पेद्रो पारामो
जुआन रुल्फो
हिंदी अनुवाद : अजित हर्षे
१.
(जुआन प्रेसीयाडो)
मैं कोमाला आया था क्योंकि मेरी माँ ने मुझे बताया था कि मेरे पिता, पेद्रो पारामो, वहाँ रहते हैं. मैंने उससे वादा किया था कि उसके मरने के बाद मैं उनसे मिलने अवश्य जाऊँगा. इसका पक्का विश्वास दिलाने के लिए मैंने उसका हाथ अपनी हथेली पर लिया और सहलाया. वह मौत के करीब थी और मैं उससे कोई भी वादा कर सकता था, कोई भी क़सम खा सकता था. “भूलना नहीं. उनसे ज़रूर मिलना,” उसने आजिज़ी के साथ कहा. “उनके बारे में कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ. मुझे विश्वास है, वह तुमसे ज़रूर मिलना चाहता होगा.” उस वक्त मैं उससे यही कह सकता था कि जो वह चाहती है वह मैं अवश्य करूँगा, और इस चक्कर में अपने वादे को मैं इतनी बार दोहरा चुका था कि मौत के पंजे से अपना हाथ छुड़ाने के बाद भी मैं काफी देर तक उसे दोहराता रहा.
वह हमेशा मुझसे कहा करती थी
“उनसे कोई और चीज़ मत माँगना. सिर्फ अपना हक़ मांगना. जो उसे देना चाहिए था मगर नहीं दिया…हमें अपने दिलो-दिमाग़ से निकाल देने का बदला तुम उससे अवश्य लेना, मेरे बच्चे.”
“ज़रूर लूँगा, माँ.”
अपना वादा पूरा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. लेकिन यह अंतिम रूप से तय करता इससे पहले ही मुझे सपने आने लगे, मेरा दिमाग़ घूमने लगा और उससे मिलने की कल्पनाएँ मुझ पर हावी हो गईं. धीरे-धीरे एक आशा के चारों तरफ मैं एक दुनिया रचने लगा जिसके केन्द्र में वह आदमी था जिसका नाम पेद्रो पारामो था और जो मेरी माँ का पति था. यही कारण था कि मैं कोमाला आया था.

२.
(जुआन प्रेसीयाडो)
वह भीषण गर्मी और उमस वाला अगस्त का महीना था जब गर्म हवाएँ चलती हैं और सड़ते हुए सैपोनेरिया की ज़हरीली गंध हवा में रची-बसी होती है.
रास्ता ऊपर उठता था और नीचे लुढ़क जाता था. उसका ऊपर उठना या नीचे लुढ़कना इस पर निर्भर करता था कि आप जा रहे हैं या आ रहे हैं. जब आप वहाँ से बाहर जा रहे होते हैं तब चढ़ाई होती है और जब आप वहाँ आ रहे होते हैं तब उतराई.
“तुमने क्या बताया कि नीचे वाला वह कस्बा क्या कहलाता है?”
“कोमाला? सेन्योर.”
“पक्का कोमाला ही है?”
“बिल्कुल. वही है.”
“बड़ा उजाड़ दिखाई दे रहा है. क्या हुआ उसे?”
“सब समय का खेल है, सेन्योर.”
मेरा विचार था कि मैं माँ की स्मृतियों का, आहों-कराहों से लिपटे उसके नॉस्टेल्जिया का कस्बा देखूँगा. वह जीवन भर कोमाला के लिए सिसकती हुई जीती रही, वहाँ लौटने के लिए बे-क़रार रही. लेकिन कभी लौट नहीं पाई. अब उसकी जगह मैं यहाँ आया हूँ. मैं उसकी आँखों से चीज़ों को देख रहा था. जैसा उसने देखा होगा. देखने के लिए वह अपनी आँखें मुझे दे गई थी. जैसे ही आप लोस कॉलीमोट्स गेट पार करते हैं, पके मक्के के पीले रंग से चित्रित हरे मैदान का सुन्दर नज़ारा दिखाई देता है. वहाँ से थोड़ा नज़र उठाते ही कोमाला दिखाई देता है, सफेद पुता हुआ और रात में रोशनियों में जगमगाता. उसकी रहस्यमय, अस्फुट बुदबुदाहट से लगता था जैसे वह अपने आप से बात कर रही हो. ….माँ.
“अगर आप बुरा न मानें तो पूछना चाहूँगा कि आप कोमाला क्यों जा रहे हैं?” मैंने उस आदमी को कहते हुए सुना.
“मैं अपने पिता से मिलने जा रहा हूँ,” मैंने जवाब दिया.
“हूँऽऽऽ!” वह बोला.
और फिर मौन छा गया.
गधे की टापों के स्वरों के बीच हम लोग पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे. उनकी उनींदी आँखें अगस्त की गर्मी में सूज गई थीं.
“आपका शानदार स्वागत होगा,” मैंने फिर से मेरे साथ चल रहे उस आदमी का स्वर सुना. “इतने दिनों बाद किसी को इधर आया देखकर वे लोग बहुत खुश होंगे.” और कुछ देर बाद उसने फिर कहा, “आप जो कोई भी हों, वे आपसे मिलकर ज़रूर खुश होंगे.”
झिलमिल धूप में ओस के कारण क्षितिज तक का पता नहीं चलता था और मैदान ओस में डूबी किसी पारदर्शी झील की तरह लग रहा था. कुछ दूर आगे पहाड़ों की फीकी कतारें और उससे परे एक रहस्यमय अज्ञात.
“क्या मैं पूछ सकता हूँ कि आपके पिता कैसे दिखाई देते हैं.”
“मैंने उन्हें देखा नहीं है,” मैंने उसे बताया. “मैं सिर्फ उनका नाम जानता हूँ, पेद्रो पारामो .”
“ओह! अच्छा?”
“हाँ, यानी यही नाम मुझे बताया गया है.”
गधागाड़ी वाले की “हूँsss!” मुझे एक बार फिर सुनाई दी.
लोस एनक्यूएन्ट्रो चौराहे पर मेरी उससे मुलाक़ात हुई थी. मैं इंतज़ार ही कर रहा था और आखिर यह आदमी मुझे मिल गया.
“तुम कहाँ जा रहे हो?” मैंने पूछा.
“उधर उतार की तरफ, सेन्योर.”
“क्या तुम्हें कोमाला नामक गाँव का कुछ पता है?”
“मैं उसी तरफ जा रहा हूँ.”
इस तरह मैं उसके साथ हो लिया. मैं उसके पीछे-पीछे चलने लगा. वह तेज़ चल रहा था और उसके साथ रहने में मुझे काफी प्रयास करना पड़ रहा था. आखिर उसे याद आया कि मैं पीछे रह गया हूँ और वह ज़रा धीमा हुआ. बाद में हम साथ-साथ चलने लगे, इतना सटकर कि कभी-कभी हमारे कंधे आपस में टकरा जाते थे.
“पेद्रो पारामो मेरा भी पिता है,” उसने कहा.
ख़ाली आसमान में कौओं का एक झुंड तेज़ “काँव-काँव” करता हुआ इधर से उधर उड़ गया.
हम एक के बाद एक चढ़ाव और उतार पार करते रहे मगर कुल मिलाकर हम नीचे उतर रहे थे. गर्म हवाएँ पीछे छूट चुकी थीं और हम लोग शुद्ध, वायुहीन उष्णता में धँसते चले जा रहे थे. लगता था बीहड़ नीरवता किसी चीज़ का इंतज़ार कर रही थी.
“यहाँ काफी गर्मी है,” मैंने कहा.
“हाँ, कह सकते हैं लेकिन यह कुछ भी नहीं है,” मेरे सहयात्री ने कहा. “ज़्यादा मत सोचो, कोमाला पहुँचने के बाद आपको पता चलेगा कि गर्मी क्या होती है. वह कस्बा अंगारों पर बसा है, ठीक नर्क के मुहाने पर. कहा जाता है कि यहाँ के लोग मरने के बाद जब नर्क पहुँचते हैं तो भागते हुए वापस आते हैं, कम्बल लेने के लिए.”
“तुम पेद्रो पारामो को जानते हो?” मैंने पूछा.
मुझे लग रहा था कि मैं उससे कुछ भी पूछ सकता हूँ क्योंकि उसके चेहरे पर मेरे लिए सद्भाव दिखाई देता था.
“कौन है वह?” मैंने ज़ोर दिया.
“क्रोध का ज़िंदा लावा,” उसका जवाब था.
और उसने अपने चाबुक से गधे को हल्के से रोका क्योंकि वह उतार में हमसे कुछ आगे निकल गया था.
माँ की तस्वीर, जिसे मैं शर्ट की जेब में रखे हुए था, छाती में तपती महसूस होने लगी, जैसे उसे भी पसीना आ रहा हो. वह किनारों पर मुड़ा-तुड़ा एक पुराना फोटो था, लेकिन मैंने उसका वही एकमात्र फोटो देखा था. वह मुझे चौके में रखे संदूक में मिला था, कुछ जड़ी-बूटियों के साथ एक मिट्टी के बर्तन में रखा हुआ. उसके साथ सूखे नींबू के छिलके, कैस्टिला के फूल, ब्राह्मी की एक टहनी इत्यादि कुछ दूसरी जड़ी-बूटियाँ भी थीं. तब से मैंने उस फोटो को अपने पास संभालकर रखा हुआ था. मेरे पास इतना ही कुछ था. मेरी माँ कभी फोटो खिंचवाने नहीं देती थी. कहती, फोटो जादू-टोना करने वालों के औज़ार हैं. और शायद ऐसा हो भी, क्योंकि उसका वह फोटो पिन से कई जगह छिदा हुआ था और जहाँ दिल होता है वहाँ एक बड़ा-सा छेद था जिसमें से उंगली आर-पार हो सकती थी.
मैं वह फोटो साथ लेकर आया था जिससे पिता को मुझे पहचानने में कोई दिक्कत न हो.
“इधर देखो,” गधागाड़ी वाले ने रुकते हुए कहा. “उधर वह गोल पहाड़ी देख रहे हो, जैसे किसी सूअर का मूत्राशय?… ठीक उसके पीछे मेडिया लूना है. उधर नज़र उठाकर देखो. तुम्हें उधर पहाड़ी का शिखर दिखाई दे रहा होगा. ध्यान से देखो. और वापस इधर. तुम्हें लंबी पर्वत शृंखला दिखेगी. आखिर तक देखो, तुम्हें मुश्किल से ही कुछ दिखाई दे रहा होगा. यह सारा इलाका मेडिया लूना है. इस कोने से उस कोने तक- जैसा कि कहते हैं, जहाँ तक नज़र जाती है, वहाँ तक. वह इस इलाके के एक-एक चप्पे का मालिक है. हम पेद्रो पारामो के बेटे हैं, ठीक है. मगर इस कारण हैं कि हमारी माँएँ हमें इस दुनिया में लेकर आईं. घास-पूस की चटाइयों पर उन्होंने हमें जाया है. सबसे बड़ा मज़ाक तो यह है कि वह, पेद्रो पारामो, हमारा बप्तिस्मा कराने ले गया था. तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हुआ था न? याद है तुम्हें?”
“मुझे याद नहीं.”
“भाड़ में जाओ!”
“क्या कहा तुमने?”
“मैं कह रहा था सेन्योर, कि हम लोग वहाँ पहुँचने ही वाले हैं.”
“हाँ, मुझे समझ में आ रहा है…वो क्या है…?”
“ये कारेकैमिनोज़ हैं. रोड-रनर. इधर इन परिंदों को यही कहा जाता है.”
“नहीं, मैं उस कस्बे के बारे में पूछ रहा था. क्या हुआ उसे? वह एकदम उजाड़ लगता है, क्यों लोग उसे छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं? दरअसल लगता तो ऐसा है जैसे यहाँ कोई रहता ही न हो.”
“सिर्फ लगता नहीं, यहाँ वाकई कोई नहीं रहता.”
“और पेद्रो पारामो ?”
“पेद्रो पारामो सालों पहले मर चुका है.”

३.
(जुआन प्रेसीयाडो)
यह दिन का वह वक्त था जब हर गाँव-खेड़े में बच्चे बाहर सड़कों पर निकलकर खेलते दिखाई देते हैं और दोपहर का अंतिम पहर उनकी चिल्लपों से भर उठता है. उस समय तक अंधेरे में लिपटी दीवारें सूरज की पीली रोशनी परावर्तित कर रही होती हैं.
कम से कम यही मैंने सयूला में देखा था, अभी कल, इसी वक्त. मैंने देखा था कि फाख़्ते पंखों को फड़फड़ाकर स्थिर हवा में उथल-पुथल मचा रहे हैं, जैसे दोपहर के लंबे पंजों से अपने आपको आज़ाद करा रहे हों. वे कूद-फांद करते और छतों की टाइलों पर काबिज हो जाते जबकि बच्चों की किलकारियाँ चक्करदार घूमती ऊपर उठतीं और धुंधले आसमान में नीले कतरों की तरह बिखर जातीं.
और अब मैं यहाँ हूँ, इस उजाड़ कस्बे में, पत्थर की इस सड़क पर अपने चलने की आवाज़ सुनता हुआ. खोखली पदचापें, सूरज की बुझती रोशनी में लाल हुई दीवारों के बीच गूँजती हुई.
दिन का यह वक्त था जब मैंने अपने आपको मुख्य सड़क पर चहलकदमी करते पाया. परित्यक्त घर, उनके सूने, खुले प्रवेश-द्वार और चौखटें और उन पर उगी हुई जंगली झाड़ियाँ- इनके सिवा वहाँ कुछ नहीं था. उस अजनबी ने क्या बताया था कि इन्हें क्या कहा जाता है? “ला गबर्नाडोरा, सेन्योर. क्रियसोट की झाड़ियाँ. प्लेग, जो लोगों के बाहर निकलते ही उनके घरों पर टूट पड़ता है. …वहाँ पहुँचते ही आप देखेंगे.”
गली के मोड़ पर मुझे शाल में लिपटी एक औरत दिखाई दी लेकिन तुरंत ही वह ऐसे गायब हुई जैसे वह थी ही नहीं. मैं और आगे बढ़ा, बिना किवाड़ों के घरों के भीतर झाँकता हुआ. वही शाल ओढ़े औरत मुझे फिर दिखाई दी.
“ईवनिंग!” उसने कहा.
मैंने उसे सिर से पाँव तक निहारा. फिर चिल्लाकर पूछा, “डोना ईडुवाइजेस कहाँ मिलेगी?”
उसने इशारा किया, “उधर, पुलिया से लगा हुआ उसका घर है.”
मैंने नोट किया कि उसका स्वर एक मानव का स्वर था, उसका मुँह दाँतों और जीभ से भरा हुआ था जो बोलते समय हरकत करते थे और यह भी कि उसकी आँखें उसी प्रजाति की आँखें थीं जो इस पृथ्वी पर बसती है.
अँधेरा हो चुका था.
वह “गुड नाइट” कहने के लिए मुड़ी. और हालाँकि वहाँ बच्चे नहीं खेल रहे थे, कबूतर नहीं फड़फड़ा रहे थे, न नीली छाया में लिपटी टाइलें दिखाई देती थीं, मुझे लगा कि कस्बा अचानक जीवन्त हो उठा है. और यह भी कि यदि मैं सिर्फ खामोशी सुन पा रहा हूँ तो इसलिए कि अभी मैं कस्बे की खामोशी का आदी नहीं हुआ हूँ- शायद मेरा सिर अभी भी ध्वनियों और कंठ-स्वरों से भरा हुआ है.
हाँ, कंठ-स्वर. यहाँ, जहाँ हवा इतनी विरल थी, मैं उन्हें और भी स्पष्ट सुन पा रहा था. वे स्वर अपने पूरे वज़न के साथ मेरे भीतर बसे हुए थे. मुझे याद आया कि माँ ने कहा था: “वहाँ तुम मुझे अधिक अच्छी तरह सुन पाओगे. मैं तुम्हारे अधिक नजदीक होऊँगी. मेरी स्मृतियों के स्वर तुम मेरी मृत्यु के स्वर से अधिक अच्छी तरह सुन पाओगे- हाँ, अगर मृत्यु का कोई स्वर होता हो तो.” माँ…कितनी सजीव!
काश, माँ अभी यहाँ होती और मैं उससे कह सकता: “तुमने मुझे बिल्कुल ग़लत घर बताया था. एकदम ग़लत जगह. तुमने मुझे भेज दिया ‘अनंत से परे’, एक उजाड़ गाँव में. एक ऐसे व्यक्ति से मिलने जो अब ज़िंदा ही नहीं है.”
मैं नदी की कलकल का पीछा करते हुए पुल के पास वाले उस घर तक पहुँचा. मैंने दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया मगर वहाँ कुछ था ही नहीं. मेरा हाथ ख़ाली जगह में लहराकर रह गया जैसे तेज़ हवा से दरवाज़ा अपने आप खुल गया हो. एक औरत वहाँ खड़ी थी. उसने कहा, “अंदर आ जाओ.” और मैं भीतर चला गया.
४.
(जुआन प्रेसीयाडो)
तो इस तरह मैं कोमाला में रुक गया. गधागाड़ी वाला आदमी अपने रास्ते जा चुका था. विदा लेने से पहले उसने कहा था:
“मुझे अभी आगे जाना है, उधर जहाँ वे पहाड़ियाँ दिखाई पड़ रही हैं. वहाँ मेरा घर है. अगर तुम आना चाहो तो वहाँ तुम्हारा स्वागत होगा. और अगर तुम अभी यहीं रुकना चाहते हो तो रुक जाओ. आसपास का जायज़ा लेने में कोई नुकसान नहीं है. हो सकता है ज़िंदा लोगों में से कोई तुम्हें वहाँ मिल जाए.”
मैं रुक गया. मैं आया ही इस काम के लिए था.
“मुझे रुकने के लिए वहाँ कोई लॉज मिल सकता है?” मैंने लगभग चीखते हुए पूछा था.
“डोना ईडुवाइजेस के यहाँ देख लेना, अगर वह अभी भी ज़िंदा हो तो. कहना, मैंने भेजा है तुम्हें.”
“और तुम्हारा नाम?”
“अबुंडियो….” उसने जवाब दिया. तब तक वह इतनी दूर निकल चुका था कि उसका सरनेम मैं सुन नहीं पाया.

५.
(जुआन प्रेसीयाडो)
“मैं ईडुवाइजेस द्यादा हूँ. अंदर आ जाओ.”
जैसे वह मेरा इंतज़ार ही कर रही थी. सब तैयार है, उसने कहा और मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया. हम एक के बाद एक कई अंधेरे और शायद ख़ाली और उजाड़ कमरों को पार कर रहे थे. मगर नहीं. जैसे ही मेरी आँखें अंधेरे की और हमारा पीछा करती हुई बारीक प्रकाश-किरण की आदी हुई, मैंने अपने दोनों ओर परछाइयों को डोलते देखा और मैं समझ गया कि हम एक सँकरे गलियारे से गुज़र रहे हैं जिसके दोनों किनारों पर भारी भरकम आकृतियाँ रखी हुई हैं.
“यहाँ क्या रखा हुआ है?” मैंने पूछा.
“हर तरह का कबाड़.” उस औरत ने कहा. “मेरा घर दूसरों की चीज़ों से खचाखच भरा हुआ है. जैसे-जैसे लोग पलायन करते गए, अपने घर का माल-असबाब मेरे यहाँ रखते गए, हालाँकि आज तक कोई भूले-भटके भी अपना सामान लेने वापस नहीं आया. जो कमरा मैंने तुम्हारे लिए रखा है वह इधर पीछे की तरफ है. मैं उसे साफ करके रखती हूँ कि शायद कभी कोई आ ही जाए…. तो, तुम उसके बेटे हो?”
“किसका बेटा?” मैंने पूछा.
“डोलोरिटास के बेटे.”
“हाँ. पर आप कैसे जानती हैं?”
“उसने मुझे बताया था कि तुम आने वाले हो. बल्कि, आज ही. कि आज तुम आओगे.”
“किसने बताया? मेरी माँ ने?”
“हाँ, तुम्हारी माँ ने.”
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इसका क्या मतलब लगाऊँ. मगर ईडुवाइजेस ने मुझे सोचने का मौका ही नहीं दिया.
“यह तुम्हारा कमरा है.” उसने कहा.
हमने जिस दरवाज़े से प्रवेश किया था, उसके अलावा कमरे में दूसरा कोई दरवाज़ा नहीं था. उसने मोमबत्ती जलाई और मैंने देखा कि कमरा पूरी तरह ख़ाली है.
“यहाँ सोने के लिए कुछ नहीं है.” मैंने कहा.
“उसकी बिल्कुल चिंता मत करो. लंबी यात्रा में तुम बहुत थक गए होगे और थकान बहुत अच्छा बिस्तर होती है. कल सबेरे उठते ही मैं तुम्हारे लिए एक बिस्तर का प्रबंध कर दूँगी. तुम्हारा यह सोचना ठीक नहीं है कि मैं तुरत-फुरत सारा इंतज़ाम कर लूँगी. पहले से पता हो तो आदमी तैयारी करके रखता है मगर तुम्हारी माँ ने अभी कुछ देर पहले ही तुम्हारे आने की सूचना दी.”
“मेरी माँ ने?” मैंने कहा. “मेरी माँ मर चुकी है.”
“अच्छा, तो इसलिए उसकी आवाज़ इतनी कमज़ोर लग रही थी जैसे उसे इतनी दूर पहुँचने में बहुत श्रम करना पड़ रहा हो. अब मैं समझी. वैसे वह कब मरी?”
“एक हफ्ता पहले.”
“बेचारी. सोच रही होगी कि मैंने उससे दोस्ती तोड़ ली है. हमने एक दूसरे से वादा किया था कि दोनों साथ मरेंगे. हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जाएँगे, अपने आखिरी सफर में एक दूसरे का साहस बढ़ाएँगे, कोई ज़रूरत पड़े या कोई परेशानी आए तो एक दूसरे की मदद करेंगे. हम दोनों बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं. मेरे बारे में उसने कोई बात नहीं की तुमसे?”
“कभी नहीं.”
“अजीब बात है. वैसे हम लोग लड़कियाँ ही थीं तब. अभी-अभी उसकी शादी हुई थी. लेकिन हम दोनों एक दूसरे को बहुत चाहती थीं. तुम्हारी माँ बड़ी खूबसूरत थी, इतनी प्यारी कि किसी का भी दिल उस पर आ जाए. आप उससे प्यार करने के लिए मजबूर हो जाते थे.…तो वह मुझे मात दे गई, ऐं…? लेकिन कोई बात नहीं, मैं उसे जल्दी ही पकड़ लूँगी, उसके पास पहुँच जाऊँगी. इसमें कोई शक नहीं है. मुझसे ज़्यादा कोई नहीं जानता कि स्वर्ग यहाँ से बहुत, बहुत दूर है मगर मैं सारे शॉर्टकट जानती हूँ. इसकी कुंजी है मरना. भगवान की कृपा हो तो जब आप चाहते हों तब मरें, तब नहीं जब भगवान चाहता हो. यानी उसे मजबूर करना कि वक़्त से पहले वह हमें उठा ले. माफ़ करना, मैं इस तरह बकबक किए जा रही हूँ जैसे तुम मेरे कोई पुराने मित्र हो. लेकिन मैं कर रही हूँ क्योंकि तुम मेरे बेटे के समान हो. हाँ… मैं यह हज़ार बार दोहरा चुकी हूँ: “डोलोरस के बेटे को मेरा बेटा होना चाहिए था.” क्यों, यह मैं तुम्हें बाद में कभी बताऊँगी. अभी इतना ही कहती हूँ कि इस अनंत यात्रा में कोई छोटा रास्ता पकड़कर मैं जल्द ही तुम्हारी माँ तक पहुँच जाऊँगी.”
मुझे लगा जैसे वह कोई पागल है. लेकिन तब तक मेरे दिमाग़ ने सोचना बंद कर दिया था. मुझे महसूस हो रहा था कि मैं सुदूर किसी और ही दुनिया में हूँ और मैंने अपने आपको धारा के साथ बहने के लिए खुला छोड़ दिया था. मेरा शरीर इतनी कमज़ोरी महसूस कर रहा था कि उसने हार मान ली थी. उसके अंजर-पंजर ढीले हो चुके थे और कोई भी उसे एक चीथड़े की तरह निचोड़ सकता था.
“मैं थक गया हूँ.” मैंने कहा.
“चलो, सोने से पहले कुछ खा लो. दो कौर. जो कुछ भी मेरे पास है.”
“ज़रूर. पर मैं बाद में आता हूँ.”

६.
(पेद्रो पारामो )
छत की टाइलों से टपकता पानी आँगन की रेत में गड्ढा बना रहा था. आँगन की ईंटों के बीच फँसे एक हरे, उछलते, कूदते पत्ते पर बूँदें गिरतीं तो टप-टप, टप-टप का तीखा स्वर उभरता. तूफान अब थम गया था. बीच-बीच में ठंडी हवा चलती और अनार की डालियों को झिंझोड़ देती जिससे पत्तों पर तेज़ बारिश का जमा पानी हुलास में भरी मोटी चमकती बूँदों की शक्ल में झरता और मिट्टी की मलिनता में जज़्ब हो जाता. मुर्गियाँ, जो अब तक अपने बसेरों में आराम कर रही थीं, अचानक फड़फड़ाती हुईं आँगन में उतर आईं और गर्दन को नचातीं और ठुमककर चलती हुईं बारिश के कारण बाहर निकल आए केंचुओं को चट करने लगीं. जैसे ही बादल छँटे, चमकीला सूरज चट्टानों पर अपनी सतरंगी छटा बिखेरने लगा, ज़मीन सूखने लगी और हवा में हिलती पत्तियों पर जमा पानी झिलमिलाने लगा.
“इतनी देर से संडास में क्या कर रहे हो, बेटे?”
“कुछ नहीं, माँ.”
“अगर वहाँ ज़्यादा देर बैठोगे तो साँप आएगा और तुम्हें काट खाएगा.”
“ठीक है माँ.”
मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा था सुज़ाना. हरी-भरी पहाड़ियों के बारे में. उस वक्त की बातें जब तेज़ हवाएँ चलती थीं और हम पतंग उड़ाया करते थे. नीचे, गाँव के जीवन का स्वर हम तक पहुँच रहा होता था. हम पहाड़ी पर होते, तेज़ हवा में माँझे को ढील देते, खींचते, उचकाते, झटका देते हुए. “सुज़ाना, मदद करो.” और तुम्हारे कोमल हाथ मेरे हाथों पर कस जाते. तुम कहती, “और ढील दो.”
हवा हमें हँसाती थी. हमारी आँखें उँगलियों के बीच सरकते माँझे का पीछा करतीं लेकिन अचानक वह पट्ट् से टूट जाता, जैसे किसी विशाल पक्षी के पंखों के बीच फँसकर खिंचता चला गया हो. ऊँचे, बहुत ऊँचे हमारा काग़ज़ का पंछी लहराता, बलखाता, हवा में कुलाचियाँ खाता नीचे उतरने लगता और फिर धरती की हरियाली में कहीं गुम हो जाता.
तुम्हारे होंठ नम हो जाते जैसे ओस के कणों ने उन्हें चूम लिया हो.
“बेटे, कितनी देर से चिल्ला रही हूँ, संडास से तुरंत बाहर निकलो.”
“हाँ माँ, मैं आ रहा हूँ.”
मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा था. उस वक्त के बारे में जब तुम अपनी नीली हरी आँखों से मेरी तरफ निहारा करती थीं.
उसने सिर उठाकर ऊपर देखा तो दरवाज़े पर माँ खड़ी थी.
“तुम्हें इतनी देर क्यों लग रही है? आखिर तुम वहाँ किस काम में उलझे हुए हो?”
“मैं सोच रहा हूँ.”
“तुम कहीं और जाकर सोच नहीं सकते? संडास में इतनी देर बैठे रहना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है. इसके अलावा, तुम्हें कोई मतलब का काम करना चाहिए. तुम दादी के पास बैठकर मक्का छीलने में उनकी मदद क्यों नहीं करते?”
“जा रहा हूँ, माँ. जा रहा हूँ.”
७.
लेखक
“दादी माँ, मैं तुम्हारी मदद करने आया हूँ.”
“मक्का तो सारा छिल गया लेकिन अभी चॉकलेट के बीज पीसना है. तुम कहाँ थे? इतना आंधी-तूफान था, हम सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे थे.”
“मैं पीछे आँगन में था.”
“और क्या कर रहे थे वहाँ? ईश्वर की प्रार्थना?”
“नहीं दादी माँ. मैं बारिश का गिरना देख रहा था.”
दादी ने शरीर के आर-पार देखने वाली अपनी पीली-मटमैली आँखें गड़ाकर उसे देखा.
“चलो, अब चक्की साफ करो.”
बादलों के सैकड़ों मीटर ऊपर, दूर, हर चीज से परे बहुत ऊपर तुम छिपी हुई हो, सुज़ाना. ईश्वर की अनंतता में, उसके दैवी विधान के पीछे, जहाँ न मैं तुम्हें छू सकता हूँ, न देख सकता हूँ. जहाँ मेरे शब्द तुम तक नहीं पहुँच सकते.
“दादी माँ, चक्की एकदम बेकार हो चुकी है. उसकी पाटियाँ टूट चुकी हैं.”
“वो मिकेला की बच्ची, उसने उसमें मक्का चला दिया होगा. उसकी इस आदत का मैं क्या करूँ. हार गई मैं इसका इलाज करते-करते. और अब उसके लिए देर भी हो चुकी है.”
“हम नई चक्की क्यों नहीं खरीद लेते? यह इतनी पुरानी है कि वैसे भी एकदम जर्जर हो चुकी है.”
“सत्य वचन, लेकिन तुम्हारे दादा के क़फन-दफन के खर्च और चर्च की फीस अदा करने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं बचा. चलो, कोई बात नहीं. अब हम कुछ दूसरे खर्चों को कम करके एक नई चक्की खरीद लेंगे. अभी तुम दौड़कर डोना ईनेस विलालपांडो के पास जाओ और उससे कहो कि अभी अक्तूबर तक हमारी उधारी लिखती रहे. फसल आने पर हम उसकी सारी उधारी चुका देंगे.”
“ठीक है, दादी माँ.”
“और हाँ, एक पंथ दो काज. जा ही रहे हो तो उससे छननी और घास काटने की कैंची माँग लाना. जिस तरह यह घास बढ़ रही है, जल्द ही हमारे नाक-कान में घुसने लगेगी. काश मैं अपने दड़बों वाले बड़े से घर में जानवरों के साथ रह रही होती. उसमें मुझे कोई परेशानी नहीं थी लेकिन तुम्हारे दादा ने उसे ठिकाने लगा दिया और यहाँ आ गए. चलो कोई बात नहीं, सब भगवान की मर्ज़ी है. जैसा हम चाहते हैं, वैसा कभी होता है भला. डोना ईनेस से कहना, फसल आने के बाद हम उसकी एक-एक पाई चुका देंगे.”
“ठीक है, दादी माँ.”
हमिंगबर्ड! उनका मौसम था. जस्मिन की गदराई झाड़ियों में उनके पंखों का फड़फड़ाना उसने सुना.
जहाँ “सेक्रेड हार्ट” रखा हुआ था, उसने टटोला तो उसे वहाँ चौबीस सेंटावो रखे दिखाई दिए. एक वाले चार सिक्के उसने वहीं छोड़ दिए और बीस वाला जेब में रख लिया.
वह वहाँ से खिसक ही रहा था कि माँ ने उसे रोक लिया.
“कहाँ जा रहे हो?”
“डोना ईनेस विलालपांडो के यहाँ. चक्की लाने. हमारी टूट गई है.”
“उससे एक मीटर काला टाफेटा भी लेते आना. ऐसा…” कहते हुए माँ ने कपड़े का एक टुकड़ा उसे थमा दिया. “कहना, खाते में लिख ले.”
“ठीक है, माँ.”
“और वापसी में मेरे लिए एस्पीरिन भी लेते आना….हॉल में फ्लावर-पॉट में कुछ पैसे रखे होंगे.”
एक पेसो वहाँ मिल गया. उसने बीस सेंटेवो वाला सिक्का वापस रखा और बड़ा वाला सिक्का, पेसो उठा लिया. “अब मेरे पास इतना है कि मैं कुछ भी खरीद सकता हूँ.” उसने सोचा.
“पेद्रो.” लोग उसे पुकार रहे थे. “ऐ…पेद्रो!”
लेकिन वह कुछ सुन नहीं पा रहा था. वह दूर, बहुत दूर निकल चुका था.

८.
(पेद्रो पारामो )
रात में फिर से बारिश होने लगी. काफी समय वह बारिश के गिरने का शोर सुनते हुए लेटा रहा. कुछ देर बाद शायद वह सो गया था, क्योंकि जब वह जागा, बाहर बारिश की मामूली फुहारें थीं. खिड़कियों के काँच पर भाप थी और पानी की बूँदें आँसुओं की तरह धीमे-धीमे लुढ़क रही थीं. …कड़कती बिजली में पानी की चमकीली बूँदों का सरकना मैं देख रहा था, मेरी हर साँस एक आह की तरह निकल रही थी. मैं विचारमग्न था और मेरा हर विचार तुम्हारे बारे में था.
बारिश के बाद तेज़ हवा चलने लगी. उसने प्रार्थना का अंतिम हिस्सा सुना, “…पापों की क्षमा और मृत हाड़मांस के जी उठने पर मेरा विश्वास है. आमीन.” यह सब घर के भीतर कहीं हो रहा था जहाँ औरतें अपने आखिरी मनके फेर रही थीं. वे प्रार्थना निबटाकर उठीं, मुर्गियों को दड़बे में डाला, दरवाज़ों पर साँकलें चढ़ाईं, बत्तियाँ बुझाईं.
अब सिर्फ रात का उजाला था, और बारिश झींगुरों की हल्की किरकिराहट की तरह सुनाई दे रही थी.
“तुम प्रार्थना करने क्यों नहीं आए? हम तुम्हारे दादा के लिए नौ रोज़ की विशेष प्रार्थना कर रहे हैं.”
उसकी माँ मोमबत्ती लिए दरवाज़े पर खड़ी थी. उसका तिरछा साया फर्श पर और वहाँ से शहतीरों को काटता हुआ छत तक लंबा चला गया था.
“मैं बहुत दुखी हूँ.” उसने कहा.
वह वापस मुड़ी. मोमबत्ती बुझाई. दरवाज़ा बंद करते ही उसकी सिसकियाँ शुरू हो गईं. बारिश के स्वर में भीगी हुई सुबकने की उसकी आवाज़ वह देर तक सुनता रहा.
चर्च की घड़ी ने एक के बाद एक घंटा बजाया. घंटे के बाद घंटा, फिर घंटे के बाद एक और घंटा. जैसे समय को ठोक-ठोककर छोटा किया जा रहा हो.
९.
(जुआन प्रेसीयाडो)
“हाँ… मैं तुम्हारी माँ बनते-बनते रह गई. उसने तुम्हें इसके बारे में कुछ नहीं बताया?”
“नहीं. वह मुझे सिर्फ अच्छी बातें ही बताती थी. मैंने तुम्हारे बारे में एक गधागाड़ी वाले से सुना. उसी ने मुझे तुम तक पहुँचने का रास्ता भी बताया. अबुंडियो नाम है उसका.”
“अच्छा आदमी है अबुंडियो. तो अब भी उसने मुझे याद रखा हुआ है. वह मेरे यहाँ यात्री भेजा करता था. यात्रियों के हिसाब से मैं उसे कुछ न कुछ दे देती थी. यह हम दोनों के लिए अच्छा सौदा था. कहते हुए दुख होता है कि अब वक्त बदल चुका है और कस्बा बुरे वक्त की चपेट में आ गया है. कोई खबर पहुँचाने वाला भी अब यहाँ नहीं रहा…. तो उसने तुमसे कहा कि मुझसे मिल लो?”
“हाँ, उसने कहा था कि तुमसे मिलूँ.”
“इसके लिए मैं उसकी आभारी हूँ. वह अच्छा आदमी था. ऐसाजिस पर आप भरोसा कर सकते थे. वही हमारी डाक लेकर आता था और जब वह बहरा हो गया तब भी लाता रहा. वह मनहूस दिन मुझे अब भी याद है जब वह बेचारा बहरा हो गया था. सबको बहुत बुरा लगा क्योंकि सब उसे चाहते थे. वह बाहर से चिट्ठियाँ लेकर आता था और हमारी चिट्ठियाँ बाहर ले जाता था. गाँव की सीमा के बाहर दुनिया में क्या चल रहा है वही हमें बताता था और इसमें कोई शक नहीं कि उधर वह हमारे बारे में बताता होगा. वह बड़ा बातूनी था. हाँ, मगर उस घटना के बाद नहीं. बाद में तो उसने बोलना ही छोड़ दिया. वह कहता, वे बातें सुनाना ठीक नहीं है जिन्हें वह खुद सुन न सकता हो. बातें, जो भाप बनकर उड़ गईं, बातें, जिनका रस खुद मैंने नहीं लिया. असल में एक बड़ा सा बम लगा हुआ रॉकेट, जिसे यहाँ साँप भगाने के लिए काम में लाते हैं, ऐन उसके कान के पास फट गया. उस दिन के बाद वह कभी नहीं बोला, हालाँकि एकदम गूंगा भी नहीं हुआ था. लेकिन एक बात कहनी पड़ेगी, इस हादसे के बाद भी वह वैसा ही भला आदमी बना रहा.”
“मैं जिस आदमी के बारे में कह रहा था वह अच्छा ख़ासा सुन लेता था.”
“फिर वह वह नहीं होगा. इसके अलावा, अबुंडियो मर चुका है. निश्चित ही मर चुका है. मतलब साफ है, जो तुम्हें मिला था वह कोई और होगा.”
“मुझे लगता है कि तुम ठीक कह रही हो.”
“खैर, फिर तुम्हारी माँ पर आते हैं. जैसा कि मैं तुम्हें बता रही थी….”
वह बड़बड़ाती रही और मैं ध्यान से उसे देखता रहा. मुझे लगा ज़रूर कि इसका अतीत बहुत बुरा रहा है. उसका चेहरा पारदर्शी था, जैसे शरीर में खून ही न हो. सूखे और झुर्रियों से भरे हाथ. आँखें गड्ढे में गहरे धँसी हुईं थीं और दिखाई नहीं देती थीं जैसे हों ही नहीं. उसने पुराने ढंग के सफेद कपड़े पहने हुए थे जिनमें कई चुन्नटें थीं और गले में मारिया सेंटिसिमा डेल रेफुजिओ का लॉकेट था जिस पर उकेरा हुआ था “पापियों का तारणहार”.
“…यह आदमी जिसके बारे में मैं बता रही हूँ, मेडिया लूना के जानवरों के फॉर्म हाउस में घोड़े पालता था और उन्हें प्रशिक्षित करता था. वह अपना नाम इनोसेंचिओ ओसोरियो बताता था लेकिन सब उसे उसके उपनाम ‘कॉकलबर्’ से पुकारते थे. वह अड़ियल से अड़ियल घोड़े से ऐसे चिपक जाता था जैसे गोखरू किसी कम्बल में चिपक जाता है. मेरा दोस्त पेद्रो कहा करता था कि यह आदमी सिर्फ घोड़े के बछड़ों को प्रशिक्षित करने के लिए ही पैदा हुआ है. सचाई यह थी कि उसे एक और काम में महारत हासिल थी: जादू टोने में. वह सपनों के अर्थ बताता था और उनसे भविष्यवाणी करता था. दरअसल, मुख्य रूप से वह यही था, यानी मायावी. और उसने तुम्हारी माँ पर भी अपना जादू चलाया, जैसा कि कई और लोगों के साथ भी उसने किया था. मेरे साथ भी. एक बार जब मेरी तबीयत खराब हुई तो वह आया और कहने लगा, ‘मैं तुम्हारा इलाज करने आया हूँ.’ और इलाज का मतलब था कि वह आपकी मालिश करना शुरू कर देता था: पहले अंगुलियों की पोरों को सहलाता, फिर आपके पंजों पर हल्की थपकियाँ देता और उसके बाद बाँहों तक पहुँच जाता. तब आप समझ जाते कि अब यह पैरों पर भी जोर आजमाइश करेगा. और वही होता, वह पैरों को तेज मसलते हुए मालिश करता, इस तरह कि आपका सारा शरीर तप्त हो उठता. और पूरी मालिश में, बीच-बीच में थपकते हुए वह आपका भविष्य बताता चलता था. वह दूसरी दुनिया में पहुँच जाता और पागलों की तरह बड़बड़ाने लगता. उसकी आँखें फैल जातीं और मुँह से फुहारों की शक्ल में थूक उड़ाता हुआ वह भविष्य की बातें करता रहता, दुनिया पर लानतें भेजता. तुमने देखा होगा, अक्सर जिप्सी लोग ऐसा करते हैं. कभी-कभी वह बिल्कुल नंगा हो जाता और कहता, तुम्हीं ने तो कहा था. और कभी-कभार उसका कहा सच भी हो जाता था. वह इतने सारे हवाई तीर छोड़ता था कि एकाध को तो निशाने पर लगना ही था.
“तो क्या हुआ कि जब तुम्हारी माँ इस ओसोरियो के पास गई तो उसने कहा कि उस रात वह किसी पुरुष के साथ न सोए क्योंकि चंद्रमा आज अशुभ स्थान पर है.
“डोलोरस व्याकुल हो गई और मेरे पास आकर सब बताया कि अब क्या किया जाए. उसने कहा कि आज रात तो वह पेद्रो पारामो के साथ किसी हालत में नहीं सोएगी. और वह उसकी सुहागरात का दिन था. इधर मैं थी कि उसे समझा रही हूँ कि उस बेईमान ओसोरियो की बात पर बिलकुल भरोसा न करे, कि वह एक ठग और झूठा आदमी है.
‘मैं नहीं जा सकती.’ वह मुझसे कहने लगी. ‘मेरी जगह तुम चली जाओ. वह समझ नहीं पाएगा.’
“मैं उससे काफी छोटी थी और उसकी तरह काली भी नहीं थी. लेकिन रात को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.
“यह नहीं हो सकता, डोलोरस. तुम्हें जाना ही होगा.” मैंने कहा.
“मुझ पर इतना एहसान करो. मैं इसका बदला सौगुना चुका दूँगी.” उसने कहा.
“उन दिनों तुम्हारी माँ की आँखें दुनिया में सबसे शर्मीली आँखें थीं. अगर कोई चीज़ तुम्हारी माँ की सबसे ज़्यादा सुंदर थी तो यही आँखें. उनसे वह किसी को भी अपने बस में कर सकती थी.
“मेरी जगह तुमको ही जाना पड़ेगा,” वह कहती ही रही.
“और आखिर मैं चली ही गई.”
“अंधेरे के कारण मेरी हिम्मत बंधी रही. इसके अलावा एक और बात थी जिसके कारण मैंने यह जुर्रत की और वह बात तुम्हारी माँ नहीं जानती थी. वह यह कि अकेली वही नहीं थी जो पेद्रो पारामो को पसंद करती थी.
“मैं उसके बिस्तर में घुस गई. खुशी-खुशी. मैं भी चाहती तो थी ही. मैं जाकर उससे चिपट गई लेकिन दिन भर के समारोहों और नाच-गाने से वह इतना थक गया था कि रात भर खर्राटे भरता हुआ सोता रहा. बस मेरे और उसके पैर भर रात भर गुत्थमगुत्था रहे. सुबह-सुबह मैं डोलोरस के पास गई और कहा, “अब तुम जाना उसके पास. आज नया दिन है.”
“उसने तुम्हारे साथ क्या किया?” उसने पूछा.
“मुझे ठीक से पता नहीं,’ मैंने कहा.
“दूसरे साल तुम पैदा हुए लेकिन मैं तुम्हारी माँ नहीं बन सकी हालाँकि तुम मेरे बेटे होते-होते रह गए. शायद तुम्हारी माँ यह सब संकोचवश तुम्हें नहीं बता पाई.”
हरा-भरा चरागाह. गेहूँ के खेतों को हिलाती-डुलाती तेज़ हवा के कारण झूले की तरह उठते, नीचे आते क्षितिज को देखती, वर्षा की बौछार में हिलती हुई एक लहरदार दोपहर. रंगीन धरती, अल्फ़ाअल्फ़ा और रोटी की सुगंध. एक कस्बा जो बिखरे हुए शहद की तरह सुगंधित….
“वह शुरू से पेद्रो पारामो से घृणा करने लगी थी. ‘डोलोरिटास! तुमने उन्हें मेरा नाश्ता लाने के लिए कहा?’ तुम्हारी माँ रोज़ सूरज निकलने से पहले उठ जाती. चूल्हा सुलगाती, और लकड़ियों की चिलपियों के जलने की गंध से बिल्लियाँ जाग जातीं. घर के कोने-अंतरों से निकल आतीं और उनके पीछे आती उनकी पहरेदारी करने वाली.
“‘डोना डोलोरिटास!’ पता नहीं कितनी बार तुम्हारी माँ ने यह पुकार सुनी होगी. ‘डोना डोलोरिटास, यह ठंडा हो गया है. एकदम बेकार.’ कितनी बार? और हालांकि उसने बहुत बुरा वक्त देखा था लेकिन आखिरकार उसकी वे शर्मीली आँखें सख्त हो ही गईं.”
गर्मी में संतरे के बौर की सुगंध के सिवा कोई दूसरा स्वाद उसने नहीं जाना था.
“फिर उसने उसाँसें लेना शुरू कर दिया.
“तुम इस तरह गहरी-गहरी साँसें क्यों ले रही हो, डोलोरिटास?”
“उस दोपहर मैं भी उनके साथ गई थी. हम खेत के बीचोंबीच खड़े थे और चिलबिल पक्षियों के झुंड को देख रहे थे. एक अकेला गिद्ध आसमान में मंडरा रहा था.
“तुम इस तरह गहरी-गहरी साँसें क्यों ले रही हो, डोलोरिटास?”
“मैं सोच रही हूँ कि काश मैं एक गिद्ध होती और उड़कर वहाँ जा सकती जहाँ मेरी बहन रहती है.”
“यह तुमने आखिरी चोट खाई है, डोना डोलोरिटास! तुम ज़रूर अपनी बहन से मिलोगी. अभी, इसी वक्त. हम घर वापस जा रहे हैं और तुम अपना सामान बांध लो. इसे तुम आखिरी चोट समझो.”
“और तुम्हारी माँ चली गई.
“जल्द ही मिलेंगे, डॉन पेद्रो.”
“गुड बाय, डोलोरिटास!”
“और उसके बाद वह मेडिया लूना वापस नहीं आई. कुछ माह बाद मैंने पेद्रो पारामो से उसके बारे में पूछा.
“वह मुझसे ज़्यादा अपनी बहन से प्यार करती थी. मेरा ख्याल है वह वहाँ खुश होगी. इसके अलावा मैं उससे आजिज़ आ गया था. अगर तुम उसके लिए इतना परेशान हो तो बता दूँ कि मुझे उसके बारे में कुछ नहीं मालूम. मैं उसके बारे में किसी से कुछ नहीं पूछता क्योंकि मैं उसके बारे में जानना ही नहीं चाहता.”
“लेकिन वे कैसे रहेंगे, उनका खर्च कैसे चलेगा?”
“उनकी देखभाल ईश्वर करेगा.”
…उन वर्षों का हिसाब लेना, बेटा. हमें अपने दिलो-दिमाग़ से निकाल देने का बदला तुम उससे अवश्य लेना, मेरे बच्चे.
“वहाँ तक की बात मैंने सुना दी….और अब उसने मुझे बताया कि तुम मुझसे मिलने आ रहे हो….यहाँ से जाने के बाद आज तक उसकी कोई खबर नहीं मिली थी.”
“इस बीच बहुत सारी बातें हुईं हैं,” मैंने ईडुवाइजेस से कहा. “हम कोलीमा में रहे. हमें गर्त्रूदीस ऑन्टी के यहाँ रहना पड़ा जो रोज़ हमें एहसास कराती कि हम उस पर बोझ बने हुए हैं. वह मेरी माँ से कहती, “तुम अपने पति के पास क्यों नहीं चली जाती?”
“क्या? क्या उसने हमें बुलाने के लिए कोई चिट्ठी भेजी है? मैं तब तक नहीं जाऊँगी जब तक वह हमें वापस नहीं बुलाता. मैं तुमसे मिलना चाहती थी, इसलिए यहाँ आई. क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती थी. प्यार की खातिर मैं यहाँ आई हूँ.”
“यह मैं जानती हूँ. मगर अब तुम्हें वापस चले जाना चाहिए.”
“काश यह मेरे बस में होता…!”
मैं सोच रहा था कि ईडुवाइजेस मेरी बात सुन रही है. मगर मैंने गौर किया कि उसका सिर इस तरह तिरछा मुड़ा हुआ था जैसे वह किसी दूरस्थ जगह की आवाज़ें सुन रही हो. फिर उसने कहा:
“आखिर तुम सोने कब जाओगे?”

10.
(पेद्रो पारामो )
जिस दिन तुम गई उसी दिन मैं समझ गया था कि अब मैं तुम्हें कभी नहीं देख पाऊँगा. दोपहर बाद के सूरज ने तुम्हें गुलाबी रंग से रंग दिया था और शाम होते-होते सारा आसमान रक्ताभ हो उठा. तुम मुस्कुरा रही थी. तुम जिस गाँव को छोड़कर जा रही थी, उसके बारे में तुम अक्सर कहती रहती थी, “मैं इसे सिर्फ तुम्हारे कारण पसंद करती हूँ. यहाँ का और सब कुछ मुझे घिनौना लगता है, यहाँ तक कि मेरा यहाँ पैदा होना भी.” मैंने सोचा, वह अब कभी वापस नहीं आएगी; मैं उसे कभी नहीं देख पाऊँगा.
“इस वक्त तुम यहाँ क्या कर रहे हो? आज काम पर नहीं जाना?”
“नहीं दादी माँ, रॉजेलियो का बेटा मेरे पास है, उसने मुझे उसका ध्यान रखने के लिए कहा है. मैं उसे घुमा-फिरा रहा हूँ. मैं एक साथ दोनों काम नहीं कर सकता- बच्चे को भी देखूँ और टेलीग्राफ का काम भी करूँ. और वह खुद मज़े में नीचे पूलरूम में बैठा बीयर पी रहा है. और सबसे बड़ी बात, वह मुझे कोई मजदूरी भी नहीं देता.”
“तुम वहाँ मजदूरी नहीं कर रहे हो. तुम काम सीखने जाते हो. पहले कुछ सीख जाओ तब मजदूरी के काबिल होगे. अभी तुम सिर्फ उसके शागिर्द हो. हो सकता है एक दिन तुम बॉस बन जाओ लेकिन उसके लिए तुम्हें संयम रखना होगा और उस वक्त का इंतज़ार करना होगा. और सबसे बड़ी बात, हँसते-हँसते अपमान सहन करना होगा. अगर वे चाहते हैं कि तुम बच्चे को घुमाओ-फिराओ तो वह भी तुम्हें करना पड़ेगा. भगवान के लिए, संयम बरतना सीखो.”
“ये मेरे बस का नहीं है. संयम-वंयम के लिए उसे कोई और आदमी देखना चाहिए.”
“तुम और तुम्हारी बकवास! मुझे डर है, आगे जीवन में तुम्हें बड़ी मुश्किल होगी, पेद्रो पारामो .”
११.
(जुआन प्रेसीयाडो)
“वह क्या था डोना ईडुवाइजेस? तुमने सुना?”
उसने ऐसे सिर झटका जैसे नींद से जागी हो.
“वह मिग्येल पारामो का घोड़ा है जो मेडिया लूना वाली सड़क पर सरपट भाग रहा है.”
“मतलब कोई वहाँ रहता है?”
“नहीं, नहीं. रहता कोई नहीं.”
“मगर…?”
“सिर्फ घोड़ा है उसका, आता-जाता रहता है. वे कभी अलग नहीं रहे. वह दिन भर पूरे इलाके में उसे ढूँढ़ता-फिरता है और रोज़ इसी वक्त वापस आता है. लगता है बेचारा जानवर अपने पश्चाताप के साथ ज़िंदा नहीं रह पाएगा. जानवर भी जानते हैं कि उनसे गुनाह हुआ है.”
“मैं समझा नहीं. ऐसा मैंने कुछ नहीं सुना जिसे घोड़ों के टापों की आवाज़ कहा जाए.”
“नहीं सुना?”
“नहीं.”
“तब यह मेरी छठी इंद्री का कमाल होगा. भगवान ने वरदान दिया है मुझे. या शाप! इतना जानती हूँ कि मुझे इस वरदान के कारण बहुत दुख भोगना पड़े हैं.”
कुछ देर वह चुप रही, फिर कहना शुरू कियाः
“कहानी शुरू होती है मिग्येल पारामो से. उस रात की सारी घटनाओं को मुझसे ज़्यादा कौन जान सकता है? उस रात यानी जिस रात उसकी मौत हुई. मैं गहरी नींद में थी कि अचानक मैंने मेडिया लूना की तरफ सरपट दौड़ते घोड़े की टापों की आवाज़ सुनी. मुझे आश्चर्य हुआ कि मिग्येल तो इस वक्त कभी घर नहीं आता. हमेशा सबेरा हो जाने के बाद ही वापस आता था. वह रोज़ रात को अपनी रखैल के पास कोंटला जाता था, जो यहाँ से काफी दूर है. वह जल्दी जाता था और काफी देर से लौटता था. लेकिन उस रात वह लौटा ही नहीं…. तुम्हें अभी भी कुछ सुनाई नहीं दे रहा? दे रहा होगा. देखो उसका घोड़ा वापस घर आ रहा है.”
“मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है.”
“नहीं? तो फिर अकेली मैं ही सुन रही हूँगी. तो, जैसा कि मैं बता रही थी, वह वापस नहीं आया और बात इतनी ही नहीं थी कि वह वापस नहीं आया…. उसका घोड़ा अभी निकला ही था कि मैंने अपनी खिड़की खटखटाने की आवाज़ सुनी. अब तुम्हीं बताओ कि क्या यह मेरी कपोल-कल्पना हो सकती है? मैं तो इतना जानती हूँ किसी चीज़ ने मुझे उठकर देखने के लिए मजबूर कर दिया कि कौन है. और वही था. मिग्येल पारामो . मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ उसे देखकर क्योंकि एक समय था जब वह रोज़ रात मेरे घर पर ही गुज़ारता था. मेरे साथ सोता था. तब तक जब तक कि उसकी मुलाकात उस चूड़ैल से नहीं हुई थी जो आखिरकार उसका खून पी गई.
“क्या हुआ?” मैंने मिग्येल पारामो से पूछा. “आखिर उसने तुम्हें बाहर का रास्ता दिखा ही दिया.”
“नहीं. वह अब भी मुझे प्यार करती है,” वह बोला. “दिक्कत यह हो रही है कि वह मुझे मिल नहीं रही है. मैं उसके गाँव का रास्ता नहीं खोज पा रहा हूँ. बाहर ओस बहुत है, या धुँए जैसा कुछ, या न जाने क्या…. इतना निश्चित है कि अब कोंटला वहाँ नहीं है. मेरे हिसाब से मैं ठीक वहीं गया था जहाँ उसे होना चाहिए था लेकिन वह वहाँ नहीं था. मैं तुम्हें इसलिए बताने आया हूँ कि सिर्फ तुम्हीं मेरी बात समझ सकती हो. कोमाला में किसी दूसरे को बताऊँगा तो वह मुझे पागल कहेगा. वैसे भी कहते ही हैं.”
“नहीं. पागल नहीं मिग्येल. तुम शायद मर गए हो. याद करो, सब क्या कहते थे-किसी न किसी दिन ये घोड़ा तुम्हारी मौत का कारण बनेगा. याद आया, मिग्येल पारामो ? ज़रूर तुमने कोई उटपटांग हरकत की होगी…लेकिन अब वह और बात है.”
“मैंने कुछ नहीं किया, सिर्फ मेरे बाप ने जो नई बाउंड्री वाल बनवाई है, उसे कूद गया था. सड़क तक जाने के लिए आजकल घूमकर जाना पड़ता है तो घूमकर न जाना पड़े इसलिए मैंने कोलोराडो से कहा, कूदो. वह कूदा और हम आगे बढ़े…लेकिन, जैसा कि मैंने बताया, हर तरफ धुआँ, धुआँ, धुआँ.”
“सबेरे तुम्हारे पिताजी पर दुख का पहाड़ टूटने वाला है,” मैंने कहा. “मुझे उससे सहानुभूति हो रही है. अब जाओ मिग्येल, तुम्हारी आत्मा को शांति मिले. तुम अंतिम बिदा लेने आए, शुक्रिया.”
“और मैंने खिड़की बंद कर ली. सबेरा होने से पहले ही एक हरवाहा मेरे पास आया, “मालिक आपको बुला रहे हैं. मिग्येल बाबा मर गए. डॉन पेद्रो चाहते हैं कि इस समय आप उनके साथ रहें.”
“मैं जानती हूँ,” मैंने उससे कहा. “क्या उन्होंने तुमसे रोने के लिए कहा था?”
“हाँ, डॉन फुलगर ने कहा था कि जब मैं आपको यह खबर दूँ तब रोऊँ.”
“चलो, ठीक है. डॉन पेद्रो से कहो कि मैं तुरंत आ रही हूँ. वे उसे घर लेकर कब आए?”
“अभी, आधा घंटा पहले. थोड़ा जल्दी पहुँच जाते तो वे उसे बचा सकते थे. हालाँकि जिस डॉक्टर ने उसका मुआयना किया था, कह रहा था कि वह काफी पहले ठंडा पड़ चुका था. हमें तब पता चला जब कोलोराडो घर आया और उसकी जीन पर कोई सवार नहीं था और वह इस तरह हिनहिना रहा था कि उसकी चीख-पुकार से कोई सो नहीं पाया. आप जानती हैं कि वह और उसका घोड़ा एक-दूसरे से कितना प्यार करते थे और जहाँ तक मेरा खयाल है, डॉन पेद्रो से ज़्यादा उसकी हालत खराब है. उसने तब से कुछ नहीं खाया है, और न सोया है और पूरे समय सिर्फ गोल-गोल चक्कर काटता रहता है. जैसे सब कुछ जान-समझ रहा हो. जैसे टूट गया हो, किसी ने भीतर से उसे मथ दिया हो.”
“जाते समय दरवाज़ा बंद करना मत भूलना.”
“और उसके बाद मेडिया लूना से आया हरकारा वापस लौट गया.”
“तुमने कभी किसी मरे हुए आदमी की कराहना सुना है?” उसने मुझसे पूछा.
“जी, नहीं सुना, डोना ईडुवाइजेस.”
“किस्मत वाले हो.”

१२.
(लेखक)
पत्थर की नांद में बारिश की बूंदें लगातार गिर रही हैं. वहाँ से छनकर स्वच्छ पानी घड़े में गिर रहा है जिसका स्वर हवा में घुला हुआ है. पैरों को ज़मीन पर आगे-पीछे रगड़ते हुए वह इस स्वर को बड़े गौर से सुन रहा है. अंतहीन प्रवाह. घड़ा भर जाता है और पानी गीली धरती पर फैलने लगता है.
“उठो,” कोई पुकार रहा है.
वह आवाज़ सुनता है. किसकी है, समझने की कोशिश करता है लेकिन नींद से बोझिल नीचे लुढ़ककर ऊँघने लगता है. रज़ाई पर उसके हाथ कसे हुए हैं. वह उसकी गर्मी में लिपटा शांति तलाश रहा है.
“उठो,” कोई फिर पुकार रहा है.
वह “कोई” उसका कंधा झिंझोड़ रहा है. उसे बैठने के लिए मजबूर कर रहा है. वह आँखें खोलने की कोशिश करता है लेकिन वे अधखुली रह जाती हैं. वह पुनः नांद में टप-टप टपकते और लबालब घड़े में गिरते पानी का स्वर सुनता है. और घिसटकर चलते पैरों का स्वर. और फिर रोने का….
फिर उसने विलाप सुना. इसी से उसकी नींद खुली: बहुत कोमल लेकिन बेधता हुआ रुदन, जो इतना महीन और नाज़ुक था कि उसकी नींद के तंतुजाल पर फिसलकर वहाँ पहुँच गया जहाँ उसका भय छिपा बैठा था.
वह धीरे-धीरे बिस्तर से निकलकर बाहर आया और देखा कि रात के धुंधलके में दरवाज़े की चौखट पर एक औरत का चेहरा टिका हुआ है. औरत सिसक-सिसककर रो रही थी.
“तुम रो क्यों रही हो माँ?” उसने पूछा. पैर ज़मीन पर रखते ही उसने अपनी माँ का चेहरा पहचान लिया था.
“तुम्हारे पिता मर गए,” माँ ने कहा.
और उसके बाद, जैसे उसका बेड़ियों में जकड़ा शोक अचानक मुक्त हो हुआ हो, वह गोल-गोल चक्कर काटने लगी. पीड़ा में घूमता, छटपटाता उसका शरीर तभी थमा जब उसने अपने हाथों से उसके कंधों को जकड़ नहीं लिया.
दरवाज़े से वह सबेरा देख पा रहा था. वहाँ एक भी तारा नहीं था. सूरज की किरणों से अनछुआ एक धूसर, उदास आकाश. फीका, काला उजाला जो दिन की शुरुआत से अधिक रात की शुरुआत जैसा प्रतीत होता था.
बाहर आँगन में पदचापें. लोग, जैसे एक वृत्त की परिधि में घूम रहे हों. दबे-दबे से मंद स्वर. और भीतर एक औरत, दरवाज़े की चौखट पर खड़ी, अपने शरीर से दिन के आगमन को रोकती हुई: औरत के हाथों के बीच से उसे आकाश के कुछ टुकड़े दिखाई दिए और उसके पाँवों के नीचे से रिसता प्रकाश. गीला मलिन प्रकाश, जैसे औरत के पैरों के नीचे फर्श पर आंसुओं की बाढ़ आई हो. और उसके बाद विलाप. फिर वही कोमल, नुकीला रुदन और उस औरत का शोकाकुल शरीर, दर्द के मारे ऐंठता हुआ.
“उन्होंने तुम्हारे पिता की हत्या कर दी.”
और तुम? तुम्हारी हत्या किसने की माँ?
१३.
(लेखक)
साफ़ हवा बह रही है और सूरज की रौशनी है और बादल. बहुत ऊपर नीला आकाश और उसके आगे शायद गीत; शायद मीठे, सुरीले स्वर…. कुल मिलाकर, आशा है. हमारे पास आशा है. आशा, कि हमारे दुखों की ज्वाला शांत होगी.
“लेकिन तुम्हारे लिए नहीं, मिग्येल पारामो , क्योंकि तुम क्षमा मांगे बगैर चले गए, तुम पर ईश्वर की कृपा नहीं होगी.”
फादर रेंटेरिया मृतक के लिए मास पढ़ते हुए लाश के चारों ओर चक्कर लगा रहा था. वह यह काम जल्द से जल्द खत्म करना चाहता था. चर्च में जमा लोगों के लिए आशीर्वचन कहे बगैर वह चलने को हुआ.
“फादर, हम चाहते हैं कि आप उसे आशीर्वाद दें.”
“नहीं,” उसने सिर हिलाते हुए बलपूर्वक कहा. “मेरा आशीर्वाद उसे नहीं मिलेगा. वह एक बुरा आदमी था और वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं पा सकता. मैंने अगर उसकी वकालत की तो ईश्वर मुझ पर भी कृपालु नहीं होगा.”
यह कहते हुए उसने अपने हाथ आपस में खूब कस लिए जिससे उनकी कंपकंपाहट छिपी रहे लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ.
वहाँ उपस्थित हर एक की आत्मा पर वह लाश भारी चट्टान की तरह रखी हुई थी. चर्च के बीचोबीच एक मंच पर मोमबत्तियों और फूलों के बीच उसे रखा गया था. एक पिता अकेला एक तरफ खड़ा मास की समाप्ति का इंतज़ार कर रहा था.
फादर रेंटेरिया पेद्रो पारामो के पास से गुजरा- इतनी सतर्कता के साथ कि उसके शरीर का कोई हिस्सा पेद्रो पारामो से छू न जाए. फिर उसने एस्पर्जिलम उठाया और मुँह में प्रार्थना जैसा कुछ बड़बड़ाते हुए कफन के सर से पाँव तक सावधानीपूर्वक पवित्र जल का छिड़काव किया.. फिर उसने घुटने टेक दिए, सबने उसका अनुसरण किया और घुटने टेके:
“हे ईश्वर, अपने सेवक पर रहम कर.”
“ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें,” लोगों ने एक स्वर में कहा.
एक बार फिर उसका गुस्सा उभरने लगा और तभी उसने देखा कि सारे लोग मिग्येल पारामो का कफन लेकर चर्च के दरवाज़े से बाहर निकल रहे हैं.
पेद्रो पारामो उसके पास आया और झुककर कहा:
“मैं जानता हूँ कि आप उससे घृणा करते थे, फादर. इसका कारण भी मैं जानता हूँ. अफवाह है कि मेरे बेटे ने आपके भाई की हत्या की थी और आपको इस बात का विश्वास है कि आपकी भतीजी, अना पर बलात्कार भी उसने किया था. इसके अलावा न जाने कितने अपमान, अनादर आपने उसके हाथों सहे. इन सब कारणों को कोई भी समझ सकता है. लेकिन अब सब कुछ भूल जाओ, फादर. बीती बातों को याद करने से क्या फायदा…. उसे माफ़ कर दो, क्योंकि शायद ईश्वर ने भी उसे माफ़ कर दिया है.”
उसने सोने के कुछ सिक्के प्री-डियू पर रखे और फादर के कदमों में गिर पड़ा: “इसे चर्च के लिए उपहार समझकर रख लो.”
चर्च अब ख़ाली हो चुका था. दो आदमी दरवाज़े पर खड़े पेद्रो पारामो का इंतज़ार कर रहे थे. जब वह उनके पास पहुँचा तो तीनों कुछ और आगे, चार फोरमैनों के कंधों पर लदे और उन्हीं का इंतज़ार करते कफ़न के पीछे चलने लगे. फादर रेंटेरिया ने एक, एक कर सिक्के उठाए और ऑल्टर की ओर बढ़ा.
“ये आपके हैं, प्रभु,” उसने कहा. “वह मुक्ति खरीदने की हैसियत रखता है. सिर्फ आप जानते हैं कि यह कीमत वाजिब है या नहीं. जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो आपके चरणों में सिर रखकर, यही मांगता हूँ कि जो भी उचित समझें, वैसा ही हो…लेकिन आशा मैं यही करता हूँ कि आप ज़रूर उसे चिर-नरक की आग में झोंक देंगे.”
और उसने चैपल के द्वार बंद किए.
वह सैक्रीस्टी में गया और एक कोने में जाकर बैठ गया और रोने लगा. दुख और संताप इतना था कि वह देर तक रोता रहा मगर उसके आँसू नहीं सूखे.
“ठीक है, भगवन. आप जीते,” उसने कहा.
१४.
(लेखक)
रात को खाना खाने के बाद हमेशा की तरह उसने गर्म चॉकलेट पिया. उसे थोड़ा अच्छा लगा.
“अनीता, तुम्हें पता है आज किसे दफन किया गया?”
“नहीं अंकल, मुझे नहीं पता.”
“तुम्हें मिग्येल पारामो याद है?”
“हाँ, याद है.”
“वही. उसे दफनाया गया है आज.”
अना ने सिर झुका लिया.
“क्या तुम विश्वास के साथ कह सकती हो कि वह वही था?”
“निश्चित रूप से नहीं कह सकती, अंकल. मैं उसका चेहरा नहीं देख पाई थी. रात को अचानक आकर उसने मुझे डरा दिया था, और उस समय अंधेरा भी था.”
“फिर तुम कैसे जानती हो कि वह मिग्येल पारामो था.”
“क्योंकि उसी ने कहा: “मैं मिग्येल पारामो हूँ, अना. डरो मत.” यही कहा था उसने.”
“लेकिन तुम तो जानती थी कि वह तुम्हारे पिता की मौत का जिम्मेदार है. जानती थी ना?”
“हाँ, अंकल.”
“और प्रतिरोध में तुमने क्या किया?”
“मैंने कुछ नहीं किया.”
दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे. मेहंदी की झाड़ियों में मचलती, बलखाती हवा का स्वर उन्हें सुनाई पड़ रहा था.
“बाहर से ही उसने कहा कि वह मुझसे माफ़ी मांगने आया है, और फिर उसने सॉरी कहा. मैं अपने बिस्तर पर चुपचाप लेटी रही और उससे कहा, “खिड़की खुली है.” वह अंदर आ गया. आते ही सबसे पहले उसने मुझे बाँहों में भर लिया, जैसे अपने किए की माफ़ी मांगने का उसका यही तरीका हो. मैं उसकी ओर देखकर मुसकुराई. आपने जो उपदेश मुझे दिया था, वह मुझे याद आया: कि कभी किसी से घृणा मत करो. यही जताने के लिए मैं मुसकुराईं थी लेकिन मुझे लगा कि वह मेरा मुसकुराना नहीं देख पाया होगा क्योंकि इतना अंधेरा था कि मैं भी उसका चेहरा नहीं देख पा रही थी. मैं सिर्फ इतना महसूस कर पा रही थी कि उसका शरीर मुझ पर सवार है और फिर उसने मेरे साथ बुरी बातें करना शुरू कर दिया.
“मुझे लगा कि वह मुझे मार डालेगा. यही लगा मुझे, अंकल. फिर मैंने कुछ भी सोचना बंद कर दिया जिससे वह मेरी हत्या करे, उससे पहले ही मैं मर जाऊँ. लेकिन मुझे लगता है कि उसकी हिम्मत नहीं हुई.
“जब मैंने आँखें खोलीं तो मुझे पता चला कि उसने नहीं की है और खुली खिड़की पर मुझे सबेरे का प्रकाश चमकता दिखा. तब तक मुझे यही लग रहा था कि मैं दरअसल मर चुकी हूँ.”
“लेकिन किसी न किसी तरीके से तुम्हें यह पक्का पता करना चाहिए था. उसकी आवाज़… तुमने उसकी आवाज़ से भी नहीं पहचाना?”
“मैं उसे बिलकुल नहीं पहचान पाई. मैं सिर्फ इतना ही जानती थी कि उसने मेरे पिताजी की हत्या की है. मैंने उसे देखा नहीं था, और बाद में भी मैंने उसे कभी नहीं देखा. देखती तब भी मैं उसका सामना नहीं कर पाती, अंकल.”
“लेकिन तुम जानती थी कि वह कौन है.”
“हाँ. और यह भी कि वह वही था. और मैं जानती हूँ कि अब तक वह नर्क की सबसे भयंकर आग में जल रहा होगा. मैंने जी-जान लगाकर सभी संतों से प्रार्थना की थी.”
“उन पर बहुत भरोसा मत करो, मेरे बच्चे. न जाने कितने लोग उसके लिए स्वर्ग की प्रार्थना कर रहे होंगे! तुम अकेली हो. हज़ारों प्रार्थनाओं के सामने एक प्रार्थना को कौन पूछता है! और उनमें से कुछ तो तुमसे भी ज़्यादा भावपूर्ण-जैसे उसके पिता की प्रार्थना.”
वह कहना चाहता था: ‘और…कुछ भी हो, मैंने तो उसे माफ़ कर दिया है,’ लेकिन कहा नहीं सिर्फ सोचा. लड़की पहले ही बहुत दुखी थी, वह उसका दिल और नहीं दुखाना चाहता था. उसकी जगह उसने उसकी बाँह पर हाथ रखा और कहा:
“यहाँ उसने बहुत उत्पात मचाया था. चलो, हम ईश्वर का शुक्रिया अदा करें कि उसने उसे इस संसार से उठा लिया. वह उसे स्वर्ग ले जाए या नर्क, हमें क्या फर्क पड़ता है?”

१५.
(लेखक)
जहाँ मुख्य सड़क कोंटला जाने वाले रास्ते से मिलती है, उधर से एक घोड़ा सरपट भागा जा रहा था. किसी ने उसे नहीं देखा. हालांकि एक औरत ने, जो गाँव की सीमा पर खड़ी किसी का इंतज़ार कर रही थी, बताया कि उसने घोड़े को देखा है और यह भी कि उसके पैर इस तरह मुड़े हुए थे जैसे वह कलाबाज़ी दिखाना चाहता हो. उसने ताईद की कि वह मिग्येल पारामो का भूरा, अखरोटी रंग का घोड़ा ही था. पल भर के लिए उसके मन में यह विचार भी आया कि घोड़ा ज़रूर अपनी गर्दन तुड़वाएगा. फिर उसने देखा कि उसके पैर ठीक चल रहे हैं और टापें सामान्य हो गई हैं. कुछ ही देर में वह छलांगे मारता विपरीत दिशा में सरपट दौड़ने लगा- उसकी गर्दन ज़रा पीछे की ओर झुकी हुई थी, जैसे ग़लती से पीछे छूट गई किसी चीज़ से बुरी तरह घबरा गया हो.
कफन-दफन की रात को पूरी कहानी मेडिया लूना में चर्चा का विषय बन गई- तब जब कब्रगाह से लौटे लोग बैठे बतिया रहे थे. वे बातचीत कर रहे थे, उस तरह की गपशप जैसी लोग दिन भर की थकान के बाद अक्सर सोने से पहले किया करते हैं.
“इस मौत ने मुझे एक नहीं कई तरह से तकलीफ पहुँचाई है, “टेरेंशियों लुबिएंस ने कहा. “मेरे कंधे अब तक टीस रहे हैं.
“मेरे भी,” उसके भाई यूबीलादो ने कहा. “मेरी एड़ी का गोखरू एक इंच सूज गया होगा. सिर्फ इसलिए कि मालिक चाहते हैं कि हम जूते पहनकर ही उसे ले जाएँ. तुम्हें तो लगा होगा आज कोई पवित्र त्योहार है, क्यों टोरीबीओ?”
“तुम लोग मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो? कोई अगर मुझसे कहे कि यह आदमी जल्दी मर गया तो मैं उससे यही कहूँगा कि बिलकुल नहीं.”
कुछ दिनों बाद कोंटला से एक और खबर आई. खबर एक बैलगाड़ी वाला लेकर आया था.
“लोग कह रहे हैं कि उधर उसका भूत घूम रहा है. मेरी एक दोस्त है, उसकी खिड़की खटखटा रहा था. लोगों ने देखा, बिलकुल उसकी तरह लगता था. वैसे ही चमड़े के काउबॉय चैप्स वगैरह….”
“तुम क्या सोचते हो-वो डॉन पेद्रो आजकल जिस तरह बिफरा हुआ है…अपने बेटे को औरतों के चक्कर लगाने देगा? मेरे हिसाब से तो अगर उसने देख लिया तो कहेगा: “बहुत हो गया, अब तुम मर चुके हो. अपनी कब्र में पड़े रहो और इन सब चीज़ों को हमारे लिए छोड़ दो.” और अगर तब भी न माना तो एक दिन पकड़कर फिर से कब्र में गाड़ देगा.”
“बिलकुल सही कह रहे हो, ऐज़ायस. वो आदमी ज़्यादा बर्दाश्त नहीं करता.”
बैलगाड़ी वाला अपनी राह चल दिया, “मैं तो सिर्फ वह बता रहा हूँ जो मुझे किसी ने बताया.”
ऊल्कापिंड. टूटते हुए तारे धरती पर ऐसे गिर रहे हैं जैसे आग बरस रही हो.
“उधर देखो,” टेरेंशिओ बोला. “प्लीज़ ऊपर देखो, आसमान में क्या गजब नज़ारा है.”
“ज़रूर वे मिग्येल का स्वागत कर रहे हैं,” जीज़स ने कहा.
“यह बुरा शगुन है. क्या कहते हो?”
“किसके लिए बुरा है?”
“हो सकता है, तुम्हारी बहन अकेलापन महसूस कर रही हो और चाहती हो कि वह वापस आ जाए.”
“जानते हो, किससे बात कर रहे हो?”
“तुमसे, और किससे?”
“…चलो यार, चलें अब. हम काफी थक गए हैं और हमें सबेरे जल्दी भी उठना है.”
और वे रात के अंधेरे में छाया की तरह गायब हो गए.
१६.
(लेखक)
ऊल्कापिंड. एक, एक करके कोमाला की लाइटें बुझ गईं.
फिर रात पर आकाश का कब्जा हो गया.
फादर रेंटेरिया बेचैन था और बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी.
(फादर रेंटेरिया) सब मेरा दोष है. जो भी हो रहा है. क्योंकि मैं उन लोगों को नाराज़ करने से डरता हूँ जो मुझे कुछ न कुछ देते रहते हैं. यह सच है; मेरी रोज़ी-रोटी उन्हीं की बदौलत चलती है. गरीबों से मुझे कुछ नहीं मिलता और भगवान जानता है, प्रार्थनाओं से पेट नहीं भरता. कम से कम अब तक तो ऐसा ही था. और उसके नतीजे हम देख रहे हैं. सारा दोष मेरा है. मैंने उन लोगों से दगाबाजी की जो मुझसे प्यार करते हैं और जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मेरे पास आए कि मैं ईश्वर से उनकी सिफ़ारिश करूँ. और उनके विश्वास ने उन्हें क्या दिया? स्वर्ग? क्या उनकी आत्मा शुद्ध हो गई? और क्यों चाहिए उन्हें शुद्ध आत्मा, जबकि अंतिम समय में…. मैं मारिया द्यादा का चेहरा कभी नहीं भूल सकता, जब वह अपनी बहन ईडुवाइजेस की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने मेरे पास आई थी:
“उसने सदा अपने लोगों की मदद की. उसके पास जो कुछ भी था, सब दूसरों पर लुटा दिया. उसने दूसरों के लिए बच्चे तक पैदा किए. न जाने कितने. और उन नवजात बच्चों को उनके पिताओं के पास ले गई कि वे उन्हें पहचानें लेकिन किसी ने नहीं पहचाना. नहीं पहचाना तो उसने कहा, “कोई बात नहीं, मैं उनकी पिता भी बनने के लिए तैयार हूँ, भले ही विधाता ने मुझे उनकी माँ बनने के लिए चुना था.” उसकी भलमनसाहत और मेहमाननवाज़ी का सबने भरपूर फायदा उठाया. वह किसी का दिल नहीं दुखाती थी और न उसका कोई दुश्मन था.”
“लेकिन उसने आत्महत्या की है. यह ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है.”
“उसके पास कोई चारा नहीं था. यह तो उसके हृदय की पवित्रता की गवाही देने वाला एक और काम था.”
“अंतिम समय में उससे चूक हो गई,” यह कहा मैंने मारिया द्यादा से. “मुक्ति के लिए अच्छे कामों का जो भी खजाना उसने इकट्ठा किया था, पल भर में खो दिया! आखिरी पल में कमी रह ही गई.”
“लेकिन उसने उन्हें खोया नहीं है. उसके दुखों ने उसकी जान ली है. और दुख…आपने एक बार दुखों के बारे में बताया था कि दुख…न जाने क्या बताया था, मैं भूल गई. दुख के कारण ही वह हमसे दूर चली गई, अपने ही रक्त से उसका दम घुट गया. मेरी नज़र के सामने अब भी उसका चेहरा आ जाता है. मैंने आज तक उतना दुखी और शोकाकुल चेहरा नहीं देखा.”
“शायद उसके लिए कई प्रार्थनाएँ करनी पड़ें…..”
“हमें मंजूर है. आप जितनी प्रार्थनाएँ कहेंगे, हम करेंगे.”
“मैंने कहा, शायद…, ग्रगॉरीअन मास के ज़रिए शायद संभव हो. लेकिन उसके लिए मुझे मदद की जरूरत होगी. बहुत से दूसरे पादरी बुलवाने होंगे. और उसमें पैसा बहुत लगेगा.”
और मेरे सामने एक बेहद गरीब मगर बाल-बच्चों वाली औरत का चेहरा था. मारिया द्यादा का चेहरा.
“आप जानते हैं, मेरे पास पैसे नहीं हैं, फादर.”
“तो फिर जैसा चल रहा है, चलने दो. ईश्वर पर विश्वास रखो.”
“ठीक है, फादर.”
अपनी हताशा में वह इतनी साहसी क्यों लग रही थी?
क्या एक मृतात्मा को क्षमा करने की मुझे कोई कीमत चुकानी पड़ती?
(लेखक) क्या उसके लिए एकाध शब्द, या कुछ सौ शब्द कहना इतना कठिन था-अगर मान लें कि उतने से उसे मुक्ति मिल ही जाती हो तो? इसके अलावा वह खुद स्वर्ग या नरक के बारे में क्या जानता है? और फिर भी विश्वास किया जाता है कि एक छोटे से अनाम कस्बे में दफन एक बूढ़ा पादरी भी, कौन स्वर्ग जाएगा और कौन नहीं जाएगा, यह जानता है. उसके पास पूरी सूची होती है. फिर कैथोलिक संत-सूची से शुरू करते हुए वह पूरी सूची को मन ही मन दोहराने लगा-कलेंडर के हर दिन के लिए एक संत: “सेंट न्यूनीलोना, अक्षत, पवित्र और शहीद; अनेर्शिओ, बिशप; सेंट सलोमी, तरह-तरह की विधवाएं; और एलोडिया या इलोडिया और न्यूलीना, सभी अक्षत और पवित्र; कार्डूला तथा डोनेट.” और आगे, और आगे….जब उसे नींद के झोंके आने लगे तब वह बिस्तर पर सीधा बैठ गया. “और मैं यहाँ बैठा संतों के नाम जप रहा हूँ-इस तरह जैसे भेड़ें रहा होऊँ.”
वह बाहर निकल आया और आकाश की ओर निहारने लगा. तारों की बरसात हो रही थी. वह दुखी था, क्योंकि अन्यथा आकाश शांत होता. उसे मुर्गियों की बांग सुनाई दी. उसे लगा कि रात के काले साये ने सारी पृथ्वी को ढँक लिया है. और पृथ्वी, “यह आँसुओं की घाटी.”
१७.
(जुआन प्रेसीयाडो)
“तुम किस्मतवाले हो, बेटे. बहुत भाग्यशाली,” ईडुवाइजेस द्यादा मुझे बता रही थी.
बहुत देर हो चुकी थी. कोने में रखा लैंप मंद पड़ता जा रहा था. उसकी लौ कुछ तेज़ हुई और फिर बुझ गई.
मुझे एहसास हुआ कि वह औरत उठकर खड़ी हुई है और मैंने सोचा कि शायद वह दूसरा लैंप लाने के लिए उठी होगी. मैं क्रमशः धीमी होती हुई उसकी पदचाप सुनता रहा. फिर वहीं बैठकर इंतज़ार करने लगा.
कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि वह अब नहीं आएगी, मैं भी उठकर खड़ा हो गया. और फिर धीरे-धीरे, अंधेरे में टटोलता हुआ आगे बढ़ा और किसी तरह अपने कमरे में पहुँचा. मैं ज़मीन पर लेट गया और नींद का इंतज़ार करने लगा.
बार-बार मेरी नींद उचटती रही.
इन व्यवधानों के बीच ही अचानक मैंने किसी के रोने की आवाज़ सुनी. वह लंबा आर्तनाद था, जैसे किसी शराबी की चीख. “ऐयी…ये-ये-एये, ज़िंदगी! तुम कतई मेरे लायक नहीं हो.”
मैं सीधे स्थिर बैठा रहा क्योंकि वह लगभग मेरे कानों में सीधी सुनाई पड़ रही थी. वह बाहर गली में कहीं होगी लेकिन मैंने उसे यहाँ सुना, अपने कमरे की दीवार से चिपककर आती हुई. जब मैं पूरी तरह जागा, सब कुछ शांत था: सिर्फ पतंगे की आवाज़ और खामोशी का मंद स्वर.
उस चीख के बाद छाई उस खामोशी की गहराई को नापने का कोई पैमाना नहीं था. यह ऐसा ही था जैसे पृथ्वी शून्य में स्थित हो. कोई आवाज़ नहीं: मेरी साँस की भी नहीं और न ही मेरे दिल की धड़कन का कोई स्वर. जैसे चेतना के स्वर को भी खामोशी निगल गई हो. और जैसे ही यह विराम खत्म हुआ और मैंने अपना आपा वापस पा लिया, वह आर्तनाद मुझे पुनः सुनाई दिया. मैंने उसे काफी देर तक सुना. “तुम्हारा मुझ पर एक कर्ज़ है, भले ही वह फाँसी की सज़ा पाए व्यक्ति की आखिरी इच्छा से भी छोटा हो, लेकिन है.”
फिर एक झटके के साथ दरवाज़ा खुल गया.
“कौन?… तुम हो, डोना ईडुवाइजेस?” मैंने पुकारकर कहा. “क्या हुआ? डर लग रहा है क्या?”
“मेरा नाम डोना ईडुवाइजेस नहीं है. मैं डामियाना हूँ. मैंने सुना कि तुम यहाँ हो तो मैं तुमसे मिलने आ गई. तुम मेरे यहाँ सोने चलो. वहाँ तुम आराम से सो सकोगे.”
“डामियाना सिस्नेरो? तुम वह तो नहीं जो मेडिया लूना में रहती थी, बहुत सी दूसरी औरतों के साथ?”
“हाँ, मैं वहीं रहती हूँ. इसीलिए मुझे यहाँ आने में इतना समय लगा.”
“मेरी माँ ने मुझे डामियाना नाम की एक औरत के बारे में बताया था कि पैदा होने के बाद उसी ने मेरी देखभाल की थी. क्या तुम वही डामियाना हो?”
“हाँ, मैं वही हूँ. मैं तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुमने पहले-पहल आँखें खोली थीं.”
“मैं खुशी-खुशी तुम्हारे साथ आऊँगा. चीख़ों के कारण मैं यहाँ बिलकुल आराम नहीं कर पा रहा हूँ. तुमने सुनीं वे आवाज़ें? जैसे कुछ लोग किसी की हत्या कर रहे हों? क्या अभी-अभी तुमने भी वे चीखें सुनीं?”
“कोई प्रतिध्वनि यहाँ कैद हो गई होगी. उसी की आवाज़ तुमने सुनी होगी. बहुत समय हुआ, यहाँ, इसी कमरे में उन्होंने टोरीबीओ एल्ड्रीट को फाँसी पर लटकाया था. फिर वे इस कमरे में ताला जड़कर चले गए थे कि वह सूख-साखकर चमड़े में तब्दील हो जाए, कि उसे कभी शांति न मिले. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम अंदर कैसे आए, क्योंकि दरवाज़ा खोलने के लिए ताला खोलना पड़ेगा और ताले की कोई चाभी ही नहीं है.”
“डोना ईडुवाइजेस ने दरवाज़ा खोला था. उसने बताया कि उसके पास यही एक कमरा ख़ाली है.”
“ईडुवाइजेस द्यादा?”
“हाँ, वही.”
“बेचारी ईडुवाइजेस. मतलब वह अभी भी एक भटकी हुई आत्मा की तरह यहाँ-वहाँ चक्कर काट रही है.”
१८.
(लेखक)
“मैं, फुलगर सेडानो, उम्र चौवन साल, अविवाहित, पेशे से मुकदमे दायर करने और अदालत में बहस करने के लिए प्रशिक्षित वकील. मैं प्रशासक द्वारा मुझे प्रदत्त अधिकार का तथा स्वविवेक का प्रयोग करते हुए यह अभिकथन तथा अभ्यर्थन करता हूँ कि…”
टोरीबियो एल्ड्रीट के कृत्यों का हवाला देते हुए उसने यही आरोपपत्र दाखिल किया था जिसमें अंत में आरोप का हवाला देते हुए लिखा गया था: ग़लत सीमांकन कर ज़मीनों पर जबरन कब्ज़ा करना.
“फुलगर, कोई नहीं कह सकता कि तुम मर्द के बच्चे नहीं हो. मैं जानता हूँ कि तुम किसी से भी मुकाबला कर सकते हो, डटे रह सकते हो. इसलिए नहीं कि किसी की ताकत तुम्हारे पीछे है बल्कि अपने खुद के दम पर.”
उसे सब याद है. ठीक यही बात एल्ड्रीट ने भी कही थी जब वे साथ पीने बैठे थे, उसी आरोपपत्र का जश्न मनाने के लिए:
“हम इस कागज़ के टुकड़े को टॉयलेट पेपर की तरह इस्तेमाल करेंगे, क्या कहते हो डॉन फुलगर? तुम और मैं. क्योंकि ये कागज़ इसी काम आ सकता है. तुम जानते हो….यानी, तुमने सिर्फ अपना काम किया है, जैसे कहते हैं, कर्तव्य निभाया है जिससे रास्ता साफ हो जाए. पहले मैं परेशान हो गया था. कोई भी होता. मगर अब मुझे तुमने समझा दिया है कि यह बात है. मैं हँसी से दोहरा हो रहा हूँ. ग़लत सीमांकन! जबरन कब्ज़ा!! मैंने? अगर वह, वह तुम्हारा मालिक, इतना बेवकूफ है तो जल्द ही वह किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगा.”
उसे सब कुछ याद है. वे ईडुवाइजेस के यहाँ गए थे. उसने उससे पूछा भी था, “विजेज़, किनारे वाला कोई कमरा ख़ाली है क्या?”
“कोई भी कमरा ले लो, डॉन फुलगर. चाहो तो सारे कमरे ले लो. क्या तुम्हारे आदमी रात में रुकने वाले हैं?”
“नहीं, मुझे सिर्फ एक चाहिए. हमारे बारे में परेशान मत हो और सो जाओ. सिर्फ कमरे की चाबी छोड़ जाओ.”
“हाँ तो, जैसा कि मैं कह रहा था, डॉन फुलगर,” टोरीबीओ एल्ड्रीट ने कहा था. “तुम्हारी मर्दानगी पर कोई शक नहीं कर सकता लेकिन इस बिल्ली के गू, चूतिये, तुम्हारे मालिक से मैं बुरी तरह झुँझला उठा हूँ.”
उसे याद है. यह आखिरी जुमला था जो उसने अपने पूरे होशोहवास में कहा था. बाद में वह एक बेहद कमज़ोर आदमी साबित हुआ और बुज़दिल की तरह चिल्लाचोट करने लगा, “तुमने कहा था कि मैं, मैंऽ मैं तुम्हारी तरफ हूँ…तुम्हारी ताकत हूँ! यही कहा था ना?”
१९.
(लेखक)
अपनी छड़ी की मूठ से उसने पेद्रो पारामो का दरवाज़ा खटखटाया. पहली बार उसने कब ऐसा किया था? उसने याद किया, दो हफ्ते पहले. वह इंतज़ार में खड़ा रहा जैसा कि उसने पहली बार किया था. और पहले की तरह ही उसने दीवार पर टँगे दो काले धनुषों की तरफ देखा. लेकिन उसने पहले की तरह यह नहीं कहा, “क्या बात है! उन्होंने एक के ऊपर दूसरा धनुष टाँग दिया है. नीचे वाला फीका पड़ गया है मगर सामने वाला रेशम की तरह चमक रहा है. साफ पता चलता है कि उसे अभी-अभी चमकाया गया है.”
उस पहली बार उसे इतना इंतज़ार करना पड़ा था कि उसे लगा था, घर पर कोई नहीं है. वह जाने के लिए मुड़ा ही था कि पेद्रो पारामो दरवाज़ा खोलकर बाहर आया.
“आओ यार.”
वे दूसरी बार मिल रहे थे. पहली बार का उसे सिर्फ इसलिए याद है कि उसके कुछ समय पहले ही छोटा पेद्रो पैदा हुआ था. और यह दूसरी बार. यानी इस मुलाकात को हम हर लिहाज से पहली मुलाकात ही कह सकते हैं. और यहाँ उसके साथ ऐसा व्यवहार हो रहा था जैसे दोनों का रुतबा समान हो. क्या बात है! फुलगर लंबे डग भरता हुआ और अपने दाहिने पैर पर छड़ी चटकाता हुआ उसके पीछे चला आया था. ‘इसे जल्द समझ में आ जाएगा कि मैं सब कुछ जानता हूँ, असली बात से वाकिफ हूँ. इसे समझ में आ जाएगा. और यह ये भी जान जाएगा कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ.’
“बैठो, फुलगर. हम यहाँ आराम से बात कर सकते हैं.”
वह घोड़ों का तबेला था. पेद्रो पारामो आराम से नांद की किनार पर टिककर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा.
“तुम नहीं बैठोगे?”
“मैं खड़ा ही ठीक हूँ, पेद्रो.”
“जैसा तुम ठीक समझो. लेकिन फिर कभी “डॉन” लगाना मत भूलना.”
यह छोकरा अपने आपको क्या समझता है जो मुझसे इस तरह बात कर रहा है? इसका बाप, डॉन लुकास पारामो भी ऐसा करने का साहस नहीं करता था. तो पहली बात, यह बच्चा! यह बच्चा जिसने कभी मेडिया लूना के बाहर कदम नहीं रखा और जिसने कोई काम ढंग का नहीं किया, वह मुझसे इस तरह बात कर रहा है जैसे मैं कोई किराए का टट्टू हूँ. क्या बात है!
“तो कामकाज कैसा चल रहा है?”
सेडानो ने सोचा, यही मौका है. ‘अब मेरी बारी है.’
“अच्छा नहीं है. हमारे पास कुछ नहीं बचा. हम अपना आखिरी जानवर तक बेच चुके हैं.”
पेद्रो पारामो को बताने के लिए कि उस पर कितना कर्ज़ है, वह कागज़ात बाहर निकालने लगा. और कहने ही जा रहा था कि हमें इसका इतना और उसका इतना देना है…कि उस छोकरे की गंभीर आवाज़ उसे सुनाई दीः
“किस-किसके कर्ज़दार हैं हम? मुझे इससे मतलब नहीं है कि कितना. सिर्फ यह बताओ कि किसके. किसके कर्ज़दार हैं हम?”
फुलगर लिस्ट पढ़ने लगा. और अंत में कहाः “हमारे पास कोई साधन नहीं है जहाँ से यह सारा कर्ज़ हम अदा कर सकें. यही तो मूल समस्या है.”
“क्यों नहीं है साधन?”
“क्योंकि तुम्हारे परिवार ने सब कुछ खा-पचा लिया है. वे कर्ज़ लेते रहे, लेते रहे, अदा कुछ नहीं किया. एक दिन सब भुगतना पड़ता है. मैं हमेशा कहा करता था, “आज-कल में वे सब कुछ उठाकर ले जाएँगे.” वही हुआ. हाँ, मैं एक आसामी को जानता हूँ जो हमारी ज़मीनें खरीदने का इच्छुक हो सकता है. वह अच्छी रकम देगा. इतनी कि सारा कर्ज़ उतर जाए और थोड़ा बहुत बच भी जाए. हालांकि बहुत ज़्यादा नहीं.”
“वह “आसामी” कहीं तुम ही तो नहीं हो?”
“अरे, क्या बात कर रहे हो? किस आधार पर कह रहे हो कि मैं ख़रीदना चाहता हूँ?”
“मैं अपनी छाया तक पर शक करता हूँ….कल से हम अपने सारे कारोबार का कामकाज ठीक करना शुरू करेंगे. सबसे पहले वह औरत, प्रेसियाडो. तुमने अभी बताया, हम पर सबसे बड़ा कर्ज़ उन्हीं का है.”
“हाँ. और उन्हें ही हमने सबसे कम अदा किया है. तुम्हारे पिता उन्हें सबसे आखिर में अदा करते थे, जब अदा करने के लिए कुछ नहीं बचता था. मुझे पता है उन लड़कियों में से एक, मतिल्दे, किसी शहर में रहने चली गई है. मुझे नहीं मालूम गुआडालाहारा या कोलिमा. और यह लोला ही, यानी डोना डोलोरस, यहाँ का सब काम-काज देखती है. डॉन एन्मेडियो का रैंच जानते होगे? हमें उसी का पैसा अदा करना है.”
“फिर तुम कल ही उसके पास जाओ और लोला का हाथ माँग लो.”
“यह तुमने कैसे सोच लिया कि वह मुझे स्वीकार कर लेगी? मैं इतना अधेड़….”
“तुम उसे मेरे लिए माँगोगे. आखिर वह इतनी बदसूरत भी नहीं है. उसे बताना कि मैं उसके प्यार में पागल हूँ. पूछना कि यह विचार उसे कैसा लगा. और रास्ते में फादर रेंटेरिया के पास भी चले जाना और कहना कि सब इंतज़ाम करके रखे. अभी जोड़-जाड़ के तुम्हारे पास कितना रुपया होगा?”
“एक धेला नहीं है, डॉन पेद्रो.”
“कोई बात नहीं. उसे कुछ देने का वादा कर लेना और कहना कि जैसे ही मेरे पास रुपया आता है सबसे पहले उसे मिलेगा. मुझे पूरा भरोसा है, वह अड़ंगा नहीं लगाएगा. यह सब कल ही कर डालो. सबेरे, जल्द से जल्द.”
“और एल्ड्रीट का क्या करें?”
“एल्ड्रीट इसमें कहाँ से आ गया? तुमने उस औरत, प्रेसियाडो के बारे में बताया और फ्रेगोसो और गुज़मान के बारे में. अब इस एल्ड्रीट का क्या मामला है?”
“यह सीमांकन का मामला है. उसने बाड़ लगाना शुरू कर दिया है और चाहता है कि हम भी अपने हिस्से में अपनी बाड़ खड़ी कर लें जिससे ज़मीनों की मिल्कियत का मामला साफ हो जाए.”
“इस मामले को बाद में देख लेंगे. तुम्हें सीमाओं के बारे में परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. कोई सीमांकन नहीं होगा, कोई बाड़ नहीं लगेगी. ज़मीन के टुकड़े नहीं होने चाहिए, इस बारे में सोचो, फुलगर. मगर अभी इस बारे में किसी से बात मत करना. सबसे पहले इस लोला का मामला पक्का करो. मुझे पूरा विश्वास है तुम इसमें देर नहीं लगाओगे.”
“कतई नहीं, डॉन पेद्रो….भगवान क़सम. तुम्हारे साथ करना मुझे अच्छा लगने लगा है.”
“तुम लोला को चारा डालो, उसे भरोसा दिलाओ कि मैं उससे प्यार करता हूँ. यह सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. और यह सच है सेडानो, कि मैं उससे प्यार करता हूँ. पता है? उसकी आँखों के कारण. तो तुम सबेरे यही काम सबसे पहले निबटाओ. और मैं तुम्हें कुछ प्रबंधकीय कामों से छुट्टी दे दूँगा. मेडिया लूना से मैं निपट लूँगा, उसे मुझ पर छोड़ दो.”
इस उपन्यास को हिंदी में आना ही चाहिए था और यह आया। यह कृति क्रिएटिविटी का उत्कृष्ट और अनन्य उदाहरण है। अजित ने अपने आलस्य के पार जाकर इसे अंतत: संशोधित और पूर्ण किया और अरुण ने अद्भुत ढंग से एक साथ ही पेश कर दिया। इस तरह यह A++ काम हुआ।
बधाई।
कुमार अम्बुज जी, सहमत हूँ कि विश्व प्रसिद्ध कृतियों का हिन्दी अनुवाद छपना चाहिये ।
लेखक के नाम का मेक्सिको की हिस्पानी में उच्चारण ‘ख्वान रुल्फ़ो’ के निकट है।
For a long time I thought to write that names of foreign writers be also written in brackets. Moreover, the authors’ books translated into Hindi and their publishers names.
इस संक्षिप्त कथा में भी महत्वपूर्ण प्रसंग महिलाओं की उपेक्षा [घृणा और हिंसा भी पहलू होते हैं] से जुड़ी पीड़ा है । मुझे नहीं मालूम कि पितृ-सत्ता की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं । क्या आदिम युग से हैं । आधुनिक संसार में महिलाओं की शिक्षा ने उन्हें मज़बूत बनाया है । वे कमाती हैं । इसके बावजूद घर में काम करना इन्हीं के ज़िम्मे है ।
क़रीब 5 वर्ष पहले [My chronology is weak] द इंडियन एक्सप्रेस में रविवारी संस्करण में सत्य घटना पर लेख था । मैं पहले कई लेखों की कतरने काटकर फ़ाइलों में रखता था । अब भी हैं लेकिन आयु अधिक होने के कारण छोड़ दिया] यह घटना केरल की है । इसलिये मलयालम भाषा में फ़िल्म बनायी गयी थी । कथा का आरंभ एक 12-14 साल के लड़के और उसकी माँ से जुड़ी है । पिता मज़दूर हैं । माँ का इलाज कराने की रक़म नहीं । उसकी देह उम्र से पहले दोहरी हो गयी थी । माँ काम करने में असमर्थ हैं । एक रोज़ बालक रसोई में स्लैब पर लगे सिंक के पास बर्तन साफ़ करता है । कमर और शरीर में दर्द होना आरंभ हो गया ।
उसी रोज़ बच्चे ने संकल्प किया कि विवाह के बाद अपनी जीवनसंगिनी के साथ रसोई एवं घर के कार्यों में सहयोग करूँगा । संकल्प का व्यवहार में परिवर्तन हुआ । कथा छपने के दिन तक इन दंपति के एक पुत्र और एक पुत्री हैं । उनसे पुरुष और महिला दोनों के काम कराने का शिक्षण दिया गया ।
इस चित्रपट के माध्यम से केरल में उनके रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की वर्किंग वुमन के फ़ोन आने लगे । कि कोई तो है जो हमारे कष्टों को समझता है ।
हुआन रूल्फो का यह उपन्यास आज ७० वर्ष बाद भी अद्भुत लगता है। हिंदी में यह अनुदित होना शुभ समाचार है। भाषा वृद्धि का यह राज पथ भी है।
फिलहाल इंग्लिश मे यह उपन्यास मै पढ रहा हु लेकिन समजनेमे खूब जटील है खासतौर उस देश का ईतिहास की जानकारीभी मालूम लेना जरुरी है
हिंदी मे आप लोगोने ऐस क्लासिक किताब का अनुवाद किया
धन्यवाद
किसी हालत मे मूझे यह उपन्यास चाहिये
आनंद विंगकर तहसिल कराड जिला सातारा महाराष्ट्र पिनकोड 415122
नमस्कार , आज के कारनामे के लिए समालोचन को बहुत बहुत बधाई। समालोचन में ही यह सम्भव है।अब सामलोचन साहित्य की एक संस्था का रूप ले चुका है।कमाल है ।
क्या यह उपन्यास पीडीएफ के रूप में उपलब्ध हो सकता है, ताकि प्रिंट लेकर पढ़ा जा सके?
पाँव में मल्टिपल फ्रैक्चर के कारण दो हफ्ते से बिस्तर पर हूँ। बिस्तर पर पड़े रहने की ऊब और उदासी के बीच पढ़ना शुरू किया। एक झटके में बीस पेज से अधिक पढ़ गया। इस बीच ऊब और उदासी हाशिए पर दुबकी रहीं। पाठक को मोहपाश में बाँध कर रखने वाला उपन्यास है। भाषा में प्रवाह ऐसा कि बिल्कुल नहीं लगता जैसे अनुवाद पढ़ रहा हूँ। अजित हर्षे और समालोचन ने यह महत्वपूर्ण काम किया है।
अद्भुत संयोग है ! छह सात दिन पहले इनकी दो कहानियां पढ़ी और इस उपन्यास के बारे में NY Times में Valeria Luiselli का आर्टिकल ! और उसी क्रम में हिंदी अनुवाद मिल गया और वह भी इतनी जल्दी. शुक्रिया अरुण जी !
देर सवेर दिल की बात पहुँच ही जाती है, प्यारे लोगो तक। बड़ी तमन्ना थी इसे नागरी में पढ़ने की, पूरी हुई। यह हिंदी की उपलब्धि है। समालोचन पर इसका होना यक़ीन से परे की बात नहीं है। अब कुछ दिन बस यही। समालोचन और अजित हर्षे जी का ख़ूब शुक्रिया!
अद्भुत है कि समालोचन ने अपनी इस ख़ास पेशकश में पूरा उपन्यास ही दे दिया है। अजित जी का और आपका आभार।
अति उत्तम कार्य.
एक दशक पहले किसी मित्र ने इसकी चर्चा की थी और PDF भेजा था.पढ़ते हुए किसी भुतही गुफा में जाने का रोमांच हुआ था.अब हिन्दी में पढ़ेंगे तो ज़्यादा आसान होगा.
बहुत महत्त्व का काम। हिंदी के क्षितिज को विस्तार देने की दृष्टि से भी बड़ा कार्य है यह। इसे पढ़ना तो है ही, संभाल कर रखना भी है। आपको और अनुवादकर्ता अजित हर्षे को बहुत – बहुत बधाई ।
बहुत अच्छा काम किया। आपका इस पुस्तक से अवगत कराने लिए धन्यवाद।
फिल्म दो बार देख चुका हूं। उपन्यास पढ़ रहा हूं। समालोचन इस वक्त हिंदी साहित्य को दिशा दृष्टि देने का कठिन काम कर रहा है। अनुवादक और संपादक को बहुत बहुत धन्यवाद्!
अजित हर्षे से चार दशकों की घनिष्ठ मित्रता है। इस प्रसंग से वह और गाढ़ी हुईं। उनकी असंदिग्ध सर्जनात्मकता का यह एक और सोपान सम्भव करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए पुराने प्यारे साथी कुमार अम्बुज और अरुण देव जी को अशेष साधुवाद। इसे पढ़ने की तीव्र उत्कंठा जाग उठी है। यात्रा पर हूॅं। स्थिर होते ही प्राथमिकता से पढ़ूॅंगा।
समय से साक्षात्कार समय को अवरुद्ध करने वाली जड़ताओं से टकराए बिना नहीं हो सकता। उपन्यास इस जोखिम को उठाता है, लहूलुहान होता है और अपने ही हाथों किये गए विध्वंस को देख हूक-हूक रोता है।
कथा को मेटाफर का रूप देना और चरित्रों में अखंड देश-काल की स्मृतियों को भर देना आसान नहीं होता। तब पेद्रे पारामो क्या सिर्फ एक व्यक्ति भर बना रह जाता है? क्या वह अपनी व्युत्पत्ति में तमाम तामसिकताओं से बुनी बर्बरता नहीं जो संस्कृतियों, साम्राज्यों, सल्तनतों और सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के पराभव को सुनिश्चित कर हरे-भरे संभावनाओं से लहलहाते जीवन को प्रेतों का शहर बना देती है?
कथ्य के भीतर गहरी सांस बन कर दुबका जादुई यथार्थवाद शैल्पिक ऊँचाइयाँ न लिए होता तो अर्थगर्भित प्रतीक, बिंब, फुसफुसाहटें और सन्नाटे में खो जाती आहटें/ कराहें भय एवं रहस्य गहराने की विलक्षण युक्तियाँ बन कर रह जातीं, लेकिन यह तो मुर्दों के टीले में जिंदगी के अस्तित्व और मायने तलाशने की पुकार है।
फलने-फूलने के दंभ में डूबी तमाम सभ्यताओं के बीच आज भी पेद्रो पारामो सब जगह है। बूंद बन कर पैबस्त होता है पल में, और फिर आसमान बन कर ढांप लेता है वजूद …चेतना.. विवेक… गति … असहमति… और ताकत प्रतिरोध की।
अजित हर्षे और समालोचन का आभार । कलजयी वैचारिक गद्य भी उपलब्ध कराएं तो आज के आलोचनाहीन-विचारहीन समय में सार्थक हस्तक्षेप का मंच बन जाएगा समालोचन ।
बाप रे! इतना भी आसान नहीं है पूरा उपन्यास एक ही बार में समझ आना। इसको समझने को इसकी गहराई में उतरना आवश्यक है। जब आप इसे पढ़ो तो किसी दूसरी ओर सोचो नहीं। बढ़िया 👏👏 धन्यवाद समालोचन अरुण देव जी। आभार अजीत हर्षे जी 🙏।सुना था इस उपन्यास के विषय में, पढ़ा आज। समालोचना की बदौलत। आभार समालोचना, ये तो लाइब्रेरी है मेरी 😊🙏