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समालोचन

Home » पेद्रो पारामो : जुआन रुल्फो » Page 5

पेद्रो पारामो : जुआन रुल्फो

हिंदी अनुवाद : अजित हर्षे

by arun dev
January 22, 2025
in अनुवाद
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रोड्रिगो पिएर्तो द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘पेद्रो पारामो ’ से एक दृश्य

५१.
लेखक

 

साँझ ढली और वे लोग आ गए. वे बंदूकें लिए हुए थे और कारतूसों के पट्टे उनकी छातियों पर लटक रहे थे. वे लगभग बीस जन थे. पेद्रो पारामो ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया. बिना अपने साम्ब्रेरो* उतारे चुपचाप वे टेबल के चारों ओर रखी कुर्सियों पर बैठ गए और इंतज़ार करने लगे. उसके बाद सिर्फ उनके चॉकलेट पीने और टोर्तिया और बीन चबाने की आवाज़ें ही आती रहीं, जिन्हें भरपूर मात्रा में लगातार परोसा जा रहा था.

(*मेक्सिको में आम तौर पर पहनी जाने वाली चौड़े किनारों वाली टोपियाँ)

पेद्रो पारामो उन्हें गौर से देखता रहा. इन चेहरों के बारे में वह बिलकुल नहीं जानता था. एल तिल्कुएट ठीक उसके पीछे अंधेरे में खड़ा था.

“सेन्योर्स,” जब उसने देखा कि वे निपट चुके हैं तो उसने कहना शुरू किया. “मैं आप लोगों की और क्या सेवा कर सकता हूँ?”

“इस सबके मालिक तुम ही हो?” हाथ लहराते हुए उनमें से एक ने पूछा.

लेकिन उसके जवाब से पहले ही एक और व्यक्ति ने हस्तक्षेप करते हुए कहा:

“यहाँ सारी बातचीत मैं कर रहा हूँ.”

“ठीक है. मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ?” पेद्रो पारामो ने अपना कहा दोहराया.

“जैसे,…तुम देख ही रहे हो, हम लोगों ने हथियार उठा लिए हैं.”

“तो?”

“तो कुछ नहीं. बस यही. इतना काफी नहीं है क्या?”

“लेकिन आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं?”

“क्योंकि यही दूसरे भी करते रहे हैं. तुम नहीं जानते? कुछ देर रुको, आदेश मिलते ही हम बताएँगे कि क्यों. तब तक हम यहीं हैं.”

दूसरे ने कहा, “मैं जानता हूँ कि क्यों. और तुम चाहते हो तो मैं बता भी देता हूँ. हमने सरकार के खिलाफ़ विद्रोह किया है, और तुम जैसे लोगों के खिलाफ़ भी क्योंकि हम तुम्हारे साथ रहते हुए तंग आ गए हैं. सरकार का हर बंदा अपराधी है और तुम जैसे लोग और कुछ नहीं, कमीने डाकुओं और मक्कार चोरों के गिरोह भर हैं. और जहाँ तक खुद गवर्नर का सवाल है, मैं कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि उससे जो भी कहना है, हम लोग बंदूक की गोलियों से कहेंगे.”

“क्रांति के लिए आपको कितना चाहिए?” पेद्रो पारामो ने पूछा. “शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ.”

“महोदय समझदारी की बात कर रहे हैं, पर्सेवरेंसियो. अपनी ज़बान को लगाम दो और इस तरह ज़्यादा चपर-चपर मत करो. संगठन के लिए हमें अमीर लोगों की ज़रूरत है और इन महाशय से ज़्यादा अमीर यहाँ कौन मिलेगा. कसील्डो, कितने की ज़रूरत है हमें?”

“उम्म…जितना ये महाशय देना चाहें, दे सकते हैं.”

“क्या!? ये आदमी भूखे को एक बासी रोटी तक नहीं दे सकता. अब जबकि हम यहाँ आ गए हैं और हमारे पास मौका भी है तो जो भी इसके पास है, छीन लेना चाहिए, इसके घिनौने मुँह से आखिरी निवाला तक.”

“आराम से… आराम से, पर्सेवरेंसियो. सिरके की बनिस्बत शहद के प्रयोग से ज़्यादा मक्खियाँ प्राप्त की जा सकती हैं. हम एक सौदा कर लेते हैं. कितना चाहिए, कसील्डो?”

“उम्म, बहुत सोच-समझकर कहें तो शुरुआत में बीस हज़ार काफी होंगे. आप सब लोग क्या कहते हो? और… क्योंकि खुद ये महाशय हमारी मदद करना चाहते हैं तो वे कुछ ज़्यादा भी दे सकते हैं….तो पचास हज़ार…क्या खयाल है?”

“मैं आप लोगों को सौ हज़ार दूँगा,” पेद्रो पारामो ने कहा. “आप लोग कितने लोग हो?”

“मेरे खयाल से, तीन सौ.”

“ठीक है. इसके अलावा मैं आपको तीन सौ आदमी और दे देता हूँ जिससे आपकी सेना में और थोड़ी जान आ जाए. एक हफ्ते के भीतर आपको आदमी और पैसे दोनों मिल जाएँगे, आप उनसे कोई भी काम ले सकते हैं. लेकिन हाँ, मैं सिर्फ पैसे आपको दे रहा हूँ, आदमी सिर्फ उधारी हैं. जैसे ही काम हो जाए, तुरंत उन्हें यहाँ वापस भेज दीजिएगा. …तो सौदा पक्का?”

“डन!”

“तो एक हफ्ते बाद, सेन्योर्स. आप लोगों से मिलकर बड़ी खुशी हुई.”

“ठीक है,” सबसे आखिर में निकलने वाले व्यक्ति ने कहा. लेकिन याद रखना. अगर वादाखिलाफ़ी हुई तो आपको पर्सेवरेंसियो से निपटना होगा, यानी मुझसे.”

पेद्रो पारामो ने हाथ मिलाकर उसे भी रवाना किया.

 

५२.
लेखक

 

“तुम्हारे खयाल से इनका लीडर कौन है?” जब वे चले गए तो उसने एल तिल्कुएट से पूछा.

“उम्म, मैं सोचता हूँ, जो मोटे पेट वाला बीच में बैठा था, वही होगा. जिसने एक बार भी सिर उठाकर ऊपर नहीं देखा. मेरी छठी इंद्री कह रही है कि वही है और मैं कभी ग़लत नहीं होता, डॉन पेद्रो.”

“इस बार ग़लत हो, दमाज़िओ. लीडर तो तुम हो. क्या तुम इस क्रांति से नहीं जुड़ना चाहते?”

“उम्म…मुझे यह बात कुछ ज़्यादा ही देर में समझ आई, डॉन. मुझे तुरंत समझना चाहिए था क्योंकि मैं अच्छा मज़ाक पसंद करता हूँ.”

“खैर. अब तुम समझ गए हो कि मामला क्या है. तुम्हें मेरी सलाह की जरूरत नहीं है. अब तीन सौ भरोसेमंद लोगों का इंतज़ाम करो और उन्हें लेकर उन विद्रोहियों की फौज में शामिल हो जाओ. उनसे कहो कि मेरे वादे के मुताबिक तुम तीन सौ आदमी लेकर आ गए हो. बाकी काम कैसे निपटाना है, तुम जानते हो.”

“और पैसे का पूछें तो क्या कहूँ? क्या वह भी देना है?”

“हर आदमी के लिए तुम्हें मैं 10 पेसो दूँगा. बहुत ही ज़रूरत पड़ेगी तो उनके लिए इतना काफी होगा. उन विद्रोहियों से कहना कि बाकी पैसे मैंने अपने पास रखे हैं. आज के जमाने में इतनी रकम लेकर यहाँ से वहाँ घूमना समझदारी की बात नहीं होगी. और हाँ, पुएर्ता द पिएदरा वाले उस रैंच के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?… ठीक है? इसी पल वह तुम्हारा हुआ. यह नोट लेकर मेरे वकील के पास जाओ. वही जेरार्डो तूहियो. वह मिनटों में वह ज़मीन तुम्हारे नाम कर देगा. कैसा लग रहा है, दमाज़िओ?”

“यह भी कोई पूछने की बात है मालिक. हालांकि मैं बिना रैंच लिए भी यह काम खुशी-खुशी करता. आप मुझे जानते हैं, मैं इन सब बातों की परवाह नहीं करता. फिर भी, कुछ भी हो, मैं आपका एहसानमंद हूँ. जब मैं दुनिया भर में हुड़दंग मचाता भटक रहा होऊँगा तब मेरी अकेली बुढ़िया इससे दिल बहलाती रहेगी.”

“हाँ, इसके अलावा कुछ जानवर भी पाल लेना. रैंच पर कुछ न कुछ हलचल होती रहनी ज़रूरी है.”

“अगर ब्रह्मास को ले जाऊँ तो आपको कोई एतराज़ तो नहीं होगा मालिक?”

“जिसे चाहो ले जाओ, तुम्हारी बीबी उसकी अच्छी देखभाल करेगी. और अब काम की बात. कोशिश करना कि मेरे खेतों से बहुत ज़्यादा दूर न चले जाओ जिससे अगर कोई आ ही जाए तो उसे पहले से मौजूद कुछ लोग यहाँ मिल जाएँ. और जब आ सको, आ जाओ या फिर तब जब कोई बहुत ज़रूरी खबर देनी हो.”

“ठीक है. फिर मिलते हैं, मालिक.”

 

५३.
जुआन प्रेसीयाडो

 

“वह क्या कह रही है, जुआन प्रेसीयाडो?”

“वह कह रही है कि वह अपने पाँवों को उसके पैरों के बीच छिपा लेती थी. बर्फ की सिल्लयों की तरह ठंडे पाँवों को और फिर वह उन्हें गरम करता था जैसे ओवन में ब्रेड सेंक रहा हो. वह कह रही है कि वह उसके पाँवों को दाँतों से कुतरता रहता, यह बुदबुदाते हुए कि वे ओवन से निकले ब्रेड के सुनहरे टुकड़ों जैसे हैं. और यह कि वह उसके साथ इतना चिपककर सोती थी जैसे उसकी त्वचा के भीतर सो रही हो, अपनी अस्तित्वहीनता में खोई, और फिर वह अपनी देह की क्यारी को दो भागों में विभक्त होता हुआ महसूस करती थी, जैसे खेत में हल चल रहा हो: पहले जलता हुआ गर्म, फिर गुनगुना और सौम्य; देह में प्रवेश करता, गहरे, और गहरे, इतना भीतर कि वह दर्द के मारे चीख उठती. लेकिन वह कह रही है कि उसकी मौत ने उसे इससे अधिक, बहुत अधिक दुख पहुँचाया है….हाँ यही कहा उसने.”

“किसकी मौत का ज़िक्र कर रही है वह?”

“कोई ऐसा जो उसकी मौत से पहले मर गया था.”

“लेकिन कौन हो सकता है वह?”

“यह मैं नहीं जानता. वह कह रही है कि जिस रात वह देर से घर आया था, उसे पहले ही आभास हो गया था कि निश्चित ही उस रात वह बहुत देर से घर आएगा, यहाँ तक कि शायद सबेरा हो जाए. उसने सोचा कि क्योंकि उसके पाँव बेचारे बेहद ठंडे हो गए थे, उन्हें किसी चीज़ से ढँक दिया गया था, जैसे किसी ने उन्हें किसी चीज़ में लपेटकर गरम किया हो. जब उसकी नींद खुली तो उसने पाया कि उसके पाँव उसी अखबार में लिपटे हुए हैं जिसे वह उसका इंतज़ार करते हुए रात को पढ़ रही थी; वह नीचे गिर गया था और क्योंकि उसकी थकी आँखें आगे और जागती नहीं रह सकती थीं, वह उसे उठा नहीं पाई थी और जब वे उसे बताने आए कि वह मर गया है तो उन्होंने उसी अखबार को उसके पाँवों पर लपेट दिया था.”

“जिस ताबूत में उन्होंने उसे दफनाया था, ज़रूर वह टूटकर खुल गया है क्योंकि मुझे लकड़ी के फट्टों के तड़कने की आवाज़ सुनाई दे रही है.”

“हाँ, मुझे भी.”

 

५४.
लेखक

 

उस रात उसे फिर सपने आते रहे. इतनी सारी चीजें इतनी शिद्दत के साथ क्यों याद आ रही हैं? अतीत के इस नाज़ुक संगीत की जगह सिर्फ उसकी मृत्यु भर क्यों नहीं याद आ जाती?

“फ्लोरेंसियो मर गया, सेन्योरा.”

वह आदमी कितना बड़ा था! कितना विशाल! और उसकी आवाज़ कितनी सख्त थी. रूखी से रूखी धूल से भी अधिक रूखी. वह उसके शरीर को ठीक से नहीं देख पाई. या कहीं उसकी स्मृति धुंधली तो नहीं पड़ गई? जैसे स्मृति और उसके बीच रिमझिम बारिश हो रही हो? उसने क्या कहा था? फ्लोरेंसियो? कौन फ्लोरेंसियो? मेरा फ्लोरेंसियो? ओह, मैं उसी वक़्त दहाड़ें मारकर रो क्यों न पड़ी, और अपनी यंत्रणा को शांत करने लिए क्यों नहीं अपने आंसुओं में खुद को डुबो डाला? हे ईश्वर! तुम अपने स्वर्ग में नहीं हो! मैंने तुमसे याचना की थी कि उसकी रक्षा करना. उसकी देखरेख करना. मैंने तुमसे यही मांगा था. लेकिन तुम्हें सिर्फ चिंता होती है आत्मा की, रूह की. और मैं चाहती हूँ, उसका शरीर; नंगा और प्यार में लावे की तरह तपता, वासना में उबलता हुआ, मेरे थरथराते स्तनों और बाँहों को सहलाता हुआ शरीर. मेरा पारदर्शी शरीर उसके शरीर में अटका हुआ. मेरी कामुक देह उसकी प्रचंडता में कैद और मुक्त होती हुई. अब मैं अपने इन होंठों क्या करूँ जबकि उन्हें ढँकने के लिए उसके होंठ मौजूद नहीं हैं. बेचारे मेरे होंठों का अब क्या होगा?

इधर सुज़ाना सान ज़ुआन बिस्तर पर करवटें बदल रही थी और उधर पेद्रो पारामो दरवाज़े से टिका खड़ा उसे देख रहा था, सेकंडों और मिनटों में उसके इस लंबे सपने की अवधि नापता हुआ. लैंप से मोम के तड़तड़ाने की आवाज़ आने लगी, फिर उसकी लौ फड़फड़ाई और धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ने लगी. जल्द ही वह बुझ भी गई.

अगर उसे वे निर्मम, अनवरत और थका देने वाले सपने न आ रहे होते और सिर्फ दर्द रहा होता तो मैं उसका कोई न कोई उपाय अवश्य कर लेता. इस वक़्त लगातार सुज़ाना सान ज़ुआन की तरफ टकटकी लगाए और उसकी हर मुद्रा पर बेचैन होता हुआ वह यही सोच रहा था. अगर वह इस पीली लौ की तरह, जिसकी रौशनी में वह उसे अब तक देख पा रहा था, बुझ गई तो वह क्या करेगा?

वह बे-आवाज़ दरवाज़ा उढ़काकर कमरे से बाहर निकल आया. यहाँ रात की ठंडी हवा ने उसके दिमाग़ से सुज़ाना सान ज़ुआन की छवि पोंछकर साफ कर दी.

सबेरा होने से कुछ पहले सुज़ाना की नींद खुली. वह पसीना-पसीना हो रही थी. उसने ओढ़े हुए भारी कंबल ज़मीन पर फेंके और अपने आप को उनकी गर्मी से मुक्त किया. वह नंगी थी और अब सुबह की बयार में ठंडी हो रही थी. उसने एक गहरी साँस ली और धम्म से फिर से सोने के लिए लुढ़क गई.

कई घंटे बाद फादर रेंटेरिया ने उसे इसी स्थिति में पाया, नंगी और सोई हुई.

 

५५.
लेखक

 

“आपने कुछ सुना पेद्रो कि उन्होंने एल तिल्कुएट को पटकनी दे दी है.”

“मैं जानता हूँ कि कल रात गोलीबारी हुई थी क्योंकि मुझे भी काफी हल्लागुल्ला होता हुआ सुनाई दिया था. लेकिन मैं इससे अधिक कुछ नहीं जानता. तुम्हें किसने बताया, जेरार्डो?”

“कुछ घायल किसी तरह कोमाला पहुँचने में कामयाब हो गए थे. मेरी बीबी ने उनकी मरहम पट्टी करने में मदद की. उन्होंने बताया कि वे लोग दमाज़ियो के साथ थे और यह भी कि बहुत से लोग मारे गए हैं. लगता है उनकी मुठभेड़ विलाइस्तास के साथ हुई थी.”

“हे भगवान! लगता है, आगे बहुत बुरा वक्त आने वाला है, जेरार्डो. तुम्हारा क्या इरादा है, आगे क्या करने वाले हो?”

“मैं तो गाँव छोड़कर जा रहा हूँ डॉन पेद्रो. सयूला चला जाऊँगा. वहीं अपना काम शुरू करूँगा.”

“तुम वकीलों का अच्छा है; अपनी मालमत्ता लेकर कहीं भी जा सकते हो, बशर्ते कोई आपको खत्म ही न कर दे.”

“यह न कहो, डॉन पेद्रो. हमारी अपनी मुश्किलें होती हैं. इसके अलावा आप जैसे दोस्तों को छोड़कर कहीं जाना अखरता है. आपकी शालीनता और आवभगत की कमी वहाँ बहुत खलेगी. हाँ, यह कहना ग़लत न होगा कि हमारी दुनिया लगातार बदलती जा रही है. आपके कागज़ात किसके पास छोड़ जाऊँ?”

“कहीं मत छोड़ो, अपने साथ ले जाओ. क्यों, जहाँ जा रहे हो वहाँ से मेरे मामलात तुम नहीं देख पाओगे क्या?”

“मुझे खुशी है कि आप मुझ पर इतना भरोसा करते हैं, डॉन पेद्रो. वाकई मैं बड़ा एहसानमंद हूँ. लेकिन मुझे दुख है कि मैं अब आपके साथ काम करने में असमर्थ हूँ. कुछ अनियमितताएँ…या कहें…कुछ ऐसी व्यक्तिगत जानकारियाँ, जिन्हें सिर्फ और सिर्फ आपको जानना चाहिए. आपके काग़ज़ात अगर ग़लत हाथों में पड़ गए तो उनका बेजा इस्तेमाल हो सकता है. सबसे अच्छा होगा अगर उन्हें आपके पास छोड़ दिया जाए.”

“तुम ठीक कहते हो, जेरार्डो. तुम उन्हें यहीं छोड़ जाओ. मैं उन्हें आग के हवाले कर दूँगा. काग़ज़ात हों या न हों, क्या फर्क पड़ता है. मेरी जायदाद के बारे में मुझसे कौन बहस करेगा.”

“निश्चित ही, कोई नहीं. कोई नहीं. मैं अब निकलता हूँ.”

“ईश्वर तुम्हारे साथ हो, जेरार्डो.”

“क्या कहा?”

“मैंने कहा, ईश्वर आपके साथ रहे.”

बहुत धीमे-धीमे वकील जेरार्डो तूहियो वहाँ से बाहर आया. वह अब बूढ़ा हो चुका था, लेकिन इतना बूढ़ा नहीं कि इतना धीमे, रुकते-रुकते अनिच्छापूर्वक चले. असली बात यह थी कि उसे ईनाम की अपेक्षा थी. पहले वह डॉन पेद्रो के पिता डॉन लुकास की सेवा में रहा था; फिर बाद में अब तक पेद्रो पारामो की सेवा में. यहाँ तक कि मिग्येल की भी सेवा उसने बजाई थी. सच्चाई यह थी कि वह चाहता था कि उसकी आजन्म सेवाओं की कद्र की जाए; उसकी सेवाओं का स्वेच्छा से कोई बड़ा प्रतिदान दिया जाए. उसने अपनी पत्नी से कहा था:

“मैं डॉन पेद्रो को बताने जा रहा हूँ कि मैं काम छोड़ रहा हूँ. मैं जानता हूँ कि वह दिल से मेरा एहसानमंद होगा और शुक्रिया अदा करेगा. मेरी सेवाओं के इनाम के रूप में जो पैसे वह मुझे देगा, वह सयूला में वकालत शुरू करने के लिए और बचा हुआ जीवन आराम से गुज़ारने के लिए काफी होगा.”

लेकिन पता नहीं क्यों, इन औरतों को हमेशा संदेह रहता है. कैसे? क्या उन्हें आसमान से जानकारियाँ मिलती हैं? उसकी पत्नी को कतई विश्वास नहीं था कि ऐसा कुछ होगा, कि उसे इनाम इकराम से नवाज़ा जाएगा.

“तुम्हें गधे कि तरह काम करना होगा तब कहीं दो रोटी कमा पाओगे. डॉन पेद्रो से तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला.”

“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?”

“बस मैं जानती हूँ.”

वह सामने वाले मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ रहा था और किसी अकस्मात पुकार की आशा में उसके कान तैयार खड़े थे. कम से कम इतना ही:

“ओह, जेरार्डो! मुझे माफ़ करो, मैं इतना व्यस्त रहता हूँ कि मुझे सामान्य औपचारिकताओं का ध्यान भी नहीं रहता. तुम जानते हो कि मैं तुम्हारा इतना एहसानमंद हूँ कि उसकी कीमत पैसे से नहीं चुकाई जा सकती. इसलिए मेरा यह छोटा सा शुक्रिया कुबूल करो, दोस्त.”

लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई. दरवाज़े से बाहर निकलकर उसने घोड़े को खोला और उस पर सवार हो गया. दुलकी चाल से घोड़े पर चलते हुए भी वह इतना सतर्क था कि पेद्रो पारामो के घर से तुरंत-फुरंत बहुत दूर न निकल जाए और कोई बुलाए तो उसके कान उसे न सुन पाएँ. जब उसे एहसास हुआ कि मेडिया लूना नज़रों से ओझल हो गया है तो भयभीत होकर उसने सोचा: “हे ईश्वर, मैं और कितना नीचे गिरूँगा? अगर किसी से उधार माँगना पड़ गया तो कितनी बेइज्जती की बात होगी!”

 

 

५६.
लेखक

 

“डॉन पेद्रो. मैं वापस आ गया क्योंकि मैं अपने आपसे खुश नहीं था. मैं आपके सारे काम करते रहना चाहता हूँ और सभी मामलों और कारोबार की देखरेख करना चाहता हूँ.”

वह एक बार फिर पेद्रो पारामो के ऑफिस में, जिसे मुश्किल से आधे घंटे पहले छोड़कर वह गया था, बैठा था.

“तुम्हारी मर्ज़ी, जेरार्डो. वे रहे कागज़ात, जहाँ तुम रखकर गए थे, वहीं पड़े हैं.”

“बड़ी कृपा होगी…मेरे खर्चे…जाना है तो…मेरी फीस की एवज में छोटी सी पेशगी…और अगर उचित लगे तो कुछ अपनी तरफ से….”

“पाँच सौ?”

“थोड़ा बढ़ा नहीं सकते? ज़रा सा और….”

“एक हज़ार चलेगा?”

“पाँच हो जाए तो…?”

“पाँच क्या? पाँच हज़ार पेसो? इतना तो मेरे पास नहीं है. तुमसे ज़्यादा कौन जान सकता है कि जो कुछ भी मेरे पास है, सब कुछ कहीं न कहीं गिरवी है. ज़मीनें, जानवर सब. तुम अच्छी तरह जानते हो. हज़ार ले लो. इतने से तुम्हारा काम चल जाएगा.”

त्रुजिलो सोचने लगा. अपना सिर छाती में छिपाए. पेद्रो पारामो अपनी डेस्क पर पेसो गिन रहा था और उसकी खनक उसे सुनाई दे रही थी. उसे डॉन लुकास की याद आ गई, जो अक्सर उसकी फीस दबा जाता था. फिर उसके बाद डॉन पेद्रो…. और वह उसका बेटा, मिग्येल. न जाने कितनी मुसीबतें उसने खड़ी कीं!

ज़्यादा नहीं तो कम से कम पंद्रह बार तो उसने उसे जेल से बरी करवाया होगा. और तब, जब उसने उस आदमी की हत्या की थी, क्या नाम…? रेंटेरिया. हाँ यही…. इन लोगों ने उसकी लाश के हाथ में पिस्तौल थमा दी थी. मिग्येलिटो उस वक्त डर के मारे काँप रहा था, हालांकि बाद में बड़ी डींगें हाँकता रहा. सिर्फ एक उसी मामले में डॉन पेद्रो को कितनी मुसीबत हो सकती थी, अगर केस सुनवाई के लिए कोर्ट में चला जाता. और उन अनगिनत बलात्कारों के मामलों का क्या, ऊँ? सोचो कि हर बार अपनी जेब से वह खुद लड़कियों को पैसे देता था कि अपना मुँह बंद रखें. “तुम्हें तो उसका एहसानमंद होना चाहिए,” वह उनसे कहता. ‘कि तुम्हें एकदम गोरा-चिट्टा बच्चा पैदा करने का मौका मिल रहा है.’

“ये रखो, जेरार्डो. और बहुत संभालकर खर्च करना भई, क्योंकि पैसे झाड़ पर नहीं उगते.”

और त्रुजिलो, जो तब तक ध्यान में गहरे उतर गया था, मुश्किल से बाहर निकलकर बोला:

“ठीक वैसे ही, जैसे मुर्दा अपनी कब्रों से बाहर नहीं निकलते.”

 

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

५७.
लेखक

 

सुबह होने में अभी बहुत देर थी. आकाश लंबी रात के कारण थके हुए मोटे-मोटे सितारों से भरा हुआ था. थोड़ी देर के लिए चाँद निकला था पर तुरंत ही आँखों से ओझल हो गया. वह एक दुखी चाँद था जिसकी ओर न तो कोई देखता था और न ही उसके होने पर विचार करता था. अपनी विकृत आकृति लिए और बिना कोई प्रकाश छोड़े वह कुछ पल ऊपर अटका रहा फिर पहाड़ियों के पीछे छिप गया.

दूर, बहुत दूर रात की कालिमा के आवरण में लिपटी साँड़ों की गर्जना सुनाई दे रही थी.

“ये प्राणी कभी नहीं सोते,” डामियाना सिस्नेरो ने कहा. “वे कभी नहीं सोते. वे बाहर निकले पिशाच की तरह हैं जो हर वक़्त रूहों पर काबिज होने के लिए बेताब रहता है.”

उसने करवट ली और कान दीवार से लगा दिए और तभी उसने किसी खटखटाहट की आवाज़ सुनी.

उसकी आँखें पूरी तरह खुल गईं और उसने साँस रोककर सुना कि कोई दीवार पर थपकियाँ दे रहा है. तीन तेज़ थपकियाँ. ठीक उसके पास नहीं, ज़रा हटकर लेकिन उसी दीवार पर.

“ईश्वर हमारी रक्षा करें! निश्चित ही यह सान पास्कुअल होना चाहिए. अपने विश्वासपात्र लोगों को जान के खतरे से आगाह करने के लिए वही तीन बार इस तरह खटखटाता है.”

क्योंकि वह गठिए के चलते बहुत समय से नोवेना के लिए नहीं जाती थी, इसलिए उसे चिंता नहीं थी लेकिन वह डर गई; और डर से ज़्यादा, क्या चल रहा है, जानने के लिए उत्सुक हो गई.

वह तुरंत खाट से उठी और खिड़की से झाँककर बाहर देखा.

खेतों की तरफ अंधकार था. फिर भी वह उस भूदृश्य से इतनी वाकिफ थी कि उसने पेद्रो पारामो के विशाल शरीर को मार्गरीटा की खिड़की से झूलकर भीतर जाता देख लिया.

“हे ईश्वर! ये डॉन पेद्रो…!” डामियाना के मुख से निकला. “इसने आज भी लड़कियों का पीछा नहीं छोड़ा. लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि यह काम वह इतना गुपचुप, छिप-छिपाकर क्यों करना चाहता है. अगर एक बार मुझसे कह देता तो मैं खुद मार्गरीटा को राज़ी करके उसके पास भेज देती कि मालिक को आज रात उसकी ज़रूरत है और उसे अपना बिस्तर छोड़ने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती.”

जब उसने फिर एक बार साँड़ों की दहाड़ सुनी तो अपनी खिड़की बंद करके वापस बिस्तर पर लेट गई और शरीर को कंबल से कानों तक ढँक लिया. फिर वह इस सोच में डूब गई कि इस समय मार्गरीटा के साथ क्या हो रहा होगा.

कुछ देर बाद बेचैन होकर उसे उठकर खड़े होना पड़ा. रात अचानक बहुत गर्म हो उठी थी और उसने अपना नाइट गाउन उतारकर फेंक दिया…

“डामियाना!” उसने सुना.

और वह एक लड़की बन गई.

“दरवाज़ा खोलो, डामियाना!”

पसलियों के बीच उसका दिल मेंढक की तरह उछलकूद मचा रहा था.

“लेकिन क्यों, मालिक!”

“खोलो, डामियाना. बस चुपचाप दरवाज़ा खोल दो!”

“लेकिन मैं गहरी नींद में हूँ, मालिक.”

फिर उसे गुस्से से बिलबिलाते डॉन पेद्रो के कदमों की दूर जाती और गलियारे में गूँजती आवाज़ सुनाई दी.

पेद्रो पारामो फिर नाराज़ न हो इसलिए दूसरे दिन रात को उसने अपना दरवाज़ा खुला छोड़ दिया और, यहाँ तक कि बिस्तर पर नंगी लेट गई कि उसे और आसानी हो जाए लेकिन वह उसके पास फिर कभी नहीं आया.

और इसलिए आज भी, जबकि वह मेडिया लूना के सारे नौकरों की मुखिया बन चुकी है, बूढ़ी हो चुकी है और अपना वाजिब सम्मान प्राप्त कर चुकी है, उस रात को याद करती है जब मालिक ने उसे पुकारा था, “दरवाज़ा खोलो, डामियाना!”

और यह सोचते हुए उसे नींद आ गई कि ठीक इस वक़्त नौजवान मार्गरीटा कितनी खुश होगी. बाद में फिर उसे खटखटाहट सुनाई दी, लेकिन इस बार मुख्य द्वार पर, जैसे कोई उसे रायफल के बट से ज़ोर-ज़ोर से ठोंककर गिरा देना चाहता हो.

अब दूसरी बार उसने खिड़की खोलकर रात के अंधेरे में झाँककर देखा. उसे कुछ दिखाई नहीं दिया लेकिन उसे महसूस हुआ जैसे ज़मीन से भाप उठ रही है, जैसा बारिश के बाद होता है और धरती छोटे-छोटे कीड़े मकोड़ों से भर जाती है. उसे महसूस हुआ कि कुछ ऊपर उठ रहा है, बहुत से आदमियों की ऊष्मा जैसा कुछ. उसे मेंढकों की टर्र-टर्र का और झींगुरों का शोर सुनाई दिया: बारिश के मौसम की एक खामोश रात. उसके बाद उसे दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ फिर सुनाई दी.

लैंप की रोशनी झुंड में खड़े आदमियों के चेहरों पर पड़ी और तुरंत बुझ गई.

“इन चीजों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है,” डामियाना सिस्नेरो ने कहा और खिड़की बंद कर ली.

 

 

५८.
लेखक

 

“मैंने सुना, तुम्हारी खूब धुलाई हुई है. तुमने यह क्यों होने दिया, दमाज़ियो?”

“आपने ग़लत सुना है, मालिक. मुझे कुछ नहीं हुआ है. मैंने एक भी आदमी नहीं खोया. उलटे अब मेरे पास सात सौ आदमी हैं और कुछ पिछलग्गू भी अलग से. असली कहानी यह है कि कुछ पुराने साथी, कुछ रोमांचक न होने के कारण बोर होने लगे और एक दिन गश्ती सिपाहियों पर गोलियाँ बरसाने लगे. पता चला, वह तो पूरी सेना थी. वही विलाइस्तास के लोग. आपको तो पता होगा.”

“वे लोग किधर से आए थे?”

“उत्तर से, अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को तहस-नहस करते हुए. लगता है, जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, वे लोग इस इलाके का कोना-कोना छान रहे हैं और यहाँ की हर बात जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं. वे बड़े ताकतवर लोग हैं. आप उनका मुकाबला नहीं कर पाएँगे.”

“तुम भी उनके साथ क्यों नहीं मिल जाते? मैंने पहले ही कहा था कि जो भी जीत रहा हो, उन्हीं की तरफ हमें हो जाना है.”

“यही मैंने किया मालिक.”

“तो फिर यहाँ क्यों आए हो?”

“हमें पैसों की ज़रूरत है, मालिक. हम मीट खा-खाकर बोर हो चुके हैं. अब हमें उसमें कोई स्वाद नहीं मिलता. और हमें कोई उधार भी नहीं देना चाहता. इसलिए हम लोग यहाँ आए हैं कि आप हमारे लिए थोड़े से राशन का इंतज़ाम कर देंगे तो हमें यहाँ-वहाँ चोरी-चकारी नहीं करनी पड़ेगी. अगर हम यहाँ से कहीं बहुत दूर होते तो दिक्कत नहीं थी. वहाँ स्थानीय लोगों से हम थोड़ा-बहुत “उधार” ले ही लेते. लेकिन यहाँ आसपास के सब लोग अपने रिश्तेदार हैं, उन पर डाका डालना हमें बुरा लगता है. हमें सिर्फ थोड़ा सा रुपया चाहिए, सिर्फ खाने-पीने की चीजें खरीदने के लिए, कुछ टॉर्टिला और हरी मिर्चियाँ ही मिल जाएँ, बहुत है. हम लोग मीट खा-खाकर पक गए हैं.”

“तो अब तुम मुझी से उगाही करने लगे, दमाज़ियो?”

“अरे नहीं, मालिक. मैं तो अपने आदमियों के लिए भीख मांग रहा हूँ. अपने लिए मुझे कुछ नहीं चाहिए.”

“यह बड़ी अच्छी बात है कि तुम अपने आदमियों की इतनी देखभाल करते हो लेकिन इसके लिए ज़रूरी चीज़ें प्राप्त करने के लिए तुम्हें कहीं और जाना चाहिए. मैं पहले ही तुम्हें पैसे दे चुका हूँ. जितना मिला है, उतने में संतोष कर लो. मैं तुम्हें कोई सलाह नहीं देना चाहता लेकिन तुमने अभी तक कोंटला पर चढ़ाई करने के बारे में कुछ नहीं सोचा. फिर तुम कैसे कहते हो कि तुम क्रांति के लिए लड़ रहे हो? कोई मूर्ख ही भीख मानकर गुज़ारा करेगा. इससे अच्छा तो ये होगा कि जाकर मुर्गियाँ पालने में अपनी बीबी की मदद करो. …जाओ जाकर किसी शहर को लूटो! क्रांति के लिए तुम इतना खतरा मोल ले रहे हो तो क्यों नहीं दूसरे भी उसमें अपना हिस्सा डालें? कोंटला में पैसे वाले लोग भरे पड़े हैं. उनसे भी तो कुछ खुरचकर लाओ. कहीं तुम अपने आपको उनकी आया तो नहीं समझते कि तुम्हें उनकी इतनी चिंता करने की ज़रूरत है. नहीं दमाज़ियो. उन्हें बताओ कि तुम सिर्फ मौज-मस्ती के लिए यहाँ-वहाँ नहीं घूम रहे हो. थोड़ा उन्हें भी हिलाओ-डुलाओ, थोड़ा हाथ मरोड़ो, झिंझोड़ो. फिर देखना कैसे कलदार निकलते हैं.”

“जैसा आपने बताया, वही करूँगा, मालिक. आपकी सलाह पर मैंने हमेशा भरोसा किया है.”

“अब उसका कुछ फायदा भी उठाओ.”

पेद्रो पारामो उन लोगों को जाते हुए देखता रहा. कुछ देर उसे अंधेरे में गुम होते हुए घोड़ों की टापें सुनाई देती रहीं. पसीना और धूल; थरथराती सड़क. जब आकाश में जुगनुओं का प्रकाश झिलमिलाने लगा तब उसे होश आया कि सारे लोग चले गए हैं. सिर्फ वह बचा है, अकेला, जीवट. मजबूत वृक्ष की तरह भीतर से सड़ता हुआ.

उसने सुज़ाना सान ज़ुआन के बारे में सोचना शुरू किया. फिर उस जवान लड़की के बारे में, जिसके साथ वह अभी-अभी सोकर आया था. उसके छोटे से, घबराहट में काँपते शरीर के बारे में और उसकी छाती में धमकते हृदय के बारे में जो लगता था, बाहर कूद पड़ेगा. “तुम कितनी छोटी सी, प्यारी सी बच्ची हो,” कहते हुए उसने उसे गले लगा लिया था, यह सोचते हुए कि काश यह सुज़ाना सान ज़ुआन में परिवर्तित हो जाए. “वह औरत, जो इस दुनिया की है ही नहीं.”

 

५९.
लेखक

 

सुबह हो रही है, दिन करवट ले रहा है, कभी ठिठक जाता है तो कभी फिर शुरू हो जाता है. धरती के जंग खाए कलपुर्ज़े लगभग सुनाई देते हुए लगते हैं: पुरातन धरती का कंपन अंधेरा दूर कर रहा है.

“क्या यह सही है जस्टीना, कि रात पापों से भरी हुई है?”

“हाँ, सुज़ाना.”

“वाकई?”

“शायद निश्चित ही, सुज़ाना.”

“अगर जीवन पाप नहीं है तो फिर क्या है, जस्टीना? इस बारे में क्या सोचती हो तुम? क्या तुम्हें सुनाई नहीं देता? क्या तुम्हें धरती की चरमराहट सुनाई नहीं देती?”

“नहीं सुज़ाना, मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है. मेरे ऐसे भाग कहाँ! वह तुम्हारे भाग्य जैसा भव्य नहीं है.”

“तुम डर के मारे काँपने लगोगी. मैं सच कह रही हूँ कि जो मैं सुन रही हूँ, अगर तुम सुन लो तो थरथर काँपने लगो.”

जस्टीना कमरे की सफाई करती रही. पोंछे को गीले फर्श पर लगातार रगड़ती रही. टूटे फूलदान के बिखरे पानी को उसने सुखाया. फूल उठाकर अलग रखे. काँच के किरचों को इकट्ठा करके कचरे की बाल्टी में फेंक दिया.

“आज तक तुमने कितनी चिड़ियों को मारा होगा, जस्टीना?”

“अनगिनत, सुज़ाना.”

“और उन्हें मारते हुए तुम्हें कभी दुख नहीं हुआ?”

“हुआ था, सुज़ाना.”

“तो फिर तुम किस बात का इंतजार कर रही हो? मर क्यों नहीं जाती?”

“मैं मौत का इंतजार कर रही हूँ, सुज़ाना.”

“इंतज़ार कर रही हो तो वह आकर रहेगी. फिक्र मत करो.”

सुज़ाना सान ज़ुआन तकिए से टिककर बैठी थी. उसकी व्याकुल आँखें हर कोने में कुछ खोज रही थीं. उसके हाथ पेट पर सुरक्षा कवच की तरह कसकर जमे हुए थे. अपने सिर पर उसे मक्खियों की भिनभिनाहट का स्वर सुनाई दे रहा था. और बाहर कुएँ पर पानी निकालने की घिर्रियों की चरमराहट. लोगों के जागने की ध्वनियाँ.

“तुम नरक पर विश्वास करती हो, जस्टीना?”

“हाँ, सुज़ाना. और स्वर्ग पर भी.”

“मैं सिर्फ नरक पर विश्वास करती हूँ,” सुज़ाना ने कहा और आँखें बंद कर लीं.

जब जस्टीना कमरे से बाहर आई तब तक सुज़ाना सान ज़ुआन फिर से सो गई थी जबकि बाहर सूरज चमकने लगा था. हाल में जस्टीना की मुलाक़ात पेद्रो पारामो से हो गई.

“सेन्योरा कैसी है?”

“बहुत बुरी हालत है,” सिर झुकाकर उसने कहा.

“किस बात की शिकायत करती है?”

“शिकायत कुछ नहीं, सेन्योर. उसने किसी भी बात की शिकायत करना छोड़ दिया है. लोग कहते हैं कि मरे हुए लोग शिकायत नहीं करते. हम सबने सुज़ाना को खो दिया है, मालिक.”

“क्या फादर रेंटेरिया उसे देखने आए थे?”

“वे कल उसका कंफेशन सुनने आए थे. उसे आज कम्यूनियन लेना था लेकिन वह अभी ‘स्टेट ऑफ़ ग्रेस’, ईश्वर की कृपा में नहीं होगी क्योंकि पादरी रेंटेरिया वह लेकर ही नहीं आए थे. उन्होंने कहा था कि आज सबेरे जल्दी आएँगे लेकिन, जैसा कि आप देख ही रहे हैं, सूरज चढ़ चुका है और वे अभी तक नहीं आए. वह निश्चित ही ‘स्टेट ऑफ़ ग्रेस’ में नहीं होगी.”

“किसकी कृपा?”

“ईश्वर की कृपा, सेन्योर.”

“पागल तो नहीं हो, जस्टीना.”

“जो भी कह लें आप, सेन्योर.”

पेद्रो पारामो दरवाज़ा खोलकर वहीं खड़ा हो गया. सुज़ाना सान ज़ुआन के चेहरे पर प्रकाश की किरणें झिलमिलाने लगीं. उसने देखा कि सुज़ाना की आँखें कसकर बंद हैं जैसे दर्द के कारण बंद हों. उसका गीला मुख आधा खुला हुआ था. उसके बेसुध हाथों ने उसके बदन पर से कंबल हटाकर पीछे फेंक दिया था और उसके नंगे शरीर में ऐंठन के झटके शुरू हो चुके थे जैसे मिर्गी का दौरा पड़ने वाला हो.

बिस्तर की ज़रा सी दूरी को पार कर वह सुज़ाना के करीब आया और उसकी कीड़े की तरह छटपटाती देह को ढँक दिया. वह अब और प्रचंड गति से ऐंठ रही थी. उसने उसके कानों में पुकारा, “सुज़ाना!” फिर दोहराया, “सुज़ाना!”

तभी दरवाज़ा खुला और फादर रेंटेरिया ने खामोशी के साथ भीतर प्रवेश किया. पास आकर उसने कहा:

“मैं तुम्हें कम्युनियन देने आया हूँ, मेरे बच्चे.”

जब तक पेद्रो पारामो सुज़ाना को बिठाकर उसका सिर तकिए के सहारे पलंग के सिरहाने टिकाकर रखता, उसने इंतज़ार किया. सुज़ाना ने, जो उस समय भी नींद में थी, मुँह खोलकर जीभ बाहर निकाली और जो भी मुँह में आया, निगल लिया. फिर उसने कहा, “तुम्हारे साथ आज का दिन बड़ा शानदार बीता, फ्लोरेंसियो.” और वापस अपनी चादरों के मकबरे में लौट गई.

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

६०.
लेखक

 

“तुम वह खिड़की देख रही हो, डोना फाउस्टा? उधर, मेडिया लूना की तरफ, जहाँ हर वक़्त प्रकाश होता है?”

“ना, एंजेलेस. मुझे तो कोई खिड़की दिखाई नहीं देती.”

“इसलिए कि अब उस कमरे में अंधेरा है. तुम्हें क्या लगता है, इसका यही मतलब है कि वहाँ कुछ न कुछ अशुभ हो रहा है? उस कमरे में पूरे तीन साल से लगातार, हर रात लाइट जलती रहती थी. जो लोग वहाँ जा चुके हैं, बताते हैं कि वह पेद्रो पारामो की पत्नी का कमरा है. बेचारी पागल औरत जो अंधेरे में डरती है. और अब देखो, लाइट नहीं है. क्या यह अशुभ संकेत नहीं है?”

“हो सकता है वह मर गई हो. वह बुरी तरह बीमार थी. लोग बताते हैं कि वह अब किसी को नहीं पहचानती और यह कि अपने आप से बातें करती है. पेद्रो पारामो को यह ठीक सज़ा मिली कि उस औरत से शादी हुई.”

“बेचारा डॉन पेद्रो.”

“नहीं फाउस्टा, वह इसी के लायक था. बल्कि इससे ज़्यादा के.”

“देखो, खिड़की में अभी भी अंधेरा है.”

“चलो, खिड़की को मारो गोली. अब घर चलते हैं, सोते हैं. सड़कों पर इतनी रात गए घूमना-फिरना हम जैसी औरतों के लिए ठीक नहीं.”

और इस प्रकार वे दोनों औरतें, जो लगभग ग्यारह बजे चर्च होते हुए इधर आ गई थीं, गलियारे की छत के नीचे गायब होने ही वाली थीं कि उन्होंने देखा, एक व्यक्ति की छाया प्लाज़ा पार करके मेडिया लूना की दिशा में चली जा रही है.

“देखो, डोना फाउस्टा. क्या उधर जा रहा वह आदमी डॉक्टर वलेंसिया जैसा नहीं लगता?”

“लगता तो है. लेकिन मैं इतनी अंधी हो चुकी हूँ कि वह सामने भी आ जाए तो मैं उसे पहचान नहीं पाऊँगी.”

“लेकिन तुम्हें याद होगा, वह ऐसी ही सफेद पैंट और काला कोट पहनता है. मैं शर्तिया कह सकती हूँ कि मेडिया लूना में कुछ न कुछ बुरा हो रहा है. देखो, कैसे तेज़ी से चला जा रहा है, जैसे उसके पास इतनी जल्दबाज़ी मचाने का कोई खास कारण हो.”

“इससे तो यही लगता है कि वास्तव में बहुत चिंता की कोई बात है. मुझे लगता है कि मुझे जाकर पादरी रेंटेरिया को वहाँ भेजना चाहिए. उस बेचारी औरत को बिना कंफेशन के नहीं मरना चाहिए.”

“भगवान माफ़ करें, एंजेलेस. कितना भयंकर खयाल है. क्योंकि जितना दुख उसने इस दुनिया में झेला है, कोई नहीं चाहेगा कि अंतिम क्रिया-कर्म हुए बगैर वह दूसरी दुनिया में जाए और वहाँ सदा-सदा के लिए यातनाएँ सहती रहे. हालांकि मनोविज्ञान कहता है कि पागलों के लिए कंफेस करना ज़रूरी नहीं है और भले ही उनकी आत्मा में पाप ही पाप हों, वे निर्दोष ही होते हैं. भगवान जाने…. देखो! अब उस खिड़की में फिर से प्रकाश दिखाई दे रहा है. मुझे उम्मीद है कि सब कुछ ठीक-ठाक होगा. अगर उस घर में कोई मरा होगा तो सोचो, क्रिसमस के लिए इतनी मेहनत से हमने जो सजावट की है, उसका क्या होगा. डॉन पेद्रो जैसे प्रभावशाली आदमी का बुरा हुआ होगा तो समझो हमारा समारोह तो गया बारा के भाव में.”

“तुम हमेशा बुरा से बुरा सोचती हो, डोना फाउस्टा. तुम्हें वह करना चाहिए जो मैं करती हूँ: सब कुछ भगवान की मर्ज़ी पर छोड़ दो. वर्जिन मेरी के लिए एक आवे मारिया कहो और फिर मुझे विश्वास है कि अभी और सबेरा होने के बीच कोई गड़बड़ नहीं होगी. और फिर ईश्वर की मर्ज़ी को कौन टाल सकता है. आखिर, वह बेचारी भी इस जीवन में सुखी नहीं रही है.”

“सच में एंजेलेस, मुझे हमेशा तुम्हारी बातों से शांति मिलती है. अब मैं तुम्हारे विचार दिमाग़ में रखकर सो जाऊँगी. लोग कहते हैं कि सोते वक़्त आने वाले विचार सीधे स्वर्ग पहुँचते हैं. उम्मीद करती हूँ कि मेरे विचार वहाँ तक ज़रूर पहुँच जाएँगे. चलें, कल मिलते हैं.”

“जरूर, फाउस्टा. कल तक के लिए गुड नाइट.”

दोनों औरतें अपने-अपने घरों के अधखुले दरवाजों से भीतर चली गईं. और गाँव पर फिर से रात का सन्नाटा काबिज हो गया.

 

६१.
लेखक

 

“मेरे मुँह में धूल भरी हुई है.”

“जी, फादर.”

“जी, फादर” मत कहो. जो शब्द मैं कह रहा हूँ, उन्हें दोहराओ.”

“आप क्या कहने वाले हैं, फादर? क्या आप चाहते हैं कि मैं फिर से कंफेस करूँ? फिर से क्यों?”

“यह कंफेशन नहीं है, सुज़ाना. मैं सिर्फ तुमसे बात करने आया हूँ. मृत्यु के लिए तुम्हें तैयार करने.”

“क्या मैं मरने वाली हूँ?”

“हाँ, बेटी.”

“फिर मुझे कुछ देर शांति से क्यों नहीं रहने देते? मैं आराम करना चाहती हूँ. ज़रूर किसी ने आपसे मुझे जगाए रखने के लिए कहा होगा. तब तक मेरे पास बैठने के लिए जब तक नींद हमेशा-हमेशा के लिए चली नहीं जाती. फिर मैं उसे ढूँढ़ने का क्या उपाय करूँगी? कुछ नहीं, फादर. आप लोग मुझे अकेला छोड़ कर चले क्यों नहीं जाते?”

“मैं तुम्हें शांति प्रदान करूँगा, सुज़ाना. जब तुम मेरे शब्दों को दोहराओगी तो लगेगा जैसे तुम अपने लिए लोरी गा रही हो और फिर तुम धीरे-धीरे सो जाओगी. और एक बार तुम सो गई तो फिर तुम्हें कोई भी नहीं जगाएगा…तुम कभी नहीं जागोगी.”

“ठीक है, फादर. मैं अब वही करूँगी जो आप कहेंगे.”

फादर रेंटेरिया बिस्तर के किनारे बैठ गया. उसने सुज़ाना के कंधों पर हाथ रखा, सिर झुकाकर और अपने मुँह को उसके कानों के अत्यंत नजदीक ले जाकर, जिससे दूसरा कोई उनकी आवाज़ न सुन सके, बहुत धीमे, स्पष्ट और रहस्यमय स्वर में फुसफुसाने लगा: “मेरे मुँह में धूल भरी हुई है.” फिर वह रुका और गौर से उसके होठों की तरफ देखा कि वे हिल रहे हैं या नहीं. उसके मुँह से निकलते शब्दों को उसने सुनने की कोशिश की लेकिन शब्द सुनाई नहीं दिए:

“मेरे मुँह में तुम समाए हुए हो, मेरे मुँह में तुम्हारा मुँह है. मजबूती से कसे हुए तुम्हारे होंठ, मेरे होठों को दबाते हुए, उन्हें काटते हुए….”

वह भी कुछ देर रुकी. उसने आँखों की कोर से फादर रेंटेरिया की ओर देखा; उसे वह बहुत दूर प्रतीत हुआ जैसे कुहासे से ढँके काँच के पीछे खड़ा हो.

उसे फिर फादर रेंटेरिया की आवाज़ सुनाई दी, उसके कानों में भाप की तरह गरम:

“मैं फेनिल लार निगल रही हूँ; मैं मुट्ठी भर-भरकर कीड़ों वाली मिट्टी चबा रही हूँ जो एक गोले की तरह मेरे गले में अटक जाती है और पूरी ताकत के साथ मेरे तालू में चिपक जाती है. मेरा मुँह बेहाल है, विकृत हो गया है, दाँत जैसे उसे कुतर डालते हैं और वह जगह-जगह कट-फट जाता है, लुंज-पुंज हो जाता है. मेरी बहती नाक में दलदल बन जाता है. मेरी आँखों की पुतलियाँ गल जाती हैं. मेरे बाल एक प्रज्वलित प्रकाश में धधक उठते हैं…”

वह सुज़ाना सान ज़ुआन का धैर्य देखकर आश्चर्यचकित रह गया. वह चाहता था कि वह उसके सोच को पढ़ सके और उसे उन बिंबों से मुक्त होने के लिए संघर्ष करता देख सके जिन्हें वह उसके भीतर उतार रहा था. उसने उसकी आँखों की तरफ देखा और सुज़ाना ने भी उसकी आँखों में अपनी आँखें गड़ा दीं. लगा जैसे सुज़ाना के काँपते होंठ हल्की मुस्कान में बदल गए हैं.

“अभी और है. ईश्वर का साक्षात्कार. उसके अनंत स्वर्ग का कोमल प्रकाश. चेरबिम का हर्षोल्लास और सेराफम का गीत. अंत में ईश्वर की आँखों में उल्लास और पापियों की चिर-यंत्रणा की छोटी सी झलक. सांसारिक क्लेश से जुड़ी चिर-यंत्रणा. हमारी हड्डियों की मज्जा जीवित अंगारों में तब्दील हो जाती है और हमारी नसों में बहने वाला रक्त आग की चिंगारियों में, जो हमें ऐसी अविश्वसनीय वेदना पहुँचाता है जो कभी कम नहीं होती क्योंकि वह ईश्वर के कहर द्वारा लगातार प्रज्वलित रखी जाती है.”

“उसने मुझे अपनी बाँहों का सहारा दिया. उसने मुझे प्यार दिया.”

फादर रेंटेरिया ने अपने आसपास जमा लोगों को गौर से देखा जो अंतिम पल का इंतज़ार कर रहे थे. पेद्रो पारामो बाहें मोड़े दरवाज़े के पास खड़ा इंतज़ार कर रहा था. डॉक्टर वलेंसिया और दूसरे लोग उसके पास खड़े थे. फिर फादर थोड़ा हटकर अंधेरे में जाकर बैठ गया और यह देखकर औरतों का एक छोटा सा समूह मृतक के लिए प्रार्थना शुरू करने के लिए बेताब होने लगा.

वह उठकर मरने वाली औरत के शरीर पर पवित्र तेल चुपड़ना चाहता था और कहना चाहता था, “मेरा काम हो गया.” लेकिन नहीं, उसका काम अभी खत्म नहीं हुआ था. मरने वाले के पश्चाताप का आंकलन किए बिना वह परम संस्कार, सेक्रमेन्ट संपन्न नहीं करा सकता था.

वह झिझका. शायद ऐसा कुछ था ही नहीं जिसके लिए सुज़ाना को पश्चाताप करना पड़े. शायद ऐसी कोई बात नहीं थी जिसकी उसे क्षमा प्रदान करनी पड़े. वह एक बार फिर उसकी तरफ झुका और उसके कंधे पकड़कर झकझोरते हुए बहुत धीमी आवाज़ में बोला:

“तुम ईश्वर के पास जा रही हो. और वह पापियों का न्याय करते हुए बहुत क्रूर हो जाता है.”

उसके बाद उसने एक बार और सुज़ाना के कानों में कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उसने अपना सिर झटका और कहा:

“चले जाओ, फादर. मेरे लिए इतना परेशान न हों. मैं सुकून से हूँ और मुझे बहुत नींद आ रही है.”

छाया में छिपी बैठी एक औरत के मुँह से तेज़ सिसकी फूट निकली.

सुज़ाना सान ज़ुआन पल भर के लिए सचेत दिखाई दी. वह बिस्तर पर सीधी बैठ गई और कहा:

“जस्टीना, अगर इतना रोना आ रहा है तो कहीं और जाकर रोओ.!”

उसके बाद उसे लगा जैसे उसका सिर उसके पेट पर गिर गया है. उसने उसे ऊपर उठाने की कोशिश की, पेट को एक तरफ हटाना चाहा क्योंकि उसकी आँखों और नाक पर उसका दबाव बढ़ता जा रहा था, जिसके कारण साँस लेना मुश्किल हो रहा था, लेकिन हर प्रयास के साथ वह रात के अंधेरे में और गहरे धँसती जा रही थी.

 

६२.
लेखक

 

“मैं…मैंने डोना सुज़ाना को मरते देखा.”

“तुम क्या कह रही हो, डोरोटिया?”

“जो मैंने अभी-अभी तुमको बताया.”

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

६३.
लेखक

 

प्रातःकाल. गाँव के लोग घंटियों के आवाज़ से जाग उठे. वह दिसंबर की आठ तारीख की सुबह थी. एक मैली सुबह. ठंडी नहीं बल्कि मैली. धूसर. सबसे विशाल घंटे के साथ घंटियों का बजना शुरू हुआ. ताल से ताल मिलाकर दूसरी घंटियों ने बजना शुरू किया. कुछ लोगों ने सोचा कि घंटियाँ हाई मास के उपलक्ष्य में बज रही हैं और उनके घरों के दरवाज़े पूरे खुल गए. लेकिन सभी दरवाज़े नहीं खुले. कुछ बंद रहे आए, जहाँ आलसी और अकर्मण्य लोग बिस्तर में घुसे सोते रहे और इंतज़ार करते रहे कि घंटियाँ खुद आकर सूचित करेंगी कि सबेरा हो चुका है. किंतु घंटियों का बजना वाजिब से अधिक देर तक जारी रहा. और सिर्फ बड़े गिरजे की घंटी नहीं, सांग्रे डि-क्रिस्टो, क्रूज़ वर्दे, और सांतुआरिओ की घंटियाँ भी देर तक बजती रहीं. दोपहर हुई और घोष जारी रहा. रात भी हो गई. और दिन और रात, घंटियाँ जारी रहीं, एक साथ सब, तेज़ और ठोस, और अंत में घंटियों का स्वर आपस में मिलकर कानफोड़ू विलाप में बदल गया. आपस में बात करते हुए लोगों को चिल्लाकर बताना पड़ता था कि वे क्या कह रहे हैं.”क्या हो सकता है?” वे आश्चर्य से एक-दूसरे से पूछते.

तीन दिन बाद हर व्यक्ति बहरा हो चुका था. हवा में घुली झंकार में आपस में बात करना असंभव था. लेकिन घंटियाँ बजती ही रहीं, बजती ही रहीं. कुछ फटी आवाज़ में जैसे ख़ाली घड़े की आवाज़.

“डोना सुज़ाना मर गई.”

“मर गई? कौन?”

“सेन्योरा.”

“तुम्हारी सेन्योरा?”

“पेद्रो पारामो की सेन्योरा.”

घंटियों के निनाद से आकर्षित होकर आसपास की दूसरी जगहों से लोगों का आना शुरू हो गया. कोंटला से भीड़ की भीड़ चली आई जैसे तीर्थयात्रा पर निकले हों. और भी आगे से. न जाने कहाँ से एक सर्कस आ गया, हिंडोलों और झूलों के तामझाम के साथ. और नाचने, गाने वाले. शुरू में वे तमाशबीनों की तरह आए पर कुछ समय बाद उन्होंने वहीं डेरा जमा लिया और सड़कों, चौराहों पर अपने खेल दिखाने लगे. इस प्रकार, धीरे-धीरे वह घटना एक बड़े समारोह में तब्दील हो गई. कोमाला में लोगों का हुजूम लगा था, भड़कीला और कोलाहलपूर्ण, उसी तरह जैसे उत्सवों में गाँव में चलना-फिरना दूभर हो जाता है.

आखिर घंटियों का बजना रुका लेकिन उत्सव जारी रहा. लोगों को यह समझाने का कोई तरीका कारगर नहीं था कि यह एक मातमी अवसर है, विलाप का समय. और न ही कोई तरीका उन्हें वहाँ से जाने के लिए मनाने का समझ में आता था. बिलकुल विपरीत, अभी भी लोग आते ही जा रहे थे. बड़ी संख्या में.

मेडिया लूना अकेला रह गया और खामोश. नौकर नंगे पैर इधर से उधर घूमते रहते और बहुत धीमे स्वर में बात करते. सुज़ाना सान ज़ुआन दफना दी गई और कोमाला में महज कुछ लोगों को ही इसका पता चला. वे लोग उत्सव मना रहे थे. वहाँ मुर्गियाँ लड़ाई जा रही थीं, लॉटरी चल रही थी और पियक्कड़ों के झुंड के झुंड शोर मचाते सड़कों पर घूम रहे थे. गाँव का प्रकाश मेडिया लूना तक पहुँच रहा था, काले आसमान में किसी प्रभामंडल की तरह. क्योंकि मेडिया लूना के लिए वे दिन काले दिन थे, विषाद के दिन थे. डॉन पेद्रो किसी से कोई बात नहीं करता था. अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलता था. उसने क़सम खाई कि वह कोमाला से भयंकर बदला लेगा:

“मैं हाथ बांधकर, बाहों का क्रॉस बनाकर खड़ा हो जाऊँगा तो कोमाला भूख से तड़प-तड़प कर मर जाएगा.” और यही हुआ.

 

६४.
पेद्रो पारामो

 

एल तिल्कुएट अपनी खबर बराबर देता रहता था- “अब करांज़ा के साथ हूँ.”

“बढ़िया.”

“अब हम लोग जनरल ओब्रेगोन के साथ धावा बोल रहे हैं.”

“बढ़िया.”

“उन्होंने शांति की घोषणा कर दी है. हम लोग डिसमिस हो गए हैं.”

“अभी रुको. अपने गिरोह को अभी मत तोड़ना. यह ज़्यादा दिन नहीं चलेगा.”

“फादर रेंटेरिया भी लड़ाई में कूद पड़े हैं. हमें उनके साथ रहना है या उनके खिलाफ़?”

“बेकार का प्रश्न है. तुम लोग सरकार की तरफ हो.”

“लेकिन हम लोग अनियमित सैनिक हैं. वे हमें विद्रोही मानते हैं.”

“फिर घर बैठकर आराम करो.”

“मेरे जैसा जोशीला और गुस्से वाला…?”

“फिर जो मर्ज़ी हो, करो.”

“मैं उस पादरी पर दाँव लगाता हूँ. मुझे इन लोगों का चीखना-चिल्लाना पसंद है. इसके अलावा, उनके साथ रहने पर मोक्ष मिलना तय है.”

“तुम क्या करते हो, मुझे कोई मतलब नहीं.”

 

६५.
लेखक

 

पेद्रो पारामो मेडिया लूना के मुख्य दरवाज़े के पास अपनी पुरानी कुर्सी पर बैठा था जब रात के अंतिम साए चुपके से सटकने ही वाले थे. वह अकेला पिछले तीन घंटों से वहीं बैठा था. वह अब सोता नहीं है. वह भूल गया है कि नींद क्या होती है या समय क्या होता है. “हम बूढ़े लोग ज़्यादा नहीं सोते, लगभग नहीं सोते. हम ऊँघ सकते हैं लेकिन हमारा दिमाग़ काम करता रहता है. अब मेरे पास सिर्फ यही काम रह गया है.” फिर उसने जोड़ा, ज़ोर से: “अब ज़्यादा देर नहीं है. ज़्यादा समय नहीं बचा है.”

और आगे और भी: “सुज़ाना, तुम्हें गए काफी वक़्त हो चुका है. प्रकाश उसी तरह चमक रहा है जैसे पहले चमकता था; उतना लाल नहीं लेकिन वैसा ही फीका सा प्रकाश, ओस की सफ़ेद चादर में लिपटा. अभी की तरह. और ठीक यही समय था. मैं यहीं दरवाज़े पर बैठा सूरज का निकलना देख रहा था और उधर तुम उस तरफ स्वर्ग के रास्ते चल पड़ी थी, जहाँ आकाश में प्रकाश चमकने लगा था, मुझे छोड़कर जो इस पृथ्वी के सायों के बीच क्रमशः फीका, और फीका और निस्तेज होता जा रहा था.

“तब आखिरी बार मैंने तुम्हें देखा था. जाते हुए रास्ते में तुम पैराडाइस ट्री की शाखाओं को छूती चली गई थी. उसके आखिरी पत्तों को साथ लेकर तुम ओझल हो गई. मैंने तुम्हें पुकारा, “आ जाओ, सुज़ाना! वापस आ जाओ!”

पेद्रो पारामो के होंठ चलते रहे, शब्दों को फुसफुसाते हुए. फिर जैसे उसने होंठों को एकत्र किया और दबाया. उसने आँखें खोलीं और देखा, उधर जहाँ सुबह का पीला प्रकाश चमक रहा था. दिन की शुरुआत हो रही थी.

 

पेंटिंग: रवीन्द्र व्यास

६६.
लेखक

 

ठीक उसी समय गमेलिओ विलालपांडो की माँ, डोना ईनेस ने, जो अपने बेटे की दुकान के सामने सड़क पर झाड़ू लगा रही थी, अबुंडियो मार्टिनेज़ को दुकान का अधखुला दरवाज़ा ठेलकर भीतर जाते देखा. उसने काउंटर के पीछे गमेलिओ को सोते देखा. उसने मक्खियों  से बचने के लिए अपनी टोपी मुँह पर ढाँप रखी थी. अबुंडियो कुछ देर उसके जागने का इंतज़ार करता रहा. फिर वह डोना ईनेस का इंतज़ार करने लगा और जब वह झाड़ू निपटा चुकी और आई तो सबसे पहले अपने बेटे की पसलियों में झाड़ू भोंकते हुए कहा:

“देखो, यहाँ ग्राहक़ खड़ा है और तुम सो रहे हो! उठो तुरंत!”

गमेलिओ ने चिड़चिड़ाते हुए आँखें खोलीं और कराहते हुए उठकर बैठ गया. देर से उठने के कारण और देर रात तक पियक्कड़ों के जाने का इंतज़ार करते रहने-बल्कि खुद उनके साथ बैठकर पीते रहने- के कारण उसकी आँखें लाल हो रही थीं. अब काउंटर पर बैठकर वह अपनी माँ को, खुद अपने आपको और अपने जीवन को लगातार कोस रहा था, “जिसकी कीमत बिल्ली के गू के बराबर भी नहीं है.” फिर वह नीचे आ गया और पैरों के बीच दोनों हाथ फँसाकर फिर लेट गया. उसे तुरंत नींद आ गई और वह नींद में ही बड़बड़ाता रहा:

“पियक्कड़ भोसड़ी के इतनी रात गए आते रहेंगे तो इसमें मेरा क्या दोष?”

“अरे, अरे…मेरा बच्चा…. उसे माफ़ करना अबुंडियो. बिचारा रात भर कुछ यात्रियों के जाने का इंतज़ार करता रहा. जितना वे पीते जाते उतने ही वे लड़ने-झगड़ने लगते. खैर, तुम बताओ, इतने सबेरे तुम क्या लेने यहाँ आए हो?”

बोलते हुए वह लगभग चीख रही थी क्योंकि अबुंडियो कम सुनता था.

“मुझे एक बोतल शराब चाहिए.”

“क्या रेफुजिओ फिर बेहोश हो गई है?”

“नहीं, वह कल रात मर गई, माद्रे वीला. कल रात, लगभग ग्यारह बजे. मैं अपने गधे बेचकर आया, लेकिन तब तक वह मर चुकी थी. मैंने अपने गधे तक बेच डाले कि उसका कुछ इलाज करा सकूँ.”

“क्या कह रहे हो, मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया. क्या कहा तुमने? तुम मुझे क्या बता रहे हो?”

“मैंने कहा कि कल सारी रात मैंने अपनी मृत बीबी रेफुजिओ के पास बैठे-बैठे बिता दी. उसने कल रात अपने भूत को बिदा कर दिया.”

“मैं जानती थी कि मुझे मौत का एहसास हुआ है. यह बात मैंने गमेलिओ से कही थी: “मुझे महसूस हो रहा है कि कोई न कोई मरा है. मुझे मौत की गंध आ रही है.” लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया.

“उन पियक्कड़ यात्रियों के साथ अच्छे संबंध बनाने के चक्कर में वह खुद बहुत ज़्यादा पी गया. तुम जानते हो कि जब वह इस हालत में होता है तो किस हालत में होता है. वह हर चीज़ को मज़ाक समझने लगता है और किसी बात की तरफ ध्यान नहीं देता. खैर छोड़ो, काम की बात करें. तुमने जागरण के लिए किसी को बुलावा भेजा?” “किसी को नहीं बुला पाया, माद्रे वीला. इसी ग़म को भुलाने के लिए मुझे शराब चाहिए. पूरी एक बोतल.”

“नीट लोगे या…?”

“नीट. जिससे नशा जल्दी चढ़ जाए. और ज़रा जल्दी. तुरंत.”

“मैं तुम्हें एक पिंट की कीमत में दो पिंट दूंगी क्योंकि यह तुम हो. मैं चाहती हूँ कि तुम जाकर अपनी मृत बीबी से कहो कि मैं हमेशा उसका भला चाहती रही हूँ और जब वह स्वर्ग-द्वार के सामने खड़ी हो तो मुझे ज़रूर याद करे.”

“ज़रूर कह दूंगा, माद्रे वीला.”

“वह ठंडी पड़ जाए, उससे पहले ही जाकर कह डालो.”

“मैं कह दूँगा. मैं जानता हूँ कि उसे पूरी आशा है कि तुम उसके लिए अवश्य प्रार्थना करोगी. वह अत्यंत क्लेश में मरी क्योंकि अंतिम समय में कर्मकांड के लिए उसके पास कोई नहीं था.”

“क्यों? तुम पादरी रेंटेरिया के पास नहीं गए?”

“गया था. लेकिन लोगों ने बताया वह पहाड़ों की तरफ चला गया है.”

“कैसे पहाड़?”

“उधर कहीं, जंगल-पहाड़ों की तरफ. तुम्हें पता है, क्रांति हो रही है.”

“तुम्हारा मतलब है, वह भी उसमें है? हमारी आत्माओं पर ईश्वर की कृपा हो, अबुंडियो.”

“हमें उसकी क्या फिकर, माद्रे वीला? हमारे जीवन में इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है. एक और डालो…. किसी को पता न चले ऐसे…जैसे…. आखिर गमेलिओ अभी सो रहा है.”

“तो फिर किसी भी हालत में रेफुजिओ से कहना मत भूलना कि मेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करे. मुझे सब की मदद चाहिए, जो भी मिले, जहाँ भी मिले.”

“चिंता मत करो. घर पहुँचते ही सबसे पहला काम यही करूँगा. मैं उससे क़सम ले लूँगा. कहूँगा कि तुम्हें यह काम करना ही होगा, नहीं तो चिंता के मारे जीवन भर तुम परेशान रहोगी.”

“बिल्कुल यही. यही चाहती हूँ मैं कि तुम उससे कहो. क्योंकि, तुम तो जानते हो, औरतें कैसी होती हैं. यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होता है कि वे अपना वादा निभा रही हैं या नहीं.”

अबुंडियो मार्टिनेज़ ने और बीस सेंटावो काउंटर पर रखे.

“अब मैं वो वाली लूँगा, सेन्योरा. और अगर तुममें थोड़ी और उदारता है तो…खैर तुम्हारी मर्ज़ी हो तो. एक वादा तुमसे ज़रूर करूँगा कि ये वाली जो है, वह मैं घर पर लूँगा, अपनी दिवंगत पत्नी के साथ; वहाँ, अपनी मैना के पास बैठकर.”

“तो अब जल्दी करो, मेरे बेटे के उठने से पहले. शराब के नशे में जागने के बाद उसका दिमाग़ भन्नाया रहता है. तुरंत घर पहुँचो और अपनी पत्नी से मेरा संदेश कहना मत भूलना.”

अबुंडियो छींकते हुए दुकान से निकला. शराब जैसे आग का गोला थी और क्योंकि उसे किसी ने बताया था कि जल्दी-जल्दी पीने से नशा ज़्यादा तेज़ और तुरंत होता है, शर्ट की बाँह से मुँह में हवा करते हुए उसने एक के बाद एक कई पिंट शराब पी ली थी. वह सीधे घर जाने वाला था जहाँ रेफुजिओ उसका इंतजार कर रही थी लेकिन एक जगह वह ग़लत मोड़ पर मुड़ गया था और नीचे की ओर अपने घर जाने की जगह बड़ी मुश्किल से अपने आपको घसीटता हुआ ऊपर की तरफ चल दिया और वह सड़क कस्बे के बाहर की ओर निकलती थी.

“डामियाना!” पेद्रो पारामो ने पुकारा. “जाकर सड़क पर देखो, इधर आ रहा वह आदमी कौन है.”

अबुंडियो सिर झुकाए लड़खड़ाता हुआ आगे बढ़ रहा था. उसके हाथ नीचे झूल रहे थे और कई बार वह चारों पैरों से भी चलने लगता. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे पृथ्वी एक तरफ झुक रही है; कभी लगता, घूम रही है और उसे एक ओर फेंके दे रही है. वह उस पर पकड़ बनाने की कोशिश करता और जब उसे लगता कि पाँव कसकर जम गए हैं, तभी पृथ्वी फिर घूमने लगती…. अंत में, हुआ यह कि उसने पाया कि वह एक मानवाकृति के सामने खड़ा है, जो अपने घर के सामने कुर्सी लगाकर बैठा है.

“मुझे अपनी बीबी को दफनाने के वास्ते पैसे चाहिए,” उसने कहा. “क्या आप मदद करेंगे?”

डामियाना सिस्नेरो प्रार्थना करने लगी: “शैतान की नज़रों से हमें मुक्त करो, हे ईश्वर.” और उसने अबुंडियो की तरफ हाथ बढ़ाते हुए क्रॉस का निशान बनाया.

अबुंडियो मार्टिनेज़ ने जब एक घबराई सी औरत को अपने सामने खड़ा पाया और उसे क्रॉस का निशान बनाते देखा तो थरथर काँपने लगा. उसे यह डर था कि कहीं उसके पीछे-पीछे शैतान तो नहीं चला आ रहा है, और उसने पीछे मुड़कर देखा. उसे आशा थी कि किसी न किसी भयंकर भेस में शैतान दिखाई देगा लेकिन उधर कोई न था. तब उसने फिर दोहराया:

“मैं अपनी पत्नी को दफनाने के लिए आपसे थोड़ी सी खैरात मांगने आया हूँ.”

सूरज उसके कंधों पर आ गया था. ठंडा, सुबह-सुबह का सूरज, उड़ती धूल के कारण थोड़ा धुंधला. पेद्रो पारामो का चेहरा, जैसे सूरज से बचने की कोशिश कर रहा हो, कंधों पर पड़ी शाल के नीचे लुप्त हो गया और डामियाना की लगातार तेज़ होती चीखें आसपास के खेतों पर फैल गईं: “वे लोग डॉन पेद्रो की हत्या कर रहे हैं!”

अबुंडियो मार्टिनेज़ ने एक औरत को चीखते हुए सुना. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे किस प्रकार रोके और न उसे अपने सोच का कोई सिरा मिल रहा था. उसे लगा कि उस बूढ़ी औरत की चीखें बहुत दूर तक सुनाई दे सकती हैं. यहाँ तक कि उसकी बीबी भी सुन रही होगी क्योंकि चीखें उसके कान के पर्दे फाड़े दे रही थीं, भले ही उसके शब्दों का अर्थ उसे समझ में नहीं आ रहा था. वह घर के आंगन में अकेली, अपनी खाट पर लेटी पत्नी के बारे में सोचने लगा, जिसे वह बाहर ठंडी हवा में निकाल लाया था कि शरीर के सड़ने की रफ्तार कम हो सके. उसकी मैना, जो अभी कल रात तक उसके साथ लेटी हुई थी, जीवन की तरह जीवित, किसी बछिया की तरह उछल-कूद मचाती, नोचती, चुटकी काटती और उसकी छाती में मुँह घुसाकर सूँघती हुई. एक औरत, जिसने उसके लिए एक बच्चा जना था, जो जन्म लेते ही मर गया था क्योंकि, लोगों के बताया, उसकी माँ का शरीर इतना खस्ताहाल था, बीमार, आँखें सूजी हुई, जूड़ीताप में तपता, पेट खराब, और न जाने कौन-कौन सी बीमारियाँ… डॉक्टर ने बताया था. डॉक्टर सब कुछ खत्म होने के बाद आ पाया था, जब उसने अपने गधे बेचकर उसकी फीस जुटाई, तब. कोई उपाय काम नहीं आया…. उसकी मैना, रात की ओस में भीगती, आँखें बंद किए…अब वह यह सुबह नहीं देख पाएगी…यह सूरज…कोई भी सूरज….

“मेरी मदद करो!” उसने कहा. “मुझे थोड़े पैसे चाहिए.”

लेकिन वह अपने शब्द सुन नहीं पाया. औरत की चीखों ने उसे बहरा कर दिया था.

कोमाला से आने वाली सड़क पर छोटे-छोटे काले धब्बे इधर ही आ रहे थे. जल्द ही धब्बे आदमियों में तब्दील हो गए और थोड़ी देर में वे लोग उसके पास खड़े थे. डामियाना सिस्नेरो ने अब चीखना बंद कर दिया था. उसका क्रॉस अपने आप ढीला पड़ गया और जब वह धड़ाम से ज़मीन पर गिरी तब उसका मुँह पूरा खुला हुआ था, जैसे जम्हाई ले रही हो.

उन आदमियों ने उसे ज़मीन से उठाया और भीतर ले गए.

“आप ठीक हैं ना मालिक?” उन्होंने पूछा.

पेद्रो पारामो का सिर दिखाई दिया और वह सहमति में हिला.

उन्होंने अबुंडियो का चाकू छीन लिया, जो अब भी खून में सना उसके हाथ में पड़ा था.

“हमारे साथ चले आओ,” वे बोले. “तुमने खुद को एक खूबसूरत जाल में फँसा लिया है.”

वह उनके पीछे चल दिया.

गाँव पहुँचने से पहले रास्ते में वह उनके सामने गिड़गिड़ाया कि उसे छोड़ दें. सड़क किनारे जाकर उसने पित्त जैसे पीले रंग की उल्टी की. उसके मुँह से उल्टी किसी झरने की तरह बह रही थी मानो उसने दस लीटर पानी पी रखा हो. उसका सिर आग की तरह तप रहा था और उसकी ज़बान बहुत मोटी मालूम हो रही थी.

“मैं नशे में धुत्त हूँ,” उसने कहा.

वह वहाँ वापस आया जहाँ वे आदमी उसका इंतजार कर रहे थे. उसने अपनी बाँहें उनके कंधों पर रख दीं और वे लोग उसे अपने पीछे घसीटते हुए ले चले. उसके पाँव के पंजे धूल में क्यारियाँ बना रहे थे.

 

रोड्रिगो पिएर्तो द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘पेद्रो पारामो ’ से एक दृश्य

६७.
 लेखक

 

और इधर पेद्रो पारामो अब भी कुर्सी पर बैठा हुआ गाँव की तरफ जाते उस जुलूस को देख रहा था. उसने अपना हाथ उठाने की कोशिश की तो वह सीसे के टुकड़े की तरह उसके घुटनों पर गिर पड़ा; लेकिन उसने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. वह रोज़ अपने शरीर के किसी एक हिस्से को मरता देखने का आदी हो चुका था. वह पैराडाइस ट्री के पत्तों का गिरना देख रहा था. “वे सब एक ही रास्ता अपनाते हैं. वे सब के सब चले जाते हैं.” फिर उसके विचार उसी जगह वापस आ गए जहाँ उसने उन्हें अधूरा छोड़ दिया था.

“सुज़ाना,” उसने कहा. उसने अपनी आँखें बंद कीं. “मैंने तुमसे याचना की थी कि वापस आ जाओ….

“एक अति विशाल चंद्रमा संसार पर चमक रहा था. मैं तुम्हारी ओर तब तक ताकता रहा जबतक कि अंधा नहीं हो गया. तुम्हारे चेहरे पर पड़ते चंद्रप्रकाश की ओर. तुम्हारी तरफ देखते हुए मैं कभी नहीं थकता था, तुम एक स्वप्न थी जिसे मैं देखता था. कोमल, चाँदनी में नहाए, तुम्हारे मोटे, नम होंठ, सितारों की तरह झिलमिलाते, तुम्हारा शरीर रात की ओस में पारदर्शी दिखाई देता. सुज़ाना. सुज़ाना सान ज़ुआन.”

उस छवि को और साफ करने के लिए उसने फिर हाथ ऊपर उठाना चाहा पर वह किसी चुम्बक की तरह उसके पैरों पर गिर पड़ा. उसने इस बार दूसरे हाथ से कोशिश की मगर वह धीरे-धीरे उसकी बगल से लुढ़कता हुआ ज़मीन पर आ गिरा, जैसे बैसाखी उसके लूले कंधों को संभाले हुए हो.

“यह तो मौत है,” उसने सोचा.

सूरज एक बार फिर चीजों पर गिर रहा था, उन्हें आकार प्रदान करता हुआ. उजाड़, ऊसर भूमि उसके सामने पसरी हुई थी. गर्मी उसकी देह में फफोले पैदा कर रही थी. उसकी आँखों में शायद ही कोई हलचल बची थी. वे एक स्मृति से दूसरी पर कूदतीं और वर्तमान को मिटाती जातीं. अचानक उसके हृदय की धड़कन रुक गई और ऐसा लगा जैसे उसके साथ समय और जीवन की साँस भी रुक गई हो.

“तो अब अगली कोई रात नहीं होगी,” उसने सोचा.

क्योंकि उन रातों में उसे डर लगता था जो अंधेरों को मायावी आकृतियों से भर देती हैं. जो उसे प्रेतों के साथ कमरे में बंद कर देती हैं. यही उसका डर था.

“मुझे मालूम है कि कुछ घंटों में अबुंडियो अपने खूनी हाथ आगे किए मेरे पास आएगा. मदद माँगने जिसे देने से मैंने इंकार कर दिया था. लेकिन मेरे पास हाथ नहीं होंगे कि अपनी आँखों पर ओट कर सकूँ. मुझे उसकी बात सुननी होगी, तब तक सुननी होगी जब तक कि दिन के साथ उसकी आवाज़ भी अस्त नहीं हो जाती, जब तक कि उसकी बात ख़त्म नहीं हो जाती.”

उसने अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस किया और वह अपने आपको कड़ा करते हुए थोड़ा सीधा हुआ.

“मैं हूँ, डॉन पेद्रो,” डामियाना ने कहा. “क्या तुम्हारा खाना यहीं लेकर आऊँ?”

पेद्रो पारामो ने जवाब दिया:

“नहीं, मैं उधर ही आ रहा हूँ. आ रहा हूँ.”

उसने डामियाना सिस्नेरो की बाँहों में खुद को संभाला और चलने की कोशिश की. कुछ कदमों बाद वह लुढ़कने लगा; भीतर कहीं वह मदद की भीख मांग रहा था किंतु उसके शब्द सुनाई नहीं दिए. फिर वह धम्म से गिरा और वहीं पड़ा रहा, पहाड़ के मलबे की तरह ध्वस्त.

 

 II समाप्त II

अजित हर्षे
अकोला, महाराष्ट्र में सन 1952 में जन्म.लगभग 15 कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. अंग्रेजी और मराठी से किए गए अनेक अनुवाद भी प्रकाशित. एक उपन्यास का सह अनुवाद एवं संपादन.
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Comments 18

  1. कुमार अम्बुज says:
    9 months ago

    इस उपन्यास को हिंदी में आना ही चाहिए था और यह आया। यह कृति क्रिएटिविटी का उत्कृष्ट और अनन्य उदाहरण है। अजित ने अपने आलस्य के पार जाकर इसे अंतत: संशोधित और पूर्ण किया और अरुण ने अद्भुत ढंग से एक साथ ही पेश कर दिया। इस तरह यह A++ काम हुआ।
    बधाई।

    Reply
    • M P Haridev says:
      9 months ago

      कुमार अम्बुज जी, सहमत हूँ कि विश्व प्रसिद्ध कृतियों का हिन्दी अनुवाद छपना चाहिये ।

      Reply
  2. Mekhraj says:
    9 months ago

    लेखक के नाम का मेक्सिको की हिस्पानी में उच्चारण ‘ख्वान रुल्फ़ो’ के निकट है।

    Reply
  3. M P Haridev says:
    9 months ago

    For a long time I thought to write that names of foreign writers be also written in brackets. Moreover, the authors’ books translated into Hindi and their publishers names.
    इस संक्षिप्त कथा में भी महत्वपूर्ण प्रसंग महिलाओं की उपेक्षा [घृणा और हिंसा भी पहलू होते हैं] से जुड़ी पीड़ा है । मुझे नहीं मालूम कि पितृ-सत्ता की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं । क्या आदिम युग से हैं । आधुनिक संसार में महिलाओं की शिक्षा ने उन्हें मज़बूत बनाया है । वे कमाती हैं । इसके बावजूद घर में काम करना इन्हीं के ज़िम्मे है ।
    क़रीब 5 वर्ष पहले [My chronology is weak] द इंडियन एक्सप्रेस में रविवारी संस्करण में सत्य घटना पर लेख था । मैं पहले कई लेखों की कतरने काटकर फ़ाइलों में रखता था । अब भी हैं लेकिन आयु अधिक होने के कारण छोड़ दिया] यह घटना केरल की है । इसलिये मलयालम भाषा में फ़िल्म बनायी गयी थी । कथा का आरंभ एक 12-14 साल के लड़के और उसकी माँ से जुड़ी है । पिता मज़दूर हैं । माँ का इलाज कराने की रक़म नहीं । उसकी देह उम्र से पहले दोहरी हो गयी थी । माँ काम करने में असमर्थ हैं । एक रोज़ बालक रसोई में स्लैब पर लगे सिंक के पास बर्तन साफ़ करता है । कमर और शरीर में दर्द होना आरंभ हो गया ।
    उसी रोज़ बच्चे ने संकल्प किया कि विवाह के बाद अपनी जीवनसंगिनी के साथ रसोई एवं घर के कार्यों में सहयोग करूँगा । संकल्प का व्यवहार में परिवर्तन हुआ । कथा छपने के दिन तक इन दंपति के एक पुत्र और एक पुत्री हैं । उनसे पुरुष और महिला दोनों के काम कराने का शिक्षण दिया गया ।
    इस चित्रपट के माध्यम से केरल में उनके रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की वर्किंग वुमन के फ़ोन आने लगे । कि कोई तो है जो हमारे कष्टों को समझता है ।

    Reply
  4. Ganesh vispute says:
    9 months ago

    हुआन रूल्फो का यह उपन्यास आज ७० वर्ष बाद भी अद्भुत लगता है। हिंदी में यह अनुदित होना शुभ समाचार है। भाषा वृद्धि का यह राज पथ भी है।

    Reply
    • आनंद विंगकर says:
      9 months ago

      फिलहाल इंग्लिश मे यह उपन्यास मै पढ रहा हु लेकिन समजनेमे खूब जटील है खासतौर उस देश का ईतिहास की जानकारीभी मालूम लेना जरुरी है
      हिंदी मे आप लोगोने ऐस क्लासिक किताब का अनुवाद किया
      धन्यवाद
      किसी हालत मे मूझे यह उपन्यास चाहिये
      आनंद विंगकर तहसिल कराड जिला सातारा महाराष्ट्र पिनकोड 415122

      Reply
  5. अच्युतानंद मिश्र says:
    9 months ago

    नमस्कार , आज के कारनामे के लिए समालोचन को बहुत बहुत बधाई। समालोचन में ही यह सम्भव है।अब सामलोचन साहित्य की एक संस्था का रूप ले चुका है।कमाल है ।
    क्या यह उपन्यास पीडीएफ के रूप में उपलब्ध हो सकता है, ताकि प्रिंट लेकर पढ़ा जा सके?

    Reply
  6. अरुण आदित्य says:
    9 months ago

    पाँव में मल्टिपल फ्रैक्चर के कारण दो हफ्ते से बिस्तर पर हूँ। बिस्तर पर पड़े रहने की ऊब और उदासी के बीच पढ़ना शुरू किया। एक झटके में बीस पेज से अधिक पढ़ गया। इस बीच ऊब और उदासी हाशिए पर दुबकी रहीं। पाठक को मोहपाश में बाँध कर रखने वाला उपन्यास है। भाषा में प्रवाह ऐसा कि बिल्कुल नहीं लगता जैसे अनुवाद पढ़ रहा हूँ। अजित हर्षे और समालोचन ने यह महत्वपूर्ण काम किया है।

    Reply
  7. मोनिका कुमार says:
    9 months ago

    अद्भुत संयोग है ! छह सात दिन पहले इनकी दो कहानियां पढ़ी और इस उपन्यास के बारे में NY Times में Valeria Luiselli का आर्टिकल ! और उसी क्रम में हिंदी अनुवाद मिल गया और वह भी इतनी जल्दी. शुक्रिया अरुण जी !

    Reply
  8. आमिर हमज़ा says:
    9 months ago

    देर सवेर दिल की बात पहुँच ही जाती है, प्यारे लोगो तक। बड़ी तमन्ना थी इसे नागरी में पढ़ने की, पूरी हुई। यह हिंदी की उपलब्धि है। समालोचन पर इसका होना यक़ीन से परे की बात नहीं है। अब कुछ दिन बस यही। समालोचन और अजित हर्षे जी का ख़ूब शुक्रिया!

    Reply
  9. Ashutosh Dube says:
    9 months ago

    अद्भुत है कि समालोचन ने अपनी इस ख़ास पेशकश में पूरा उपन्यास ही दे दिया है। अजित जी का और आपका आभार।

    Reply
  10. Shivmurti says:
    9 months ago

    अति उत्तम कार्य.
    एक दशक पहले किसी मित्र ने इसकी चर्चा की थी और PDF भेजा था.पढ़ते हुए किसी भुतही गुफा में जाने का रोमांच हुआ था.अब हिन्दी में पढ़ेंगे तो ज़्यादा आसान होगा.

    Reply
  11. श्रीनारायण समीर says:
    9 months ago

    बहुत महत्त्व का काम। हिंदी के क्षितिज को विस्तार देने की दृष्टि से भी बड़ा कार्य है यह। इसे पढ़ना तो है ही, संभाल कर रखना भी है। आपको और अनुवादकर्ता अजित हर्षे को बहुत – बहुत बधाई ।

    Reply
  12. Jatinder Aulakh says:
    9 months ago

    बहुत अच्छा काम किया। आपका इस पुस्तक से अवगत कराने लिए धन्यवाद।

    Reply
  13. अनुपम ओझा says:
    9 months ago

    फिल्म दो बार देख चुका हूं। उपन्यास पढ़ रहा हूं। समालोचन इस वक्त हिंदी साहित्य को दिशा दृष्टि देने का कठिन काम कर रहा है। अनुवादक और संपादक को बहुत बहुत धन्यवाद्!

    Reply
  14. राजीव कुमार शुक्ल says:
    9 months ago

    अजित हर्षे से चार दशकों की घनिष्ठ मित्रता है। इस प्रसंग से वह और गाढ़ी हुईं। उनकी असंदिग्ध सर्जनात्मकता का यह एक और सोपान सम्भव करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए पुराने प्यारे साथी कुमार अम्बुज और अरुण देव जी को अशेष साधुवाद। इसे पढ़ने की तीव्र उत्कंठा जाग उठी है। यात्रा पर हूॅं। स्थिर होते ही प्राथमिकता से पढ़ूॅंगा।

    Reply
  15. रोहिणी अग्रवाल says:
    9 months ago

    समय से साक्षात्कार समय को अवरुद्ध करने वाली जड़ताओं से टकराए बिना नहीं हो सकता। उपन्यास इस जोखिम को उठाता है, लहूलुहान होता है और अपने ही हाथों किये गए विध्वंस को देख हूक-हूक रोता है।

    कथा को मेटाफर का रूप देना और चरित्रों में अखंड देश-काल की स्मृतियों को भर देना आसान नहीं होता। तब पेद्रे पारामो क्या सिर्फ एक व्यक्ति भर बना रह जाता है? क्या वह अपनी व्युत्पत्ति में तमाम तामसिकताओं से बुनी बर्बरता नहीं जो संस्कृतियों, साम्राज्यों, सल्तनतों और सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के पराभव को सुनिश्चित कर हरे-भरे संभावनाओं से लहलहाते जीवन को प्रेतों का शहर बना देती है?

    कथ्य के भीतर गहरी सांस बन कर दुबका जादुई यथार्थवाद शैल्पिक ऊँचाइयाँ न लिए होता तो अर्थगर्भित प्रतीक, बिंब, फुसफुसाहटें और सन्नाटे में खो जाती आहटें/ कराहें भय एवं रहस्य गहराने की विलक्षण युक्तियाँ बन कर रह जातीं, लेकिन यह तो मुर्दों के टीले में जिंदगी के अस्तित्व और मायने तलाशने की पुकार है।
    फलने-फूलने के दंभ में डूबी तमाम सभ्यताओं के बीच आज भी पेद्रो पारामो सब जगह है। बूंद बन कर पैबस्त होता है पल में, और फिर आसमान बन कर ढांप लेता है वजूद …चेतना.. विवेक… गति … असहमति… और ताकत प्रतिरोध की।

    अजित हर्षे और समालोचन का आभार । कलजयी वैचारिक गद्य भी उपलब्ध कराएं तो आज के आलोचनाहीन-विचारहीन समय में सार्थक हस्तक्षेप का मंच बन जाएगा समालोचन ।

    Reply
  16. पूनम मनु says:
    9 months ago

    बाप रे! इतना भी आसान नहीं है पूरा उपन्यास एक ही बार में समझ आना। इसको समझने को इसकी गहराई में उतरना आवश्यक है। जब आप इसे पढ़ो तो किसी दूसरी ओर सोचो नहीं। बढ़िया 👏👏 धन्यवाद समालोचन अरुण देव जी। आभार अजीत हर्षे जी 🙏।सुना था इस उपन्यास के विषय में, पढ़ा आज। समालोचना की बदौलत। आभार समालोचना, ये तो लाइब्रेरी है मेरी 😊🙏

    Reply

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समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

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