जिंदगियां खप गईं, जिन्‍हें हम जानते तक नहीं. किसान आंदोलन की दुर्दशा को कवि राकेशरेणु ने कुछ इस तरह अभिव्‍यक्‍त किया है-

“वे कौन लोग हैं जो महीनों से पड़े रहे सड़कों पर
और लोग कहते रहे
उन्‍होंने महानगर को घेरकर गांव बसा लिया है
क्‍या यह देश उनका घर नहीं है?’’

हिंदी कवि, लेखक सबसे ज्‍यादा किसान और मजदूर की रट लगाते हैं. लेकिन मेरा ख्‍याल है कि एकाध अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो सबसे कम इन्हीं पर लिखा गया है. हां यह बात अलग है कि किसान आंदोलन और कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूरों और कामगारों ने हमें वह अवसर दिया कि उन पर कुछ सार्थक लिख सकें और हमने वह कमी पूरी की. हालांकि राकेशरेणु पहले से ही किसानों और मजदूरों को लक्ष्‍य करके लिखते आ रहे हैं और उस संकटकाल में भी उन्‍होंने कई मार्मिक कविताएं लिखीं, जिनसे उनके गहरे सरोकार का पता चलता है.

कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूरों को कितने अभिशापों के दौर से गुजरना पङा, उसे हम आप सब देख और महसूस कर चुके हैं. केंद्र सरकार का बगैर किसी सूचना के रातोरात लॉकडाउन लगा देना सबसे ज्‍यादा महानगरों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों को ही हलकान करने का काम किया था. उनमें कोरोना वायरस का इतना खौफ पैदा किया गया कि उन्‍होंने आने-जाने के संसाधन नहीं होने के बावजूद पैदल ही घर जाने का निश्‍चय कर लिया. पूरे देश में मजदूरों में इस बात को लेकर बेचैनी देखी गई कि अगले दो-तीन महीने तक उन्हें रोटी का निवाला कैसे मिलेगा. जिधर देखिए उधर ही मजदूरों का झुंड सर पर बोरिया-बिस्‍तर बांधे, छोटे-छोटे बच्‍चों को संभाले नगरों-महानगरों से गांवों की ओर पलायन कर रहा है. उस समय का नजारा यह था कि आप किसी भी हाइवे पर निकल जाइए अपना सामान सर और कांधे पर बांधे भूखे-प्यासे मजदूर घरों की ओर निकलते दिख रहे हैं. वे यही कहते मिलते थे कि ‍कोरोना वायरस के संक्रमण से तो हम बाद में मरेंगे, पहले भूख से मर जाएंगे-

“घर बस एक सपना रहा
वे बेघर रहे हमेशा
जिनके कंधों पर टिकी थी धरती.’’

राज्‍य ने ये दशा उनकी कर रखी है जिनके बनाए घरों और अट्टालिकाओं में हम सुरक्षित बैठे हुए हैं, जिनसे नया संसद भवन हम बना रहे हैं. उन भवनों, ऊंची इमारतों की एक-एक ईंट-पत्‍थर, सीमेंट, रंग-रोगन, लोहा-लक्‍कड़ और बिजली, पानी जैसी सुविधाओं में आखिर उनका ही तो खून और पसीना बहा है. हम आप जो कपड़े पहनते हैं, उनको बनाने की लंबी प्रक्रिया में अलग-अलग स्‍तरों पर उन्‍हीं की तो मेहनत लगी है. उस संकटकाल में भी राज्‍य की मशीनरी ने मेहनतकश और गुरबा-गुरबा के प्रति भेदभाव बरतने में कोई कमी नहीं की. राहत सामग्री के वितरण में भारी पैमाने पर भेदभाव किया. जिम्‍मेदार लोगों ने धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर राहत सामग्री का वितरण किया. आखिरकार आपातकाल में भी हमारी संवेदना, करुणा और न्‍यायभावना जागृत नहीं हुई-

“उनकी रक्‍त-मज्‍जा अस्थियों से आबाद थी
धरती के कोशे-कोशे की चमक
दान कर दिए अपने शरीर
अस्थियों के साथ
दधीचि फिर भी नहीं कहलाए.’’

कवि को स्वतंत्रचेता कहा गया है. इसका मतलब यह हुआ कि वह जहां कहीं से भी जुड़ा है, सम्बद्ध है उसका जरखेज गुलाम नहीं हो सकता. अगर वह गुलाम हो गया तो उसका कवि व्यक्तित्व खो गया. कवि व्‍यक्तित्‍व को खोकर हम झूठ, छल, प्रपंच, फरेब, मक्‍कारी, असत्‍य, अन्‍याय, अनाचार का पर्दाफाश नहीं कर सकते. अगर करते भी हैं तो समझ लीजिए कि उसकी स्‍प्रीट (आत्‍मा) खोई हुई है. उसमें जान नहीं है. कवि हमेशा यह कहने की हिम्‍मत रखता है कि फलाना चोर है. झूठा है. चाहे फलाना कोई भी क्यों नहीं हो. कवि सभ्‍यता समीक्षक भी होता है. राकेशरेणु अपने कवि व्‍यक्तित्‍व की रक्षा करते हुए कहते हैं-

“पहला न था घटोत्‍कच धरती पर
जो अमर होना चाहता था
लिखना चाहता था विधान
मेहनतकशों की पीठ पर
छुपाए रखना चाहता थी सारी क्रूरताएं
काले चश्‍मे और सफेद दाढ़ी की ओट में.”

आलोच्‍य कविता संग्रह “नये मगध में” वह सब कुछ है जिन्‍हें हम लगभग आठ-दस सालों से भोगने, झेलने और भुगतने को मजबूर हैं, जो हमारे क्षोभ, दुख, अपमान, संताप और पीड़ा के कारण हैं. यहां आपको साझी संस्कृति की विरासत और विविधता नष्‍ट होते हुए मिलेगी. कोई चाहे तो “नये मगध” सीरीज की 15 कविताओं का अध्‍ययन करके पिछले 8-10 सालों का भारतनामा लिख दे. यहां आप मस्जिदों और गिरजाघरों को बुलडोजर से उड़ा देने के फरमान सुनेंगे. यहां बिला वजह आप सड़कों, रेलवे स्‍टेशनों और पार्कों के नाम बदलते हुए पाएंगे. यहां सब्‍जी बेचने वालों, रेहड़ी-पटरी लगाने वालों की लिंचिंग होते हुए देखेंगे. यहां स्‍वतंत्रता, समानता और भाइचारे की चिंदियां उड़ते हुए आप पाएंगे. यहां अशोक की मूल्‍य चेतना, चंद्रगुप्‍त की शौर्य गाथाएं, गौतम बुद्ध की मनुष्‍यता के मानदंड और गांधी की अहिंसा और शांति के संदेश को आप मिटते हुए पाएंगे. इस तरह से मगध पुराना पड़ता है और नये मगध या ‘न्‍यू इंडिया’ का निर्माण होना शुरू होता है.

उल्‍लेखनीय है कि नये मगध या वर्तमान की शासन प्रणाली को अभिव्‍यक्‍त या उजागर करने के लिए राकेशरेणु गुप्‍त वंश के एक गौण शासक घटोत्‍कच को खोज निकालते हैं. जिनका शासनकाल 20 सालों का माना जाता है लेकिन उपलब्धियां नहीं के बराबर. यहां हम यह कह सकते हैं कि कवि राकेशरेणु को घटोत्‍कच के सहारे अपनी बात कहने में सुविधा और सफलता दोनों मिली है. वरिष्‍ठ कवि-आलोचक मदन कश्‍यप संग्रह का ब्‍लर्ब लिखते हुए कहते हैं-

“घटोत्‍कच के नायकत्व को केंद्र में रखने का अपना एक अर्थ है. कवि वर्तमान शासन व्‍यवस्‍था की छवि को शायद उसके माध्‍यम से ही सही ढ़ंग से व्‍यक्‍त कर सकता था. ‘मगध’ ने जो कभी सत्‍ता की क्रूरता, अहंकार और मतिभ्रम पर कड़े प्रहार से प्रतिरोध की एक नई राह बनाई थी, राकेशरेणु ने उस दिशा में आगे बढ़ते हुए, कुछ और जोड़ने का प्रयास किया है.”

राकेशरेणु का यह प्रतिरोध उन्‍हें निराला, नागार्जुन, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा, रघुवीर सहाय की परंपरा से जोड़ने का काम करता है. यहां यह बात गौरतलब है कि कवि ने इन कविताओं की रचना कुछ इस ढ़ंग से की है कि उन्‍हें अपनी ओर से कुछ विशेष कहने की जरूरत भी नहीं पङती और दृश्यालेख से ही हम सत्‍य का साक्षात्कार कर लेते हैं. राकेशरेणु के कहन का यह अंदाज कुछ अर्थों में बिल्कुल नया है.

संग्रह में नये मगध सीरीज की विस्‍फोटक कविताओं के अतिरिक्‍त कई और ऐसी कविताएं हैं जो हमारा ध्यान खिंचती हैं. दिल्‍ली में यमुना, तुम्‍हारा होना, प्रेम, आत्‍मकथ्‍य, देखा तुम्‍हें सजते हुए, उषा उत्‍थुप के लिए, नाजिया हसन के लिए, महात्‍मा गांधी के लिए और रंग पर कई खंडों में लिखी कविताएं उल्लेखनीय हैं. मैं यमुना नदी को गैर दिृजीय संस्कृति का प्रतीक मानता हूं. गंगा की तुलना में उसका ऐतिहासिक, साभ्‍यतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्‍व कम नहीं रहा है लेकिन उसे कैसे बचाया जाए इसकी चिंता आजतक किसी भी शासक ने नहीं की. इसलिए राकेशरेणु कहते हैं कि वह अपने दिन गिन रही है, उसका शरीर निस्‍तेज पड़ गया है, उसके मुंह से झाग निकल रहा है और उसे कई नागों ने डसा है. तुम्‍हारा होना, प्रेम, देखा तुम्‍हें सजते हुए जैसी कविताओं के जरिए हम प्रेम की उष्‍मा, गरमाहट, स्निग्‍धता, सृजनात्‍मकता, तरलता, इच्‍छाओं और कामनाओं को महसूस कर सकते हैं. यहां हम अपनी आदिम इच्‍छाओं और कामनाओं को खुलकर प्रकट होते हुए देखते हैं. उषा उत्‍थुप के लिए, नाजिया हसन के लिए जैसी कविताएं एक ओर जहां संगीत के महत्‍व से अवगत कराती हैं, वहीं दूसरी ओर वे हमें जगाते प्रतीत होती हैं. रंग पर कई खंडों में लिखी कविताएं मेरा ख्‍याल है कि प्रकृति के विभिन्‍न अवयवों के माध्‍यम से जीवन और दुनिया के बनने-बिगड़ने की कहानियां हैं.

इस डरावने और मनहूस समय में इतनी निडर और सुंदर कविताओं के साथ राकेशरेणु का प्रस्‍तुत होना उनकी महत्‍ता को प्रतिपादित करता है. वहीं दूसरी ओर इससे यह भी सिद्ध होता है कि हम जीवित हैं, अटल हैं और मैदान से हटे नहीं हैं. संग्रह में कुछ कविताएं ऐसी हैं जिन्‍हें नहीं डाला गया होता तो यह और प्रभावी होता.

कविता संग्रह : नये मगध में
कवि :  राकेशरेणु
प्रकाशक: अनुज्ञा बुक्‍स, 1/10206, लेन नं.1E, वेस्‍ट गोरख पार्क, शाहदरा, दिल्‍ली-110032
मूल्‍य  : 199 रुपये

पंकज चौधरी
सितंबर, 1976 कर्णपुर, सुपौल (बिहार)प्रकाशन : कविता संग्रह ’उस देश की कथा’ तथा पिछड़ा वर्ग और आंबेडकर का न्याय दर्शन (संपादित)
बिहार राष्ट्रंभाषा परिषद का ’युवा साहित्यकार सम्मान’, पटना पुस्तक मेला का ’विद्यापति सम्मान’ और प्रगतिशील लेखक संघ का ’कवि कन्हैोया स्मृति सम्मान’.कुछ कविताएं गुजराती,अंग्रेजी आदि  में अनूदितpkjchaudhary@gmail.com
Tags: 20222022 समीक्षानये मगध मेंपंकज चौधरीराकेशरेणु
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Comments 4

  1. यतीश कुमार says:
    3 years ago

    राकेशरेणु के प्रतिरोध स्वर को बहुत विस्तृत और सारगर्भित तरीक़े से लिखा है पंकज जी ने हर कोने की पड़ताल हर पहलू पर बात रखी है। साधुवाद किताब पढ़ना बाक़ी था अब जल्द पढ़ूँगा

    Reply
  2. हीरालाल नगर says:
    3 years ago

    ‌राकेश रेणु के कविता संग्रह ‘नया मगध’ पर पंकज चौधरी की समीक्षा पढ़ी। पंकज चौधरी चौधरी स्वयं एक कवि हैं और आलोचक भी। इस कारण वे सम्यक मूल्यांकन कर पाये हैं।
    समीक्षा ने कविता संग्रह को पढ़ने की एक जिज्ञासा तो पैदा कर ही दी।

    Reply
  3. दयाशंकर शरण says:
    3 years ago

    राकेश रेणु के काव्य संग्रह ‘नये मगध’ पर पंकज चौधरी की समीक्षा सधी एवं संतुलित है। इसमें समकालीन यथार्थ का कुरूप चेहरा दिखाई देता है। कवि एवं समीक्षक को बधाई !

    Reply
  4. राकेशरेणु says:
    3 years ago

    शुक्रिया प्रिय भाई पंकज चौधरी व अरुण देव!

    Reply

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