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समालोचन

Home » पेद्रो पारामो : जुआन रुल्फो » Page 3

पेद्रो पारामो : जुआन रुल्फो

हिंदी अनुवाद : अजित हर्षे

by arun dev
January 22, 2025
in अनुवाद
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पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

२०.
(लेखक)

 

‘आश्चर्य होता है कि यह लड़का कहाँ से इस तरह की तिकड़में लेकर आता है’, फुलगर सेडानो दूसरी बार मेडिया लूना जाते हुए सोच रहा था. ‘मुझे उससे कोई आशा नहीं थी.’

“वह किसी काम का नहीं,” मेरे पिछले मालिक डॉन लुकास कहा करते थे. “वह पैदाइशी कमज़ोर था.” इस बात पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं थी. “मैं ज़ब मर जाऊँ, फुलगर, तो कहीं और कोई काम ढूँढ़ लेना.” “ढूँढ़ लूँगा, डॉन लूकास.” “मैंने उसे सेमिनरी में भेजने की सोची कि कम से कम वहाँ वह खा-पीकर तंदुरुस्त हो जाएगा, मेरे मरने के बाद माँ की देखभाल करने लायक हो जाएगा. लेकिन यह पट्ठा वहाँ भी नहीं रहा.” “बड़ा बुरा हुआ, डॉन लुकास.” “उससे किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं रख सकते. बुढ़ापे में मेरी देखभाल करेगा, सोचना भी मत. वह बेहद बुरा आदमी निकला, फुलगर, एकदम सच्ची बात कह रहा हूँ.” “बड़े दुःख की बात है डॉन लुकास.”

और अब यह. अगर मेडिया लूना उसके लिए इतना मानी नहीं रखता तो वह मिग्येल को पता ही नहीं चलने देता. उसे बताए बगैर ही इस काम में लग जाता. लेकिन वह उस ज़मीन के टुकड़े से प्यार करता था: वह उजाड़ पहाड़ी जिसे साल दर साल जोतते रहो, हल चलता ही रहता था और हर साल पिछले से दोगुनी फसल…उसका प्यारा मेडिया लूना…और हर बार ज़मीन में एक न एक इजाफा…जैसे यह एन्मीडियो वाली ज़मीन: “मेरे पास आओ, मेरी जान.” वह उसे देख सकता था, अपनी ओर आता हुआ, जैसे सब काम हो ही गया हो. और आखिर एक औरत की कीमत ही क्या है. “सही है!” उसने कहा और चाबुक को अपने पैरों पर फटकारता मुख्य दरवाज़े से बाहर निकल गया.

 

२१.
(लेखक)

 

डोलोरस को बुद्धू बनाना बहुत आसान था. उसकी आँखें चमक उठी थीं और चेहरे पर व्याकुलता साफ़ नज़र आने लगी.

“माफ़ कीजिए, मुझे शर्म आ रही है, डॉन फुलगर. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि डॉन पेद्रो ने नज़र उठाकर मेरी तरफ देखा भी होगा.”

“उसकी नींद उड़ गई है तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते.”

“लेकिन इतनी लड़कियों में से वह किसी को भी चुन सकता था. कोमाला में सुंदर लड़कियों की कमी नहीं है….हे भगवान, वे सब क्या सोचेंगी जब उन्हें पता चलेगा?”

“तुम्हारे सिवा वह किसी के बारे में नहीं सोचता, डोलोरस. तुम और सिर्फ तुम!”

“आपकी बातें सुनकर मुझे कँपकँपी छूट रही है, डॉन फुलगर. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि…”

“क्योंकि वह बातें बहुत कम करता है. डॉन लुकास पारामो ने, भगवान उन्हें जन्नत बख्शें, उसे मना किया था कि तुम उसके लायक नहीं हो. आज्ञाकारी बेटा होने के कारण इतने दिन वह चुप रहा. मगर अब पिता रुखसत हो चुके हैं इसलिए रास्ते में कोई रोड़ा नहीं बचा. यह उसका सबसे पहला महत्वपूर्ण निर्णय था और मेरी ही कोताही थी जो मैं दूसरे कामों में उलझा रहा और तुम्हें यह बताने में इतनी देर लगा दी….हम शादी के लिए परसों का दिन तय कर रहे हैं. तुम्हारे लिए कैसा रहेगा?”

“क्या यह बहुत जल्दी नहीं हो जाएगा. मेरी बिल्कुल तैयारी नहीं है. शादी का जोड़ा और दूसरी तैयारियों में कुछ तो समय लगेगा. अपनी बहन को चिट्ठी लिखना है…नहीं बहन के लिए मैं किसी को शहर भेज दूँगी. पर कुछ भी हो, आठ अप्रैल से पहले मेरी तैयारी नहीं हो पाएगी. आज एक है. हाँ, बिल्कुल. कितनी भी जल्दी करूँ आठ अप्रैल से पहले नहीं. उनसे कहें कि कुछ दिन और मेरा इंतज़ार कर लें. बस दो-चार दिन…”

“उसका बस चले तो वह तुमसे इसी पल शादी कर ले. जहाँ तक तुम्हारे शादी के जोड़े की बात है तो समझो काम हो गया. डॉन पेद्रो की स्वर्गवासी माँ बड़ी खुश होंगी अगर तुम उस दिन उनका शादी का जोड़ा पहनो. हमारे यहाँ ऐसा रिवाज भी है.”

“मगर एक और भी बात है जिसके कारण मैं कुछ दिन और रुकना चाहती हूँ. औरतों की कुछ निजी समस्याएँ होती हैं. ओह! यह सब बताते हुए मुझे कितनी शर्म आ रही है. मेरा चेहरा बदरंग हो गया होगा, डॉन फुलगर. लेकिन क्या करूँ, माह का यह मेरा “वह” समय है. ओह!! शर्म से मैं गड़ी जा रही हूँ.”

“उससे इसका क्या संबंध है? महीने का तुम्हारा “वह” समय हो या “वह” समय न हो, शादी इस बात पर निर्भर नहीं होती. वह इस बात पर निर्भर होती है कि आप एक दूसरे से प्यार करते हैं या नहीं. अगर करते हैं तो फिर कोई भी दूसरी बात मानी नहीं रखती.”

“आप समझ नहीं रहे हैं, मैं क्या कह रही हूँ.”

“मैं सब समझ रहा हूँ. शादी परसों ही होगी.”

इसके बाद वह हाथ फैलाए एक हफ्ते की मोहलत माँगती रह गई और डॉन फुलगर उसे अनसुना करके चल दिया.

डॉन पेद्रो को तुरंत खबर देनी होगी. हे भगवान! यह पेद्रो का बच्चा बड़ा चौकन्ना आदमी है. उसे एक बात बताना न भूल जाऊँ. याद रखने के लिए कहना है कि जज से सारी मिल्कियत का कब्ज़ा संयुक्त नामों पर दर्ज करवा लेना है. अब मत भूलना फुलगर! सबसे पहले, कल सुबह यह बात उसे समझा देना है.

इस बीच डोलोरस चौके की तरफ भागी और पानी उबालने के लिए रख दिया. कुछ भी करके “उसे” जल्दी लाना है. आज की रात ही. मगर कितना भी जल्दी आए तीन दिन तो रहेगा ही. इसका तो कोई इलाज नहीं है. क्या करूँ, क्या करूँ? पर हाय, मैं कितनी खुश हूँ! भगवान तेरा लाख-लाख शुक्रिया, तूने मुझे डॉन पेद्रो दे दिया. आखिर में उसने जोड़ा, “भले ही बाद में मुझसे उसका मन भर जाए.”

 

 

२२.
(लेखक)

 

“मैं उससे पूछ आया; वह बिल्कुल तैयार है. विवाह-सूचना संबंधी कामों के लिए पादरी साठ पेसो मांग रहा था. मैंने उसे बता दिया है कि तुम्हें समय पर पैसे मिल जाएँगे. यह भी कह रहा था कि ऑल्टर ठीक कराना पड़ेगा और यह भी कि उसके डाइनिंग रूम का टेबल एकदम बेकार हो गया है. मैंने उसे वादा कर दिया कि हम उसे एक नया टेबल भेज देंगे. वह कह रहा था कि आप मास में नहीं आते. मैंने उससे वादा किया कि आगे से आया करेंगे. और जब से आपकी दादी माँ का देहांत हुआ है कोई दान-दक्षिणा नहीं पहुँची है. मैंने कह दिया, चिंता मत करो, हो जाएगा. अब जैसा हम कहेंगे, पादरी वैसा ही करेगा.”

“डोलोरस से तुमने कुछ एडवांस नहीं मांगा?”

“नहीं मांगा मालिक. मेरी हिम्मत ही नहीं हुई. सच्ची. वह इतनी खुश लग रही थी कि मैं उसके उत्साह पर पानी नहीं फेरना चाहता था.”

“तुम एकदम बच्चे ही रहे.”

बच्चा कहता है मुझे? मुझे, जिसने पचास वसंत देखे हैं? और वह कह रहा है जो अभी बस पैदा ही हुआ है. और मुझे देखो, कब्र में पैर लटकाए बैठा हूँ. “मैं उसकी खुशी में पलीता नहीं लगाना चाहता था.”

“कुछ भी हो, अभी तुम दाढ़ी मूछ वाले बालक ही हो.”

“जो चाहे कह लो, मालिक.”

“मैं चाहता हूँ कि अगले सप्ताह तुम एल्ड्रीट से मिल लो. उससे बोलो कि अपनी बाड़ ठीक कर ले. वह मेडिया लूना की ज़मीन में आ गई है.”

“सीमा रेखा नापने का काम तो उसने ठीक किया है. मैं इसकी गारंटी देता हूँ.”

“कोई बात नहीं. तुम उससे कहो कि तुमसे ग़लती हो गई है. कहो कि तुमने ठीक नपती नहीं की. ज़रूरत पड़े तो उसकी बाड़ तोड़ दो.”

“और कानून?”

“कौन सा कानून, फुलगर? अब हम ही कानून हैं. तुम्हारे पास कुछ बदमाश, गुंडे टाइप के लोग नहीं हैं? यहीं मेडिया लूना में?”

“हैं, एक दो लोग हैं तो.”

“उन्हें तुरंत एल्ड्रीट वाला काम निबटाने के लिए भेजो. तुम एक अभियोग-पत्र तैयार करो जिसमें शिकायत करो कि उसने हमारी ज़मीन पर कब्जा कर लिया है…या जो तुम्हारे मन में आए, लिख दो. और उसे याद दिलाओ कि लुकास पारामो  मर चुका है और अब उसे मुझसे निपटना पड़ेगा.”

स्थिर नीले आकाश में थोड़े से बादल थे. उससे आगे ऊपर हवा बह रही थी लेकिन नीचे यहाँ हवा अचल और गर्म थी.

 

२३.
(लेखक)

 

इस बार फिर उसने अपनी छड़ी की मूठ से दरवाज़ा खटखटाया- और कुछ नहीं, सिर्फ अपनी उपस्थिति ज़ाहिर करने के लिए, क्योंकि तब तक उसे मालूम हो चुका था कि दरवाज़ा तभी खुलेगा जब पेद्रो पारामो की इच्छा होगी. दरवाज़ों पर काले धनुषों को देखा तो इस बार उसके मन में विचार आया: इनमें लगीं रिबन बहुत सुंदर लग रही हैं.

उसी समय दरवाज़ा खुला और उसने अंदर प्रवेश किया.

“आओ, फुलगर. तुमने टोरीबीओ एल्ड्रीट का मामला सुलझा लिया?”

“वह काम हो गया, मालिक.”

“लेकिन अभी फ्रेगोसो का मामला रह गया है. खैर, अभी कुछ समय पड़े रहने दो….इस समय तो मैं अपने हनीमून में उलझा हुआ हूँ.”

 

२४.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

“यह कस्बा प्रतिध्वनियों से भरा हुआ है. मानो प्रतिध्वनियाँ इन दीवारों के बीच और फर्श के नीचे फँसकर कैद हो गई हैं. जब आप चलते हैं तो महसूस होता है जैसे कोई आपके पीछे है, आपके कदमों पर कदम रखता चला आ रहा है. आप सरसराहटें सुनते हैं. और लोगों को हँसते सुनते हैं. हँसी, जो ऐसा लगता है, नहीं है, खत्म हो गई है. और आवाज़ें, जो सालोंसाल घिस-घिसकर मिट गई हैं. ऐसा सुनाई देता है….लेकिन मेरा खयाल है, एक दिन आएगा जब वे आवाज़ें पूरी तरह गायब हो जाएँगी.”

यह मुझे डामियाना सिस्नेरो बता रही थी जब हम कस्बे में पैदल घूम रहे थे.

“एक समय था जब हर रात मैं उत्सव और समारोहों के स्वर सुना करती थी. मेडिया लूना में शोर होता था, जो मुझे स्पष्ट सुनाई देता था. मैं कस्बे में प्रवेश करती थी और यह जानने की कोशिश करती थी कि यह शोरगुल किसका मचा हुआ है और जो मैं देखती थी वह यह होता था: यही, जो हम अभी देख रहे हैं. कुछ नहीं. कोई नहीं. जैसी अभी हैं उसी तरह सड़कें और गलियाँ एकदम ख़ाली.

“फिर अचानक मुझे कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया. तुम्हें पता है, आप उत्सव मनाते-मनाते भी थक जाते हैं, घिस जाते हैं, मिट जाते हैं. इसीलिए जब वह सब खत्म हुआ, मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ.”

“हाँ,” डामियाना सिस्नेरो ने फिर कहा. “यह कस्बा प्रतिध्वनियों से भरा हुआ है. लेकिन मुझे अब डर नहीं लगता. मैं कुत्तों को रोते हुए सुनती हूँ और कोई परवाह नहीं करती. मैं देखती हूँ कि दिन में आँधी चल रही है और पेड़ों के पत्तों का बवंडर उठा है. जबकि कोई भी देख सकता है कि यहाँ पेड़ तो हैं ही नहीं. कभी होंगे. वरना पत्ते कहाँ से आते?

“और सबसे बुरी बात तब होती है जब आप लोगों को बोलता हुआ सुनते हैं और उनकी फुसफुसाहटें दरारों में से आती प्रतीत होती हैं लेकिन फिर भी इतनी साफ कि आप पहचान सकते हैं कि यह किसकी आवाज़ है. वास्तव में अभी, जब मैं इधर आ रही थी, मुझे लगा, किसी मृत व्यक्ति का जागरण चल रहा है. मैं भी प्रार्थना में हाथ जोड़कर खड़ी हो गई और प्रार्थना करने लगी. समूह में से एक औरत निकलकर मेरी तरफ आई और कहा, “डामियाना! मेरे लिए प्रार्थना करो, डामियाना!”

“उसके चेहरे से हटकर उसका रेबोज़ो नीचे गिर गया था और मैंने देखा, वह मेरी बहन सिक्स्टीना थी.

“तुम यहाँ क्या कर रही हो?” मैंने उससे पूछा.

“वह कुछ नहीं बोली और दौड़कर वापस गई और औरतों के समूह में जाकर छुप गई.

“पता नहीं, तुम जानते हो या नहीं, सिक्स्टीना मेरी बहन थी और जब मैं सिर्फ बारह साल की थी, मर गई थी. वह सबसे बड़ी बहन थी. हम लोग सोलह बहनें थीं और तुम कल्पना कर सकते हो कि उसे मरे कितना अर्सा गुज़र चुका होगा. और अब देखो, अब भी बेचारी इसी दुनिया में भटक रही है. तो…अगर नई नई प्रतिध्वनियाँ तुम्हें सुनाई दें तो घबराना मत, जुआन प्रेसीयाडो.”

“क्या मेरी माँ ने तुम्हें बताया था कि मैं आ रहा हूँ?” मैंने पूछा.

“नहीं. और हाँ…वैसे तुम्हारी माँ का क्या हालचाल है?”

“वह मर चुकी है,” मैंने उत्तर दिया.

“मर गई? कैसे?”

“कह नहीं सकता कि कैसे. शायद शोक से, संताप से. वह गहरी-गहरी साँसें बहुत लिया करती थी.”

“बुरा हुआ. हर साँस जीवन की बूंद है जिसे तुरंत सोख लिया जाता है. बहरहाल, वह मर गई….”

“हाँ. मुझे लगा था, शायद तुम जानती होगी.”

“मैं कैसे जानूंगी? सालों हो गए उसका नाम तक नहीं सुना.”

“फिर तुम मेरे बारे में कैसे जानती हो?”

डामियाना ने कोई जवाब नहीं दिया.

“क्या तुम ज़िंदा हो, डामियाना? बताओ, डामियाना!”

अचानक मैं ख़ाली सड़क पर अकेला रह गया. छप्परहीन घरों की खिड़कियों से ऊँचे-ऊँचे जंगली पेड़ों की मजबूत शाखाएँ बाहर निकल रही थीं. और जर्जर खपरैलों की दरारों में से जीर्ण-शीर्ण घर नज़र आते थे.

“डामियाना!” मैंने पुकारा. “डामियाना सिस्नेरो!”

प्रतिध्वनि हुई: “…याना….नेरो!…याना…नेरो!”

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

२५.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

मैंने कुत्तों को भौंकते हुए सुना, जैसे मैंने उन्हें छेड़ दिया हो. एक आदमी को मैंने सड़क पार करते हुए देखा.

“ए भाई!” मैंने पुकारा.

“ए भाई!” वापस आई मेरी अपनी आवाज़.

और जैसे अगले मोड़ पर हों, इस तरह दो औरतों की बातचीत सुनाई दी:

“देखो, हमारी तरफ कौन आ रहा है. फिलोतियो अरेचिगा है क्या?”

“बिल्कुल. वही है. ऐसे दिखाओ कि तुमने उसे नहीं देखा.”

“इससे अच्छा, हम यहाँ से निकल लें. और अगर वह हमारे पीछे आता है तो इसका मतलब है, वह हममें से किसी एक से कुछ चाहता है. तुम क्या सोचती हो, हममें से वह किसके पीछे आ रहा होगा?”

“तुम्हारे पीछे ही आ रहा होगा.”

“लेकिन मुझे लगता है, तुम्हारे पीछे.”

“अरे! हमें अब कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है. वह पिछले मोड़ पर रुक गया है.”

“इसका मतलब है कि वह हममें से किसी के पीछे नहीं आ रहा था. है ना?”

“लेकिन आ रहा हो तो? तो फिर क्या?”

“ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है.”

“अच्छा हुआ वह नहीं आया. सब कहते हैं, वह डॉन पेद्रो को लड़कियाँ सप्लाई करता है. यानी हम बाल-बाल बच गए.”

“सच्ची?…उस बूढ़े से मैं कोई मतलब नहीं रखना चाहती.”

“हमें चलना चाहिए.”

“हाँ, चलो चलें. घर चलते हैं.”

 

२६.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

रात. आधी रात के काफी बाद. और फुसफुसाहटें:

“मैं कह रहा हूँ कि इस साल अगर मक्के की फसल अच्छी हो गई तो ही मैं तुम्हें कुछ दे पाऊँगा. लेकिन अगर फसल खराब हुई तो तुम्हें इंतज़ार ही करना पड़ेगा.”

“मैं तुम पर कोई ज़ोर नहीं डाल रहा हूँ. तुम जानते हो, मैंने हमेशा तुम्हारे साथ सब्र दिखाया है. लेकिन वह ज़मीन ही तुम्हारी नहीं है. तुम उन खेतों में काम करते रहे हो जो तुम्हारे नहीं हैं. इसलिए, मुझे देने के लिए तुम पैसे कहाँ से लाओगे?”

“कौन कहता है कि ज़मीन मेरी नहीं है?”

“मैंने सुना है कि तुमने उसे पेद्रो पारामो को बेच दिया है.”

“मैं आज तक कभी उसके पास नहीं गया. ज़मीन अब भी मेरी है.”

“यह तुम कहते हो. लेकिन बाकी सब यही कहते हैं कि ज़मीन उसकी है.”

“ज़रा मेरे सामने कहक़र देखें.

“देखो गेलिलियो, ये आपस की बात है, तुम्हारे और मेरे बीच. और मुझे तुम अच्छे भी लगते हो. आखिर तुम मेरी बहन के पति हो. इसके अलावा मैंने किसी से नहीं सुना कि तुम मेरी बहन के साथ खराब बर्ताव करते हो. लेकिन यह न कहो कि तुमने अपनी ज़मीन नहीं बेची है.”

“ज़रूर कहूँगा. मैंने अपनी ज़मीन किसी को भी नहीं बेची.”

“खैर, मैं जानता हूँ कि वह ज़मीन अब पेद्रो पारामो की है. वह यही चाहता है. डॉन फुलगर तुमसे मिलने नहीं आया था?”

“नहीं…”

“फिर मानकर चलो कि कल आएगा. कल नहीं आया तो जल्द ही किसी दिन आएगा.”

“आया तो हम दोनों में से एक की जान जाएगी. लेकिन इस मामले में वह अपनी नहीं चला सकता.”

“भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति प्रदान करें, आमीन, मेरे भाई. पता नहीं, कुछ भी हो सकता है.”

“तुम देखना, मैं यहीं रहूँगा. मेरी फिक्र मत करो. मैंने भी माँ का दूध पिया है. मेरी हड्डियाँ खूब मज़बूत हैं.”

“ठीक है फिर. कल मिलते हैं. फेलिसिटास से कहना, मैं रात को खाना खाने नहीं आऊँगा. मैं नहीं चाहता कि बाद में मुझे यह कहना पड़े कि “उसकी मौत से एक दिन पहले, रात को मैं उसके साथ था.”

“हम तुम्हारे लिए कुछ न कुछ बचाकर रखेंगे. आखिरी समय में तुम्हारा मन बदल जाए तो आ जाना.”

स्पर्स* की खनक के बीच दूर होती पदचापें.

(*घुड़सवार की एड़ियों में पहने जाने वाले धातु के किंचित नुकीले खीले, जिनसे घोड़ों को आगे बढ़ने या मुड़ने का इशारा किया जाता है)

 

 

२७.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

“कल सबेरे तड़के तुम मेरे साथ चल रही हो, चोना. मैंने और भी लड़कियों को चलने के लिए तैयार कर रखा है.”

“और अगर मेरे पिताजी को मिर्गी का दौरा पड़ गया तो या वो मर गया तो? वह इतना बूढ़ा है कि…ऐसा हुआ तो मैं कभी अपने आपको माफ़ नहीं कर पाऊँगी. उसकी देखभाल के लिए मैं उसके पास अकेली रहती हूँ. और कोई नहीं है. तुम क्यों मुझे उससे दूर करना चाहते हो, वह भी इतनी हड़बड़ी में? कुछ दिन और रुक जाओ. अब उसके मरने में ज़्यादा वक़्त नहीं है.”

“पिछले साल भी तुमने यही कहा था. तुमने मज़ाक भी उड़ाया था मेरा कि मैं इतना उतावला क्यों हो रहा हूँ, जबकि तुमने यह भी कहा था कि तुम इस सबसे आजिज़ आ चुकी हो. तांगा तैयार है और सारी तैयारी पूरी तरह फिटफाट है. तुम मेरे साथ आ रही हो या नहीं.”

“मुझे सोचने दो.”

“चोना! तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ. मैं अब और नहीं रुक सकता, चोना. ऐसे या वैसे, तुम्हें मेरे साथ आना ही है.”

“मुझे सोचने के लिए और थोड़ा समय चाहिए. समझने की कोशिश करो. हमें उसके मरने का इंतज़ार करना पड़ेगा. और अब इसमें ज़्यादा देर नहीं है. उसके बाद मैं तुम्हारे साथ आ जाऊँगी, तुम्हारे साथ मुझे भागकर नहीं जाना होगा.”

“यह भी तुमने पिछले साल कहा था.”

“तो क्या?”

“चोना, मुझे घोड़े किराए पर लेने पड़े हैं. वे तैयार हैं. वे सिर्फ तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं. उसे उसके हाल पर छोड़ दो. तुम बहुत सुंदर हो, जवान हो. कोई बूढ़ी औरत आकर उसकी देखभाल कर लेगी. अभी भी दुनिया में दयालु आत्माओं की कमी नहीं है, बल्कि ज़रुरत से ज्यादा हैं.”

“मैं नहीं आ सकती.”

“बिलकुल आ सकती हो.”

“नहीं आ सकती….मुझे भी बुरा लगता है. लेकिन वे मेरे पिताजी हैं.”

“तो फिर अब कहने को कुछ नहीं बचा. मैं जाकर जूलियाना को देखता हूँ. वह मेरे पीछे पागल है.”

“ठीक है. मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी.”

“तो कल तुम मुझसे नहीं मिलोगी?”

“नहीं. अब मैं तुमसे कभी नहीं मिलना चाहती.”

ध्वनियाँ. फुसफुसाहटें. सरसराहटें. दूर कहीं गाने के स्वर:

मेरे माशूक ने दिया मुझको

रेशमी रूमाल कि मैं पोंछ लूँ आँसू….

ऊँचे स्वर. जैसे कोई औरत गा रही हो.

 

 

२८.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

मैंने अगल-बगल से चरमराती निकलती बैलगाड़ियों को देखा. धीमी गति से बढ़ते बैल. गाड़ी के चकों के नीचे चरमराते पत्थर. आदमी, जो लगता था, ऊंघ रहे हैं.

…हर सुबह तड़के कस्बा बैलगाड़ियों की आवाजाही से कांप उठता है. वे हर कहीं से आते हैं, नाइटर, मक्के के भुट्टे और जानवरों का चारा लादे. चक्के चरमराते हैं और तीखी आवाज़ में दर्द से कराहते हैं, ऐसे कि खिड़कियाँ झनझनाने लगतीं हैं और भीतर सोए लोग हड़बड़ाकर जाग उठते हैं. यही वक़्त होता है जब तंदूर की भट्ठियाँ खुलतीं हैं और आप नई भुनी ब्रेड की महक़ सूंघ सकते हैं. अचानक गड़गड़ाहट होगी. फिर पानी बरसेगा. शायद वसंत का आगमन हो रहा है. तुम यहाँ की “अचानकताओं” के बहुत जल्द आदी हो जाओगे, मेरे बच्चे.

ख़ाली बैलगाड़ियाँ, गलियों की खामोशी को मथती हुईं. धीरे-धीरे रात की अंधेरी सड़क में विलीन होती हुईं. और परछाइयाँ. और परछाइयों की प्रतिध्वनियाँ.

मैं वहाँ से भाग जाना चाहता था. दूर पहाड़ी पर मुझे उस रास्ते का अंदाज़ा हो रहा था जहाँ से होता हुआ मैं यहाँ तक पहुँचा था. पहाड़ों की कालिमा के बीच रिसते नासूर की तरह बहती हुई पगडंडी.

फिर किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा.

“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

“मैं यहाँ…,” मैं नाम लेने ही वाला था मगर फिर रुक गया. “मैं अपने पिता की खोज में यहाँ आया हूँ.”

“तुम भीतर क्यों नहीं आ जाते?”

मैं अंदर चला गया. छत का आधा हिस्सा धसक गया था. टाइलें ज़मीन पर बिखरी पड़ी थीं. छत ज़मीन पर औंधी हुई पड़ी थी. और बचे हुए आधे हिस्से में एक आदमी और एक औरत थे.

“क्या आप मरे हुए हैं?” मैंने उनसे पूछा.

औरत मुस्कुराई. आदमी की दृष्टि में गंभीरता थी.

“यह पिया हुआ है,” आदमी ने कहा.

“वह सिर्फ डरा हुआ है,” औरत ने कहा.

वहाँ मिट्टी तेल का एक स्टोव था. बेंत की एक खटिया, एक टूटी-फूटी कुर्सी, जिस पर औरत के कपड़े पड़े थे. क्योंकि वह बिल्कुल नंगी थी, उसी हालत में जिसमें ईश्वर ने उसे धरती पर भेजा था. और आदमी भी.

“हमने किसी को कराहते और हमारे दरवाज़े पर सिर पटकते सुना. दरवाज़ा खोला तो देखा, तुम थे. क्या हुआ तुम्हें?”

“इतनी सारी चीजें मेरे साथ हुई हैं कि अब मैं सिर्फ सोना चाहता हूँ.”

“हम लोग भी यही कर रहे थे.”

“चलो, फिर सब के सब सोते हैं.”

 

रोड्रिगो पिएर्तो द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘पेद्रो पारामो ’ से एक दृश्य

२९.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

सबेरे के प्रकाश के साथ मेरी स्मृतियाँ धुंधली पड़ने लगीं.

बीच-बीच में शब्दों के स्वर सुनाई पड़ते थे और मुझे अब स्पष्ट अंतर समझ में आ रहा था. क्योंकि तब तक मुझे साफ लगता था कि जिन शब्दों को मैं सुन रहा हूँ वे खामोश हैं. उनमें आवाज़ नहीं होती थी, मैंने उन्हें महसूस किया होता था. लेकिन खामोशी के साथ, जैसे आप सपनों में शब्दों को सुनते हैं.

“ये कौन हो सकता है?” औरत पूछ रही थी.

“क्या मालूम?” आदमी ने जवाब दिया.

“किस काम से आया होगा?”

“क्या मालूम?”

“मुझे लगता है, मैंने उसे अपने पिता के बारे में कुछ कहते सुना था.”

“यह कहते तो मैंने भी सुना था.”

“तुमको नहीं लगता कि ये गुम गया है? याद है, एक बार कुछ लोग भटकते हुए आए थे और कहने लगे, हम लोग गुम गए हैं? वे लोग लास कंफाइंस नामक जगह के बारे में पूछ रहे थे और तुमने कहा था कि तुम इस जगह के बारे में नहीं जानते कि कहाँ है.”

“हाँ, मुझे याद है. लेकिन अब मुझे सोने दो. अभी सबेरा नहीं हुआ है.”

“लेकिन बहुत जल्दी होने वाला है. मैं तुमसे बात कर रही हूँ क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तुम अब उठ जाओ. तुमने मुझसे तड़के जगाने के लिए कहा था. इसीलिए मैं कह रही हूँ, अब उठ जाओ.”

“तुम क्यों चाहती हो कि मैं उठ जाऊँ?”

“मैं नहीं जानती कि क्यों. तुमने कल कहा था कि मुझे उठा देना. तुमने यह नहीं बताया कि क्यों.”

“अगर सिर्फ यही कारण है तो अब मुझे सोने दो. तुमने नहीं सुना कि उस आदमी ने आते ही क्या कहा था? कि मैं सिर्फ सोना चाहता हूँ. उसने सिर्फ इतना कहा था.”

ऐसा लगता था, जैसे आवाज़ें दूर होती जा रही हैं. मंद होती. जैसे अवरुद्ध हो रही हों. अब कोई कुछ नहीं कह रहा था. वह सपना था.

लेकिन कुछ देर बाद यह फिर शुरू हो गया:

“वह हिला है. शर्त लगा लो, वह उठने वाला है. और अगर उसने हमें देख लिया तो तरह-तरह के प्रश्न पूछेगा.”

“किस तरह के प्रश्न पूछेगा?”

“देखो. उसे कुछ न कुछ तो कहना ही होगा. नई क्या?”

“उसकी तरफ ध्यान मत दो. वह बहुत थका लगता है.”

“वाकई तुम ऐसा सोचते हो?”

“अब बस!…तिरिया चरित्तर….”

“देखो, वह कुनमुना रहा है. देखो कैसे उलट-पुलट हो रहा है? जैसे उसके भीतर कोई चीज़ उसे झटका दे रही हो. मैं जानती हूँ क्योंकि ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है.”

“क्या हो चुका है?”

“यही.”

“मुझे नहीं पता, तुम किसके बारे में कह रही हो.”

“मैं उसका ज़िक्र नहीं कर सकती लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी कि उसे इस तरह नींद में झटके खाते देखकर मुझे याद आ रहा है कि जब तुमने मेरे साथ वह किया था तब मेरे साथ क्या हुआ था. कितनी तकलीफ हुई थी मुझे और वह करते हुए कितना बुरा लगा था.”

“वह” से तुम्हारा क्या मतलब है?”

“तुमने जब अपना काम पूरा कर लिया, ठीक उसके तुरंत बाद. और तुम्हें अच्छा लगे, न लगे, मैं जानती हूँ कि वह ठीक नहीं हुआ था.”

“तुम फिर से वही सब शुरू करना चाहती हो? तुम सो क्यों नहीं जाती. और मुझे भी सोने देती?”

“तुमने मुझे याद दिलाने के लिए कहा था. वही मैं कर रही हूँ. हे भगवान, मैं वही कर रही हूँ जो तुमने मुझसे करने के लिए कहा था. चलो, समय हो गया. अब तुम्हें उठना ही चाहिए.”

“मुझे अकेला छोड़ दो, यार….”

लगता था, आदमी को नींद आ गई है. औरत बड़बड़ाती रही, उसे बुरा-भला कहती रही. लेकिन बहुत धीमी आवाज़ में:

“सूरज निकल आया होगा क्योंकि मुझे उजाला नज़र आ रहा है. उस आदमी को मैं यहाँ से देख पा रही हूँ और अगर देख पा रही हूँ तो सिर्फ इसलिए कि देखने के लिए पर्याप्त उजाला मौजूद है. जल्दी ही सूरज ऊपर आ जाएगा. तुम्हें यह बताने की ज़रूरत नहीं है मुझे. क्या पता उसने कोई ग़लत काम किया हो. और हमने उसे अंदर आने दिया. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महज एक रात के लिए लेकिन हमने उसे छिपाया तो है. और देर-सबेर यह हमारे लिए मुसीबत बन सकता है…. देखो कितना बेचैन है वह, जैसे उसे बिल्कुल आराम न मिल पा रहा हो. मैं शर्त लगा सकती हूँ कि उसकी आत्मा पर कोई न कोई भारी बोझ है.”

उजाला बढ़ता जा रहा था. दिन छायाओं पर झाड़ू फेर रहा था, उन्हें मिटाए दे रहा था. कमरा, जहाँ मैं सोया हुआ था, सोते हुए शरीरों की गर्मी से गुनगुना हो गया था. पलकों की कोरों से मैंने सुबह के प्रकाश का अंदाज़ा लगाया. फिर मुझे प्रकाश का अनुभव हुआ. मैंने सुना:

“वह इस तरह छटपटा रहा है जैसे कोई सज़ायाफ्ता मुजरिम हो. उसकी शख्सियत में बुरा आदमी होने की हर निशानी मौजूद है. उठो, डोनिस! उसकी तरफ देखो. देखो, वह ज़मीन पर कैसे कुलबुला रहा है, ऐंठ रहा है, उलट-पुलट हो रहा है. देखो, उसके मुँह से लार बह रही है. ज़रूर वह बहुत से लोगों की हत्या करके भागा है. और तुम उसकी ओर नज़र भर देख भी नहीं रहे हो.”

“कुतिया कहीं की. सो जाओ अब…और हमें भी सोने दो!”

“कैसे सोऊँ अगर मुझे नींद नहीं आ रही है तो?”

“फिर उठ जाओ और कहीं और चली जाओ जहाँ से मुझे तंग न कर सको!”

“चली जाऊँगी. जाती हूँ, आग जलाती हूँ. और जाते हुए उस आदमी से,…क्या तो नाम है उसका…कहूँगी कि वह तुम्हारी बगल में लेट जाए. यहाँ, मेरी जगह.”

“हाँ, हाँ, कह दो उसे.”

“नहीं, मैं यह कहते हुए डर जाऊँगी.”

“फिर अपने काम में लग जाओ और हमें अकेला छोड़ दो.”

“मैं यही करने वाली हूँ.”

“फिर किस बात का इंतज़ार कर रही हो?”

“बस, जा ही रही हूँ.”

मैंने उस औरत को बिस्तर से नीचे उतरते हुए सुना. उसके नंगे पैर फर्श पर धप्प, धप्प बज रहे थे और वह मेरे सिर पर पैर रखते हुए निकल गई. मैंने आँखें खोलीं और बंद कीं.

जब मैंने पुनः आँखें खोलीं तब सूरज आकाश में काफी ऊपर आ चुका था. मेरी बगल में एक कॉफी का जग भरा रखा था. मैंने उसे पीने की कोशिश की. कुछ घूँट भरे.

“हमारे यहाँ सिर्फ यही है. मुझे दुख है कि यह इतना कम है. हमारे पास राशन की इतनी कमी हो गई है…”

वह एक जनाना स्वर था.

“सिर्फ मेरे लिए इतनी परेशानी मत उठाओ,” मैंने उससे कहा. “मेरे लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. मैं इस सबका आदी हूँ. मैं यहाँ से बाहर कैसे निकल सकता हूँ?”

“तुम कहाँ जा रहे हो?”

“कहीं भी.”

“यहाँ दर्जनों रास्ते हैं. एक कोंटला जाता है, और एक दूसरा उधर से आता है. एक सीधे पहाड़ों की तरफ चला जाता है. और जो यहाँ, उस छेद से दिख रहा है, पता नहीं कहाँ जाता है.” और उसने गिरी हुई छत पर एक छिद्र की ओर इशारा किया. “उधर एक और, वह मेडिया लूना से भी आगे निकल जाता है. अभी एक और उधर, इस पूरे इलाके से होकर गुजरता हुआ; वह सबसे लंबा है.”

“तो फिर इसी रास्ते से मैं आया होऊँगा.”

“तुम किधर जा रहे हो?”

“सयूला की तरफ.”

“हे भगवान. मैं सोच रही थी सयूला उधर है. मैं हमेशा से वहाँ जाना चाहती थी. लोग कहते हैं, वहाँ बहुत से लोग रहते हैं.”

“जैसा दूसरी जगहों के लिए कहते हैं.”

“सोचो. और हम यहाँ अकेले पड़े हैं. जीवन के बारे में थोड़ा-बहुत जानने को तरसते हुए.”

“तुम्हारा पति किधर चला गया?”

“वह मेरा पति नहीं है. वह मेरा भाई है, हालांकि वह नहीं चाहता कि कोई जाने. वह कहाँ गया? मेरे खयाल से एक आवारा बछड़े की खोज में, जो यहीं कहीं भटक रहा होगा. कम से कम, मुझसे कहकर तो यही गया है.”

“तुम दोनों यहाँ कब से रह रहे हो?”

“हमेशा से. हम यहीं पैदा हुए हैं.”

“तब तो तुम डोलोरस प्रेसीयाडो को ज़रूर जानती होगी.”

“शायद वह जानता हो. डोनिस. मैं लोगों के बारे में बहुत कम जानती हूँ. मैं बाहर ही नहीं निकलती. मैं यहीं, इसी जगह पर, ऐसा लगता है, हमेशा, हमेशा से हूँ. रुको, शायद इतने समय से नहीं. लेकिन तब से ज़रूर हूँ जब से उसने मुझे अपनी औरत बनाया है. उसके बाद से मैं यहाँ बंद हूँ क्योंकि मैं डरती हूँ कि कोई मुझे देख न ले. वह विश्वास नहीं करता लेकिन देखो, क्या यह सच नहीं है कि मैं किसी के भी दिल में दहशत पैदा कर सकती हूँ?” वह सूरज की रोशनी में आकर खड़ी हो गई. “मेरे चेहरे को गौर से देखो.”

वह एक बिलकुल सामान्य चेहरा था.

“तुम मुझे क्या दिखाना चाहती हो?”

“मेरे पाप तुम्हें नहीं दिख रहे हैं? क्या तुम उन बैंगनी धब्बों को नहीं देख पा रहे हो? जैसे मवाद वाली फुंसियाँ? मेरा सारा शरीर उनसे ढँका हुआ है. और इतना सिर्फ बाहर है; भीतर तो मैं कीचड़ का समुद्र हूँ.”

“लेकिन तुम्हें देखेगा कौन, जब यहाँ कोई रहता ही नहीं है? मैंने सारा कस्बा छान मारा लेकिन एक व्यक्ति मुझे नहीं दिखा.”

“तुम्हें लगता है कि तुमने नहीं देखा लेकिन अब भी कुछ लोग यहाँ हैं. तुमने फिलोमेनो को नहीं देखा? या डोरोटिया को या मिल्कियादेस या प्रूडेंसिओ को? और क्या सोस्टीन्स और क्या वे सब अब भी ज़िंदा नहीं हैं? होता क्या है कि वे घर के आसपास ही रहे आते हैं. नहीं जानती कि दिन में वे लोग क्या करते हैं लेकिन मैं जानती हूँ कि रात में वे सभी घर के अंदर तालों में बंद रहते हैं. रात में यहाँ पर भूतों का डेरा होता है. सड़कों पर आप प्रेतात्माओं को चलता-फिरता देख सकते हैं. जैसे ही अंधेरा हुआ, वे बाहर निकलना शुरू कर देते हैं. कोई भी उन्हें देखना पसंद नहीं करता. और वे इतने अधिक हैं और हम लोग इतने कम कि उनकी यातना-मुक्ति के लिए प्रार्थना भी आजकल हम नहीं करते. कोशिश ही नहीं करते. दरअसल हमारे पास पर्याप्त प्रार्थनाएँ ही नहीं बची हैं. अगर करेंगे भी तो हर एक के नसीब में ईश्वर के कुछ शब्द ही आ पाते हैं. अब इतने से उनका कोई भला नहीं हो सकता. और फिर हमारे खुद के पाप अलग हैं. आज हममें से कोई भी ईश्वर की कृपा की छाँह में नहीं रह रहा है. हम आँख तक नहीं मिला सकते क्योंकि आँखें शर्म से लबालब भरी हुई हैं. और शर्म इस काम में कोई मदद नहीं करती. कम से कम बिशप ने यही बताया था. वह आया था कुछ समय पहले, “कंफर्मेशन” देता घूम रहा था. मैं भी गई थी उसके पास और मैंने उसके सामने सब कुछ कंफेस किया:

“मैं तुम्हें माफ़ी नहीं दे सकता,” उसने कहा.

“मैं बुरी तरह शर्मिंदा हूँ.”

“यह माफ़ी की वजह नहीं हो सकती.”

“हमारी शादी करवा दो!”

“अलग रहो!”

“मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि ज़िंदगी ने ही हमें एक साथ जोड़ दिया है, जैसे जानवरों के रेवड़ में एक साथ लाकर पटक दिया है, एक दूसरे पर लाद दिया है. हम यहाँ इतने अकेले थे; हम दो ही रह गए थे. और कस्बे को फिर से किसी तरह आबाद होना था. मैंने उससे कहा कि अगली बार जब वह आएगा तो शायद उसके “कंफर्मेशन” के लिए कोई न कोई तो होगा.”

“अपने-अपने, अलग-अलग रास्तों का अनुसरण करो. इसके सिवा कोई चारा नहीं है.”

“लेकिन हम ज़िंदा कैसे रहेंगे?”

“जैसे हर कोई रहता है.”

“और वह अपना निष्ठुर चेहरा लिए खच्चर पर सवार हुआ और बिना एक बार भी पीछे देखे अपनी राह चल दिया, जैसे वह अखंड पाप का चेहरा पीछे छोड़े जा रहा हो. वह दोबारा वापस नहीं आया. और इसीलिए इस इलाके में प्रेतात्माओं के झुंड के झुंड कब्ज़ा जमाए हुए हैं: बेचैन भीड़ की भीड़ आत्माएँ जो बिना क्षमा प्राप्त किए मर गईं और ऐसे लोग जिन्हें वैसे भी क्षमा प्राप्त नहीं हो सकती थी-क्षमाप्राप्ति के लिए हम पर निर्भर लोगों को तो बिल्कुल भी नहीं….वह आ रहा है. तुमने सुना?”

“हाँ, सुना.”

“वही है.”

दरवाज़ा खुला.

“बछड़ा मिला?” औरत ने पूछा.

“लगता है कि वह ज़िद पकड़े बैठा है कि नहीं आएगा. लेकिन मैं भी उसके पीछे पड़ गया हूँ और जल्द ही पता कर लूँगा कि वह कहाँ है. आज रात को उसे पकड़ने जाऊँगा और ले ही आऊँगा.”

“तुम रात में मुझे अकेला छोड़कर जाओगे?”

“शायद मुझे जाना ही पड़े.”

“लेकिन मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी. रात को मैं तुम्हें यहाँ, अपने करीब चाहती हूँ. वही वक़्त होता है जब मैं स्वच्छन्द महसूस करती हूँ. रात के उस समय.”

“लेकिन आज रात मुझे बछड़े को पकड़ने जाना होगा.”

“अभी-अभी मुझे पता चला है कि,” मैंने बीच में टोका. “कि आप दोनों भाई-बहन हैं.”

“तुम्हें अभी पता चला, एँ…? मैं इस बात को तुमसे अधिक समय से जानता हूँ. इसलिए इस मामले में अपनी नाक मत घुसाओ. अपने बारे में हम कोई बात नहीं सुनना चाहते.”

“सिर्फ यह दर्शाने के लिए मैंने इस बात का ज़िक्र किया कि मैं समझ सकता हूँ. बस इतनी सी बात है.”

“क्या समझ सकते हो?”

औरत उसके पास गई और उसके कंधों पर टिककर खड़ी हो गई. उसने दोहराया:

“तुम क्या समझ रहे हो?”

“कुछ नहीं,” मैंने कहा. “मैं हर मिनट कम से कमतर समझ रहा हूँ. मैंने यह भी जोड़ा: “मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि जहाँ से आया था वहीं वापस चला जाऊँ. मुझे दिन के बचे हुए प्रकाश का इस्तेमाल कर लेना चाहिए.”

“थोड़ा इंतज़ार कर लो, ठीक रहेगा,” उसने मुझसे कहा. “कल सबेरे तक रुक जाओ. जल्द ही अंधेरा हो जाएगा और सारे रास्तों पर घास बहुत बढ़ गई है. तुम उसमें गुम हो जाओगे. कल मैं तुम्हें सही दिशा बताकर रवाना कर दूँगा.”

“ठीक है.”

 

३०.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

छत के छिद्र में से मैंने थ्रश पक्षियों को देखा, पक्षी जो शाम को झुंड बनाकर निकल आते हैं और तब तक दिखाई देते हैं जब तक कि अंधेरा उनका रास्ता नहीं रोक देता. उसके बाद कुछ बादल जिन्हें तेज़ हवा ने छितरा दिया था. तेज़ हवा जो अब दिन को अपने साथ ले जाने वाली थी.

बाद में शाम को एक तारा निकला; फिर और कुछ देर बाद, चाँद.

आदमी और वह औरत आसपास कहीं नहीं थे. वे आंगन से होते हुए कहीं बाहर निकल गए थे और जब वे आए तब तक अंधेरा हो चुका था. इसलिए उनके पास यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि जब वे बाहर गए थे, तब वहाँ क्या हुआ था.

और यह था जो हुआ था:

सड़क से एक औरत कमरे में आई थी. वह बहुत प्राचीन थी और इतनी दुबली कि लगता था उसकी त्वचा सिकुड़कर हड्डियों से चिपक गई है. उसने अपनी विशाल गोल आँखों से कमरे में इधर-उधर देखा. हो सकता है, उसने मुझे भी देखा हो. शायद उसने सोचा कि मैं सो रहा हूँ. वह सीधे खाट तक आई और नीचे से चमड़े का एक ट्रंक बाहर निकाला. उसने उसकी अच्छी तलाशी ली. फिर कागज़ के कुछ पन्नों को बगल में दबाकर पंजों पर चलते हुए, जैसे मुझे जगाना न चाहती हो, बाहर निकल गई.

मैं साँस रोककर जड़ लेटा रहा और कोशिश करता रहा कि उसे छोड़कर और कहीं भी देखता रहूँ. आखिर मैंने अपना सिर हल्का सा घुमाने का साहस जुटाया और उसकी दिशा में, उस स्थान पर जहाँ शाम का तारा और चाँद एक बिंदु पर आकर मिल गए थे, नज़र डाली.

“यह पी लो,” पीछे से मैंने सुना.

पूरी तरह सिर घुमाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

“पी जाओ! इससे तुम्हें राहत मिलेगी. यह नारंगी के फूलों की चाय है. मैं जानती हूँ कि तुम बहुत डरे हुए हो क्योंकि काँप रहे हो. यह तुम्हारे डर को कम करेगा.”

मैंने उसके हाथों को पहचाना और जब मैंने अपनी आँखें उठाईं तो उसके चेहरे को भी पहचान गया. उस आदमी ने, जो उसके पीछे दूर खड़ा था, पूछा:

“क्या तुम बीमार महसूस कर रहे हो?”

“मैं नहीं जानता. मैं उन जगहों पर चीज़ों और लोगों को देखता हूँ जहाँ आप कुछ नहीं देख सकते. अभी-अभी एक औरत यहाँ आई थी. तुम लोगों ने उसे जाते देखा होगा.”

“चली आओ,” उसने अपनी पत्नी से कहा. “उसे अकेला छोड़ दो. वह सूफियों की तरह बात करता है.”

“हमें उसे अपने बिस्तर पर सोने देना चाहिए. देखो कैसे काँप रहा है. उसे ज़रूर बुखार होगा.”

“उसकी तरफ बिलकुल ध्यान मत दो. उस जैसे लोग दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तरह तरह की तिकड़में करके ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं. मैं मेडिया लूना में एक व्यक्ति को जानता हूँ जो अपने आपको बड़ा दिव्य महात्मा बताता था. मालिक ने महज अपनी छठी इंद्री से उसकी चोरी का पता कर लिया लेकिन ये महाशय अपने “दैवी” चमत्कार से सामने खड़ी मौत का अनुमान भी नहीं लगा सके. ये आदमी भी बिलकुल वैसा ही है. ये लोग “ईश्वर का प्रसाद” पाने के लिए एक कस्बे से दूसरे कस्बे में विचरते रहते हैं….लेकिन यहाँ उसे एक कौर खिलाने वाला भी नहीं मिलने वाला….देख रही हो, कैसे उसका कंपकंपाना थम गया है? हमारी सब बातें सुन रहा है वह.”

 

रोड्रिगो पिएर्तो द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘पेद्रो पारामो’ से एक दृश्य

३१.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

जैसे समय पीछे की ओर चल पड़ा हो. एक बार फिर मैंने तारे को चाँद के एकदम पास बैठे देखा.

छितरे हुए बादल. पक्षियों के झुंड. और अचानक, दोपहर का चमकता प्रकाश.

दीवारें दोपहर के सूरज को परावर्तित कर रही थीं. मेरी पदचापें रास्ते के फर्श पर सुनाई दे रही थीं. गाड़ी वाला कह रहा था, “डोना ईडुवाइजेस की तलाश करना, अगर वह अभी ज़िंदा हो तो!”

फिर एक अंधियारा कमरा. एक औरत मेरी बगल में लेटी खर्राटे भरती हुई. मैंने नोटिस किया कि उसकी साँसें असमान हैं, जैसे वह कोई सपना देख रही हो या जैसे जगी हो और नींद की आवाज़ों की नकल उतार रही हो. खाट दरअसल बेंत का एक आसन था जो टाट से ढँका हुआ था और उसमें से पेशाब की गंध आ रही थी. लगता था एक बार भी उन्हें धूप नहीं दिखाई गई है. तकिया वास्तव में घोड़े की पुरानी जीन का गद्देदार हिस्सा था जिसे एक लकड़ी के चौकोर कुंदे पर लपेट दिया गया था और जो सूखे हुए पसीने से इतना सख्त हो गया था कि पत्थर की किसी चट्टान की तरह लगता था.

मैंने अपने घुटने पर एक नंगी औरत के पैरों को लिपटा हुआ महसूस किया और उसकी साँसों को अपने चेहरे पर. मैं ईंट की तरह सख्त तकिये का सहारा लेकर बिस्तर पर बैठ गया.

“तुम सोए नहीं?” उसने पूछा.

“मुझे नींद नहीं आ रही है. सारा दिन मैं सोता रहा हूँ. तुम्हारा भाई कहाँ है?”

“वह कहीं चला गया है. तुमने तो सुना था कि उसे कहाँ जाना था. हो सकता है आज सारी रात वह न आए.”

“तो वह चला गया? तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध?”

“हाँ. और हो सकता है, वह अब कभी न आए. सब ऐसा ही करते हैं. “मुझे आज वहाँ जाना है; मुझे उस रास्ते से जाना है.” तब तक, जब तक वे इतनी दूर नहीं चले जाते कि वहाँ से लौटकर न आना उनके लिए आसान हो जाता है. वह बार-बार कोशिश कर रहा था मुझे छोड़कर जाने की और मुझे लगता है कि उसका समय आ गया है. हालांकि ऐसा उसने कहा नहीं लेकिन शायद उसने मुझे इसलिए यहीं छोड़ दिया है कि आगे से तुम मेरा खयाल रखो. उसने ठीक मौका भाँपा. उस आवारा बछड़े का तो सिर्फ बहाना था. देखना, वह लौटकर आने वाला नहीं है.”

में कहना चाहता था, “मुझे चक्कर आ रहे हैं. मैं थोड़ी देर हवा लेने बाहर जा रहा हूँ.” उसकी जगह मैंने कहा:

“चिंता मत करो. वह वापस आ जाएगा.”

जब मैं बिस्तर से बाहर आया तो उसने कहा:

“मैंने किचन में चूल्हे पर तुम्हारे लिए कुछ रखा है. ज़्यादा नहीं है, फिर भी कम से कम इतना तो है कि वह तुम्हें भूख से मरने नहीं देगा.”

मुझे वहाँ बीफ का छोटा सा सूखा टुकड़ा मिला और कुछ गर्म टॉर्टिला.

“मेरे पास इतना ही था,” दूसरे कमरे से आती उसकी बात मैंने सुनी….”मैंने माँ की मौत के समय की दो चादरें अपनी बहन से ले ली थीं. मैं उन्हें बिस्तर के नीचे रखती थी. ज़रूर वही आई होगी उन्हें लेने. मैं डोनिस के सामने तुम्हें नहीं बताना चाहती थी लेकिन जिस औरत को तुमने देखा था, वह वही थी…वही जिसने तुम्हें बुरी तरह डरा दिया था.”

काला आकाश, सितारों से भरा हुआ. और चाँद की बगल में सबसे बड़ा सितारा.

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

३२.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

“तुम मुझे सुन पा रही हो या नहीं?” मैंने दबी आवाज़ में पूछा.

और उसकी आवाज़ ने जवाब दिया: “तुम कहाँ हो?”

“मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे गाँव में. तुम्हारे लोगों के साथ. क्या तुम मुझे देख नहीं पा रही?”

“नहीं, बेटे. मैं तुम्हें देख नहीं पा रही हूँ.”

ऐसा लगता था कि उसकी आवाज़ हर तरफ छा गई है. सुदूर विस्तार में वह विलुप्त होती गई.

“मैं तुम्हें देख नहीं पा रही हूँ.”

 

३३.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

मैं फिर उस कमरे में गया जहाँ वह औरत सो रही थी और मैंने उससे कहा:

“मैं यहाँ, अपने इस कोने में पड़ा रहूँगा. वैसे भी बिस्तर फर्श जैसा ही सख्त है. अगर कुछ होता है तो मुझे बताना.”

“डोनिस वापस नहीं आएगा,” वह बोली. “मैंने उसकी आँखों में पढ़ लिया था. वह किसी के आने का इंतजार ही कर रहा था जिससे वह रफूचक्कर हो सके. अब तुम्हीं को मेरी देखभाल करनी पड़ेगी. करोगे ना? क्या तुम मेरी देखभाल नहीं करना चाहते? आओ, मेरी बगल में लेट जाओ.”

“मैं वहीं ठीक हूँ जहाँ हूँ.”

“अच्छा होगा अगर तुम यहाँ बिस्तर पर आ जाओ. किलनियाँ और दूसरे कीड़े-मकोड़े तुम्हें वहाँ ज़िंदा चाट जाएँगे.”

मैं उठा. रेंगता हुआ बिस्तर तक आया और उसके साथ लेट गया.

 

 

३४.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

गर्मी और पसीने के कारण आधी रात से कुछ पहले मेरी नींद खुल गई. औरत का शरीर मिट्टी का था जिस पर कीचड़ की कई परतें सूखकर जम गई थीं. वह तड़क रही थी, चूर-चूर हो रही थी, पिघलकर गीली मिट्टी के डबरे में तब्दील हो रही थी. मुझे लगा मैं उसके शरीर से बहते पसीने में तैर रहा हूँ और मुझे साँस लेने के लिए पर्याप्त हवा नहीं मिल रही है. मैं बिस्तर से बाहर आया. वह सो रही थी. उसके मुँह से बुलबुलों की शक्ल में कोई आवाज़ निकल रही थी, जैसे मृत्यु की बुदबुदाहट हो.

मैं हवा के लिए बाहर आया लेकिन जहाँ भी मैं जाता गर्मी मेरा पीछा करती, मैं उससे पीछा नहीं छुड़ा पा रहा था.

वहाँ हवा थी ही नहीं; सिर्फ अगस्त की भीषण गर्मी में धधकती, मृत, निश्चल रात.

एक साँस भी नहीं. जिस हवा को मैं छोड़ता, हथेलियों की ओट में लेकर उसी हवा को मुझे वापस खींचना पड़ता था. साँस लेते और बाहर छोड़ते हुए वही मृत हवा मुझे हर बार महसूस होती थी, क्रमशः कम से कमतर होती हुई…और आखिर-आखिर में वह इतनी पतली होती गई कि मेरी उँगलियों के बीच से निकल जाती थी; फिर निकल ही गई, हमेशा, हमेशा के लिए.

मेरा मतलब…, हमेशा के लिए.

मुझे अपने सिर पर चक्कर काटते फेनिल बादलों की याद है, जो बाद में उसी फेन द्वारा धुलकर गुलाबी बादलों में तब्दील होते चले गए. मेरा देखा हुआ वह अंतिम दृश्य था.

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

३५.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

“तुम कह रहे हो कि तुम डूब गए थे, जुआन प्रेसीयाडो? और चाहते हो कि मैं विश्वास कर लूँ? मुझे तुम टाउन प्लाजा में मिले, डोनिस के घर से बहुत दूर और वह भी साथ था और मुझसे कह रहा था कि तुम मरे का बहाना कर रहे हो. तब तक तुम काठ की तरह सख्त हो चुके थे और तुम्हारा शरीर इस तरह तन गया था जैसे तुम किसी चीज़ से भयभीत होकर मरे हो. हम दोनों मिलकर तुम्हें यहाँ इस मेहराब की छाया में लेकर लाए. अगर उस रात, जिसका जिक्र तुम कर रहे हो, साँस लेने के लिए हवा नहीं होती तो तुम्हें यहाँ तक लाने की ताकत हममें नहीं बचती. दफनाने की बात तो छोड़ ही दीजिए. और जैसा कि तुम देख रहे हो, हम तुम्हें दफना रहे हैं.”

“तुम सही कह रही हो, डोरोटीओ. तुमने अपना नाम डोरोटीओ बताया ना?”

“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. असल में मेरा नाम डोरोटिया है. लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.”

“यह सही है, डोरोटिया. फुसफुसाहटों ने मुझे मार डाला.”

वहाँ तुम्हें मिलेगी वह जगह जिससे मैं दुनिया में सबसे अधिक प्यार करती हूँ. वह जगह जहाँ सपने देख-देखकर मैं दुबली-पतली, छरहरी लड़की के रूप में विकसित हुई. मैदान से ऊपर की ओर उठता मेरा गाँव. पेड़ों और पत्तों की छाँह में, गुल्लक की तरह स्मृतियों से भरा हुआ. तुम समझ जाओगे कि क्यों कोई व्यक्ति वहाँ ताज़िंदगी रहना चाहेगा. भोर, सुबह, दोपहर, रात: सभी एक जैसे, सिर्फ हवा में अंतर. हवा वहाँ चीजों के रंग बदलती है. और जीवन वहाँ चक्राकार घूमता है, इतनी खामोशी के साथ, जैसे कानों में फुसफुसा रहा हो…जीवन की निर्मल फुसफुसाहटें…

“हाँ डोरोटिया. फुसफुसाहटों ने मुझे मार डाला. मैं अपने डर पर काबू पाने की पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन डर बढ़ता ही चला गया, तब तक जब तक वह बेकाबू नहीं हो गया. और जब मेरा सामना फुसफुसाहटों से हुआ तो बाँध टूट गया.

“हाँ, मैं प्लाजा गया था. तुम्हारा कहना सही है. लोगों की आवाज़ों की ओर मैं खिंचा चला गया. उस समय तक मैं अपने होशोहवास में नहीं था. मुझे याद है, मैं दीवारों को टटोल-टटोलकर, उन्हें हाथों से छूकर महसूस करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ा, मानों मैं हाथों से चल रहा होऊँ. और लगता था, ध्वनियाँ दीवारों से रिस रही हैं, जैसे वे आवाज़ें दीवारों की दरारों से, जीर्ण होते कंक्रीट से छनकर आ रही हों. मैंने उन्हें अपने कानों से सुना. मनुष्य स्वर: अस्पष्ट लेकिन रहस्यमय आवाज़ें, जो, लगता था, मेरे कानों में गूंजती हुई कुछ फुसफुसा रही हैं. मैं दीवारों से अलग होकर बीच सड़क से होता हुआ आगे बढ़ने लगा. लेकिन तब भी आवाज़ें आती ही रहीं; लगता था, वे मेरी रफ्तार से मेरा पीछा कर रही हैं-कुछ आगे या ज़रा सा मेरे पीछे. जैसा कि मैंने तुम्हें बताया, तब तक गर्मी का असर जाता रहा था. बिल्कुल उलटा. अब मुझे ठंड लग रही थी. जब से मैंने उस औरत का घर छोड़ा-मैंने बताया था, वही जिसने मुझे अपने बिस्तर पर सोने दिया था और जिसे अपने ही पसीने में घुलता हुआ मैंने देखा था-तो उसके बाद से मुझे सर्दी लगनी शुरू हो गई थी. और जितना मैं उस घर से दूर जाता, उतनी ही ठंड बढ़ती जाती थी, यहाँ तक कि ठंड के मारे मेरे रोंगटे खड़े हो गए. मैं वापस जाना चाहता था. मैंने सोचा, अगर वापस जाऊँगा तो पीछे छूटी गर्मी वापस पा जाऊँगा; लेकिन थोड़ा पीछे चलने पर मुझे पता चला कि ठंड वास्तव में मेरे शरीर से निकल रही थी, खुद मेरे रक्त से. तब मुझे समझ में आया कि मैं डर गया हूँ. मैं प्लाजा से आ रहा शोर सुन रहा था और मैंने सोचा वहाँ मुझे बहुत से लोग मिलेंगे जो इस डर पर काबू पाने में मेरी मदद करेंगे. और इस तरह तुमने मुझे यहाँ प्लाजा में देखा होगा. तो डोनिस आखिर वापस आ ही गया था? वह औरत सोच रही थी कि निश्चित ही वह डोनिस को अब कभी नहीं देख पाएगी.”

“जब तुम हमें मिले तब तक सबेरा हो चुका था. यह कहाँ से आया मुझे नहीं पता. मैंने नहीं पूछा उससे.”

“खैर कुछ भी हो, मैं प्लाज़ा पहुंचा. आर्केड के एक पिलर से लगकर मैं खड़ा हो गया. मैंने देखा कि वहाँ कोई नहीं था, हालांकि अब भी मुझे फुसफुसाहटें सुनाई दे रही थीं, जैसे बाज़ार के दिन भीड़ का सम्मिलित स्वर. एक शब्दहीन अनवरत ध्वनि, जैसे रात में पेड़ों की डालियों के बीच बहती हवा की ध्वनि, जब आप पेड़ों और डालियों को नहीं देख पाते लेकिन फुसफुसाहटें सुनते हैं. ऐसी. मेरे लिए आगे एक कदम बढ़ाना भी मुश्किल हो गया. मुझे लगने लगा कि फुसफुसाहटें चारों ओर से मेरे नजदीक आ रही हैं, मुझे घेरती हुई, जैसे मधुमक्खियों की लगातार भनभनाहट. लेकिन अंततः मैं लगभग ध्वनि-रहित शब्द सुन सका, “हमारे लिए प्रार्थना करो.” मैं ठीक-ठीक सुन सकता था कि वे यही कह रहे थे. उसी पल मेरी आत्मा बर्फ में तब्दील हो गई. इसलिए तुमने मुझे मृत पाया होगा.”

“तुम घर पर ही रहते तो तुम्हारे लिए अच्छा होता. तुम यहाँ क्यों आए?”

“यह मैंने तुम्हें शुरू में ही बताया था. मैं पेद्रो पारामो को ढूँढ़ने यहाँ आया था. लोग कहते हैं कि वह मेरा बाप है. आशा मुझे यहाँ ले आई.”

“आशा? इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है. मेरी भ्रांतियों ने मुझे ज़रूरत से ज्यादा जीने के लिए प्रोत्साहित किया. और अपने बेटे को ढूँढ़ने की यह कीमत मैंने चुकाई. और बेटा, जैसा कि कहते हैं, अपने आप में एक और भ्रम ही था. क्योंकि मेरा कोई बेटा था ही नहीं. अब, क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मेरे पास सोचने-समझने के लिए पर्याप्त समय हो गया है. ईश्वर ने मुझे मेरे बच्चे की ओट के लिए तिनके का एक घोसला तक नहीं दिया. सिर्फ एक अंतहीन जीवन दिया जिसमें अपने आप को खींचते चले जाओ; तिरछी नज़र से इधर-उधर ताकती खिन्न आँखें दीं, हर वक़्त लोगों के आर-पार देखती हुई, इस वहम में कि इसने या उसने मेरे बेटे को छिपा रखा होगा. और यह सब महज एक खराब सपने का नतीजा था. मेरे दो सपने थे: उनमें से एक को मैं कहती हूँ “अच्छा सपना”, और दूसरे को “बुरा सपना”. पहला वह था जिसने मुझे यह सपना देखने के लिए मजबूर किया कि मेरा एक बेटा है. जब तक मैं जीवित रही, मैं यही विश्वास करती रही कि यह सच है. मैं उसे अपनी बाँहों में महसूस करती थी, मेरा प्यारा बेटा, उसका छोटा सा मुँह और प्यारी-प्यारी सी आँखें और हाथ. बहुत, बहुत समय तक मैं उसकीपलकों को, और उसके दिल की धड़कन को अपनी उँगलियों की पोरों पर महसूस करती थी. फिर क्यों नहीं मैं सोचूँ कि वह सच था? जहाँ भी मैं जाती, उसे अपने रेबोज़ो में लपेटकर अपने साथ ले जाती थी. फिर एक दिन वह गुम गया. स्वर्ग में मुझे उन्होंने बताया कि उनसे ग़लती हो गई थी. कि उन्होंने मुझे एक माँ का दिल और वेश्या की कोख दे दी थी. वह एक दूसरा सपना था जो मैंने देखा था. मैं स्वर्ग जाती हूँ और चुपचाप झाँककर देखती हूँ कि मैं फरिश्तों के बीच अपने बेटे का चेहरा पहचान पाती हूँ या नहीं. लेकिन कुछ नहीं. वहाँ सब चेहरे एक जैसे थे, एक ही साँचे में ढले. फिर मैंने पूछा. संतों में से एक संत मेरे पास आया और बिना एक शब्द कहे मेरे पेट में अपना हाथ घुसेड़ दिया, जैसे मोम के गोले में घुसेड़ता. जब उसने अपना हाथ बाहर निकालकर मुझे दिखाया तो उसमें किसी बीज के छिलके जैसा कुछ था. “जो मैं तुम्हें दिखा रहा हूँ, इससे सिद्ध होता है.”

“तुम जानते हो कि वहाँ, ऊपर वे कितनी अजीबोगरीब बातें करते हैं, लेकिन जो वे कह रहे होते हैं, आप सब कुछ समझ सकते हैं. मैं कहना ही चाहती थी कि मेरे पास खाने को कुछ नहीं है और यह मेरा मरदूद पेट, जो भूख के मारे सूख गया है. ठीक उसी वक़्त उन संतों में से एक संत ने मेरा कंधा पकड़ा और खींचकर दरवाज़े की तरफ धकेल दिया. “जाओ, कुछ समय और धरती पर आराम करो, मेरी बच्ची. और अच्छा बनने की कोशिश करो जिससे इस नरक की यातना में रहने की तुम्हारी सज़ा कम की जा सके.”

“वह मेरा “खराब सपना” था. लेकिन उसी से मुझे पता चला कि मेरा कभी कोई बेटा नहीं था. यह मैंने बहुत देर बाद जाना. तब, जब मेरा शरीर पूरी तरह सूखकर काँटा हो चुका और रीढ़ की हड्डी बाहर निकलकर सिर से ऊपर आ गई और मेरे लिए चलना-फिरना दूभर हो गया. और ऊपर से, गाँव के सारे लोग गाँव छोड़-छोड़कर जाने लगे; सारे लोग कहीं न कहीं चल दिए और अपने साथ खैरात का सब सामान भी ले गए. मैं यहाँ मौत का इंतज़ार करती बैठी थी. जब तुम मुझे मिले तो मेरी हड्डियों ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब आराम करना है. “मेरी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाएगा,” मैंने सोचा. “किसी के लिए अब मैं परेशानी का कारण नहीं रहूंगी.” तुम देख रहे हो, मैंने धरती का एक टुकड़ा भी नहीं चुराया है. उन्होंने मुझे तुम्हारे साथ दफन कर दिया और मैं तुम्हारी बाँहों की खोल में एकदम फिट आ गई हूँ. यहाँ, इस छोटी सी जगह में जहाँ मैं इस समय हूँ. सिर्फ एक चीज़ की कमी रह गई, तुम्हें अपनी बाँहों में जकड़कर दफन होना था….कुछ सुन रहे हो? वहाँ, ऊपर बारिश हो रही है. ढोल की तरह गूंजती बारिश तुम्हें सुनाई नहीं दे रही है?”

“मुझे अपने ऊपर चलते किसी व्यक्ति की पदचाप सुनाई दे रही है.”

“तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है. अब तुम्हें कोई नहीं डरा सकता. मन में अच्छे विचार आने दो क्योंकि अभी हमें लंबे समय तक यहाँ, ज़मीन के नीचे रहना है.”

 

 

३६.
लेखक

 

सुबह-सुबह धरती पर तेज़ बारिश हो रही थी. जुते हुए खेत की नरम भुरभुरी, मिट्टी में वह धप्प-धप्प बरस रही थी. एक मॉकिंगबर्ड नीचे उड़ती हुई आई और चीखने लगी, एक बच्चे के विलाप की नक़ल उतारती हुई. कुछ दूर आगे जाकर वह गाने लगी, कुछ ऐसा जो थकान से उपजी सिसकियों जैसा लग रहा था. और उससे आगे, बहुत दूर, जहाँ से क्षितिज दिखाई देता था, उसने खँखारकर गला साफ किया और हँसी. और उसके बाद फिर वही: चीखें.

फुलगर सेडानो ने धरती से उठ रही ताज़ा सुगंध को नथुनों में महसूस किया. वह बाहर निकल आया और हल से बनी रेखाओं में जज़्ब होते पानी को देखने लगा. उसकी बारीक मिचमिची आँखें खुश थीं. मिट्टी से बड़ी मीठी सुगंध उठ रही थी और वह तीन लंबी-लंबी साँसें खींचकर दाँत निकालकर हँसा.

“अह्हा!” उसके मुँह से निकला. “एक और बढ़िया साल.” और उसने जोड़ा: “बरसो, और ज़ोर से बरसो. इतना बरसो कि उसके बाद बरसने के लिए तुम्हारे पास कुछ न बचे! और फिर उसके बाद आगे बढ़ो. याद रखो कि हमने खेत जोते हैं तो सिर्फ तुम्हें खुश करने के लिए.”

और उसके बाद एक और अट्टहास.

खेतों का सर्वे करने के बाद मॉकिंगबर्ड फिर नीचे आई, बिलकुल उसके करीब और पुनः एक बार संतप्त मर्मभेदी स्वर में चीखी.

बारिश और तेज़ हो गई और देर तक बरसती रही. आखिर, जहाँ दूर बादलों में बिजली कड़क रही थी, वहीं से बादलों के झुंड आए और लगा जैसे जाता हुआ अंधेरा पुनः वापस आ रहा है.

पानी में भीगे मेडिया लूना के विशाल द्वार चिंचियाते हुए खुले. पहले दो बाहर आए, फिर और दो, फिर दो और बाहर निकले. घोड़ों पर. और फिर दो सौ घुड़सवार पानी में लथपथ खेतों में हर तरफ फैल गए.

“हमें एन्मेडिओ के झुंड को उधर ले जाना है जहाँ पहले इस्तगुआ था और इस्तगुआ के जानवरों को ऊपर विलमेयो पहाड़ी पर,” फुलगर सेडानो ने घुड़सवारों को आदेश दिया. “…और भागो, बारिश आज कुछ ज़्यादा ही बेकाबू हो रही है.!”

वह इतनी बार यह बात कह चुका था कि सब उसके आदी हो चुके थे और सबसे आखिर में निकलने वाले ने सिर्फ इतना सुना, “यहाँ से वहाँ और वहाँ से और आगे, ऊपर.”

यह दर्शाने के लिए कि वे उसकी बात समझ गए हैं, सबने अपनी हैट के कोने पर हल्के से छुआ.

जैसे ही आखिरी आदमी निकला, इधर मिग्येल पारामो घोड़े को तिरछा सरपट दौड़ाता आया और बिना घोड़े को रोके, लगाम छोड़कर फुलगर सेडानो पर लगभग छलांग लगा दी. घोड़े को खुद अपने अस्तबल की राह लेनी पड़ी.

“तुम कहाँ थे, मियाँ? इस समय?”

“दूध दुह रहा था.”

“दूध दुह रहे थे? किसका?”

“सोचो? तुम तो जानते हो.”

“डोरोटिया के पास होगे. वही कॉकरोच. यहाँ वही है जो बच्चे पसंद करती है.”

“तुम बेवकूफ हो फुलगर. लेकिन तुम्हारा भी क्या दोष!”

और एड़ियों पर लगे स्परों को बिना उतारे मिग्येल खाने के लिए कुछ लेने भीतर चला गया.

किचन में डामियाना सिस्नेरो ने उससे वही प्रश्न पूछा:

“तुम कहाँ थे, मिग्येल?”

“कहीं नहीं… यहीं आसपास था. इलाके की माँओं के पास.”

“मैं तुम्हें नाराज़ नहीं करना चाहती, मिग्येल….अंडे किस तरह खाओगे? उबाल दूँ, आमलेट बना दूँ, या…?”

“साथ में कोई बढ़िया सी साइड डिश भी.”

“मैं सीरियसली कह रही हूँ, मिग्येल.”

“मुझे पता है, डामियाना. परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. सुनो…तुम डोरोटिया नाम की किसी औरत को जानती हो? जिसे सब कॉकरोच कहते हैं?”

“हाँ, जानती हूँ. और अगर तुम उससे मिलना चाहते हो तो वह यहीं पीछे मिलेगी. सबेरे वह जल्दी उठ जाती है और नाश्ता करने यहीं आती है. उसके पास एक पोटली होगी जिसे वह अपने रेबोज़ो में लपेटे रहती है और गाती रहती है. वह उसे अपना बच्चा कहती है. शायद बहुत पहले किसी समय उसके साथ कुछ न कुछ बहुत बुरा हुआ है. लेकिन, क्योंकि वह कुछ बोलती नहीं है, किसी को कुछ पता नहीं कि क्या. इसी तरह वह लोगों के टुकड़ों पर पल रही है, बेचारी.”

“वह साला फुलगर! उसे ऐसा मारूँगा कि दिन में तारे नज़र आएँगे. हरामखोर.”

वह वहीं बैठ गया और सोचता रहा कि यह औरत उसके किस काम आ सकती है. फिर बिना किसी हिचकिचाहट के सीधे किचन के पिछले दरवाज़े पर खड़े होकर डोरोटिया को पुकारा:

“एक मिनट इधर आना. मुझे तुमसे कुछ कहना है,” उसने कहा.

कोई नहीं जानता कि औरत के साथ उसकी क्या बातचीत हुई लेकिन यह ज़रूर हुआ कि जब वह अंदर आया तो अपनी हथेलियाँ मल रहा था.

“लाओ, वो अंडे दो!” वह डामियाना पर चिल्लाया. और जोड़ा: “आगे से तुम उस औरत को भी वही खाना देना जो मुझे देती हो. समझी? और इससे तुम्हारा काम बढ़ता है तो बढ़े. उससे मुझे कोई मतलब नहीं है.”

इस बीच फुलगर सेडानो भंडारघर में जाकर देख रहा था कि धानियों में कितना अनाज बचा है. अभी फसल आने में काफी समय था और उसे सिकुड़ते राशन की चिंता थी. खेतों में बीज अभी अंकुरित ही हुए थे. “देखना ज़रूरी है कि काम चल जाएगा या नहीं.” फिर कुछ सोचते हुए बुदबुदाया: “ये शैतान! बिलकुल बाप पर गया है. ठीक है, लेकिन लगता है इसे बहुत जल्दी पड़ी है. बहुत तेज़ भाग रहा है यह. इस रफ्तार से तो मुझे नहीं लगता, ज़्यादा दिन टिक पाएगा….कल ‘उसे’ एक बात बताना भूल गया था. कि किसी ने बताया कि उसने किसी को जान से मार दिया है. अगर यही सब करता रहा तो….”

उसने गहरी साँस ली और मन ही मन अंदाज़ लगाने लगा कि हरवाहे अभी कहाँ पहुँचे होंगे. लेकिन उसका ध्यान बार-बार मिग्येल के भूरे घोड़े की तरफ चला जाता था जो लगातार अपने नथुने बाड़ पर रगड़ रहा था, जीन पर अब भी जाली लगी हुई थी. “कमबख्त अपने घोड़े की जीन तक नहीं खोलता,” मन ही मन उसने सोचा. “खोलना ही नही चाहता. कम से कम डॉन पेद्रो कुछ विश्वसनीय है. और वह कभी-कभी शांत भी रहता है. लेकिन मिग्येल को उसने छुट्टा छोड़ दिया है. कल जब मैंने उससे कहा कि उसके बेटे ने क्या किया है तो बोलता है, “जो उसने किया है, समझो मैंने किया है, फुलगर. वह बच्चा यह काम कर ही नहीं सकता; उसमें अभी इतनी हिम्मत नहीं है कि किसी की जान ले ले. उसके लिए इतना बड़ा जिगर चाहिए.” और उसने हाथ फैलाकर बताया जैसे कद्दू का नाप ले रहा हो. “जो भी वह करता है, मुझ पर मढ़ दो और छुट्टी पाओ.”

“मिग्येल तुम्हें बहुत तकलीफ देने वाला है, डॉन पेद्रो. लड़ाई-झगड़ा करना उसे बहुत पसंद है.”

“करने दो यार. वह अभी बच्चा है. कितने साल का है? सत्रह का? क्यों फुलगर, सत्रह ही चल रहा है ना?”

“हाँ, लगभग इतना ही. मुझे याद है जब वे लोग उसे लेकर यहाँ आए थे. अभी कल की बात लगती है. लेकिन वह बेहद उजड्ड है और इतना तेज़ चल रहा है कि लगता है जैसे समय के साथ रेस कर रहा हो. इस खेल में उसे हारना ही है. देखना.”

“वह अभी बच्चा है, फुलगर.”

“तुम कुछ भी कहो, डॉन पेद्रो, लेकिन वह औरत-जो कल रोते-कलपते आई थी और तुम्हारे बेटे पर उसके पति के कत्ल का इल्ज़ाम लगा रही थी- शांत होने का नाम नहीं ले रही थी. दुख को मैं अच्छी तरह पहचान लेता हूँ. डॉन पेद्रो और वह औरत विषाद का भारी बोझ लिए हुए थी. मामले को रफा-दफा करने के लिए मैं उसे डेढ़ सौ मन मक्का देने को तैयार हो गया था लेकिन वह लेने को तैयार नहीं हुई. फिर मैंने उससे वादा किया कि कुछ भी करके मामला निपटा ले. फिर भी वह संतुष्ट नहीं हुई.”

“आखिर मामला क्या था?”

“कौन-कौन शामिल था, मुझे नहीं मालूम.”

“फिकर की कोई बात नहीं, फुलगर. हमारे लिए ये लोग गिनती में भी नहीं आते.”

फुलगर अनाज के कोठे तक गया, हाथ डालकर मकई के दानों की गर्मी महसूस की. हाथ में मुट्ठी भर मकई निकालकर देखी कि उसमें कीड़े तो नहीं लगे. कोठे में अनाज की ऊँचाई का अंदाज़ लिया. “हो जाएगा,” उसने कहा. “थोड़ी बारिश के बाद जैसे ही घास उगने लगेगी, हमें लोगों को अनाज खिलाने की जरूरत भी नहीं होगी. यानी हमारे पास ज़रूरत से ज़्यादा अनाज है.”

कोठे से बाहर निकलकर उसने आसमान की तरफ देखा. बादल छाए थे. “अभी काफी दिन तक बारिश होगी.” और फिर वह सब कुछ भूल गया.

 

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

३७.
(जुआन प्रेसीयाडो)

 

“ऊपर ज़रूर मौसम बदल रहा होगा. मेरी माँ मुझे बताया करती थी कि जैसे ही बारिश शुरू होती है, सब कुछ प्रकाश से और अंकुरित होने वाली हरी चीजों की सुगंध से भर जाता है. उसने बताया था कि बादलों के झुंड के झुंड बहते हुए इधर आते हैं और ज़मीन पर बरसकर ख़ाली हो जाते हैं. धरती पूरी तरह रूपांतरित हो जाती है, उसका हर रंग बदल जाता है. मेरी माँ बचपन में यहीं रहती थी, उसके सबसे अच्छे साल यहीं बीते थे लेकिन मरने के लिए वह यहाँ नहीं आ सकी. और इसीलिए अपनी जगह उसने मुझे यहाँ भेजा. डोरोटिया, कितनी अजीब बात है कि न जाने क्यों, आज तक मैंने आकाश नहीं देखा. कम से कम वह आकाश तो देख लेता जिसे उसने देखा था.”

“मैं नहीं जानती, जुआन प्रेसीयाडो. अब इतने सालों में कभी सिर ऊपर नहीं उठाया तो मैं आसमान को भूल चुकी हूँ. और अगर उठाया भी होता तो भी क्या था? आसमान इतना ऊपर है और मेरी आँखें इतनी धूमिल कि मैं सिर्फ पैर के नीचे ज़मीन कहाँ है, जानती हूँ और इसी में खुश हूँ. इसके अलावा जब मुझे पादरी रेंटेरिया ने बताया कि खुशी क्या होती है, मैं नहीं जानूँगी- यहाँ तक कि दूर से देख भी नहीं पाऊँगी- तभी से मुझे किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं रह गया है…यह मेरे पापों का फल है, लेकिन यह बताने की उसे कोई ज़रूरत नहीं थी. जैसा भी है, जीवन पहले ही काफी कठिन है. सिर्फ इसी आशा में जीते चले जाना है कि जब आप मरेंगे तो इस घातक चंगुल से मुक्त हो जाएँगे. लेकिन वे आपके लिए एक दरवाज़ा बंद रखते हैं और जिसे खुला रखते हैं, वह दूसरा दरवाज़ा सीधे नरक को जाता है. सबसे अच्छा जन्म न लेना है…मेरे लिए, जुआन प्रेसियाडो, स्वर्ग ठीक यहीं, इसी जगह पर है.”

“और तुम्हारी आत्मा? तुम्हें क्या लगता है कि वह कहाँ गई?”

“वह शायद दूसरी कई आत्माओं कि तरह भटक रही है, ज़िंदा लोगों को ढूँढ़ती कि वे उसकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करें. हो सकता है वह मुझसे घृणा करती हो क्योंकि मैंने उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया लेकिन अब मैं उसकी चिंता नहीं करती. और अब पश्चाताप संबंधी उसकी शिकायत सुनने की भी मुझे ज़रूरत नहीं है. उसी के कारण जो थोड़ा बहुत मैं खाती थी, पित्त बनकर मुँह में कड़वाहट पैदा करता था. उसी ने मेरे मन में शापित लोगों के काले विचार भर दिए थे जिससे मेरी रातें भुतहा हो गई थीं. जब मैं मरने के लिए नीचे बैठी थी, मेरी आत्मा मेरे लिए प्रार्थना करने लगी कि मैं उठ खड़ी होऊँ और किसी तरह इस जीवन को घसीटती रहूँ, जैसे उसे आशा हो कि कोई चमत्कार होगा और मेरे पाप धुल जाएँगे. मैंने उठने की कोशिश भी नहीं की. “आगे रास्ता बंद है,” मैंने उससे कहा. “आगे और चलने की मुझमें ताकत नहीं है.” उसके बाद मैंने मुँह खोला जिससे वह बाहर निकल सके. और वह निकल गई. मैं जानती हूँ, क्योंकि उसी समय मैंने महसूस किया था कि वे थोड़े से रक्त-बिन्दु जिन्होंने मेरे हृदय को उससे जोड़ रखा था, मेरे हाथों में टपक रहे हैं.”

 

 

३८.
लेखक

 

लोग उसके दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से धक्का दे रहे थे लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया. उसने सुना, लोग एक एक कर घर के सभी दरवाज़े खटखटा रहे हैं और सबको उठा रहे हैं. फुलगर-उसके पैरों की आहट से ही वह उसे पहचान जाता था- पल भर के लिए रुका और फिर तेज़ी के साथ मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ा. शायद वह मुख्य द्वार खटखटाना चाहता था. लेकिन फिर दौड़ता हुआ आगे बढ़ गया.

आवाज़ें. धीमी, घिसटती हुई पदचापें जैसे कोई किसी भारी वज़न को घसीटकर ला रहा हो.

अस्पष्ट ध्वनियाँ, जिन्हें पहचानना असंभव था.

उसे अपने पिता की मृत्यु याद आ गई. आज की तरह वह भी सूर्योदय से पहले की सुबह थी. लेकिन उस दिन दरवाज़े खुले हुए थे और उसने उदास, विवर्ण आकाश के मटमैलेपन को भीतर प्रवेश करते देख लिया था. और एक औरत सिसकियों को रोकने की कोशिश में हलकान होकर दरवाज़े की चौखट से टिककर खड़ी हो गई थी. माँ, जिसे वह भूला हुआ था-कई बार, बार-बार भूल जाता था-उससे कह रही थी: “उन्होंने तुम्हारे पिता को मार डाला!” काँपती हुई भर्राई आवाज़ में, जो सिसकियों के तंतुओं से होती हुई मुश्किल से उस तक पहुँची थी.

उस स्मृति को पुनर्जीवित करना उसे कभी पसंद नहीं था क्योंकि वह बहुत सी दूसरी स्मृतियों को भी साथ ले आती थी, जैसे ठूँस-ठूँसकर भरा हुआ अनाज का बोरा गिरकर टूट गया हो और वह अनाज के दानों को बिखरने से रोकने की कोशिश कर रहा हो. क्योंकि उसके पिता की मृत्यु दूसरी कई मौतों को अपने साथ खींच लाती थी और हर मृत्यु में उस ध्वस्त चेहरे का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता था: एक आँख क्षत-विक्षत, दूसरी प्रतिशोध की भावना से उसकी ओर ताकती. फिर एक और स्मृति, फिर एक और…तब तक जब तक कि वह मृत्यु खुद उसकी स्मृति से ओझल नहीं हो जाती और याद करने के लिए कोई न बचता.

“उसे यहाँ लिटा दो. नहीं, ऐसे नहीं…सिर को इस तरह रखो. तुम! …किस बात का इंतज़ार कर रहे हो, भाई?”

यह सब बहुत धीमी आवाज़ में.

“डॉन पेद्रो कहाँ हैं?”

“सो रहे हैं. शोर मत करो. नींद खुल जाएगी.”

लेकिन लहीमशहीम डॉन पेद्रो वहीं खड़ा था, पुराने बारदाने में कफ़न की तरह लिपटी और जूट की रस्सी में बंधी बड़ी सी गठरी के साथ लोगों की मशक्कत को ध्यान से देखता हुआ.

“कौन है ये?” उसने पूछा.

फुलगर सेडानो आगे बढ़कर उसके करीब आया और कहा:

“मिग्येल है, डॉन पेद्रो.”

“क्या किया उन लोगों ने उसके साथ?” वह चीखा.

उसका अनुमान था कि उसे यह सुनने को मिलेगा: “उन्होंने उसे मार डाला.” इसलिए उसने अपने भीतर गुस्से की लहर को विद्वेष के नासूर में तब्दील होता महसूस किया. लेकिन उसकी जगह उसे फुलगर को कोमल स्वर में यह कहते सुना:

“किसी ने कुछ नहीं किया उसके साथ. वह खुद ही मौत के मुँह में चला गया.”

तेल के दियों का उजाला अब भी फैला हुआ था.

“उसके घोड़े ने उसे मार डाला,” एक और व्यक्ति ने आगे बढ़कर कहा.

उन्होंने उसे बिस्तर पर एक तरफ टिकाया और गद्दे को उलट दिया जिससे पलंग के फट्टे नज़र आने लगे. फिर लाश को पलंग के बीचोबीच करीने से लिटा दिया और रस्सियाँ खोल दीं. उसके हाथों को छाती पर मोड़कर क्रॉस बना दिया गया और उसके चेहरे को काले कपड़े से ढँक दिया. “जितना विशाल था, मरकर उससे भी बड़ा लग रहा है,” फुलगर ने मन ही मन सोचा.

पेद्रो पारामो वहीं खड़ा था. उसके चेहरे पर ख़ालीपन था जैसे वह वहाँ न हो, कहीं दूर बैठा हो. चेतना के परे उसके आधे-अधूरे, असंबद्ध विचार तेज़ भाग रहे थे. अंत में उसने कहा:

“अब मैंने अपनी देनदारी चुकानी शुरू कर दी है. जितना जल्दी शुरू करूँगा, उतनी जल्दी मुक्त हो जाऊँगा.”

उसे किसी दुख का एहसास नहीं हो रहा था.

आंगन में लोग जमा हो गए थे. उनका शुक्रिया अदा करते हुए उसकी आवाज़ तीखी, स्पष्ट और संयत थी जबकि पृष्ठभूमि में औरतों के विलाप का स्वर गूंज रहा था. बाद में सिर्फ मिग्येल पारामो के भूरे अखरोटी घोड़े के खुरों का स्वर सुनाई देता रहा जो लगातार अपने खुरों से ज़मीन खुरच रहा था.

“कल किसी से कहक़र इसे भी मुक्त कर देना,” उसने फुलगर सेडानो को आदेश दिया. “बड़ा दुखी है बिचारा.”

“ठीक है, समझ गया डॉन पेद्रो. वाकई उस पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है.”

“मैं भी यही सोच रहा हूँ….और जाते हुए उन औरतों से कहो कि इतना हंगामा न करें. ये औरतें मेरे दुख पर कुछ ज़्यादा ही शोक मना रही हैं. अगर उन पर यही बीती होती तो उनके विलाप में इतना उतावलापन नहीं होता.”

 

 

३९.
लेखक

 

उस दिन सालों बाद फादर रेंटेरिया उस रात को याद कर रहा था जिस रात अपने सख्त बिस्तर पर उसे नींद नहीं आ रही थी और वह बाहर निकलने पर मजबूर हो गया था. यह वही रात थी जिस दिन मिग्येल पारामो मरा था.

वह कोमाला की निर्जन सड़कों पर अकेला भटकता रहा था और सिर्फ कचरे के ढेर पर मुँह मारते आवारा कुत्ते उसकी भुतहा पदचापों से डरकर चौंक उठते थे. वह नदी के किनारे तक गया था और देर तक उसके शांत भँवर में आसमान से गिरते तारों की चमक निहारता रहा. घंटों वह अपने विचारों के साथ जूझता रहा और एक एक कर उन्हें नदी के काले जल में प्रवाहित करता रहा.

वह सोच रहा था कि यह सब तब से शुरू हुआ था जब पेद्रो पारामो ने लगभग एक नाकारा और दयनीय व्यक्ति का चोला उतारकर कुछ बनना शुरू किया था. वह जंगली घास की तरह तेज़ी के साथ फैल गया. और सबसे बुरी बात यह कि मैंने यह सब संभव किया. “मैंने पाप किया है, फादर. कल तक मैं पेद्रो पारामो के साथ सोता रहा हूँ.” “मैंने पाप किया है, पादरी. मैंने पेद्रो पारामो के बच्चों को जन्म दिया है.” “मैंने अपनी बेटी पेद्रो पारामो के पास भेजी, पाद्रे.” मैं उसका इंतजार करता रहा कि वह कुछ बातों के लिए कंफेस करेगा. लेकिन वह कभी नहीं आया. फिर अपने इस बेटे के जरिए उसने अपने दुष्ट कामों को और आगे बढ़ाया. और मज़ेदार बात यह कि सिर्फ इसी बेटे को उसने अपना बेटा माना-भगवान जाने क्यों. मैं तो इतना जानता हूँ कि मैंने ही उसके हाथ यह औज़ार दिया था.

उसे वह दिन याद आया जब कुछ ही घंटे पहले पैदा हुए उस बच्चे को लेकर वह उसके पास गया था.

उसने उससे कहा था:

“डॉन पेद्रो, इसकी माँ इसे जन्म देते हुए मर गई. उसने कहा कि यह तुम्हारा है. इसे रख लो.”

पेद्रो पारामो  ने बिना पलक झपकाए कहा:

“तुम क्यों नहीं रख लेते, फादर? उसे पादरी वगैरह बना दो.”

“इसकी नसों में जैसा खून है, मैं उसकी ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहता.”

“वास्तव में तुम समझते हो कि इसका खून अपवित्र है?”

“बिलकुल यही समझता हूँ, पेद्रो.”

“मैं तुम्हें ग़लत सिद्ध कर दूँगा. छोड़ जाओ इसे यहाँ. इसकी देखरेख करने के लिए मैं किसी न किसी का बंदोबस्त कर लूँगा.”

“मेरे मन में बिलकुल यही बात आई थी. तुम्हारे साथ रहेगा तो इसे कम से कम खाना तो मिलता रहेगा.”

इतना छोटा होते हुए भी बच्चा किसी साँप की तरह छटपटा रहा था.

“डामियाना! इधर आओ, इसे ले जाओ और इसकी अच्छी देखभाल करो. ये मेरा बेटा है.”

बाद में उसने एक बोतल खोली:

“यह उसके लिए है जो मर गई और तुम्हारे लिए भी.”

“और बच्चे के लिए?”

“उसके लिए भी. क्यों नहीं?”

उसने एक और गिलास भरा और दोनों बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए पीते रहे.

तो ऐसा हुआ था.

मेडिया लूना की तरफ गाड़ियों का आना शुरू हो गया था. फादर रेंटेरिया नीचे झुककर नदी के किनारे छिपने की कोशिश करने लगा. “तुम किससे छिप रहे हो?” उसने अपने आप से पूछा.

“आडिओस फादर,” उसने किसी को कहते सुना.

वह खड़ा हुआ और कहा:

“आडिओस! ईश्वर तुम्हारा भला करे.”

गाँव की लाइटें एक एक कर बुझने लगीं. नदी का पानी चमकीले रंग में जगमगा रहा था.

“फादर, क्या एंजेलस की घंटियाँ बज चुकीं?” एक गाड़ीवान ने पूछा.

“बहुत पहले बज चुकीं,” उसने जवाब दिया. और वह विपरीत दिशा में चल दिया, यह निश्चय करके कि उसे फिर से कोई न रोक पाए.

“इतनी सुबह आप किधर जा रहे हैं, फादर?”

“कहीं मौत हुई है क्या?”

“क्या कोंटला में कोई मर गया है?”

उसके मन में आया कि कहे, “मैं मरा हूँ. मेरी मौत हुई है.” लेकिन वह सिर्फ ज़रा सा मुस्कुरा दिया.

जब कस्बे का आखिरी घर पीछे छूट गया तो वह तेज़ी के साथ चलने लगा.

जब वह वापस लौटा तब सुबह का सूरज कुछ चढ़ आया था.

“आप कहाँ चले गए थे, अंकल?” उसकी भतीजी, अना ने पूछा. बहुत सी औरतें आई हैं और आपको पूछ रही हैं. वे कंफेस करना चाहती हैं; कल पहला शुक्रवार है न….”

“उन्हें कल शाम को आने को कह दो.”

कुछ पलों के लिए वह हाल की एक बेंच पर शांत बैठा रहा, थकान के मारे अन्यमनस्क.

“कितनी ठंडी हवा बह रही है न, अना.”

“अभी तो गर्मी है, अंकल.”

“मुझे तो महसूस नहीं हो रही है.”

वह सोचना ही नहीं चाहता था कि वह कोंटला गया था जहाँ उसने एक और पादरी के सामने अपने हर कामों का सामान्य कंफेशन किया था और उसने उसके लाख मिन्नतें करने के बावजूद उसे क्षमा करने से साफ मना कर दिया था.

“जिस आदमी का तुम नाम तक लेना नहीं चाहते, उसने चर्च को तहस-नहस कर दिया और तुम देखते रहे. अब मैं तुमसे क्या अपेक्षा करूँ, फादर? तुमने ईश्वर की अपार शक्ति का कैसा उपयोग किया? मैं सोचना चाहता हूँ कि तुम एक अच्छे आदमी हो और इस कारण लोगों के मन में तुम्हारी बहुत इज़्ज़त है. लेकिन सिर्फ अच्छा होना काफी नहीं है. पाप अच्छी बात नहीं है. और पाप का नाश करने के लिए आपको कठोर और निर्दय होना पड़ता है. मैं सोचता हूँ कि तुम्हारे गाँव के लोग अब भी आस्थावान हैं किंतु उनकी आस्था तुम्हारे कारण नहीं है. वे अंधविश्वास और डर के कारण आस्था का दामन थामे हुए हैं. तुम्हारी दरिद्रता और रोज़ ब रोज़ कई कई घंटे अपना कर्तव्य निभाते चले जाने के मामले में मैं अपने आपको तुम्हारे बहुत करीब पाता हूँ, फादर. मैं यह व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ कि इन अभागे गाँवों में जहाँ हमें निर्वासित कर दिया गया है, हमारा काम कितना कठिन है. लेकिन ठीक यही बात मुझे यह कहने का हक़ प्रदान करती है कि हमें उन मुट्ठी भर लोगों की सेवा नहीं करनी चाहिए जो चंद सिक्कों के बदले हमारी आत्मा खरीद लेते हैं. और जब हमारी आत्मा उनके हाथ आ जाती है तो इस बात की क्या संभावना रह जाती है कि आप उन लोगों से बेहतर हों जो आपसे बेहतर हैं. नहीं फादर, मेरे हाथ इतने साफ नहीं हैं कि मैं तुम्हें पापमुक्त कर सकूँ. क्षमादान के लिए तुम्हें और कहीं जाना पड़ेगा.”

“क्या मतलब? कंफेस करने के लिए मुझे कहीं और जाना पड़ेगा?”

“हाँ बिल्कुल. तुम दूसरों को पापमुक्त करते नहीं रह सकते जबकि तुम खुद पाप में डूबे हुए हो.”

“लेकिन अगर उन्होंने मुझे क्रिश्चियन मिनिस्ट्री से निकाल दिया तो?”

“शायद तुम इसी लायक हो. इसका निर्णय वही लोग करेंगे.”

“तुम नहीं कर सकते…? जब तक उनका निर्णय नहीं होता तब तक…. मुझे अभी कई अंतिम संस्कार करने हैं…कम्युनियन देना है. मेरे गाँव में इतने लोग मर रहे हैं, फादर.”

“अरे यार… मरने वालों का निर्णय ईश्वर को करने दो.”

“तो तुम मुझे पापमुक्त नहीं करोगे?”

और कोंटला के पादरी ने उससे कहा कि नहीं.

बाद में दोनों आंगन में अज़ीलिया की छाँह में टहलते रहे. वे अंगूर की बेलों के कुंज के नीचे बैठे रहे जहाँ अंगूर पक रहे थे.

“अंगूर कड़वे हैं, फादर,” पादरी ने फादर रेंटेरिया के प्रश्न का अनुमान लगाते हुए हुए कहा. “हम ऐसे इलाके में रह रहे हैं जहाँ ईश्वर की कृपा से हर चीज़ पैदा होती है. लेकिन जो भी पैदा होता है, कड़वा होता है. यह श्राप मिला है हमें.”

“आप सही कह रहे हैं, फादर. मैंने भी कोमाला में अंगूर बोने की कोशिश की थी. एक भी बेल नहीं लगी. सिर्फ अमरूद और संतरे: कड़वे अमरूद और कड़वे संतरे. मैं तो मीठे फलों का स्वाद तक भूल गया हूँ. तुम्हें सेमीनरी में पैदा होने वाले चीनी अमरूदों की याद है? और आड़ुओं की? और मोसम्बियों की जिनके छिलके छूते ही निकल आते थे? मैं उनके बीज लेकर आया था. थोड़े से, सिर्फ एक थैली. बाद में मुझे लगा कि उन्हें थैली में ही पड़े रहने देना चाहिए था क्योंकि क्या फायदा! शायद मैं उन्हें यहाँ उगने के लिए नहीं उनका क्रियाकर्म करने के लिए लाया था.”

“और फिर भी, फादर, सब मानते हैं कि कोमाला की मिट्टी बहुत उपजाऊ है. और यह कितने शर्म की बात है कि वहाँ की सारी ज़मीन सिर्फ एक हाथ में है. पेद्रो पारामो के जो उसका अकेला मालिक है. है कि नहीं?”

“यह ईश्वर की मर्ज़ी है.”

“मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता कि इस मामले का संबंध ईश्वर की इच्छा से है. तुम भी विश्वास नहीं करते, फादर. करते हो?”

” मुझे तो कभी-कभी शक होता है; लेकिन कोमाला में सब विश्वास करते हैं.”

“और उन “सब” में तुम भी शामिल हो?”

“मैं तो एक साधारण आदमी हूँ जो खुद अपने आपको नीचा दिखाने के लिए तैयार रहता है, विशेष रूप से अब जबकि उसे ऐसा करने की लालसा भी हो गई है.”

बाद में, जब वे गुड-बाई कहकर विदा  होने लगे, फादर रेंटेरिया ने पादरी के हाथों को अपने हाथों में लेकर चूम लिया. और फिर अब जबकि वह घर पर था, यथार्थ की दुनिया में लौट आया था, उसकी बिलकुल इच्छा नहीं हो रही थी कि कोंटला की उस सुबह के बारे में कुछ भी याद करे.

वह बेंच पर से उठा और दरवाज़े की ओर बढ़ा.

“कहाँ जा रहे हैं, अंकल?”

उसकी भतीजी, अना हर वक़्त उसके आसपास मंडराती रहती थी जैसे उसकी परछाई से गुहार लगा रही हो कि उसे जीवन के चंगुल से बचा ले.

“मैं कुछ देर बाहर टहलने जा रहा हूँ, अना. भड़ास निकालने.”

“आप बीमार महसूस कर रहे हैं क्या?”

“बीमार नहीं, अना. बुरा और मनहूस. मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि मैं बुरा और मनहूस आदमी हूँ.”

वह मेडिया लूना की ओर चला आया और पेद्रो पारामो से अपनी संवेदना व्यक्त की. पेद्रो पारामो से पुनः एक बार उसके बेटे पर लगे आरोपों के लिए तरह-तरह के बहाने सुने. उसने पेद्रो पारामो को बोलने दिया. क्योंकि उन सबका अब कोई अर्थ नहीं था. इसके अलावा उसने भोजन के लिए डॉन के आमंत्रण को ठुकरा दिया.

“मैं नहीं रुक सकता, डॉन पेद्रो. मुझे तुरंत चर्च जाना है जहाँ कंफेशन के लिए औरतों की लंबी लाइन लगी है. वे सब मेरा इंतज़ार कर रही होंगी. फिर कभी.”

वह घर चला गया और फिर शाम होते न होते, उसी हालत में, धूल और दुख में लिपटा चर्च पहुँच गया. उसने लोगों के कंफेशन सुनना शुरु किया.

लाइन में सबसे आगे खड़ी औरत डोरोटिया थी जो न जाने कब से चर्च के दरवाज़े खुलने के इंतजार में खड़ी थी.

उसे अल्कोहल की महक़ आई.

“क्या?…तुम अब शराब पीने लगी हो? कब से पी रही हो?”

मैं मिग्येल के जागरण में गई थी, पादरी. और कुछ ज़्यादा ही बहक़ गई. उन्होंने मुझे इतना पिला दिया कि मैं एक जोकर की तरह बर्ताव करने लगी हूँ.”

“तुमने जीवन भर यही किया है, डोरोटिया.”

“लेकिन अब मैं अपने पाप लेकर तुम्हारे पास आई हूँ फादर. पापमुक्ति के लिए.”

पहले कई अवसरों पर उसने उससे कहा था, “कंफेस करने की तुम्हें ज़रूरत नहीं है, डोरोटिया; तुम बेकार मेरा समय बर्बाद करती हो. चाहो तो भी तुम अब और अधिक पाप नहीं कर सकती. उन्हें दूसरों के लिए छोड़ दो.”

“मैंने किए हैं. करती रही हूँ. यह सच है, फादर.”

“तो कहो क्या कहना चाहती हो.”

“क्योंकि अब उसे कोई नुकसान नहीं पहुँच सकता इसलिए बता सकती हूँ कि मृत व्यक्ति को मैं ही लड़कियाँ पहुँचाया करती थी. मिग्येलिटो पारामो को.”

फादर रेंटेरिया सोचने के लिए पल भर रुका और फिर, जैसे कोहरे से बाहर निकलकर आया हो, लगभग आदतन कहा:

“कितने समय से?”

“तब से जब वह अभी बच्चा ही था. उस समय से जब उसे माता निकली थी.”

“जो अभी तुमने कहा है, उसे दोबारा कहो, डोरोटिया.”

“ठीक है. मैं ही मिग्येलिटो के लिए लड़कियाँ लेकर आती थी.”

“उन्हें लेकर तुम उसके पास जाती थी?”

“कभी-कभी मैं जाती थी. कभी-कभी सिर्फ उनका इंतज़ाम कर देती थी. और कई बार सिर्फ उसे इशारा कर देती थी कि किस तरफ जाना है. आप समझ सकते हैं…, कि किस समय, कहाँ वह अकेली होगी और वह उन्हें घात लगाकर अचानक दबोच सकता है.”

“कितनी? क्या बहुत सी हैं?”

वह पूछना नहीं चाहता था लेकिन प्रश्न उसके मुँह से आदतन निकल गया.

“मैंने उनका हिसाब रखना छोड़ दिया था, फादर…. अनगिनत.”

“तुम्हीं बताओ, मुझे तुम्हारे साथ क्या करना चाहिए, डोरोटिया? तुम्हीं जज हो जाओ. जो कुछ तुमने किया है, क्या तुम खुद माफ़ कर सकती हो?”

“नहीं कर सकती, फादर. लेकिन तुम कर सकते हो. इसीलिए मैं यहाँ आई हूँ.”

“कितनी बार तुम आई हो कि मैं तुम्हें मरने के बाद स्वर्ग भेज दूँ. तुम आशा करती हो कि तुम्हें वहाँ तुम्हारा बेटा मिलेगा, है न डोरोटिया? खैर…तुम अब स्वर्ग जाने से तो रही. भगवान तुम्हें माफ़ करे.”

“शुक्रिया, पादरी.”

“हाँ. मैं तुम्हें उसके नाम पर माफ़ करता हूँ. तुम जा सकती हो.”

“मेरे लिए कोई प्रायश्चित तजवीज़ नहीं करोगे, फादर?”

“तुम्हें उसकी जरूरत नहीं है, डोरोटिया.”

“शुक्रिया, पादरी.”

“ईश्वर के रास्ते पर चलो.”

उसने अगली औरत को बुलाने के लिए कंफेशन रूम की खिड़की थपथपाई. और जब उसे सुनाई दिया: “मैंने पाप किया है,” तो उसका सिर आगे को झुका और झुकता ही चला गया जैसे वह उसे स्थिर न रख पा रहा हो. वह व्याकुल हो उठा और उसे चक्कर से आने लगे. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वहाँ क्या हो रहा है. उसे लगा जैसे वह पनीली चाशनी में फिसलता चला जा रहा है. या चक्करदार प्रकाश में, जहाँ डूबते दिन का चमकीला प्रकाश तिनका-तिनका बिखर रहा है. और…जीभ पर रक्त का स्वाद…. “मैंने पाप किया है,” का स्वर तेज़ होता गया, बारंबार दोहराया जाता रहा: “अभी और हमेशा-हमेशा के लिए”, “अभी और हमेशा-हमेशा के लिए”, “अभी और….”

“चुप…चुप्प,” उसने औरत से कहा. पिछली बार तुमने कब कंफेस किया था?”

“दो दिन पहले, फादर.”

फिर भी वह दोबारा आई थी. लगता था जैसे वह दुख और विपत्ति के बीच घिरा हुआ है. तुम यहाँ क्या कर रहे हो, उसने अपने आपसे पूछा. आराम करो, सो जाओ. तुम बहुत थक गए हो.

वह कंफेशन रूम से निकलकर सीधे सैक्रिस्टी में जाकर बैठ गया. इंतज़ार करते लोगों की ओर बिना देखे उसने कहा:

“वे सब, जो समझते हैं कि उन्होंने पाप नहीं किया है, कल होली कम्यूनियन में आ सकते हैं.”

वापस जाते हुए उसे अपने पीछे लोगों की खुसर-पुसर सुनाई दे रही थी.

 

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Comments 18

  1. कुमार अम्बुज says:
    5 months ago

    इस उपन्यास को हिंदी में आना ही चाहिए था और यह आया। यह कृति क्रिएटिविटी का उत्कृष्ट और अनन्य उदाहरण है। अजित ने अपने आलस्य के पार जाकर इसे अंतत: संशोधित और पूर्ण किया और अरुण ने अद्भुत ढंग से एक साथ ही पेश कर दिया। इस तरह यह A++ काम हुआ।
    बधाई।

    Reply
    • M P Haridev says:
      5 months ago

      कुमार अम्बुज जी, सहमत हूँ कि विश्व प्रसिद्ध कृतियों का हिन्दी अनुवाद छपना चाहिये ।

      Reply
  2. Mekhraj says:
    5 months ago

    लेखक के नाम का मेक्सिको की हिस्पानी में उच्चारण ‘ख्वान रुल्फ़ो’ के निकट है।

    Reply
  3. M P Haridev says:
    5 months ago

    For a long time I thought to write that names of foreign writers be also written in brackets. Moreover, the authors’ books translated into Hindi and their publishers names.
    इस संक्षिप्त कथा में भी महत्वपूर्ण प्रसंग महिलाओं की उपेक्षा [घृणा और हिंसा भी पहलू होते हैं] से जुड़ी पीड़ा है । मुझे नहीं मालूम कि पितृ-सत्ता की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं । क्या आदिम युग से हैं । आधुनिक संसार में महिलाओं की शिक्षा ने उन्हें मज़बूत बनाया है । वे कमाती हैं । इसके बावजूद घर में काम करना इन्हीं के ज़िम्मे है ।
    क़रीब 5 वर्ष पहले [My chronology is weak] द इंडियन एक्सप्रेस में रविवारी संस्करण में सत्य घटना पर लेख था । मैं पहले कई लेखों की कतरने काटकर फ़ाइलों में रखता था । अब भी हैं लेकिन आयु अधिक होने के कारण छोड़ दिया] यह घटना केरल की है । इसलिये मलयालम भाषा में फ़िल्म बनायी गयी थी । कथा का आरंभ एक 12-14 साल के लड़के और उसकी माँ से जुड़ी है । पिता मज़दूर हैं । माँ का इलाज कराने की रक़म नहीं । उसकी देह उम्र से पहले दोहरी हो गयी थी । माँ काम करने में असमर्थ हैं । एक रोज़ बालक रसोई में स्लैब पर लगे सिंक के पास बर्तन साफ़ करता है । कमर और शरीर में दर्द होना आरंभ हो गया ।
    उसी रोज़ बच्चे ने संकल्प किया कि विवाह के बाद अपनी जीवनसंगिनी के साथ रसोई एवं घर के कार्यों में सहयोग करूँगा । संकल्प का व्यवहार में परिवर्तन हुआ । कथा छपने के दिन तक इन दंपति के एक पुत्र और एक पुत्री हैं । उनसे पुरुष और महिला दोनों के काम कराने का शिक्षण दिया गया ।
    इस चित्रपट के माध्यम से केरल में उनके रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की वर्किंग वुमन के फ़ोन आने लगे । कि कोई तो है जो हमारे कष्टों को समझता है ।

    Reply
  4. Ganesh vispute says:
    5 months ago

    हुआन रूल्फो का यह उपन्यास आज ७० वर्ष बाद भी अद्भुत लगता है। हिंदी में यह अनुदित होना शुभ समाचार है। भाषा वृद्धि का यह राज पथ भी है।

    Reply
    • आनंद विंगकर says:
      5 months ago

      फिलहाल इंग्लिश मे यह उपन्यास मै पढ रहा हु लेकिन समजनेमे खूब जटील है खासतौर उस देश का ईतिहास की जानकारीभी मालूम लेना जरुरी है
      हिंदी मे आप लोगोने ऐस क्लासिक किताब का अनुवाद किया
      धन्यवाद
      किसी हालत मे मूझे यह उपन्यास चाहिये
      आनंद विंगकर तहसिल कराड जिला सातारा महाराष्ट्र पिनकोड 415122

      Reply
  5. अच्युतानंद मिश्र says:
    5 months ago

    नमस्कार , आज के कारनामे के लिए समालोचन को बहुत बहुत बधाई। समालोचन में ही यह सम्भव है।अब सामलोचन साहित्य की एक संस्था का रूप ले चुका है।कमाल है ।
    क्या यह उपन्यास पीडीएफ के रूप में उपलब्ध हो सकता है, ताकि प्रिंट लेकर पढ़ा जा सके?

    Reply
  6. अरुण आदित्य says:
    5 months ago

    पाँव में मल्टिपल फ्रैक्चर के कारण दो हफ्ते से बिस्तर पर हूँ। बिस्तर पर पड़े रहने की ऊब और उदासी के बीच पढ़ना शुरू किया। एक झटके में बीस पेज से अधिक पढ़ गया। इस बीच ऊब और उदासी हाशिए पर दुबकी रहीं। पाठक को मोहपाश में बाँध कर रखने वाला उपन्यास है। भाषा में प्रवाह ऐसा कि बिल्कुल नहीं लगता जैसे अनुवाद पढ़ रहा हूँ। अजित हर्षे और समालोचन ने यह महत्वपूर्ण काम किया है।

    Reply
  7. मोनिका कुमार says:
    5 months ago

    अद्भुत संयोग है ! छह सात दिन पहले इनकी दो कहानियां पढ़ी और इस उपन्यास के बारे में NY Times में Valeria Luiselli का आर्टिकल ! और उसी क्रम में हिंदी अनुवाद मिल गया और वह भी इतनी जल्दी. शुक्रिया अरुण जी !

    Reply
  8. आमिर हमज़ा says:
    5 months ago

    देर सवेर दिल की बात पहुँच ही जाती है, प्यारे लोगो तक। बड़ी तमन्ना थी इसे नागरी में पढ़ने की, पूरी हुई। यह हिंदी की उपलब्धि है। समालोचन पर इसका होना यक़ीन से परे की बात नहीं है। अब कुछ दिन बस यही। समालोचन और अजित हर्षे जी का ख़ूब शुक्रिया!

    Reply
  9. Ashutosh Dube says:
    5 months ago

    अद्भुत है कि समालोचन ने अपनी इस ख़ास पेशकश में पूरा उपन्यास ही दे दिया है। अजित जी का और आपका आभार।

    Reply
  10. Shivmurti says:
    5 months ago

    अति उत्तम कार्य.
    एक दशक पहले किसी मित्र ने इसकी चर्चा की थी और PDF भेजा था.पढ़ते हुए किसी भुतही गुफा में जाने का रोमांच हुआ था.अब हिन्दी में पढ़ेंगे तो ज़्यादा आसान होगा.

    Reply
  11. श्रीनारायण समीर says:
    5 months ago

    बहुत महत्त्व का काम। हिंदी के क्षितिज को विस्तार देने की दृष्टि से भी बड़ा कार्य है यह। इसे पढ़ना तो है ही, संभाल कर रखना भी है। आपको और अनुवादकर्ता अजित हर्षे को बहुत – बहुत बधाई ।

    Reply
  12. Jatinder Aulakh says:
    5 months ago

    बहुत अच्छा काम किया। आपका इस पुस्तक से अवगत कराने लिए धन्यवाद।

    Reply
  13. अनुपम ओझा says:
    5 months ago

    फिल्म दो बार देख चुका हूं। उपन्यास पढ़ रहा हूं। समालोचन इस वक्त हिंदी साहित्य को दिशा दृष्टि देने का कठिन काम कर रहा है। अनुवादक और संपादक को बहुत बहुत धन्यवाद्!

    Reply
  14. राजीव कुमार शुक्ल says:
    5 months ago

    अजित हर्षे से चार दशकों की घनिष्ठ मित्रता है। इस प्रसंग से वह और गाढ़ी हुईं। उनकी असंदिग्ध सर्जनात्मकता का यह एक और सोपान सम्भव करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए पुराने प्यारे साथी कुमार अम्बुज और अरुण देव जी को अशेष साधुवाद। इसे पढ़ने की तीव्र उत्कंठा जाग उठी है। यात्रा पर हूॅं। स्थिर होते ही प्राथमिकता से पढ़ूॅंगा।

    Reply
  15. रोहिणी अग्रवाल says:
    5 months ago

    समय से साक्षात्कार समय को अवरुद्ध करने वाली जड़ताओं से टकराए बिना नहीं हो सकता। उपन्यास इस जोखिम को उठाता है, लहूलुहान होता है और अपने ही हाथों किये गए विध्वंस को देख हूक-हूक रोता है।

    कथा को मेटाफर का रूप देना और चरित्रों में अखंड देश-काल की स्मृतियों को भर देना आसान नहीं होता। तब पेद्रे पारामो क्या सिर्फ एक व्यक्ति भर बना रह जाता है? क्या वह अपनी व्युत्पत्ति में तमाम तामसिकताओं से बुनी बर्बरता नहीं जो संस्कृतियों, साम्राज्यों, सल्तनतों और सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के पराभव को सुनिश्चित कर हरे-भरे संभावनाओं से लहलहाते जीवन को प्रेतों का शहर बना देती है?

    कथ्य के भीतर गहरी सांस बन कर दुबका जादुई यथार्थवाद शैल्पिक ऊँचाइयाँ न लिए होता तो अर्थगर्भित प्रतीक, बिंब, फुसफुसाहटें और सन्नाटे में खो जाती आहटें/ कराहें भय एवं रहस्य गहराने की विलक्षण युक्तियाँ बन कर रह जातीं, लेकिन यह तो मुर्दों के टीले में जिंदगी के अस्तित्व और मायने तलाशने की पुकार है।
    फलने-फूलने के दंभ में डूबी तमाम सभ्यताओं के बीच आज भी पेद्रो पारामो सब जगह है। बूंद बन कर पैबस्त होता है पल में, और फिर आसमान बन कर ढांप लेता है वजूद …चेतना.. विवेक… गति … असहमति… और ताकत प्रतिरोध की।

    अजित हर्षे और समालोचन का आभार । कलजयी वैचारिक गद्य भी उपलब्ध कराएं तो आज के आलोचनाहीन-विचारहीन समय में सार्थक हस्तक्षेप का मंच बन जाएगा समालोचन ।

    Reply
  16. पूनम मनु says:
    5 months ago

    बाप रे! इतना भी आसान नहीं है पूरा उपन्यास एक ही बार में समझ आना। इसको समझने को इसकी गहराई में उतरना आवश्यक है। जब आप इसे पढ़ो तो किसी दूसरी ओर सोचो नहीं। बढ़िया 👏👏 धन्यवाद समालोचन अरुण देव जी। आभार अजीत हर्षे जी 🙏।सुना था इस उपन्यास के विषय में, पढ़ा आज। समालोचना की बदौलत। आभार समालोचना, ये तो लाइब्रेरी है मेरी 😊🙏

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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