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समालोचन

Home » नीलोत्पल की कविताएँ

नीलोत्पल की कविताएँ

क्रिकेट भारत का लोकप्रिय खेल है, कुछ कवि भी खेलते होंगे, देखते तो होंगे ही. क्रिकेट पर हिंदी में कविताएँ फिलहाल मेरी स्मृति में आ नहीं रहीं हैं. नीलोत्पल की प्रस्तुत इन नयी कविताओं में एक कविता और एक कविता खंड क्रिकेट पर आधारित है. उनका नवीनतम कविता संग्रह- ‘‘समय के बाहर सिर्फ़ पतझर है’ भी इधर प्रकाशित हुआ है.

by arun dev
June 8, 2022
in कविता
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नीलोत्पल की कविताएँ
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नीलोत्पल की कविताएँ

1.

धीरे-धीरे
लोग नफ़रत से प्रेम करने लगे है

धीरे-धीरे
हवा सख़्त कर दी गई है

धीरे-धीरे
धर्म निराशाओं को बढ़ा रहा है

धीरे-धीरे
किताबों की लिपि बदली जा रही है

धीरे-धीरे
शहर अपनी याददाश्त खोने लगे हैं

धीरे-धीरे
झूठ दस्तावेज की तरह
इस्तेमाल किया जाने लगा है

धीरे-धीरे
देश अपने भीतर पिघल रहा है

 

2.

जब आप लय में होते हैं तो
हर शॉट फेवरेट हो जाता है.

डिफेंस भी सुंदर लगता है,
जैसे किसी ने तूफान को रोक दिया हो
और हिटिंग मानो पारिजात के फूल की तरह
धारासर बरसने लगती है

ड्राइव और पुल
दो भिन्न तटों पर लहरों का उनवान रचते हैं

कट और ग्लांस नृत्य की तरह
मन मोहते हैं.

स्ट्रेट ड्राइव माशा‌ अल्लाह
जंगल में खुल रही दिशाओं की ओर
आमंत्रित करता है

हाथों की कलाई मोड़ कर ज़मीन की सतह से
समुद्र की तलहटी छू आना
यह कमाल फ्लिक का है

स्क्वेयर कट में प्रेमिका सा टच है
छूते ही मन अधीर हो उठता है

लांग ऑन ड्राइव
किसी खूबसूरत पहाड़ के नाम सा है
लेकिन जैसे उसमें एक नदी बहती हो

अचानक किसी तार से उड़कर
एक नन्ही चिड़िया आसमान की ओर लपकती है
देखते ही देखते गुम हो जाती है
अपर कट में एक नन्ही चिड़िया रहती है

 

3.

समय बच जाता है
हम नहीं बचते

हम रोटी में तबाह होते हैं
हम किताबों में दफ़न होते हैं
हम प्रेम में बिखर जाते हैं

हम एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते हैं,
हम एक मृत्यु से
अनंत मृत्यु के लिए तैयार रहते हैं

इससे पहले कि
हम जीवन समझते
समय निकल जाता है

 

4.
कमजोरी

1.

मैं शुरुआत से ही कमजोर इंसान रहा
मेरी कमजोरी जीवन और भाषा में
समान रूप से चलती रही

कमजोरी के चलते मैंने इनका पीछा किया
जैसे कोई बकरी घास के लिए
पहाड़ की अंतिम चोटी तक पहुंच जाती है

जैसे कोयले की खदान में
पत्थरों की शिनाख्त तक खुदाई जारी रहती है

मुझे नहीं पता कोई चीज़ हीरा कैसे हो जाती है
जबकि मेरी कमजोरी ने इंसान को साधारण रूप से बदलते देखा

इस बदलाव में
कई कई जगहों पर चोटों के निशान छूट जाते हैं
इसी में अतीत का संघर्ष भी है

जैसे सब कुछ कमजोरी से तय था
मैं किसी ऐसी प्रतिभा से नहीं मिला
जिसने अपनी सारी कमजोरियों को छिपा लिया हो

मेरे दावे में सिर्फ़ कमजोरी ही है
जिसे आपसे कह सकता हूं

 

2.

यदि आपको मेरी कोई कमजोरी समझ में आती है
तो यह ठीक बात है कि
हम बातचीत में
इस बात का भी ध्यान रखेंगे
जब परवान चढ़ रहा हो
हम तिक्तता से बच जाएं

मुमकिन है मेरी कमजोरी की
आपको कोई चोट नहीं लगे
इसलिए एहतियातन
मैं सुनना ज्यादा चाहूंगा

 

3.

उन दिनों 1992 में
जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया
मुझे मैच के शुरुआती दौर में खेलने से डर लगता था
यह कमोबेश आऊट होने के डर से ज्यादा
पिच से दूर हो जाने का डर अधिक था

ग्राउंड छोड़ना मेरे लिए
बेरोज़गार होने जैसा था
बाहर बैठकर मैं समझ नहीं पाता
अब इस दुनिया का क्या करना है
जो एक अनंत अंत की प्रतीक्षा में उलझी हुई है

मैं घर की ओर लौटने से ज्यादा
उस डर में अधिक लौटता

डर का यह अभ्यास इतना बढ़ता गया कि
हर चीज़ की शुरुआत
झेंपने से होती

कविता मेरी ऐसी ही एक झेंप है.

 

4.

एक अंतहीन बहस करके
मुझे यह एहसास हुआ
कि मैं बहस से सुदूर एक ऐसा तट हूं जहां

चिड़ियां अपने गीत गा सकती हैं,
हिरण मुलायम घास चर लेते है,
कोई भी लहर मेरे नाम को मिटा सकती है

किसी भी विवाद में
आप मुझे
आसानी से पराजित कर सकते हैं

मैं एक पेड़ की तरह चुपचाप
अपनी दुविधा को काटता हूं

मुझे यह मान लेने में
संशय नहीं कि
मेरे सारे निष्कर्ष किसी भी द्वंद्व को
नहीं रोक सकते

मैं सिर्फ़ अवस्थिति हूं
आप हमारे मुकदमे को लंबित माने.

 

5.

दुनिया बहुत सारे
वंचितों का अनाथालय है.

पढ़ाई में औसत था
इसलिए भविष्य को लेकर
नौकरी का ख्याल
ख्याल ही बना रहा
और‌ ना किसी तरह की ट्रेन पकड़ने की जल्दी रही

जानता था एक औसत व्यक्ति के लिए
बहुत सारी चीज़ें पहले ही
दूर कर दी गई है
उसे तो सारी नैतिकताओं और प्रवचनों को झेलते हुए
चुपचाप चलना है

उसके लिए शिकायत और निराशा
दोनों के मानी एक ही है

जीवन में कुछ भी अजूबा नहीं था
इसलिए कमियां दर्शन के उस अध्याय की तरह हो गई
जो पन्नों में नहीं उतर सकी.

नीलोत्पल
23 जून 1975, रतलाम, मध्यप्रदेश.

‘अनाज पकने का समय’, ‘पृथ्वी को हमने जड़ें दीं’, ‘समय के बाहर सिर्फ़ पतझर है’ कविता संग्रह प्रकाशित.
विनय दुबे स्मृति सम्मान तथा 2014 में वागीश्वरी सम्मान से सम्मानित

सम्पर्क:
173/1, अलखधाम नगर, उज्जैन, 456 010,
मध्यप्रदेश

Tags: 20222022 कविताएँक्रिकेट पर कवितानयी सदी की हिंदी कवितानीलोत्पल
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Comments 6

  1. Santosh Arsh says:
    3 years ago

    नीलोत्पल जी की कविताएँ शुरू से ही आकर्षित करती रही हैं। वे मेरे प्रिय कवि हैं। क्रिकेट पर पहली बार इतनी सरल और प्यारी कविता पढ़ी। बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    Reply
  2. Sanjeev Buxy says:
    3 years ago

    निलोत्पल की अच्छी कविताएं ।खासकर क्रिकेट वाली कविता तो बहुत अच्छी है ।विष्णु खरे जी ने भी क्रिकेट पर कविता लिखी थी ।स्मरण में आ रहा है ।निलोत्पल को बहुत-बहुत बधाई।

    Reply
  3. पराग माँदले says:
    3 years ago

    एक कवि का आत्मावलोकन इन कविताओं में प्रमुखता से उभरता है। नीलोत्पल की कविताएँ अब विकटता से सरलता की यात्रा पर हैं, यह उनकी परिपक्वता का परिचायक है।

    Reply
  4. Manjula says:
    3 years ago

    सुन्दर और सार्थक कविताएं

    Reply
  5. प्रमोद says:
    3 years ago

    सुन्‍दर कविताएं हैं। क्रिकेट पर इतनी सहज कविता, बहुत शुभवकानाएँँ। नीलोत्‍पल के पास भाषा है वे कथ्‍य के हिसाब से उसे गढ़ लेते हैं।

    Reply
  6. Anonymous says:
    3 years ago

    नीलोत्पल की कविताएं बहुत अच्छी लगीं।

    Reply

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