परिशिष्ट
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जयनाथ पति
जयनाथ पति (1880-1939) एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे- मगही भाषा के प्रथम उपन्यासकार, भारतीय इतिहास और संस्कृति के विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी और अद्भुत भाषाशास्त्री. उनका जन्म बिहार के नवादा जिले के शादीपुर गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. अनेक भाषाओं में निपुण, जयनाथ पति ने मगही और अंग्रेजी में कई विचारोत्तेजक लेख लिखे, जो 1920 से 1935 के बीच प्रकाशित हुए. पेशे से प्रथम श्रेणी के मोख्तार, वे संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, लैटिन, फारसी, उर्दू, हिंदी और मगही के प्रकांड विद्वान थे. उनकी विलक्षणता का एक अद्वितीय उदाहरण यह था कि वे दोनों हाथों से एक साथ अलग-अलग भाषाओं में लिख सकते थे. उन्होंने फारसी लोकगीतों और ऋग्वेद का अनुवाद भी किया.
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका :जयनाथ पति ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की. 1920 में, जब महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का आह्वान किया, तो वे नवादा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में स्वराजियों का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने आज़ादी की लड़ाई को संगठित करने के लिए हस्तलिखित अख़बार निकाला, जिसे वे अपने घर के तहखाने में तैयार करते और पत्नी श्यामा देवी के साथ गांव-गांव जाकर वितरित करते. उनकी भूमिका के कारण उन्हें 1930 में हजारीबाग केंद्रीय कारागार में नौ महीने जेल में रहना पड़ा.
मगही साहित्य के आधार स्तंभ:
जयनाथ पति ने 1927 में मगही का पहला उपन्यास *सुनीता* लिखा, जिसे 1928 में प्रकाशित किया गया. यह उपन्यास अब दुर्लभ हो चुका है, पहला उपन्यास बेमेल शादी पर प्रहार किया गया. उच्च धराने की कम उम्र की सुनीता को एक वृद्ध के साथ शादी कर दी जाती है. लेकिन नायिका सुनीता सामाजिक बंधन को तोड़कर एक निम्न जाति के प्रेमी से शादी कर लेती है. सुनीता के बिरादरी वाले कोर्ट के जरिए प्रेमी को दंडित करना चाहते हैं किन्तु वह अपने प्रेमी के पक्ष मे खड़ी होकर सच्चा प्रेमिका होने का परिचय देती है. 1928 में प्रकाशित उनका दूसरा उपन्यास ‘फूल बहादुर’ और तीसरा उपन्यास *गदहनीत* हैं. इन रचनाओं में उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों और भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने 1937 में ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935’ का मगही में अनुवाद कर *स्वराज* शीर्षक से प्रकाशित किया. ब्रिटिश सवडिविजनल आफिसर ‘लूकस’ भी जयनाथपति की विद्वता के कायल थे.
शिक्षा और संस्थान निर्माण में योगदान: जयनाथ पति ने नवादा में एंग्लो संस्कृत स्कूल की स्थापना की, जो आज भी उनके योगदान की गवाही देता है. उनके प्रयास मगही भाषा के विकास और लोक साहित्य के संरक्षण में भी अद्वितीय रहे. उन्होंने मगही लोकसाहित्य का संकलन किया और एक संगठन का गठन किया, जो मगही साहित्य के उत्थान के लिए समर्पित था.
जयनाथ पति का जीवन न केवल साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए किए गए प्रयासों के कारण भी प्रेरणास्पद है. उनका निधन 21 सितंबर 1939 को टायफाइड के कारण पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुआ. उनके योगदान को भारतीय इतिहास और मगही साहित्य हमेशा स्मरण रखेगा. उनकी स्मृति में एक अदद मूर्ति भी में नवादा नही है. हाँ, उनके पिता जवाहिरनाथ के नाम पर नवादा में जवाहर नगर जरूर बसा है.
अशोक प्रियदर्शी ने 2012 में एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने मोख्तार जयनाथपति द्वारा मगही भाषा के प्रति अनुराग के बारे में संक्षेप में लिखा है. इसी को आधार मानकर यह कहा जा सकता है कि जयनाथ पति के बारे में जो कुछ हम जानते हैं, वह बहुत कम है. भाषा और साहित्य में रुचि रखने वाले अध्येताओं का यह दायित्व है कि वे ऐसे और भी दूसरे कवियों और साहित्यकारों की रचनाओं को प्रकाश में लाएं. उनका संरक्षण और प्रकाशन करें.
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जयनाथ पति : भाषाई दृष्टि से बेशकीमती
बाबू जयनाथ पति दक्षिण बिहार के प्रसिद्ध मोख्तार हैं, और एक निपुण विद्वान व भाषाविद जो अपनी मातृभाषा का तिरस्कार नहीं करते. हम उनकी इस छोटी सी कहानी का स्वागत करते हैं, जो दक्षिण बिहार की भाषा (मगही) में अपनी तरह का पहला प्रकाशन है. वर्तमान में छह लाख से अधिक लोग इस भाषा को बोलते हैं पर वे अब अपनी साहित्यिक भाषा के रूप में लगभग हिंदी को स्वीकार कर चुके हैं. इसकी कहानी बेमेल विवाह की सामाजिक बुराई को दर्शाती है जिसमें एक जवान लड़की की शादी बूढ़े के साथ कर दी गई है. लड़की इस विवाह को स्वीकार नहीं करती. वह एक निम्नवर्गीय लड़के के साथ भाग जाती है जिसे वह बचपन से प्यार करती है और हमारे समक्ष एक भयावह सामाजिक बुराई का उद्घाटन होता है. मगही समाज के जिन कुछ पहलुओं की तस्वीर इस कहानी में चित्रित की गई है, निःसंदेह वे अत्यंत विश्वनीय हैं, लेकिन इसमें चरित्रों का बहुत अधिक विकास नहीं हो सका है.
यह एक छोटा-सा काम है परंतु प्राथमिक तौर पर भाषाई दृष्टि से बेशकीमती है. हम आशा करते हैं कि भविष्य में लेखक दक्षिण बिहार के जीवन और समाज की ऐसी ही लंबी और विश्वसनीय तथा ख़ासकर के इससे भी आकर्षक व सुखद तस्वीरें हमारे सामने प्रस्तुत करेंगे. एक कृति के रूप में इस मौजूदा प्रयास को आने वाले दिनों में भारतीय भाषा और सामाजिक नृवंशविज्ञान के छात्र निश्चित रूप से याद करेंगे क्योंकि इसमें भाषाई और सामाजिक तथ्यों का संग्रहण है. पद्यात्मक सस्ती और लोकप्रिय किताबें आम तौर पर और कभी-कभार मगही में छापी जाती हैं, जिन्हें श्रेष्ठताबोध वाले हिंदी घरों या वे लोग कोर्ट-कचहरी और विद्यालयों की भाषा के मुकाबले अपनी मातृभाषा से अधिक प्यार करते हैं. पसंद नहीं की जाती. इसमें कोई शक नहीं कि केवल इसी तरह के सचेत साहित्यिक प्रयासों के द्वारा एक उपेक्षित भाषा अपने विलोपन के खतरे को दूर कर सकती है.
वैसे, जहाँ तक मगही का नया साहित्य खड़ा करने की बात है, तो शायद अब बहुत देर हो चुकी है. क्योंकि शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के ही मगही लोग मातृभाषा पर गर्व नहीं करते बल्कि वे हिंदी के, जो एक प्रकार से उच्च हिंदी और अवधी का मिश्रण है, मुकाबले अपनी ‘देसी भाषा’ को लेकर शर्मिन्दगी महसूस करते हैं. फिर भी मगही लेखक अपनी मातृभाषा में लेखन (कविता, नाटक या उपन्यास) के जरिए मगही समाज की आत्मा को झकझोर सकते हैं. ऐसा करके निश्चित रूप से वे सब साहित्य में एक नई दुनिया को शामिल करेंगे और भारतीय साहित्य में विविधता लाते हुए उसे समृद्ध करेंगे. श्री जयनाथ पति ऐसे ही एक सुख्यात मगही लेखक एवं विद्वान हैं जो अपने समाज, देश और मातृभाषा से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं.
सुनीति कुमार चटर्जी,
‘द मॉडर्न रिव्यू’, अंक 43, अप्रैल 1928,
कलकत्ता विश्वविद्यालय, कलकत्ता, पृष्ठ 430
“फूल बहादुर” (मगही उपन्यास) – जयनाथपति (1880-1940); प्रथम संस्करणः अप्रैल 1928; दोसर संस्करणः अप्रैल 1974; प्रकाशकः बिहार मगही मंडल, पटना-5; मूल्य 3 रुपइया; कुल 6 + 28 पृष्ठ. प्राप्ति-स्थानः बिहार मगही मंडल, V-34, विद्यापुरी, पटना-8000201
अरुण भाई
वर्षों पहले इसे मगही में पढ़ा था, एक बार पुनः हिन्दी में भी पढ़ा। गोपाल जी ने बहुत अच्छा अनुवाद किया है।
इस पेशकश के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
मैं झारखण्ड के पलामू जिले का हूँ. हमारी तरफ मगही ही बोली जाती है. पर हमारी मगही उस मगही से कदाचित भिन्न है जो बिहार शरीफ, नवादा क्षेत्र में बोली जाती है. कोस कोस पर पानी बदले सवा कोस पर बानी इत्यादि. मगही शब्द निश्चित ही मागधी से बना होगा, और मागधी हुई मगध में बोली जाने वाली प्राकृत. मगध क्षेत्र आज छः जिलों में फैला हुआ है – पटना, नालंदा, गया, औरंगाबाद, जहानाबाद और नवादा. हमारा पलामू जिला इस मगध में नहीं है किन्तु बोली वही है जो औरंगाबाद की है.
आपको मगही के सबसे पुराने उपलब्ध उपन्यास का हिंदी अनुवाद यहां मिलेगा.
लेखक नवादा के हैं, उपन्यास का देश बिहार शरीफ है. आमुख में लेखक ने बताया है उनके पहले उपन्यास “सुनीता” (प्रकाशन 1928) को लेकर भूमिहार समाज उनसे कुछ रुष्ट हुआ था. लेखक कायस्थ हैं और इस उपन्यास में उन्होंने एक कायस्थ मुख्तार की खिल्ली उड़ाई है. सबडिवीज़नल शहर में एसडीओ और डिप्टी साहबों की चलती थी. एक शिकायत / तकलीफ थी कि कमाई सबसे अधिक पुलिस वालों की थी. हाकिम मुख्तारों के कस्बिनों से रिश्ते आम होते थे.
समस्या उठ जाती थी जब किसी गणिका को कोई अपनी रक्षिता बना ले. इस उपन्यास के प्रतिनायक एक मुख्तार हैं, जो किसी सजातीय मुख्तार के घर कभी रसोइया होते थे और तीन बार अनुत्तीर्ण होने के बाद चौथी बार मुख्तारी पास कर पाए थे. ग्रन्थ-ज्ञान चाहे कितना भी कम रहे, व्यावहारिकता उनमे कूट कूट कर भरी थी. खूब पैसे कमाए, साहबों के बीच नाम कमाया, “किले जैसा घर” बनवाया और अब बस एक ख्वाहिश रह गयी – किसी तरह राय बहादुर बन जाएं.
अवश्य पढ़िए, बहुत छोटा उपन्यास है. देश-काल का बहुत सच्चा वर्णन.
बहुत ही सार्थक प्रयास होल हे।
“आधुनिक मगही साहित्य” विषय पर शोध औ “मगही साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास” लिखे खनि जयनाथपति के गाँव शादीपुर तक गेलूं हल। ऊ गाँव में कभी कायस्थ के समृद्ध टोला हलै। वैसे बाद में ऊ लोग नवादा औ दोसर जगह में समा गेलन।
मगही साहित्य में जयनाथपति अनमोल धरोहर हथ।
“फूलबहादुर” के अँग्रेजी अनुवाद जान के खुशी होल।
अनुवादक के आभार सहित शुभकामना।
नमस्कार।